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इस्राइली मीडिया के अनुसार, हरीदी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले कम से कम आठ सैनिक देश से बाहर भागने की कोशिश करते समय बिन गुरियन एयरपोर्ट पर गिरफ़्तार किए गए हैं।

ग़ासिब इस्राइली मीडिया ने बताया है कि हरीदी समुदाय से संबंध रखने वाले कम से कम आठ सैनिक विदेश भागने की कोशिश करते हुए बिन गुरियन एयरपोर्ट पर गिरफ्तार किए गए हैं।

ज़ायोनी मीडिया के मुताबिक, ज़ायोनी सेना से भागने वाले ये आठ हरेदी यहूदी बिन गुरियन एयरपोर्ट पर पकड़े गए हैं।रिपोर्ट में बताया गया है कि ये लोग सैन्य सेवा से गायब थे और एयरपोर्ट पर ही पकड़ में आए।

ग़ाज़ा में चल रही लंबी लड़ाई के कारण ज़ायोनी सेना को गंभीर जनशक्ति की कमी का सामना करना पड़ रहा है, वहीं हरीदी यहूदी लगातार सेना में भर्ती होने से इनकार कर रहे हैं।

यह भी ध्यान देने वाली बात है कि इससे पहले चीफ ऑफ स्टाफ आयाल ज़ामीर ने चेतावनी दी थी कि ग़ाज़ा के खिलाफ युद्ध में सेना को जनशक्ति की कमी एक गंभीर समस्या बन गई है।

 

 

आयतुल्लाह सय्यद शहाबुद्दीन मरअशी नजफी अपने जीवन की एक अद्भुत घटना का वर्णन करते हैं, कि कैसे हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स) के दान से उन्हें कठिनाइयों और गरीबी से मुक्ति मिली।

अहले बैत (अ) ईश्वरीय दया और निराश लोगों की आशा का प्रतीक हैं। इन्हीं में से एक हैं हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स), जिनकी पवित्र शहर क़ुम में स्थित दरगाह हर ज़रूरतमंद व्यक्ति के लिए सांत्वना और मध्यस्थता का केंद्र है।

आयतुल्लाह मरअशी नजफी बताते हैं कि जब वे नजफ़ अशरफ़ से क़ुम आए, तो वे अत्यधिक गरीबी से जूझ रहे थे और एक छोटे से किराए के घर में रहते थे। घर की मालकिन बहुत सख्त और अनैतिक थी, और छोटी-छोटी बातों पर भी अपनी पति से झगड़ती रहती थी। एक दिन, इस झगड़े से बहुत दुखी होकर, आयतुल्लाह मरअशी नजफ़ी हज़रत मासूमा (स) की दरगाह की ओर मुड़े और आँसू और विलाप के साथ कहा:

“बीबी जान! मैं आपका मेहमान हूँ और आपकी दरगाह में शरण चाहता हूँ। अल्लाह से दुआ करें कि मुझे किराए के घर में रहने के दुःख से मुक्ति मिले।”

कुछ दिनों बाद, उनके चाचा का एक पत्र आया जिसमें लिखा था कि उन्होंने मन्नत मानी है कि अगर उनकी ज़रूरत पूरी हो जाए, तो वे क़ुम में एक बेघर छात्र के लिए एक घर खरीदेंगे। चूँकि आयतुल्लाह मरअशी नजफ़ी के पास अपना घर नहीं था, इसलिए उन्हें छह सौ तूमान भेजे गए ताकि वे क़ुम में एक घर खरीद सकें।

इस प्रकार, हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स) की कृपा और मध्यस्थता से, आयतुल्लाह मरअशी नजफ़ी और उनके परिवार को किराए के घर में रहने और कठिनाइयों से मुक्ति मिली।

 

 

सदियों से फ़लसफ़ीयों और इल्म ए क़लाम के जानकार इस सवाल पर विचार करते आए हैं अगर खुदा सबसे पहले से हर चीज़ जानता है, तो फिर इंसान की आज़ादी और इख़्तियार का क्या मक़ाम रहता है? क्या ईश्वर के पहले से जानने का मतलब यह है कि हमारे पास अपनी मर्जी और चुनाव की कोई गुंजाइश नहीं बचती?

