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लिबरमैन: हम दुनिया में इज़राइल के बढ़ते राजनीतिक पतन के गवाह हैं
जायोनी शासन में "इज़राइल बेतेनू" पार्टी के नेता अविगडोर लिबरमैन ने मंगलवार रात कहा कि 7 अक्टूबर की नाकामी का ज़िम्मेदार वही है जो दुनिया में इज़राइल के बढ़ते राजनीतिक पतन के लिए ज़िम्मेदार है।
अविगडोर लिगरमैन ने ज़ोर देकर कहा कि प्रधानमंत्री बेन्यामीन नेतन्याहू के विध्वंसक कामों की वजह से जायोनी शासन का राजनीतिक पतन तेज़ी से हो रहा है। उन्होंने कहा, "अब अधिक देश फिलिस्तीन नामक एक देश को मान्यता देने पर विचार कर रहे हैं।"
इस्राइली नेता ने बताया कि ब्रिटेन सहित कई देश फिलिस्तीन को मान्यता देने की योजना बना रहे हैं। उन्होंने कहा, "ब्रिटेन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का एक प्रमुख सदस्य है, और वह फिलिस्तीन को मान्यता देना चाहता है।"
लिबरमैन के ये बयान ऐसे समय में आए हैं जब कई विशेषज्ञ, खासकर पश्चिमी, इज़राइल की आंतरिक अराजकता का हवाला देते हुए "नेतन्याहू युग के अंत की शुरुआत" और "मक़बूज़ा क्षेत्रों में अभूतपूर्व विभाजन" की बात कर रहे हैं।
इसी संदर्भ में, लंदन के अखबार द गार्जियन ने अपने नए संस्करण में लिखा: "इज़राइल के लिए असली खतरा बाहरी धमकियां नहीं, बल्कि घरेलू मोर्चे पर थकान और मोहभंग है।"
प्रकाशित रिपोर्टों और विश्लेषकों की राय से पता चलता है कि ईरान पर हालिया आक्रमण के बाद इज़राइल की सबसे बड़ी विफलता न केवल वैश्विक स्तर पर सैन्य और राजनयिक नुकसान है, बल्कि आंतरिक एकता का टूटना, अविश्वास और अधिकृत क्षेत्रों के भीतर राजनीतिक उथल-पुथल भी है।
इसी कड़ी में, हिब्रू अखबार कालकलीत ने बताया कि ईरानी मिसाइल हमलों से क्षतिग्रस्त क्षेत्रों के पुनर्निर्माण के लिए नेतन्याहू सरकार की योजना विफल हो गई है। अखबार ने लिखा: "इस्राइली शासन की अंतिम रिपोर्ट का सार यह है कि यह योजना आगे नहीं बढ़ेगी।"
अख़बार ने आगे कहा कि इसका मतलब यह है कि प्रभावित इज़राइली बस्तीवासियों के पास अब कोई विकल्प नहीं है, और सरकार की ओर से सहायता की अनिश्चितता के कारण वे मुश्किल में फंस गए हैं।
23 जून 2025 को जायोनी शासन द्वारा ईरान पर हमला किए जाने के बाद, जिसमें सैन्य और असैन्य स्थलों को निशाना बनाया गया और कई कमांडरों, आम नागरिकों और परमाणु वैज्ञानिकों को शहीद किया गया, ईरान ने "वादा-ए-सादिक 3" ऑपरेशन शुरू किया और अधिकृत क्षेत्रों पर सफलतापूर्वक मिसाइल हमले किए, जिससे जायोनियों को भारी नुकसान हुआ।
ब्राज़ील ने गाज़ा में नरसंहार के लिए इज़राइल पर प्रतिबंध लगा दिया
हम इज़राईली अपराधों के खिलाफ चुप नहीं रह सकते ब्राज़ील ने ज़ायोनी सरकार को हथियारों का निर्यात निलंबित करने और दक्षिण अफ्रीका के मामले का समर्थन करने की घोषणा की हैं।
ब्राज़ील ने फिलिस्तीन के गाजा क्षेत्र में जारी ज़ायोनी अपराधों और नरसंहार को देखते हुए इज़राइल पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है।
विवरण के अनुसार, ब्राज़ील के विदेश मंत्री मौरो वियेरा ने कहा कि उनका देश इज़राइल द्वारा गाजा में किए जा रहे अत्याचारों के प्रति चुप नहीं रह सकता।
वियेरा के अनुसार, इन प्रतिबंधों में ब्राज़ील से इज़राइल को युद्ध सामग्री के निर्यात को निलंबित करना शामिल है, जो यह संकेत देता है कि ब्राज़ील अपनी नैतिक और मानवीय जिम्मेदारियों को गंभीरता से ले रहा है।
मौरो वियेरा ने यह भी स्पष्ट किया कि ब्राज़ील उन सभी उत्पादों की सख्त जाँच करेगा जो अवैध रूप से कब्ज़ाए गए वेस्ट बैंक की ज़ायोनी बस्तियों से आयात किए जाते हैं, ताकि मानवाधिकारों और अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करने वाले उत्पादों की आपूर्ति को रोका जा सके।
