رضوی

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इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने 23 सितम्बर 2025 की रात को ईरानी अवाम से ख़िताब किया जिसमें उन्होंने 12 दिन की जंग में ईरानी क़ौम की एकता, युरेनियम एनरिचमेंट और अमरीका की धमकियों के मुक़ाबले में क़ौम और इस्लामी व्यवस्था के ठोस स्टैंड और सूझबूझ जैसे अहम विषयों पर चर्चा की।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने 23 सितम्बर 2025 की रात को ईरानी अवाम से ख़िताब किया जिसमें उन्होंने 12 दिन की जंग में ईरानी क़ौम की एकता, युरेनियम एनरिचमेंट और अमरीका की धमकियों के मुक़ाबले में क़ौम और इस्लामी व्यवस्था के ठोस स्टैंड और सूझबूझ जैसे अहम विषयों पर चर्चा की।

उन्होंने अपनी स्पीच में संवर्धित युरेनियम की कृषि, उद्योग, पर्यावरण, प्राकृतिक स्रोतों, हेल्थकेयर, इलाज, न्यूट्रिशन, रिसर्च और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में अनेक प्रकार की उपयोगिताओं की ओर इशारा किया।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने मुल्क में युरेनियम एनरिचमंट उद्योग के वजूद में आने की प्रक्रिया के बारे में कहा कि हमारे पास यह टेक्नॉलोजी नहीं थी और हमारी ज़रूरतों को दूसरे पूरा भी नहीं करते थे लेकिन कुछ साहसी अधिकारियों और वैज्ञानिकों की कोशिश से तीस-पैंतीस साल पहले हमने आगे बढ़ना शुरू किया और अब उच्च स्तर पर युरेनियम संवर्धन करने पर की मंज़िल पर पहुंच गए हैं।

उन्होंने कुछ मुल्कों के 90 फ़ीसदी युरेनियम एनरिचमंट के लक्ष्य को न्यूक्लियर हथियार बनाना बताते हुए कहा कि चूंकि हमें न्यूक्लियर हथियारों की ज़रूरत नहीं है और हमने इस हथियार को न बनाने और इस्तेमाल न करने का फ़ैसला किया है, इसलिए हम युरेनियम एनरिचमंट को 60 फ़ीसदी तक ले गए जो बहुत अच्छा है।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने दुनिया के 200 से ज़्यादा मुल्कों में ईरान को उन 10 मुल्कों में बताया जिनके पास युरेनियम संवर्धन उद्योग है और कहा कि इस आधुनिक टेक्नॉलोजी में आगे बढ़ने के अलावा हमारे वैज्ञानिकों का एक अहम काम इस मैदान में ज़रूरी मानव संसाधन की ट्रेनिंग ऱही है, इस तरह से कि आज दसियों वैज्ञानिक और नुमायां उस्ताद, सैकड़ों स्कॉलर, परमाणु विषय के अनेक मैदानों में हज़ारों ट्रेंड वर्क फ़ोर्स इस वक़्त काम में लगी हुई है, ऐसी हालत में भी दुश्मन को लगता है कि वह चंद फ़ैसिलिटीज़ पर बमबारी करके या बमबारी की धमकी देकर इस टेक्नॉलोजी को ईरान में ख़त्म कर देगा।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने वर्चस्ववादी ताक़तों के ईरानी क़ौम को झुकाने और उसे युरेनियम एनरिचमंट से दूर करने के लिए कई दशकों के दबाव का ज़िक्र करते हुए बल दिया कि युरेनियम एनरिचमंट के क्षेत्र में न हम झुके हैं और न झुकेंगे और इसी तरह किसी भी दूसरे मामले में दबाव के सामने नहीं झुकेंगे।

