
رضوی
पैग़म्बरे इस्लाम, धरती का सबसे प्राणदायक बसंत
27 रजब की तारीख़ सृष्टि के पटल पर ईश्वर की महाशक्ति के जगमगा उठने का दिन है।
इस दिन पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी की घोषणा की गई। यह वह दिन है जब पैग़म्बरी की कली फूल बन गई और अध्यात्म के उपवन महक उठे। इसी दिन पैग़म्बरे इस्लाम का हृदय और मस्तिष्क ईश्वर के धर्म इस्लाम के नियमों का दर्पण बन गया। क़ुरआने मजीद इस घटना को पूरी मानवता पर ईश्वर के उपकार की संज्ञा देता है। क़ुरआन के सूरए आले इमरान की आयत संख्या 164 कहती है कि ईमान वालों पर ईश्वर ने उस समय उपकार किया जब उनके बीच से पैग़म्बर का चयन किया जो निशानियों का उच्चारण करे और उन्हें हर प्रकार की त्रुटि और प्रदूषण से पवित्र बनाए और उन्हें किताब तथा अंतरज्ञान की शिक्षा दी। हालांकि वह लोग इससे पहले तक भ्रांति में थे। हम ईश्वर के इस महा उपकार पर उसका आभार व्यक्त करते हैं और ज्ञान व ज्योति के वातावरण में इंसान के प्रवेश के इस दिन के प्रति अपनी श्रद्धा जताते हैं।
जिस समय पैग़म्बरे इस्लाम की आयु 40 साल हो गई ईश्वर ने उनके हृदय को सबसे अच्छा, सबसे बड़ा आज्ञापालक और विनम्र हृदय देखा तो उन्हें मानवता के मार्गदर्शन के लिए चुन लिया। इस अवसर पर ईश्वरीय कृपा उतरी। पैग़म्बरे इस्लाम ने दिव्य ज्योति में डूबे हुए ईश्वर के फ़रिश्ते जिबरईल को देखा कि वह विशालकाय आकाश से ज़मीन पर उतरे। जिबरईल नीचे उतरे और उन्होंने हज़रत मुहम्मद के कंधों को पकड़ा और दबाते हुए कहा कि हे मुहम्मद! पढ़ो! हज़रत मुहम्मद ने पूछा कि क्या पढूं? जिबरईल ने कहा पढ़ो अपने पालनहार के नाम से जिसने पैदा किया। जिबरईल को ईश्वर से जो संदेश मिला था वह उन्होंने हज़रत मुहम्मद को पहुंचा दिया और आसमान की ओर लौट गए। पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम इस घटना को विस्तार से बताते हुए कहते हैं कि हज़रत मुहम्मद हिरा नामक गुफा से नीचे आए तो ईश्वर का वैभव देखकर उनकी यह हालत थी कि अपने ऊपर क़ाबू नहीं था। जिबरईल और ईश्वरीय वैभव को देखना इतनी बड़ी घटना थी कि वह इस तरह कांप रहे थे जैसे तेज़ बुख़ार में इंसान का शरीर कांपने लगता है। हज़रत मुहम्मद को यह आशंका थी कि उन्हें झुठलाया जाएगा या उन्हें पागल कह दिया जाएगा हालांकि उनके बड़ा विवेकपूर्ण इंसान कोई नहीं था। इस स्थिति में ईश्वर ने उनसे सीने को चौड़ा और को शांत कर दिया। यही कारण था कि जब वह नीचे आ रहे थे तो रास्ते के सारे पत्थर और कंकरियां उन्हें सलाम कर रही थीं। वह सब कह रही थीं सलाम हो आप पर हे ईश्वर के रसूल। मुबारक हो कि ईश्वर ने आपको महानता और आकर्षण दिया और पिछले तथा अगले सभी इंसानों से आपको श्रेष्ठ बनाया।
इस्लाम के इतिहास का बहुत महान अध्याय जिसने इंसानों की क़िसमत संवारने में निर्णायक भूमिका निभाई हज़रत मुहम्मद की पैग़म्बरी की घोषणा थी। इस घटना में यह हुआ कि ईश्वर ने अपनी ओर से इंसानों के मार्गदर्शन के लिए अपने विशेष दूत को भेजा। पैग़म्बर इस्लाम की पैग़म्बरी को किसी जाति या क़बीले तक सीमित नहीं किया जा सकता। इसलिए कि वह समूची मानवता के लिए और सभी युगों के लिए पैग़म्बर बनाए गए। अपने पैग़म्बरे को भेज कर ईश्वर ने अपनी कृपा से पूरी मानवता को जाग जाने का संदेश दिया। ईश्वर का यह संदेश जिबरईल के मुबारक परों पर नीचे आया और पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र गले व ज़बान के माध्यम से पूरी धरती पर फैल गया।
