
رضوی
तहरीक जिहाद-ए-इस्लामी के प्रमुख की ईरान के राष्ट्रपति से मुलाकात
ईरान के राष्ट्रपति ने गाजा के उत्पीड़ित और शक्तिशाली लोगों और प्रतिरोध गुट के समर्थन में इस्लामी गणतंत्र ईरान की रणनीति पर जोर देते हुए कहा कि गाजा के लोगों की दृढ़ता ने ज़ायोनी शासन के खिलाफ प्रतिरोध की ताकत और श्रेष्ठता साबित कर दी है। .
ईरान के राष्ट्रपति सैय्यद इब्राहिम रायसी ने फिलिस्तीन के इस्लामिक जिहाद आंदोलन के महासचिव ज़ियाद अल-नखला के साथ एक बैठक में प्रतिरोध बलों की बहादुरी और दृढ़ता का उल्लेख करते हुए फिलिस्तीनी समूहों के बीच एकता और एकजुटता की प्रशंसा की। ज़ायोनी सरकार के ख़िलाफ़ और कहा कि आज गाजा ज़ायोनी शासन और संयुक्त राज्य अमेरिका के काले और अभूतपूर्व अपराधों की तुलना में फ़िलिस्तीनी लोगों के प्रतिरोध और दृढ़ विश्वास का दृश्य प्रस्तुत करता है।
राष्ट्रपति ने प्रतिरोध समूहों और गाजा के लोगों की श्रेष्ठता की ओर इशारा किया और कहा कि फिलिस्तीनी लोगों और प्रतिरोध ने ज़ायोनी शासन की क्रूरता और अपराधों का विरोध करने के लिए अपना एकमात्र विकल्प घोषित किया है। राष्ट्रपति ने कहा कि यह तथ्य कि यह सरकार अजेय है, झूठ है और गाजा के लोगों ने साबित कर दिया है कि यह सरकार किसी भी स्तर पर किसी भी कानून, अंतरराष्ट्रीय समझौते और मानवीय सिद्धांतों का सम्मान नहीं करती है।
ज़ियाद अल-नखला की इस्लामी क्रांति के नेता के साथ बैठक
इस्लामी क्रांति के नेता ने प्रतिरोध बलों और गाजा के लोगों को मैदान का विजेता घोषित किया और कहा कि ज़ायोनी सरकार द्वारा प्राप्त विफलताओं के पीछे गाजा और फिलिस्तीन के लोगों के सम्मान और दृढ़ता की ऊंचाई और ईश्वर की विशेष कृपा थी। छह महीने के युद्ध में. है.
इस्लामी क्रांति के नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने गुरुवार शाम को फिलिस्तीनी इस्लामी जिहाद आंदोलन के महासचिव और उनके साथ आए प्रतिनिधिमंडल के साथ बैठक में गाजा के लोगों के नरसंहार में ज़ायोनी सरकार के बढ़ते अपराधों का उल्लेख किया। कहा कि ये कब्जाधारी ज़ायोनी शासन दुनिया की दमनकारी शक्तियों के समर्थन और समर्थन से उत्पीड़ित फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ युद्ध छेड़ रहा है और बच्चों और महिलाओं का नरसंहार कर रहा है। और उन्हें हराने में सक्षम नहीं है।
हज़रत अयातुल्ला आज़मी खामेनेई ने फ़िलिस्तीन के इस्लामिक जिहाद आंदोलन के महासचिव को संबोधित करते हुए कहा कि ईश्वर की कृपा और दया से, वह गाजा के लोगों की अंतिम जीत और सफलता के गवाह बनेंगे।
फिलिस्तीन के इस्लामिक जिहाद मूवमेंट के महासचिव ज़ियाद अल-नखला ने भी फिलिस्तीन के संबंध में इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान की मदद और समर्थन की सराहना करते हुए जनरल शहीद कासिम सुलेमानी को श्रद्धांजलि दी और कहा कि तमाम कठिनाइयों और साजिशों के बावजूद गाजा के लोगों ने प्रतिरोध बलों के पक्ष में खड़े होकर और अपने अद्वितीय बलिदान देकर, प्रतिरोध को नष्ट करने की संयुक्त राज्य अमेरिका, ज़ायोनी शासन और उसके समर्थकों की सभी योजनाओं को कुचल दिया है।
फ़िलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद आंदोलन के महासचिव ने हमास आंदोलन और इस्लामिक जिहाद और अन्य प्रतिरोध बलों के बीच पूर्ण समन्वय का उल्लेख किया और कहा कि गाजा के लोग और प्रतिरोध बल तब तक डटे रहेंगे जब तक कि वे अपनी अंतिम और निश्चित जीत हासिल नहीं कर लेते और ईश्वर की कृपा से कृपा और कृपा से उन्हें निकट भविष्य में परम सफलता मिलेगी।
गाजा पर संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट पर ईरान का बयान
इस्लामी गणतंत्र ईरान ने गाजा में कब्जा करने वाली ज़ायोनी सरकार द्वारा फ़िलिस्तीनी लोगों के व्यवस्थित नरसंहार के लिए दुनिया की राष्ट्रीय सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक और कानूनी संस्थानों को ज़िम्मेदार ठहराया है।
आईआरएनए के अनुसार, इस्लामी गणतंत्र ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नासिर कनानी ने गाजा में ज़ायोनी सरकार द्वारा फ़िलिस्तीनी लोगों के व्यवस्थित नरसंहार के संबंध में कहा है कि, मंत्रालय के प्रवक्ता इस्लामी गणतंत्र ईरान के विदेश मामलों के मंत्री नासिर कनानी ने कहा है कि राष्ट्रीय ही नहीं विश्व जनमत बल्कि इतिहास भी सरकारों और अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक और कानूनी संस्थानों के बारे में फैसला करेगा।
ईरान के विदेश कार्यालय के प्रवक्ता ने विदेश मंत्रालय के एक्स पेज पर लिखा है कि फिलिस्तीनियों के खिलाफ ज़ायोनी सरकार के व्यवस्थित नरसंहार की संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत द्वारा स्पष्ट रूप से पुष्टि की गई है। उन्होंने लिखा है कि इस रिपोर्ट के आने के बाद दुनिया की राष्ट्रीय सरकारें और अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक और कानूनी संस्थाएं न केवल विश्व जनमत के फैसले का बल्कि इतिहास के फैसले का भी सामना कर रही हैं कि वे अपने मानवीय, कानूनी और ऐतिहासिक कर्तव्यों का पालन करें. नहीं।
गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र की स्पेशल रैपोर्टेयर फ्रांसेस्का अल्बानीज ने फिलिस्तीन के बारे में अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि गाजा पर इजरायल के हमले करीब 6 महीने से जारी हैं. मैं अपनी जांच रिपोर्ट पेश कर रहा हूं कि गाजा में संगठित नरसंहार किया गया है.
