رضوی

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जामियतुल ज़हेरा की प्रबंधक सैयदा ज़हेरा बोरकई ने एक समारोह में संबोधन करते हुए ईद-ए-ग़दीर को अहल-ए-बैत (अ.स.) के शिया मुसलमानों की गौरवशाली और गर्व करने योग्य विरासत बताया हैं।

जामिया अज़ ज़हेरा (स.अ.) की प्रबंधक ने कहा कि ईद-ए-ग़दीर हमें अहल-ए-बैत (अ.स.) की मोहब्बत के उस संदेश की याद दिलाती है, जो इंसान की नजात का एकमात्र साधन है उन्होंने कहा कि जामिया अज़-ज़हरा (स.अ.) का स्थापित होना अल्लाह की एक बड़ी नेमत है, जो अहल-ए-बैत (अ.स.) के चाहने वालों की तरबियत और विलायत के प्रचार का केंद्र है। 

सैय्यदा बोरकई ने कहा कि इस नेमत की शुक्रगुज़ारी का तकाज़ा है कि हम ख़ालिस नीयत के साथ अहल-ए-बैत (अ.स.) की सेवा में जुटे रहें उन्होंने अपने संबोधन में इख़लास हौसला और दीन की सेवा को कामयाबी की कुंजी बताया और कहा कि निराशा दरअस्ल दीनी अक़्दार की अहमियत को न समझने का नतीजा होता है। 

उन्होंने जोर देकर कहा कि जामिया अज़ज़हरा स.अ. से फ़ारिग़ होने वाली तालिबात (छात्राएँ) दुनिया के अलग-अलग मुल्कों में इल्मी, सामाजिक और सियासी मैदानों में उल्लेखनीय सेवाएँ अंजाम दे रही हैं उन्होंने रहबर-ए-मोअज़्ज़म इंक़िलाब-ए-इस्लामी (ईरान के सुप्रीम लीडर) का हवाला देते हुए कहा कि इमाम ख़ुमैनी (र.अ.) का यह महान इल्मी और दीनी इदारा आज भी अपनी बरकतों के साथ जारी है। 

अंत में, उन्होंने जामिया अज़-ज़हरा (स.अ.) के सभी कर्मचारियों को संस्था की तरक्की के लिए लगातार कोशिश करने की नसीहत की और कहा कि हर इदारे में चुनौतियाँ होती हैं, लेकिन जामिया अज़-ज़हरा (स.अ.) की कामयाबी उसकी विलायती बुनियादों में छुपी है।

 

 इज़राइली सेना ने यमन के तटीय शहर अलहुदैदाह पर हमला किया है।

यमनी चैनल अलमसीरा की रिपोर्ट के अनुसार, इज़राइली युद्धक विमानों और नौसेना ने अल-हुदैदाह को निशाना बनाया है। 

वहीं इज़राईली सेना ने भी इस ऑपरेशन की पुष्टि करते हुए कहा है कि जायोनी नौसेना ने यमन के पश्चिमी तट पर स्थित अल-हुदैदाह बंदरगाह में विशिष्ट लक्ष्यों पर हमला किया है। 

गौरतलब है कि पिछली रात जायोनी सरकार ने अल-हुदैदाह, अल-सलीफ और रास इस्सा बंदरगाहों पर हमले की घोषणा की थी। 

ये हमले यमन की सशस्त्र सेनाओं की उन कार्रवाइयों का जवाब हैं, जो फिलिस्तीनी जनता के समर्थन में इज़राइल के ख़िलाफ़ की जा रही हैं। इनमें लाल सागर में इज़राइली हितों पर बार-बार किए गए हमले शामिल हैं। 

इज़राइल के इन हमलों से क्षेत्र में तनाव और बढ़ गया है। आशंका जताई जा रही है कि अदन की खाड़ी, लाल सागर और बाब-अलमंदेब जलडमरूमध्य में तनाव किसी बड़े युद्ध का रूप ले सकता है।

 