जिस समय हज़रत मुहम्मद को पैगम़्बर बनाया गया उस समय दुनिया पतन और संकट का शिकार थी। अज्ञानता, लूट खसोट, अत्याचार, भ्रष्टाचार, निरंकुशता, भेदभाव, मानवता और नैतिकता से दूरी पूरे मानव समाज में फैली हुई थी। इन हालात में अरब प्रायद्वीप विशेष रूप से हेजाज़ की धरती पर सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से हालात और भी दयनीय थे। वहां महिलाओं को कोई अधिकार नहीं था बल्कि महिलाएं तो सामान की तरह ख़रीदी और बेची जाती थीं। लड़कियों को ज़िंदा दफ़ना दिया जाता था। सूरए नह्ल की आयत संख्या 58 और 59 में कहा गया है कि वह हालत थी कि जब किसी को बताया जाता था कि उसके यहां बेटी का जन्म हुआ है तो पीड़ा से उसका चेहरा काला हो जाता था और वह आक्रोश में आ जाता था। यह बुरी सूचना पाकर वह अपनी जाति और क़बीले के लोगों से छिपने लगता था। उसकी समझ में नहीं आता थ कि इस शर्मिंदगी को इसी तरह सहन करे या मिट्टी में दफ़ना दे। वह लोग कितना बुरा सोचते थे।
क़ुरआने मजीद ने कई आयतों में पैग़म्बर इस्लाम को भेजे जाने का उद्देश्य बयान किया है। सबसे मूल उद्देश्य एकेश्वरवाद की दावत देना और अनेकेश्वरवाद को ख़ारिज करना था। क़ुरआन कहता है कि हमने हर जाति में रसूल भेजा है कि केवल अनन्य ईश्वर की उपासना करो और दुष्ट ताक़तों से परहेज़ करो। वास्तव में पैग़म्बरों का सबसे महत्वपूर्ण काम अज्ञानता के मापदंडों और झूठे व ग़लत मानकों को ख़त्म करके उनके स्थान पर ईश्वरीय मानकों और मूल्यों को स्थापित करना था। पैग़म्बरों को भेजने का एक और महत्वपूर्ण लक्ष्य समाज में न्याय की स्थापना करना था। पैग़म्बरों को इसलिए भेजा गया कि वह ईश्वरीय नियमों को लागू करें, न्याय के प्यासों की प्यास बुझाएं और इंसानी ज़िदंगी को ईश्वरीय रंग में रंग दें। क़ुरआने मजीद के सूरए हदीद की आयत संख्या 25 में कहा गया है कि हमने अपने रूसलों को खुली हुई निशनियों के साथ भेजा और उनके साथ आसमानी किताब तथा सत्य व असत्य का अंतर करने वाली तुला भेजी ताकि लोग न्याय की स्थापना कर सकें।
पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा कि उन्हें भेजने का प्रमुख उद्देश्य विवेक को परिपूर्ण बनाना था। क्योंकि समाज में एकेश्वरवाद की स्थापना विवेक का स्तर ऊंचा करने से ही संभव है। जो इंसान अपने भीतर छिपे हुए रत्न को नहीं पहचानता वही पत्थर या मिट्टी के सामने सिर झुकाता है लेकिन जो इंसान महान हैं और बुद्धि से काम लेते हैं वह इन तमाम चीज़ों के रचयिता की उपासना और उसका आभार व्यक्त करते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने एक कथन में कहा कि ईश्वर ने किसी भी पैग़म्बरे या रसूल को केवल इसलिए ही भेजा कि विवेक को सपूर्ण बनाए। अक़्ल को संपूर्णता के चरण पर पहुंचाए। इसलिए यह ज़रूरी है कि उसका विवेक और उसकी अक़्ल समाज के अन्य लोगों से अधिक हो।
