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ईरानी उपग्रह पारस-1 का सफल प्रक्षेपण
ईरान के पारस-1 उपग्रह का सफलता से अंतरिक्ष में प्रक्षेपण किया गया।
रूस के सायोज़ लांचर से ईरान के पारस-1 उपग्रह को सफलतापूर्वक लांच कर दिया गया।
पारस-1 उपग्रह को गुरूवार 29 फरवरी 2024 को सुबह लांच किया गया। ईरान की अंतरिक्ष एजेन्सी के प्रमुख हसन सालारिये का कहना था कि ईरान के भीतर माहदश्त और क़िश्म में दो एसे स्टेशन हैं जो पारस-1 उपग्रह के डेटाज़ को एकत्रित करेंगे।
ख़याम के बाद पारस-1 एसा दूसरा ईरानी उपग्रह है जिसको रूसी प्रक्षेपण केन्द्र से भेजा गया है। पिछले दो वर्षों के दौरान अंतरिक्ष में ईरान की ओर से 12 उपग्रह भेजे जा चुके हैं जिनमें पारस-1 बारहवां उपग्रह है।अन्य उपग्रहों की तुलना में ईरान के पारस-1 उपग्रह में अधिक उन्नत प्रणालियां पाई जाती है जिनको ईरानी विशेषज्ञों ने बनाया है।
इसकी विशेषताओं के बारे में ईरान की अंतरिक्ष एजेन्सी के प्रमुख हसन सालारिये ने बताया कि पारस-1 उपग्रह वास्तव में अनुसंधानिक उपग्रह है जो कई प्रकार के काम करने में सक्षम है।
ईरान में चुनाव, दुश्मनों की नज़र, जनता देगी वोट की चोट
जैसे जैसे पहली मार्च को 12वीं संसद और विशेषज्ञ एसेंबली के 6वें कार्यकाल के चुनाव निकट आ रहे हैं, सबसे बेहतरीन और सबसे योग्य प्रत्याशी को चुनने का मुद्दा, पिछले सभी चुनावों की तरह प्रमुख बिंदुओं में बदल गया है और इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने एक बार फिर विशेष रूप से इस बात ज़ोर दिया है।
इस्लामी गणतंत्र ईरान में पहली मार्च 2024 को, संसद के बारहवें और विशेषज्ञ एसेंबली अर्थात वरिष्ठ नेता का चयन करने वाली समिति के छठे चुनाव का आयोजन किया जाएगा। इसी संदर्भ में शहीदों के परिवारों और पहली बार मतदान करने वालों ने बुधवार को तेहरान में आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई से मुलाक़ात की।
उन्होंने इस मुलाक़ात के दौरान अपने संबोधन में, चुनावों में राष्ट्र की भरपूर भागीदारी को, राष्ट्रीय शक्ति का प्रदर्शन, राष्ट्रीय सुरक्षा की गैरंटी और ईरान के कट्टर दुश्मनों को मायूस करने वाला तत्व बताया।
उन्होंने सबसे उचित और योग्य उम्मीदवार की विशेषताएं बयान करते हुए कहा कि जनता की भरपूर भागीदारी से आयोजित होने वाले चुनाव से मुश्किलों को दूर करने और देश के विकास का रास्ता समतल होता है, इस हिसाब से चुनाव, देश का सिस्टम सही चलाने वाले स्तंभों में से एक है।
मौजूदा संसद का कार्यकाल मई में समाप्त हो रहा है। संसद की 290 सीटों के लिए 15200 उम्मीवारों के नामों को निरीक्षण संस्था की ओर से मंज़ूरी मिली है। यह वर्ष 1979 में इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद से उम्मीवारों की सबसे बड़ी संख्या है।
उम्मीदवारों में 1713 महिलाएं हैं जो वर्ष 2020 के संसदीय चुनाव में भाग लेने वाली 819 महिला उम्मीदवारों की तुलना में दो गुना है।
संसद के चुनाव के साथ ही विशेषज्ञ असेंबली की 88 सीटों के लिए 144 धर्मगुरुओं के बीच मुक़ाबला हो रहा है। यह संस्था देश के सुप्रीम लीडर के कामकाज पर नज़र रखती है और अगला सुप्रीम लीडर चुनने का अधिकार उसे होता है।
ईरान की जनता सांसदों, राष्ट्रपति और शहर और गांव परिषद के सदस्यों और इस्लामी परिषदों के सदस्यों की नियुक्ति करती है, इसीलिए ईरान की राजनीतिक व्यवस्था में लोगों की प्रमुख भूमिका और स्थान है। इस्लामी व्यवस्था ने हमेशा जनता की अधिकतम भागीदारी पर ज़ोर दिया है और यह न केवल व्यवस्था के अधिकार के स्तर को बढ़ाने के लिए है बल्कि ईरानी जनता की मानवीय गरिमा का सम्मान और रक्षा करने के लिए भी है।
दूसरा मुद्दा, ईरान के चुनाव में राजनीतिक प्रतिस्पर्धा से जुड़ा है। ईरान में होने वाले चुनावों में व्यक्तियों और गुटों के बीच प्रतिस्पर्धा ज़बरदस्त तरीक़े से होती है और मतपेटियों में प्रत्याशियों के भाग पड़े होते हैं और देश का चुनाव आयोग पारदर्शिता के साथ मतगणना कराता है और जीतने वाले प्रत्याशियों के नामों का एलान करता है। ईरान में व्यक्तियों और दलों के बीच एक वास्तविक प्रतिस्पर्धा का ख़ूबसूरत दृश्य भी नज़र आता है।