क्या ग़ज़ा में महिलाओं और बच्चों को जीने का अधिकार नहीं
दुनिया भर के 2 हज़ार से अधिक मनोवैज्ञानिकों ने संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव और संयुक्त राष्ट्र संघ की महिला अधिकार आयोग के सचिव को एक पत्र लिखकर इस आयोग से ज़ायोनी शासन को निष्कासित किए जाने की मांग की है।
पत्र में इन मनोवैज्ञानिकों ने ग़ज़ा में महिलाओं और बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के प्रति अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की उदासीनता पर गहरी चिंता व्यक्त की और ग़ज़ा में ज़ायोनी शासन के बर्बर अपराधों की निंदा की।
इस पत्र में कहा गया है कि आज दुनिया के मनोवैज्ञानिकों का अहम सवाल यह है कि क्या महिलाओं की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र संघ का आयोग सिर्फ कुछ देशों के लिए ही है और क्या ग़ज़ा के लोगों और वहां की महिलाओं और बच्चों को इस संगठन में जगह पाने का कोई अधिकार नहीं है?
क्या महिला आयोग के सम्मानित सदस्यों ने कभी उन महिलाओं और बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य के बारे में सोचा है जो अपने दिन की शुरुआत बम, आग और गोलियों की आवाज़ से करते हैं
फ़िलिस्तीनी महिलाएं और बच्चे इज़रायली अपराधों के मुख्य शिकार हैं
इस पत्र में इन मनोवैज्ञानिकों ने कुछ सवाल भी किए है कि ऐसा कैसे हो सकता है कि ज़ायोनी शासन इन सभी भयानक उल्लंघनों के बावजूद अभी भी इस आयोग का सदस्य बना रहे और 25 हजार से अधिक निर्दोष महिलाओं और बच्चों का खून पीकर महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की बात करता रहे है?
ज़ायोनी शासन महिलाओं के अधिकारों का दावा करता है जबकि ग़ज़ा युद्ध में मारे गए लोगों में लगभग 70 प्रतिशत निर्दोष महिलाएं और बच्चे हैं! क्या संयुक्त राष्ट्र संघ की आंख, और कान जो कि एक अंतरराष्ट्रीय संस्था है, इस भयानक अपराध पर बंद हैं?
ग़ज़ा पर हमले में 25 हजार महिलाएं और बच्चे भी शामिल अंत में दुनिया भर के मनोवैज्ञानिकों ने इस्राईल के अपराधों की अनदेखी के दुष्परिणामों पर चेतावनी दी जिसमें संयुक्त राष्ट्र संघ की विश्वसनीयता को होने वाले नुक़सान की भी चेतावनी दी और इस घृणित और जाली शासन को जल्द से जल्द इससे जुड़े सभी मामलों से बाहर करने की मांग की।
7 अक्टूबर, 2023 से, पश्चिमी देशों के पूर्ण समर्थन से, इस्राईल ने ग़ज़ा पट्टी और जॉर्डन नदी के पश्चिमी तट पर मज़लूम, असहाय और उत्पीड़ित फिलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ एक नई सामूहिक हत्या का कार्यक्रम शुरू कर रखा है।
शबे क़द्र के आमाल
माहे मुबारक रमज़ान की उन्नीसवीं, इक्कीसवीं और तेइसवीं शबे क़द्र के मुश्तरका आमाल
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,माहे मुबारक रमज़ान की उन्नीसवीं, इक्कीसवीं और तेइसवीं शबे क़द्र के मुश्तरका आमाल
1) वक़्त ग़ुरूबे आफ़ताब (सूरज डूबने के क़रीब) ग़ुस्ल करें ताकि नमाज़े मग़रिब ग़ुस्ल की हालत में हो।
2) दो रकत नमाज़ जिसमें एक बार "सूरए हम्द" और सात बार "सूरए क़ुल-हु-वल्लाह" पढ़ें, दूसरी रकत भी इसी तरह पढ़ें।
3) नमाज़ के बाद सत्तर बार अस-तग़-फ़िरुल्लाह व अतूबु इलैह पढ़ें।
4) फिर क़ुरआन खोलकर यह दुआ पढ़ें:
"बिस्मिल्ला हिर्रहमान निर्रहीम"
"अल्लाह हुम्मा इन्नी अस अलुका बे किताबिकल मुन्ज़लि व मा फ़ीहि व फ़ीहि इस्मुकल अकबरो व अस्माओकल हुस्ना व मा युख़ाफ़ु व युरजा अन तज अलनी मिन उतक़ाएक़ा मिनन नारे व तकज़िया हवाएज लिद-दुनिया वल आख़िरा...
इसके बाद सभी के लिए दुआ करें और अपनी हाजात तलब करें!
5) इसके बाद क़ुरआन को
सर पर रखें और यह दुआ पढ़ें:
"बिस्मिल्ला हिर्रहमान निर्रहीम"
अल्लाह हुम्मा बेहक़्क़े हाज़ल क़ुरआने व बेहक़्क़े मन अर सल तहु बेहि व बेहक़्क़े कुल्ले मोमिनीन मदहतहु फ़ीहि व बे हक़्क़े का अलैहिम फ़ला अहदा आ रफ़ु बे हक़्क़े का मिनका...