इस तरह देखा जाए तो पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी की घोषणा महान एकजुट इस्लामी समाज की स्थापना की शुरूआत साबित हुई। वास्तव में इस घटना ने समाजों में एसा बदलाव शुरू किया जो असंभव प्रतीत होता था और यह साबित कर दिया कि उस समाज को भी महानता और ईश्वरीय मूल्यों की ऊंचाई पर ले जाया जा सकता है जो नैतिकता और विवेक से बिल्कुल दूर हो। पैग़म्बरे इस्लाम की 23 साल की मेहनत और संघर्ष का यह नतीजा मिला कि देखते ही देखते मुसलमान वैभव और गरिमा के शिखर पर पहुंच गए और उन्होंने दुनिया में वैभवशाली सभ्यता की नींव रखी। ईश्वर के अंतिम दूत की हैसियत से पैग़म्बरे इस्लाम अपने साथ मानवता के लिए सबसे संपूर्ण और समावेशी सौभाग्य पथ लेकर आए। अतः जो शिक्षाएं पैग़म्बरे इस्लाम से मिली हैं इंसान को चाहिए कि उसे प्राणदायक निर्मल जल की तरह पीते रहें ताकि मानव समाज से बुराइयां और त्रुटियां दूर होती जाएं और सबको एक आकर्षक समाज देखने का मौक़ा मिले।
पैग़म्बरे इस्लाम ने इस्लाम के संदेश वाहक की हैसियत से बहुत कम समय में उस रूढ़िवादी और हिसंक समाज को पूरी तरह बदल दिया। 13 साल के बाद ज्ञान, न्याय, एकेश्वरवाद, अध्यात्म और नैतिकता के आधारों पर एक शासन की स्थापना कर दी।
जैसे ही इस्लामी शासन की स्थापना के लिए हालात अनुकूल हुए पैग़म्बरे इस्लाम ने मक्के से मदीने की ओर पलायन किया और सबसे पहला काम यह किया कि मुसलमानों के बीच बंधुत्व के रिश्ते को मज़बूत करते हुए पुरानी दुशमनी, भेदभाव और बिखराव को ख़त्म कर दिया। उन्हें ज्ञान से सुसज्जित किया। पैग़म्बरे इस्लाम ने दुनिया के सामने वह धर्म पेश किया जो हर दौर में मानवता के सौभाग्य और अच्छे अंजाम को सुनिश्चित करने वाला है। उन्होंने ईश्वर की उपासना की मानवीय प्रवृत्ति को संचालित किया और इंसानों को झूठे ख़ुदाओं के सामने सिर झुकाने से रोका। पैग़म्बरे इस्लाम ने मानव समाज के भीतर मूल्यों और मापदंडों के स्तर पर क्रान्ति पैदा कर दी तथा दुनिया वालों को ईश्वर की श्रद्धा, मानवता, प्रेम और इंसाफ़ के प्रकाश से परिचित कराया।
मशहूर लेखक वेल डोरेंट लिखते हैं कि यदि लोगों पर इस महान हस्ती के प्रभाव के स्तर को हम नापें तो यह कहना पड़ेगा कि मानव इतिहास के सबसे महान पुरुष पैग़म्बरे इस्लाम हैं। वह उस समाज के विवेक और नैतिकता के स्तर को ऊंचा करने के लिए संघर्षरत थे जो मरुस्थल के तपते हुए वातावरण में दरिंदगी के अंधकार में डूब गया था। उन्हें अपने संघर्ष में जो कामयाबी मिली उसकी तुलना दुनिया के किसी भी समाज सुधारक से नहीं की जा सकती। उनके अलावा शायद ही कोई एसा मिलेगा जिसने धर्म की राह में अपनी समस्त कामनाओं को अंजाम दिया हो। मरुस्थल में बिखरे हुए क़बीलों को जो मूर्तियों की पूजा करते थे उन्होंने एकत्रि करके एकजुट समाज बना दिया।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि पैग़म्बरे इस्लाम ने दुनिया को भौतिक व आध्यात्मिक जीवन, सांस्कृतिक व आर्थिक जीवन, राजनैतिक व नैतिक जीवन प्रदान किया। सौभाग्यशाली वही है जो इस प्रकार के जीवन को अपनाए और उसके अनुसार व्यवहार करे। क़ुरआन भी कहता है कि हे ईमान लाने वालो ईश्वर और उसके पैग़म्बर की दावत उस समय को स्वीकार कर लो जब वह तुम्हें उस चीज़ की दावत दें जो तुम्हें जीवन प्रदान करने वाली है।