यह ऐसी हालत में है कि दुश्मनों ने ईरान के चुनावों के लिए साज़िशें रच रखी हैं और यहां तक कि उनकी खुफिया एजेंसियों ने भी चुनावों पर पूरी तरह से नजर रख रखी है और मीडिया की ताकत का उपयोग करके इसमें हस्तक्षेप करने की कोशिश कर रहे हैं।
इराक़ और ईरान के संबंध बहुत मज़बूत हैं
इराक़ के राष्ट्रपति का कहना है कि बग़दाद के सभी क्षेत्रों में तेहरान के साथ मजबूत संबंध हैं।
ईरान और इराक़ के बीच विभिन्न राजनीतिक, सुरक्षा, सैन्य, वाणिज्यिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में
रणनीतिक संबंध व्यापक हैं और दोनों ही देशों के शीर्ष नेताओं की इच्छा, सहयोग और द्विपक्षीय बातचीत के स्तर को बढ़ाना है।
इर्ना की रिपोर्ट के अनुसार इराक़ के राष्ट्रपति अब्दुल लतीफ रशीद ने इस बात पर ज़ोर दिया कि बग़दाद के इस्लामिक गणतंत्र ईरान के साथ मजबूत संबंध हैं जिन्हें विशेष रूप से वाणिज्यिक बातचीत के क्षेत्र में देखा जा सकता है।
अब्दुल लतीफ़ रशीद ने अपने पड़ोसी देशों और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ इराक़ के अच्छे संबंधों की ओर इशारा करते हुए कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय में इराक की वापसी के लिए देश में सुरक्षा और स्थिरता स्थापित करने के प्रयास आवश्यक हैं।
इराक़ के राष्ट्रपति ने कहा कि विदेशी हस्तक्षेप का इराक पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है और सरकार, देश में स्थिति को शांत करने और सभी राजनीतिक दलों और सुरक्षा संस्थाओं के साथ एक समझौते पर पहुंचने के लिए प्रतिबद्ध है।
राष्ट्रपति अब्दुल लतीफ रशीद ने अमेरिकी ठिकानों पर इराक़ी प्रतिरोधकर्ता गुटों के हालिया हमलों को ग़ज़्ज़ा की स्थिति से जोड़ा और कहा कि ग़ज़्ज़ा में जो हो रहा है उसके बारे में हमारी स्थिति बिल्कुल स्पष्ट है और हम फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के कानूनी अधिकारों और स्वतंत्र एवं सुरक्षित राज्य की स्थापना का समर्थन करते हैं।
इराक़ के राष्ट्रपति ने इराक़ से विदेशी सेनाओं की वापसी पर सहमति बनने की भी उम्मीद जताई है।
शहीदों के परिवार और पहली बार मतदान करने वाले आज मिले वरिष्ठ नेता से
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता कहते हैं कि ग़ज़्ज़ा में पश्चिम के हाथों जातीय सफ़ाया इतना शर्मनाक हो गया है कि अमरीकी फ़ौजी अफ़सर आत्मदाह कर लेता है।
इस्लामी गणतंत्र ईरान में पहली मार्च 2024 को, संसद के बारहवें और मज्लिसे ख़ुबरगान अर्थात वरिष्ठ नेता का चयन करनेव वाली समिति के छठे चुनाव का आयोजन किया जाएगा।इसी संदर्भ में शहीदों के परिवारों और पहली बार मतदान करने वालों ने आज तेहरान में आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई से मुलाक़ात की।
इस्लामी गणतंत्र ईरान में पहली मार्च 2024 को, संसद के बारहवें और मज्लिसे ख़ुबरगान अर्थात वरिष्ठ नेता का चयन करनेव वाली समिति के छठे चुनाव का आयोजन किया जाएगा। इसी संदर्भ में शहीदों के परिवारों और पहली बार मतदान करने वालों ने आज तेहरान में आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई से मुलाक़ात की।
इस्लामी क्रांति के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने पहली बार वोट डालने वाले हज़ारों नौजवानों और कुछ शहीदों के घरवालों से बुधवार 28 फ़रवरी को तेहरान में इमाम ख़ुमैनी इमामबाड़े में मुलाक़ात की।
उन्होंने इस मुलाक़ात के दौरान अपने संबोधन में, चुनावों में क़ौम की भरपूर भागीदारी को, राष्ट्रीय शक्ति का प्रदर्शन, राष्ट्रीय सुरक्षा की गैरंटी और ईरान के कट्टर दुश्मनों को मायूस करने वाला तत्व बताया। उन्होंने सबसे उचित उम्मीदवार की विशेषताएं बयान करते हुए कहा कि अवाम की भरपूर भागीदारी से आयोजित होने वाले चुनाव से मुश्किलों को दूर करने और देश की तरक़्क़ी का रास्ता समतल होता है। इस हिसाब से चुनाव, देश का सिस्टम सही चलाने वाले स्तंभों में से एक है।