उन्होंने आगे कहा कि ब्राज़ील आधिकारिक तौर पर दक्षिण अफ्रीका द्वारा अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में इज़राइल के खिलाफ नरसंहार के मामले का समर्थन करता है।
नहजुल बलाग़ा को जीवन का हिस्सा बनाएं
उन्होंने कहा कि एक हज़ार साल से शिया समाज में यह भ्रम फैला हुआ है कि नहजुल बलाग़ा एक कठिन किताब है जबकि वास्तविकता यह है कि यह एक सरल और आसान किताब है यहाँ तक कि प्राथमिक स्तर के बच्चे भी इससे लाभ उठा सकते हैं।
नहजुल बलाग़ा वैश्विक मुहिम के प्रमुख हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन हमीदरेज़ा महदवी अरफ़ा ने ईरान के शहर कुरद में आयोजित एक प्रशिक्षण सत्र को संबोधित करते हुए कहा कि नहजुल बलाग़ा पवित्र कुरआन की सर्वश्रेष्ठ व्याख्या और इस्लामी ज्ञान का खजाना है, और इसे आम लोगों के लिए सुलभ बनाने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि एक हज़ार साल से शिया समाज में यह भ्रम फैला हुआ है कि नहजुल बलाग़ा एक कठिन किताब है, जबकि वास्तविकता यह है कि यह एक सरल और आसान किताब है, यहाँ तक कि प्राथमिक स्तर के बच्चे भी इससे लाभ उठा सकते हैं।
हुज्जतुल इस्लाम महदवी अरफ़ा ने जोर देकर कहा कि इस भ्रम को दूर करने के लिए अनुवाद से शुरुआत की जाए, रोज़ाना सिर्फ 10 मिनट का अध्ययन किया जाए, किताब को अंत से शुरू किया जाए, और शुरुआत में सिर्फ सहज पठन पर ही ध्यान दिया जाए।
अंत में उन्होंने कहा कि यदि हम प्रचार के सिद्धांतों के साथ आगे बढ़ें, तो नहजुल बलाग़ा इंसान की बौद्धिक जीवन में पहली प्राथमिकता बन सकता है।
ईरानी सुप्रीम लीडर का अपमान और मीडिया की गिरती साख
क़ुम अल मुक़द्देसा मे रहने वाले भारतीय शिया धर्मगुरू, कुरआन और हदीस के रिसर्चर मौलाना सय्यद साजिद रज़वी से हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के पत्रकार ने ईरानी सुप्रीम लीडर का अपमान और मीडिया की गिरती साख से संबंधित विषय पर विशेष बातचीत की।
क़ुम अल मुक़द्देसा मे रहने वाले भारतीय शिया धर्मगुरू, कुरआन और हदीस के रिसर्चर मौलाना सय्यद साजिद रज़वी से हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के पत्रकार ने ईरानी सुप्रीम लीडर का अपमान और मीडिया की गिरती साख से संबंधित विषय पर विशेष बातचीत की। इस बात चीत को अपने प्रिय पाठको के लिए प्रस्तुत किया जा रहा हैः
हाल ही में कुछ मीडिया चैनलों ने रहबर-ए-मुअज़्ज़म के खिलाफ शर्मनाक और झूठे आरोप लगाये हैं। आप इसे किस नज़रिए से देखते हैं?
मौलाना साजिद रज़वीः ये एक सुनियोजित मीडिया हमला है। रहबर-ए-मुअज़्ज़म सिर्फ ईरान के ही नहीं, बल्कि पूरी उम्मत के एक मज़बूत, मुत्तक़ी और मुतफ़क्किर लीडर हैं। उन पर ऐसा आरोप लगाना, सिर्फ झूठ फैलाने की कोशिश नहीं, बल्कि एक सस्ती पब्लिसिटी और सच्चाई पर सीधा हमला है।
क्या आपको लगता है कि इस तरह की रिपोर्टिंग के पीछे कोई वैश्विक एजेंडा है?
मौलाना साजिद रज़वीः बिल्कुल। जब भी कोई मज़हबी लीडर मज़लूमों की आवाज़ बनता है चाहे वो फ़िलस्तीन हो या कोई दूसरा देश या व्यक्ति तो साम्राज्यवादी ताक़तें उन्हें बदनाम करने लगती हैं। रहबर की मुख़ालिफ़त दरअसल इस्लामी जागरूकता और इन्क़िलाब से दुश्मनी है।
क्या इस पर कोई क़ानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए?
मौलाना साजिद रज़वीः हां, ज़रूर। ये सिर्फ़ तौहीन नहीं, एक अवाम की भावनाओं के साथ खिलवाड़ है। ऐसे चैनलों पर ना सिर्फ़ शिकायत दर्ज होनी चाहिए, बल्कि उनकी साख की समीक्षा भी ज़रूरी है। मीडिया की आज़ादी, झूठ फैलाने की आज़ादी नहीं होती।
इंडिया टीवी की छवि पर इसका क्या असर पड़ा है?
मौलाना साजिद रज़वीः इंडिया टीवी ने पहले ही अपनी साख़ खो दी थी। लेकिन इस हरकत ने साफ़ कर दिया कि ये चैनल अब किसी एजेंडे का हिस्सा बन चुका है। अब लोगों को ख़ुद फ़ैसला करना है कि वो ज़िम्मेदार मीडिया देखना चाहते हैं या बिकाऊ एजेंडे।
आम मुसलमानों और हक़ पसंद लोगों को क्या करना चाहिए?
