رضوی

رضوی

नहजुल-बलाग़ा की हिकमत संख्या 73 में, इमाम अली (अ) ने दूसरों को प्रशिक्षण देने से पहले आत्म-सुधार पर ज़ोर दिया है। उन्होंने कहा है कि जो व्यक्ति शासक और जनता का नेता है, उसे पहले स्वयं को सुधारना चाहिए और फिर अपने चरित्र और वाणी से दूसरों का मार्गदर्शन करना चाहिए, क्योंकि जो व्यक्ति स्वयं को प्रशिक्षित करता है, वह सम्मान का अधिक पात्र होता है।

अमीरुल मोमेनीन इमाम अली (अ) ने नहजुल-बलाग़ा में "दूसरों को प्रशिक्षण देने से पहले आत्म-सुधार" के बारे में कई बिंदुओं की व्याख्या की है। जिनमें से कुछ का उल्लेख यहाँ किया जा रहा है:

नहजुल बलाग़ा, हिकमत संख्या 73:

مَنْ نَصَبَ نَفْسَهُ لِلنَّاسِ إِمَاماً، [فَعَلَیْهِ أَنْ یَبْدَأَ] فَلْیَبْدَأْ بِتَعْلِیمِ نَفْسِهِ قَبْلَ تَعْلِیمِ غَیْرِهِ؛ وَ لْیَکُنْ تَأْدِیبُهُ بِسِیرَتِهِ قَبْلَ تَأْدِیبِهِ بِلِسَانِهِ؛ وَ مُعَلِّمُ نَفْسِهِ وَ مُؤَدِّبُهَا، أَحَقُّ بِالْإِجْلَالِ مِنْ مُعَلِّمِ النَّاسِ وَ مُؤَدِّبِهِمْ‏ मन नसबा नफ़सहू लिन्नासे इमामा, फ़अलैहे अय यब्दा फ़लयब्दा बेतअलीमे नफ़सेहि क़ब्ला तअलीमे ग़ैरेहि, वल यकुन तादीबोहू बेसीरतेही क़्बला तादीबेही बेलेसानेह, व मोअल्लेमो नफ़सेहि व मोअद्देबोहा, अहक़्क़ो बिल इज्लाले मन मोअल्लेमिन्नासे व मोअद्देबेहिम जो लोगों का नेता बनता है, उसे दूसरों को सिखाने से पहले खुद को सिखाना चाहिए, और उसे अपनी ज़ुबान से नैतिकता सिखाने से पहले अपने चरित्र और आचरण से सिखाना चाहिए, और जो खुद को सिखाता और अनुशासित करता है, वह उससे ज़्यादा सम्मान का पात्र है जो दूसरों को सिखाता और अनुशासित करता है।

शरह:

इमाम (अ) इस कथन में तीन महत्वपूर्ण बिंदुओं की ओर इशारा कर रहे हैं:

पहला, जो व्यक्ति लोगों का नेतृत्व करना चाहता है, उसे पहले खुद को शिक्षित करना चाहिए, क्योंकि जो व्यक्ति के पास नहीं है, वह दूसरों को नहीं दे सकता। (जो कोई खुद को इमाम नियुक्त करता है, उसे दूसरों को सिखाने से पहले खुद को सिखाना शुरू करना चाहिए)।

दूसरायह है कि दूसरों का प्रशिक्षण उसके कार्यों और चरित्र, केवल अपने शब्दों से नहीं, क्योंकि यदि कोई अपने शब्दों का पालन नहीं करता, तो उसके शब्दों का कोई प्रभाव नहीं होगा। (और उसे अपनी ज़ुबान से अनुशासित होने से पहले अपने चरित्र से अनुशासित होना चाहिए)।