इस्लामी क्रांति के नेता ने क्रांति से पहले ईरान के चुनावों के दिखावे के होने पर आधारित पहलवी शासन के कुछ अधिकारियों के लिखित बयानों की ओर इशारा करते हुए कहा कि जैसा कि उन्होंने इस बात को माना है कि चुनावों से पहले ही शाही दरबार में, यहाँ तक कि कभी-कभी कुछ विदेशी दूतावासों में कामयाब उम्मीदवारों की लिस्ट तैयार कर दी जाती थी और बैलेट बॉक्सों से वही लिस्ट बाहर आती थी।
उन्होंने फ़्रांस और पूर्व सोवियत संघ जैसे बड़ी क्रांतियों के बाद तानाशाही गुटों के शासन की ओर इशारा करते हुए कहा कि स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी ने जनता पर भरपूर भरोसा करके और बैलेट बाक्सों को महत्व देकर क्रांति की सफलता के बाद क़रीब 50 दिनों के भीतर इस बात के लिए रेफ़्रेंडम कराया कि अवाम को किस तरह का शासन चाहिए ताकि राष्ट्र, देश और क्रांति के अस्ली मालिक, सभी मसलों के बारे में फ़ैसला करे।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने उन घटिया दुश्मनों की ओर इशारा करते हुए जो ईरान और शुक्रवार के चुनावों पर नज़रें गड़ाए हुए हैं, कहा कि अमरीका, यूरोप के अधिकतर राजनेता, घटिया ज़ायोनी शासन और बड़े-बड़े पूंजिपतियों और बड़ी-बड़ी कंपनियां, जो विभिन्न कारणों से पूरे ध्यान से ईरान के मसलों पर नज़र रखती हैं, हर चीज़ से ज़्यादा चुनावों में ईरानी जनता की भागीदारी और ईरानी जनता की शक्ति से डरती हैं।
उन्होंने कहा कि दुश्मनों ने देखा कि इसी निर्णायक जनता की ताक़त ने अमरीका और ब्रिटेन द्वारा समर्थित निरंकुश शाही शासन को जड़ से उखाड़ फेंका और थोपे गए युद्ध में सद्दाम को, उसके सभी पूर्वी व पश्चिमी तथा क्षेत्रीय समर्थकों के बावजूद, अपमानित किया और धूल चटा दी। इसी वजह से चुनाव, देश की राष्ट्रीय शक्ति को दुनिया के सामने पेश करने का प्रतीक हैं।
इस्लामी क्रांति के नेता ने चुनावों में जनता भी भरपूर भागीदारी को, राष्ट्रीय शक्ति के प्रदर्शन और राष्ट्रीय शक्ति को राष्ट्रीय सुरक्षा की गैरंटी बताया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के बिना कोई भी चीज़ बाक़ी नहीं रहेगी और अगर दुश्मन ने राष्ट्रीय ताक़त के संबंध में ईरानियों में ज़रा भी कमजोरी देखी तो विभिन्न आयामों से वह राष्ट्रीय सुरक्षा को ख़तरे में डाल देगा।
उन्होंने भरपूर भागीदारी से मज़बूत चुनाव का एक अहम नतीजा, मज़बूत लोगों का चयन और मज़बूत संसद का गठन और इसके नतीजे में मुश्किलों का अंत और मुल्क की तरक़्क़ी को बताया और चुनावों के दूसरे नतीजों की ओर इशारा करते हुए कहा कि चुनावों के दौरान राजनैतिक समझ में तरक़्क़ी और जवानों में समीक्षा करने की क्षमता में वृद्धि, बहुत क़ीमती चीज़ है क्योंकि इससे दुश्मन, उसके तरीक़ों और उसके हथकंडों की पहचान होगी जिसके नतीजे में इन चीज़ों से निपटने की राहों की पहचान होगी और दुश्मनों के षडयंत्रों को विफल बनाया जा सकेगा।
इस्लामी क्रांति के नेता ने अपने संबोधन के आख़िरी हिस्से में एक बार फिर ग़ज़ा के मसले को इस्लामी दुनिया का बुनियादी मसला बताते हुए कहा कि ग़ज़ा के मसले ने इस्लामी दुनिया को पहचनवा दिया और सभी को पता चल गया कि इस्लाम और धर्म का तत्व, मज़बूती, दृढ़ता और ज़ायोनियों की इतनी ज़्यादा बमबारी और जुर्म के मुक़ाबले में घुटने ने टेकने की बुनियाद है।
उन्होंने आगे कहा कि इस मसले ने पश्चिमी संस्कृति और सभ्यता का असली चेहरा भी दुनिया के सामने पेश कर दिया। इससे पता चल गया कि इस कलचर में पले हुए राजनेता, ज़ायोनियों के हाथों फ़िलिस्तीनियों के जातीय सफ़ाए को मानने के लिए भी तैयार नहीं हैं। कुछ ज़बानी बातों के बावजूद वे व्यवहारिक तौर पर यूएन सेक्युरिटी काउंसिल के प्रस्तावों को वीटो करके जुर्म को रुकवाने में रुकावट डाल रहे हैं।
आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने ज़ायोनी शासन के जुर्म का विरोध करते हुए अमरीकी सेना के एक अफ़सर की आत्मदाह की घटना को अमरीका और पश्चिम की भ्रष्ट व अत्याचारी संस्कृति को अमानवीय नीतियों की रुसवाई के चरम की एक निशानी बताया। आपने कहा कि इस व्यक्ति तक नें इस संस्कृति के घिनौने रूप को महसूस कर लिया, जो ख़ुद भी पश्चिमी कलचर में पला था।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने उम्मीद जताई कि अल्लाह, इस्लाम, मुसलमानों, फ़िलिस्तीन और ख़ास तौर पर ग़ज़ा की पूरी तरह मदद करेगा।
अब दूध का दूध और पानी का पानी अलग हो गया है
यमन के अंसारुल्लाह संगठन के नेता ने फ़िलिस्तीन की मज़लूम जनता के समर्थन पर बल देते हुए कहा है कि अधिकांश देश और सरकारें मूकदर्शक बनी हुई हैं और उनमें से कुछ दुश्मनों के साथ मिल गयी हैं और गुप्त रूप से ज़ायोनी दुश्मन का समर्थन कर रही हैं।
अब्दुल मलिक बदरुद्दीन हूसी ने कहा कि जायोनी सरकार के हमलों के कारण फिलिस्तीन के मज़लूम लोगों को बदतरीन कठिनाइयों व समस्याओं का सामना है। उन्होंने कहा कि गज्जा पर इस्राईल के पाश्विक हमलों के पहले दिन ही अमेरिका, ब्रिटेन और अधिकांश बड़े यूरोपीय देशों ने जायोनी दुश्मन का विभिन्न प्रकार से समर्थन किया।
उन्होंने कहा कि जायोनी सरकार के पास बहुत अधिक सैनिक संभावना व हथियार होने के बावजूद अमेरिका और पश्चिम ने विभिन्न प्रकार के हथियारों, पैसों और तकनीक से जायोनी सरकार की मदद की।
उन्होंने कहा कि अमेरिका ने सुरक्षा परिषद में तीसरी बार प्रस्ताव को वीटो करके पारित होने से रोक दिया और जायोनी दुश्मन की मदद की। उन्होंने कहा कि अमेरिका फिलिस्तीनी लोगों की हत्या व नरसंहार पर आग्रह करता है और वह गज्जा में फिलिस्तीन के लोगों के भूखा रहने का समर्थन कर रहा है।
इसी प्रकार उन्होंने कहा कि इस्राईल के अपराधों में अमेरिका उसका अस्ली भागीदार है और जायोनी सरकार के अपराधों में उसका समर्थन ब्रिटेन से वाशिंग्टन को विरासत में मिली है, वाशिंग्टन कमज़ोरों के समर्थन में सुरक्षा परिषद और राष्ट्रसंघ की भूमिका में रुकावट व बाधा बन रहा है।
यमन के अंसारुल्लाह संगठन के नेता ने कहा कि फिलिस्तीन के मज़लूम लोगों के प्रति मुसलमानों का समर्थन कहां है? फिलिस्तीनी लोग समर्थन व मदद के पात्र हैं और कुछ सरकारों की चुप्पी, अपराधों को अंजाम देने में जायोनी सरकार के दुस्साहस का कारण बनी है। उन्होंने कहा कि गज्जा पट्टी की स्थिति जितनी बदतर हो रही है मुसलमानों की ज़िम्मेदारी उतनी अधिक हो रही है, क्या मुसलमान सहायता करने के लिए गज्जा वासियों के पूर्णरूप से खत्म हो जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं?
इसी प्रकार अब्दुल मलिक अलहूसी ने कहा कि गज्जा में भूख के कारण मरने वाले लोगों की संख्या में वृद्धि हो रही है और बहुत से मरने वाले बच्चे और बड़ी उम्र के लोग हैं यहां तक कि जानवरों का चारा भी खत्म हो रहा है। गज्जा में लाखों फिलिस्तीनी भूखे हैं और इस्लामी देशों व राष्ट्रों से वे मदद चाह रहे हैं।
इसी प्रकार उन्होंने कहा कि जायोनी सरकार ने कुछ फिलिस्तीनी बंदियों की हत्या कर दी जिनमें महिलायें और बच्चे शामिल हैं। इसी प्रकार उन्होंने कहा कि पश्चिम, महिलाओं के अधिकारों के समर्थन का दम भरता है जब इस्राईल फिलिस्तीनी महिलाओं और बच्चों की हत्या करता है तो महिलाओं के समर्थन का उनका नारा कहां चला जाता है?
इस समय पश्चिम से महिलाओं के समर्थन में कोई आवाज़ सुनाई नहीं दे रही है। उन्होंने कहा कि पश्चिम, गैर अखलाक़ी, अनैतिक या समाजों को तबाह करने वाली बातों में महिलाओं के समर्थन में नारा लगाता है।
बहरहाल अमेरिका, पश्चिम और यूरोपीय देश मानवाधिकार, बाल अधिकार और महिला अधिकार के दावे में कितने सच्चे हैं यह सब फिलिस्तीन के मज़लूम लोगों के संबंध में उनके क्रिया कलापों से पूरी तरह पूरी दुनिया के लिए स्पष्ट हो गया है और उनके चेहरों पर मानवताप्रेम नाम का जो मुखौटा था वह भी पूरी तरह जगज़ाहिर हो गया है।
तरबियत ज़ुबान से नहीं अमल से होनी चाहिए