ईरान की राष्ट्रीय सुरक्षा उच्च परिषद में मौजूद इमाम-ए-ज़माना अ.ज. के गुमनाम सिपाहियों की ओर से एक जटिल खुफिया ऑपरेशन की सफलता पर जारी बयान में कहा गया,अगर इज़राईल सरकार किसी भी तरह की आक्रामकता करती है तो उसके गुप्त परमाणु प्रतिष्ठानों को इस्लामी गणतंत्र ईरान के सशस्त्र बलों के लक्ष्यों में शामिल किया जाएगा और उन्हें तुरंत निशाना बनाया जाएगा।

ईरान की राष्ट्रीय सुरक्षा उच्च परिषद के बयान के एक हिस्से में कहा गया है,इस खुफिया सफलता और कीमती दस्तावेज़ों तक पहुँचना दुश्मनों के शोर शराबे के मुकाबले में इस्लामी व्यवस्था की शांत, बुद्धिमान और समझदारी भरी योजना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

उन्होंने आगे कहा,इसका दूसरा महत्वपूर्ण पहलू यह है कि सियोनिस्ट कब्ज़ाकर सरकार और उसके समर्थकों की कमजोरियों और ताकतों को ध्यान में रखते हुए सशस्त्र बलों की रात-दिन की निस्वार्थ और जिहादी कोशिशों के ज़रिए प्रभावी ऑपरेशनल क्षमता हासिल की गई है।

ईरान की राष्ट्रीय सुरक्षा उच्च परिषद के बयान में आगे कहा गया, आज इन खुफिया दस्तावेज़ों तक पहुँच और ऑपरेशन की सफलता ने इस्लामी मुजाहिदीन को इस काबिल बना दिया है कि अगर सियोनिस्ट सरकार ईरानी परमाणु स्थलों पर किसी भी संभावित हमले की कोशिश करती है तो उसके गुप्त परमाणु केंद्रों को तुरंत निशाना बनाया जा सकेगा। साथ ही, किसी भी आर्थिक या सैन्य शरारत का जवाब भी उसकी आक्रामकता के अनुरूप ही दिया जाएगा।

ईरान ने साफ़ किया है कि अगर इजरायल कोई आक्रामक कार्रवाई करता है, तो उसके गुप्त परमाणु साइट्स ईरानी सेना के निशाने पर होंगे।   ईरान ने इजरायल की संवेदनशील जानकारियाँ हासिल कर ली हैं और उन्हें ऑपरेशनल रूप से इस्तेमाल करने में सक्षम है। 

 

 

एक पूर्व इज़राईली जनरल ने गाज़ा युद्ध में कब्ज़ाकारी सेना के खराब प्रदर्शन की कड़ी आलोचना करते हुए अपमानजनक हार को स्वीकार किया है।

पूर्व इज़राईली जनरल इसहाक ब्रिक ने कहा कि इजरायल में अब और लड़ने की आर्थिक क्षमता नहीं बची है और यह सच्चाई जल्द ही पूरी दुनिया के सामने आ जाएगी। 

उन्होंने कहा कि जो सेना खुद को पश्चिमी एशिया की सबसे मजबूत सेना समझती थी वह एक छोटे से समूह हमास के हाथों हार गई और पूरी दुनिया में हमारा मजाक बनाया गया है। 

उन्होंने आगे कहा कि सेना हमास को निशाना बनाने में ज्यादा सफल नहीं रही जबकि वह फिलिस्तीनी नागरिकों पर बमबारी कर रही है। 

इसहाक ब्रिक ने कहा कि इजरायली नेताओं ने झूठ बोला था कि हमास कुछ ही दिनों में आत्मसमर्पण कर देगा और उसकी सरकार खत्म हो जाएगी, लेकिन हमास आज भी मैदान में डटा हुआ है। 

उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि कब्ज़ीकारी सेना गाज़ा पट्टी के साथ सीमावर्ती इलाकों में लड़ रही है, जबकि वायु सेना भारी हमलों के जरिए नागरिकों को बेघर और विस्थापित करने की कोशिश कर रही है। 