सदियों से फ़लसफ़ीयों और इल्म ए क़लाम के जानकार इस सवाल पर विचार करते आए हैं अगर खुदा सबसे पहले से हर चीज़ जानता है, तो फिर इंसान की आज़ादी और इख़्तियार का क्या मक़ाम रहता है? क्या ईश्वर के पहले से जानने का मतलब यह है कि हमारे पास अपनी मर्जी और चुनाव की कोई गुंजाइश नहीं बचती?

अल्लाह तआला का 'इल्म-ए-एज़ली' और इंसान के इख़्तियार का मसला सदियों से दार्शनिकों और मुफ़्तकिरीन के बीच चर्चा का विषय रहा है। इसके संबंध में एक आम शक्ल पेश की जाती है:

शूब्ह:

अगर ईश्वर पहले से जानता है कि मैं क्या करूँगा तो मैं मजबूर हूँ?

यह सोच असल में एक ग़लतफहमी है, जिसमें कारण (अलल) और परिणाम को उल्टा समझ लिया जाता है।

हक़ीक़त यह है कि ईश्वर जानता है क्योंकि तुम चुनाव करोगे, न कि तुम चुनाव करते हो क्योंकि ईश्वर जानता है।

स्पष्टीकरण:

यह बात पहली नज़र में विरोधाभास लगती है कि अगर ईश्वर सबसे पहले से जानता है कि मैं क्या करने वाला हूँ, तो फिर मेरे पास इख़्तियार कैसे है? लेकिन असलियत यह है कि "जानना" और "मजबूर करना" दो अलग बातें हैं।

ईश्वर का ज्ञान हमारे अमलों पर वैसा ही है जैसे कोई व्यक्ति किसी घटना को सीधे देख रहा हो। ईश्वर समय से बाहर है, और अतीत, वर्तमान और भविष्य सब उसके सामने एक साथ हैं। बिलकुल वैसे ही जैसे हम एक रिकॉर्ड की हुई फिल्म को पूरा देख सकते हैं। लेकिन फिल्म देखने का मतलब यह नहीं कि हमने किसी किरदार को मजबूर किया।

इंसान वास्तव में मालिक है, और उसकी मर्ज़ी भी इस दुनिया में एक असली कारण (अलल) है। जैसे आग जलाने का कारण होती है, वैसे ही इंसान की "इरादा और मर्ज़ी" भी उसके अमल की असली वजह है। इसलिए ईश्वर जानता है कि इंसान क्या करेगा क्योंकि वह अपनी मर्ज़ी से चुनाव करेगा, न कि वह इसलिए करेगा क्योंकि ईश्वर पहले से जानता है।

उदाहरण:

माल लीजिए एक कैमरा हर चीज़ रिकॉर्ड कर रहा है। अगर वीडियो में दिखाया जाए कि मैंने हाथ उठाया, तो इसका मतलब यह नहीं कि कैमरे ने मुझे मजबूर किया। वह बस हक़ीक़त को दिखा रहा है। उसी तरह ईश्वर का ज्ञान हमारे "इख़्तियार" की हक़ीक़त को दर्शाता है।

दार्शनिक पहलू:

(अ) समय की हक़ीक़त: हम समय को रैखिक (अतीत → वर्तमान → भविष्य) समझते हैं। लेकिन ईश्वर समय से परे है, उसके लिए सब समय एक साथ है। इसलिए उसका जानना "पूर्वानुमान" नहीं बल्कि "सीधा अवलोकन" है। और "देखना" कभी ज़बर्दस्ती पैदा नहीं करता।

(ब) इख़्तियार एक असली कारण है: इंसान का इरादा एक असली कारण है, जैसे आग जलाने का कारण। अगर हम इरादे को खत्म कर दें तो इंसान के अस्तित्व का मतलब ही खत्म हो जाएगा।

(स) नैतिक ज़िम्मेदारी: अगर सब कुछ ज़बर्दस्ती होता तो नैतिकता और कानून का कोई आधार न रहता, क्योंकि कोई अपने अमल का ज़िम्मेदार न होता। लेकिन असलियत यह है कि दुनिया के सभी लोग (यहाँ तक कि नास्तिक भी) अपनी ज़िंदगी में "इख़्तियार" और "ज़िम्मेदारी" को मानते हैं। यह इस बात की गवाही है कि इख़्तियार इंसान की फितरत का एक नकारा न जा सकने वाला पहलू है।