तीसराव्यावहारिक उदाहरण हमेशा मौखिक सलाह से ज़्यादा प्रभावी होता है क्योंकि, जैसा कि कहा गया है: "जब तक बात दिल से नहीं निकलती, तब तक वह दिल पर असर नहीं करती।" इसी तरह, जो व्यक्ति पहले खुद को शिक्षित और अनुशासित करता है, वह भी दूसरों को शिक्षित और अनुशासित करने वाले की तुलना में ज़्यादा सम्मान का पात्र माना जाता है। और जो खुद को सिखाता है और उसे अनुशासित करता है, वह उससे ज़्यादा सम्मान का पात्र है जो लोगों को सिखाता और उन्हें अनुशासित करता है।

स्रोत: पुस्तक "पयाम ए इमाम अमीरुल मोमिनीन (अ)" (आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी), नहजुल बलाग़ा की एक व्यापक व्याख्या।

 

 इमाम ए जुमआ नजफ़ अशरफ हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैय्यद सदरुद्दीन क़बानची ने तुर्की राष्ट्रपति द्वारा हश्दुश-शअबी को दहशतगर्द तंज़ीम करार दिए जाने पर शदीद रद्द-ए-अमल ज़ाहिर करते हुए कहा है कि यह एक सरकारी फ़ौजी तंज़ीम है जो मर्ज़ीयत के फ़तवे पर क़ायम हुई और कमांडर इन चीफ़ के मातहत है।

इमाम-ए-जुमआ नजफ़ अशरफ हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैय्यद सदरुद्दीन क़बानची ने तुर्की राष्ट्रपति के बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि हश्दुश शअबी एक क़ानूनी सैन्य संगठन है जिसका गठन धार्मिक नेताओं के फतवे के आधार पर हुआ और यह इराकी सेना के अधीन कार्य करता है। 

उन्होंने जुमआ के ख़ुत्बे के दौरान स्पष्ट किया कि हश्दुश शअबी को ईरान की समर्थन प्राप्त होना इसे दहशतगर्द करार देने का जायज़ा नहीं बना सकता। अगर ईरान का समर्थन ही मापदंड है, तो ईरान ने इराक को गैस की आपूर्ति की और दाइश (आईएसआईएस) के ख़िलाफ़ जंग में इराक़ी फ़ौज की मदद की क्या यह सब भी दहशतगर्दी है? 

इमाम-ए-जुमआ नजफ़ ने कहा कि यह बयान दरअसल इराक़ के सियासी तजुर्बे को नाकाम बनाने की कोशिश है उन्होंने तुर्की राष्ट्रपति से सवाल किया कि क्या ईरान द्वारा इराक़ की बिजली आपूर्ति में मदद भी एक जुर्म है? 

ख़तीब-ए-जुमआ ने सूबा-ए-कूत में पेश आने वाले सानिहा पर गहरे दुख का इज़हार करते हुए वाक़िए की तहक़ीक़ात और ग़फ़लत के ज़िम्मेदारों के इहतिसाब का मुतालबा किया। उन्होंने इस्लामी जम्हूरी-ए-ईरान का ख़ास शुक्रिया अदा किया जिसने फ़ौरन माहिर डॉक्टर्स इराक़ भेजे। 

आगज़नी के हालिया वाक़िए पर डिफ़ा-ए-मदनी के अहलकारों का शुक्रिया अदा करते हुए उन्होंने सन 1968 के ब्लैक जुलाई क़ियाम की याद दिलाते हुए बास पार्टी की इस्लाम, इमाम हुसैन (अ.स.) और मिल्लत-ए-इराक़ से दुश्मनी की तफ़सीलात बयान कीं। 

उन्होंने कहा कि हम हर हफ़्ते बासी मज़ालिम पर मुश्तमिल एक दस्तावेज़ी मौज़ूआ अवाम के सामने पेश करेंगे इस हफ़्ते का उन्वान था बास, दीन के मुक़ाबिल। जिसमें उन्होंने एक सरकारी सनद का हवाला देते हुए बताया कि कुछ मोमिनीन को सिर्फ़ इस बिना पर फांसी दी गई कि वे मश्कूक तौर पर मसाजिद में आते थे! 