उन्होंने स्पष्ट किया कि गाजा की सुरंगों में कैदी मर रहे हैं। लेकिन शासकों के लिए जो चीज महत्वपूर्ण है, वह उनकी अपनी व्यक्तिगत और राजनीतिक सत्ता का अस्तित्व है और वे जनता को सामूहिक आत्महत्या की ओर धकेल रहे हैं। सेना जल्द ही अपने रिज़र्व सैनिकों को रिहा करने और नियमित सैनिकों को छुट्टी देने के लिए मजबूर हो जाएगी। 

 

 

यह सही है कि इंसानों के लिए असली इनाम और सजा का स्थान आख़िरत है, लेकिन खुदा ने यह इरादा किया है कि उनका कुछ इनाम और सजा इसी दुनिया में भी दिया जाए।

ज़ुहूर के समय एक अहम घटना रज्अत है, जिसमें नेक और बुरे लोग इस दुनिया में वापस पलटाए जाऐंगे। यह शिया मुसलमानो का एक मुसल्लम अक़ीदा है।

रज्अत की परिभाषा

शब्दकोश में रजआत का मतलब है "वापसी"। धार्मिक संस्कृति में इसका मतलब है कि अल्लाह के हुक्म से, इलाही हुज्जत और मासूम इमाम (अ) और कुछ सच्चे मोमिन और काफ़िर और मुनाफ़िक इस दुनिया में वापस लौटेंगे। इसका मतलब यह है कि वे फिर से ज़िंदा होंगे और दुनिया में आएंगे। यह एक तरह से क़यामत का एक पहलू है, जो क़यामत से पहले इसी दुनिया में होगा।

रज्अत का फ़लसफ़ा

यह सही है कि इंसानों के लिए असली इनाम और सजा का असली स्थान आख़िरत है, लेकिन खुदा ने यह इरादा किया है कि उनका कुछ इनाम और सजा इसी दुनिया में भी दिया जाए।

इस बारे में इमाम बाकर (अलैहिस्सलाम) ने फ़रमाया है:

... أَمَّا اَلْمُؤْمِنُونَ فَیُنْشَرُونَ إِلَی قُرَّةِ أَعْیُنِهِمْ وَ أَمَّا اَلْفُجَّارُ فَیُنْشَرُونَ إِلَی خِزْیِ اَللَّهِ إِیَّاهُمْ ...  ... अम्मल मोमेनूना फ़युंशरूना एला क़ुर्रते आयोनेहिम व अम्मल फ़ज्जारो फ़युंशरूना एला ख़िज़्इल्लाहे इय्याहुम ...

मोमिन वापस आते हैं ताकि वे सम्मानित हों और उनकी आँखें रोशन हों, और बुरे लोग वापस आते हैं ताकि अल्लाह उन्हें अपमानित करे। (बिहार उल अनवार, भाग 53, पेज 64) 

रज्अत का एक और मकसद यह भी है कि मोमिन, हज़रत वली-ए-अस्र (अ) की मदद और साथ पाने की खुशी का अनुभव करें।

उदाहरण के तौर पर, इमाम अस्र (अ) की एक ज़ियारत में हम उनसे इस तरह दुआ करते हैं:

... مَوْلاَیَ فَإِنْ أَدْرَکَنِیَ اَلْمَوْتُ قَبْلَ ظُهُورِکَ فَإِنِّی أَتَوَسَّلُ بِکَ وَ بِآبَائِکَ اَلطَّاهِرِینَ إِلَی اَللَّهِ تَعَالَی وَ أَسْأَلُهُ أَنْ یُصَلِّیَ عَلَی مُحَمَّدٍ وَ آلِ مُحَمَّدٍ وَ أَنْ یَجْعَلَ لِی کَرَّةً فِی ظُهُورِکَ وَ رَجْعَةً فِی أَیَّامِکَ لِأَبْلُغَ مِنْ طَاعَتِکَ مُرَادِی وَ أَشْفِیَ مِنْ أَعْدَائِکَ فُؤَادِی ... ... मौलाया फ़इन अदरकनिल मौतो क़ब्ला ज़ुहूरेका फ़इन्नी अतवस्सलो बेका व बेआबाएकत ताहेरीना इलल्लाहे तआला व अस्अलोहू अय योसल्लेया अला मोहम्मदिव वा आले मोहम्मदिन व अन यज्अला ली कर्रतन फ़ी ज़ोहूरेका व रज्अतन फ़ी अय्यामेका ले अबलोग़ा मिन ताअतेका मुरादी व अशफ़ेया मिन आदाएका फ़ोआदी ... 