मौलाना साजिद रज़वीः क़ानूनी कार्रवाई के अलावा सबसे पहले ऐसे झूठे चैनलों का बहिष्कार करें। दूसरा, सोशल मीडिया पर शांति और अक़्लमंदी के साथ सच्चाई को फैलाएं। तीसरा, दुआ और जागरूकता यही सबसे बड़ा जवाब है ज़ुल्म पर।
क्या आप इस घटना को सिर्फ़ एक तौहीन मानते हैं या इससे आगे कुछ?
मौलाना साजिद रज़वीः ये तौहीन से बढ़कर है ये एक हक़ को दबाने की कोशिश है। ये हमला हर उस आवाज़ पर है जो मज़लूमों के साथ खड़ी होती है। लेकिन हक़ को दबाया नहीं जा सकता, रहबर की इज्ज़त उनके किरदार से है, मीडिया की नहीं।
हमारे शिया की पहचान पाँच चीजों से होती है, उनमें से एक है अरबईन की ज़ियारत
क़ुम अल मुक़द्देसा मे रहने वाले भारतीय शिया धर्मगुरू, कुरआन और हदीस के रिसर्चर मौलाना सय्यद साजिद रज़वी से हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के पत्रकार ने अरबईन हुसैनी से संबंधित विषय पर विशेष बातचीत की।
क़ुम अल मुक़द्देसा मे रहने वाले भारतीय शिया धर्मगुरू, कुरआन और हदीस के रिसर्चर मौलाना सय्यद साजिद रज़वी ने अरबईन हुसैनी से संबंधित विषय पर विशेष बातचीत की। इस बात चीत को अपने प्रिय पाठको के लिए प्रस्तुत किया जा रहा हैः
❖ अरबईन क्या है? इसे चेहलुम क्यों कहते हैं?
मौलाना साजिद रज़वीः अरबईन का मतलब होता है ‘चालीसवां दिन’। यह इमाम हुसैन (अ) और उनके वफादार साथियों की शहादत के चालीसवें दिन मनाया जाता है। कर्बला की जंग 10 मुहर्रम को हुई थी और उससे 40 दिन बाद 20 सफर को यह दिन आता है। यह केवल एक तारीख नहीं, बल्कि ज़ुल्म के खिलाफ़ आवाज़ और इंसाफ़ की जिंदा पहचान है।
अरबईन मनाने की शुरुआत कब और कैसे हुई?
मौलाना साजिद रज़वीः अरबईन की शुरुआत उस वक़्त हुई जब कर्बला से कैद होकर गए इमाम अली इब्न हुसैन (सैयदे सज्जाद) और बीबी ज़ैनब (स.) और आपका लुटा हुआ क़ाफ़ेला कैदखाना ए शाम से रेहा हुआ और ये लुटा हुआ क़ाफ़ेला 20 सफर को कर्बला पहुँचा। वहीं पर पहले ज़ायर हज़रत जाबिर इब्ने अब्दुल्लाह अंसारी भी कर्बला आए थे। यह दिन तब से इमाम हुसैन (अ.) की ज़ियारत और याद का मखसूस दिन बन गया।
अरबईन की फज़ीलत क्या है?
मौलाना साजिद रज़वीः इमाम हसन अस्करी (अ.) से रिवायत है:
"हमारे शिया की पहचान पाँच चीजों से होती है, उनमें से एक है अरबईन की ज़ियारत।"
(मिस्बाहुल मुतहज्जिद, शेख तूसी)
अरबईन इमाम हुसैन (अ.) की कुर्बानी की दुनिया भर में याद है, जो ज़ुल्म, नाइंसाफी और बर्बरता के खिलाफ खड़ा होने की ताक़त देती है।
क्या अरबईन की पैदल ज़ियारत का कोई इतिहास भी है या ये हाल की शुरू की गई रस्म है?
मौलाना साजिद रज़वीः अरबईन की पैदल ज़ियारत का सिलसिला नया नहीं, बहुत पुराना है। इसकी जड़े जाबिर बिन अब्दुल्लाह अंसारी (र.अ.) तक जाती हैं, जो पहले ज़ायरीन में से हैं जिन्होंने 20 सफर को कर्बला में हाज़िरी दी।
हर दौर में मुख्तलिफ़ शक्लों में ये सिलसिला जारी रहा खामोशी से, मौत के साआए में या खुलकर।
आज जो हुजूम है, वो उसी सच्ची मुहब्बत का मुसलसल सफ़र है।
❖ अरबईन का पैग़ाम आज के इंसान के लिए क्या है?
मौलाना साजिद रज़वीः "ज़ालिम चाहे कितना भी ताक़तवर हो, आख़िर हारेगा; और हक़ हमेशा जीतेगा।"
यह सबक़ है हिम्मत, इंसाफ़, इख़लास, और बलिदान का।
यह बताता है कि चुप्पी भी ज़ुल्म का साथ है और अगर हुसैनी बनना है, तो आवाज़ उठानी होगी।
अरबईन कैसे मनाना चाहिए?
मौलाना साजिद रज़वीः अरबईन कोई रस्म नहीं यह इबादत है। इसे मनाने के सही तरीके हैं:
इमाम की याद में मजलिस करना
उनके पैग़ाम को समझना
पैदल ज़ियारत (अगर मुमकिन हो)
ग़रीबों की मदद
और सबसे अहम हुसैनी अख़लाक़ को अपनाना और अपने अंदर उतार लेना।
अरबईन का जहानी (अंतरराष्ट्रीय) पहलू क्या है?