धार्मिक प्रमाण:

कुरान कहता है:
«إِنَّا هَدَیْنَاهُ السَّبِیلَ إِمَّا شَاکِراً وَإِمَّا کَفُوراً»
"हमने इंसान को रास्ता दिखाया, अब चाहे वह शुक्रगुजार बने या काफिर। (सूरा-ए-इंसान, आयत 3)यानि दो रास्ते दिए गए, चुनाव इंसान के इख़्तियार में है।

इमाम अली (अलैहिस्सलाम) ने फरमाया:
«لا جبر و لا تفویض، بل أمر بین الأمرین.»
ना ज़बर्दस्ती है, ना पूरी आज़ादी, बल्कि दोनों के बीच की एक हक़ीक़त है।
यानि ईश्वर ने ऐसा नज़रियात बनाया है जिसमें इंसान अपनी मर्ज़ी से फैसला करता है और अपने फैसले का जवाबदेह भी होता है।

नतीजा:

अल्लाह तआला का जानना किसी को मजबूर नहीं करता।

इख़्तियार क़ायनात के नज़मी हिस्सा है।

अगर इख़्तियार न माना जाए तो नैतिकता, कानून और यहाँ तक कि वैज्ञानिक खोज भी निरर्थक हो जाती है।

इसलिए ईश्वर का पहले से जानना और इंसान की आज़ादी एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं। हक़ीक़त यह है कि ईश्वर बस यह जानता है कि इंसान अपनी आज़ादी के साथ क्या करेगा।

मसाहिब:

मआरिफ़-ए-इस्लामी व कलामी मुद्दे

छात्रों के सवाल-जवाब

अदयान व मज़ाहीब विश्वविद्यालय के संरक्षक ने कहा,ईरान और मचर (थाईलैंड) की विश्वविद्यालयों और धार्मिक केंद्रों के बीच शैक्षिक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर दोनों देशों में शैक्षिक कूटनीति को बढ़ावा देंगे।

अदयान व मज़ाहीब विश्वविद्यालय के संरक्षक हज़रत हुज्जतुल इस्लाम सैयद अबुलहसन नवाब ने थाईलैंड के दौरे के दौरान जुलालोंगकोर्न विटयालय (मचर) विश्वविद्यालय में प्रोफेसरों और जिम्मेदार अधिकारियों से मुलाकात की और बातचीत की।

इस बैठक की शुरुआत में, प्राजरावत वोतयानो ने विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि के रूप में सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया और बैठक के उद्देश्यों को बताते हुए कहा,इस बैठक का उद्देश्य ईरान और थाईलैंड के शैक्षिक और धार्मिक संस्थानों के बीच संपर्क का एक पुल स्थापित करना है ताकि संवाद, अनुभवों का आदान-प्रदान और साझेदारी के विकास के रास्ते खोले जा सकें।

उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि इन वार्ताओं के परिणामों को व्यवहार में लाना आवश्यक है, खासकर शिक्षा, शोध और सांस्कृतिक क्षेत्रों में सहयोग के समझौतों के रूप में।

इसके बाद,डॉक्टर प्रा बान्डित सोटिरात, विश्वविद्यालय के उपाध्यक्ष ने ईरानी प्रतिनिधिमंडल का स्वागत करते हुए कहा, जुलालोंगकोर्न विटयालय (मचर) विश्वविद्यालय पहले भी ईरान के शैक्षिक संस्थानों के साथ सहयोग कर चुकी है और हमेशा ईरानी प्रोफेसरों और विद्वानों की मेजबानी को स्वागत योग्य माना है।

उन्होंने कहा,यह विश्वविद्यालय ईरान के शैक्षिक, सांस्कृतिक और धार्मिक केंद्रों के साथ सहयोग के द्वार खोल चुकी है और पूरी तरह तैयार है कि निकट भविष्य में प्रोफेसरों और छात्रों के आदान-प्रदान, सम्मेलनों के आयोजन और संयुक्त शैक्षिक शोध जैसे परियोजनाओं पर काम करे।