मेरे मालिक! यदि आपकी ज़ाहिर (उदय) से पहले मेरी मौत हो जाए, तो मैं आप और आपके पाक बाप-दादाओं के ज़रिए अल्लाह तआला से दुआ करता हूँ कि वह मुहम्मद और उनके परिवार पर सलाम भेजे, और मुझे आपकी ज़ाहिर के समय और आपके दौर में वापसी का मौका दे ताकि मैं आपकी इबादत में अपनी मुराद (इच्छा) पूरी कर सकूँ और आपके दुश्मनों से अपने दिल को ठीक कर सकूँ।  (बिहार उल अनवार, भाग 99, पेज 116)

रज्अत का स्थान

रज्अत शिया मुसलमानो के मुसल्लम अक़ाइद में से एक है, जिसका आधार क़ुरआन की दर्जनों आयतें और पैग़बर मुहम्मद (स) और मासूम इमाम (अलैहिमुस्सलाम) की सैकड़ों हदीसें हैं।

अज़ीम मुहद्दिस, मरहूम शेख हुर्रे आमोली ने अपनी किताब «अल ईक़ाज़ो मिनल हज्اअते बिल बुरहाने अलर रजअत» के अंत में लिखा है:

"इस किताब में हमने रज्अत के बारे में 620 से अधिक हदीसें, आयतें और सबूत पेश किए हैं, और मुझे नहीं लगता कि किसी भी अन्य फिक़्ही (इस्लामी कानून) या उसूल (मूल सिद्धांत) के मसले में इतनी अधिक प्रमाण सामग्री मिलती हो।"

इक़्तेबास: किताब "नगीन आफरिनिश" से (मामूली परिवर्तन के साथ)

 

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मद अली लबखंदान ने ईद-ए-ग़दीर खुम की अज़मत पर ज़ोर देते हुए कहा,यह वाक़िया नबूवत और इमामत के पायदार रब्त की अलामत है।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मद अली लबखंदान ने कहा, ईद-ए-ग़दीर, बे'असत-ए-रसूल-ए-अकरम स.अ.व.के बाद तारीख-ए-बशरियत का सबसे अज़ीम दिन है, जो नबूवत और इमामत के दरमियान नाक़ाबिल-ए-इन्कार रब्त का मज़हर है। रसूलुल्लाह (स.अ.व.) ने 23 साल की तबलीग़ी जद्दोजहद के बाद ग़दीर खुम के मौक़े पर एक इलाही मिशन को मुकम्मल किया, ऐसा मिशन जो क़यामत तक दीन के तसल्सुल की ज़मानत बन गया।

उन्होंने आगे कहा,यह तारीखी वाक़िया रसूल-ए-अकरम (स.अ.व.) की रिहलत से सिर्फ़ 70 दिन पहले अल्लाह तआला के सरीह हुक्म से अंजाम पाया, जैसा कि इरशाद हुआ या अय्युहर रसूलु बल्लिग़ मा उंज़िला इलैका मिन रब्बिका व इन लम तफ़अल फ़मा बल्लग़ता रिसालतहु य ऐ रसूल! जो कुछ आपके रब की तरफ़ से नाज़िल किया गया है, पहुँचा दीजिए और अगर आपने ऐसा न किया तो गोया आपने रिसालत को पहुँचाया ही नहीं यह आयत इस अज़ीम हक़ीकत को वाज़ेह करती है कि दीन की बक़ा और कमाल इमामत से वाबस्ता है।

इस दीनी माहिर ने कहा, जिस तरह दूसरे अंबिया ने अपनी रिसालत के हिफ़ाज़त के लिए जानशीन मुक़र्रर किए, रसूल-ए-गरामी (स.अ.व.) ने भी अमीरुल मोमिनीन अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) को अपने बाद वली और जानशीन के तौर पर बा-ज़ाब्ता ग़दीर के दिन मुतारिफ़ कराया।