आख़िर में हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन क़बानची ने मुआशरती तहफ़्फ़ुज़ सामाजिक सुरक्षा के साथ-साथ दीनी तहफ़्फ़ुज़ पर ज़ोर दिया और नबी-ए-अकरम (स.अ.व.व.) की हदीस याद दिलाते हुए कहा कि दीन की सलामती कुरआन व अत्रत से वाबस्ता है, जबकि ग़ैबत के ज़माने में फ़ुक़हा-ए-आदिल हिदायत के ज़िम्मेदार हैं। 

 

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन काज़िम सिद्दीकी ने कहा,आपको एकजुट रहना चाहिए और एकता को कायम रखना चाहिए हर तफ़रका और इख़्तिलाफ़ की आवाज़ को दुश्मन की आवाज़ समझना चाहिए।

तेहरान के जुमआ नमाज़ के ख़तिब हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन काज़िम सिद्दीकी ने अपने ख़ुत्बे में कहा,इंसानियत की नजात मुक्ति का पहला और आख़िरी नुस्ख़ा तकवा है।

उन्होंने सूरा-ए-फातिहा की आयात की तिलावत के दौरान ज़िंदगी के रास्ते में हिदायत मार्गदर्शन और सही नमूनों की अहमियत की तरफ इशारा करते हुए कहा,ऐ ख़ुदा! मेरा हाथ थाम ले, मुझे हिदायत दे और जिस तरह तूने हिदायत की है उसी तरह मुझे सिरात-ए-मुस्तकीम पर कायम रख। वह लोग जिन पर ख़ुदा की नेमतों की दस्तरख़्वान वसीअ की गई है,इस रास्ते के राहरवों के लिए नमूना हैं।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सिद्दीकी ने शहीदों की ख़ासियतों का ज़िक्र करते हुए कहा, अंबिया का नूर सिद्दीकीन (सच्चे लोगों) में मुनक्किस (परावर्तित) होता है और शहीद ख़ुदा का आईना हैं। शहीद का मतलब है नमूना, गवाह और वह जो हिजाबों को पार कर गया हो।

जब हमारा जिस्म राह-ए-ख़ुदा में खून से आलूदा होता है, तो इंसान को मकाम-ए-फ़ना हासिल होता है, और 'फ़ना बिल्लाह' ही 'बक़ा बिल्लाह' (अल्लाह के साथ स्थायी होना) है।

तेहरान के जुमआ नमाज़ के ख़तिब ने अपने ख़ुत्बे में मकाम अस-साबिक़ून की तरफ इशारा करते हुए कहा,असहाब-ए-यमीन (दाएं हाथ वाले) से बुलंदतर, 'अस-साबिक़ून' हैं, और यह लोग क़ुर्ब-ए-इलाही (ईश्वर की निकटता) के मकाम के हामिल हैं।

उन्होंने आख़िर में इत्तिफ़ाक़ और इत्तिहाद एकता की अहमियत बयान करते हुए कहा,आपको मुत्तहिद (एकजुट) रहना चाहिए और वहदत (एकता) को क़ायम रखना चाहिए हर तफ़रका (फूट) की आवाज़ को दुश्मन की आवाज़ समझना चाहिए।

 

हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन हाजी अली अकबरी ने इस्लाम के इतिहास में हज़रत ज़ैनब (स) की आदर्श भूमिका पर ज़ोर दिया और कहा कि हज़रत ज़ैनब (स) का स्कूल सम्मान और दृढ़ता का एक उदाहरण है और युवाओं को इसी भावना के साथ भटकाव के विरुद्ध डटकर खड़ा होना चाहिए।

यूनाइटेड इस्लामिक अंजुमन में सर्वोच्च नेता के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मोहम्मद जवाद हाजी अली अकबरी ने हमादान प्रांत में अंजुमन के पदाधिकारियों और छात्र सदस्यों की एक सभा में इस्लामी क्रांति और स्पष्टीकरण के जिहाद में युवाओं की भूमिका पर ज़ोर दिया।

