रोहिंग्याई मुसल्मानों के उत्पीड़न के खिलाफ भारतियों का विरोध प्रदर्शन

Rate this item
(0 votes)
रोहिंग्याई मुसल्मानों के उत्पीड़न के खिलाफ भारतियों का विरोध प्रदर्शन

 अंतरराष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी  समाचार एजेंसी अराकान के हवाले से, हजारों भारतीय लोगों ने कल, 19 दिसंबर को नई दिल्ली भारत की राजधानी में, म्यांमारी मुसलमानों के खिलाफ हिंसा के विरोध में विरोध प्रदर्शन किया।

यह विरोध प्रदर्शन सोमवार को नई दिल्ली के समय अनुसार 11 बजे शुरू हुआ और दोपहर एक बजे समाप्त हो गया।

इस प्रदर्शन में, भारतीय मुसलमानों और जम्मू, हरियाणा, हैदराबाद और अन्य शहरों से इस जगह के लिए बसों से लाऐ गऐ रोहिंग्याई शरणार्थियों स्वयं अपने मार्च का गठन किया।

प्रदर्शनकारी हाथों होल्डिंग उठा कर हज़ारों रोहिंग्याई मुसल्मानों की शांति स्थित की समीक्षा के लिऐ ऐक अंतरराष्ट्रीय व विशेष बोर्ड भेजने की मांग कर रहे थे और उनके लिऐ सुरक्षा व अम्न चाहते थे कि हर दिन इस शासन के सुरक्षा बलों की ओर से हत्या,अत्याचार,क़ैद और लूट मार का शिकार बनाया जारहा है।

इसी तरह विरोध प्रदर्शन के अंत में प्रतिभागियों ने जो कि रोहिंग्याई संगठनों, राजनीतिक दलों और हिंदी मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में आयोजित किया गया, संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के सामने खड़े होकर नारे लगा कर अपना विरोध जताया।

यह ध्यान दिया जाना चाहिए म्यांमार के उत्तर पश्चिम में राख़ीन प्रांत, रोहिंग्याई मुसल्मानों की एक बड़ी संख्या के रहने का स्थान, 2012 के बाद से अब तक, बौद्ध चरमपंथियों द्वारा मुसलमानों के खिलाफ जातीय हिंसा का मैदान रहा है,इस हिंसा में सैकड़ों लोगों की जान गई और दस्यों हजार लोगों ने मरने की आशंका से अपने घरों को छोड़ दिया और गंदे शिविरों में गंभीर परिस्थितियों में म्यांमार, थाईलैंड, मलेशिया और इंडोनेशिया में शरण लिया है।

म्यांमार सरकार मुसल्मानों को जो इस देश की 1,1 मिल्यून आबादी का हिस्सा है कम्पलीट नागरिक्ता का हक़ देने से मना कर रही है और उनको बंगलादेश से आऐ ग़ैर क़ानूनी मुहाजिर कहती है जब कि अधिकतम लोगों का मानना है कि रोहिंग्याई अल्पसंख्यकों का वंश व अस्लीयत म्यांमार में पुराना है।

रोहिंग्याई मुसलमानों को 1982 से एक नए कानून के मद्देनजर म्यांमार नागरिकता के अधिकार से वंचित किया गया है।

सहित संयुक्त राष्ट्र के अनुसार रोहिंग्या उन अल्पसंख्यकों में से है, जो दुनिया में सबसे अधिक उत्पीड़न और हिंसा का शिकार हैं।

 

Read 1180 times