यह एलान न कोई शख़्सी और न ही सियासी फ़ैसला था, बल्कि बे'असत के समर की हिफ़ाज़त और तौहीद के तसल्सुल को यक़ीनी बनाने के लिए एक इलाही हुक्म था।

उन्होंने कहा,ग़दीर, रिसालत-ए-नबवी (स.अ.व.) की मेराज और दीन-ए-इस्लाम की तकमील का दिन है ग़दीर में अमीरुल मोमिनीन अली (अ.स.) की विलायत का एलान, आनहज़रत (स.अ.व.) के 23 साल की अथक जद्दोजहद का नुक़्ता-ए-अरूज था, जिसका मक़सद इस्लाम को सरबुलंद करना था। 

 

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मद हसन साफ़ी गुलपायगानी ने कहा,ग़दीर से अलग होना तबाही है और इससे जुड़ाव इंसान के लिए सुख और सफलता का स्रोत है।

मरहूम हज़रत आयतुल्लाह साफ़ी गुलपायगानी के बेटे हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मद हसन साफ़ी गुलपायगानी ने इमामत और विलायत के दिनों के आगमन पर मदरसा खातमुल औसिया अ.स. का दौरा किया और वहाँ मौजूद तालिबे इल्म और ग़दीर के प्रचारकों से मुलाकात की। 

उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत कुरआन की आयत یَا أَیُّهَا الرَّسُولُ بَلِّغْ مَا أُنْزِلَ إِلَیْکَ مِنْ رَبِّک... से करते हुए कहा,अल्लाह ने अपने नबी को संबोधित करते हुए फरमाया कि जो कुछ भी उनकी तरफ से नाज़िल हुआ है, उसे पूरी तरह लोगों तक पहुँचाएँ।

यहाँ तक कहा गया कि अगर आपने यह संदेश नहीं पहुँचाया, तो मानो आपने रिसालत का हुक्म ही अदा नहीं किया इससे स्पष्ट होता है कि यह महत्वपूर्ण संदेश हज़रत अली अ.स.की विलायत और इमामत की घोषणा थी और अगर यह न होता, तो रिसालत अधूरी रह जाती।

उन्होंने कहा,यह सिर्फ़ उस ज़माने तक सीमित नहीं था, बल्कि आज भी हज़रत अली (अ.स.) की विलायत का संदेश लोगों तक पहुँचाना हर शिया की, खासकर दीनी तालिबे इल्म की ज़िम्मेदारी है। दुश्मन की साजिशों से डरने की ज़रूरत नहीं क्योंकि अल्लाह ने फरमाया है कि वह विलायत के प्रचारकों की हिफाज़त करेगा।

आयतुल्लाह साफ़ी गुलपायगानी ने आज के दौर में प्रचार की सुविधाओं की ओर इशारा करते हुए कहा,आज हमारे पास आधुनिक साधन मौजूद हैं, अगर हम इनका फायदा न उठाएँ, तो हमसे सख्त पूछताछ होगी।

अतीत में उलमाए दीन ने कितनी मुश्किलें झेली, कितने उलमा शहीद हुए, कितने लोग शहरों और देशों से हिजरत करके हदीसों को बचाने निकले। उनके पास न साधन थे, न सुविधाएँ, सिर्फ़ अहले बैत (अ.स.) का इश्क था, जो उन्हें प्रेरित करता था।

उन्होंने अल्लामा अमीनी (किताब अलग़दीर" के लेखक) का उदाहरण देते हुए कहा,जब वह भारत में तेज गर्मी में किताबों के दुकानों में अध्ययन करते थे, तो कहते थे कि अली (अ.स.) की मोहब्बत की गर्मी ने मौसम की गर्मी को भुला दिया। वह अपनी जान भी अली (अ.स.) पर कुर्बान कर देते थे।