दुआ करें और हाजात तलब करें।
6) उसके बाद सर पर क़ुरआन रखें और सभी नामों को दस दस बार पढ़ें:
1) बेका या अल्लाहु
2) बे मुहम्मदिन (स)
3) बे अलिय्यिन (अ)
4) बे फ़ातिमता (स)
5) बिल हसने (अ)
6) बिल हुसैने (अ)
7) बे अली इब्निल हुसैने (अ)
8) बे मुहम्मद इब्ने अली (अ)
9) बे जाफ़र इब्ने मुहम्मद (अ)
10) बे मूसा इब्ने जाफ़र (अ)
11) बे अली इब्ने मूसा (अ)
12) बे मुहम्मद इब्ने अली (अ)
13) बे अली इब्ने मुहम्मद (अ)
14) बिल हसन इब्ने अली (अ)
15) बिल हुज्जतिल क़ाएमे (अ)
दुआ करें और हाजात तलब करें।
ज़ियारते इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पढ़ें।
नोट: उन्नीसवीं रमज़ानुल मुबारक की शब में "अल्लाह हुम्मल अन क़तलतल अमीरुल मोमिनीन" सौ बार पढ़ें और इसी शब में "अस-तग़ फ़िरुल्लाह रब्बी व अतूबु इलैह" सौ बार पढ़ें।
तेइसवीं शबे क़द्र में सौ रकत नमाज़ और सौ बार सूरए "इन्ना अन ज़लना" पढ़ें और तस्बीह हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.अ) पढ़ें और दुआ ए जोशने कबीर भी पढ़ें।
शब ए कद्र की अहमियत
इमाम अली अ.स. ने एक रिवायत में शब ए कद्र की अहमियत की ओर इशारा किया हैं।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , इस रिवायत को "वसलुश् शिया,,पुस्तक से लिया गया है। इस रिवायत का पाठ इस प्रकार है:
:قال امیرالمومنین علیه السلام
رَأْسُ السَّنَـةِ لَيْلَةُ الْقَـدْرِ يُكْتَبُ فيها ما يَكُونُ مِنَ السَّنَةِ اِلَى السَّنَةِـةِ لَيْلَةُ الْقَـدْرِ يُكْتَبُ فيها ما يَكُونُ مِنَ السَّنَةِ اِلَى السَّنَةِـدْرِ يُكْتَبُ فيها ما يَكُونُ مِنَ السَّنَةِ اِلَى السَّنَةِ
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने फरमाया:
साल का आधार और बुनियाद शब-ए-क़द्र हैं और इसमें 1 साल से दूसरे साल तक जो कुछ होता है लिखा जाता हैं।
वसलुश् शिया,भाग 7,पेंज 258,हदीस नं 8
फ़ुज़्तु बे रब्बील काबा ,काबे के रब की क़सम मैं कामियाब हो गया
हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने यह जुमला(फ़ुज़्तु बे रब्बील काबा ,काबे के रब की क़सम मैं कामियाब हो गया)तब फ़रमाया जब नमाज़ में हालते सजदे में आप को अब्दुल रहमान इब्ने मुलजिम मलऊन ने ज़र्बत लगाई
हज़रत अली अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम स.ल. के पहले उत्तराधिकारी हैं। पैग़म्बरे इस्लाम स.ल. की प्राणप्रिय सुपुत्री हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.अ.) आपकी धर्मपत्नी और इमाम हसन और इमाम हुसैन अलैहिमस्सलाम आप के बेटे हैं।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम पवित्र रमज़ान महीने की 19 तारीख़ को मस्जिदे कूफ़ा में सुबह की नमाज़ पढ़ा रहे थे कि उसी हालत में धर्मभ्रष्ट अब्दुल रहमान इब्ने मुल्जिम मलऊन ने ज़हर में बुझाई तलवार से आपके सिर पर प्राणघातक हमला किया था और उस हमले में हज़रत अली अलैहिस्सलाम बुरी तरह घायल हो गये थे और ज़हर पूरे शरीर में फैल गया था यहां तक कि 21 रमज़ान (सन 40 हिजरी) की सुबह हज़रत अली अलैहिस्सलाम शहीद हो गये और समस्त इस्लामी दुनिया शोकाकुल हो गई।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने फ़रमाया कि ऐ अली! जिब्रईल ने मुझे तुम्हारे बारे में एक ऐसी ख़बर दी है जो मेरे आंखों के लिए नूर और दिल के लिए ख़ूशी बन गई है, उन्होंने मुझसे कहाः ऐ मुहम्मद! (स) अल्लाह ने कहा है कि मेरी ओर से मेरे हबीब (स) को सलाम कहों और उन्हें सूचित करो कि अली, मार्गदर्शन के अगुवा, पथभ्रष्टता के अंधकार का दीपक व विश्वासियों के लिए ख़ुदाई तर्क हैं और मैंने अपनी महानता की सौगंध खाई है कि मैं उसे नरक की ओर न ले जाऊं जो अली से मुहब्बत करता हो और उनके व उनके पश्चात उनके उत्तराधिकारियों (इमामों) का आज्ञाकारी हो।
आज उसी मार्गदर्शक के लिए हम सब शोकाकुल हैं। वह सर्वोत्तम और अनुदाहरणीय व्यक्तित्व जिसने संसार वासियों को अपनी महानता की ओर आकर्षित कर रखा था।
उस रात भी हज़रत अली अलैहिस्सलाम रोटी तथा खजूर की बोरी, निर्धनों और अनाथों के घरों ले गए। अन्तिम बोरी पहुंचाकर जब वे घर पहुंचे तो ख़ुदा की इबादत की तैयारी में लग गए। "यनाबीउल मवद्दत" नामक पुस्तक में अल्लामा कुन्दूज़ी लिखते हैं कि शहादत की पूर्व रात्रि में हज़रत अली अलैहिस्सलाम आसमान की ओर बार-बार देखते और कहते थे कि ख़ुदा की सौगंध मैं झूठ नहीं कहता और मुझसे झूठ नहीं बताया गया है। सच यह है कि यह वही रात है जिसका मुझ को वचन दिया गया है।
भोर के धुंधलके में अज़ान की आवाज़ नगर के वातावरण में गूंज उठी। हज़रत अली अलैहिस्सलाम धीरे से उठे और मस्जिद की ओर बढ़ने लगे। जब वे मस्जिद में दाख़िल हुए तो देखा कि इब्ने मुलजिम सो रहा है। आपने उसे जगाया और फिर वे मेहराब की ओर गए। वहां पर आपने नमाज़ पढ़ना शुरू की।