उन्होंने कहा कि अमरीकी पहले कहते थे कि उच्च स्तर पर युरेनियम संवर्धन न कीजिए और संवर्धित युरेनियम के प्रोडक्ट्स को मुल्क से बाहर भेजिए, लेकिन अब अमरीकी पक्ष बड़ी ढिठाई से कह रहा है कि हम बिल्कुल ही युरेनियम एनरिचमंट न करें।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने बल दिया कि इस धौंस का मतलब यह है कि इस बड़ी उपलब्धि को जिसे पूंजिनिवेश और निरंतर कोशिश से हासिल किया गया है, धुएं की तरह हवा में उड़ा दीजिए, लेकिन ईरान की ग़ैरतमंद क़ौम इस बात को नहीं मानेगी और यह बात कहने वाले के मुंह पर तमाचा मारेगी।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने अपनी स्पीच के एक भाग में अमरीका के साथ बातचीत को बेफ़ायदा बताते हुए कहा कि अमरीकी पक्ष पहले से ही वार्ता के नतीजे को जो उसकी निगाह में है, एलान करके कह रहा है कि वह ऐसी वार्ता चाहता है जिसका नतीजा ईरान में युरेनियम एनरिचमंट और न्यूक्लियर सरगर्मियों पर ताला लगना है।

उन्होंने ऐसी वार्ता की मेज़ पर बैठने का मतलब सामने वाले पक्ष की धौंस के सामने झुकना बताया और कहा कि अब उन्होंने (ट्रम्प) युरेनियम एनरिचमंट को बंद करने के लिए कहा है तो उनके एक अधिकारी ने कुछ दिन पहले कहा कि ईरान के पास मध्यम दूरी और कम दूरी के मीज़ाईल भी नहीं होने चाहिए यानी ईरान के हाथों को इस तरह से बांध दिया जाए कि अगर उस पर हमला हो तो वह अमरीकी छावनी को भी निशाना न बना सके।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने इस तरह की अपेक्षा और अमरीकी अधिकारियों के बयान को ईरानी क़ौम और इस्लामी गणराज्य की पहचान और इस्लामी ईरान के वजूद में आने के राज़ से उनकी अनभिज्ञता का नतीजा बताया और कहा कि यह छोटा मुंह बड़ी बात है जिस पर ध्यान देने की ज़रूरत नहीं है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने अमरीका के साथ वार्ता के बेफ़ायदा होने के साथ साथ उसके नुक़सान की ओर इशारा करते हुए कहा कि सामने वाले पक्ष ने धमकी दी है कि अगर वार्ता न की तो ऐसा कर देंगे वैसा कर देंगे। इसलिए ऐसी वार्ता को क़ुबूल करना धमकी और डर से प्रभावित होना और क़ौम तथा मुल्क को धमकी के सामने झुकाना है।

उन्होंने अमरीका की धमकी के सामने झुकने को उसके धमकी भरे और कभी न ख़त्म होने वाले मुतालबों का जारी रहने का सबब बताया और कहा कि आज कह रहे हैं कि अगर एनरिचमंट किया तो ऐसा कर देंगे वैसा कर देंगे और कल मीज़ाईल रखने या किसी मुल्क से संबंध रखने न रखने को धमकी की बुनियाद बनाएंगे और पीछे हटने पर मजबूर करेंगे।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने बल दिया कि कोई भी ग़ैरतमंद क़ौम, धमकी भरी वार्ता को क़ुबूल नहीं करेगी और कोई भी अक़्ल रखने वाला राजनेता इसकी पुष्टि नहीं करेगा।

उन्होंने सामने वाले पक्ष के उसकी दरख़ास्त को क़ुबूल करने पर कंसेशन देने के वादे को झूठ बताया और परमाणु समझौते जेसीपीओए के तजुर्बे की ओर इशारा किया कि 10 साल पहले अमरीकियों के साथ समझौता हुआ जिसकी बुनियाद पर परमाणु उत्पादन का एक केन्द्र बंद किया गया और संवर्धित मटीरियल को मुल्क से बाहर भेजा गया और उसे पतला किया गया ताकि उसके बदले में पाबंदियां दूर हों और ईरान की फ़ाइल आईएईए में नॉर्मल हालत में लौट आए। आज 10 साल हो गए न सिर्फ़ यह कि हमारी परमाणु फ़ाइल सामान्य हालत में नहीं लौटी बल्कि सुरक्षा परिषद और आईएईए में मुश्किलें और बढ़ गयीं।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने तजुर्बे को न भूलने पर ताकीद करते हुए कहा कि इस वक़्त योरोप के साथ किसी योजना को पेश करने का इरादा नहीं है लेकिन सामने वाले पक्ष यानी अमरीका ने हर चीज़ में वादा ख़िलाफ़ी की और झूठ बोलता है, कभी कभी सैन्य धमकी देता है और जब उससे मुमकिन होता है अज़ीज़ जनरल सुलैमानी जैसी शख़्सियतों की हत्या या केन्द्रों पर बमबारी करता है। क्या ऐसे पक्ष से भरोसे और इत्मेनान के साथ वार्ता और समझौता करना चाहिए?