बेटी अपनी मां को देखती है और उनसे ज़िंदगी के आदाब, शौहर से पेश आने के तरीक़े घर गृहस्थी संभालना और बच्चों की परवरिश का तरीक़ा सीखती है और अपने बाप को देख कर मर्दों के रवैये को पहचानती है, बेटा अपने बाप से ज़िंदगी के उसूलों और तौर तरीक़ों को सीखता है, वह अपने बाप से बीवी और बच्चों से सुलूक करने को सीखता है, और अपनी मां के तौर तरीक़ों से औरत को पहचानता है और अपनी आने वाली ज़िंदगी के लिए उसी को देख कर प्लान बनाता हैं।
बहुत से मां बाप ऐसे होते हैं जो तरबियत के लिए नसीहत और ज़ुबान से यह करो यह न करो कहने को काफ़ी समझते हैं, वह यह सोंचते हैं कि वह बच्चे को ज़ुबानी समझा बुझा रहे होते हैं तो वह तरबियत कर रहे होते हैं और ज़िंदगी में बाक़ी तरीक़ों पर ध्यान नहीं देते हैं,
यही वजह है कि ऐसे मां बाप अपने छोटे और कम उम्र बच्चों को तरबियत के क़ाबिल नहीं समझते और कहते हैं कि अभी बच्चा है कुछ नहीं समझेगा, जब बच्चा समझने के क़ाबिल हो जाता है तब तरबियत की शुरूआत करते हैं,
जब वह अच्छा बुरा समझने लगे तब उसकी तरबियत शुरू करते हैं, जबकि यह सोंच बिल्कुल ग़लत है, बच्चा अपनी पैदाइश के दिन से ही तरबियत के क़ाबिल होता है, वह पल पल तरबियत पाता है और एक विशेष मिज़ाज में ढ़लता चला जाता है चाहे मां बाप का ध्यान उस तरफ़ हो या न हो,
बच्चा तरबियत पाने के लिए इस बात का इंतेज़ार नहीं करता कि मां बाप उसे किसी काम का हुक्म दें या किसी चीज़ से रोकें, बच्चे का सेंसटिव और हस्सास दिमाग़ पहले ही दिन से एक कैमरे की तरह सारी चीज़ों की फ़िल्म बनाने लगते हैं और उसी के मुताबिक़ उसकी परवरिश होती है और वह तरबियत पाता है।
5 या 6 साल का बच्चा परवरिश पा चुका होता है और जो कुछ उसे बनना होता है बन चुका होता है, अच्छाई या बुराई का आदी बन चुका होता है इसलिए बाद की तरबियत बहुत मुश्किल होती है और उसका असर भी कम होता है,
बच्चा तो अपने मां बाप, अपने आस पास के लोग, उनके कामों उनकी बातचीत उनके रवैये उनके अख़लाक़ और अपने आस पास के माहौल का निरीक्षण (observe) करता है और उसकी तक़लीद करता है, वह मां बाप को सम्मान की निगाह से देखता है और उनके ज़िंदगी के तौर तरीक़े और कामों को अच्छाई और बुराई का मेयार क़रार देता है
और फिर उसी के मुताबिक़ अमल अंजाम देता है, बच्चे का वुजूद तो किसी सांचे में नहीं ढ़ला होता वह मां बाप को एक आइडियल समझ कर उनके मुताबिक़ अपने आप को ढ़ालता है, वह किरदार को देखता है बातों और नसीहतों पर ध्यान नहीं देता, अगर उसका किरदार उसका रवैया उसकी बातों के मुताबिक़ न हो तो वह किरदार को अपनाता है।
बेटी अपनी मां को देखती है और उनसे ज़िंदगी के आदाब, शौहर से पेश आने के तरीक़े, घर गृहस्थी संभालना और बच्चों की परवरिश का तरीक़ा सीखती है और अपने बाप को देख कर मर्दों के रवैये को पहचानती है, बेटा अपने बाप से ज़िंदगी के उसूलों और तौर तरीक़ों को सीखता है, वह अपने बाप से बीवी और बच्चों से सुलूक करने को सीखता है, और अपनी मां के तौर तरीक़ों से औरत को पहचानता है, और अपनी आने वाली ज़िंदगी के लिए उसी को देख कर प्लान बनाता है।
इसलिए ज़िम्मेदार और जानकार लोगों के लिए ज़रूरी है कि शुरू में अपने अंदर सुधार पैदा करें, अगर उनके आमाल, किरदार और अख़लाक़ में कमियां हैं तो उसको सुधारें, अच्छे सिफ़ात और नेक आदतें इख़्तेयार करें और किरदार को सजाएं, संक्षेप में बस इतना समझ लें कि अपने आप को एक अच्छा और मुकम्मल इंसान बनाएं उसके बाद बच्चों की पैदाइश और उनकी तरबियत की राह में क़दम आगे बढ़ाएं, इसलिए मां बाप को पहले यह सोचना चाहिए कि वह किस तरह का बच्चा समाज के हवाले करना चाहते हैं, अगर उन्हें यह पसंद है कि उनका बच्चा नेक अख़लाक़ वाला, इंसानियत से प्रेम करने वाला, दीनदार, शरीफ़, बहादुर, ज़िम्मेदार, मेहेरबान हो तो ख़ुद उन्हें भी ऐसा ही होना चाहिए ताकि वह बच्चे के लिए आइडियल क़रार पाएं, जिस मां की तमन्ना हो कि उसकी बेटी ज़िम्मेदार, मेहेरबान, समझदार, शौहर से वफ़ादारी करने वाली, तहज़ीब वाली, हर तरह के हालात में गुज़र बसर करने वाली, और मुनज़्ज़म हो तो उसे पहले ख़ुद इन सिफ़ात को अपने अंदर लाना होगा, अगर मां बुरे अख़लाक़, बे अदब, सुस्त, ग़ैर मुनज़्ज़म, दूसरों से ज़्यादा तवक़्क़ो रखने वाली, बहाना बनाने वाली तो वह केवल नसीहत करने से अच्छी बेटी तरबियत नहीं कर सकती।