मौलाना साजिद रज़वीः अरबईन अब एक ग्लोबल इवेंट है। हर साल 100 से ज्यादा देशों से लोग कर्बला आते हैं ईरान, भारत, पाकिस्तान, लेबनान, अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका, जापान और ऑस्ट्रेलिया तक से। यह यात्रा बताती है कि इमाम हुसैन (अ.) का पैग़ाम सिर्फ़ एक क़ौम नहीं, पूरी इंसानियत के लिए है।
क्या दूसरे धर्मों के लोग भी अरबईन में शामिल होते हैं?
मौलाना साजिद रज़वीः जी हाँ। हिंदू, ईसाई, सिख, जैन और यहां तक कि नास्तिक (atheists) लोग भी अरबईन में शरीक होते हैं।
हिंदू इमाम हुसैन (अ.) को धर्म की रक्षा के लिए बलिदान देने वाला मानते हैं।
ईसाई उन्हें "Jesus-like sacrifice" का प्रतीक समझते हैं।
अरबईन मज़हबी सीमाओं को पार कर इंसानियत के इत्तेहाद की आवाज़ है।
अरबईन में शरीक होने वालों के क्या तास्सुरात होते हैं?
मौलाना साजिद रज़वीः बहुत सारे अरबईन से लौटने वाले कहते हैं:
"हमने अपने अंदर सब कुछ बदलते हुए महसूस किया"
"यह सफर नहीं, एक रूहानी क्रांति थी"
"इमाम हुसैन (अ.) की याद ने हमारी ज़िंदगी का मक़सद बदल दिया"
अरबईन का असर दिलों पर ऐसा होता है कि हर ज़ायर हक़ और इंसाफ़ का पैरोकार बनकर लौटता है।
सद्दाम हुसैन के दौर में और आज के अरबईन में क्या फर्क है?
मौलाना साजिद रज़वीः सद्दाम के दौर में ज़ियारत-ए-हुसैन (अ.) एक जुर्म थी। पैदल चलना तो दूर, कर्बला जाना भी मौत को दावत देना था। फ़ौजी पहरे, गिरफ़्तारियाँ और सज़ा-ए-मौत तक का ख़तरा हर मोड़ पर होता था। लेकिन इश्क़-ए-हुसैन (अ.) के दीवाने तब भी किसी तरह, जान हथेली पर रखकर ज़ियारत करते थे।
आज वही इराक़ अरबईन का मर्कज़ है। हर साल करोड़ों ज़ायरीन दुनिया भर से कर्बला पहुंचते हैं। और इराक़ी अवाम की मेहमाननवाज़ी ऐसा एहसास देती है कि जैसे जन्नत ज़मीन पर उतर आई हो। कोई खाना पेश करता है, कोई पानी, कोई ज़ायरीन के पाँव दबाता है। हर सेवा एक इबादत बन चुकी है।
जो ज़ियारत कल खामोशी से होती थी, आज "लब्बैक या हुसैन" की गूंज के साथ खुलेआम होती है। यह है हुसैनी पैग़ाम की ताक़त जो हर दौर की बंदिशों को तोड़ती चली आई है
हम कभी धोंस, धमकी ज़ोर और ज़बरदस्ती की भाषा को नही मानते
ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराक्ची ने कहा है कि अगर ईरान पर दोबारा हमला हुआ तो हम कड़ा, स्पष्ट और निर्णायक जवाब देंगे। अगर आक्रमण दोहराया गया तो ऐसा जवाब दिया जाएगा जिसे छिपाना संभव नहीं होगा।
ईरानी विदेश मंत्री अब्बास अराक्ची ने कहा है कि ईरान अच्छी तरह जानता है कि हालिया अमेरिकी-इजरायल आक्रमण के दौरान हमें और हमारे विरोधियों को कितना नुकसान हुआ है। उन्होंने कहा: ईरान उस नुकसान से भी वाकिफ है जिसे अब तक छिपाया जा रहा है। अगर दुनिया को ईरानी परमाणु कार्यक्रम पर संदेह है, तो उसे समझना चाहिए कि समस्या का समाधान केवल बातचीत से ही निकल सकता है। हम कभी भी धमकी, डराने या जबरदस्ती की भाषा स्वीकार नहीं करते।
ईरानी विदेश मंत्री ने कहा: तेहरान अनुसंधान रिएक्टर 20 प्रतिशत संवर्धित यूरेनियम पर काम कर रहा है, तेहरान परमाणु अनुसंधान रिएक्टर प्रतिदिन 10 लाख से ज़्यादा मरीज़ों को चिकित्सा रेडियोआइसोटोप प्रदान करता है, हमें अपने नए परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के लिए यूरेनियम संवर्द्धन की आवश्यकता है, हमने बार-बार कहा है कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम का कोई सैन्य समाधान संभव नहीं है।
गौरतलब है कि अब्बास अराक़ची के बयान से कुछ घंटे पहले, अमेरिकी राष्ट्रपति ने स्कॉटलैंड में ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टारमर से मुलाकात के बाद मीडिया से बात करते हुए कहा था कि ईरान की ओर से कोई अच्छे संकेत नहीं मिल रहे हैं और अगर ईरान ने फिर से परमाणु क्षमता हासिल करने की कोशिश की, तो वह ईरान पर फिर से हमला करेंगे।