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने बल दिया कि अमरीका के साथ परमाणु मसले और शायद दूसरे मसलों में भी वार्ता बेफ़ायदा है।

उन्होंने अमरीका के साथ वार्ता को उसके मौजूदा राष्ट्रपति के लिए फ़ायदेमंद बताया जो ईरान को वार्ता की मेज़ पर बिठाने पर आधारित धमकी को उपयोगी बताने का प्रचार करेगा। 

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने मुल्क की तरक़्क़ी का एकमात्र रास्ता सैन्य, वैज्ञानिक, प्रशासनिक और ढांचागत आयाम से ताक़तवर होना बताया और कहा कि ताक़तवर होने पर सामने वाला धमकी भी नहीं देगा।

उन्होंने अपनी स्पीच के एक भाग में क़ौम की एकता को 12 दिन की जंग में दुश्मन के निराश होने का मुख्य कारण बताया और कहा कि दुश्मन का कुछ प्रभावी हस्तियों और कमांडरों की हत्या करने के पीछे लक्ष्य मुल्क में, ख़ास तौर पर तेहरान में अपने तत्वों की मदद से अराजकता फैलाना था और मुल्क के मामलों को ठप्प करके अस्ल सिस्टम को टार्गेट करना और फिर उसके बाद इस सरज़मीन से इस्लाम को ख़त्म करना था।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने शहीद कमांडरों की जगह फ़ौरन दूसरे कमांडरों की नियुक्त और आर्म्ड फ़ोर्सेज़ में ऊंचे मनोबल, मुल्क के सही तरीक़े से संचालन को दुश्मन की हार में प्रभावी तत्व गिनवाया और राष्ट्रीय एकता व समरसता को दुश्मन की नाकामी का सबसे प्रभावी कारण क़रार दिया।

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने बल दिया कि अहम बात यह है कि वह निर्णायक एकता अभी भी बाक़ी और बहुत ही प्रभावी है।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता ने आज के ईरान को इस साल 23 और 24 जून वाला ईरान बताया और कहा कि ऊन दिनों दुष्ट ज़ायोनियों और अपराधी अमरीका के ख़िलाफ़ सड़कों पर अवाम का मौजूद होना और उनका मुंहतोड़ नारा, क़ौम की एकता और समरसता की निशानी था और यह एकता अभी भी है और रहेगी।

उन्होंने शहीद नसरुल्लाह की शहादत की वर्षगांठ की ओर इशारा करते हुए, इस बड़े मुजाहिद को इस्लामी दुनिया, शियों और लेबनान के लिए बहुत बड़ी संपत्ति बताते हुए कहा कि सैयद नसरुल्लाह ने हिज़्बुल्लाह सहित जो धरोहर बनायी वह बाक़ी है और तरक़्क़ी कर रही है और इस धरोहर की ओर से लेबनान और ग़ैर लेबनान में गफ़लत नहीं होनी चाहिए।

 दुनिया के सबसे बड़े वैश्विक समुद्री बेड़े ने खुलासा किया है कि इजरायली सेना ने पिछले 24 घंटों में 12 ड्रोन हमले किए, जिनमें 9 जहाजों को निशाना बनाया गया और 10 जहाजों पर बम गिराए गए।