मस्जिद में उपस्थित लोग नमाज़ की सुव्यवस्थित तथा समान पक्तियों में हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पीछे खड़े हो गए। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के चेहेर की शान्ति एवं गंभीरता उस दिन उनके मन को चिन्तित कर रही थी। हज़रत अली अलैहिस्सलाम नमाज़ पढ़ते हुए सज्दे में गए। उनके पीछे खड़े नमाज़ियों ने भी सजदा किया किंतु हज़रत अली अलैहिस्सलाम के ठीक पीछे खड़े उस पथभ्रष्ट ने ख़ुदा के समक्ष सिर नहीं झुकाया जिसके मन में शैतान बसेरा किये हुए था।
इब्ने मुल्जिम ने अपने वस्त्रों में छिपी तलवार को अचानक ही निकाला। शैतान उसके मन पर पूरी तरह नियंत्रण पा चुका था। दूसरी ओर हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने पालनहार की याद में डूबे हुए उसका गुणगान कर रहे थे। अचानक ही विष में बुझी तलवार ऊपर उठी और पूरी शक्ति से वह हज़रत अली अलैहिस्सलाम के सिर पर पड़ी तथा माथे तक उतर गई। पूरी मस्जिद का वातावरण हज़रत अली अलैहिस्सलाम के इस वाक्य से गूंज उठा कि "फ़ुज़्तो बे रब्बिल काबा" अर्थात ख़ुदा की सौगंध मैं सफ़ल हो गया।
आकाश और धरती व्याकुल हो उठे। जिब्रईल की इस पुकार ने ब्रह्माण्ड को हिला दिया कि ख़ुदा की सौगंध मार्गदर्शन के स्तंभ ढह गए और ख़ुदाई प्रेम व भय की निशानियां मिट गईं। उस रात हज़रत अली अलैहिस्सलाम के शोक में चांदनी रो रही थी, पानी में चन्द्रमा की छाया बेचैन थी, न्याय का लहू की बूंदों से भीग रहा था और मस्जिद का मेहराब आसुओं में डूब गया था।
कुछ ही क्षणों में वार करने वाले को पकड़ लिया गया और उसे इमाम के सामने लाया गया। इमाम अली अलैहिस्सलाम ने जब उसकी भयभीत सूरत देखी तो अपने सुपुत्र इमाम हसन अलैहिस्सलाम से कहा! उसे अपने खाने-पीने का सामान दो। यदि मैं दुनिया से चला गया तो उससे मेरा प्रतिशोध लो अन्यथा मैं बेहतर समझता हूं कि उसके साथ क्या करूं और क्षमा करना मेरे लिए उत्तम है।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम के एक अन्य पुत्र मुहम्मद हनफ़िया कहते हैं कि इक्कीस रमज़ान की पूर्व रात्रि में मेरे पिता ने अपने बच्चों और घरवालों से विदा ली और शहादत से कुछ क्षण पूर्व यह कहा: मृत्यु मेरे लिए बिना बुलाया मेहमान या अपरिचित नहीं है। मेरी और मृत्यु की मिसाल उस प्यासे की मिसाल है जो एक लंबे समय के पश्चात पानी तक पहुंचता है या उसकी भांति है जिसे उसकी खोई हुई मूल्यवान वस्तु मिल जाए।
इक्कीस रमज़ान का सवेरा होने से पूर्व हज़रत अली अलैहिस्सलाम के प्रकाशमयी जीवन की दीपशिखा बुझ गई। वे अली जो अत्याचारों के विरोध और न्यायप्रेम का प्रतीक थे वे आध्यात्म व उपासना के सुन्दरतम क्षणों में अपने अल्लाह से जा मिले थे।
अपने पिता के दफ़न के पश्चात इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने दुख भरी आवाज़ में कहा था कि बीती रात एक ऐसा महापुरूष इस संसार से चला गया जो पैग़म्बरे इस्लाम (स) की छत्रछाया में जिहाद (धर्मयुद्ध) करता रहा और इस्लाम का अलम (पताका) उठाए रहा। मेरे पिता ने अपने पीछे कोई धन-संपत्त नहीं छोड़ी। परिवार के लिए केवल सात सौ दिरहम बचाए हैं।
सृष्टि की उत्तम रचना होने के कारण मनुष्य, विभिन्न विचारों और मतों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है तथा मनुष्य के ज्ञान का एक भाग मनुष्य की पहचान से विशेष है। अधिकतर मतों में मनुष्य को एक सज्जन व प्रतिष्ठित प्राणी होने के नाते सृष्टि के मंच पर एक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है परन्तु इस संबन्ध में इतिहास में ऐसे उदाहरण बहुत ही कम मिलते हैं जो प्रतिष्ठा व सम्मान के शिखर तक पहुंचे हो।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम इतिहास के ऐसे ही गिने-चुने अनउदाहरणीय लोगों में सम्मिलित हैं। इतिहास ने उन्हें एक ऐसे महान व्यक्ति के रूप में विश्व के सामने प्रस्तुत किया जिसने अपने आप को पूर्णतया पहचाना और परिपूर्णता तथा महानता के शिखर तक पहुंचने में सफ़लता प्राप्त की।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम का यह कथन इतिहास के पन्ने पर एक स्वर्णिम समृति के रूप में जगमगा रहा है कि ज्ञानी वह है जो अपने मूल्य को समझे और मनुष्य की अज्ञानता के लिए इतना ही पर्याप्त है कि वह स्वयं अपने ही मूल्य को न पहचाने
हज़रत अली अलैहिस्सलाम के सिर पर तलवार से वार
आज रमज़ान की १९ तारीख़ है। वही तारीख़ जब वर्ष ४० हिजरी क़मरी में सुबह की नमाज़ पढ़ते समय ईश्वर के महान साहसी एवं न्यायी दास के सिर पर मानव समाज के अत्यंत तुच्छ व्यक्ति की द्वेषपूर्ण तलवार ने वार किया। उस रात के बारे में इतिहास में आया है कि उस निर्धारित रात में सदगुणों के सरदार थोड़े-थोड़े अंतराल पर अपने कमरे से बाहर निकलते और आसमान को देखते थे। उस रात उन्हें पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) का वह कथन बार बार याद आ रहा था जिसे उन्होंने पवित्र रमज़ान के महीने में उनसे कहा था हे अली, रमज़ान के महीने में तुम्हारे साथ एक अतयंत दुखद घटना घटेगी। मैं देख रहा हूं कि तुम नमाज़ की स्थिति में हो और लोगों में से सबसे दुष्ट व्यक्ति अपनी तलवार से तुम्हारे सिर पर वार करके तुम्हारी दाढ़ी को तुम्हारे सिर के ख़ून से रंग रहा है। उस रात कभी तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ईश्वर का गुणगान करते और कभी वे पवित्र क़ुरआन के सूरए यासीन को पढ़ते। उस रात हज़रत अली अलैहिस्सलाम की उपासना अन्य रातों की तुलना में बहुत भिन्न थी। इस रात वे अपनी उपासना में इस वाक्य का प्रयोग बारबार कर रहे थे हे ईश्वर! मृत्यु को मेरे लिए शुभ बना दे।