हड्डियों का ढांचा बच्चे, पश्चिम अब भी ग़ज़ा के बच्चों के हत्यारों का समर्थन कर रहा है
फिलिस्तीन के ग़ज़ा पट्टी के सरकारी स्रोतों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने चेतावनी दी है कि ग़ज़ा में सीमित मात्रा में सहायता पहुँचाना इज़राइल का एक मीडिया प्रोपेगैंडा है। उन्होंने बताया कि ग़ज़ा पट्टी में 40,000 नवजात शिशु कुपोषण के कारण मौत के ख़तरे में हैं और भूख से 14 नई मौतें दर्ज की गई हैं।
जबकि ग़ज़ा में भुखमरी और अकाल का संकट चरम पर है, और भूख से मासूमों ख़ासकर बच्चों की मौत एक आम घटना बन गई है, वहीं ज़ायोनी शक्तियाँ सहायता के प्रवेश को लेकर झूठा प्रचार करके अपने अपराधों को छिपाने और वैश्विक जनमत को गुमराह करने की कोशिश कर रही हैं। फ़िलिस्तीन के ग़ज़ापट्टी में स्वास्थ्य मंत्रालय के महानिदेशक "मुनीर अल-बरश" ने कहा कि ज़मीनी मार्गों से या हवाई सहायता पहुँचाने की ख़बरें महज़ मीडिया प्रचार हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह की सहायता, अगर दी भी जाए, तो भी ग़ज़ा में भुखमरी के संकट को हल करने में कोई मदद नहीं करेगी।
ग़ज़ा में भूखे डॉक्टरों की दर्दनाक स्थिति
फिलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय के महानिदेशक मुनीर अल-बरश ने बताया कि ग़ज़ा में डॉक्टरों के पास भी खाने को कुछ नहीं है, और ज़ायोनी शासन द्वारा थोपे गए इस युद्ध के कारण फैली भुखमरी में उनका शरीर धीरे-धीरे ख़त्म हो रहा है।
अल-बरश ने आगे कहा, "सर्जन ऑपरेशन के दौरान ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रहे हैं, और चिकित्सा कर्मचारियों की याददाश्त भी भूख के कारण लुप्त हो रही है। यहाँ की मानवीय स्थिति वर्णन से परे है। हर तरफ़ अकाल फैला हुआ है, बच्चे भूख से तड़प रहे हैं, और माताएँ मलबे के ढेर के बीच बेहोश हो रही हैं।"
ग़ज़ा पट्टी में फिलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय के महानिदेशक ने ज़ायोनी शासन द्वारा मानवीय युद्धविराम के दावों पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा, "जब तक यह युद्धविराम लोगों की जान बचाने का एक वास्तविक अवसर नहीं बन जाता, तब तक इसका कोई फ़ायदा नहीं होगा।"
ग़ज़ा के बच्चे सिर्फ़ हड्डियों का ढांचा रह गए हैं
ग़ज़ापट्टी के दक्षिण में स्थित "नासिर मेडिकल कॉम्प्लेक्स" के बाल रोग विभाग के प्रमुख अहमद अल-फ़र्रा ने चेतावनी दी है कि अगर जल्द ही ग़ज़ा में भोजन और दूध नहीं पहुँचाया गया, तो इस इलाक़े में, ख़ासकर बच्चों में, भूख से होने वाली मौतों की संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ जाएगी।
अल-फ़र्रा ने बताया, लगभग दस लाख बच्चे भूख और कुपोषण का शिकार हैं। नासिर मेडिकल कॉम्प्लेक्स के पोषण विभाग में इन बच्चों का शरीर सिर्फ़ हड्डियों और खाल का ढांचा रह गया है,मांसपेशियाँ और चर्बी का नामोनिशान तक नहीं बचा।
उन्होंने स्पष्ट किया कि ग़ज़ा पट्टी के दक्षिणी "ख़ान यूनिस" प्रांत में रहने वाले दस लाख नागरिकों में से अधिकांश किसी न किसी स्तर के कुपोषण से पीड़ित हैं, लेकिन सबसे नए और चिंताजनक मामले दूध की कमी के कारण बच्चों और शिशुओं के कुपोषण के हैं।
ग़ज़ा के 40 हज़ार शिशु स्लो मौत के मुँह में
फिलिस्तीनी सरकार के ग़ज़ा स्थित प्रेस कार्यालय ने एक बयान जारी कर बताया कि ज़ायोनी शासन द्वारा बच्चों के दूध पर प्रतिबंध लगाए जाने के कारण हज़ारों शिशु मौत के कगार पर हैं।
बयान के अनुसार, पिछले 150 दिनों से ज़ायोनी शासन ने ग़ज़ा में दूध सहित किसी भी प्रकार के खाद्य पदार्थों के प्रवेश पर रोक लगा रखी है, जो नरसंहार के अपराधों की श्रेणी में आता है। इस घुटन भरी और जघन्य नाकाबंदी के कारण ग़ज़ा में 40 हज़ार से अधिक एक साल से कम उम्र के शिशु धीरे-धीरे मौत की ओर बढ़ रहे हैं।
इज़राइल का ग़ज़ा में 'सहायता पहुँचाने' का दावा एक झूठा नाटक है
