رضوی

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शुक्रवार, 29 मार्च 2024 11:28

बंदगी की बहार- 18

इस्लाम के आंरभिक काल में कुछ एसी घटनाएं घटी हैं जो सदा के लिए इतिहास बनकर रह गई हैं।

यह घटनाएं विशेष महत्व की स्वामी हैं।  इन्हीं घटनाओं में से एक का नाम है "मेराज"।  मेराज की घटना का संबन्ध पैग़म्बरे इस्लाम (स) से है।  मेराज की घटना को संसार के सारे ही मुसलमान मानते हैं।  इस बात पर पूरे संसार के मुसलमान एकजुट हैं कि ईश्वर के अन्तिम दूत हज़रत मुहम्मद (स) को मेराज हुई थी।  इस घटना की तिथि के बारे में दो प्रकार के कथन पाए जाते हैं।  एक कथन के अनुसार पैग़म्बरे इस्लाम (स) को मेराज 27 रजब को हुई जबकि एक अन्य कथन के अनुसार यह तारीख़ 17 रमज़ान थी।  बहरहाल तारीख़ के बारे में चाहे मतभेद पाया जाता हो लेकिन इसको सारे मुसलमान मानते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम को मेराज हुई थी।

इस्लाम के उदय के काल में जो एक अति महत्वपूर्ण घटना घटी उसका नाम था मेराज।  मेराज की घटना वास्तव में चमत्कारी यात्रा थी।  यह एक महान चमत्कार था।  मेराज की घटना की वास्तविकता को समझने में आज भी मानव अक्षम है।  मेराज की यात्रा अर्थात भौतिक परिधि से निकलकर आकाश में पैर रखना।  यह घटना पैग़म्बरे इस्लाम (स) की निष्ठापूर्ण उपासना का परिणाम थी।  इस्लामी शिक्षाओं में मेराज की घटना को बहुत ही विशेष स्थान प्राप्त है।  मेराज वास्तव में पैग़म्बरे इस्लाम की धरती से आकाश की आध्यात्मिक यात्रा का नाम है।  आइए देखते हैं कि यह घटना है क्या और कैसे घटी?

रात का अंधेरा हर ओर छाया हुआ था।  दूर-दूर तक प्रकाश का कोई नाम नहीं था।  आम लोग दैनिक कार्यों को पूरा करके अपने घरों में आराम की नींद सो रहे थे।  पैग़म्बरे इस्लाम (स) नमाज़ जैसी उपासना पूरी करने के बाद कुछ देर के लिए विश्राम करना चाहते थे।  इसी बीच एकदम से उन्हें ईश्वरीय फ़रिश्ते, जिब्राईल की आवाज़ सुनाई दी।  उन्हें आवाज़ सुनाई दी कि हे मुहम्मद! उठो।  मेरे साथ यात्रा पर निकलो क्योंकि हमें एक लंबी यात्रा पर जाना है।  बाद में जिबरईले अमीन, "बुराक़" नामकी एक सवारी लाए।  पैग़म्बरे इस्लाम (स) अपनी इस आध्यात्मिक भव्य एवं अभूतपूर्व यात्रा का आरंभ, "उम्मेहानी" के घर से या फिर मस्जिदुल हराम से किया।  अपनी उसी सवारी से वे बैतुल मुक़द्द गए और बहुत ही कि समय में वे वहां पहुंचे।  उन्होंने बैतुल मुक़दस में हज़रत इब्राहीम, हज़रते ईसा और मूसा जैसे महान ईश्वरीय दूतों की आत्माओं से मुलाक़ात की।  पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने इस चमत्कारिक यात्रा के प्रति आभार व्यक्त करने के उद्देश्य से कई पवित्र स्थलों पर नमाज़ पढी।

बाद में उन्होंने अपनी यात्रा के दूसरे चरण का आरंभ किया अर्थात सात आसमानों की यात्रा।  पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने एक-एक करके सातों आसमानों की यात्रा पूरी की।  उन्होंने हर आसमान पर अलग-अलग तरह से दृश्य देखे।  उन्होंने कुछ स्थानों पर स्वर्ग और स्वर्गवासियों तथा कुछ स्थानों पर नरक और नरकवासियों के बारे में ईश्वर की अनुकंपाओं और प्रकोप को देखा।  पैग़म्बरे इस्लाम ने निकट से स्वर्गवासियों और नरक वासियों के दर्जों को देखा।  अंततः वे सातवें आसमान पर "सिदरल मुंतहा" तक पहुंचे और "जन्नतुल मावा" के दर्शन किये।  इस प्रकार से आप ने ईश्वरीय अनुकंपाओं को समझा।  पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) अंततः एसे स्थान पर पहुंचे जहां पर किसी अन्य प्राणी को जाने की अनुमति ही नहीं है।  इसका महत्व यूं समझा जा सकता है कि जिब्रईल जैसे महान फ़रिश्ते ने भी आगे बढ़ने से इन्कार कर दिया।  उस स्थान पर जिब्रईल ने कहा कि अब अगर मैं उंगली की पोर के बराबर भी आगे बढ़ूंगा तो मैं जल जाऊंगा।  इस संदर्भ में सूरे नज्म की आयत संख्या 9 में ईश्वर कहता है कि उनसे दूरी, दो कमान या उससे भी कम थी।

मेराज की यात्रा में ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम को कुछ महत्वूपर्ण आदेश दिये और इसी प्रकार से महत्वूपर्ण अनुशंसराएं भी कीं।  इस प्रकार से मेराज की यात्रा अपने अंत को पहुंची जिसके बारे में कुछ लोगों का यह मानना है कि वह उम्मेहानी के घर से आरंभ हुई थी और उसका समापन, "सिद्रलमुंतहा" पर हुआ।  इसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम (स) को आदेश दिया गया कि वे उसी रास्ते से वापस जाएं जिस रास्ते से आए थे।

    मेराज से अपनी यात्रा से वापसी के समय पैग़म्बरे इस्लाम (स) बैतुल मुक़द्दस में ठहरे।  उसके बाद उन्होंने मक्के का रुख़ किया।  वापसी के मार्ग में उन्होंने क़ुरैश के एक व्यापारिक कारवां को देखा।  यह कारवां अपना ऊंट खो चुका था और उसको ढूंढने में लगा था।  पैग़म्बरे इस्लाम (स) फ़ज्र आरंभ होने से पहले धरती पर वापस लौट आए।  मेराज की आध्यात्मिक यात्रा, वास्तव में धरती से आसमान की यात्रा है जिसे दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि आत्मा से परमात्मा की ओर पलायन।  इस घटना की पुष्टि करते हुए ईश्वर इस बारे में सूरे असरा की आरंभिक आयत में कहता हैः ईश्वर के नाम से जो अत्यंत कृपाशील और दयावान है।  पवित्र है वह (ईश्वर) जो अपने दास (मुहम्मद) को रात के समय मस्जिदुल हराम से मस्जिदुल अक़सा तक ले गया जिसके आसपास को हमने बरकत और विभूति प्रदान की है ताकि उसे अपनी निशानियों में से कुछ निशानियां दिखाए। निश्चित रूप से वह (ईश्वर) सबसे अधिक सुनने और देखने वाला है।  इस सूरे को सूरए इसरा इसलिए कहा जाता है कि इसमें पैग़म्बरे इस्लाम (स) के मेराज पर जाने की घटना का वर्णन किया गया है। इसरा का अर्थ होता है किसी को रात में कहीं ले जाना।

 पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने उन ईश्वरीय कथनों को "हदीसे मेराज" के माध्यम से लोगों सामने पेश किया है जो उनपर परोक्ष रूप में भेजे गए थे।  कथनों का यह संग्रह वास्तव में ईश्वर और पैग़म्बरे इस्लाम (स) के बीच वार्ता का सार है।  आरंभ में पैग़म्बरे इस्लाम, ईश्वर से पूछते हैं कि हे ईश्वर! सबसे अच्छा काम कौन सा है? इसका जवाब आया कि मेरे निकट मुझपर भरोसे से अच्छी कोई चीज़ नहीं है और जो भाग्य के लिए निर्धारित कर दिया गया है उसपर सहमत रहना मेरे निकट बहुत अच्छा है।  यह छोटा सा जवाब, मनुष्य की परिपूर्णता के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा को दूर करने की कुंजी है।  यह एसी बाधाए हैं जो मनुष्य के जीवन में समस्याएं उत्पन्न कर देती हैं जिसके परिणाम स्वरूप वह परिपूर्णता तक पहुंचने का मार्ग रुक जाता है।  ईश्वर पर भरोसे का अर्थ है उसपर पूरी निष्ठा रखते हुए केवल उसी पर भरोसा करना।  यह भावना, मनुष्य की आत्मा को संतुष्टि प्रदान करती है।