उन्होंने आयत یَا أَیُّهَا الرَّسُولُ بَلِّغْ مَا أُنْزِلَ إِلَیْکَ مِنْ رَبِّک... की तरफ इशारा करते हुए कहा,यह वही रिसालत है जिसे आयते ग़दीर में बयान किया गया और अल्लाह ने इसे नबी (स.अ.व.) की रिसालत का पूरा होना बताया। प्रचारकों को किसी से डरना नहीं चाहिए, सिर्फ़ अल्लाह का डर काफ़ी है।

उन्होंने आगे कहा,हौज़ए इल्मिया, खासकर हौज़ए इल्मिया क़ुम, की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी अमीरुल मोमिनीन (अ.स.) की विलायत का प्रचार है। हमने अभी तक ग़दीर को दुनिया तक वैसे नहीं पहुँचाया जैसा पहुँचाना चाहिए था। आज नौजवान तालिबे इल्म को चाहिए कि अपनी जवानी जैसी अज़ीम नेमत का फायदा उठाएँ और विलायत के प्रचार में आगे बढ़ें।

उन्होंने ग़दीर के प्रचारकों को मुबारकबाद देते हुए कहा,जब खुद नबी-ए अकरम (स.अ.व.) पहली बार मुबल्लिग़-ए ग़दीर थे, तो आप भी उसी सिलसिले की कड़ी बनने पर फख्र करें।

उन्होंने कहा,ग़दीर का रास्ता सारे अंबिया (अ.स.) की रिसालत से जुड़ा हुआ है। ग़दीर से अलग होना मानो दीन से अलग होना है दीन के बहुत से अरकान हैं, लेकिन अमीरुल मोमिनीन (अ.स.) की विलायत दीन का सबसे बुनियादी रुक्न है। 

उन्होंने ईदे ग़दीर के महत्व को बताते हुए कहा, नबी (स.अ.व.) ने हाजियों को रोका, लौटने वालों को वापस बुलाया, रास्ते वालों को रोका, और तेज गर्मी में हज़ारों लोगों को इकट्ठा करके विलायत का ऐलान किया। फिर फरमायाआल-यौम अकमल्तु लकुम दीनकुम...' यानी अली (अ.स.) की विलायत दीन की तकमील है।

उन्होंने नबी (स.अ.व.) का यह कथन बयान किया,अगर सारे पेड़ कलम बन जाएँ, सारे समय स्याही बन जाएँ, जिन्न और इंसान सब लिखने लगें, तो भी अली (अ.स.) के फज़ाइल को पूरा नहीं लिखा जा सकता।

 

ईरानी राष्ट्रपति ने कज़िकिस्तान के विदेश मंत्री से मुलाकात के दौरान कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान हमेशा तर्कसंगत बातचीत के लिए तैयार है, लेकिन दबाव धमकी और जबरदस्ती को कभी स्वीकार नहीं करेगा।

ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेिज़ेश्कियान ने कजाकिस्तान के विदेश मंत्री मुराद नूरतिलो से मुलाकात में उन्हें ईदुल अज़हा की बधाई दी। 

उन्होंने कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान की परमाणु गतिविधियाँ पूरी तरह से पारदर्शी हैं और अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने बार बार इसकी पुष्टि की है। 

राष्ट्रपति पिज़ेश्कियान ने कहा कि हम निरीक्षण के लिए तैयार हैं, लेकिन वैज्ञानिक प्रौद्योगिकी और उपलब्धियों से किसी भी राष्ट्र को वंचित करने को अस्वीकार्य मानते हैं। 

उन्होंने जोर देकर कहा कि हम यह स्वीकार नहीं करेंगे कि अन्य लोग हमारे राष्ट्र के भविष्य के बारे में निर्णय लें। ईरान हमेशा तर्कसंगत वार्ता के लिए तैयार है, लेकिन वह कभी भी दबाव धमकी या जबरदस्ती को स्वीकार नहीं करेगा। 

इस मुलाकात में कजाकिस्तान के विदेश मंत्री मुराद नूरतिलो ने ईरान के साथ संबंधों को मजबूत करने के लिए अपने देश की गंभीर प्रतिबद्धता की घोषणा की है।