डॉक्टर प्रा बान्डित सोटिरात ने आगे कहा,मचर और ईरान की विश्वविद्यालयों के बीच औपचारिक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने का मार्ग प्रशस्त करना और इन समझौतों का आयोजन धार्मिक ज्ञान के प्रचार, शैक्षिक सहयोग के विस्तार और वैश्विक शांति संस्कृति के विकास के लिए एक नई नींव प्रदान करेगा क्योंकि यह सहयोग दोनों देशों के बीच शैक्षिक, सांस्कृतिक और धार्मिक कूटनीति के क्षेत्रों में रणनीतिक संबंधों की बुनियाद है।

धर्म और संप्रदाय विश्वविद्यालय के संरक्षक सैयद अबुलहसन नवाब ने इस विश्वविद्यालय की मेजबानी के लिए आभार व्यक्त करते हुए सामाजिक और वैश्विक स्तर पर धर्म की भूमिका को पुनः स्थापित करने के महत्व पर प्रकाश डाला और कहा,ऐसे समय में जब मानव समाज नैतिक, सामाजिक और पर्यावरणीय संकटों का सामना कर रहा है, विभिन्न धर्म अपनी साझा मूल्यों के माध्यम से वैश्विक शांति और न्याय की प्राप्ति के लिए एक नया रास्ता खोल सकते हैं।

उन्होंने आगे कहा,इस्लाम और बौद्ध धर्म की शिक्षाओं में कई समानताएं हैं और यह शैक्षिक, सांस्कृतिक और धार्मिक सहयोग के लिए एक बड़ी क्षमता है।

 

भारत में वली फक़ीह के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन डॉ. अब्दुलमजीद हकीम इलाही ने क़ुम अलमुकद्देसा में भारतीय छात्रों के साथ विचार-विमर्श की बैठक में कहा कि भारत की धरती बड़े-उलेमा और मुज्तहिदीन का गढ़ रही है।

भारत में वली फक़ीह के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन डॉ. अब्दुलमजीद हकीम इलाही ने क़ुम अल-मुकद्देसा में हौज़ा इल्मिया ईरान के प्रमुख आयतुल्लाह अराफ़ी और भारत में रहबर मुअज़म के पूर्व और वर्तमान प्रतिनिधियों की मौजूदगी में भारतीय छात्रों के साथ एक फिक्री बैठक हुई।

उन्होंने पैगंबर मुहम्मद स.ल.व. और उनके पुत्र इमाम जाफ़र सादिक स.ल. की विलादत पर मुबारकबाद पेश की।उन्होंने भारतीय उलेमा, उपस्थित लोगों और विभिन्न सांस्कृतिक संस्थाओं का धन्यवाद करते हुए कहा कि फ़लसफ़ा ने अस्तित्व (वजूद) की तीन प्रकारों को बताया है।

पहली किस्म माद्दी अस्तित्व है, जो सीमित और कमजोर होता है तथा एक समय में केवल एक स्थान पर रह सकता है, जैसे यह दुनिया जहाँ देखने के लिए आंख और चलने के लिए पैर चाहिए।

दूसरी किस्म उजूद मिसाली अस्तित्व है, जो पूरी तरह से मुज्रद नहीं, लेकिन माद्दी समय और स्थान से स्वतंत्र होता है। जैसे सपने में आत्मा का विभिन्न स्थानों पर होना कभी लखनऊ, कभी मुंबई, कभी नजफ़। मरने के बाद भी आत्मा इसी आदर्श दुनिया में रहती है।

तीसरी किस्म अक़्ली अस्तित्व है, जो न समय और न स्थान से बंधा होता है। यह पूर्णता का प्रतीक है और किसी क्रिया के लिए किसी उपकरण या माध्यम की आवश्यकता नहीं होती। इसी तरह का अस्तित्व सैय्यदुश्शोहदा जैसे अवलिया का होता है।

डॉ. हकीम इलाही ने कहा कि यदि इंसान सभी सीमाओं को तोड़कर अपने अस्तित्व को ईश्वर के अस्तित्व से जोड़ दे, तो वह भी विकास के ज़रिए अक़्ली और व्यापक अस्तित्व तक पहुँच सकता है, जो समय और स्थान से परे है।