 हदीसे मेराज के एक अन्य भाग में ईश्वर, पैग़म्बर को संबोधित करते हुए कहा है हे मुहम्मद! उपासना के दस भाग हैं।  इस दस भागों में से नौ भाग हलाल आजीविका से संबन्धित हैं।  अब अगर तुमने अपने खाने-पीने की चीज़ों को हलाल ढंग से उपलब्ध कराया है तो तुम मेरी सुरक्षा में हो।  पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने ईश्वर से पूछा कि सबसे अच्छी और पहली इबादत क्या है? जवाब में कहा गया कि उपासना का आरंभ रोज़ा और मौन है।  इससे यह निष्कर्श निकलता है कि ईश्वर की राह का पहला क़दम, मौन और रोज़ा रखना है।

 यही दो रास्ते, मनुष्य की परिपूर्णता के लिए आवश्यक हैं।  जबतक मनुष्य अपनी ज़बान को नियंत्रित नहीं करता उस समय तक वह अच्छी और बुरी हर प्रकार की बातें करती है।  एसा व्यक्ति कुछ भी बोलने से नहीं झिझकता।  इस प्रकार का व्यक्ति, ईश्वर की कृपा का पात्र नहीं बन सकता।  पेट भी कुछ एसा ही है।  अगर मनुष्य हर चीज़ खाएगा और खानेपीने में किसी भी चीज़ से नहीं रुकेगा तो वह पशु की भांति हो जाएगा जिसका लक्ष्य केवल खाना है।  इसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने पूछाः हे ईश्वर रोज़े का प्रभाव क्या है।  जवाब में कहा गया कि रोज़ा अपने साथ तत्वदर्शिता लाता है।  यह तत्वदर्शिता सही पहचान का कारण बनती है और सही पहचान से ही विश्वास पैदा होता है।  जब किसी दास के भीतर विश्वास पैदा हो जाता है तो जीवन की कठिनाइयां उसके लिए महत्वहीन हो जाती हैं।  मेराज की घटना ने पैग़म्बरे इस्लाम से उच्च स्थान को और अधिक ऊंचा कर दिया।  मेराज की घटना से यह भी पता चलता है कि मनुष्य के भीतर बहुत क्षमता पाई जाती है।  इन क्षमताओं के माध्यम से वह परिपूर्णता तक सरलता से पहुंच सकता है।

 

 

 

गुरुवार, 28 मार्च 2024 18:20

इमाम खुमैनी और रमज़ान

इमाम ख़ुमैनी साल के बाकी महीनों के दौरान हर दिन कुरान का एक हिस्सा पढ़ते थे, लेकिन रमज़ान के महीने के दौरान, वह हर दिन पवित्र कुरान के दस भाग पढ़ते थे और महीने के अंत तक वह पवित्र कुरान को दस बार पढ़ते थे

इमाम खुमैनी रमज़ान के पवित्र महीने में सुबह से शाम तक प्रार्थना में लगे रहते थे। जब वह जाते थे, तो वह इमाम को कुरान पढ़ते हुए पाते थे। यदि किसी बैठक में पाठ करने वाले पढ़ते थे पवित्र कुरान की कुछ आयतें, इमाम अपनी कुर्सी छोड़कर जमीन पर बैठ जाते थे। साल के बाकी महीनों में हर दिन कुरान का एक हिस्सा पढ़ते थे, लेकिन रमजान के महीने में वह प्रतिदिन पवित्र कुरान की दस आयतें पढ़ते थे और महीने के अंत तक उन्हें पवित्र कुरान को दस बार पढ़ने का सम्मान प्राप्त होता था।

रमज़ान के महीने में, इमाम द्वारा सुनाई गई प्रार्थनाओं का उपयोग करें और इस राष्ट्र की सुरक्षा और सफलता के लिए प्रार्थना करें और इस्लाम के दुश्मनों की विफलता और हार के लिए भी प्रार्थना करें।

मुझे डर है कि (रमजान के इस धन्य महीने में, जो आत्म-साधना का महीना है और जहां भगवान ने हमें अपने दिव्य भोज में आमंत्रित किया है) हम मेज़बान के साथ कुछ ऐसा न कर दें जिससे हमें अप्रसन्नता हो। उसके सभी उपकार और आशीर्वाद देना बंद कर देना चाहिए.

यह महीना खुदा का महीना है, सभी को इस्लाम के लिए इबादत करने का आशीर्वाद मिले। आप सभी की पहली इबादत इस्लाम के लिए होनी चाहिए।

जैसा कि एक अन्य स्थान पर, प्रार्थना के गुण के बारे में, पवित्र पैगंबर ने कहा: दुआ कुरान पढ़ने से बेहतर है। कुरान पढ़ने का मतलब है कि भगवान हमसे बात कर रहे हैं क्योंकि कुरान उनका शब्द है। लेकिन दुआ का मतलब है कि हम ईश्वर से अपना संपर्क बनाए रखना चाहते हैं, हम ईश्वर से संवाद करना चाहते हैं और निश्चित रूप से यह कार्य नेक है। दूसरी हदीस में, अंजनाब से वर्णित है, "प्रार्थना आस्तिक का हथियार और आकाश और पृथ्वी की रोशनी है" (काफी, 2, 468)। सबसे अच्छा हथियार दुआ है

गुरुवार, 28 मार्च 2024 18:19

जंगे बदर और उसका कारण

जंगे बदर 17वीं रमज़ान से 21वीं रमजान तक दूसरी हिजरी मे कुफ़्फ़ारे कुरैश और मुसलमानों के बीच हुई । बद्र मूल रूप से जुहैना जनजाति के एक व्यक्ति का नाम था जिसने मक्का और मदीना के बीच एक कुआँ खोदा था और बाद में इस क्षेत्र और कुएँ दोनों को बदर कहा जाने लगा, इसलिए युद्ध का नाम भी बदर के नाम से जाना जाने लगा।

अबू सुफियान 40 लोगों के व्यापारिक कारवां के साथ सीरिया के लिए रवाना हुआ, जिनके पास 50,000 दीनार का सामान था। कारवां सीरिया से मदीना लौट रहा था जब पैगंबर (स) ने साथियों को उनकी संपत्ति जब्त करने और इस तरह दुश्मन की आर्थिक शक्ति को कमजोर करने के लिए अबू सुफियान के नेतृत्व वाले कारवां की ओर बढ़ने का आदेश दिया। अबू सुफियान को तकनीक के बारे में पता चला मुसलमानों ने बड़ी जल्दी से एक दूत को मदद मांगने के लिए मक्का भेजा। अबू सुफियान के आदेश के बाद, दूत ने अपने सवार (ऊंट) के नाक और कान काट दिए और उसका खून बहा दिया, उसकी कमीज फाड़ दी और लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए एक अजीब पोशाक पहनकर मक्का में प्रवेश किया और चिल्लाया: कारवां को बचाओ , बचाओ, बचाओ, मुहम्मद और उनके अनुयायियों ने कारवां पर हमला करने की योजना बनाई है। इस घोषणा के साथ, अबू जहल 950 योद्धाओं, 700 ऊंटों और 100 घोड़ों के साथ बद्र के लिए रवाना हो गया। दूसरी ओर, अबू सुफियान ने खुद को बचाने के लिए अपना रास्ता बदल लिया और मुसलमानों से खुद को बचाकर मक्का पहुँचने में कामयाब रहा। अल्लाह के रसूल (स) 313 आदमियों के साथ बद्र के स्थान पर पहुँचे और दुश्मन से आमने-सामने मिले। उसी समय, रसूल अल्लाह (स) ने अपने साथियों से परामर्श किया, और साथी दो समूहों में विभाजित हो गए। एक समूह ने अबू सुफ़ियान का अनुसरण करना पसंद किया, जबकि दूसरे समूह ने अबू जहल की सेना से लड़ना पसंद किया। निर्णय अभी नहीं हुआ था। इस बीच, मुसलमानों को दुश्मन की संख्या, साधन, उपकरण और तैयारियों के बारे में जानकारी प्राप्त हुई। असहमति पहले से अधिक तीव्र हो गई अल्लाह के रसूल ने दूसरी राय को प्राथमिकता दी और दुश्मन से लड़ने के लिए तैयार होने का आदेश दिया। इस्लाम की सेना और कुफ़्फ़ार की सेना एक दूसरे के सामने खड़ी थी। शत्रु मुसलमानों की कम संख्या देखकर आश्चर्यचकित रह गया। इधर कुछ मुसलमान काफ़िरों की संख्या और उनके युद्ध उपकरणों को देखकर कांपने लगे। इस भयानक स्थिति को देखकर, अल्लाह के रसूल (स) ने अपने साथियों को अनदेखी खबर से अवगत कराया और कहा: "सर्वशक्तिमान ने मुझे सूचित किया है कि हम इन दो समूहों में से एक, अबू सुफियान का व्यापार कारवां या अबू जहल की सेना, निश्चित रूप से उनमें से एक पर विजयी होंगे, और भगवान अपने वादे में सच्चे हैं।अल्लाह की कसम! ऐसा लगता है जैसे मैं अपनी आंखों से उन जगहों को देख रहा हूं जहां अबू जहल और कुरैश के कुछ अन्य प्रसिद्ध लोग मारे गए थे। अपने साथियों के डर और आतंक को देखकर, रसूल अल्लाह ने कहा, "चिंता मत करो यद्यपि हम संख्या में कम हैं, फिर भी स्वर्गदूतों का एक बड़ा समूह हमारी सहायता के लिए तैयार है » बद्र का मैदान रेत की नरमता के कारण युद्ध के लिए बिल्कुल उपयुक्त नहीं था, लेकिन भगवान की मदद से, इस दौरान भारी बारिश हुई रात और सुबह रेगिस्तान युद्ध के लिए तैयार था।अल्लाह के रसूल (स) ने पहले दुश्मन की ओर शांति का हाथ बढ़ाया, लेकिन अबू जहल ने इसे अस्वीकार कर दिया और युद्ध की घोषणा कर दी। काफ़िर, उतबा, शैबा और वलीद, जबकि मुसलमानों की ओर से तीन अंसार मैदान में घुस आए। उन्होंने अंसार के सैनिकों को लौटाते हुए कहा कि हम अपने साथी कुरैश लोगों से लड़ेंगे। अल्लाह के रसूल ने अपने परिवार से तीन लोगों, उबैदा बिन हारिस, हज़रत हमज़ा और हज़रत अली (अ) को बुलाया और उन्हें युद्ध के मैदान में भेजा। उन्होंने अपना काम पूरा किया और ऊबैदा की सहायता के लिए आए। उत्बा का एक पैर कट गया और वह भी उसके एक वार से मर गया और इस तरह हज़रत अली (अ) ने तीन योद्धाओं को मार डाला। अमीर अल-मोमिनीन (अ) ने अपने शासनकाल के दौरान मुआविया को एक पत्र लिखते हुए इस घटना का इन शब्दों में उल्लेख किया: (मैं वही अबू अल-हसन हूं जिसने आपके दादा उतबा, चाचा शैबा, चाचा वलीद और भाई हंजला को मौत के घाट उतारा था)

