
رضوی
ईरान को भीतर से खोखला करना चाहता है दुश्मनः वरिष्ठ नेता
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने इस्लामी व्यवस्था के दुष्ट शत्रुओं के बड़े मोर्चे का लक्ष्य, इस्लामी व्यवस्था को नष्ट करना या भीतर से खोलना करना बताया है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने सोमवार को व्यवस्था के कुछ अधिकारियों से नौरोज़ की मुलाक़ात में इस्लामी व्यवस्था के गठन और उसकी रक्षा के लिए बहने वाले मूल्यवान ख़ून और बलिदानों की ओर संकेत करते हुए कहा कि इस्लामी व्यवस्था को कमज़ोर करने में दुश्मनों को धूल चटाने के लिए हर प्रकार के प्रयास वास्तव में ईश्वर से सामिप्य प्राप्त करना ही है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने इस्लामी क्रांति के विभिन्न मंचों पर त्याग व बलिदान के पीछे जनता का मुख्य उद्देश्य, धार्मिक लक्ष्य बताया और कहा कि आज कुछ जवान उन्हीं पवित्र उद्देश्यों और लक्ष्यों के साथ तकफ़ीरी धड़ों से मुक़ाबले और रौज़ों की रक्षा के लिए रणक्षेत्र में जाने पर बल देते हैं और यह त्याग की निशानी और अधिकारियों से जनता के आगे रहने का स्पष्ट चिन्ह है।
उन्होंने ईश्वरीय दूतों के निष्ठापूर्ण प्रयासों का लक्ष्य, धार्मिक व्यवस्था का गठन और सत्य की स्थापना बताया और कहा कि इस्लामी व्यवस्था में इस्लामी नियमों और इस्लामी जीवन शैली को लागू होना चाहिए और समाज के हर वर्ग की संस्कृति, क़ुरआनी शिक्षाओं के अनुसार होनी चाहिए।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने नये वर्ष का नाम प्रतिरोधक अर्थव्यवस्था, पैदावार और रोज़गार रखे जाने की ओर संकेत करते हुए कहा कि पैदावार और रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराए जाने के लिए गंभीर निरिक्षण और निरंतर प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। उनका कहना था कि उन उत्पादों पर प्रतिबंध होना चाहिए जिनके चलते ईरानी कारख़ाने बंद हो जाते हैं।
अमरीका ने सीरिया के ख़िलाफ़ मीज़ाइल हमले शुरू किए
सीरिया के ख़ान शैख़ून इलाक़े पर रासायनिक हमले को बहाना बना कर अमरीका ने सीरयिा के होम्स प्रांत पर बड़े पैमाने पर मीज़ाइल हमले शुरू कर दिए हैं।
अमरीका के सैन्य सूत्रों के अनुसार सीरिया में विभिन्न लक्ष्यों पर 70 गाइडेड मीज़ाइलोंसे हमला किया गया है। अलमयादीन टीवी चैनल ने भी बताया है कि भूमध्य सागर में तैनात अमरीका के युद्धपोतों से दसियों मीज़ाइल सीरिया की ओर फ़ायर किए गए हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार होम्स प्रांत की शईरात हवाई छावनी को मुख्य रूप से इन हमलों में निशाना बनाया गया है। अभी इस हमले में होने वाले संभावित जानी नुक़सान के बारे में कोई सूचना नहीं मिली है।
इस बीच अमरीका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने सीरिया पर मीज़ाइल हमले का आदेश देने के बाद दावा किया है कि इस देश के राष्ट्रपति बश्शार असद ने लोगों के जनसंहार के लिए रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया है। उन्होंने सीरिया पर हमले का समाचार सामने आने के तुरंत बाद कहा कि मैंने शईरात हवाई छावनी पर सीमित हमले का आदेश दिया है क्योंकि सीरिया में रासायनिक हमले यहीं से शुरू हुए हैं। ट्रम्प ने कहा कि रासायनिक हमलों के इस्तेमाल और फैलाव को रोकना अमरीका के राष्ट्रीय हितों के अनुसार है। अमरीकी राष्ट्रपति ने कहा कि मैं दुनिया के सभी सभ्य देशों से अपील करता हूं कि वे सीरिया में हत्या और रक्तपात की समाप्ति के लिए आगे आएं। डोनल्ड ट्रम्प ने कहा कि अमरीका की राष्ट्रीय सुरक्षा और अहम हितों की रक्षा के लिए सीरिया पर मीज़ाइल हमले किए गए हैं। उन्होंने कहा कि बश्शार असद ने सीरिया के लोगों के जनसंहार के लिए सरीन गैस का इस्तेमाल किया है। ट्रम्प ने दावा किया कि असद के रवैये को बदलने के लिए बरसों से जारी कोशिशें विफल हो चुकी हैं।