उन्होंने हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मेंहदी महदवी पूर की सेवाओं की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्होंने पिछले 15 वर्षों में डेढ़ सौ वर्षों के बराबर उल्लेखनीय कार्य किए हैं और आशा जताई कि हम सब भी उनकी राह पर चलने की क्षमता पाएंगे।

उन्होंने भारत के इल्मी गौरव का उल्लेख करते हुए कहा कि जब साहिब जवाहर ने अपनी मशहूर किताब "जवाहर अल-कलाम" की रचना की, तो इसकी तश्रीह और प्रकाशन की अनुमति के लिए भारत भेजा गया था। भारत में ऐसे महान मुज्तहिदीन और उलेमा मौजूद थे जिनकी कब्रें आज भी "कब्रिस्तान ग़ुफ़रान मआब" में मौजूद हैं। लगभग 50 मुज्तहिदीन थे जिनका मुस्लिम जगत में गहरा इल्मी प्रभाव था।

डॉ. हकीम इलाही ने कहा कि भारत का धार्मिक और इल्मी इतिहास अत्यंत शानदार रहा है। बड़े बड़े हौज़ात इल्मिया और उनकी इमारतों के नक़्शे-ओ-निगार देखकर उसकी महानता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। यहाँ तक कि कुछ विषयों पर, जैसे यह बहस कि क्या शब-ए-आशूरा को इमाम हुसैनؑ के खीमे में पानी था या नहीं, भारत में ढाई सौ से अधिक किताबें लिखी गईं।

 

इज़रायल में बंधकों की रिहाई के लिए सक्रिय संगठन ने प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को ग़ज़्ज़ा युद्ध के समाप्त होने में सबसे बड़ी बाधा बताया है। यह प्रतिक्रिया दोहा (कतर) में हुए एक इज़रायली हवाई हमले के बाद आई है، जिसे बंधकों के परिजनों ने संभावित समझौते को नाकाम बनाने की कोशिश करार दिया। 

इज़रायल में बंधकों की रिहाई के लिए सक्रिय संगठन ने प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को ग़ज़्ज़ा युद्ध के समाप्त होने में सबसे बड़ी बाधा बताया है। यह प्रतिक्रिया दोहा (कतर) में हुए एक इज़रायली हवाई हमले के बाद आई है، जिसे बंधकों के परिजनों ने संभावित समझौते को नाकाम बनाने की कोशिश करार दिया। 

प्राप्त जानकारी के अनुसार "बंधक और लापता परिवार संगठन" ने अपने बयान में कहा कि जैसे ही कोई शांति समझौता करीब आता है, नेतन्याहू उसे विफल कर देते हैं। संगठन का मानना है कि नेतन्याहू जानबूझकर युद्ध को खींच रहे हैं ताकि सत्ता में बने रह सकें।

वहीं, नेतन्याहू ने कहा है कि ग़ज़्ज़ा युद्ध का अंत तभी संभव है जब कतर में रह रहे हमास नेताओं को खत्म कर दिया जाए। उन्होंने हमास पर युद्धविराम समझौतों को तोड़ने का आरोप लगाया और कहा कि यही नेता बंधकों की रिहाई में बाधा हैं। परंतु, बंधकों के परिवारों ने इस बयान को नेतन्याहू की विफलता छुपाने की कोशिश बताया और कहा कि अब समय आ गया है कि इन बहानों को खत्म किया जाए और युद्ध को समाप्त कर बंधकों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित की जाए।

 

गाज़ा पट्टी में फिलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय ने घोषणा की है कि इजरायली सेना के हमलों में शहीद होने वालों की संख्या बढ़कर 64,905 हो गई है।

गाज़ा पट्टी में फिलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक नए बयान में पिछले साल 7 अक्टूबर से अब तक के हमलों में हताहतों के नवीनतम आंकड़े जारी किए हैं।

फिलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, 7 अक्टूबर, 2023 से लेकर इस समय तक इजरायली सेना के हमलों के परिणामस्वरूप 64,905 लोग शहीद हो चुके हैं।

साथ ही, इस फिलिस्तीनी चिकित्सा प्राधिकरण ने यह भी कहा कि इस पट्टी में युद्ध शुरू होने के बाद से इजरायली हमलों में घायल होने वालों की कुल संख्या 164,926 हो गई है।