इन तीन लोगों की हत्या के बाद, अबू जहल ने एक सामान्य हमले का आदेश दिया और यह नारा लगाया: इन्ना लाना अल-उज्जा वल उज्जा लकुम, फिर मुसलमानों ने नारा लगाया: अल्लाहो मौलाना वा मौलाया लकुम।

अल्लाह के रसूल (अ) अबू जहल की हत्या की प्रतीक्षा कर रहे थे, जैसे ही उन्हें उनकी मृत्यु की खबर मिली, उन्होंने कहा: हे अल्लाह! आपने अपना वादा पूरा किया है.

बद्र की लड़ाई काफ़िरों की करारी हार और मुसलमानों की जीत के साथ समाप्त हुई। इस लड़ाई में अबू जहल सहित काफिरों के प्रसिद्ध कमांडर उपयोगी थे। काफिरों की सेना ने 70 लोगों को मार डाला और इतने ही लोगों को पकड़ लिया गया, जबकि 14 मुसलमान शहीद हो गए, जिनमें 6 मुहाजिर और 8 अंसार शामिल थे। 150 ऊँट, 10 घोड़े और अन्य युद्ध उपकरण मुसलमानों के हाथ लग गये।

इस युद्ध में काफ़िरों ने हज़रत अली (अ) को लाल मौत का नाम दिया क्योंकि उनके महान योद्धा उनके (अ) के हाथों नरक में चले गये। उन सभी के नाम इतिहास की किताबों में हैं।

एक शंका और उसका उत्तर:

 

आज के इस्लाम के दुश्मनों ने खुदा के पैगम्बर और मुसलमानों पर संदेह जताया है और कहा है कि मुसलमानों ने बिना किसी जानकारी के विरोधियों के कारवां को लूटने की योजना बनाई और इसे लूटपाट माना जाता है।

यदि हम पूर्वाग्रह का चश्मा उतारकर तथ्यों को जानने का प्रयास करें तो यह स्पष्ट है कि ईश्वर के पैगंबर ने निम्नलिखित कारणों से अबू सुफियान के व्यापारिक कारवां की ओर रुख किया:

पहला: जब मुसलमान मक्का से पलायन कर मदीना चले गए, तो उनकी सारी संपत्ति और सामान पर कुरैश ने कब्जा कर लिया। न्यायशास्त्र के अनुसार, मुसलमानों को अपनी हड़पी हुई संपत्ति के लिए अबू सुफियान के कारवां को मुआवजा देने का अधिकार है, यानी अपनी संपत्ति के नुकसान की भरपाई करने के लिए, हालांकि अबू सुफियान के वाणिज्यिक कारवां में संपत्ति का मूल्य मुसलमानों के हड़पे हुए घर और संपत्ति के बराबर है। .अशर तो अशर भी नहीं बन पाया.

दूसरा: अविश्वासी कुरैश ने मक्का के जीवन में मुसलमानों पर अत्याचार किया और जितनी क्रूरता वे कर सकते थे, की।

तीसरा: मुसलमानों के प्रवास के बाद, काफिर कुरैश ने मदीना पर हमला करने और ईश्वर के दूत और विश्वासियों को नष्ट करने की योजना बनाना शुरू कर दिया था। कारवां की ओर बढ़ गए।

ख़ासाने रब हैं बदरो ओहद के शहीद भी

लेकिन अजब है शाने शहीदाने करबला।

राहे ख़ुदा में शहीद हो जाने वाले मुजाहेदीन का फ़ज़्ल व शरफ़ मोहताजे तआरूफ़ नहीं है। शोहदाऐ राहे ख़ुदा के सामने दुनिया बड़ी अक़ीदत व एहतेराम से अपना सर झुकाती नज़र आती है बल्कि ग़ैर मुस्लिम हज़रात, दिन के वहां शहादत का पहले कोई तसव्वुर भी नहीं था, लफ़्ज़े शहादत को अपनाने में किसी बख़्ल से काम नबीं लेते।

अलबत्ता दरजात व मरातिब के एतबार से तमाम शोहदा को मसावी क़रार नही दिया जा सकता है। जिस तरह क़ुराने करीम के मुताबिक़ बाज़ अम्बिया को बाज़ अम्बिया और बाज़ मुरसलीन को बाज़ मुरसलीन पर फ़ज़ीलत हासिल थी उसी तरह बाज़ शोहदा को बाज़ शोहदा पर तफ़व्वुक़ व बरतरी हासिल है। हुज़ूर ख़तमी मरतबत के दौर में दीगर शोहदा के मुक़ाबले में शोहदा-ए-बद्रो ओहद एक एम्तेयाज़ी शान के मालिक थे जिसकी सनद अक़वाले मुरसले आज़म से ली जा सकती है। मगर शोहदाए बद्रो ओहद भी बाहम यकसां फ़ज़ीलतों के हामिल नहीं थे बल्कि ज़ोहदो तक़वा और शौक़े शहादत के मद्दोजज़्र नें उनके दरमियान फ़रक़े मुरातब को ख़ाएम कर रखा था। चुनान्चे जंगे ओहद में हालांकि नबीए करीम के कई मोहतरम सहाबियों ने जामे शहादत नोश फ़रमाया था मगर सय्यदुश् शोहदा होने का शरफ़ सिर्फ़ जनाबे हमज़ा को ही हासिल हो सका। मुसलमानों का एक तबक़ा अपनी जज़्बाती वाबस्तगी की बिना पर शोहदा-ए-बद्रो ओहद की मुकम्मल बरतरी का क़ाएल है लेकिन अगर निगाए इंसाफ़ से देखा जाए तो जंगे बद्रो-ओहद और ज़गे करबला के हालात में नुमायां फ़र्क़ नज़र आएगा। जंगे बद्रो-ओहद में अहले इस्लाम की तादात 313 और कुफ़्फ़ार की तादात 950 थी। यानी तनासिब एक और तीन का था। इसी तरह जंगे बद्र में लश्करे इस्लाम की तादाद कम से कम 700 और लश्करे और कुफ़्फ़ार की तादाद ज़्यादा से ज़्यादा 5000 थी। गोया यहां भी तनासिब एक और सात का था और जंगे करबला में फ़ौजे हुसैनी की तादाद सिर्फ़ 72 थी जिनमें बच्चे और बूढ़े भी शामिल थे जबकि दुश्मन की फ़ौज की तादात 80000 थी, यानी तनासिब एक और ग्यारह का था। अब अगर फ़ौजे हुसैनी की ज़्यादा से ज़्यादा तादाद वाली रिवायतों को और यज़ीदी फ़ौज की कम से कम तादात वाली रिवायतों को पेशे नज़र रखा जाए, तब भी सिपाहे हुसैनी की तादाद 127 और यज़ीदी लश्कर की तादाद 20000 थी, यानी तनासिब एक और एक सौ अट्ठावन का था।