उन्होंने शांतिपूर्ण परमाणु गतिविधियों के मामले में इस्लामी गणतंत्र ईरान के सिद्धांतित रुख का समर्थन करते हुए कहा कि हम परमाणु प्रौद्योगिकी के शांतिपूर्ण उपयोग के ईरान के वैध अधिकार का समर्थन करते हैं और मुझे विश्वास है कि आपकी सरकार के प्रयास विभिन्न क्षेत्रों में असाधारण प्रगति का मार्ग प्रशस्त करेंगे।

 

 

फ़ुक़्हा की गार्डियन काउंसिल के सदस्य ने उलमा ए इकराम के इस्लाम और मकतब-ए-तशय्यु के मआरिफ़ की हिफ़ाज़त और इशाअत में ऐतिहासिक और तहज़ीबी भूमिका का ज़िक्र करते हुए हौज़-ए-इल्मिया क़ुम को इंक़ेलाब-ए-इस्लामी की तासीस और हिमायत का सरचश्मा बताया।

फ़ुक़हा की गार्डियन काउंसिल के सदस्य आयतुल्लाह सैयद मोहम्मद रज़ा मदर्रसी यज़्दी ने हौज़-ए-इल्मिया क़ुम के क़याम (स्थापना) की सदी (शताब्दी) के मौक़े पर कहा, इमाम ख़ुमैनी (रह॰) जो इस इंक़ेलाब की क़यादत कर रहे थे, आयतुल्लाह हाएरी यज़्दी (रह॰) के मुमताज़ (प्रतिष्ठित) शागिर्दों (शिष्यों) में से थे और यह उसी हौज़ा की बरकतों का नतीजा था। 

उन्होंने कहा, उलमा-ए-इस्लाम दरअस्ल दुनिया तक इस्लाम का पैग़ाम पहुँचाने वाले हैं और मकतब-ए-तशय्यु और उसकी तहज़ीबी फ़िक्र को भी इन्हीं उलमा ने दुनिया तक पहुँचाया है। 

आयतुल्लाह मदर्रसी यज़्दी ने कहा, उलमा-ए-किराम ग़ैबत-ए-सुग़रा के आग़ाज़ से लेकर ग़ैबत-ए-कुबरा के दौरान, बल्कि उससे भी पहले से इस्लाम और अहल-ए-बैत (अ॰स॰) की ख़िदमत में मसरूफ़ रहे। उन्होंने अहल-ए-बैत (अ॰स॰) के उलूम (ज्ञान) को समाज तक मुंतक़िल किया और इल्मी व अमली दोनों मैदानों में दीन और मआरिफ़ के मुबल्लिग (प्रचारक) रहे। 

आयतुल्लाह मदर्रसी यज़्दी ने आगे कहा, नजफ़ अशरफ़, उससे पहले कूफ़ा और दूसरे उन इलाक़ों में जहाँ शिया मौजूद थे, बड़े-बड़े उलमा ने दीनी सरगर्मियाँ (गतिविधियाँ) अंजाम दीं।

यहाँ तक कि कुछ ऐसे इलाक़ों में जहाँ शिया अक़्सरियत (बहुमत) में नहीं थे, उलमा ने बड़ी मुश्किलात के बावजूद मआरिफ़-ए-अहल-ए-बैत को महफ़ूज़ रखा, हालाँकि उनकी क़द्र व मंज़िलत आज भी पूरी तरह शिनाख़्ता (पहचानी) नहीं है। 

उन्होंने दौर-ए-मोआसिर में उलमा के किरदार की तरफ़ इशारा करते हुए कहा, जैसा कि रहबर-ए-मोअज़्ज़म क्रांति बार-बा इरशाद फ़रमा चुके हैं, मरहूम आयतुल्लाह शेख़ अब्दुल करीम हाएरी यज़्दी (रह॰) बड़ी दुश्वार (कठिन) ऐतिहासिक हालात में इराक़ से ईरान आए और हौज़-ए-इल्मिया क़ुम की अज़ीम बुनियाद को दोबारा इस्तिवार (मजबूत) किया। 