ग़ज़ा पट्टी में गैर-सरकारी संगठनों के नेटवर्क के प्रमुख "अमजद शुवा" ने कहा कि इज़राइल का ग़ज़ा में सहायता पहुँचाने का दावा महज़ प्रचार है, वास्तव में पहुँचने वाली सहायता लगभग न के बराबर है।
शुवा ने ज़ोर देकर कहा, "मानवीय ज़रूरतें केवल नाकाबंदी हटाकर और सीमा चौकियों को खोलकर ही पूरी की जा सकती हैं, मीडिया प्रोपेगैंडा से नहीं।"
ग़ज़ा में बच्चे सबसे ज़्यादा पीड़ित हैं
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) ने कहा है कि ग़ज़ा पट्टी में हर कोई भूखा है, लेकिन सबसे ज़्यादा पीड़ित बच्चे हो रहे हैं।
यूनिसेफ ने बताया, "ग़ज़ा के छोटे बच्चे स्कूल जाने और खेलने की उम्र में खाने की तलाश में ख़तरनाक जगहों पर भटक रहे हैं और अपनी जान जोखिम में डाल रहे हैं।"
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी चेतावनी दी है कि ग़ज़ा में कुपोषण ख़तरनाक स्तर पर पहुँच गया है और भूख से होने वाली मौतों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
हवाई सहायता ग़ज़ा पर थोपे गए जानबूझकर भुखमरी की भरपाई नहीं कर सकती
संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवीय मामलों के उप महासचिव "टॉम व्हाइटचर" ने कहा कि ग़ज़ा पट्टी की स्थिति न केवल सैन्य अभियानों के निलंबन, बल्कि एक स्थायी युद्धविराम की माँग करती है।
इस बीच, ग़ज़ा में हवाई मार्ग से सहायता पहुँचाने का ज़ायोनी शासन का ढोंगपूर्ण प्रदर्शन अंतरराष्ट्रीय संगठनों की तीखी प्रतिक्रिया का सामना कर रहा है।
यूरोप-मध्यस्थ मानवाधिकार वॉच ने कहा है कि "ग़ज़ा में महीनों की भीषण भुखमरी के बाद हवाई सहायता का कोई मतलब नहीं है। इज़राइल अब भी नागरिकों के ख़िलाफ़ हथियार के रूप में भूख का इस्तेमाल कर रहा है।"
अंतरराष्ट्रीय राहत संस्था ऑक्सफैम ने भी ज़ोर देकर कहा कि "इज़राइल द्वारा हवाई मार्ग से भेजी गई सहायता ग़ज़ा के लोगों पर थोपे गए महीनों के जानबूझकर किए गए अकाल की भरपाई नहीं कर सकती।"
सुप्रीम लीडर का अपमान करना ख़ून के प्यासे, अत्याचारी और हड़पने वाले ज़ायोनीवादियों का एजेंट होने का प्रमाण है
मदरसा जाफ़रिया के प्रधानाचार्य, ज़हरा एजुकेशनल एंड वेलफेयर सोसाइटी, कोपागंज, उत्तर प्रदेश के संस्थापक और प्रबंधक,मौलाना शमशीर अली मुख्तारी ने शिया जगत के धार्मिक नेता, मरजा तक़लीद, दुनिया के उत्पीड़ितों के सच्चे हमदर्द और मानवता की दुनिया के सर्वश्रेष्ठ और सबसे ईमानदार नेता, हज़रत आयतुल्लाह सय्यद अली ख़ामेनेई के प्रति गोदी मीडिया की धृष्टता पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है और कहा है कि यह धृष्टता ख़ून के प्यासे, अत्याचारी और हड़पने वाले ज़ायोनीवादियों का एजेंट होने के समान है।
मदरसा जाफ़रिया के प्रधानाचार्य, ज़हरा एजुकेशनल एंड वेलफेयर सोसाइटी कोपागंज एमओयू यूपी के संस्थापक और प्रबंधक मौलाना शमशीर अली मुख्तारी ने शिया जगत के धर्मगुरु, मरजा तक़लीद, दुनिया के मज़लूमों के दिल दहला देने वाले हमदर्द और मानवता के सबसे बेहतरीन और सच्चे नेता हज़रत आयतुल्लाह सैय्यद अली ख़ामेनेई के ख़िलाफ़ गोदी मीडिया द्वारा किए गए अपमान पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है और कहा है कि यह अपमान ख़ून के प्यासे, अत्याचारी और हड़पने वाले ज़ायोनियों का एजेंट होने के समान है।
उन्होंने आगे कहा कि जैसा कि सभी जानते हैं, ईरान पर इज़राइल के क्रूर हमले के दौरान, हमारे प्यारे देश भारत के कुछ समाचार चैनलों ने ईरान और विशेष रूप से हमारे धर्मगुरु अयातुल्ला ख़ामेनेई (ईश्वर उनकी रक्षा करे) के ख़िलाफ़ कई निराधार खबरें प्रसारित की थीं। हालाँकि, दो दिन पहले, मानवीय नैतिकता और सभ्यता की सभी सीमाओं को पार करते हुए, इंडिया टीवी चैनल ने मोसाद का अनुसरण करते हुए, इज़राइल और कुछ शिया दुश्मन देशों और आतंकवादी संगठनों को खुश करने के लिए, एक ऐसे व्यक्ति के बारे में कहा जो राष्ट्र और राष्ट्र के लिए लगभग 18/20/(अठारह से बीस) घंटे पूजा, शिक्षण और कल्याण कार्यों में बिताता है, अर्थात हमारे धार्मिक नेता (धार्मिक गुरु) अयातुल्ला सैय्यद अली खामेनेई, कि वह नशे में धुत होकर दिन भर सोता रहता है। ईश्वर उन लोगों को धिक्कार दे जो किसी पर भी निंदा, बदनामी और आरोप लगाते हैं।