इस के अलावा शोहदा-ए-बद्रो ओहद को बंदिशे आब का सामना भी नहीं था जबकि इमामे हुसैन (अ.) के साथ भूख और प्यास के आलम में सेरो सेराब दुश्मन से नबर्दो आज़मा होने के बावुजूद ज़बानों पर शिद्दते अतश का कोई ज़िक्र भी न लाए। जंगे बद्र में अल्लाह ने मुसलमानों की 3000 फ़रिश्तों और जंगे ओहद में 5000 मलाएका से मदद फ़रमाई, नैज़े ग़ैबी आवाज़ के ज़रिए मलाएका की नुसरत का वादा फ़रमाकर अहले इस्लाम के दिलों को तक़वीयत पहुंचाई और हक़्क़े तआला ने मुसलमानों को ख़्वाब में दुशमनों की तादाद कम करके दिखाई ताकि इस्लामी लशेकर के हौसले पस्त न होने पाएं इस के अलावा नुज़ूले बारान के ज़रिए भी मैदाने जंग को मुस्लिम मुजाहेदीन के लिए हमवार किया गया।

मज़कूरा बाला हक़ाएक़ का ज़िक्र कर सूरए आले इमरान और सूरए अनफ़ाल में मौजूद है जबकि शोहदाए करबला के लिए मन्दरजा बाला सहूलतों में से किसी एक सहूलत का भी वुजूद लज़र नहीं आता फिर भी उनके पाए इस्तेक़ामत में कोई लग़ज़िश और हौसलों में कोई कमी पैदा न हो सकी।

शोहदा-ए-बद्रो ओहद के सामने जंग के दो पहलू थे, मनसबे शहादत का अबदी इनाम या दुशमनों को फ़िन्नार करके ग़ाज़ी के ख़ेताब के साथ माले ग़नीमत का हुसूल।

बल्कि अक्सर इस्लामी जंगों में बाज़ मुजाहेदीन के लिए माले ग़नीमत में वो कशिश थी के अल्लाह को क़ुरआने करीम में हिदायत करना पड़ी, और रसूल जो तुसको अता करें वो ले लो और जिससे रोक दें उस से रुक जाओ। चुनांचे यही माले ग़नीमत की कशिश थी जिसने जंगे ओहद की फ़तह को शिकस्त में तबदील कर दिया। अब ये और बात है कि इसी माले ग़नीमत के तुफ़ैल में बाज़ मुजाहेदीन को माले ग़नीमत के बजाए शहादत की दौलत हाथ आ गई लेकिन शोहदाए करबला के पेशे निगाह सिर्फ़ और सिर्फ़ शहादत की मौत थी।

शोहदा-ए-बद्रो ओहद के वास्ते ख़ुदा और रसूल के हुक्म की तामील में जंग में शिरकत वाजिब थी बसूरत दीगर अज़ाबे ख़ुदा और ग़ज़बे इलाही से दो-चार होना पड़ता। लेकिन अंसारे हुसैन के लिए ऐसी कोई बात नहीं थी बल्कि शबे आशूर इमामे हुसैन (अ.) ने अपने असहाब की गरदनों से अपनी बैअत भी उठा ली थी। और उनको इस बात की बख़ुशी इजाज़त मुरत्तब फ़रमा दी थी कि परदए शब में जिसका जहां दिल चाहे चला जाए क्योंकि दुश्मन सिर्फ़ मेरे सर का तलबगार है, यहां तक कि आप ने शमा भी गुल फ़रमा दी ताकि किसी को जाने में शर्म महसूस न हो। मगर क्या कहना इमामे मज़लूम के बेकस साथियों का कि उन्होंने फ़रज़ंदे रसूल को दुश्मनों के नरग़े में यक्कओ तनहा छोड़कर जाना किसी ऊ क़ीमत पर क़ुबूल नहीं किया चाहे इसके लिए उन्हे बार-बार मौत की अज़ीयत से ही क्यों न गुज़रना पड़ता।

जंगे बद्रो ओहद में जामे शहादत नोश करने वाले मुजाहेदीन के दिलों में इस जज़्बे का मौजूद होना क़ुरैन अक़्लोक़यास है कि हम अपनी जानों को सरवरे काएनात पर क़ुरबान करके अपने महबूब नबी की जाने मुबारक बचा लें बल्कि मुरसले आज़म के बाज़ अन्सार की क़ुरबानियां सिर्फ़ हयाते रसूले अकरम पर मुलहसिर थीं चुनांचे जंगे ओहद में लड़ाई का पासा पलटने के बाद जब ये शैतानी आवाज़ मुजाहेदीने इस्लाम के गोश गुज़ार हुई कि माज़ अल्लाह मोहम्मद क़त्ल कर दिए गए तो इस ख़्याल के पेशे नज़र अक्सर मुसलमानों के क़दम उखड़ गए कि जब रसूल ही ज़िन्दा नहीं रहे तो हम अपनी जान देकर क्या करें जबकि रसूले अकरम उनको आवाज़ें भी दे रहे थे। लेकिन अन्सारे हुसैन इस हक़ीक़त से बख़ूबी आशना थे कि हम अपनी जानें निसार करने के बाद भी मज़लूमे करबला की मुक़द्दस जान को न बचा पाएंगे। फिर भी उन्होने अपनी जान का नज़राना पेश करने में किसी पसोपेश से काम नहीं लिया बल्कि ख़ुद को इमामे आली मक़ाम पर क़ुरबान करने में एक दूसरे पर सबक़त करते नज़र आए लेकिन शौक़े शहादत और क़ुरबानी का जोशो वलवला नुक़्तए उरूज पर होने के बावुजूद इज़्ने इमाम के बग़ैर एक क़दम भी आगे बढ़ाने की जुरअत नहीं की। हां इमाम से इजाज़त मिलने के बाद उरूसे मर्ग को गले लगाने के लिए मैदाने जंग की तरफ़ यूं दौड़ पड़ते थे जिस तरह कोई शख़्स अपनी इन्तेहाई महबूब और अज़ीज़ शै के हुसूल के वास्ते सअई करने में उजलत करता है।

चूंकि शोहदाए बद्रो ओहद असहाबे पैग़म्बरे अकरम और शोहदाए करबला असहाबे इमामे हुसैन थे लेहाज़ा मुमकिन है कि बाज़ अफ़राद को शोहदाए करबला की मंदरजा बाला फ़ज़ीलत का इज़हार नागवार महसूस हो लेकिन हमारी या आपकी क्या मजाल कि किसी को फ़ज़ीलत दे सकें क्येंकि फ़ज़्लो शरफ़ का अता करने वाला तो वो अल्लाह है जो अपने बंदों को, अन अकरम कुम इन्दल्लाहो अतक़ाकुम, के उसूल पर फ़ज़ीलतों का हामिल क़रार देता है। फिर हज़रत इमाम हुसैन (अ.) का ये क़ौले पाक कि, जैसे असहाब मुझे मिले वैसे न मेरे नाना को मिले और न मेरे बाबा को, शोहदाए करबला की अज़मतों को ज़ाहिर करने के लिए काफ़ी है। ज़ियारते नाहिया में हज़रत हुज्जतुल अस्र का मंदरजा ज़ेल इरशादे गिरामी भी शोहदाए करबला की रफ़अतों को बख़ूबी आशकार फ़रमा रहा है कि, अस्सलामो अलैका या अंसारा अबी अबदिल्लाहिल हुसैन, बाबी अनतुम वअमी तमत्तुम व ताबतलअर्ज़ल्लती फ़ीहा दफ़नतुम, ऐ अबू अबदुल्लाहिल हुसैन के नासिर व तुम पर हमारा सलाम, मेरे बाप व मां तुम पर फ़िदा, तुम ख़ुद भी पाक हुए ऐर वो ज़मीन भी पाक हो गई जिस पर तुम दफ़्न हुए नासिर उन इमामे मज़लूम को मासूम का मंदरजा बालाख़ेराज अक़ीदत उनकी अज़मतो जलालत को दीगर तमाम शोहदा पर साबित करने के लिए एक संगेमील की हैसियत रखता है।

आख़िरे कलाम में वालिदे माजिद ताबा सराह का एक क़ता अन्सारे हुसैन (अ.) की शान में पेशे ख़िदमत है-

अन्सार जुदा शाह से क्योंकर होते

गरदूं से जुदा क्या महो अख़तर होते

होते जो कहीं और ये हक़ के बंदे

उस क़ौम के मअबूद बहत्तर होते।

माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।

اَللّهُمَّ اهدِني فيہ لِصالِحِ الأعْمالِ وَاقضِ لي فيہ الحوائِجَ وَالآمالِ يا مَنْ لا يَحتاجُ إلى التَّفسيرِ وَالسُّؤالِ يا عالِماً بِما في صُدُورِ العالمينَ صَلِّ عَلى مُحَمَّدٍ وَآله الطّاهرينَ..