डॉ. जलाली लिखते हैं कि बच्चों को भावनाओं और जज़्बात के हिसाब से वही लोग तरबियत कर सकते हैं जिन्होंने अपने बचपन और नौजवानी और जवानी में सही तरबियत पाई हो, जो मां बाप आपस में नाराज़ रहते हों और छोटी छोटी बातों पर झगड़ा करते हों या जिन लोगों तरबियत को शरई ज़िम्मेदारी नहीं बल्कि एक फ़ॉरमेल्टी समझ के अंजाम देते हों और बच्चों को नफ़रत की निगाह से देखते हों, या जो लोग तरबियत करने का हौसला न रखते हों, या जिनको ख़ुद पर अपने बच्चों की सही तरबियत करने का भरोसा ही न हो तो ऐसे वालेदैन अपने बच्चों की भावनाओं, जज़्बात और एहसास को सही रास्ते पर नहीं लगा सकते हैं।
इसके बाद डॉ. जलाली लिखते हैं कि बच्चे की तरबियत जिस किसी के भी ज़िम्मे हो उसे चाहिए कि कभी कभी अपने किरदार और अपने सिफ़ात पर भी निगाह डाले और अपनी ज़िम्मेदारियों के बारे में सोचे और कमियों को दूर करे।
इमाम अली अ.स. फ़रमाते हैं कि जो शख़्स किसी का लीडर और पेशवा बनना चाहता है उसे चाहिए कि पहले वह अपने अंदर सुधार लाए फिर दूसरों को सुधारे, और दूसरों को ज़ुबान से अदब और अख़लाक़ सिखाने से पहले अपने किरदार से अदब सिखाए, और जो इंसान ख़ुद को तालीम और अदब सिखाता है वह उस इंसान से ज़्यादा इज़्ज़त और सम्मान का हक़दार है जो दूसरों को अदब सिखाता है। (नहजुल बलाग़ा, कलेमाते क़ेसार, 73)
एक दूसरे मौक़े पर इमाम अली अ.स. फ़रमाते हैं कि तुम अपने बुज़ुर्गों का सम्मान करो ताकि तुम्हारे बच्चे तुम्हारा सम्मान करें। (ग़ोररुल हेकम, पेज 78)
पैग़म्बर स.अ. अबूज़र से फ़रमाते हैं, जब कोई शख़्स ख़ुद नेक होता है तो अल्लाह उसके नेक हो जाने से उसकी औलाद और उसकी औलाद की औलाद को भी नेक बना देता है। (मकारिमुल अख़लाक़, पेज 546)
इमाम अली अ.स. फ़रमाते हैं कि, अगर दूसरों को सुधारना और सही तरबियत करना चाहते हो तो इस सिलसिले की शुरुआत अपनी ज़ात में सुधार पैदा कर के करो, और अगर दूसरों को सुधारना चाहा और अपने को और अपने आप को बुरा ही रहने दिया तो यह सबसे बड़ा ऐब और सबसे बड़ी ग़लती होगी। (ग़ोररुल हेकम, पेज 278)
इसी तरह इमाम अली अ.स. की एक और हदीस इस विषय पर इस तरह रौशनी डालती है कि जिस नसीहत के लिए ज़ुबान ख़ामोश हो और किरदार बोल रहा हो तो उसे कोई कान बाहर नहीं निकाल सकता और इसके बराबर किसी नसीहत का कोई फ़ायदा नहीं हो सकता। (ग़ोररुल हेकम, पेज 232)
क़ुरआन की तिलावत की फ़ज़ीलत और उसका सवाब
क़ुरआन की तिलावत की फ़ज़ीलत और उसका सवाब
क़ुरआन अल्लाह की तरफ़ से अपने बंदों के लिए एक अहद और मीसाक़ है मुसलमान को चाहिए कि वह अपना अहद नामा ध्यान से पढ़े और रोज़ाना पचास आयतों की तिलावत करे।उसके बाद आपने फ़रमाया क़ुरआन की तिलावत ज़रूर किया करो इसलिए कि क़ुरआन की आयतों के मुताबिक़ जन्नत के दर्जे होंगे जब क़यामत का दिन होगा तो क़ुरआन पढ़ने वाले से कहा जाएगा क़ुरआन पढ़ते जाओ और अपने दरजात बुलंद करते जाओ फिर वह जैसे जैसे आयतों की तिलावत करेगा उसके दरजात बुलंद होते चले जाएंगे।
,क़ुरआन वह आसमानी क़ानून और इलाही नामूस है जो लोगों की दुनिया और आख़ेरत की ज़मानत देता है, क़ुरआन की हर आयत हिदायत का स्रोत, रहमत और रहनुमाई की खान है।
जो भी हमेशा बाक़ी रहने वाली सआदत और दीन व दुनिया की कामयाबी का उम्मीदवार है उसे दिन रात क़ुरआन से अहद और पैमान बांधना चाहिए, उसकी आयतों को अपने दिमाग़ में जगह दे, और उन्हें अपनी फ़िक्र और आदत में शामिल करे ताकि हमेशा की कामयाबी और कभी ख़त्म न होने वाले व्यापार की तरफ़ क़दम बढ़ा सके।
क़ुरआन की फ़ज़ीलत में मासूमीन अ.स. और उनके अजदाद से बहुत सी हदीसें नक़्ल हुई हैं, जैसाकि इमाम मोहम्मद बाक़िर अ.स. फ़रमाते हैं कि पैग़म्बर स.अ. ने फ़रमाया: जो शख़्स रात में दस आयतों की तिलावत करे उसका नाम ग़ाफ़ेलीन (जो अल्लाह की याद से दूर रहते हैं) में नहीं लिखा जाएगा, और जो शख़्स पचास आयतों की तिलावत करे उसका नाम ज़ाकिरीन (जो अल्लाह को याद करते हैं) में लिखा जाएगा, और जो शख़्स सौ आयतों की तिलावत करे