नई दिल्ली में "कुरानिक जीवन" पर शैक्षिक बैठक आयोजित की गई
इस्लामी संस्कृति और संचार संगठन के जानकारी साइट के मुताबिक बताया कि भारत में रहने वाले ईरानी लोग़ों के लिए ईरानी सांस्कृतिक घर की तरफ से "कुरानिक जीवन" पर पहली शैक्षिक बैठक में भारत में अल-मुस्तफा स0 अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम मोहम्मद रजा सालेह और संस्थानों के अधिकारियों और कर्मचारियों के एक समूह ने भाग लिया। ईरानी और उनके परिवारों ने दिल्ली में ईरानी सांस्कृतिक घर के हॉल में आयोजित की गई ।
यह समारोह दुआए कुमैल के साथ शुरू हुआ और शैक्षिक बिंदुओं पर भारत में अल-मुस्तफा स0 अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम मोहम्मद रजा सालेह सुरए "शमस" की आयतों की शिक्षाओं के साथ बयान किया।
उन्हों ने अल्लाह की हम से बात करने की कुछ विशेषताओं को शुरू करने के बाद कहा कि : ईश्वर की एक तरह की बातों के बारे में कुछ विशेषताएं पेश करने के बाद उन्होंने कहा: यह आज के कवियों से लाभ प्राप्त करने वाले भी फाएदा हासिल करते हैं और यह दो अन्य विशेषताओं का प्रतिनिधित्व करते है; एक यह है कि हम उन चीजों की कसम खाते हैं जो हमारे लिए विशेष महत्व हैं, और दूसरे यह कि एक उदाहरण और एक महत्वपूर्ण विषय का परिचय देता है।
भारत में अल-मुस्तफा स0 अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम मोहम्मद रजा सालेह ने कहा कि नफ्स की तवज्जोह और पाकीज़ग़ी का सब से अहम भाग़ ग़ुनाह से दुरी और अल्ला के आदेश को बजा लाना बताया है।
सीरिया पर हमला, इस्राईल की एेतिहासिक मूर्खता थीः नसरुल्लाह
लेबनान के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह के महासचिव सैयद हसन नसरुल्लाह ने कहा है कि इस्राईल को यह जान लेना चाहिए कि सीरिया की टी-4 सैन्य छावनी पर हमला करके उसने कितनी बड़ी एेतिहासिक मूर्खता की है।
सैयद हसन नसरुल्लाह ने बैरूत के दक्षिणी ज़ाहिया में एक सम्मेलन में सीरिया की टी फ़ोर सैन्य छावनी पर ज़ायोनी शासन के हालिया हमले की ओर संकेत करते हुए कहा कि इस्राईल की यह अतिक्रमणकारी कार्यवाही, ज़ायोनी शासन के साथ टकराव की नीति में नयी प्रक्रिया सामने आएगी।
उनका कहना था कि सीरिया के हुम्स शहर की टीफ़ोर सैन्य छावनी पर इस्राईल का हमला, लोगों के जनसंहार की इस्राईल की सोची समझी नीति है जो सात साल में अभूतपूर्व है।
सैयद हसन नसरुल्लाह ने सीरिया में तनाव बढ़ने की ओर संकेत करते हुए कहा कि रिपोर्टों से पता चलता है कि पूर्वी ग़ोता के दूमा शहर की घटना, रासायनिक हथियारों के प्रयोग का एक ड्रामा था जो सेना की हर महत्वपूर्ण सफलता के बाद पेश किया जाता है और रासायनिक हथियारों के प्रयोग का खिलवाड़ दोहराया जाता है।
हिज़्बुल्लाह के महासचिव ने ट्रम्प की हालिया धमकियों की ओर संकेत करते हुए कहा कि ट्रम्प की धमकियां इस बात का चिन्ह है कि क्षेत्र को विश्व साम्राज्यवादियों के नये षड्यंत्रों का सामना है।
सीरिया पर हमला अपराध, अमरीका के राष्ट्रपति, फ़्रांस के राष्ट्रपति तथा ब्रिटेन की प्रधानमंत्री अपराधी हैं