आयतुल्लाह मदर्रसी यज़्दी ने कहा, हाज़ शेख़ अब्दुल करीम हाएरी यज़्दी (रह॰) ने सख़्तियों और महरूमियों को बर्दाश्त करते हुए अपने शागिर्दों के हमराह (साथ) इस मुबारक शजर को क़ुम में लगाया, जो अल्लाह के फ़ज़्ल से दिन-ब-दिन मज़बूततर हुआ और मराजय ए सलासा (तीन मरजा) के दौर में तरक्की पाया।

 

हाजी मास्टर साग़र हुसैनी अमलोवी: हज जीवन और भक्ति की एक आध्यात्मिक और आस्था-प्रेरक यात्रा है जिसे "इश्क़े इलाही" कहा जाता है।

हज केवल इबादत का एक रूप नहीं है, बल्कि इश्क़े इलाही की एक आध्यात्मिक यात्रा है, जहाँ बंदा खुद को कदम दर कदम "शायरुल्लाह" और "आयत ए बय्येनात" की उपस्थिति में महसूस करता है। उत्तर प्रदेश के राज्य हज निरीक्षक, जिन्हें लगातार तीन वर्षों से हज का सौभाग्य प्राप्त है, कहते हैं कि यह यात्रा हर वर्ष एक नई आध्यात्मिक स्थिति, नई जिम्मेदारी और भक्ति की एक नई भावना लेकर आती है।हाजी मास्टर साग़र हुसैनी अमलोवी ने हज के अपने अनुभव और तास्सुरात साझा कीं, जिन्हें हम प्रश्नोत्तर सत्र के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं।

हाजी मास्टर साग़र हुसैनी साहब, आपको लगातार तीन वर्षों तक हज करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। इस यात्रा की शुरुआत और निरंतरता के बारे में हमें बताएं।

मास्टर साग़र हुसैनी: अल्हम्दुलिल्लाह, मैंने अपना पहला हज 2023 में अपनी ओर से करने के इरादे से किया था। फिर 2024 में, मुझे उत्तर प्रदेश राज्य हज समिति द्वारा ड्रा के माध्यम से “खादेमुल हुज्जाज” के रूप में चुना गया और मैंने अपनी दादी, मरहूमा अजीज अल-निसा बिन्त हाजी सफ़दर हुसैन की ओर से हज किया। इस वर्ष यानि 2025 में मुझे दूसरी बार उत्तर प्रदेश राज्य हज समिति द्वारा "राज्य हज निरीक्षक" परीक्षा एवं साक्षात्कार उत्तीर्ण कर हज पर जाने का अवसर प्राप्त हुआ तथा मैंने अपनी परदादी, मरहूमा उम्मे कुलसूम, मरहूम हाजी अब्दुल मजीद की पत्नी की ओर से हज किया।

इस वर्ष हज के दौरान आपकी क्या जिम्मेदारियां रहीं?

मास्टर साग़र हुसैनी: इस वर्ष मैंने राज्य हज निरीक्षक के रूप में अपना कर्तव्य पूरी लगन एवं मेहनत से निभाया। अजीजिया स्थित बिल्डिंग नंबर 121 में मुबारकपुर, आजमगढ़, मऊ, लखनऊ आदि से आए हज यात्रियों से मुलाकात की तथा महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की। अजीजिया स्थित बिल्डिंग नंबर 437 में शिया विद्वानों एवं मुंबई एम्बार्केशन के यात्रियों से भी चर्चा की।


हज के दौरान अपनी कुछ यादगार मुलाकातों के बारे में बताएँ।

मास्टर साग़र हुसैनी: हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मौलाना सैयद अबुल कासिम रिज़वी साहिब क़िबला, जो मेलबर्न में इमाम जुमा और ऑस्ट्रेलिया के शिया उलेमा काउंसिल के अध्यक्ष हैं, एक विशेष बैठक के लिए आए और सामूहिक रूप से मगरिब की नमाज़ की इमामत की। यह मुलाकात मेरे लिए बहुत यादगार रही।