अल्लाह हुम्मा एहदिनी फ़ीहि ले सालेहिल आमाल वक़ ज़ी ली फ़ीहिल हवाएजा वल आमाल, या मन ला यहताजु इलत तफ़सीरि वस्सुवाल, या आलिमन बिमा फ़ी सुदूरिल आलमीन, स्वल्ले अला मुहम्मदिन व आलेहित्ताहिरीन (अल बलदुल अमीन, पेज 220, इब्राहिम बिन अली)

ख़ुदाया! इस महीने में मुझे नेक कामों की तरफ़ हिदायत दे, और मेरी हाजतों व ख़्वाहिशों को पूरी फ़रमा, ऐ वह ज़ात जो किसी से पूछने और वज़ाहत व तफ़सीर की मोहताज नहीं है, ऐ जहांनों के सीनों में छुपे हुए राज़ों के आलिम, दुरूद भेज मुहम्मद (स) और उन की आल के पाकीज़ा ख़ानदान पर.

अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम.

गुरुवार, 28 मार्च 2024 18:16

बंदगी की बहार- 17

रमज़ान का पवित्र महीना जारी है।

आज हम आपको यह बतायेंगे कि रमज़ान के पवित्र महीने में एक ईरानी परिवार क्या करता है। रमज़ान के पवित्र महीने में एक ईरानी बच्चा कहता है”

रमज़ान का महीना आ गया है। यह मेरा पांचवां साल है जब से मैं पूरे रोज़े रख रहा हूं। मेरी मां रसोईघर में इफ्तारी बना रही है यानी रोज़ा खोलने के लिए खानें बना रही है। पूरे कमरे में हलवे विशेष व्यजन और शोले ज़र्द की सुगंध फैली हुई है। एक विशेष प्रकार की मीठी खीर को शोले ज़र्द कहते हैं। पिता जी ताज़ा रोटी के साथ घर में प्रवेश करते हैं। हमारे माता- पिता ने बचपने से ही हमें रोज़ा रखने की आदत डाली है। ईरान में एक परंपरा यह है कि बच्चे को रोज़ा रखने और रोज़े के शिष्टाचारों से परिचित कराने के लिए कुछ समय तक उसे न खाने –पीने की आदत डालते हैं। इस परम्परा को “कल्ले गुन्जिश्की” कहते हैं। जब हमारे मां- बाप किसी से यह कहते थे कि हमने कल्लये गुन्जिश्की रोज़ा रखा है तो हमें यह आभास होता था कि हम बड़े हो गये हैं। हम धीरे- धीरे बड़े हो गये और अब वह समय आ गया है कि हम पूरे रोज़े रखें। जब हम छोटे थे और रोज़ा रखते थे तो हर रोज़े के बदले बड़े- बूढ़े हमें नई व प्रयोग न हुई नोट देते थे उनका यह कार्य हमारे लिए एक प्रकार का प्रोत्साहन था।

बहरहाल रमज़ान का पवित्र महीना आ गया है। चारों ओर विशेष प्रकार का आध्यात्मिक वातावरण व्याप्त है। टेलिवीज़न से दुआएं प्रसारित हो रही हैं। दस्तरखान लग गया है जिस पर पनीर, खाने की ताज़ा सब्जी, दूध, खजूर और दूसरी चीज़ें रख दी गयी हैं। रमज़ान के पवित्र महीने ने एक बार फिर यह संभावना उपलब्ध कर दी है कि परिवार के सदस्य रोज़ा खोलने के समय अधिक से अधिक एक दूसरे के साथ रहें। काफी समय से हम लोग एक साथ दस्तरखान पर नहीं बैठे थे। जैसे ही अज़ान कही गयी मेरे भाई ने ज़रा सा रुके बिना दूध से भरे ग्लास को पी लिया और पिताजी ने दुआ पढ़ी और आराम से कहा कि कबूल बाशद यानी ईश्वर सबके रोज़े को कबूल करे।         

यह उस महीने की कहानी है जो हर प्रकार की घटना से हटकर प्रतिवर्ष हमें एक साथ एकत्रित करता है। यह वह पवित्र महीना है जो हमें अपने पालनहार की उपासना करने और उससे दुआ करने का सुनहरा अवसर प्रदान करता है। इसी तरह यह महीना हमें दूसरों और उन लोगों का हाल- चाल जानने का अवसर प्रदान करता है जो वर्षों से हमारे मित्र हैं।

 

रमज़ान का पवित्र महीना जब आता है तो बहुत से लोगों की जीवन शैली बदल जाती है। खाने पीने, सोने, काम करने यहां तक इस महीने में सामान खरीदने और उसके प्रयोग की शैली भी परिवर्तित हो जाती है। वास्तव में जीवन शैली का परिवर्तित होना इस महीने का मात्र एक उपहार है जो जीवन में बड़े बदलाव का कारण बन सकता है।

रमज़ान के पवित्र महीने की एक बरकत यह है कि जब परिवार के सदस्य एक साथ रोज़ा रखते हैं, साथ में इफ्तारी करते और सहरी खाते हैं तो इससे परिवार के आधार मज़बूत होते हैं जबकि रमज़ान का पवित्र महीना आने से पहले बहुत कम एसा होता था कि परिवार के समस्त सदस्य एक साथ दस्तरखान पर एकत्रित हों। कुछ अपने कार्यों में व्यस्त होने के कारण केवल एक समय का खाना खाते थे वह भी सही समय पर नहीं। जबकि रमज़ान के पवित्र महीने में परिवार के सभी सदस्य इफ्तारी और सहरी के समय एक साथ होने का प्रयास करते हैं।

ईरानी बच्चा आगे कहता हैः माताजी एक धर्मपरायण महिला हैं। उन्होंने बचपने से ही हम सबके अंदर धार्मिक शिक्षाओं की आदत डाल दी है। जब वह हमें घूमाने के लिए पार्क या मनोरंजन स्थलों पर ले जाती हैं वहां पर वह हमें विभिन्न अवसरों पर महान ईश्वर की नेअमतों और उसकी सुन्दरताओं की याद दिलाती हैं। वह पेड़ों के पत्तों में अंतर को हमें बताती हैं। पुष्पों की महक और उसकी सुन्दता को हमारे लिए बयान करती हैं। इस प्रकार से कि हम यह सोचने पर बाध्य हो जाते हैं कि किसने इन फूलों को इतने सुन्दर व रंग बिरंगे रंगों में पैदा किया है। महान व सर्वसमर्थ ईश्वर है जिसने ब्रह्मांड और उसमें मौजूद समस्त चीज़ों की रचना की है।

 रोज़ा रखने का एक फायदा यह है कि रोज़ा रखने वालों के मध्य धैर्य करने की भावना पैदा और मज़बूत होती है और यह मोमिन लोगों के अधिक कृपालु बनने का कारण बनती है। जिस परिवार के सदस्य रोज़ा रखते हैं उसके सदस्य अधिक कृपालु व दयालु बन जाते हैं विशेषकर पिताजी इस महीने में कृपालु व दयालु बन जाते हैं। क्योंकि पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया है कि इस महीने में अपने बड़ों का सम्मान करो और अपने छोटों पर दया करो और सगे- संबंधियों के साथ भलाई करो, अपनी ज़बानों को नियंत्रित रखो और अपनी आंखों को हराम चीज़ों को देखने से बंद कर लो”

रोज़े की जो आध्यात्मिकता होती है विशेषकर सहरी व भोर के समय उसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। घर में खाने के लिए दस्तरखान बिछता है, मस्जिदों से पवित्र कुरआन की तिलावत की आवाज़ आती है। टीवी से पवित्र कुरआन की तिलावत और दुआ पढ़ने की आवाज़ आती है इस प्रकार के वातावरण में दोस्तों और सगे- संबंधियों से मिलने की अमिट छाप हमारे दिल और ईमान पर रह जाती है। इस आध्यात्मिक वातावरण में फरिश्ते नाज़िल होते हैं और वे इस पवित्र महीने की महानता, बरकत और संदेश को आसमान वालों के लिए ले जाते हैं। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि जो संदेश आसमान तक जायेगा उसका परिमाण मुक्ति व कल्याण होगा। यह एसा ही है कि यह धार्मिक उपासना हर साल आती है ताकि वह अपनी विभूतियों व बरकतों से हमारे व्यवहार व आचरण को बदल दे। पिताजी कहते हैं कि महत्वपूर्ण यह है कि हम पवित्र रमज़ान महीने में उपासना, रोज़े और दुआ को महत्व दें और महान ईश्वर की राह में खर्च करके, पवित्र कुरआन की तिलावत करके और दुआ करके अपने दिलों को प्रकाशमयी बनायें। अगर हम अच्छी तरह उपासना करें, पवित्र कुरआन की तिलावत करें और दुआ करें तो हमारे जीवन में रमज़ान के पवित्र महीने के प्रभाव अधिक होंगे।