कुरान की इस आयत का हवाला देते हुए कि, "जो लोग कहते हैं, 'हमारा रब अल्लाह है,' वे दृढ़ हैं," उन्होंने कहा कि अल्लाह की प्रभुता को स्वीकार करना तब तक व्यर्थ है जब तक कि उसके साथ दृढ़ता न हो, और जिन्होंने यह मार्ग चुना है, उन्हें शत्रु द्वारा उठाए गए संदेहों और प्रलोभनों का विरोध करना चाहिए।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हाजी अली अकबरी ने हज़रत ज़ैनब (स) के चरित्र को इस्लाम के इतिहास में एक आदर्श बताते हुए कहा कि हज़रत ज़ैनब (स) का विद्यालय सम्मान और दृढ़ता का एक उदाहरण है, और युवाओं को इस भावना को अपने जीवन में अपनाना चाहिए, ताकि वे भटकावों के विरुद्ध खड़े हो सकें।

उन्होंने आगे कहा कि इस्लामी क्रांति ईरानी राष्ट्र की अहले-बैत (अ) के मार्ग और आशूरा की शिक्षाओं पर दृढ़ता का परिणाम है, और हाल की क्षेत्रीय सफलताएँ शहीदों, गाज़ियों और ईरानी राष्ट्र के परिवारों की दृढ़ता का परिणाम हैं।

हाजी अली अकबरी ने अंजुमन-ए-इस्लामी के छात्रों की भूमिका का उल्लेख करते हुए उन्हें एक अलग पीढ़ी बताया जो दुश्मन के बौद्धिक और मीडिया युद्ध में सबसे आगे हैं।

अंत में, उन्होंने मदरसों को जिहाद-ए-तबीन का केंद्र बताया और कहा कि छात्रों और शिक्षकों को इस्लामी क्रांति की नींव को मजबूत करने के लिए जिहाद-ए-तबीन जारी रखना चाहिए।

 

काशान के इमाम ए जुमआ हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद सईद हुसैनी ने कहा कि इजरायली शासन के विरुद्ध लड़ने का एकमात्र तरीका क्षेत्र में प्रतिरोध समूहों का गठन करना है।

काशान के इमाम ए जुमआ हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद सईद हुसैनी ने कहा कि इजरायली शासन के विरुद्ध लड़ने का एकमात्र तरीका क्षेत्र में प्रतिरोध समूहों का गठन करना है।

हुसैनी ने जुमआ के खुत्बे में कहा,क्षेत्र के देशों और अरब राष्ट्रों को समझ लेना चाहिए कि इजरायल की अतिक्रमणकारी नीतियों का मुकाबला करने के लिए प्रतिरोध इकाइयों का निर्माण ही एकमात्र समाधान है।

उन्होंने कहा कि इजरायल पहले ही ईरान के मिसाइल हमलों से कमजोर हो चुका है और अब अमेरिकी सहायता पर निर्भर है। 

उन्होंने ईरान द्वारा इजरायल के वाइज़मैन रिसर्च इंस्टीट्यूट पर किए गए हमले का जिक्र करते हुए बताया कि इजरायल ने शुरू में दावा किया था कि मिसाइल "गलती से" लगी थी, लेकिन बाद में संस्थान के प्रमुख ने स्वीकार किया कि ईरानी मिसाइलों ने सटीक निशाना लगाकर भारी नुकसान पहुंचाया। 

हुसैनी ने इजरायल द्वारा सीरिया पर हमले की निंदा करते हुए कहा कि यह अरब देशों के लिए एक चेतावनी है उन्होंने कहा,चाहे आप इजरायल को अरबों डॉलर दें, लेकिन एक दिन वह आपके खिलाफ भी यही करेगा। 

अंत में उन्होंने जोर देकर कहा,अरब देशों को यह समझना चाहिए कि इजरायल के अत्याचारों के खिलाफ लड़ने का एकमात्र तरीका प्रतिरोध समूहों का गठन करना है।

 

 ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि सीरिया पर इजरायली सरकार के आक्रमण के बावजूद यूरोपीय संघ की चुप्पी शर्मनाक है।

ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इजरायल द्वारा सीरिया पर किए गए हमले के संबंध में यूरोपीय संघ के पक्षपातपूर्ण और दोगले रुख पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। 

विस्तार से बताया गया कि इस्माइल बक़ाई ने यूरोपीय संघ की विदेश सेवा के बयान की आलोचना करते हुए कहा कि यूरोपीय संघ ने इजरायल के स्पष्ट और नंगे आक्रमण को केवल तनाव बढ़ाने वाला कहकर वास्तविकता को विकृत किया है और इस तरह नैतिक सिद्धांतों की सतही पालन भी छोड़ दी है। 

प्रवक्ता ने जोर देकर कहा कि ईरान ने हमेशा आक्रमण और कानून तोड़ने के खिलाफ डटकर विरोध किया है। हम यूरोपीय संघ की दोगली नीतियों और पक्षपातपूर्ण रवैये को सख्ती से खारिज करते हैं। 

उन्होंने कहा कि हम हमेशा की तरह सीरियाई लोगों के साथ खड़े हैं और उनकी राष्ट्रीय संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का पूर्ण समर्थन करते हैं।

 

आज जब ग़ज़ा में मानवता कराह रही है, बच्चों के शव मलबों से निकाले जा रहे हैं और अस्पताल खंडहर में तब्दील हो रहे हैं, ऐसे दौर में चुप रह जाना सबसे बड़ा अपराध है। भारत की आत्मा फिलिस्तीन के साथ है।

नई दिल्ली स्थित ग़ालिब अकादमी में “फिलिस्तीन के लिए शांति और न्याय” विषय पर एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। यह सम्मेलन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जारी फिलिस्तीनी संकट के विरुद्ध भारत से उठती एकजुटता की आवाज़ है, जिसका उद्देश्य न्याय, शांति और मानवीय मूल्यों की पुनर्प्रतिष्ठा है।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में भारत में फिलिस्तीनी राजदूत महामहिम अब्दुल्ला अबू शावेश ने शिरकत की और अपने ओजस्वी संबोधन में भारत और फिलिस्तीन के ऐतिहासिक संबंधों पर प्रकाश डालते हुए भारतीय जनमानस के समर्थन के प्रति आभार प्रकट किया।

राजदूत ने भारत के विदेश मंत्री के साथ हुई बैठक का हवाला देते हुए बताया कि भारत से हमेशा की तरह दवाई, खाना, कपड़े और सहूलत के सामान को ग़ज़्ज़ा में भेजने का आग्रह किया जिसपर विदेश मंत्री ने आश्वासन दिया कि हम फलीस्तीनी के साथ खड़े हैं और जल्द ही भारत सरकार की तरफ़ से सारी ज़रूरत की चीजें हमेशा की तरह भेजी जाएंगी।

सम्मेलन का संचालन कर रहे डॉ. फैज़ुल हसन, निदेशक इंटरनेशनल डेमोक्रेटिक राइट्स फाउंडेशन (IDRF) ने कहा कि, “आज जब ग़ज़ा में मानवता कराह रही है, बच्चों के शव मलबों से निकाले जा रहे हैं और अस्पताल खंडहर में तब्दील हो रहे हैं, ऐसे दौर में चुप रह जाना सबसे बड़ा अपराध है। भारत की आत्मा फिलिस्तीन के साथ है।”

इस सम्मेलन को कई प्रतिष्ठित वक्ताओं ने संबोधित किया:

मुफ़्ती अशफाक़ हुसैन क़ादरी (अध्यक्ष, एआईटीयूआई) ने ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ बुलंद करने को इस्लामी और मानवीय ज़िम्मेदारी बताया।

सज्जाद हुसैन करगिली (राजनीतिक कार्यकर्ता) ने कश्मीर-फिलिस्तीन एकजुटता पर बात करते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस जनसंहार के खिलाफ आवाज़ उठाने की जरूरत पर बल दिया। और बताया कि यह जंग हक़ और नाइंसाफी की है, न कि यहूदी बनाम मुसलमान, न शिया बनाम सुन्नी।