उन्होंने आगे कहा कि इंडिया टीवी चैनल और हिंदुस्तान टाइम्स द्वारा इस तरह की शर्मनाक निराधार खबरों के प्रसारण से हमारे प्यारे देश भारत में रहने वाले छह (6) करोड़ से अधिक शियाओं, शिया सज्जनों और हुसैनी विचारधारा वाले और दुनिया भर के सभी न्यायप्रिय लोगों के दिलों को ठेस पहुँची है। इसलिए, इस वक्तव्य और लेख के माध्यम से हम अपने देश के नेताओं और विशेष रूप से सूचना और प्रसारण मंत्री से अनुरोध करते हैं कि वे किसी को भी पूर्वाग्रह और शत्रुता पर आधारित विदेशी निराधार समाचार प्रसारित करके या बिना किसी कारण के किसी भी अन्य माध्यम से किसी भी भारतीय के खिलाफ चोट पहुंचाने या नफरत फैलाने की अनुमति न दें।
शिया उलेमा असेंबली इंडिया ने इंडिया टीवी के दुसाहस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की
शिया उलेमा असेंबली इंडिया ने एक बयान में, इस्लामी क्रांति के नेता हज़रतआयतुल्लाह ख़ामेनेई के ख़िलाफ़ तथाकथित इंडिया टीवी, गोदी मीडिया और हिंदुस्तान टाइम्स द्वारा किए गए दुसाहस पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है और कहा है कि इस्लामी क्रांति के नेता; सोए हुए राष्ट्रों के जागरण, साहस और हिम्मत के प्रतीक हैं।
शिया उलेमा असेंबली इंडिया के बयान का मूल पाठ इस प्रकार है।
बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्राहीम
कट्टरपंथी और विभाजनकारी मीडिया, विशेषकर हिंदुस्तान टाइम्स और इंडिया टीवी चैनल, ने पश्चिमी और उपनिवेशवादी मीडिया के निराधार और मनगढ़ंत प्रचार के माध्यम से, सत्य और ईश्वर के प्रतीक शियो और क्रांति के सर्वोच्च नेता, आयतुल्लाह सय्यद अली हुसैनी ख़ामेनेई (म ज़) के सम्मान का अपमान किया है। उन्होंने जो लहजा और तेवर अपनाया है, उससे न केवल शिया राष्ट्र को, बल्कि दुनिया भर के उत्पीड़ित, न्यायप्रिय और कर्तव्यनिष्ठ लोगों को भी बहुत पीड़ा हुई है।
सर्वोच्च नेता सो नहीं रहे हैं, बल्कि उनका एकमात्र अपराध यह है कि उन्होंने उपनिवेशवादी षड्यंत्रों के शिकार उत्पीड़ित और सोए हुए राष्ट्रों को जगाया है और उनमें इतना साहस और हिम्मत भर दी है कि वे राष्ट्र, भयभीत होने के बजाय, दुनिया के पूर्व और पश्चिम में इन शक्तियों को चुनौती दे रहे हैं। जागृति का यह सिलसिला दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है, जिससे अत्याचारियों की नींद हराम हो गई है और पराजित तत्व अपनी बदनामी से ध्यान भटकाने के लिए चरित्र हनन पर उतर आए हैं।
मीडिया का कर्तव्य तथ्यों को प्रस्तुत करना और सदियों पुराने ऐतिहासिक व सांस्कृतिक संबंधों व साझी सभ्यता को बढ़ावा देना है, न कि उपद्रव भड़काना और नफ़रत फैलाना; अगर यही सिलसिला चलता रहा, तो गोदी मीडिया जल्द ही अपनी बची-खुची गरिमा भी अपने हाथों खो देगा।
शिया उलेमा असेंबली इस अत्यंत घृणित कृत्य की कड़ी निंदा करती है और माँग करती है कि ऐसी सामग्री को तुरंत हटाया जाए, अन्यथा हमें कानूनी कार्रवाई करने के लिए बाध्य होना पड़ेगा।
सभी न्यायप्रिय और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्तियों, विशेषकर विद्वानों, राष्ट्र की प्रमुख हस्तियों, संस्थाओं, संघों, विशेषकर शोक सभाओं से अनुरोध है कि वे इस संबंध में निंदा वक्तव्य जारी करें और यदि आवश्यक हो, तो कानूनी कार्रवाई करें, ताकि उपद्रवियों का मनोबल कम किया जा सके।
वस सलामो अलैकुम, व रहमतुल्लाह व बरकातुहु
सय्यद जवाद हैदर; शिया उलेमा असेंबली हिंदुस्तान
यूरेनियम संवर्धन और मानवाधिकार बहाने हैं, अपराधी अमेरिका ईरानी क़ौम के दीन और दानिश का मुख़ालिफ़ है