मंत्रालय ने यह भी घोषणा की कि पिछले 24 घंटों में 34 शहीदों के शव अस्पताल लाए गए हैं। इस अवधि में 316 अन्य लोग घायल हुए हैं।

इसके अलावा, 18 मार्च, 2025 से गाजा पर नए सिरे से शुरू किए गए हमलों में भी 12,354 लोग शहीद और 52,885 लोग घायल हुए हैं।अभी भी हज़ारों लोग गाजा पट्टी में लापता हैं और मलबे के नीचे दबे हुए हैं।

सहायता वितरण केंद्रों पर पिछले 24 घंटों में 3 लोग शहीद और 47 अन्य घायल हुए हैं, जिससे इन केंद्रों पर शहीद होने वाले फिलिस्तीनियों की संख्या बढ़कर 2,497 और घायलों की संख्या 18,182 हो गई है।

 

स्पेन की उप प्रधानमंत्री ने कहा है कि गाज़ा में हो रहे अत्याचारों के बाद इजरायल को किसी भी खेल या सांस्कृतिक कार्यक्रम में भाग लेने का अवसर नहीं दिया जाना चाहिए।

स्पेन की उप प्रधानमंत्री योलांडा डियाज़ ने कहा कि इजरायल को किसी भी खेल या सांस्कृतिक आयोजन में भाग लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। उन्होंने फिलिस्तीन समर्थक विरोध प्रदर्शनों का पूरा समर्थन किया, जिसके कारण मैड्रिड में विश्व प्रसिद्ध साइकिल रेस "वुएल्टा" का फाइनल चरण रोकना पड़ा।

योलांडा डियाज़ ने आगे कहा कि स्पेन का समाज गाज़ा में हो रहे नरसंहार को अस्वीकार करता है। खेलों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में इजरायल की भागीदारी को रोकना फिलिस्तीनी लोगों के साथ व्यावहारिक एकजुटता है।

याद रहे कि पिछले दिनों होने वाली इस रेस के दौरान हज़ारों प्रदर्शनकारियों ने इजरायली टीम की मौजूदगी के खिलाफ विरोध करते हुए रास्ता रोक दिया और ज़ायोनी अत्याचारों के खिलाफ नारे लगाए।

सूत्रों के मुताबिक, एक लाख से अधिक लोग विरोध प्रदर्शन में शामिल थे, जबकि एक हज़ार से अधिक पुलिस कर्मियों की तैनाती के बावजूद स्थिति पर काबू नहीं पाया जा सका। जन दबाव के कारण रेस का अंतिम चरण रद्द कर दिया गया, जिसे स्पेन की उप प्रधानमंत्री ने जन शक्ति और सिद्धांतों की जीत बताया।

 

आयतुल्लाह सैयद अली अकबर मूसवी यज़्दी हौज़ा ए इल्मिया क़ुम की प्रमुख धार्मिक और शैक्षिक हस्ती और रहबर-ए मोअज़्ज़म के कार्यालय 'दफ्तर-ए वजूहात' के प्रमुख थे, आज सुबह लंबी इल्मी व तबलीगी सेवाओं के बाद इस दुनिया से रुख़्सत हो गए। उनके निधन की ख़बर से शैक्षिक और धार्मिक हौज़ा के हलक़ों में गहरी दुःख और निराशा की लहर दौड़ गई है।

हौज़ा ए इल्मिया क़ुम की प्रमुख धार्मिक और शैक्षिक हस्ती और रहबर-ए मोअज़्ज़म (सर्वोच्च नेता) के कार्यालय 'दफ़्तर-ए वजूहात' के प्रमुख, आयतुल्लाह सैयद अली अकबर मूसवी यज़्दी आज सुबह लंबी शैक्षिक और धार्मिक सेवाओं के बाद इस दुनिया से रुख़्सत हो गए। उनके निधन की ख़बर से शैक्षिक और हौज़ा के हलक़ों में गहरे दुःख और शोक की लहर दौड़ गई है।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:

आयतुल्लाह मूसवी यज़्दी का जन्म 1311 फ़ारसी कैलेंडर (1932 ईस्वी) में क़ुम शहर में एक धार्मिक परिवार में हुआ था। उनके पिता, हाजी सैयद अब्दुलवहाब मूसवी बफ़रूई, हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के प्रतिष्ठित शिक्षकों में से एक थे और आयतुल्लाहिल उज़्मा बुरूजर्दी के समय में कुछ अरसे तक उनके शहर के वित्तीय प्रबंधक भी रहे।

प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा पूरी करने के बाद, 1326 फ़ारसी कैलेंडर (1947 ईस्वी) में उन्होंने हौज़ा ए इल्मिया क़ुम में दाख़िला लिया। प्रारंभिक पाठ्यक्रमों (दरूस) में उन्होंने सैयद सईद निशापुरी, सैयद मुहम्मद बाकिर हरंदी और शेख अबुल क़ासिम नहवी जैसे शिक्षकों से ज्ञान प्राप्त किया। उच्च स्तर (सतह) की शिक्षा में उन्होंने आयतुल्लाह शेख मुर्तज़ा हाएरी और आयतुल्लाह मुहम्मद अली जैसे वरिष्ठ शिक्षकों से विद्या अर्जित की।

दरस-ए ख़ारिज:

उन्होंने फ़िक़्ह (इस्लामी न्यायशास्त्र) और उसूल के उच्च स्तरीय पाठ्यक्रम (दरस-ए ख़ारिज) में लंबे समय तक भाग लिया और आयतुल्लाहिल-उज़्मा बुरूजर्दी, मिर्ज़ा हाशिम आमोली, इमाम ख़ुमैनी और आयतुल्लाह शेख अब्दुन्नबी आराकी से ज्ञान प्राप्त किया। आयतुल्लाह मूसवी यज़्दी को इमाम ख़ुमैनी और अन्य धार्मिक अधिकारियों से इज्तिहाद की अनुमति (इजाज़त-ए इज्तिहाद) प्राप्त हुई, साथ ही आयतुल्लाहिल-उज़्मा बुरूजर्दी, गुलपायगानी, ख़्वांसारी, इमाम ख़ुमैनी और रहबर-ए मोअज़्ज़म से धार्मिक करों (वजूहात-ए शरईया) के प्रबंधन के अधिकार भी प्राप्त हुए।

शिक्षण और सेवाएँ

मरहूम न केवल एक प्रमुख शोधकर्ता और फ़क़ीह  थे, बल्कि कई दशकों तक हौज़ा ए इल्मिया क़ुम में शिक्षण के कर्तव्यों का निर्वहन भी करते रहे। उन्होंने अदबियात से लेकर उच्च स्तरीय फ़िक़्ह और उसूल (ख़ारिज) तक विभिन्न स्तरों पर छात्रों को पढ़ाया। साथ ही, उन्होंने पचास साल तक मस्जिद-ए कामकर, क़ुम में नमाज़ जमात की इमामत का दायित्व भी निभाया।

आयतुल्लाह मूसवी यज़्दी सालों तक दफ़्तर-ए रहबर-ए मोअज़्ज़म में वजूहात-ए शरईया के ज़िम्मेदार रहे और आम मोमिनीन के फ़िक़्ही और शरई मसाइल के जवाब देते रहे।

इल्मी आसार:

उन्होंने कई विद्वतापूर्ण और शोधपूर्ण किताबें लिखीं, जिनमें इमाम ख़ुमैनी के उसूल के दरस-ए ख़ारिज के व्याख्यानों के नोट्स (तक़रीरात), 'किताब अलख़ुम्स' और 'अल-इमामा व अलविलाया फ़िल कुरआन अल-करीम' कुरआन में इमामत और नेतृत्व शामिल हैं। आख़िरी किताब (जलावतनी) के दिनों में आयतुल्लाह मिसबाह यज़्दी, आयतुल्लाह मुज़ाहिरी, आयतुल्लाह मुहम्मदी गिलानी और आयतुल्लाह मुहम्मद यज़्दी के साथ मिलकर लिखी गई थी, जिसमें कुरआन-ए करीम की इमामत और विलायत से संबंधित आयतों का गहन विश्लेषण किया गया है।

ख़िराज-ए अक़ीदत:

आयतुल्लाह मूसवी यज़्दी के निधन पर हौज़ा ए इल्मिया क़ुम और ईरान भर के इल्मी हलक़ों में गहरा दुःख है। मरहूम की आधी सदी तक चलने वाली शिक्षण, शोध और धार्मिक तबलीग़ी सेवाएँ हमेशा याद रखी जाएँगी और तलबा एवं शोधकर्ताओं के लिए मशअल-ए राह बनी रहेंगी।

 

जामिअतुल मुस्तफा के सांस्कृतिक और प्रशिक्षण मामलों के संरक्षक ने कहा,अल्हम्दुलिल्लाह, "इकतीसवां अलमुस्तफा अंतरराष्ट्रीय कुरआनी और हदीसी महोत्सव" आयोजित हो रहा है और यह महोत्सव विश्व इस्लाम में एकता और अहल ए बैत अलैहिस्सलाम के ज्ञान से लगाव का केंद्र है।

जामिअतुल मुस्तफा के सांस्कृतिक और प्रशिक्षण मामलों के संरक्षक और इस फेस्टिवल की नीति निर्धारक परिषद के अध्यक्ष हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद सालेह ने इकतीसवें अलमुस्तफा अंतरराष्ट्रीय कुरआनी और हदीसी फेस्टिवल" के आयोजन के मौके पर आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस महान अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम के उद्देश्यों नीतियों और उपलब्धियों की विस्तार से जानकारी दी।

उन्होंने इस फेस्टिवल के इल्मी और कुरआनी क्षेत्र में बेमिसाल स्थान की ओर इशारा करते हुए कहा, यह फेस्टिवल कुरान, हदीस और दुआ से लगाव बढ़ाने और उसे बढ़ावा देने के उद्देश्य से जामिअतुल मुस्तफा के उपसंस्थानों के छात्रों और स्नातकों के बीच आयोजित किया जाता है।

इसकी विशेषता है कि यह बहु राष्ट्रीयता, विभिन्न क्षेत्रों और व्यापक भौगोलिक क्षेत्र को समेटे हुए एक अनूठा कार्यक्रम है। इस वर्ष का फेस्टिवल दुनिया के 20 से अधिक देशों में एक साथ आयोजित होगा।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद सालेह ने कहा,इस वर्ष के फेस्टिवल को प्रतिभागियों की ओर से जबरदस्त रुचि मिली है। अब तक 688 लोग पंजीकृत हो चुके हैं, जिनमें 378 पुरुष और 310 महिलाएं शामिल हैं, और उम्मीद है कि पंजीकरण की अवधि समाप्त होने तक यह संख्या और बढ़ेगी। पिछले वर्ष के फेस्टिवल में लगभग 19 हजार लोग देश के अंदर और 2369 से अधिक लोग विदेशों से शामिल हुए थे, जो इस कार्यक्रम की व्यापक पहुंच को दर्शाता है।

जामिअतुल मुस्तफा के सांस्कृतिक और प्रशिक्षण मामलों के संरक्षक ने बताया: इस वर्ष के फेस्टिवल की खास विशेषताओं में "नहजुल बलाग़ा" और "सहीफ़ा सज्जादिया" पर विशेष ध्यान शामिल है।

कुरान के हिफ़्ज के साथ-साथ नहजुल बलाग़ा के लिए 7 और सहीफ़ा सज्जादिया के लिए भी 7 विशेष विभाग बनाए गए हैं। इसी तरह "विषयगत कुरान हिफ़्ज़", "काक दुआ और ज़ियारत का हिफ़्ज़", और "कुरानी और हदीसी खिताबत" (फारसी, अरबी, अंग्रेजी और उर्दू में) को भी शामिल किया गया है। कुरानी और हदीसी खुत्बात का विषय "जिहाद और मुक़ावमत" रखा गया है, जो विश्व इस्लाम की प्राथमिकताओं में से एक है।

उन्होंने अंत में कहा, यह भी तय किया गया है कि फेस्टिवल के समापन समारोह में चयनित प्रतिभागियों को सम्मानित किया जाएगा, साथ ही कुरान के सेवकों, उत्कृष्ट संगठनों, कुरानी केंद्रों, दारुल कुरान और प्रमुख परिवारों की भी प्रशंसा की जाएगी।