भारत के साथ संबन्धों का स्वागत करते हैं- ईरान
ईरान, भारत के साथ तकनीक, सूचना, अंतरिक्ष, बयोटेक्नोलोजी, दवाओं और व्यापार के क्षेत्र में संबन्ध विस्तार का स्वागत करता है।
भारत के नगर हैदराबाद में ईरान के काउन्सलर हसन नूरियान ने गुरूवार को कहा है कि वर्तमान समय में भारत और ईरान के बीच तेल, चावल, ग़ल्ले और खाद्य पदार्थों का व्यापक स्तर पर आयात और निर्यात हो रहा है। हैदराबाद में ईरान के काउन्सलर ने कहा कि ईरान और गुट पांच धन एक के बीच समझौता, प्रतिबंधों के हटने का कारण बना है।
उन्होंने कहा कि पैसों के लेनदेन में पाई जाने वाली बाधाओं को दूर करने के लिए भारत में ईरानी बैंकों की शाखाएं खोली जाएं। इस प्रकार से दोनो देशों के व्यापारिक संबन्ध विस्तृत होंगे।
हुसैन नूरियान ने भारत द्वारा ईरान के दक्षिण पूर्व में चाबहार बंदरगाह में पूंजी की ओर संकेत करते हुए कहा कि भारत इस पूंजीनिवेश के माध्यम से सरलता से केन्द्री एशिया और अफ़ग़ानिस्तान तक पहुंच बना सकता है।
इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का शुभ जन्म दिवस
रजब के महीने को इस्लामी कैलेण्डर में विशेष महत्व प्राप्त है।
इसका मुख्य कारण यह है कि इसमें पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) के कई परिजनों का जन्म हुआ है। रजब के महीने को मुसलमान बड़ी इज़्ज़त की नज़र से देखते हैं। पहली रजब सन 57 हिजरी मे इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का जन्म पवित्र शहर मदीने मे हुआ था। इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम, पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पौत्र थे। उनके पिता इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम थे। आपकी माता हज़रत फ़ातेमा थीं जो हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम की सुपुत्री थीं। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का नाम पैग़म्बरे इस्लाम के नाम पर था। सदगुणों में वे पूर्णरूप से पैग़म्बरे इस्लाम (स) के प्रतीक थे। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के पैदा होने की शुभ सूचना पहले ही दी थी। श्रोताओ, इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिवस के अवसर पर हार्दिक बधाई देते हैं।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की एक विशेषता यह है कि उन्हें शिया संस्कृति की क्रांति की आधारशिला रखने वाला माना जाता है। वैसे तो ज्ञान के प्रचार-प्रसार को मुख्य रूप से इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के सुपुत्र इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम से जोड़ा जाता है परंतु उसकी बुनियाद इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने ही रखी थी। पैग़म्बरे इस्लाम (स) और उनके पवित्र परिजनों में से हर एक, अपने समय और परिस्थितियों के अनुसार काम करता था। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के काल में राजनीतिक एवं सामाजिक परिस्थितियां इस प्रकार से थीं कि दूसरे इमामों की अपेक्षा धार्मिक शिक्षाओं, पवित्र कुरआन की व्याख्या और पैग़म्बरे इस्लाम के कथनों को बयान करने का उन्हें अधिक अवसर मिला।