इस वैश्विक समुद्री बेड़े ने बताया कि इजरायली हमलों में कुल 13 विस्फोट हुए, जिससे व्यापक स्तर पर संचार प्रणाली प्रभावित हुई। केवल एक जहाज "आल्मा" पर ही 15 इजरायली ड्रोन उड़ रहे थे और उस पर बम गिराए गए। बेड़े ने कहा कि इजरायल एक "गुमराह करने वाला अभियान" चला रहा है ताकि संभावित सैन्य हमले का बहाना बनाया जा सके, जबकि यह मानव सहायता बेड़े पर हमला युद्ध अपराध और अंतरराष्ट्रीय कानून की स्पष्ट उल्लंघन है।

इसी बीच ग़ाज़ा की नाकेबंदी को तोड़ने वाली समिति ने संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों से मांग की है कि वे इस बेड़े के लिए प्रभावी सुरक्षा उपाय करें, जिसमें नौसैनिक स्क्वाड्रन द्वारा सुरक्षा शामिल हो। समिति ने कहा कि इजरायली हमलों को संयुक्त राष्ट्र महासभा के एजेंडा में शामिल किया जाए और एक प्रस्ताव के जरिए इन गंभीर उल्लंघनों पर कार्रवाई की जाए।

दूसरी ओर, संयुक्त राष्ट्र की विशेष रिपोर्टर फ्रैंचेस्का अल्बानिज़ ने बुधवार सुबह अपने बयान में कहा कि बेड़ा ग़ाज़ा की तटीय पट्टी से 950 किलोमीटर दूर इजरायली ड्रोन हमलों का शिकार हुआ। उनके अनुसार बेड़े को कम समय में सात बार हमले झेलने पड़े।

उन्होंने बताया कि जहाजों को बम विस्फोटक खानों और संदिग्ध रासायनिक पदार्थों से निशाना बनाया गया, रेडियो सिस्टम बाधित किए गए और सहायता अनुरोधों को ब्लॉक किया गया। उन्होंने तत्काल अंतरराष्ट्रीय ध्यान और सुरक्षा की मांग की हैं।

 

 हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मदी लाइनी ने कहा,छात्रों की भारी ज़िम्मेदारी है कि वे समाज को धर्म की सही समझ की ओर मार्गदर्शन करें और जागरूकता एवं निरंतर प्रयास के माध्यम से धार्मिक भटकावों की पहचान करें और उन्हें सुधारें।

ईरान के माज़ंदरान प्रांत में विलायत-ए-फक़ीह के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मद बाकिर मोहम्मदी लाइनी ने नए शैक्षणिक वर्ष के उद्घाटन समारोह में और मदरसा-ए-इल्मिया तख़स्सुसी अलज़हेरा सारी के उस्तादों और छात्रों की मौजूदगी में सभी छात्रों, शिक्षकों और मदरसे के ज़िम्मेदारों के लिए सफलता और बरकत वाले साल की दुआ की।उन्होंने कहा,नए शैक्षणिक वर्ष की शुरुआत, अल्लाह की रहमत और नेमतों को पाने का बेहतरीन अवसर है।

उन्होंने धार्मिक क्षेत्र की चुनौतियों की ओर इशारा करते हुए कहा,हमारी धार्मिक इतिहास में ऐसे बदलाव तहरीफ़ आए, जिनकी वजह से नबूवत और ख़िलाफ़त को एक-दूसरे से अलग कर दिया गया और अहलेबैत (अ.स.) के हक़ को नज़रअंदाज़ किया गया जिससे मुसलमानों के बीच गहरे मतभेद पैदा हुए।

हुज्जतुल इस्लाम लाइनी ने कहा,हम छात्रों की एक गंभीर और भारी ज़िम्मेदारी है कि हम सही जानकारी और लगातार प्रयासों के ज़रिए इन गुमराहियों को रोके और समाज को धर्म और अहलेबैत (अ.स.) के रास्ते की सही पहचान की ओर मार्गदर्शन करें।

उन्होंने आगे कहा,हमें उम्मीद है कि दुश्मनों की साज़िशें नाकाम होंगी इसतकबार साम्राज्यवादी ताकतें और उनके घुसे हुए एजेंट नाकाम रहेंगे और सब लोग अहलेबैत (अ.स.) के नूर के रास्ते पर ईमानदारी और सच्चाई के साथ चलते हुए धर्म और उम्मत के लिए एक रौशन भविष्य की नींव रखेंगे।

