हौज़ा ए इल्मिया और विश्वविद्यालयों का काम अज्ञानता मिटाना है

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हौज़ा ए इल्मिया और विश्वविद्यालयों का काम अज्ञानता मिटाना है

हज़रत आयतुल्लाह जवादी आमोली ने कहा: जो व्यक्ति लापरवाह हो और बिना सोच-विचार के कोई कदम उठाए, उसे पछतावे के सिवा कुछ नहीं मिलेगा; लेकिन जो व्यक्ति एहतियात, दूरअंदेशी और समझ-बूझ का मालिक हो, वह सलामती और सफलता हासिल करेगा।

मस्जिद-ए-अज़म क़ुम मे हज़रत आयतुल्लाह जवादी आमोली में साप्ताहिक दर्स-ए-अख़लाक़ में लोगों की बड़ी संख्या मौजूद थी। जिसमे आप ने कहा: जो व्यक्ति लापरवाह हो और बिना सोच-विचार के कोई कदम उठाए, उसे पछतावे के सिवा कुछ नहीं मिलेगा; लेकिन जो व्यक्ति एहतियात, दूरअंदेशी और समझ-बूझ का मालिक हो, वह सलामती और सफलता हासिल करेगा।

आपने नहजुल बलाग़ा की 181वीं हिकमत की तफ़सीर में कहा: “ثَمَرَةُ التَّفْرِیطِ النَّدَامَةُ، وَثَمَرَةُ الْحَزْمِ السَّلَامَةُ समरतुत तफ़रीतिन निदामतो, व समरतुल हज़्मिस सलामतो” यानी लापरवाही और कोताही का परिणाम पछतावा है, और सतर्कता व दूरअंदेशी का फल सलामती है। इंसान को बिना सोच-विचार, समझ और दूरअंदेशी के कोई काम नहीं करना चाहिए, क्योंकि उसका व्यक्तिगत आचरण समाज से जुड़ा होता है और हर निजी फ़ैसला सामाजिक व्यवस्था पर असर डालता है।

हज़रत आयतुल्लाह जवादी आमोली ने कहा कि अक़्ल-ए-नज़री (सिद्धांतक बुद्धि) सोच-विचार और हक़-बातिल की पहचान की ज़िम्मेदार है, जबकि अक़्ल-ए-अमली (व्यावहारिक बुद्धि) निर्णय और इच्छा की ज़िम्मेदार होती है। ये दोनों तंत्र एक-दूसरे से अलग हैं, लेकिन मज़बूत रूह, इंसानी नफ़्स और ईमान ही इन दोनों को समन्वित करता है ताकि इंसान की ज़िंदगी सही रास्ते पर आगे बढ़े।

उन्होंने कहा कि असली जिहाद-ए-दाख़िली (आंतरिक संघर्ष) यह है कि इंसान अपनी आंतरिक शक्तियों को पहचान ले, हर एक की जिम्मेदारी समझे और उन्हें इस तरह समायोजित करे कि उससे सही निर्णय और नेक अमल प्रकट हो। हौज़ा और विश्वविद्यालयों में जो काम होता है, वह अक़्ल-ए-नज़री के दायरे में आता है, जिसका उद्देश्य ज्ञान और शिक्षा के ज़रिए अज्ञानता मिटाना है। लेकिन नैतिक शिक्षकों और सामाजिक सुधारकों का काम अक़्ल-ए-अमली का क्षेत्र है, जो व्यवहारिक अज्ञानता (मुर्खता) को दूर करते हैं। अज्ञानता मनुष्य के निर्णयों और व्यावहारिक व्यवहार में दिखाई देती है; जैसे समाज का प्रशासन या जीवन की जिम्मेदारियाँ। जबकि अनजानेपन का संबंध जानकारी की कमी से है।

उन्होंने एक प्रसिद्ध हदीस का हवाला देते हुए कहा: “رُبَّ عَالِمٍ قَدْ قَتَلَهُ جَهْلُهُ، وَ عِلْمُهُ مَعَهُ لَا یَنْفَعُهُ रुब्बा आलेमिन क़द कतलहू जहलेहू, व इल्मोहू मअहू ला यंफ़ओहू” — कितने ही लोग ज्ञान रखते हैं लेकिन अपने अज्ञान के कारण विनाश को प्राप्त होते हैं और उनका ज्ञान उन्हें कोई लाभ नहीं देता। बहुत से लोग पढ़े-लिखे होते हैं मगर उनके व्यवहार में अज्ञानता उतर आती है और वे अपने निर्णयों में बुद्धिमानी से काम नहीं लेते। इसलिए इंसान को चाहिए कि उसका आंतरिक निर्णय-निर्माण केंद्र अक़्ल और परहेज़गारी के आधार पर काम करे, और वही उसके व्यवहार को संचालित करे। केवल ज्ञान काफी नहीं है; बहुत से ज्ञानी लोग व्यावहारिक अक़्ल और सही निर्णय लेने की क्षमता न होने के कारण अपने आचरण में अज्ञानता का शिकार हो जाते हैं।

उन्होंने नहजुल-बलाग़ा की 48वीं हिकमत का हवाला देते हुए कहा कि व्यक्तिगत और सामाजिक सफलता तभी मिलती है जब निर्णय ठीक सोच-विचार, सलाह-मशवरे और विचारों के विश्लेषण पर आधारित हो। सही सोच तभी पूरी होती है जब इंसान राज़दारी और भेद-रक्षा का पालन करे।

अंत में हज़रत आयतुल्लाह जवादी आमोली ने दोबारा ज़ोर देकर कहा: जो व्यक्ति लापरवाही से काम करता है उसे पछतावा ही मिलेगा, लेकिन जो सोच-समझकर, एहतियात और दूरअंदेशी से काम करता है, वह सलामती और सफलता पाएगा।

 

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