क़ानेतीन (इबादत गुज़ारों) में लिखा जाएगा और जो शख़्स दो सौ आयतों की तिलावत करे उसका नाम ख़ाशेईन (जो अल्लाह के सामने विनम्र हैं) में लिखा जाएगा और जो शख़्स तीन सौ आयतों की तिलावत करे उसका नाम सआदत मंदों में लिखा जाएगा,
जो शख़्स पांच सौ आयतों की तिलावत करे उसका नाम इबादत और अल्लाह की परस्तिश की कोशिश करने वालों में लिखा जाएगा और जो शख़्स हज़ार आयतों की तिलावत करे वह ऐसा है जैसे उसने अल्लाह की राह में बहुत ज़्यादा सोना दिया हो।इमाम जाफ़र सादिक़ अ.स. फ़रमाते हैं: क़ुरआन अल्लाह की तरफ़ से अपने बंदों के लिए एक अहद और मीसाक़ है, मुसलमान को चाहिए कि वह अपना अहद नामा ध्यान से पढ़े और रोज़ाना पचास आयतों की तिलावत करे।
उसके बाद आपने फ़रमाया: क़ुरआन की तिलावत ज़रूर किया करो (इसलिए कि) क़ुरआन की आयतों के मुताबिक़ जन्नत के दर्जे होंगे, जब क़यामत का दिन होगा तो क़ुरआन पढ़ने वाले से कहा जाएगा क़ुरआन पढ़ते जाओ और अपने दरजात बुलंद करते जाओ, फिर वह जैसे जैसे आयतों की तिलावत करेगा उसके दरजात बुलंद होते चले जाएंगे।
हदीस की किताबों में उलमा ने इस मज़मून की बहुत सी रिवायतों को एक जगह जमा कर दिया ताकि जिन्हें शौक़ है वह इन्हें पढ़ सकें।
इन्हीं रिवायतों में क़ुरआन में देख कर तिलावत करना ज़ुबानी तिलावत से कहीं बेहतर है जैसाकि हदीस में इमाम सादिक़ अ.स. ने फ़रमाया: जब इसहाक़ इब्ने अम्मार ने पूछा कि मेरी जान आप पर क़ुर्बान हो मैंने क़ुरआन हिफ़्ज़ कर लिया है और ज़ुबानी ही उसकी तिलावत करता हूं, मौला आप बताइए क्या इसी तरह बेहतर है या फिर देख कर तिलावत करूं?
आपने फ़रमाया: क़ुरआन देख कर तिलावत किया करो यह बेहतर तरीक़ा है, क्या तुम्हें नहीं मालूम कि क़ुरआन में देखना भी इबादत है, जो शख़्स क़ुरआन देख कर तिलावत करे उसकी आंखों की रौशनी में इज़ाफ़ा होता है और उसके वालेदैन के अज़ाब में कमी कर दी जाती है।
इसी तरह जिन घरों में क़ुरआन की तिलावत होती है उसके असर का भी ज़िक्र रिवायतों में मौजूद हैं:
वह घर जिसमें क़ुरआन की तिलावत की जाती हो और अल्लाह का ज़िक्र किया जाता हो उसकी बरकतों में इज़ाफ़ा होता है उसमें फ़रिश्तों का नुज़ूल होता है, शैतान उस घर को छोड़ देते हैं,
और यह घर आसमान वालों को रौशन देते हैं बिल्कुल उसी तरह जिस तरह आसमान के सितारे ज़मीन वालों को रौशनी देते हैं, और वह घर जिसमें क़ुरआन की तिलावत नहीं होती और अल्लाह का ज़िक्र नहीं होता उसमें बरकत कम होती है, फ़रिश्ते ऐसे घरों को छोड़ देते हैं और शैतान बस जाते हैं।
चुनावी सुरक्षा, ईरान की महत्वपूर्ण राजनीतिक उपलब्धि
पिछले 45 वर्षों में इस्लामी गणतंत्र ईरान की सबसे महत्वपूर्ण सफलताओं और उपलब्धियों में से एक पूरी तरह से सुरक्षित वातावरण में 39 चुनावों का आयोजन रहा है।
इस्लामी काउंसिल या संसद के 12वें सत्र और नेतृत्व विशेषज्ञों की सभा के छठे सत्र के चुनाव शुक्रवार पहली मार्च को आयोजित होंगे। चुनाव से संबंधित सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक उन्हें सुरक्षित और तनाव मुक्त वातावरण में आयोजित कराना है।
इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने शुक्रवार के चुनावों के संबंध में चार रणनीतियां निर्धारित की हैं। जिनमें मज़बूत भागीदारी, वास्तविक प्रतिस्पर्धा, वास्तविक सुरक्षित चुनाव और पूर्ण सुरक्षा शामिल है। इस संबंध में, गृह मंत्रालय के उप सुरक्षा अधिकारी और देश के चुनाव सुरक्षा मुख्यालय के प्रमुख सैय्यद मजीद मीर अहमदी ने घोषणा की है कि ढाई लाख से अधिक सुरक्षा बल, चुनाव के दौरान सुरक्षा व्यवस्था की स्थिति को संभालने के लिए तैनात किए जा रहे हैं।
ईरान में चुनावों की सुरक्षा पर प्रकाश डालने का एक कारण ईरान की जनसांख्यिकीय संरचना है। ईरान जातीय और जनजातीय विविधता वाला देश है और चुनावों और लोकप्रिय भागीदारी में जातीय और जनजातीय पहलू प्रमुख हैं।
हालांकि, ईरान के पिछले 39 चुनावों में थोड़ी सी भी असुरक्षा दिखाई नहीं दी है, इसीलिए सुरक्षित माहौल में चुनाव कराना इस्लामी गणतंत्र ईरान की ठोस उपलब्धियों में से एक है।