मंगलवार, 23 सितम्बर 2025 16:03

इंसान की आज़ादी

हमारा अक़ीदह यह है कि अल्लाह ने इंसान को आज़ाद पैदा किया है । इंसान अपने तमाम कामों को अपने इरादे व इख़्तेयार के साथ अंजाम देता हैं। अगर हम इंसान के कामों में जब्र के क़ाईल हो जायें तो बुरे लोगों को सज़ा देना उन पर ज़ुल्म,और नेक लोग़ों को इनआम देना एक बेहूदा काम शुमार होगा और यह काम अल्लाह की ज़ात से मुहाल है।
हम अपनी बात को कम करते हैं और सिर्फ़ यह कहते हैं कि हुस्न व क़ुब्हे अक़ली को क़बूल करना और इंसान की अक़्ल को ख़ुद मुख़्तार मानना बहुत से हक़ाइक़,उसूले दीन व शरीअत,नबूवते अम्बिया व आसमानी किताबों के क़बूल के लिए ज़रूरी है। लेकिन जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है कि इंसान की समझने की सलाहियत व मालूमात महदूद है लिहाज़ा सिर्फ़ अक़्ल के बल बूते पर उन तमाम हक़ाइक़ को समझना- जो उसकी सआदत व तकामुल से मरबूत हैं- मुमकिन नही है। इसी वजह से इंसान को तमाम हक़ाइक़ को समझने के लिए पैग़म्बरों व आसमानी किताबों की ज़रूरत है।


 

 

हौज़ा ए इल्मिया की उच्च परिषद के सचिव ने कहा, शिया उलेमा ने अपनी चमकदार इतिहास में उतार-चढ़ाव के बावजूद मकतब और मज़हब की बक़ा को यकीनी बनाया और ईरान में देश की स्थिरता और मजबूती की निशानी रहे हैं।

हौज़ा ए इल्मिया की उच्च परिषद के सेकंड सचिव आयातुल्लाह जवाद मरवी ने देश भर के हौज़वी वित्तीय प्रबंधकों और अकाउंटेंट्स के दूसरे अजलास और कार्यशाला के समापन समारोह में रूहानियत के स्थान की ओर इशारा करते हुए कहा,शिया रूहानियत अपनी दीप्तिमान इतिहास में विभिन्न उतार-चढ़ाव से गुजरी है, लेकिन हमेशा मकतब और मज़हब के अस्तित्व का कारण बनी और ईरान में स्थिरता और मजबूती की निशानी रही है।

उन्होंने आगे कहा, स्वाभाविक रूप से हौज़ा और रूहानियत के संस्थान में सेवा अन्य संस्थानों से अलग और अधिक महत्वपूर्ण होती है।

आयातुल्लाह मरवी ने कुछ ऐसे बुजुर्गों की ओर इशारा किया जो हौज़ा ए इल्मिया में प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके हैं और कहा, इस पद पर सेवा करना एक खास आध्यात्मिक सम्मान रखता है।

क्योंकि इस पवित्र संस्था की सेवा का फल ऐसे बुजुर्ग और प्रभावशाली व्यक्ति हैं जो मबतक और मज़हब के सेवक हैं। यद्यपि यह माना जाता है कि हौज़ा के सभी स्नातक इस स्तर पर नहीं होते, लेकिन ऐसे व्यक्ति जरूर हैं जिन्होंने मकतब की सेवा की है।

हौज़ा ए इल्मिया की उच्च परिषद के इस सदस्य ने नीति निर्धारण और कार्यान्वयन को रूहानियत की व्यवस्था के लिए दो आवश्यक पंखों के रूप में बताया और कहा,वित्तीय प्रबंधक इन दोनों पंखों के बीच संपर्क का माध्यम हैं और जितना यह माध्यम मजबूत होगा और साथ ही साथ कर्मचारी अपनी जिम्मेदारियों को बेहतर समझेंगे, रूहानियत की व्यवस्था उतनी ही अधिक ऊर्जा प्राप्त करेगी।