उनके 19 वर्षीय इमामत काल में ऐसी सामाजिक परिस्थितियां उत्पन्न हुई जिनका लाभ उठाकर इमाम मोहम्मद बाक़िर ने इस्लामी शिक्षाओं का भरपूर प्रचार-प्रसार किया। इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने इमामत की अवधि मे ज्ञान के क्षेत्र मे जो दीपक जलाए उनका प्रकाश आजतक चारों ओर फैला हुआ है। एक प्रख्यात सुन्नी विद्वान, इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम के ज्ञान के सम्बन्ध मे लिखते हैं कि इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने संसार को ज्ञान के छिपे हुए स्रोतों से परिचित कराया। उन्होंने ज्ञान की व्याख्या इस प्रकार से की जिसके कारण वर्तमान समय मे उनकी महानता सबके लिए स्पष्ट है। ज्ञान के क्षेत्र में महान सेवाओं के कारण ही इमाम बाक़िर को “बाक़िरूल उलूम” कहा जाता है। बाक़िरूल उलूम का अर्थ होता है, ज्ञान को चीरकर निकालने वाला। शिया और सुन्नी मुसलमानों सहित समस्त विद्वान इस बात पर सहमत हैं कि इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम अपने समय में श्रेष्ठ व्यक्ति थे।
इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने पवित्र क़ुरआन का अनुसरण करके समाज में ज्ञान के महत्व को इस प्रकार चित्रित किया कि लोग धर्म को उचित ढंग से पहचानें। इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम ने मानव समाज का मार्गदर्शन ज्ञान की ओर किया। ज्ञान के बारे में वे कहते थे कि जो विद्वान अपने ज्ञान से समाज को लाभ पहुंचाए वह सत्तर हज़ार उपासकों से बेहतर है।
इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम का जीवन, एक परिपूर्ण मनुष्य के जीवन का उच्चतम आदर्श है। इमाम बाक़िर की एक विशेषता उनके अंदर समस्त सदगुणों का एकत्रित हो जाना है। इसी तरह इमाम, अध्यात्म और महान ईश्वर की उपासना पर जो ध्यान देते हैं वह इस बात में बाधा नहीं बनता था कि इमाम, सामाजिक एवं भौतिक जीवन पर ध्यान न दें। इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम के जीवन पर दृष्टि डालने से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि इमाम जीवन के समस्त क्षेत्रों में सर्वोच्च आदर्श हैं। वे ज्ञान एवं सदगुणों की दृष्टि से शिखर बिन्दु पर थे।
समाज में इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम की महत्वपूर्ण उपस्थिति को बयान करने के लिए इस बिन्दु का उल्लेख करना काफी है कि इमाम मुहम्मद बाक़िर और उनके बाद उनके सुपुत्र इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने शैक्षिक केन्द्रों की आधारशिला रखी। जिन लोगों ने इन शिक्षा केन्द्रों से ज्ञान अर्जित किया उन्होंने लगभग छह हज़ार किताबें लिखी हैं। इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम, पवित्र क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम (स) की परम्पराओं से पूर्णत रूप से अवगत थे। वे लोगों को इससे अवगत कराते और उन्हें अज्ञानता के अंधकार से निकाल कर ज्ञान के प्रकाश में ले आते थे।
इमाम बाक़िर इस बात को बिल्कुल पसंद नहीं करते थे कि दूसरे उनकी आजीविका की पूर्ति करें। मुहम्मद बिन मुनकदिर नामक एक व्यक्ति का कहना है कि एक बार मैं मदीना नगर में कहीं जा रहा था। बहुत तेज़ गर्मी पड़ रही थी। इस तेज़ गर्मी में इमाम बाक़िर एक खेत में काम कर रहे थे। उनके शरीर से पसीना बह रहा था। जब मेरी नज़र इमाम बाक़िर पर पड़ी तो मेरे मन में यह विचार आया कि क़ुरैश के क़बीले का एक महान व्यक्ति इस गर्मी में क्यों खेत में काम कर रहा है? मैंने सोचा कि उनके पास जाकर मैं उन्हें समझाऊं कि आप जैसे महान व्यक्ति को यह शोभा नहीं देता कि वह खेत में काम करे। उसने बड़े आश्चर्य से पूछा हे इमाम आपके जैसा समझदार और बुद्धिमान व्यक्ति, इस भीषण गर्मी में कुछ पैसों के लिए घर से बाहर इतनी मेहनत क्यों कर रहा है। उसने कहा कि ऐसी स्थिति में यदि आपको मौत आ गयी तो अल्लाह को आप क्या जवाब देंगे?
इमाम बाक़िर ने उसके उत्तर में कहा कि क्या तुमको लगता है कि केवल नमाज़, रोज़ा, हज और ज़कात ही इबादत है? उन्होंने कहा कि इस समय मैं आजीविका की तलाश में हूं। अब अगर एसे में मुझे मौत आती है तो मैं ईश्वर की उपासना करते हुए इस दुनिया से जाऊंगा। इमाम मुहम्मद बाक़िर कहते हैं कि लोगों को पाप करते समय डरना चाहिए क्योंकि यदि उस समय मौत आ गई तो फिर क्या होगा?
इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत
वर्ष 254 हिजरी क़मरी के रजब महीने की तीसरी तारीख़ पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के एक अन्य पौत्र की शहादत की याद दिलाती है।
इस दिन जब सूरज ने अपनी किरणें ज़मीन पर बिखेरीं तो इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत की ख़बर ने बहुत सारे लोगों को शोकाकुल कर दिया। उनकी उपाधि, हादी अर्थात मार्गदर्शक थी।
इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने 15 ज़िलहिज्जा वर्ष 212 हिजरी क़मरी को मदीना नगर के निकट इस संसार में आंखें खोलीं। उन्होंने अपने पिता इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद 33 साल तक मुसलमानों के नेतृत्व की ज़िम्मेदारी संभाली। उनके काल में विभिन्न प्रकार के मत और आस्था संबंधी विचार सामने आने लगे थे और इस्लामी जगत में धर्म व आस्था के बारे में तरह तरह की शंकाएं पैदा होने लगी थीं। ये शंकाएं कुछ धोखा खाए हुए, अवसरवादी और अवसर से ग़लत लाभ उठाने वाले लोग, इस्लामी जगत में फैला रहे थे। अलबत्ता अब्बासी शासक भी मुसलमानों के वैचारिक व आस्था संबंधी आधारों को कमज़ोर करके अपना उल्लू सीधा करने की कोशिश में थे। यही कारण था कि इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने भी, जो अन्य इमामों की तरह सामाजिक, राजनैतिक और वैचारिक घटनाओं के आधार पर मुसलमानों के मार्गदर्शन और सच्चे इस्लाम की रक्षा के लिए अनेक ठोस व गंभीर क़दम उठाते थे, काम किया और पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के ज्ञान संबंधी मतों को इस प्रकार से पेश किया कि उनके काल में भी और बाद के कालों में भी लोगों की वैचारिक और राजनैतिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती रहे।
इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के काल में ईश्वर को आंखों से देखने के संभव होने या न होने, ईश्वर के साकार या निराकार होने और कर्मों में बंदे के स्वाधीन या विवश होने जैसी बहसें मुस्लिम जनमत को अपनी चपेट में लिए हुए थीं और लोगों की आस्थाओं को प्रभावित कर रही थीं इस लिए इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने लोगों के मार्गदर्शन के परिप्रेक्ष्य में शास्त्रार्थों और पत्रों के माध्यम से ठोस व स्पष्ट तर्क पेश करके सच्चे इस्लाम को इस्लामी समाज के सामने पेश किया। उदाहरण स्वरूप उनके एक विस्तृत पत्र का उल्लेख किया जा सकता है जिसमें उन्होंने क़ुरआने मजीद, पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के परिचय, उनके आज्ञापालन की अनिवार्यता और इसी प्रकार कर्मों में लोगों के स्वाधीन या विवश होने जैसी गूढ़ बहसों का बड़े स्पष्ट अंदाज़ में विस्तृत उत्तर दिया है।
इमाम हादी अलैहिस्सलाम, जिनके कांधों पर इस्लामी विचारों के मार्गदर्शन की ज़िम्मेदारी थी और वे इस प्रकार के वैचारिक मतभेदों को इस्लाम के दुशमनों के हित में समझते थे, क़ुरआने मजीद के बारे में विवाद को अनुचित क़रार देते थे और अपने साथियों को इस प्रकार की बहसों में न पड़ने की सिफ़ारिश करते हुए कहते थे कि क़ुरआन के बारे में यह बहस कि वह रचना है या नहीं या पहले से मौजूद था या बाद में अस्तित्व में आया? पूरी तरह से अनुचित और धार्मिक दृष्टि से ग़लत है क्योंकि इसमें प्रश्न करने वाले को ऐसी चीज़ मिलती है जो उसके लिए उचित नहीं है और उत्तर देने वाला भी उस विषय के बारे में अपने आपको ज़बरदस्ती कठिनाई में डालता है जो उसकी क्षमता में नहीं है। रचयिता, ईश्वर के अलावा कोई भी नहीं है और उसके अतिरिक्त जो भी चीज़ है वह रचना है और क़ुरआने मजीद ईश्वर का कथन है अतः उसके लिए अपनी ओर से कोई नाम न रखो अन्यथा पथभ्रष्ट लोगों में शामिल हो जाओगे।
