आत्म-ज्ञान अल्लाह को पहचानने का बहाना नहीं, बल्कि उसका सार है। मनुष्य का स्वयं का ज्ञान ही परमेश्वर की शनाख़्त है। जब व्यक्ति अपने अस्तित्व की पुस्तक को पृष्ठ दर पृष्ठ खोलता है, तो उसे समझ आता है कि अल्लाह तक पहुँचने का मार्ग उसके अपने आंतरिक स्वरूप से होकर गुजरता है। यह दृष्टि सभी मध्यस्थों की सीढ़ियों को हटा देती है और आत्मा के दर्पण में एकेश्वरवाद की वास्तविकता को उजागर करती है।
महान शिया विद्वान और दार्शनिक, स्वर्गीय आयतुल्लाह हसन ज़ादेह आमोली ने अपने एक नैतिक पाठ में, जो विचारशील लोगों के लिए प्रस्तुत किया जा रहा है, "खुश शनासी और खुदा शनासी के ऐनी रिश्ते" विषय पर चर्चा की थी।
क्या एक व्यक्ति केवल इन्हीं बातों से जाना जाता है?
यह अफ़सोस की बात है कि हम अपने अस्तित्व की पुस्तक को न तो समझते हैं और न ही उसके पन्ने पलटते हैं।
""اَعرَفُکُم بِرَبِّہ اَعرَفُکُم بِنَفسِہ"۔۔۔ आअरफ़ोकुम बेरब्बेहि आअरफ़ोकुम बेनफसेहि...
कुछ लोग कहते हैं: ऐ अल्लाह! अब तक मैं यही कहता आया हूँ कि खुश शनासी, अपने नफ़्स की पहचान, खुदा शनासी तक पहुँचने की सीढ़ी है...
लेकिन धीरे-धीरे हमें समझ आता है कि नहीं, खुद शनासी ही खुदा शनासी है।
फिर धीरे-धीरे हमें समझ आता है कि नहीं, खुद शनासी ही तो खुदा शनासी है।
अब सीढ़ी को एक तरफ रख दो।
खुदा शनासी ही तो खुदा शनासी है। अर्थात अपने आपको पहचाना ही खुदा को पहचानना है।
ऐ अल्लाह ! हमें अपनी दया से नवाज़, ऐ अल्लाह! मनुष्य को अपनी दया से नवाज़ और उसे अपनी ओर मुतावज्जेह कर...