सीरिया पर हमला अपराध, अमरीका के राष्ट्रपति, फ़्रांस के राष्ट्रपति तथा ब्रिटेन की प्रधानमंत्री अपराधी हैं
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने कहा कि सीरिया पर होने वाला हमला एक अपरध है और मैं साफ़ तौर पर कहता हूं कि अमरीका के राष्ट्रपति, फ़्रांस के राष्ट्रपति तथा ब्रिटेन की प्रधानमंत्री अपराधी हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी की घोषणा की वर्षगांठ के उपलक्ष्य में देश के वरिष्ठ अधिकारियों, तेहरान में तैनात इस्लामी देशों के राजदूतों तथा जनता के विभिन्न वर्गों से मुलाक़ात में इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस हमले से कुछ भी होने वाला नहीं है और इन हमलों का कोई फ़ायदा नहीं है, इन देशों ने बीते वर्षों में इराक़, सीरिया और अफ़ग़ानिस्तान में प्रवेश करके इसी प्रकार के अपराध किए लेकिन उन्हें कोई फ़ायदा नहीं मिल पाया।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने आगे कहा कि कुछ ही दिन पहले अमरीका के राष्ट्रपति ने कहा कि हमने पश्चिमी एशिया के इलाक़े में और अमरीकी राष्ट्रपति के शब्दों में मध्यपूर्व के इलाक़े में 7 ट्रिलियन डालर ख़र्च कर दिए जबकि हमें कुछ हासिल नहीं हुआ, वह सही कह रहे हैं उनहें कुछ भी हाथ नहीं आया है। अमरीका को याद रखना चाहिए कि वह कितना ही पैसा ख़र्च कर ले और कितनी ही कोशिश कर ले इस इलाक़े में उसे कुछ भी हासिल होने वाला नहीं है।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने शनिवार को इस मुलाक़ात में कहा कि जो लोग कल तक खुलकर या गुप्त रूप से दाइश का समर्थन करते थे आज दावा कर रहे हैं कि वह दाइश के ख़िलाफ़ लड़ाई में शामिल थे और उन्होंने दाइश को पराजित किया है, यह भी सरासर झूठ है, एसा कुछ नहीं हुआ, इसमें उनकी कोई भूमिका नहीं रही।
आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने कहा कि कुछ घंटे पहले अमरीका के राष्ट्रपति ने कहा कि हम सीरिया में दाइश को पराजित करने में कामयाब हुए, यह सरासर झूठ है।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि उन्होंने जहां ज़रूरी समझा दाइश की मदद की, जब दाइशी आतंकी घेरे में आए तो उन्होंने हस्तक्षेप करके उन्हें बचाया और इससे पहले दाइश के गठन में उनकी भूमिका रही। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि अमरीकियों ने सऊदी अरब तथा उसके जैसे कुछ अन्य देशों के पैसों से इस दुष्ट संगठन को बनाया और सीरिया व इराक़ की जनता को इस मुसीबत में डाल दिया लेकिन अमरीका तथा उसके एजेंटों के मुक़ाबले में किया जाने वाला प्रतिरोध इन दोनों देशों को मुक्ति दिलाने में सफल रहा और भविष्य में भी यह सिलसिला जारी रहेगा।
अमेरिका और उसके सहयोगियों का सीरिया पर हमला, ईरान ने दी चेतावनी
ईरान के विदेश मंत्रालय ने सीरिया पर अमेरिकी और उसके सहयोगियों द्वारा किए गए मिसाइल हमलों की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए इस पाश्विक हमले के नकारात्मक प्रभावों के बारे में चेतावनी दी है।