एक और अहम वैचारिक शंका जो इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के काल में लोगों की आस्थाओं के लिए ख़तरा बनी हुई थी, ईश्वर के साकार होने के बारे में थी। इमाम ने बौद्धिक तर्क से इस विचार को ग़लत बताते हुए कहा कि पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों के मानने वाले ईश्वर को साकार नहीं मानते क्योंकि ईश्वर को अन्य चीज़ों के समान बताना, उसके साकार होने की कल्पना है और जो चीज़ आकार वाली होती है वह स्वयं किसी कारण का परिणाम होती है और ईश्वर इस प्रकार के उदाहरणों से कहीं उच्च है क्योंकि शरीर और आकार का स्वाभाविक परिणाम किसी समय या स्थान में सीमित होने और बुढ़ापे और कमज़ोर होने इत्यादि के रूप में सामने आता है जबकि ईश्वर के लिए इस प्रकार की बातों की कल्पना नहीं की जा सकती। ईश्वर के साकार होने की आस्था, ईसाइयत में तीन ईश्वरों का विचार सामने आने का कारण बनी है और ईसाई दो अन्य लोगों को ईश्वर का समकक्ष मानते हैं। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने अपने ठोस तर्कों से मुसलमानों के बीच इस प्रकार के विचारों को फैलने से रोका। इस प्रकार की शंकाएं, एकेश्वरवाद के आधार पर हमला करती हैं जो ईश्वरीय पैग़म्बरों की सबसे पहली और सबसे अहम उपलब्धि है। इमाम अलैहिस्सलाम ने अपने काल में बेहतरीन ढंग से एकेश्वरवाद की आस्था की रक्षा की और इस के लिए उन्होंने बड़े बुनियादी कार्यक्रम तैयार किए।
इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को अपने जीवन में हमेशा अब्बासी शासकों की कड़ाइयों का सामना करना पड़ा और लोगों के साथ उनके संपर्क में हमेशा रुकावटें डाली गईं। यही कारण था कि उन्होंने कुछ विशेष युक्तियां अपनाईं जिनमें से एक उनके वकीलों या प्रतिनिधियों का संगठन बनाना था। यह गुप्त संगठन इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के काल में गठित हुआ था और इसने गोपनीय रूप से अपनी गतिविधियां जारी रखी थीं। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के काल में यह संगठन एक औपचारिक और नए संगठन के रूप में ख़ास विशेषताओं के साथ सामने आया। इस अहम संगठन ने ज्ञान व धर्म की दृष्टि से लोगों की ज़रूरतों को मुख्य स्रोत तक पहुंचाने में सफलता प्राप्त की जिसका आरंभिक परिणाम वैचारिक और आस्था संबंधी संदेहों का समाप्त होना था।
इसी काल में इमाम हादी अलैहिस्सलाम ने ईरान, इराक़, यमन और मिस्र में अपने अनुयाइयों से, अपने प्रतिनिधियों और इसी प्रकार पत्रों के माध्यम से निरंतर संपर्क बनाए रखा। वे अपने प्रतिनिधियों में अनुशासन बनाए रखने के लिए हर थोड़े समय के बाद किसी प्रतिनिधि को हटाते और किसी दूसरे को नियुक्त करते थे। वे अपने आदेशों के माध्यम से उनका मार्गदर्शन भी करते रहते थे। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के प्रतिनिधियों ने धर्म और आस्था संबंधी मामलों में अत्यंत सकारात्मक भूमिका निभाई। कभी कभी उनमें से कोई पहचान लिया जाता और शासक के कारिंदे उसे गिरफ़्तार करके जेल में डाल देते थे। जेल में उन्हें भयावह यातनाएं दी जाती थीं जिसके चलते कुछ लोग अपनी जान से भी हाथ धो बैठते थे। अलबत्ता कुछ प्रतिनिधि ऐसे भी होते थे जो इमाम द्वारा निर्धारित दिशा से भटक जाते थे जिसके बाद इमाम उचित समय पर सही युक्ति द्वारा दूसरों को उनके स्थान पर ले आया करते थे।
सही लोगों की पहचान, उन्हें इस्लामी शिक्षाओं के आधार पर प्रशिक्षित करना और उन्हें समाज के लिए आवश्यक ज्ञान व गुण से लैस करना सभी धार्मिक नेताओं के अहम दायित्वों में शामिल है। इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम ने भी, अब्बासी शासकों की ओर से लगाए जाने वाले हर तरह के प्रतिबंधों के बावजूद जिन्होंने इमाम तक लोगों की पहुंच को रोक रखा था, अनेक लोगों का प्रशिक्षण किया। ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के अनुसार विभिन्न ज्ञानों के बारे में जिन लोगों ने इमाम नक़ी अलैहिस्सलाम से हदीसें बयान की हैं उनकी संख्या दो सौ के क़रीब है और उनमें ऐसे प्रतिष्ठित लोग भी शामिल हैं जिन्होंने अनेक ज्ञानों के बारे में किताबें लिखी हैं। अब्दुल अज़ीम हसनी भी इमाम के शिष्यों में से एक हैं। इसी तरह ख़ुरासान के रहने वाले फ़ज़्ल बिन शाज़ान भी इमाम अली नक़ी के अहम शिष्य हैं। इसके अलावा इमाम हादी के ऐसे भी शागिर्द हैं जिनकी शासन में अच्छी पैठ थी। इब्ने सिक्कीत उन्हीं लोगों में से एक हैं। वे इमाम के शिष्य थे लेकिन उन्होंने दरबार में अपना प्रभाव बनाया और वे इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के शास्त्रार्थों में भी उपस्थित होते थे।