फ़िरोज़ मितिबोरवाला (महासचिव, आईपीएसएफ) ने इसे नव-उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद की राजनीति करार दिया और जनांदोलनों से जुड़ने की अपील की। उन्होंने बोला कि फिलिस्तीन के साथ सड़क से लेकर सोशल मीडिया, मीडिया और हर तरह से आवाज़ उठानी पड़ेगी क्योंकि यह लड़ाई इंसानियत की लड़ाई है।

डॉ. शुजात अली क़ादरी (अध्यक्ष,एमएसओ) ने कहा कि फिलिस्तीन के बच्चों की चीखें केवल फिलिस्तीन की नहीं बल्कि पूरी मानवता की हार हैं।

सम्मेलन में सैकड़ों छात्रों, बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और आम नागरिकों की भागीदारी रही। कार्यक्रम के अंत में सभी प्रतिभागियों ने “फिलिस्तीन के लिए न्याय” की मांग को लेकर एकजुटता प्रदर्शित करते हुए संकल्प लिया कि वे इस मुद्दे को समाज के हर वर्ग तक पहुंचाएंगे। फ़्री-फ़्री पेलेस्टाइन के नारों से पूरा हाल गूँजता रहा।

 

ईरानी ख़ुफ़िया एजेंसी के मंत्री ने एक साक्षात्कार में कहा है कि हम ज़ायोनी सरकार के महत्वपूर्ण संस्थानों तक पहुँच रखते है।

ईरानी ख़ुफ़िया एजेंसी के मंत्री हुज्जतुल इस्लाम सय्यद इस्माईल ख़तीब ने खुलासा किया है कि इस्लामी गणराज्य ईरान ने न केवल अपनी धरती पर विदेशी एजेंटों के ख़िलाफ़ सफल अभियान चलाए हैं, बल्कि दुश्मन देशों और ज़ायोनी सरकार के भीतर भी गहरी पहुँच हासिल कर ली है।

एक साक्षात्कार में, जब उनसे ख़ुफ़िया मंत्रालय की हालिया सफलताओं और उच्चतम स्तर पर संभावित पहुँच के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि प्रभाव या पहुँच का मुद्दा हमेशा से रहा है और आगे भी रहेगा, लेकिन हमने अन्य देशों, विशेष रूप से ज़ायोनी सरकार के भीतर भी पहुँच हासिल कर ली है।

उन्होंने बताया कि जब किसी स्तर पर घुसपैठ की पहचान होती है, तो सशस्त्र बल और ख़ुफ़िया एजेंसियाँ संयुक्त रूप से कार्रवाई करती हैं और प्रत्येक मामले की न्यायिक रूप से कानूनी रूप से जाँच की जाती है।

हुज्जतुल इस्लाम ख़तीब ने ज़ोर देकर कहा कि मीडिया और जनता को दी गई ख़बरें अफ़वाह या झूठ नहीं हैं, बल्कि सत्यापित और प्रामाणिक हैं।

जब उनसे पूछा गया कि क्या ख़ुफ़िया मंत्रालय ने उच्च-स्तरीय घुसपैठ की पहचान करने में कोई प्रगति की है, तो उन्होंने कहा कि हमारी उपलब्धियाँ सार्वजनिक की जाती हैं और जब भी कोई महत्वपूर्ण सफलता मिलती है, तो उसकी आधिकारिक घोषणा की जाती है।

 

 

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली सिस्तानी के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैय्यद जवाद शहरस्तानी ने कहा है कि इस्लामी जम्हूरी-ए-ईरान ने तहफ़्फ़ुज़ी साज़ो-सामान की तैयारी में जो पेशरफ़्त हासिल की है वो दुनिया में बे नज़ीर है।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली सिस्तानी के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वाल मुस्लिमीन सैयद जवाद शहरस्तानी ने कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान ने रक्षा उपकरणों के निर्माण में अभूतपूर्व प्रगति की है। 