ईरान के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि तेहरान, धार्मिक, क़ानूनी और नैतिक नियमों के तहत रासायनिक हथियारों के इस्तेमाल का धुर विरोधी है और साथ ही ऐसे देशों की कड़े शब्दों में निंदा करता है जो स्वायत्त देशों पर झूठे रासायनिक हमलों का नाटक करके आक्रमण के लिए साज़िश रचते हैं।
विदेश मंत्रालय द्वारा जारी बयान में सीरिया पर अमेरिका और उसके सहयोगियों द्वारा किए गए मिसाइल हमलों को अंतर्राष्ट्रयी क़ानूनों और नियमों का खुला उल्लंघन बताते हुए कहा कि इस बात में कोई संदेह नहीं है कि अमेरिका और उसके सहयोगियों ने किसी ठोस सबूत और साक्ष्य के बिना और रासायनिक हथियारों पर निगरानी रखने वाली अंतर्राष्ट्रीय सिमिति की रिपोर्ट आने से पहले सीरिया पर हमला कर दिया। ईरानी विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया है कि खुद को दुनियाभर का ठेकेदार समझने वालों को उनके इस ग़ैरक़ानूनी आक्रमण और उससे क्षेत्र और विश्व में पड़ने वाले प्रभाव और परिणाम के बारे में जवाबदेह होना पड़ेगा।
ईरान के विदेश मंत्रालय के अनुसार, सीरिया पर अमेरिकी सैन्य आक्रमण ऐसे समय में किया गया है जब वाशिंगटन ने कुछ दिन पहले गज़्ज़ा पर इस्राईली आक्रामकता के ख़िलाफ़ सुरक्षा परिषद में तेलअवीव के ख़िलाफ़ जारी होने वाले निंदा बयान को रुकवा दिया था। विदेश मंत्रालय के अनुसार ज़ायोनी शासन के प्रति अमेरिका का पक्षपातपूर्ण और दोहरा मापदंड पूरी दुनिया देख रही है।
ईरान के विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में इस बात पर बल दिया कि वैश्विक संस्थाओं और संगठनों तथा दुनिया के सभी स्वायत्त देशों की यह ज़िम्मेदारी बनती है कि वह संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश, एक संप्रभु राष्ट्र की भौगोलिक अखंडता पर आक्रामण करने वालों की निंदा करें और पूरी दुनिया में अपनी युद्धोन्मादी नीति द्वारा उथल-पुथल फैलाने वाले देशों के विरुद्ध अवाज़ उठाकर अपनी ऐतिहासिक भूमिका निभाएं।
ईरान के विदेश मंत्रालय ने अपने बयान कहा है कि एक संप्रभु राष्ट्र के ख़िलाफ़ अमेरिका और उसके सहयोगियों के आक्रमण के कारण, विश्व में शांति और सुरक्षा की नींव अधिक कमज़ोर होगी और क्षेत्र मैं अतिवाद और आतंकवाद अपनी जड़ों को ऐसे अतिक्रमणकारी देशों की सहायता से और अधकि मज़बूत करेंगे।
म्यांमारः रोहिंग्या मुसलमानों के जनसंहार में लिप्त 7 सैनिकों को 10 साल की जेल
म्यांमार की सेना का कहना है कि रोहिंग्या मुसलमानों की क़ानून से इतर हत्या के मामले में 7 सैनिकों को 10 साल की जेल की सज़ा सुनाई गई है।
म्यांमार की सेना की ओर से फ़ेसबुक पर जारी बयान में कहा गया है कि क़ानून से इतर हत्या पर सैनिकों को सज़ा दी गई है।
ज्ञात रहे कि 2 सितम्बर सन 2017 को राख़ीन प्रांत के गांव इंडन में होने वाली रक्तरंजित घटना में सेना ने अपने लिप्त होने की बात स्वीकार की है जबकि राज्य में फैल जाने वाली हिंसा के कारण लगभग 7 लाख रोहिंग्या मुसलमानों को बांग्लादेश पलायन पर मजबूर होना पड़ा।