अंततः सत्य के खोजियों का मार्गदर्शक सुबह की नमाज़ पढ़ने के लिए तैयार हुआ। अपने घर से तेज़ चलते हुए मस्जिद के लिए निकला। मस्जिद में प्रवेष किया और रात के अंधेरे में नमाज़ पढ़ना आरंभ की। फिर उन्होंने मस्जिद की छत पर जाकर सुबह की अज़ान कही। इस अज़ान में विशेष प्रकार का वैभव और आकर्षण था। अज़ान देने के बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम सुबह की नमाज़ पढ़ने के लिए खड़े हुए। उनकी यह नमाज़, अन्य नमाज़ों से कुछ अलग थी। निर्धारित समय आ पहुंचा था। अपने काल का अत्यंत दुष्ट व्यक्ति इब्ने मुल्जिम मुरादी, हज़रत अली अलैहिस्सलाम के निकट आया और उसने ज़हर में बुझी हुई तलवार से हज़रत अली के सिर पर वार किया। एसा वार जो सिर से माथे तक जा पहुंचा। यह वह वार था जिसने लोगों को हज़रत अली जैसे महान व्यक्ति से वंचित कर दिया और मानवता को दुख के अथाह सारग में डिबो दिया। सिर पर तलवार के वार से अली ख़ून मे लथपथ हो गए और उन्होंने संसार से स्वतंत्रता के स्वाद का आभास किया और ईश्वर से मिलन की बेला निकट आ गई। उन्हें उन दुखों से मुक्ति प्राप्त हो गई जिन्हें अज्ञानियों और धूर्त लोगों ने उन्हें दिया था। जैसे ही हज़रत अली के सिर पर ज़हर से बुझी तलवार से वार किया गया, हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने आकाश की ओर देखते हुए कहा कि काबे के रब की सौगंध, मैं सफल हो गया। तीन दिनों तक अत्यंत पीड़ादायक अवस्था में रहने के बाद २१ रमज़ान ४० हिजरी क़मरी को न्यायप्रेमियों का सरदार इस दुनिया से विदा हो गया। इस रात के बाद किसी अनाथ ने आशान्वित करने वाली उनके पैरों की आहट नहीं सुनी जो रात के अंधेरे में उन्हें खाद्य सामग्री आने का संदेश देती थी। खजूर के बाग़ों को भी फिर कभी उनके अस्तित्व की सुगंन्ध न मिल सकी।
प्रतिदिन की भांति आज भी हम इमाम सज्जाद की दुआ मकारिमुल अख़लाक़ का एक भाग प्रस्तुत करने जा रहे हैं। इस दुआ में इमाम ज़ैनुल आबेदीन कहते हैं कि हे ईश्वर! शैतान जिन कल्पनाओं, भ्रांतियों और द्वेष को मेरे मन में डालता है उसे तू अपनी कृपा से परिवर्तित कर दे और उसके स्थान पर अपनी महानता की याद, अपनी शक्ति में चिंतन-मनन करने तथा अपने शत्रु का विनाश करने की योजनाबंदी को रख दे।
दुआ के इस भाग में इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने शैतान की ओर से मन में डाली जाने वाली बातों को उठाया है। मनुष्य का हृदय, ईश्वरीय और शैतानी दोनों प्रकार की बातों का केन्द हो सकता है। वास्तव में हर वह बात जो ईश्वर की स्वीकृति और मनुष्य की परिपूर्णता का कारण बने वह ईश्वरीय सदेंश है। इसके विपरीत हर वह बात जो ईश्वर को पसंद न हो और मानव के पतन का मार्ग प्रशस्त करती हो वह शैतानी संदेश है। अपनी इस दुआ में इमाम सज्जाद ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि हे ईश्वर! मनुष्य के मन में जो भी बातें शैतान डालता है तू उनको परिवर्तित कर दे।
अभिलाषा या आशा वह अनुकंपा है जिसे ईश्वर ने मनुष्य को प्रदान किया है। आशा या अभिलाषा, संसार के विकास और इसकी गतिविधियों का मूल कारक है। इस बारे में पैग़म्बरे इस्लाम कहते हैं कि अभिलाषा, मेरी उम्मत के लिए एक अनुकंपा है और यदि अभिलाषा न होती तो कोई भी मां, अपने बच्चे को दूध न पिलाती और न ही कोई बाग़बान कोई पेड़ लगाता। वह अभिलाषा या कामना जिसे, इस्लाम के महापुरूषों ने अपने राष्ट्र के लिए कृपा बताया है वह उचित और बुद्धिमानीपूर्ण अभिलाषा है। यह वह अभिलाषा है जिसमें यथार्थवाद पाया जाता है तथा यह मनुष्यों के भौतिक और आध्यात्मिक कल्याण का स्रोत भी है। किंतु इसके विपरीत वे निराधार इच्छाएं और अभिलाषाएं, जो आयु के नष्ट होने का कारण हों तथा मानव की परिपूर्णता के मार्ग में बाधा बने वे न केवल यह कि ईश्वरीय विभूति नहीं हैं बल्कि इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम के कथनानुसार वह शैतानी अभिलाषाए हैं। खेद की बात यह है कि बहुत से लोग पूरी न होने वाली इन इच्छाओं और अभिलाषाओं का शिकार हो जाते हैं। यह लोग अपना जीवन पूरी न होने वाली इन इच्छाओं की प्राप्ति में लगा देते हैं। कभी-कभी एसा देखने में आता है कि एक छात्र, अपनी पाठ्य पुस्तक को, जिसे उसे अवश्य पढ़ना चाहिए, किनारे डाल देता है और किसी वरिष्ठ पद पर पहुंचने की कल्पना की उड़ान भरने लगता है। एसे में वह स्वयं को किसी उच्च पद