उन्होंने यह बात क़ुम पवित्र शहर में बेहज़ीस्ती संस्थान के प्रमुख सैयद जवाद हुसैनी से मुलाकात के दौरान कही हुज्जतुल इस्लाम शहरस्तानी ने कहा कि ईरान असंख्य वैज्ञानिक और बौद्धिक क्षमताओं वाला देश है, जिन्हें भविष्य निर्माण के लिए उपयोग में लाना आवश्यक है। 

उन्होंने युवाओं की वैज्ञानिक शिक्षा पर ज़ोर देते हुए कहा,शिक्षा और प्रशिक्षण प्रणाली इन क्षमताओं की पहचान और विकास में मूलभूत भूमिका निभाती है हमारे पास भौतिकी, रसायन विज्ञान और अन्य विज्ञानों में अद्भुत प्रतिभा वाले लोग हैं, जिनकी कद्र की जानी चाहिए।

उन्होंने आगे कहा कि हमें अपनी क्षमताओं को पहचान कर उनके आधार पर व्यवस्थित योजना बनानी चाहिए ताकि वैज्ञानिक और औद्योगिक विकास की उच्चतम सीमाओं तक पहुँच सकें। 

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन शहरस्तानी ने ज़ोर देकर कहा कि आज ईरान न केवल उन्नत रक्षा उपकरणों का निर्माण कर रहा है, बल्कि चिकित्सा क्षेत्र में भी उल्लेखनीय प्रगति कर चुका है यहाँ तक कि रूस जैसे देश को ईरान से ड्रोन आयात करने की आवश्यकता पड़ रही है। 

उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि देश के प्रतिभाशाली लोगों को विदेश जाने से रोका जाना चाहिए और राष्ट्रीय संसाधनों का पूरा उपयोग किया जाना चाहिए।

 

मुंबई की पाला गली जामा मस्जिद के इमाम-ए-जुमा, होज्जतुल इस्लाम मौलाना सैयद अहमद अली आबिदी ने जुमा की नमाज़ के ख़ुत्बे में कहा कि हुसैन (अ.स.) का ज़िक्र आख़िरत का सबसे बेहतरीन ख़ज़ाना है।

ख़ोजा शिया इस्ना अशरी जामा मस्जिद, पालागाली के इमाम-ए-जुमआ, हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सैयद अहमद अली आबिदी ने जुमआ की नमाज़ के ख़ुत्बे में कहा कि इमाम हुसैन अ.स.का ज़िक्र आख़िरत के लिए सबसे बेहतरीन ख़ज़ाना है। 

मौलाना सैयद अहमद अली आबिदी ने रसूलुल्लाह स.अ.व.की एक लंबी हदीस बयान करते हुए कहा कि ग़ीबत, दुनिया की मोहब्बत, तकब्बुर, ख़ुदपसंदी, हसद, बेरहमी और इख़्लास की कमी अमल की क़ुबूलियत में रुकावट है। 

उन्होंने इख़्लास के संबंध में इमाम ख़ुमैनी (र.ह.) के कथन को बयान करते हुए कहा कि इमाम ख़ुमैनी र.ह ने फ़रमाया,जो अमल अल्लाह के लिए नहीं होगा, उसकी क़ुबूलियत के लिए ख़ुदा से मांगना बेकार है। याद रखें कि हम सबको बेवकूफ़ बना सकते हैं, लेकिन ख़ुदा को नहीं।

मौलाना ने एक रिवायत के तहत कहा कि जो अमल अल्लाह के लिए नहीं होता अल्लाह उसे क़बूल नहीं करता। 

मुंबई के इमाम-ए-जुमआ ने हुसैन अ.स.के ज़िक्र पर ज़ोर देते हुए कहा कि इमाम हुसैन (अ.स.) का ज़िक्र और उनकी अज़ादारी ही एकमात्र ज़रिया है जो हमारे लिए आख़िरत का सबसे बेहतरीन ख़ज़ाना है, इसलिए कोशिश करें कि दिल के इख़्लास के साथ इमाम हुसैन अ.स.का तज़किरा करें और उनकी अज़ादारी करें।