म्यांमार को दो पत्रकारों 31 वर्षीय वालोन और 27 वर्षीय कियाव सूए को दिसम्बर में हत्या और लूटमार की जांच करने के कारण गिरफ़तार कर लिया गया था जबकि वह यांगून में थे और उनके पास समस्त क़ानूनी दस्तावेज़ भी मौजूद थे। अदालत की ओर इस उन्हें 14 साल क़ैद की सज़ा सुनाए जाने की आशंका जताई जा रही है। इन पत्रकारों की गिरफ़तार के तत्काल बाद सेना ने अपने अपराध को स्वीकार किया था कि हत्या और लूटमार में लिप्त सैनिकों के विरुद्ध कार्यवाही की जाएगी।
सेना प्रमुख के बयान में कहा गया है कि चार अफ़सरों को सेना से निकाल दिया गया है और उन्हें 10 साल के सश्रम कारावास की सज़ा सुनाई गई है इसके अलावा भी तीन सैनिकों को अपराधों के कारण दस साल की जेल की सज़ा सुनाई गई है।
विश्व समुदाय की ओर से खुली कार्यावाही की मांग के बावजूद यह जांच बंद दरवाज़ों के पीछे हुई। विश्व समुदाय की ओर से दोनों पत्रकारों की गिरफ़तार पर भी कड़ी प्रतिक्रिया सामने आई।
म्यांमार के बारे में उनकी रिपोर्टों में बताया गया था कि किस तरह सेना और बुद्धिस्टों ने गांव के दस लोगों को एक क़ब्र में दफ़ना दिया था।
टीकाकारों का कहना है कि म्यांमार की सेना विश्व समुदाय की ओर से पड़ने वाले भारी दबाव और दुनिया भर में होने वाली आलोचनाओं के कारण केवल दिखावे के लिए कुछ सैनिकों के ख़िलाफ़ कार्यवाही कर रही है।
भारत बंद, बिहार और राजस्थान में हिंसा, गोलीबारी
भारत के इतिहास में संभवत: पहली बार ऐसा हुआ कि किसी प्रसिद्ध संगठन के आह्वान के बिना ही मंगलवार को देशव्यापी बंद होने की सनसनी फैल गयी।
इस भारत बंद का सबसे ज्यादा असर बिहार में देखा गया जहां कई जगह दंगे, आगजनी, सड़क जाम और सेवा बाधित की गयी जबकि देश के दूसरे हिस्सों में इस बंद का ज्यादा असर नहीं दिखा। बिहार और राजस्थान से हिंसक घटनाएं सामने आ रही हैं। दंगाइयों द्वारा ट्रेन रोके जाने और गोलीबारी की सूचना है। बिहार में कई पुलिसकर्मियों के घायल होने की खबर हैं जबकि राजस्थान में बंद के चलते दुकानें कराई गई हैं।
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मंगलवार को आरक्षण के विरोध में सवर्णों द्वारा बुलाए गए कथित तौर पर ‘भारत बंद’ के चलते सभी राज्यों से सतर्क रहने को कहा है। केंद्र ने सीधे तौर पर कहा है कि इस दौरान अपने क्षेत्र में होने वाली हिंसा के लिए ज़िलाधिकारी और पुलिस अधिकारी व्यक्तिगत रूप से ज़िम्मेदार होंगे। सरकार ने सरकारी कर्मचारिओं को कथित तौर पर बुलाए गए बंद में हिस्सा ना लेने की सलाह दी गई है।
पाकिस्तान, अमरीकी कूटनयिक का लाइसेंस रद्द, तनाव बढ़ा
पाकिस्तान की पुलिस ने उस अमरीकी कूटनयिक का ड्राइविंग लाइसेंस रद्द कर दिया है जो ट्रैफ़िक क़ानून का उल्लंघन करते हुए एक पाकिस्तान युवा की मोटर साइकिल को टक्कर मार कर उसकी मौत का कारण बना था।
पाकिस्तानी पुलिस का कहना है कि ट्रैफिर क़ानून का उल्लंघन करने वाला यह अमरीकी कूटनयिक कि जिसने अपनी गाड़ी से टक्कर मारकर मोटर साइकिल पर सवार एक पाकिस्तान युवक की हत्या कर दी और दूसरे को बुरी तरह घायल कर दिया अब पाकिस्तान में ड्राइविंग नहीं कर सकेगा।
इस अमरीकी कूटनयिक का नाम सरकार की वाॅच लिस्ट में भी शामिल कर दिया गया है। उक्त अमरीकी कूटनयचिक की गाड़ी से हताहत होने वाले पाकिस्तानी युवा के परिजनों ने अमरीकी सैन्य अताशी के विरुद्ध एफ़आईआर दर्ज कराके उसके विरुद्ध कार्यवाही की मांग की है।