अपनी पूरी विभूतिपूर्ण आयु में इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के सद्गुण और उनकी प्रतिष्ठा इस प्रकार की थी कि बनी अब्बास के अत्याचारी शासक अपनी भरपूर कड़ाई के बावजूद इमाम के मार्गदर्शन के प्रकाश को सहन नहीं कर सके। उन्होंने इस्लामी समुदाय को इमाम के विचारों से दूर रख कर समाज में बुराइयों को फैलाने की कोशिश की ताकि इस प्रकार अपने शासन को सुरक्षित रख सके लेकिन इमाम हादी अलैहिस्सलाम हमेशा, शासकों की चालों और हथकंडों से लोगों को अवगत कराते रहते थे और विभिन्न अवसरों पर अत्याचारी शासकों के चेहरे पर पड़ी नक़ाब उलटते रहते थे। यही कारण था कि अब्बासी शासक उनके अस्तित्व को अपने हितों व लक्ष्यों के लिए बहुत बड़ी रुकावट समझते थे। इमाम के प्रति उनका द्वेष विभिन्न रूपों में सामने आता रहता था। इस प्रकार से कि अब्बासी ख़लीफ़ा मोतज़ ने इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को अपने रास्ते से हटाने का षड्यंत्र रचा। उसने वर्ष 254 हिजरी क़मरी में अपनी इस निंदनीय साज़िश को व्यवहारिक बना दिया।
ईरानी जनता ने प्रतिबंधों के बावजूद घुटने नहीं टेके।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने धार्मिक मामलों और क्रांति के मूल्यों पर प्रतिबद्धता को ईरानी जनता की एकता का प्रतीक बताया।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने पवित्र नगर मशहद में हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के पवित्र रौज़े में दसियों हज़ार श्रद्धालुओं और तीर्थयात्रियों के जनसैलाब को संबोधित करते हुए नये हिजरी शम्सी साल को देश के लिए एक महत्वपूर्ण साल बताया।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि यह वर्ष आर्थिक दृष्टि से भी और अगले राष्ट्रपति और नगर परिषद चुनाव के दृष्टिगत भी महत्वपूर्ण है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि पिछले वर्ष ईरान की जनता ने कुछ आर्थिक समस्याओं के बावजूद राजनैतिक व क्रांति के मैदानों में शानदार उपलब्धियां अर्जित कीं और विश्व क़ुद्स दिवस तथा स्वतंत्रता दिवस के जूलूसों में एेतिहासिक उपस्थिति दर्ज करके क्रांति से अपनी निष्ठा का एक बार फिर भरपूर सबूत पेश किया।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस प्रकार के कार्यक्रमों में ईरानी जनता की व्यापक उपस्थिति यह सिद्ध करती हे कि देश के राजनैतिक मामलों और क्रांतिकारी लक्ष्यों की रक्षा की बात हो हर क्षेत्र में पूरी तरह एक जुट है।
इस्लामी क्रांंति के वरिष्ठ नेता ने ईरानी जनता की एकता और क्रांति, इस्लामी व्यवस्था और धार्मिक मूल्यों पर प्रतिबद्धता के महत्व पर बल देते हुए कहा कि नववर्ष भी इसीलिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने आर्थिक मामलों को देश के मामलों में सर्वोपरि बताया और कहा कि आवश्यकता इस बात की है कि आर्थिक मामलों में गतिशीलता का प्रदर्शन किया जाए।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि यदि ईरान के अधिकारियों की दृष्टि से आर्थिक मामले सर्वेोपरि हैं तो दुश्मन ने भी इन्हीं मामलों को अपनी प्राथमिकता में क़रार दे रखा है और दुश्मन ईरान को आर्थिक मामलों में कमज़ोर करके जनता और सरकार के मध्य दूरी पैदा करना चाहता है ताकि वह इस प्रकार अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सके।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि ईरान के नादान दुश्मन वर्षों से इस मैदान में अपने प्रयास जारी रखे हुए हैं किन्तु वह अब तक विफल रहे हैं और भविष्य में भी उनको सफलता प्राप्त नहीं होगी।
सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनई ने ईरानी नए साल में अर्थव्यवस्था पर दिया विशेष बल।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने सभी ईरानियों विशेष कर शहीदों और युद्ध में घायल होने वालों को नए हिजरी शमसी साल 1396 के आरंभ पर पैग़म्बरे इस्लाम की सुपुत्री के जन्म दिवस और नौरोज़ की बधाई दी है और ईरानी जनता और दुनिया भर के मुसलमानों के लिए विभूति, सुरक्षा और संपन्नता की कामना करते हुए नए साल को "प्रतिरोधक अर्थ व्यवस्था, पैदावार और रोज़गार" का नाम दिया है।
आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने नए वर्ष के बधाई संदेश में पिछले वर्ष को ईरानी राष्ट्र के कटु व मधुर घटनाओं का साल बताया और उसमें ईरानी राष्ट्र की ख़ुशी की कुछ अहम घटनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि वर्ष 1395 में प्रिय ईरानी राष्ट्र के लिए सम्मान पूरी तरह से स्पष्ट रहा और शत्रुओं ने दुनिया में हर जगह ईरान की शक्ति व महानता को स्वीकार किया। उन्होंने इस्लामी क्रांति की वर्षगांठ की रैलियों में जनता की भरपूर उपस्थिति को अमरीकी राष्ट्रपति की ओर से ईरानी राष्ट्र की बेइज़्जती का जवाब और इसी तरह विश्व क़ुद्स दिवस में जनता की बेजोड़ उपस्थिति को ईरानी जनता की पहचान और उच्च लक्ष्यों का परिचायक बताया और कहा कि ईरान के पड़ोसी और क्षेत्रीय देशों में अशांति के बावजूद ईरान की सुरक्षा क्षेत्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी अहम रही और ईरानी राष्ट्र ने पूरे साल टिकाऊ सुरक्षा का अनुभव किया।
वरिष्ठ नेता ने वर्ष 1395 को प्रयास और कार्य का नाम दिए जाने की ओर संकेत करते हुए कहा कि देश के अधिकारियों की ओर से किए जाने वाले कार्यों और जनता व वरिष्ठ नेतृत्व की अपेक्षाओं में काफ़ी अंतर रहा है और कुल मिला कर सकारात्मक और नकारात्मक आंकड़े देखे जा सकते हैं। उन्होंने प्रतिरोधक अर्थ व्यवस्था को अकेल ही प्रभावी नहीं बताया और वर्तमान स्थिति को बेहतर बनाने के उपायों के बारे में कहा कि प्रतिरोधक अर्थ व्यवस्था को अहम बिंदुओं तक पहुंचाना और इस पर अधिकारियों और जनता का ध्यान केंद्रित होना अहम है और यह अहम बिंदु आंतरिक पैदावार और रोज़गार विशेष कर युवाओं को रोज़गार प्रदान करना है।
आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने इसी आधार पर नए साल को "प्रतिरोधक अर्थ व्यवस्था, पैदावार और रोज़गार" का नाम दिया और कहा कि सभी कार्यक्रमों को जनता, अधिकारियों और वरिष्ठ नेतृत्व की इसी इच्छा पर केंद्रित होना चाहिए जिससे ध्यान योग्य उपलब्धियां प्राप्त होंगी और अधिकारियों को साल के अंत तक इस संबंध में जनता को रिपोर्ट देनी चाहिए।
अमरीका में "एक मुसलमान से मुलाक़ात"
अमरीका में इस्लाम के बारे में सही जानकारी लोगों तक पहुंचाने के लिए राष्ट्रव्यापी प्रचार का आयोजन किया गया है जिसका शीर्षक है, "एक मुसलमान से मुलाक़ात"।
अमरीका के मुस्लिम युवाओं के संगठन ने इस्लाम के बारे में आम लोगों को सही जानकारी पहुंचाने के उद्देश्य से एक कार्यक्रम निरधारित किया है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत सप्ताह में एक दिन राष्ट्रव्यापी प्रचार के ज़रिए पूरे अमरीका में लोगों तक इस्लाम धर्म की सच्चाई और उसकी सही जानकारी पहुंचाई जा रही है।
"एक मुसलमान से मुलाक़ात" नामक इस देशव्यापी प्रचार में अमरीका के 50 से अधिक शहरों में 124 स्थानों पर स्वेच्छा से सैकड़ों की संख्या में मुसलमान इकट्ठे होते हैं। इस कार्यक्रम में शामिल लोग इस्लाम के बारे में सवालों के जवाब देते हैं। इस प्रचार का उद्देश्य इस्लाम और मुसलमानों के बारे में अमरीकियों को सही जानकारी प्रदान करना और मुसलमानों के ख़िलाफ़ बढ़ती नफ़रत और हिंसा को रोकना है।
"MEET A MUSLIM" नामक इस राष्ट्रव्यापी प्रचार के अवसर पर अमरीका के विभिन्न शहरों में सैकड़ों मुसलमानों ने एक विशाल मार्च भी निकाला जिसमें बड़ी संख्या में मुसलमानों सहित अन्य धर्मों के लोगों ने भी भाग लिया।
अमरीका की एफ़बीआई पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार 2015 में मुसलमानों के ख़िलाफ़ हुई हिंसक घटनाओं में बहुत तेज़ी से वृद्धि हुई है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि हाल के महीनों, विशेषकर ट्रम्प के सत्ता में आने के साथ ही अमरीका में मुसलमानों और उनकी मस्जिदों पर हमलों में तेज़ी से वृद्धि हुई है।
नेतनयाहू लगता है इतिहास नहीं जानते, ईरानी राष्ट्र ने 3 बार यहूदियों को बचाया, ज़रीफ़
ईरानी विदेश मंत्री जवाद ज़रीफ़ ने कहा है कि ज़ायोनी प्रधान मंत्री बिनयामिन नेतनयाहू ने ईरान के ख़िलाफ़ इल्ज़ाम लगाने के लिए तौरैत को झुठलाने और झूठे इतिहास का सहारा लिया है।
उन्होंने रविवार को अपने ट्वीटर पेज पर नेतनयाहू के उस दावे की प्रतिक्रिया में यह बात कही जिसमें नेतनयाहू ने कहा कि ईरान 2500 साल से “यहूदियों को तबाह करने की” कोशिश कर रहा है।