इस संबंध में, एक चुनाव आयोजन के बाद, इस्लामी क्रांति के नेता अयातुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने कहा था कि हमें वास्तव में ईश्वर का अदा करना चाहिए, क्योंकि सुरक्षा और शांति के माहौल में चुनावों का आयोजन एक बड़ी उपलब्धि है। यहां तक कि जहां परस्पर विरोधी उद्देश्य हों; राजनीतिक मतभेद हों, दो शहरों के बीच अंतर हो, उम्मीदवारों के बीच प्रतिस्पर्धा हो; वहां कहीं कोई कटु घटना नहीं घटी है।
इस्लामी क्रांति के नेता हमेशा पूर्ण सुरक्षा में चुनाव कराने पर ज़ोर देते हैं, इसका एक महत्वपूर्ण कारण चुनाव के लिए उनके इच्छित कार्य से संबंधित है। उनका मानना है कि ईरान में चुनाव से एकता आनी चाहिए। इस संबंध में, उन्होंने कहा था कि राजनीतिक मतभेदों से दुश्मनों के ख़िलाफ़ ईरानी राष्ट्र की राष्ट्रीय एकता पर असर नहीं पड़ना चाहिए।
यह महत्वपूर्ण और ठोस उपलब्धि ऐसी स्थिति में हासिल की गई है, जहां इस्लामी गणतंत्र ईरान के दुश्मनों ने एक तरफ़ चुनाव को नकारात्मक रूप से प्रभावित करने और उस पर सवाल उठाने के लिए कोई भी कसर नहीं छोड़ी है और भ्रम और असुरक्षा का माहौल पैदा करने का प्रयास किया है।
इस्लामी गणतंत्र ईरान की ख़ुफ़िया एजेंसियों के आंकड़ों के अनुसार, पिछले सितंबर से दुश्मन अराजकता और असुरक्षा पैदा करके ऐसे हालात पैदा करने की कोशिश कर रहे थे, जिससे पहली मार्च को चुनावों के आयोजन में बाधा उत्पन्न हो सके।
ग़ज़्ज़ा की स्थति, चीख़-चीख़ कर मानवाधिकारों के दावेदारों की वास्तविकता बता रही हैःकनआनी
कुछ पश्चिमी सरकारें अब भी मानवाधिकारों को एक हथकण्डे के रूप में प्रयोग कर रही हैं।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने जर्मनी द्वारा इस्लामी गणतंत्र ईरान पर आरोप लगाने को इस देश की ओर से ज़ायोनियों के समर्थन पर पर्दा डालने के अर्थ में बताया है।
नासरि कनआनी ने कहा कि यह कैसी विडंबना है कि कुछ पश्चिमी सरकारें, मानवाधिकारों का हनन करने वालों का खुला समर्थन करने के बावजूद, मानवाधिकारों के रक्षक बनने का दावा करती हैं।
उनका कहना था कि जर्मनी की सरकार, मानवाधिकारों के समर्थन का दावा करने के बावजूद अवैध ज़ायोनी शासन का समर्थन करती है और उसके द्वारा फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध की जा रहीं मानवता विरोधी कार्यवाहियों को अनदेखा कर रही है। वह मानवाधिकारों को हथकण्डे के रूप में प्रयोग करती है। वह मानवाधिकारों को दूसरे देशों में हस्तक्षेप करने के लिए प्रयोग करती है।
ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि मैं जर्मनी को सलाह देता हूं कि वह मानवाधिकारों को राजनीतिक खिलवाड़ न बनाएं। उन्होंने कहा कि पूरे ग़ज़्ज़ा की अत्यधिक चिंताजनक स्थति, चीख़-चीख़ कर मानवाधिकारों के दावेदारों की वास्तविकता को बता रही है।
अगर वास्तव में जर्मनी और उसके घटक, मानवाधिकारों की रक्षा का दम भरते हैं तो उनको चाहिए कि वे ग़ज़़्ज़ा में ज़ायोनियों द्वारा किये जा रहे अत्याचारों की जांच करने के लिए एक विशेष तथ्यपरक समिति का गठन करे।
ग़ज़्ज़ा के समर्थन में दुनियाभर में प्रदर्शन
फ़िलिस्तीन की मज़लूम जनता के समर्थन में एक बार फिर दुनिया के अलग-अलग देशों में प्रदर्शन हुए हैं।
फ़िलिस्तीनी जनता के समर्थन में प्रदर्शन जारी रखते हुए, स्पेन, ब्रिटेन, स्वीडन, हॉलैंड और अमेरिकी शहरों सांटा मोनिका और हंट्सविले में भी जनता ज़ायोनियों के नरसंहार और क्रूरता का विरोध करते हुए सड़कों पर उतरे।
फ़िलिस्तीन समर्थक प्रदर्शनकारियों ने ज़ायोनी विरोधी नारे लगाए और ग़ज़्ज़ा पर हमलों को तत्काल रोकने और स्थायी युद्धविराम के साथ-साथ ज़ायोनी शासन को अमेरिकी सहायता को बंद करने की भी मांग की।
इन अपराधों पर दुनियाभर में कड़ी प्रतिक्रियाएं व्यक्त की जा रही हैं और दुनिया के सभी देशों के लोगों, विभिन्न सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने उत्पीड़ित फ़िलिस्तीनी लोगों का समर्थन करने की अपील की है।