मौलवी ने अपनी मसनवी में कुछ मनोवैज्ञानिक शैलियों का प्रयोग करके हमारे व्यवहार को परिवर्तित करने का प्रयास किया है और वह क्रोध को नियंत्रित करने वाली एक कहानी की ओर संकेत किया है। यह कहानी इस बात की सूचक है कि हम अपने इरादों को मज़बूत करके अपनी अनुचित आदतों को छोड़ सकते हैं। विशेषकर रमज़ान का पवित्र महीना एसा अवसर है जिसमें हम अपने अनुचित व्यवहार को परिवर्तित करके उसे सुधार सकते हैं। इसी प्रकार इस पवित्र महीने में हम अपने अवगुणों से मुकाबला हैं और उन्हें छोड़ सकते हैं। श्रोता मित्रो कृपया इस कहानी को ध्यान से सुने।

एक जवान था जिसका व्यवहार अच्छा नहीं था वह अपने दुर्व्यवहार से सदैव अपने आस- पास के लोगों को कष्ट पहुंचाता था। उसने अपनी इस बुरी आदत को सही करने का बहुत प्रयास किया परंतु उसे सही न कर सका। एक दिन उसके पिता ने उसे एक हथोड़ी और कुछ कीलें दीं और उससे कहा कि जब भी तुम्हें क्रोध आये तो एक कील दीवार में ठोंक देना। पहले दिन जवान दीवार पर कई कीलें ठोंकने के लिए बाध्य हुआ क्योंकि उसे बहुत क्रोध आता था और दिन की समाप्ति पर उसे अपने क्रोध की सीमा का अंदाज़ा हुआ। उसके अगले दिन कम क्रोधित होने का प्रयास किया ताकि कम कील दीवार में ठोंकनी पड़े। इस प्रकार वह प्रतिदिन अपने क्रोध की सीमा का अंदाज़ा लगाता रहा और दीवार में हर अगले दिन कम कीलें ठोंकता था। इस प्रकार उसके अंदर अपने क्रोध की आदत को बदलने की आशा उत्पन्न हो गयी।

इस प्रकार वह दिन आ ही गया जब जवान ने एहसास किया कि मेरे व्यवहार से क्रोध की बुरी आदत खत्म हो गयी। उसने पूरी बात अपने पिता से बतायी। उसका बाप एक समझदार और होशियार इंसान था उसने अपने बेटे को प्रस्ताव दिया कि अब हर उस दिन के बदले एक कील दीवार से निकालो जिस दिन भी तुम्हें क्रोध न आये। बहरहाल एक दिन आ गया जब जवान ने दीवार में ठोंकी समस्त कीलों को बाहर निकाल लिया। उसके बाद बाप ने बेटे का हाथ पकड़ा और उस दीवार की ओर ले गया जिसमें उसने कीलों को ठोंका था। उसने अपने बेटे की ओर देखा और कहा शाबाश! बहुत अच्छा काम किये किन्तु दीवार के उस भाग को देखो जहां से तुम कीलें निकाले हो। मेरे बेटे जब तुम क्रोध में कोई बात दूसरे से कहते हो तो वह उस कील की भांति है जो दीवार में तुमने ठोंकी थी यानी तुम अपनी बातों से दूसरों के दिलों में कील ठोंकते हो और इससे दूसरों के दिलों में जो घाव हो जाता है उसका चिन्ह बाकी रहता है और आसानी से उसकी जगह नहीं भरती। जवान अपने बाप की बात से समझ गया कि क्रोध से कितना नुकसान पहुंचता है और इसके बाद उसने दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करने का प्रयास किया। पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के कथनों में क्रोध को हर बुराई की जड़ कहा गया है। इंसान क्रोध की हालत में बहुत से एसे कार्य कर बैठता है जिस पर वह बाद में पछताता है। इसीलिए पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के कथनों में क्रोध को एक अन्य स्थान पर एक प्रकार का पागलपन कहा गया है। क्रोध में इंसान बुद्धि से कम काम लेता है। क्रोध वास्तव में दिल के अंदर जलने वाली एक प्रकार की आग की ज्वाला है। इसलिए रवायतों में कहा गया है कि जब इंसान को क्रोध आये तो उसे पानी पीना चाहिये। जिस इंसान को क्रोध आया हो उसे चाहिये कि अगर वह खड़ा हो तो बैठ जाये यानी अपनी दशा को बदल दे। इसी प्रकार जिस इंसान को क्रोध आया हो उसे चाहिये कि आइने में अपना चेहरा देखे। बहरहाल क्रोध एक एसी बुरी आदत है जो अवगुणों को ज़ाहिर और सदगुणों को छिपा देती है और बुद्धिमान व्यक्ति सदैव एसी चीज़ों को अंजाम देने से बचता है जो उसकी अच्छाइयों को छिपा ले और बुराइयों को ज़ाहिर कर दे।

 

 

गुरुवार, 28 मार्च 2024 18:15

ईश्वरीय आतिथ्य- 17

महान व सर्वसमर्थ ईश्वर ने बंदगी को पैग़म्बरे इस्लाम की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता बताया है और यह वह विशेषता है जिसका उल्लेख पवित्र कुरआन ने भी किया है।

पैग़म्बरे इस्लाम इसी विशेषता के कारण बड़े दर्जे तक पहुंचे सके और वह अपने आंखों से आकाश में बहुत सी चीज़ों को देख सके।

रमज़ान का पवित्र महीना अपनी समस्त अच्छाइयों के साथ हमें सलाम करता है और हमारा आह्वान आध्यात्मिक परिपूर्णता प्राप्त करने के लिए करता है। तो हम सबका नैतिक दायित्व बनता है कि अच्छे से अच्छे तरीके से उसके आह्वान का जवाब दें और रोज़ा रखकर महान ईश्वर के समक्ष अपनी बंदगी का परिचय दें और महान ईश्वर हम सबको पवित्र बनाये।

पूरे इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण यात्रा रमज़ान के पवित्र महीने में शबे मेराज की यात्रा है। यानी वह यात्रा जिसमें महान ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम को आसमान की सैर कराई। महान ईश्वर पवित्र कुरआन के सूरे इस्रा की पहली आयत में कहता है” पाक है वह ईश्वर जिसने एक रात को अपने बंदे को यानी पैग़म्बरे इस्लाम को मस्जिदे हराम से मस्जिद अक्सा की, जिसके इर्द- गिर्द हमने बरकत दी, सैर करायी ताकि अपनी कुछ निशानियों को दिखायें। बेशक ईश्वर सुनने और जानने वाला है।

पवित्र कुरआन के इस सूरे के आरंभ में ही दो शब्दों लैल और अस्रा का प्रयोग हुआ है जिससे ज्ञात होता है कि पैग़म्बरे इस्लाम की जो यात्रा हुई है वह रात में हुई है। इस प्रकार महान ईश्वर ने एक रात को पैग़म्बरे इस्लाम को मस्जिदे हराम से मस्जिदे अक़्सा की यात्रा कराई और वहां से उन्हें आसमान पर ले गया।

इतिहास में है कि जिस रात को पैग़म्बरे इस्लाम की यह यात्रा होने वाली थी उस रात को हज़रत जिब्राईल बुराक नाम की सवारी लाए और पैग़म्बरे इस्लाम उस पर बैठकर बैतुल मुकद्दस की ओर गये। इतिहास में है कि पैग़म्बरे इस्लाम अपनी यात्रा के दौरान मस्जिदुल अक्सा जाने से पहले कई दूसरे स्थानों पर गये और वहां उन्होंने नमाज़ पढ़ी। जैसे मदीना और कूफा। उसके बाद मस्जिदुल अक्सा गये वहां उन्होंने महान पैग़म्बरों जैसे हज़रत इब्राहीम, हज़रत ईसा और हज़रत मूसा की आत्माओं की उपस्थिति में नमाज़ पढ़ाई और सबने पैग़म्बरे इस्लाम के पीछे नमाज़ पढ़ी। उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम की आसमान की यात्रा आरंभ हुई। पैग़म्बरे इस्लाम ने एक के बाद एक सात आसमानों की यात्रा की और हर आसमान पर उन्होंने विचित्र चीज़ों को देखा। उस रात को पैग़म्बरे इस्लाम ने सृष्टि की विचित्र चीज़ों को देखने के अलावा ईश्वरीय दूतों से भी भेंट की। स्वर्ग और नरक को देखा। स्वर्ग में रहने वालों और उन्हें प्राप्त ईश्वरीय अनुकंपाओं को देखा। इसी प्रकार उन्होंने नरक और नरक वासियों की दुर्दशा को निकट से देखा। इस यात्रा में महान ईश्वर के विशेष फरिश्ते हज़रत जिब्राईल उनके साथ थे। हज़रत जिब्राईल पैग़म्बरे इस्लाम के साथ छवें आसमान तक साथ थे यहां तक कि सातवें आसमान पर जाने की बारी तो हज़रत जिब्राईल ने पैग़म्बरे इस्लाम से कहा कि इससे आगे मुझे जाने की अनुमति नहीं है और अगर एक इंच भी मैं आगे बढ़ा तो मेरे पंख जल जायेंगे।"