जवाद ज़रीफ़ ने कहा, “एक राष्ट्र के ख़िलाफ़ कि जिसने यहूदियों को तीन बार बचाया, धर्मान्धता से प्रेरित झूठे प्रचार के लिए नेतनयाहू ने आदत के तहत झूठे इतिहास और तौरैत को झुठलाने का सहारा लिया। एक बार फिर बिनयामिन नेतनयाहू ने आज न सिर्फ़ सच बात को विकृत कर दिया बल्कि यहूदियों के ग्रंथ सहित विगत की सच्चाई को भी तोड़ मरोड़ दिया। यह अफ़सोस की बात है कि धर्मान्धता इस हद तक पहुंच गयी है कि एक पूरे राष्ट्र के ख़िलाफ़ इल्ज़ाम लगाया जा रहा है जिसने इतिहास में 3 बार यहूदियों को बचाया।”
ग़ौरतलब है कि नेतनयाहू ने गुरुवार को रूसी राष्ट्रपति व्लादमीर पूतिन से मॉस्को में मुलाक़ात में यह दावा किया। उनका उस दन्तकथा की ओर इशारा था जिसे यहूदी प्यूरिम त्योहार के अवसर पर याद करते हैं। प्यूरिम त्योहार इस्राईल में शनिवार की रात शुरु हुआ।
ऐसी हालत में जब विद्वान प्यूरिम कहानी की सच्चाई से सहमत नहीं है, नेतनयाहू ने दुनिया के अनेक नेताओं से मुलाक़ात में अपने ईरान विरोधी तर्क में इस दन्तकथा को आधार बनाकर पेश किया।
इससे पहले रविवार को ईरानी संसद सभापति अली लारीजानी ने कहा कि नेतनयाहू ने इस्लाम से पहले के ईरान के इतिहास का ग़लत हवाला दिया और तथ्यों को उलट पलट दिया।
उन्होंने कहा, “ऐसा लगता है कि वह न तो इतिहास जानते हैं और न ही उन्होंने तौरैत पढ़ी है।”
ईरान की इस्लामी लोकतांत्रिक व्यवस्था को मिल रहे चौतरफ़ा समर्थन से तिलमिला उठा है अमरीका
ईरान की इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनई ने विशेषज्ञ एसेंबली के सदस्यों मुलाक़ात में कहा कि अंतर्राष्ट्रीय साम्राज्यवाद और अत्याचार से मुक़ाबला तथा ईमान रखने वालों पर अपना वर्चस्व जताने की नास्तिकों की कोशिशों पर अंकुश इस्लामी लोकतांत्रिक व्यवस्था के अनिवार्य आयाम हैं।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने गुरुवार को होने वाली इस मुलाक़ात में कहा कि ईरान में शुद्ध इस्लाम के लागू होने होने के नतीजों में बड़ी शक्तियों पर निर्भरता से देश की मुक्ति तथा इन ताक़तों के लिए ईरान के दुरुपयोग का रास्ता बंद हो जाना है। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने ईरान से विश्व की विस्तारवादी शक्तियों की दुशमनी का हवाला देते हुए कहा कि अमरीका और ज़ायोनी शासन की दुशमनी बहुत भीषण और व्यवहारिक रूप में नज़र आने वाली है लेकिन शक्तियां एसी हैं जो ज़बान और व्यवहार से अपनी दुशमनी इस तरह ज़ाहिर नहीं करते।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने अपने भाषण में कहा कि संस्कृति के मैदान में व्यापक मगर ख़ामोश हमला और आर्थिक दबाव दुशमन मोर्चे की गतिविधियों और योजनाओं का केन्द्रीय बिंदु है। उन्होंने कहा कि उनका लक्ष्य जनता को ईरान की इस्लामी लोकतांत्रिक व्यवस्था से निराश करना है।
आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनई का कहना था कि दुशमनों की साज़िशों और योजनाओं को विफल बनाने का बुनियादी रास्ता तर्क पर आधारित मज़बूत और आक्रमक मुक़ाबला है। उन्होंने कहा कि मानवाधिकार, आतंकवाद और युद्ध अपराध सहित हर मामले में पश्चिम के मुक़ाबले में आक्रामक रुख़ अपनाने की ज़रूरत है।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने ईरान में होने वाले चुनावों के बारे में अमरीका की हालिया टिप्पणी को ख़ारिज करते हुए कहा कि अमरीका जो क्षेत्र की सबसे दुष्ट और सबसे अमानवीय सरकार से सहयोग कर रहा है और जिसने अपने हालिया चुनावों में भारी निर्लज्जता दिखाई, वह ईरानी जनता के चुनावों पर उंगली उठा रहा है!
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहि उज़्मा ख़ामेनई ने दुनिया और विशेष रूप से पश्चिमी एशिया में इस्लामी गणतंत्र ईरान के रणनैतिक प्रभाव को हालिया चार दशकों की बहुत बड़ी उपलब्धि बताया और कहा कि ईरान के बढ़ते हुए प्रभाव और इस्लामी व्यवस्था के लिए राष्ट्रों की ओर से बढ़ते समर्थन के कारण अमरीका तिलमिलाया हुआ है।
ज्ञात रहे कि गुरुवार को विशेषज्ञ एसेंबली ने अपनी बैठक समाप्त होने के बाद इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता से मुलाक़ात की।