ग़़दीर से अलग होना विनाश और तबाही हैं।

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ग़़दीर से अलग होना विनाश और तबाही हैं।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मद हसन साफ़ी गुलपायगानी ने कहा,ग़दीर से अलग होना तबाही है और इससे जुड़ाव इंसान के लिए सुख और सफलता का स्रोत है।

मरहूम हज़रत आयतुल्लाह साफ़ी गुलपायगानी के बेटे हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मद हसन साफ़ी गुलपायगानी ने इमामत और विलायत के दिनों के आगमन पर मदरसा खातमुल औसिया अ.स. का दौरा किया और वहाँ मौजूद तालिबे इल्म और ग़दीर के प्रचारकों से मुलाकात की। 

उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत कुरआन की आयत یَا أَیُّهَا الرَّسُولُ بَلِّغْ مَا أُنْزِلَ إِلَیْکَ مِنْ رَبِّک... से करते हुए कहा,अल्लाह ने अपने नबी को संबोधित करते हुए फरमाया कि जो कुछ भी उनकी तरफ से नाज़िल हुआ है, उसे पूरी तरह लोगों तक पहुँचाएँ।

यहाँ तक कहा गया कि अगर आपने यह संदेश नहीं पहुँचाया, तो मानो आपने रिसालत का हुक्म ही अदा नहीं किया इससे स्पष्ट होता है कि यह महत्वपूर्ण संदेश हज़रत अली अ.स.की विलायत और इमामत की घोषणा थी और अगर यह न होता, तो रिसालत अधूरी रह जाती।

उन्होंने कहा,यह सिर्फ़ उस ज़माने तक सीमित नहीं था, बल्कि आज भी हज़रत अली (अ.स.) की विलायत का संदेश लोगों तक पहुँचाना हर शिया की, खासकर दीनी तालिबे इल्म की ज़िम्मेदारी है। दुश्मन की साजिशों से डरने की ज़रूरत नहीं क्योंकि अल्लाह ने फरमाया है कि वह विलायत के प्रचारकों की हिफाज़त करेगा।

आयतुल्लाह साफ़ी गुलपायगानी ने आज के दौर में प्रचार की सुविधाओं की ओर इशारा करते हुए कहा,आज हमारे पास आधुनिक साधन मौजूद हैं, अगर हम इनका फायदा न उठाएँ, तो हमसे सख्त पूछताछ होगी।

अतीत में उलमाए दीन ने कितनी मुश्किलें झेली, कितने उलमा शहीद हुए, कितने लोग शहरों और देशों से हिजरत करके हदीसों को बचाने निकले। उनके पास न साधन थे, न सुविधाएँ, सिर्फ़ अहले बैत (अ.स.) का इश्क था, जो उन्हें प्रेरित करता था।

उन्होंने अल्लामा अमीनी (किताब अलग़दीर" के लेखक) का उदाहरण देते हुए कहा,जब वह भारत में तेज गर्मी में किताबों के दुकानों में अध्ययन करते थे, तो कहते थे कि अली (अ.स.) की मोहब्बत की गर्मी ने मौसम की गर्मी को भुला दिया। वह अपनी जान भी अली (अ.स.) पर कुर्बान कर देते थे।

उन्होंने आयत یَا أَیُّهَا الرَّسُولُ بَلِّغْ مَا أُنْزِلَ إِلَیْکَ مِنْ رَبِّک... की तरफ इशारा करते हुए कहा,यह वही रिसालत है जिसे आयते ग़दीर में बयान किया गया और अल्लाह ने इसे नबी (स.अ.व.) की रिसालत का पूरा होना बताया। प्रचारकों को किसी से डरना नहीं चाहिए, सिर्फ़ अल्लाह का डर काफ़ी है।

उन्होंने आगे कहा,हौज़ए इल्मिया, खासकर हौज़ए इल्मिया क़ुम, की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी अमीरुल मोमिनीन (अ.स.) की विलायत का प्रचार है। हमने अभी तक ग़दीर को दुनिया तक वैसे नहीं पहुँचाया जैसा पहुँचाना चाहिए था। आज नौजवान तालिबे इल्म को चाहिए कि अपनी जवानी जैसी अज़ीम नेमत का फायदा उठाएँ और विलायत के प्रचार में आगे बढ़ें।

उन्होंने ग़दीर के प्रचारकों को मुबारकबाद देते हुए कहा,जब खुद नबी-ए अकरम (स.अ.व.) पहली बार मुबल्लिग़-ए ग़दीर थे, तो आप भी उसी सिलसिले की कड़ी बनने पर फख्र करें।

उन्होंने कहा,ग़दीर का रास्ता सारे अंबिया (अ.स.) की रिसालत से जुड़ा हुआ है। ग़दीर से अलग होना मानो दीन से अलग होना है दीन के बहुत से अरकान हैं, लेकिन अमीरुल मोमिनीन (अ.स.) की विलायत दीन का सबसे बुनियादी रुक्न है। 

उन्होंने ईदे ग़दीर के महत्व को बताते हुए कहा, नबी (स.अ.व.) ने हाजियों को रोका, लौटने वालों को वापस बुलाया, रास्ते वालों को रोका, और तेज गर्मी में हज़ारों लोगों को इकट्ठा करके विलायत का ऐलान किया। फिर फरमायाआल-यौम अकमल्तु लकुम दीनकुम...' यानी अली (अ.स.) की विलायत दीन की तकमील है।

उन्होंने नबी (स.अ.व.) का यह कथन बयान किया,अगर सारे पेड़ कलम बन जाएँ, सारे समय स्याही बन जाएँ, जिन्न और इंसान सब लिखने लगें, तो भी अली (अ.स.) के फज़ाइल को पूरा नहीं लिखा जा सकता।

 

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