सातवें आसमान पर पैग़म्बरे इस्लाम ने सिद्रतुल मुन्तहा नाम का विशेष स्थान देखा। स्वर्ग भी वहीं है। पैगम्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद वहां पर महान ईश्वर के निकट पहुंचे। वहां पैग़म्बरे इस्लाम और महान ईश्वर के अलावा कोई और नहीं था। वहां महान ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम से बहुत महत्वपूर्ण सिफारिशें और बातें कीं जो हदीसे मेराज के नाम से प्रसिद्ध है। इस वार्ता के बाद पैग़म्बरे इस्लाम ज़मीन पर लौट आये और सुबह सूरज निकलने से पहले मक्का में अपने घर में थे। 

जो चीज़ रवायतों से समझ में आती है वह यह है कि मेराज यानी आसमान की यात्रा दो बार से अधिक बार हुई है और उनमें से एक बार की यात्रा स्पष्ट और बहुत प्रसिद्ध है और कहा जाता है कि यह यात्रा रमज़ान महीने की 17 तारीख को हुई थी।

मेराज पैग़म्बरे इस्लाम की अद्वितीय विशेषता है। यह महत्वपूर्ण यात्रा शारीरिक और जागने की हालत में हुई थी। इस यात्रा में पैग़म्बरे इस्लाम जमीन और आसमान के बहुत से रहस्यों से अवगत हुए। यहां बहुत महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि क्यों पैग़म्बरे इस्लाम को इस यात्रा का सौभाग्य पाप्त हुआ? इसके जवाब में कहना चाहिये कि पैग़म्बरे इस्लाम की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता महान ईश्वर की बंदगी है और इस विशेषता का उल्लेख महान ईश्वर ने पवित्र कुरआन में भी किया है और पैग़म्बरे इस्लाम बंदगी के चरम शिखर पर थे जिसकी वजह से उन्हें यह सौभाग्य प्राप्त हुआ। 

पवित्र कुरआन और हदीसों के आधार पर पैग़म्बरे इस्लाम की मेराज की यात्रा निश्चित रूप से हुई है और पैग़म्बरे इस्लाम की यात्रा को स्वीकार करना धर्म की ज़रूरी चीज़ों को स्वीकार करने जैसा है और इस बात पर समस्त इस्लामी संप्रदाय एकमत हैं।

रवायतों, कुछ दुआओं और ज़ियारतनामों में भी इस बात की ओर संकेत किया गया है और कुछ रवायतों में इसके इंकार करने वालों को काफिर कहा गया है। मेराज वह महान स्थान व यात्रा है जिसका सौभाग्य पैग़म्बरे इस्लाम के अलावा किसी और को नहीं मिला है। पैग़म्बरे इस्लाम ने इस यात्रा से वापस आने के बाद आसमान में जो कुछ देखा था उसे लोगों के लिए बयान किया ताकि इस भौतिक संसार में रहने वाले इंसान की सोच उपर उठ सके। मेराज नाम से जो हदीस प्रसिद्ध है उसमें आया है कि महान ईश्वर और पैग़म्बरे इस्लाम के मध्य बहुत ही महत्वपूर्ण वार्ताएं हुई हैं जिनमें कुछ की ओर हम संकेत करते हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम ने मेराज की रात महान ईश्वर से कहा हे ईश्वर! मेरा मार्गदर्शन कर कि किस कार्य से मैं तेरा सामिप्य प्राप्त कर सकता हूं? महान ईश्वर ने कहा अपनी रात को दिन और दिन को रात करार दो पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा कैसे इस प्रकार करूं तो इसके जवाब में महान ईश्वर ने कहा अपने सोने को नमाज़ और भूख को अपना खाना बना लो” हे अहमद! मेरी इज़्ज़त की सौगन्ध जो बंदा मेरे लिए चार विशेषताओं की गैरेन्टी दे मैं भी उसे स्वर्ग में दाखिल करूंगा। अपनी ज़बान को लगाम लगा ले, बात न करे किन्तु यह कि बात उसके लिए लाभदायक हो/ अपने दिल को शैतानी उकसावे से सुरक्षित रखे/ हमेशा इस बात को सोचे कि मैं उससे अवगत हूं और उसके कार्यों को देख रहा हूं और भूख को पसंद करे।

उसके बाद महान ईश्वर ने कहा हे अहमद! काश कि जानते कि भूख, मौन और अकेले में रहने का क्या आनंद है? इस पर पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा हे ईश्वर! भूखा रहने के क्या लाभ हैं? महान ईश्वर ने कहा तत्वदर्शिता, दिल की सुरक्षा, मेरा सामिप्य, हमेशा दुःखी, लोगों के मध्य कम खर्च करने वाला, सच व हक बोलना, जीवन के सुख या दुःख की उपेक्षा कर देना, हे अहमद! क्या जानते हो कि किस समय मेरा बंदा मुझसे निकट होता है?  पैगम्बरे इस्लाम ने फरमाया” नहीं मेरे पालनहार! इस पर महान ईश्वर ने फरमाया जब वह भूखा या सज्दे की हालत में हो।“

मेराज की हदीस के अनुसार महान ईश्वर और पैग़म्बरे इस्लाम के मध्य जो वार्ता हुई उसके दृष्टिगत पहली चीज़ जो इंसान को उपासना की ओर ले जाती है और महान ईश्वर के सामिप्य का कारण बनती है वह रोज़ा और मौन है।

हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” मौन तत्वदर्शिता का एक द्वार है, मौन प्रेम उत्पन्न करता है और मौन इंसान का मार्गदर्शन हर अच्छाई की ओर करता है।“

जब तब इंसान की ज़बान बेलगाम रहेगी वह अर्थहीन बातों को बोलने में भी संकोच से काम नहीं लेगा। महान ईश्वर की उपासना के मार्ग में नहीं आयेगा परिणाम स्वरूप अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंचेगा। जो इंसान मौन धारण रहने की आदत डाल ले वह झूठ, आरोप और दूसरों की बुराई जैसे बहुत से पापों से बच जायेगा। अलबत्ता हर मौन भलाई का कारण नहीं है बल्कि वह मौन इंसान को लाभ पहुंचा सकता है जो चिंतन- मनन के साथ हो।

हदीसों में भी मौन की बहुत प्रशंसा की गयी है। मौन रहने के फायदे में बस यही काफी है कि इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम फरमाते हैं कि हज़रत लुक़मान ने अपने बेटे से कहा हे बेटे अगर तू यह सोचता है बात चांदी है तो सच में मौन सोना है।

अतः हदीसे मेराज के अनुसार भूख और रोज़ा भी महान ईश्वर की बंदगी की भूमिका हैं। महान  हस्तियों ने भी कहा है कि आत्मा को पवित्र व स्वच्छ बनाने का एक रास्ता भूख है। संतुलित सीमा तक भूख इंसान के समक्ष चिंतन- मनन और बुद्धि का द्वार खोल देती है। पेट जब भर जाता है तो चिंतन -मनन व समझ का रास्ता भी बंद हो जाता है और अधिक खाने वाला इंसान कभी भी तेज़ बुद्धि वाला नहीं हो सकता और वह कभी भी ब्रह्मांड के नीहित रहस्यों को नहीं समझ सकता। पेट भरने से इंसान में इरादे की शक्ति कमज़ोर हो जाती है और खाने- पीने में संतुलन का ध्यान रखना इंसान के स्वास्थ्य, आयु के लंबा होने और दिल के प्रकाशमयी होने का कारण बनता है।

जब इंसान सीमा से अधिक खाता- पीता है तो आत्मा भी व्यस्त हो जाती है कि इंसान के शरीर के अतिरिक्त भोजन को पचाये और उसका शरीर भी अधिक पचाने में लग जाता है। परिणाम स्वरूप समय से पहले ही इंसान अंत के मुहाने पर पहुंच जाता है। प्रायः अधिक खाने खाने वाले व्यक्तियों की उम्र लंबी नहीं होती है। इसी तरह जो लोग अधिक खाते हैं उन्हें सुस्ती और नींद अधिक आती है। नैतिक सिफारिशों में आया है कि इंसान किसी भी चीज़ को इस तरह से नहीं भरता जिस तरह से पेट को भरता है।