पर विराजमान पाता है। इस प्रकार की अवास्तविक कल्पनाएं लोगों के शैतान के चुंगुल में फंसने का कारण बनती हैं। यही कारण है कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम, ईश्वर से कहते हैं कि ईश्वर की महानता की याद को शैतानी अभिलाषाओं के स्थान पर रख दे। इमाम जाफ़रे सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि ईश्वर की ओर से अनिवार्य की गई बातों में सबसे कठिन बात यह है कि अधिक से अधिक ईश्वर की याद में रहें। इसके पश्चात वे कहते हैं कि ईश्वर की याद से तात्पर्य केवल सुब्हानल्लाह और अलहम्दो लिल्लाह आदि कहना नहीं है यद्यपि यह भी ईश्वर का गुणगान है बल्कि, इससे तात्पर्य, हराम और हलाल अवसरों पर ईश्वर को याद रखना है अर्थात यदि ईश्वर के आज्ञापालन का अवसर है तो उसका आज्ञापालन किया जाए। और यदि पापों से बचने का अवसर हो तो पापों से बचा जाए।
पवित्र रमज़ान मोमिनों के धैर्य का और पवित्र लोगों को सफलता की शुभ सूचना देने का महीना है। यह महीना ईश्वर की कृपा के महासागर से लाभान्वित होने का भी महीना है। हम आशा करते हैं कि इस पवित्र महीने के बचे हुए दिनों में ईश्वर के आतिथ्य के योग्य अतिथि बन सकें। यहां पर हम हज़रत अली अलैहिस्सलाम की वसीयत का एक भाग प्रस्तुत कर रहे हैं।
इमाम अली अलैहिस्सलाम अपने पुत्र को वसीयत करते हुए कहते हैं कि वह अच्छाई, अच्छाई नहीं है जो केवल बुराई से ही प्राप्त हो। इस बात से बचते रहो कि लालच की सवारी तुम्हें तीव्र गति से अपने साथ ले जाए और विनाश के दर्रे में गिरा दे।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम का यह वक्तव्य इस विषय की ओर संकेत करता है कि कुछ लोग अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए हर प्रकार का कार्य करने को तैयार रहते हैं जबकि इस्लाम का यह आदेश है कि अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए केवल वैध मार्ग ही अपनाया जाए। दूसरे शब्दों में, माध्यम को लक्ष्य के अनुरूप होना चाहिए। उस चीज़ का क्या लाभ जो बुरे रास्ते से प्राप्त की गई हो। इसी संदर्भ में इमाम अली अलैहिस्सलाम का एक अन्य कथन है कि वह नेकी और भलाई/ भलाई नहीं है जो नरक का कारण बने। अपनी वसीयत को आगे बढ़ाते हुए हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने पुत्र को संबोधित करते हुए कहते हैं कि इस बात से बचते रहो कि लालच की सवारी तुमको तीव्र गति से अपने साथ ले जाए और विनाश की घाटी में ढकेल दे।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने यहां पर लालच को अनियंत्रित सवारी की उपमा दी है कि यदि मनुष्य उसपर सवार हो तो फिर उसका नियंत्रण छिन जाता है और वह उसे विनाश की ओर ले जाती है। यहां पर विनाश की घाटी से इस वास्तविकता की ओर संकेत किया गया है कि मनुष्य उस ओर अपनी लालच की प्यास बुझाने के लिए जाता है किंतु यदि लालच की सवारी से उस ओर कोई जाए तो न केवल यह कि उसकी प्यास नहीं बुझती बल्कि वह तबाह हो जाता है क्योंकि वहां पर पानी नहीं होता वहां तो तबाही होती है।
इस बात को आपने भी अपने जीवन में देखा होगा और इतिहास भी इस वास्तविकता का साक्षी है कि लालची लोगों को अपने जीवन में विफलताएं हाथ लगती हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि लालच, मनुष्य की आंखों और कानों को बंद कर देती है तथा उसको इस बात की अनुमति नहीं देती है कि वह अच्छे और बुरे मार्ग को समझ सके। यह कहा जा सकत है कि सामान्यतः वे लोग जो व्यापार में समस्याओं में घिर जाते हैं और दीवालिया हो जाते हैं, उसका मुख्य कारण उनकी लालच होती है। इसी संदर्भ में इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम का एक कथन बेहारूल अनवार में है। वे कहते हैं कि लालच, शैतान की शराब है जिसे वह अपने विशेष लोगों को पिलाता है। उसे पीकर जो मस्त हो जाता है वह ईश्वर के प्रकोप का पात्र बनता है। लालच के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम का एक कथन है कि लालच, दूरदर्शिता और तत्वदर्शिता को विद्वानों तक के हृद्यों से दूर कर देती है।
माहे रमज़ान के अठ्ठारहवें दिन की दुआ (18)
माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।
اَللّهُمَّ نَبِّهني فيہ لِبَرَكاتِ أسحارِہ وَنوِّرْ فيہ قَلْبي بِضِياءِ أنوارِہ وَخُذْ بِكُلِّ أعْضائِي إلى اتِّباعِ آثارِہ بِنُورِكَ يا مُنَوِّرَ قُلُوبِ العارفينَ..
अल्लाह हुम्मा नब्बिहनी फ़ीहि ले बरकाति असहारिह, व नव्विर फ़ीहि क़ल्बी बे ज़ियाए अनवारिह, व ख़ुज़ बे कुल्ले आज़ाई इला इत्तिबाइ आसारिह, बे नूरिका या मुनव्विरा क़ुलूबिल आरिफ़ीन (अल बलदुल अमीन, पेज 220, इब्राहिम बिन अली)
ख़ुदाया! मुझे इस महीने की सहरियों की बरकतों से आगाह कर और मेरे क़ल्ब को इस के नूरों से नूरानी फ़रमा और मेरे तमाम जिस्म के आज़ाअ व जवारेह को इस की पैरवी पर मामूर कर दे, तेरे नूर के वास्ते से, ऐ आरिफ़ों के दिलों को मुनव्वर (नूरानी) करने वाले.
अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम.
ईश्वरीय आतिथ्य- 18
इस्लाम में जेहाद को बहुत अहम उपासनाओं में बताया गया है कि जिसका दायरा पवित्र रमज़ान में हमेशा बढ़ा है और मुसलमानों को बहुत सी जीत इसी पवित्र महीने में मिली।
जैसे बद्र नामक जंग पवित्र रमज़ान में हुयी जिसमें 70 अनेकेश्वरवादी मारे गए और 70 ही अनेकेश्वरवादी लड़ाके क़ैदी बने थे।
पवित्र रमज़ान बर्कत का महीना, क़ुरआन के उतरने का महीना, सत्य के असत्य से अलग होने का महीना और जीत व सफलताओं का महीना है। यह वह महीना है जिसमें ऐसी अहम घटनाएं घटीं कि इतिहास का रुख़ ही बदल गया।
यह वह महीना है जिसमें बद्र नामक जंग हुयी। यह वह जंग थी जो मोमिनों अर्थात ईश्वर पर आस्था रखने वालों के लिए सम्मान का संदेश लायी, ईश्वर ने इसे सत्य और असत्य के बीच अंतर का महीना कहा है। इस महीने में कृपालु ईश्वर के भक्त शैतान के भक्त से अलग हुए अलबत्ता आस्था की दृष्टि से अलग हुए।
शुक्रवार 17 रमज़ान सन दो हिजरी क़मरी का दिन इस्लामी इतिहास में निर्णायक मोड़ समझा जाता है। इस दिन इस्लामी इतिहास की निर्णायक जंगों में से एक जंग हुयी और यह जंग पैग़म्बरे इस्लाम के लिए बहुत उपलब्धि भरी रही। इस जंग में बाप-बेटे एक दूसरे के मुक़ाबले में खड़े हुए ताकि ईश्वर अपने भक्तों को सम्मानित और दुश्मनों को अपमानित करे। जैसा कि आले इमरान सूरे की आयत नंबर 123 में ईश्वर कह रहा है, "ईश्वर ने तुम लोगों को बद्र के दिन विजय दी हालांकि तुम लोग एक छोटा सा गुट थे। तो ईश्वर से डरो ताकि उसका आभार व्यक्त कर सको।"
बद्र नामक जंग की वजह मुसलमानों का मक्का से मदीना पलायन था। इस पलायन की वजह से मुसलमान अपनी सारी संपत्ति मक्का में छोड़ने पर मजबूर हुए। मुसलमानों की संपत्तियों पर क़ुरैश ने क़ब्ज़ा कर लिया था इसलिए मुसलमानों ने अबु सुफ़ियान की अगुवाई वाले व्यापारिक कारवां को अपने क़ब्ज़े में करने और उसकी वस्तुओं को मदीना ले जाने का फ़ैसला किया। मुसलमानों का जंग का इरादा नहीं था लेकिन ईश्वर का इरादा था कि मुसलमान अनेकेश्वरवादियों से जंग करें और असत्य पर सत्य की जीत के नतीजे में इस्लाम की बुनियाद मज़बूत हो। इस बिन्दु की ओर ईश्वर अन्फ़ाल नामक सूरे की आयत नंबर 7 और 8 में फ़रमाता है, "ईश्वर ने तुमसे वादा किया था कि क़ुरैश का व्यापारिक कारवां या उसके सशस्त्र बल में से एक गुट तुम्हारे हाथ आएगा और तुम चाहते थे कि निशस्त्र गुट तुम्हारे हाथ आए लेकिन ईश्वर ने इरादा किया कि सत्य को अपने वचन से मज़बूत करे और अनेकेश्वरवादियों की जड़ को ख़त्म करे। ताकि सत्य को सत्य कर दिखाए और असत्य को असत्य, चाहे अपराधियों को कितना ही अप्रिय लगे।" चूंकि ईश्वर का इरादा मुसलमानों के इरादे पर हावी था, उन्हें अनेकेश्वादियों पर जीत दी और सत्य व असत्य के बीच ऐतिहासिकि संघर्ष हुआ।
उस ऐतिहासिक दिन मुसलमान यौद्धाओं के चेहरे पर ईश्वर पर आस्था की चमक इतनी ज़्यादा थी कि दुश्मन के लोग भी इससे प्रभावित थे। इतिहासकार इब्ने हेशाम ने अपनी किताब में लिखा है, "मक्का के अनेकेश्वरवादियों की सेना बद्र के मरुस्थल में उदवतुल क़ुसवा स्थान पर ठहरी हुयी थी। उसने अपने गुप्तचर गुट के एक बहुत ही माहिर जासूस को जिसका नाम उमैर बिन वहब जुमही था, यह ज़िम्मेदारी सौंपी कि इस्लामी सेना की सही जानकारी ले आए। उसने अपने तेज़ व फुर्तीले घोड़े से मुसलमानों के कैंप के चारों ओर चक्कर लगाया और स्थिति की समीक्षा करने के बाद अपने कमान्डर से कहाः वे लगभग 300 लोग हैं जिनके चेहरों और व्यवहार से ईश्वर पर आस्था और दृढ़ता ज़ाहिर है। वे तलवार को ही अपनी शरणस्थली समझते हैं। जब तक उनमें से हर एक तुममे से एक को क़त्ल न करे, क़त्ल नहीं होगा और अगर तुममे से उनके जितना मारे गए तो तुम्हारे निकट जीवन का क्या मूल्य रहेगा। इस स्थिति के बारे में सोचो और फ़ैसला लो।"