 हुज्जतुल इस्लाम शेख़ अहमद क़बलान ने कहा,इज़राइल एक अस्तित्वगत दुश्मन है, और प्रतिरोध (मुक़ावमत) लेबनान की ताक़त और उसकी ऐतिहासिक स्थायित्व की क्षमता है।

लेबनान के प्रमुख जाफरी मुफ्ती हुज्जतुल इस्लाम शेख अहमद कबलान ने एक बयान में कहा लेबनान अपनी स्थापना के बाद सबसे जटिल और महत्वपूर्ण सरकारी चरण से गुजर रहा है।

मैं लेबनान सरकार से कहता हूं सरकारें अपनी संप्रभुता की कुर्बानियों और राष्ट्रीय ऊर्जाओं के समर्थन से जीवित रहती हैं न कि दमनकारी नीतियों के आविष्कार से और न ही समकालीन इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण सरकारी मुक़ावमत की कुर्बानियों को नजरअंदाज करने से।

उन्होंने कहा, आज अल-बीजर" की दिल दहला देने वाली हत्याकांड की बरसी हमें उन लोगों की याद दिलाती है जिन्होंने आधी सदी पहले देश और सरकार को फिर से जीवित किया। हमारा रुख विद्रोह या धृष्टता नहीं बल्कि राष्ट्रीय एकता, नागरिक साझेदारी और संप्रभुता लाभ पर जोर है। यह बात भी याद रहे कि लेबनान अपनी पौराणिक प्रतिरोध के बिना आज मौजूद नहीं होता।

शेख कबलान ने कहा,यदि आज कतर के साथ एकजुटता एक अनिवार्य साझेदारी है तो गाजा के लोगों के साथ एकजुटता कहीं अधिक महत्वपूर्ण है जो दुनिया की आंखों के सामने नरसंहार का शिकार हैं। समय आ गया है कि लेबनान सरकार जनता, दक्षिण, प्रतिरोध (मुक़ावमत) और अपने सरकारी अधिकार के प्रति अपनी राष्ट्रीय जिम्मेदारियों को अदा करे। राजनीतिक न्याय संप्रभुता न्याय का हिस्सा है।

इस लेबनानी शिया विद्वान ने आगे कहा इस संदर्भ में सरकार जिम्मेदार है और उस पर यह अनिवार्य है कि कम से कम राष्ट्रीय गरिमा का प्रदर्शन करे और उस ऐतिहासिक ऋण को चुकाए जो प्रतिरोध (मुक़ावमत) की पौराणिक कुर्बानियों के कारण उस पर है। इस्लाम और ईसाई धरोहर में मानवीय और राष्ट्रीय गरिमा की आवाज से बढ़कर कोई आवाज नहीं है।

अंत मे उन्होंने कहा,संबंध तोड़ना वर्जित है और घृणा व द्वेष उससे भी अधिक वर्जित है। हम एक हैं, हमारा देश एक है, क्षेत्रीय खतरे बहुत अधिक हैं और कोई विकल्प मातृभूमि नहीं है। कतर के साथ जो कुछ हुआ वह क्षेत्र में अमेरिका के खतरनाक खेल को उजागर करता है।

क्रोएशिया के शहर ज़ाग्रेब में आयोजित विश्व प्रतियोगिताओं में ईरानी फ्रीस्टाइल और ग्रीको-रोमन कुश्ती टीमों की शानदार सफलता पर ईरान के हौज़ए इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा अराफी ने बधाई दी है।

ईरान के हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा अराफी ने क्रोएशिया के शहर ज़ाग्रेब में आयोजित विश्व प्रतियोगिताओं में ईरानी फ्रीस्टाइल और ग्रीको-रोमन कुश्ती टीमों की शानदार सफलता पर बधाई दी है।

आयतुल्लाह अराफी ने अपने संदेश में कहा कि ईरानी पहलवानों की यह शानदार सफलता पूरी राष्ट्र के लिए खुशी और गौरव का कारण बनी है।