रोज़ा, भूखा रहने का बेहतरीन अभ्यास है। रमज़ान महीने के 30 दिन के रोज़े इंसान के पाचन तंत्र को आराम की हालत में रखते हैं और दूसरे शब्दों में इंसान को कम खाने की आदत पड़ जाती है। रमज़ान के पवित्र महीने में इंसान में कम भोजन और स्वादिष्ट खाने की आदत कम हो जाती है। रोज़ा रखने वाले जिस इंसान को दिन भर खाने पीने की चिंता नहीं है वह महान ईश्वर की बंदगी की ओर कदम बढ़ाता है और भले व धार्मिक कार्यों को अंजाम देकर ईश्वरीय प्रकाश की दुनिया में कदम रखता है।

 

 

ग़ज़्ज़ा में अवैध ज़ायोनी शासन के हाथों फ़िलिस्तीनियों के जनसंहार पर आधारित राष्ट्रसंघ की विशेष रिपोर्टर को अमरीका और ज़ायोनी शासन ने धमकी दी है।

फ़िलिस्तीन के मामले में संयुक्त राष्ट्रसंघ की विशेष रिपोर्टर फ़्रांसिस्का अल्पानीज़ ने अपनी हालिया रिपोर्ट में बताया है कि ग़ज़्ज़ा में इस्राईल के हाथों जारी जनसंहार की समीक्षा से यह पता चलता है कि ज़ायोनी शासन, वहां पर जातीय सफाया करने में व्यस्त है।

ग़ज़्ज़ा में फ़िलिस्तीनियों के बढ़ते जनसंहार के संदर्भ में राष्ट्रसंघ की रिपोर्टर ने चिंता जताते हुए कहा कि एसा कोई अन्तर्राष्ट्रीय संगठन होना चाहिए जो इस्राईल द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय क़ानूनों को जानबूझकर बदलने और फ़िलिस्तीनियों के विनाश की हिंसक प्रक्रिया को रोक सके।

हाल ही में इस बात का रहस्योदघाटन हुआ है कि इस्राईल के साथ मिलकर अमरीका ने संयुक्त राष्ट्रसंघ की विशेष रिपोर्ट पर ज़ायोनी शासन के विरुद्ध पक्षपात का आरोप लगाते हुए उसे धमकी दी है।

राष्ट्रसंघ की विशेष रिपोर्टर का यह बयान सिद्ध करता है कि इस समय कोई भी अन्तर्राष्ट्रीय संस्था इस काम में सक्षम नहीं है कि ग़ज़्ज़ा में फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध जातीय सफाए का अभियान चलाने वाले इस्राईल को इसका ज़िम्मेदार ठहरा सके।  इसका मुख्य कारण यह है कि अवैध ज़ायोनी शासन, अमरीका के कूटनीतिक, सैनिक और मीडिया के संरक्षण में है।

कुछ समय पहले ही संयुक्त राष्ट्रसंघ की सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव पारित करके ग़ज़्ज़ा में तत्काल संघर्ष विराम की मांग की थी लेकिन अवैध ज़ायोनी शासन ने उस ओर कोई भी ध्यान नहीं दिया।

अवैध ज़ायोनी शासन ने अक्तूबर 2023 को अमरीका सहित पश्चिम के समर्थन से ग़ज़्ज़ा में निर्दोष एवं अत्याचारग्रस्त फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध नरसंहार का काम आरंभ कर रखा है।  ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार ग़ज़्ज़ा पर इस्राईली हमलों में 32 हज़ार से अधिक फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं।  इन हमलों में 75 हज़ार से अधिक फ़िलिस्तीनी घायल बताए जा रहे हैं।

अवैध ज़ायोनी शासन का गठन वैसे तो सन 1948 में हुआ था किंतु इसकी भूमिका 1917 से आरंभ हुई थी।  उस समय ब्रिटेन की षडयंत्रकारी योजना के अन्तर्गत दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों से यहूदियों को पलायन करवाकर पहले उनको फ़िलिस्तीन में लाया गया और बाद मे एक अवैध शासन के गठन ही घोषणा की गई जिसकी पाश्विकता आज पूरी दुनिया के सामने उजागर हो चुकी है।

भारत के पंजाब राज्य में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) ने सनसनीखेज दावा किया है कि उसे भाजपा में शामिल होने के लिए भारी रकम की पेशकश की गई है।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत के पश्चिमी राज्य पंजाब की सत्ताधारी पार्टी आम आदमी पार्टी ने आरोप लगाया है कि उसके विधानसभा सदस्यों को बीजेपी में शामिल होने के लिए करोड़ों रुपये की पेशकश की गई है.

गौरतलब है कि पंजाब की जालंधर सीट से आप सांसद सुशील कुमार रांको और जालंधर पश्चिम से सांसद शीतल अंगुराल बुधवार को बीजेपी में शामिल हो गए. सुशील कुमार रैंको AAP के एकमात्र लोकसभा (संसद का निचला सदन) सदस्य थे। सुशील कुमार के बीजेपी में शामिल होने के बाद आप के तीन विधायकों ने दावा किया था कि उन्हें फोन पर बीजेपी में शामिल होने के लिए पैसे देने को कहा गया था.

रिपोर्ट्स के मुताबिक, AAP ने आरोप लगाया है कि बीजेपी ने पंजाब में 'ऑपरेशन लोटस' फिर से शुरू कर दिया है और अरविंद केजरीवाल की पार्टी को तोड़ने की कोशिश कर रही है.

जलालाबाद से आप विधायक जगदीप कंबोज गोल्डी ने दावा किया कि उन्हें मंगलवार को एक अंतरराष्ट्रीय नंबर से सेवक सिंह नाम के एक व्यक्ति ने भाजपा में शामिल होने के प्रस्ताव के साथ फोन किया और 20-25 करोड़ रुपये देने को कहा।

इसी तरह के दावे बलवाना से विधायक अमनदीप सिंह और लुधियाना दक्षिण से विधायक राजेंद्र पाल कौर चिन्ना ने भी किए हैं। उन्होंने कहा कि चाहे कुछ भी हो जाए वह पार्टी नहीं छोड़ेंगे. जगदीप कंबोज गोल्डी ने कहा कि बीजेपी केजरीवाल और आप से डरती है. अमनदीप सिंह ने कहा कि उन्हें मंगलवार को एक फोन आया और फोन करने वाले ने कहा कि वह दिल्ली से बोल रहा है। अमनदीप ने कहा कि उन्होंने मुझसे बीजेपी में शामिल होने के लिए कहा और 45 करोड़ रुपये की पेशकश की.

जर्मनी और जॉर्डन में फ़िलिस्तीन के समर्थकों ने प्रदर्शन किया है और गाज़ा में युद्ध को तत्काल ख़त्म करने की मांग की है।

अल जज़ीरा टीवी की रिपोर्ट के अनुसार, जर्मनी की राजधानी बर्लिन और जॉर्डन की राजधानी अम्मान में फिलिस्तीन समर्थक प्रदर्शनकारियों ने गाजा के लोगों के समर्थन में और ज़ायोनी शासन के आक्रामक हमलों के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया। बर्लिन में प्रदर्शनकारियों ने फिलिस्तीनी झंडे और तख्तियां ले रखी थीं जिन पर लिखा था, "गाजा में नरसंहार बंद करो और फिलिस्तीन को मुक्त करो"।

दूसरी ओर, अल-कसाम ब्रिगेड के कमांडर मुहम्मद ज़ैफ़ की अपील पर जॉर्डन के लोग बुधवार रात सड़कों पर उतर आए और प्रदर्शन किया। फ़िलिस्तीनी समाचार एजेंसी सामा की रिपोर्ट के अनुसार, जॉर्डन के प्रदर्शनकारियों ने गाजा के लोगों के समर्थन में नारे लगाए और फ़िलिस्तीनी दृढ़ता के लिए अपना समर्थन घोषित किया।

गौरतलब है कि अल-कसाम ब्रिगेड ने ब्रिगेड के कमांडर मुहम्मद ज़ैफ का एक ऑडियो संदेश जारी किया था, जिसमें उन्होंने मुस्लिम उम्मा और अरब जगत से फिलिस्तीन जाने और उसकी मुक्ति में भाग लेने की अपील की थी। अल-अक्सा मस्जिद. इस बीच, पश्चिम जॉर्डन के रामल्ला के निवासी भी स्थिरता और गाजा के समर्थन में सड़कों पर उतर आए और स्थिरता के समर्थन में नारे लगाए।