सूचना के अनुसार अमरीकी मिलेट्री अताशी जोज़ेफ़ एमैनुलए ने सोमवार को विदेश भागने का भी प्रयास किया जिसे पाकिस्तानी पुलिस ने विफल बना दिया।
ज्ञात रहे कि पाकिस्तान में अमरीकी कूटनयिक की गाड़ी से पाकिस्तानी युवा की मौत की घटना पर इस्लामाबाद में अमरीकी राजदूत को विदेशमंत्रालय में तलब किया जा चुका है।
दुश्मन के मुक़ाबले में निवारक शक्ति को बाक़ी रखने की ज़रूरत
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने रविवार को ईरान के सशस्त्र बल के कमान्डरों के एक गुट से मुलाक़ात में शक्ति, सुरक्षा, सम्मान और निर्धारत समय में पर्याप्त क्षमता की प्राप्ति को सशस्त्र बल के मुख्य लक्ष्य गिनवाए।
उन्होंने इस्लामी व्यवस्था पर दुश्मन के अभूतपूर्व हमले का कारण इस व्यवस्था का दिन प्रतिदिन शक्तिशाली होना बताया क्योंकि दुश्मन इस बढ़ती ताक़त से ख़तरा महसूस कर रहा है।
इस्लामी गणतंत्र क्षेत्र में तनाव व सैन्य टकराव नहीं चाहता लेकिन उसने दुश्मनों व अतिक्रमणकारियों को यह दर्शा दिया है कि जब भी जहां भी ज़रूरी होगा वह सुरक्षा को नुक़सान पहुंचाने वाले तत्वों का मुक़ाबला करेगा और अपनी रक्षा व निवारक शक्ति बढ़ाने के लिए उसे किसी की इजाज़त लेने की ज़रूरत नहीं है।
इस्लामी गणतंत्र ख़तरों के मुक़ाबले में निवारक शक्ति को बनाए रखने के पीछे दो उद्देश्य रखता है।
पहला उद्देश्यः ज़रूरी क्षेत्रों में रक्षा उद्योग का स्वदेशी होना ख़ास तौर पर मीज़ाईल रक्षा के क्षेत्र में, क्योंकि जब निवारक शक्ति की बात होती है तो यह रणनैतिक हैसियत रखती है।
दूसरा उद्देश्यः इस दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ने के लिए विशेषज्ञ बल को ट्रेनिंग देने, ट्रेनिंग के लिए आधुनिक तंत्र को इस्तेमाल करने और ज़रूरी प्रोत्साहन देने पर आधारित है।
ग़ज़्ज़ा पर ज़ायोनी युद्धक विमानों के हमले पर हमास की प्रतिक्रिया
फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध संगठन ने कहा है कि ज़ायोनी शासन ने फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के ख़िलाफ़ अपने अपराधों पर पर्दा डालने के लिए ग़ज़्ज़ा पट्टी पर हमला किया है।
हमास के प्रवक्ता फ़ौज़ी बरहूम ने अपने एक बयान में कहा कि ग़ज़्ज़ा पर इस्राईल के हमले, वापसी के अधिकार की रैली से ज़ायोनी शासन में पैदा होने वाली बौखलाहट को दर्शाते हैं। उन्होंने कहा कि यह रैली अतिग्रहणकारी ज़ायोनी शासन की ताक़त को तोड़ने और उसके अपराधों को संसार के सामने लाने में सफल रही है और इसी तरह यह फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के प्रतिरोध के साधनों में विस्तार की भी सूचक है। ज्ञात रहे कि ज़ायोनी शासन के युद्धक विमानों ने सोमवार को दो बार ग़ज़्ज़ा पट्टी के उत्तर में हमास के ठिकानों पर हमले किए।
इस बीच पश्चिमी तट के उत्तर में स्थित नाबलुस में फ़िलिस्तीनी बच्चों व बंदियों के समर्थन की राष्ट्रीय समिति ने सोमवार को जुलूस निकाल कर ज़ायोनी शासन की जेलों में बंद फ़िलिस्तीनी क़ैदियों के समर्थन की घोषणा की। जुलूस में शामिल लोगों ने ज़ायोनी शासन की जेलों में बंद सभी फ़िलिस्तीनी बच्चों की तुरंत रिहाई की मांग की।