पवित्र रमज़ान दुआ के क़ुबूल होने और बंदों पर ईश्वर की कृपा के द्वार खुलवाने का महीना है। पवित्र रमज़ान में दुआ का इंसान के भविष्य पर गहरा असर पड़ता है। जैसा कि ईश्वर बद्र नामक जंग में दुआ के प्रभाव और उसके लाभदायक नतीजे के बारे में पवित्र क़ुरआन के अन्फ़ाल नामक सूरे की आयत नंबर 9 में फ़रमाता है, "याद करो जब अपने पालनहार से गुहार लगा रहे थे, उसने तुम्हारी दुआ क़ुबूल की और कहा कि मैं तुम्हारी एक हज़ार फ़रिश्तों से मदद करुंगा। यह काम तुम्हे ख़ुश करने और संतोष दिलाने के लिए था। ईश्वर के सिवा कहीं और से मदद नहीं होती और बेशक ईश्वर शान वाला व तत्वदर्शी है।" मुसलमानों के बीच पैग़म्बरे इस्लाम की दुआ व प्रार्थना का दृष्य बहुत ही शानदार था। उस निर्णायक चरण में पैग़म्बरे इस्लाम ने इन शब्दों में दुआ की, "हे पालनहार! तूने जो वादा किया है उसे पूरा कर।" पैग़म्बरे इस्लाम अपने हाथों को आसमान की ओर उठाकर इस तरह दुआ कर रहे थे कि उनके कांधों से अबा उतर गयी।
आपके लिए यह जानना भी रोचक होगा कि पैग़म्बरे इस्लाम सबसे कठिन स्थिति का ख़ुद सामना करते थे। वह आनंद व आराम पसंद व्यक्ति न थे कि अपने साथियों का मुश्किल हालात में साथ छोड़ कर किनारे बैठ जाए और सिर्फ़ आदेश देते रहें बल्कि वह जंग के मैदान में एक वीर की तरह दुश्मन के सबसे क़रीब होते थे। हज़रत अली कि जिन्हें उनके दोस्त और दुश्मन दोनों ही इस्लामी जंगों का सबसे वीर योद्धा मानते हैं, इस बारे में फ़रमाते हैं, "जब जंग अपने चरम पर होती थी तो हम पैग़म्बरे इस्लाम के पास शरण लेते थे और हम मुसलमानों में से कोई भी पैग़म्बरे इस्लाम के जितना दुश्मन के निकट नहीं होता था।" इस तरह पैग़म्बरे इस्लाम मुसलमानों और अपने साथियों को दृढ़ता, संघर्ष और इस्लाम की सत्यता की रक्षा का पाठ सिखाते थे।
पैग़म्बरे इस्लाम 2 रमज़ान मुबारक सन 8 हिजरी क़मरी को 10000 सिपाहियों पर आधारित एक फ़ौज लेकर मक्के की ओर रवाना हुए। इस बार पैग़म्बरे इस्लाम ने बहुत सावधानी बरती ताकि क़ुरैश को मुसलमानों की फ़ौज के निकलने के बारे में पता न चल सके। इस तरह मुसलमानों की फ़ौज के मर्रुज़्ज़हरान पहुंचने तक जो मक्के से कुछ किलोमीटर की दूरी पर है, मक्कावासियों और उनके जासूसों को मुसलमानों की फ़ौज के पहुंचने की कोई सूचना न थी। पैग़म्बरे इस्लाम के चाचा अब्बास बिन अब्दुल मुत्तलिब का जो मक्के में रहते थे, इससे पहले मुसलमान हो चुके थे और मक्के वालों से उनका अच्छे संबंध थे, उस समय मक्के से मदीना पलायन कर रहे थे, जोहफ़ा नामक क्षेत्र में पैग़म्बर इस्लाम और उनकी फ़ौज का सामना हुआ। वह कुछ समय तक पैग़म्बरे इस्लाम के पास रहे और फिर पैग़म्बरे इस्लाम के आदेश से मक्का गए। रास्ते में उनका अबू सुफ़ियान, हकीम बिन हेज़ाम और बदील बिन वरक़ा जैसे क़ुरैश के सरदारों से सामना हुआ और उन्होंने इस्लामी सेना की चढ़ाई की उन्हें सूचना दी और अबु सुफ़ियान को अपने साथ लेकर पैग़म्बरे इस्लाम के पास पहुंचे और उसे इस्लाम स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया। पैग़म्बरे इस्लाम ने अपनी सैन्य रणनीति और अबू सुफ़ियान के वजूद से मक्का को फ़त्ह करने के लिए उसे पहले मक्का भेजा ताकि वह इस पवित्र शहर को बिना किसी रक्तपात के फ़त्ह करने का मार्ग समतल करे। यह वह जीत थी जिसके ज़रिए से ईश्वर ने इस्लाम धर्म को सम्मानित किया, मुसलमान फ़ौज की मदद की, काबे को पवित्र किया और इस तरह लोग गुटों में इस ईश्वरीय धर्म को स्वीकार करने लगे।
पवित्र रमज़ान के महीने में मक्का की फ़त्ह से इस्लामी इतिहास में नया अध्याय जुड़ा। इस फ़त्ह से इस्लाम की बुनियाद मज़बूत हुयी। इसके बाद अनेकेश्वरवादियों ने किसी तरह का प्रतिरोध नहीं किया और उसके बाद पूरे अरब प्रायद्वीप से पैग़म्बरे इस्लाम की सेवा में इस्लाम स्वीकार करने के लिए लोगों का गुट जाने लगा। इस जीत का फ़त्ह नामक सूरे में इन शब्दों में वर्णन हुआ है, "जब ईश्वर की मदद और फ़त्ह आ पहुंचे और लोग समूहों में ईश्वर के धर्म में शामिल होने लगें। तो अपने पालनहार की प्रशंसा करो, उससे पापों की क्षमा चाहो कि वह हमेशा प्रायश्चित स्वीकार करने वाला है।" इस बड़ी जीत के लिए आभार व्यक्त करने के लिए तीन आदेश दिए गए हैं। एक उसे हर बुराइयों से पाक समझना, दूसरे उसे उसकी उच्च विशेषताओं से याद करना और तीसरे बंदों की कमियों के मुक़ाबले में क्षमा चाहना। इस महासफलता से अनेकेश्वरवादी विचार मिट गए, ईश्वर की महानता और अधिक प्रकट हुयी और गुमराह सत्य की ओर पलट आए। ये वे विभूतियां हैं जिन्हें हर मोमिन बंदा पवित्र रमज़ान में हासिल कर सकता है।