उन्होंने आगे कहा कि यह सफलता वास्तव में दिन रात की मेहनत, सही योजना और जिम्मेदार अधिकारियों व कोच आदि के प्रयासों का फल है।

जिसने साबित कर दिया कि ईरान के प्रतिभाशाली युवा, अपनी गर्वित भावना, पहलवानी जज़्बे और दृढ़ संकल्प के साथ दुनिया के उच्चतम पुरस्कार अपने नाम कर सकते हैं।

आयतुल्लाह अराफी ने कुश्ती संघ के अध्यक्ष, कोचों, जिम्मेदार अधिकारियों और पदक जीतने वाले सभी पहलवानों का आभार व्यक्त करते हुए उनके लिए आगे की सफलताओं और गौरव की दुआ की हैं।

हफ्त ए मुकद्दसे दिफा के अवसर पर जनरल अब्दुल रहीम मूसवी ने कहा कि ईरानी सशस्त्र बल अपनी रक्षा क्षमताओं और आधुनिक तकनीक के दम पर किसी भी आक्रमण का पूरी ताकत से जवाब देने के लिए तैयार हैं।

तेहरान में हफ्त ए मुकद्दसे दिफा के अवसर के मौके पर एक संदेश में ईरानी सशस्त्र बलों के चीफ ऑफ स्टाफ मेजर जनरल अब्दुल रहीम मूसवी ने कहा कि ईरान हर प्रकार के खतरे का समय पर, निर्णायक और पूरी ताकत से जवाब देने के लिए पूरी तरह तैयार है।

जनरल मूसवी ने आठ साल की ईरान-इराक युद्ध का हवाला देते हुए कहा कि दुश्मन ईरान की सैन्य शक्ति, रक्षा क्षमताओं, क्षेत्रीय प्रभाव और सशस्त्र बलों के संतुलित जवाब से निपटने में असफल रहा।

उन्होंने कहा कि ईरान केवल रक्षात्मक स्थिति में नहीं है, बल्कि हर खतरे को राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और वैश्विक शक्ति के प्रदर्शन का अवसर बनाता है।

जनरल मूसवी ने आधुनिक रक्षा तकनीक के विकास और रक्षा क्षमताओं में वृद्धि की आवश्यकता पर जोर दिया, और खासकर हाइब्रिड युद्ध जैसे आधुनिक युद्ध तरीकों के खिलाफ तैयारी की अहमियत को उजागर किया।

उन्होंने ईरानी जनता को भरोसा दिलाया कि इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान के सशस्त्र बल अपनी रणनीतिक क्षमताओं और आधुनिक तकनीक के बल पर दुनिया भर के अत्याचारी और आक्रामक ताकतों की हर प्रकार की आक्रमण का समय पर और निर्णायक जवाब देने के लिए तैयार हैं।

फ़िलस्तीन राज्य को मान्यता देने की प्रक्रिया तेजी से बढ़ रही है और संयुक्त राष्ट्र के मंच पर इज़राइल के खिलाफ कड़े निंदाय बयान सामने आए हैं।

फ़िलस्तीन को मान्यता देने की प्रक्रिया तेजी से आगे बढ़ रही है और संयुक्त राष्ट्र के मंच पर इज़राइल के खिलाफ कड़ी निंदा की गई है।

फ्रांस, बेल्जियम, लक्ज़मबर्ग, माल्टा, मोनाको और एंडोरा ने आधिकारिक रूप से फ़िलस्तीन को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता देने का ऐलान किया है। यह घोषणा ऐसे वक्त आई है जब एक दिन पहले ही ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और पुर्तगाल ने भी इसी प्रकार का फैसला किया था।

यह सब न्यूयॉर्क में आयोजित दो-राज्य समाधान" की अंतरराष्ट्रीय बैठक के दौरान हुआ जिसमें विश्व के नेताओं और प्रतिनिधियों ने इज़राइल द्वारा पिछले दो सालों से गाजा में चलाए जा रहे नरसंहार की कड़ी निंदा की हैं।

फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में कहा, अब हम फ़िलस्तीन राज्य को मान्यता देने में और देरी नहीं कर सकते। उन्होंने माना कि मध्य पूर्व में न्यायपूर्ण शांति स्थापित करने में वैश्विक समुदाय अब तक असफल रहा है। मैक्रॉन ने कहा,फ़िलस्तीन में अरब राज्य के निर्माण का वादा अब तक पूरा नहीं हुआ। हमें शांति का मार्ग सुगम बनाने और दो-राज्य समाधान को सुनिश्चित करने के लिए हर संभव कदम उठाना होगा।

उन्होंने गाज़ा में इज़राइल की सैन्य कार्रवाइयों की भी आलोचना की और कहा,हज़ारों फ़िलस्तीनियों की जानें बर्बाद हो रही हैं। जो कुछ गाजा में हो रहा है, उसका कोई औचित्य नहीं है। युद्ध को खत्म करना और जान बचाना आवश्यक है।

इसी सम्मेलन में लक्ज़मबर्ग के प्रधानमंत्री लोक फ्राइडेन, माल्टा के प्रधानमंत्री रॉबर्ट अबेला, और मोनाको के राजकुमार अल्बर्ट द्वितीय ने भी फ़िलस्तीन को आधिकारिक मान्यता देने की घोषणा की।

मोनाको के राजकुमार ने कहा,अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत हम फ़िलस्तीन को मान्यता देते हैं। शांति अब कोई दूर का सपना नहीं रहना चाहिए, दो राज्यों पर आधारित समाधान ही क्षेत्र में स्थिरता ला सकता है।

बेल्जियम के प्रधानमंत्री बार्ट दे वेवर ने कहा,इज़राइली बस्तियों का निर्माण, गाजा पर सैन्य कब्जा और इज़राइली सरकार का फ़िलस्तीन के अस्तित्व से इनकार करना ये सब कारण हैं जो हमें फ़िलस्तीन को मान्यता देने पर मजबूर करता हैं।

इसी तरह एंडोरा की विदेश मंत्री एमा टूर फॉस ने भी संयुक्त राष्ट्र की सभा में बोलते हुए अपनी सरकार की ओर से फ़िलस्तीन को मान्यता देने का ऐलान किया।

इस तरह सोमवार को छह देशों के नए फैसलों के बाद, फ़िलस्तीन को मान्यता देने वाले देशों की संख्या 193 सदस्य देशों में से 150 से अधिक हो गई है। याद रहे कि फ़िलस्तीन राज्य की आधिकारिक घोषणा पहली बार 1988 में यासिर अराफात ने अल्जीरिया में की थी।

लक्ज़मबर्ग और माल्टा के प्रधानमंत्रियों ने मंगलवार सुबह संयुक्त राष्ट्र में आयोजित "टू-स्टेट सॉल्यूशन" सम्मेलन के दौरान फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता देने की घोषणा की हैं।

लक्ज़मबर्ग और माल्टा के प्रधानमंत्रियों ने संयुक्त राष्ट्र में आयोजित सम्मेलन में भाग लेते हुए कहा कि फिलिस्तीन को मान्यता देना एक टिकाऊ शांति की दिशा में उठाया गया महत्वपूर्ण कदम है।

लक्ज़मबर्ग के प्रधानमंत्री लुक फ्राइडन ने कहा, दो-राष्ट्र समाधान ही टिकाऊ शांति का एकमात्र रास्ता है, इसी आधार पर हम फिलिस्तीन को मान्यता दे रहे हैं।उन्होंने यह भी कहा कि यह कदम वार्ता के आधार पर दो-राष्ट्र समाधान की उम्मीदों को जीवित रखेगा।

वहीं माल्टा के प्रधानमंत्री रॉबर्ट एबेला ने कहा, हम फिलिस्तीन को मान्यता देते हैं ताकि यह स्पष्ट किया जा सके कि केवल दो-राज्य समाधान ही क्षेत्र में शांति की गारंटी दे सकता है।

उन्होंने आगे कहा कि ग़ाज़ा में भूखमरी, नागरिकों और बुनियादी ढांचे पर हमले और वेस्ट बैंक में ज़ायोनी बस्तियों का हिंसक व्यवहार तुरंत बंद होना चाहिए।