तनाव और मतभेद से भरी दुनिया में क़ुरआन हमें एक शक्तिशाली हथियार की ओर बुलाता है: वह हथियार है अच्छा बोलना है
हमारी वाणी हमारे आंतरिक चरित्र का दर्पण है। एक समाज जहाँ वाणी में शिष्टाचार, सम्मान और दया हो, वह एक सुरक्षित, शांत और मानवीय वातावरण बन जाता है। कुरआन में अल्लाह ने अच्छी वाणी के महत्व पर विभिन्न तरीकों से ज़ोर दिया है और इस संदर्भ में सबसे स्पष्ट निर्देश सूरह बक़रह के एक अंश में मिलता है:
وَقُولُوا لِلنَّاسِ حُسْنًا"
(और लोगों से अच्छी बात करो)
यह आयत केवल एक नैतिक सलाह नहीं बल्कि एक सामाजिक और मानवीय आदेश है। इसका अर्थ है कि सभी लोगों के साथ चाहे उनका धर्म, जाति या स्थिति कुछ भी हो अच्छे, कोमल और सम्मानजनक शब्दों में बात करो। यहाँ "النَّاسِ" लोगों शब्द इस आदेश की सार्वभौमिकता को दर्शाता है: यानी सभी मनुष्यों के साथ।
अच्छी वाणी का अर्थ सिर्फ़ मीठा बोलना नहीं, बल्कि सच्चाई, शिष्टाचार, सांत्वना, अपमान से बचना और कठोर व कड़वे शब्दों से परहेज़ करना भी है। यहाँ तक कि अगर कोई हमारा विरोधी भी हो, तब भी हमारा कर्तव्य है कि हम उससे विनम्रता और सम्मान के साथ बातचीत करें।
यह क़ुरआनी आदेश, एक स्वस्थ संवाद संस्कृति और समाज में भाषाई हिंसा की रोकथाम की बुनियाद है। जिस समाज के सदस्य इस सिद्धांत पर कायम रहें, वह व्यर्थ के विवादों, ग़लतफ़हमियों और सामाजिक दरारों से सुरक्षित रहेगा।
अच्छी वाणी न केवल दूसरों के दिलों को शांति देती है, बल्कि अल्लाह के यहाँ इसका बड़ा प्रतिफल है, क्योंकि स्वयं अल्लाह नेकी, शिष्टाचार और मोहब्बत को पसंद करता है।
(وَمَنْ أَحْسَنُ قَوْلًا مِّمَّن دَعَا إِلَى اللَّهِ وَعَمِلَ صَالِحًا وَقَالَ إِنَّنِي مِنَ الْمُسْلِمِين)
सूरे फ़ुस्सेलत
"और उससे बेहतर कथन किसका हो सकता है जो अल्लाह की ओर बुलाए, अच्छे कर्म करे और कहे कि निस्संदेह मैं मुसलमानों में से हूँ।"