ज़ायोनी शासन द्वारा ईरानी राष्ट्र पर थोपे गए हाल के बारह दिवसीय युद्ध के शहीदों के चेहलुम के अवसर पर, इस्लामी क्रांति के नेता द्वारा मंगलवार, 29 जुलाई, 2025 को इन शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें शहीदों के परिवार, कुछ नागरिक और सैन्य अधिकारी, और आम वर्ग के लोग शामिल हुए।
ज़ायोनी शासन द्वारा ईरानी राष्ट्र पर थोपे गए हाल के बारह दिवसीय युद्ध के शहीदों के चेहलुम के अवसर पर, इस्लामी क्रांति के नेता द्वारा मंगलवार, 29 जुलाई, 2025 को इन शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया गया, जिसमें शहीदों के परिवार, कुछ नागरिक और सैन्य अधिकारी, और आम वर्ग के लोग शामिल हुए।
इस कार्यक्रम में, इस्लामी क्रांति के नेता, आयतुल्लाह सय्यद अली ख़ामेनेई ने अपने संक्षिप्त भाषण में, इस युद्ध को इस्लामी गणतंत्र ईरान के दृढ़ संकल्प और शक्ति तथा उसकी नींव की अद्वितीय शक्ति को दुनिया के सामने उजागर करने का कारण बताया। इस बात पर ज़ोर देते हुए कि ईरान के प्रति उसके शत्रुओं की शत्रुता और विरोध का असली कारण ईरानी राष्ट्र का विश्वास, ज्ञान और एकता है, उन्होंने कहा कि अल्लाह की कृपा से, हमारा राष्ट्र विश्वास को मज़बूत करने और विभिन्न विज्ञानों को बढ़ावा देने के मार्ग को नहीं छोड़ेगा, और दुश्मन की इच्छाओं के विपरीत, हम ईरान को प्रगति और गौरव के शिखर पर पहुँचाते रहेंगे।
उन्होंने एक बार फिर इस युद्ध में शहीद हुए सैन्य जनरलों, वैज्ञानिकों के परिजनों और प्रिय लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए कहा कि ईरानी राष्ट्र ने इस बारह दिवसीय युद्ध में प्राप्त महान उपलब्धियों के अलावा, जिन्हें आज दुनिया पहचान रही है, अपनी शक्ति, दृढ़ता, दृढ़ संकल्प और ऊर्जा को भी दुनिया के सामने इस तरह प्रस्तुत किया कि सभी ने इस्लामी गणराज्य की शक्ति को करीब से महसूस किया।
इस्लामी क्रान्ति के नेता ने इस्लामी गणतंत्र ईरान के स्तंभों की अभूतपूर्व मज़बूती को हालिया युद्ध का एक और गौरव बताया और कहा कि ऐसी घटनाएँ हमारे लिए नई नहीं हैं और पिछले 46 वर्षों में, आठ साल के थोपे गए युद्ध के अलावा, इस्लामी गणतंत्र ने बार-बार विद्रोहों, विभिन्न सैन्य, राजनीतिक और सुरक्षा विद्रोहों और राष्ट्र के विरुद्ध कुछ कमज़ोर इरादों वाले व्यक्तियों की कार्रवाइयों का सामना किया है और दुश्मन की सभी साज़िशों को विफल किया है।
उन्होंने कहा कि इस्लामी गणतंत्र की नींव दो स्तंभों, धर्म और ज्ञान पर टिकी है, और जनता और युवाओं ने इन दो स्तंभों के सहारे दुश्मन को विभिन्न क्षेत्रों में पीछे हटने पर मजबूर किया है और आगे भी करते रहेंगे।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा कि विश्व साम्राज्यवादियों, जिनमें अमेरिका मुख्य अपराधी है, द्वारा इस्लामी गणतंत्र ईरान के विरोध का असली कारण कुरान और इस्लाम, धर्म और विज्ञान के झंडे तले ईरानियों की एकता है। परमाणु मुद्दे, यूरेनियम संवर्धन और मानवाधिकार आदि के नाम पर जो कुछ प्रस्तुत किया जा रहा है, वह एक बहाना है। उनके गुस्से और विरोध का असली कारण एक नई चीज़ का उदय और इस्लामी गणराज्य की ज्ञान, विज्ञान, मानविकी, प्रौद्योगिकी और धर्म के विभिन्न क्षेत्रों में क्षमताएँ हैं।
इस बात पर ज़ोर देते हुए कि ईरानी राष्ट्र अपने धर्म, ज्ञान और बुद्धि को नहीं छोड़ेगा, उन्होंने अल्लाह की मदद से कहा कि हम धर्म को मज़बूत करने और अपने विभिन्न विज्ञानों के प्रचार और प्रसार के मार्ग पर बड़े कदम उठाएँगे, और दुश्मन की इच्छाओं के विपरीत, हम ईरान को प्रगति और गौरव के शिखर पर पहुँचाएँगे।
इस कार्यक्रम में, कई क़ुरान तिलावत की गई, जिसके बाद हुज्जतुल इस्लाम रफ़ीई ने बोलते हुए नहजुल बलाग़ा के ख़ुतबे संख्या 182 का ज़िक्र किया और सिफ़्फ़ीन की लड़ाई के शहीदों की विशेषताओं को इंगित किया और कहा कि यही विशेषताएँ हाल ही में थोपे गए युद्ध के शहीदों में भी पाई जाती थी।













