आयतुल्ला नूरी हमदानी का “आलम-ए-इस्लाम के उलेमा की हयात-ए-तय्यबा” पहली राष्ट्रीय कॉन्फ़्रेंस के नाम संदेश

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आयतुल्ला नूरी हमदानी का “आलम-ए-इस्लाम के उलेमा की हयात-ए-तय्यबा” पहली राष्ट्रीय कॉन्फ़्रेंस के नाम संदेश

आयतुल्लाहिल उज़्मा नूरी हमदानी का “आलम-ए-इस्लाम के उलेमा की हयात-ए-तय्यबा” शीर्षक से आयोजित पहली राष्ट्रीय कॉन्फ़्रेंस के नाम जारी संदेश मे कहाः आज देश के प्रतिष्ठित विद्वानों का एक कर्तव्य, दुरुस्त और सही जीवन शैली मॉडल स्थापित करना है।

हज़रत आयतुल्लाह नूरी हमदानी ने “आलम-ए-इस्लाम के उलेमा की हयात-ए-तय्यबा” के शीर्षक से मुज्तमे आली तरबियत मुज्तहिद मुदीर मोहम्मदिया क़ुम में आयोजित पहली राष्ट्रीय कॉन्फ़्रेंस के नाम संदेश जारी किया, जिसका पाठ इस प्रकार है:

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्राहीम

मैं सबसे पहले इस सम्मानित सभा के सभी उपस्थितजन को सलाम और शुभकामनाएँ पेश करता हूँ।

आज देश के महत्वपूर्ण शैक्षिक लोगों की ज़िम्मेदारियों में से एक, सही और उत्तम जीवन शैली के नमूनों को समाज के सामने पेश करना है।

दुर्भाग्यवंश वर्चुअल स्पेस (ऑनलाइन दुनिया) के फ़ैलाव और उसके ग़लत इस्तेमाल के ज़रिए दुश्मन हमारी नौजवान नस्ल को उस मार्ग पर ले जा रहा है जहाँ कीमती अख़लाक़ी गुण मद्धिम या ख़त्म होते जा रहे हैं।

इसलिए दीन की कीमती चीजो को परिचित कराना आज सबसे अहम फ़रीज़ा है। क़ुरआन करीम में भी परवरदिगार मुतआल ने इस हक़ीक़त की ओर ध्यान दिलाया है कि इलाही पैग़म्बरों की ज़िंदगियाँ इंसानों के लिए राह दिखाने का ज़रिया हैं।
इसी इलाही सुन्नत की बुनियाद पर हमें उन महान लोगों की ज़िंदगियों को भी समाज में पेश करना चाहिए जिन्होंने क़ुरआन के मदार पर अमल किया और क़ुरआनी सीरत को अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बनाया। ख़ास तौर पर उन बुज़ुर्ग उलमा की पाकीज़ा ज़िंदगियों को सामने लाना चाहिए जिनके जीवन के गहराई वाले पहलुओं में ख़ास उत्कृष्टता पाई जाती है। जैसा कि हदीस में कहा गया है — “इन्मल-उलमा वरसतुल-अंम्बिया” (उलमा पैग़म्बरों के वारिस हैं)। लेकिन वह अहम नुक्ता जो मैं इस शानदार और अहम विषय के आयोजकों को बताना चाहता हूँ, यह है कि उनका यह काम बहुत मुबारक है और इसे जारी रहना चाहिए, सिर्फ़ एक कॉन्फ़्रेंस तक सीमित न रहे। बल्कि उदाहरणों और व्यक्तित्वों पर गहराई से काम करें। एक माहिर और अनुभवी कमेटी, बुज़ुर्ग और नामवर उलमा की ज़िंदगी के तमाम पहलुओं का गहराई से अध्ययन करे और सही तौर पर उन्हें समाज के सामने पेश करे। इस काम में आप दूसरे लोगों से भी मदद ले सकते हैं ताकि उलमा की शख़्सियतों को मुकम्मल और सही ढंग से प्रस्तुत किया जा सके, जैसे कि विभिन्न लोगों से मक़ालात (लेखों) के ज़रिए।

दूसरा नुक्ता यह है कि इन नमूनों को कैसे पेश किया जाए? यह बात साफ़ है कि सिर्फ़ रस्मी कॉन्फ़्रेंसों और भारी ख़र्चों से — जो बदक़िस्मती से अब आम हो चुका है — कोई स्थायी नतीजा हासिल नहीं होगा।

मैंने कई बार हौज़ा इल्मिया के ज़िम्मेदारों से कहा है कि बहुत सी कॉन्फ़्रेंसें सिर्फ़ औपचारिक रूप में आयोजित की जाती हैं। कभी ऐसा भी होता है कि क़ुम में एक ही दिन में कई सामाजिक या धार्मिक कॉन्फ़्रेंसें होती हैं जिनके मेहमान भी लगभग वही होते हैं, और कुछ समय के बाद उनका प्रभाव भुला दिया जाता है। उदाहरण के तौर पर किसी इल्मी शख़्सियत के समान में कार्यक्रम किया जाता है, मशहूर लोगों को बुलाया जाता है, लेकिन नए हौज़वी नौजवानों को शामिल नहीं किया जाता ताकि वे उस शख़्सियत और उसके रास्ते से वाक़िफ़ हों। आपका यह काम — मुझे दी गई रिपोर्ट के अनुसार — इसलिए अहम है कि यह एक छोटा, कम खर्च और जारी रहने वाला प्रोजेक्ट है, इंशाअल्लाह इस पर अमल होगा।

मैं ख़ास तौर पर आप सबसे आग्रह करता हूँ कि व्यापक शोध के ज़रिए उलमा की ज़िंदगी के हक़ीक़ी पहलुओं को समाज के सामने लाएँ।
आज हमें अफ़सोस के साथ यह देखना पड़ रहा है कि कुछ उलमा के फ़िक़्ही, उसूली और ख़ास तौर पर सियासी विचारों के बारे में ग़लत बातें और अनदेखी हुई रिवायतें फैल रही हैं, यहाँ तक कि कई बुज़ुर्ग उलमा के विचारों के विपरीत भी बातें कही जाती हैं — जबकि उनके शागिर्द अभी ज़िंदा हैं।

मैं आपके इस काम को बहुत मुबारक समझता हूँ और इस विषय के शानदार चुनाव पर भी आपकी सराहना करता हूँ। इस प्रयास में शामिल तमाम लोगों की मेहनत की क़द्रदानी करता हूँ और ख़ुदा-ए-तआला से आप सब के लिए सफलता और बरकत की दुआ करता हूँ।

1 जमादिल अव्वल 1447 हिजरी / 23 अक्टूबर 2025

हुसैन नूरी हमदानी

 

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