झूठ, ग़ीबत, तोहमत जैसे गुनाह करने वाला भी ज़ालिम है

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झूठ, ग़ीबत, तोहमत जैसे गुनाह करने वाला भी ज़ालिम है

मुंबई ख़ोजा शिया अस्ना-अशरी जामा मस्जिद, पाला गली में 24 अक्टूबर 2025 को नमाज़-ए-जुमआ हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लमीन मौलाना सैयद रूहे ज़फर रिज़वी साहब क़िब्ला की इमामत में अदा की गई।

मौलाना सैयद रूहे ज़फर रिज़वी ने नमाज़ियों को तक़वा-ए-इलाही (ईश्वर से डरने और उसकी आज्ञा मानने) की नसीहत करते हुए फ़रमाया, तक़वा से दिल रोशन और मुनव्वर होते हैं और क़यामत के दिन नजात मिलती है।

मौलाना ने आगे कहा,हर इंसान नजात चाहता है और अल्लाह ने नजात इंसान के अपने हाथों में दे दी है जैसा अमल करोगे, वैसी ही नजात पाओगे। इसलिए इंसान की मुक्ति का ज़ामिन (ज़िम्मेदार) खुद उसका अमल है यानी जो अल्लाह ने वाजिब किया है उसे अदा करे और जो हराम ठहराया है, उससे बचे।

उन्होंने क़ुरआनी आयतों और अहले बैत (अ.स.) की रिवायतों का हवाला देते हुए कहा, अमल-ए-सालेह (नेकी का काम) में जहाँ अल्लाह के हक़ की अदायगी ज़रूरी है, वहीं उसके बंदों के हक़ अदा करना भी लाज़िमी है। इसलिए इंसान न तो अल्लाह की इबादत से ग़ाफ़िल रहे और न ही उसके बंदों की ख़िदमत से।

मौलाना ने फ़रमाया, सिर्फ़ तलवार या हथियार से हमला करने वाला ज़ालिम नहीं होता, बल्कि झूठ बोलने वाला, ग़ीबत (पीठ पीछे बुराई करने वाला), और तोहमत (इल्ज़ाम) लगाने वाला भी ज़ालिम है। जो इंसान इन ज़ुल्मों से खुद को बचाएगा, उसी का अमल “अमल-ए-सालेह” कहलाएगा। और क़ुरआन के मुताबिक़, क़यामत के दिन राई के दाने बराबर भी नेकी या बुराई का हिसाब लिया जाएगा।

हक़ूक़ुल इबाद (बंदों के हक़) की अहमियत पर अमीरुल मोमिनीन इमाम अली (अ.स.) की हदीस बयान करते हुए मौलाना ने कहा,शिर्क वो गुनाह है जो कभी माफ़ नहीं होगा, लेकिन अल्लाह अपने हक़ को माफ़ कर सकता है,मगर बंदों के हक़ को तब तक माफ़ नहीं करेगा जब तक कि वो शख्स खुद माफ़ न करे, जिस पर ज़ुल्म हुआ है।

मौलाना ने इमाम अली (अ.) की हदीस “दुनिया की तमाम तकलीफ़ें मेरे लिए आसान हैं, मगर ये मुश्किल है कि मेरी गर्दन पर किसी का हक़ हो।” बयान करते हुए कहा: हम इमाम अली (अ.) के शिया और मुहिब हैं, हमें अपना मुहासिबा (आत्मनिरीक्षण) करना चाहिए कि कहीं मेरी गर्दन पर किसी का हक़ तो नहीं है? अफ़सोस, हम अपनी ख़्वाहिशों को ख़ुदा का हुक्म समझते हैं और असल हुक्म-ए-ख़ुदा से ग़ाफ़िल हैं।लेकिन याद रखो, अगर हम ख़ुदा के हुक्म की पैरवी करेंगे तो जन्नती होंगे, और अगर अपनी ख़्वाहिशों की पैरवी करेंगे तो जहन्नमी होंगे!

मौलाना ने र'वायत “अल्लाह कर्ज़ के अलावा शहीद के सारे गुनाह माफ़ कर देता है।” बयान करते हुए कहा: शब-ए-आशूर इमाम हुसैन (अ.) ने अपने असहाब से यही कहा था कि जिसकी गर्दन पर किसी का हक़ हो, वो चला जाए — यानी जिसके ऊपर लोगों का हक़ है, वो कारवाने हक़ में शामिल होने के लायक़ नहीं। इसलिए हमें अपना मुहासिबा ज़रूर करना चाहिए।

मौलाना ने हदीस-ए-नबवी बयान करते हुए कहा: सबसे बड़ा घाटा उस इंसान का है जिसकी गर्दन पर लोगों का हक़ है, जिसने ग़ीबत की, तोहमत लगाई, दूसरों की तौहीन की, या लोगों के ख़िलाफ़ साज़िशें कीं।

मौलाना ने माह-ए-जमादी-उल-अव्वल की मुनासेबतों का ज़िक्र करते हुए कहा: इख़लास (निष्कपटता) के साथ अहले बैत (अ.) का ज़िक्र करें, ख़ास तौर पर अज़ा-ए-फ़ातिमी में इख़लास का ख़ास ख़्याल रखें।

मुस्लिम मुल्कों के सरबराहों की ख़यानत और “शर्म-अश-शेख़” के मुआहिदे को “शर्मनाक समझौता” बताते हुए मौलाना ने कहा: अगर मुस्लिम देशों के जिम्मेदार सिर्फ़ संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट पढ़ लेते, तो देखते कि हज़ारों मासूम बच्चों समेत समाज के हर तबक़े के लोग उन हमलों में मारे गए। इस शर्मनाक समझौते को 14 दिन हो गए, लेकिन आज तक उसकी किसी एक भी शर्त पर अमल नहीं हुआ। दुश्मन से समझौते के बजाय मुस्लिम देशों के सरबराहों को इस्तेक़ामत (दृढ़ता) दिखानी चाहिए थी।

वक़्फ़ कानून का ज़िक्र करते हुए मौलाना ने कहा: न सिर्फ़ मुसलमान बल्कि हर आज़ाद ख़याल इंसान जानता है कि यह कानून मुनासिब नहीं है।कानूनी दायरे में रहते हुए इस कानून के ख़िलाफ़ एहतजाज (विरोध) करें। हुकूमत ने 5 दिसंबर तक का वक़्त दिया है कि सारे औक़ाफ़ (वक़्फ़) को रजिस्टर कराया जाए, इसलिए आपसी इख़्तिलाफ़ (मतभेद) और मुतवल्लियों (संरक्षकों) के झगड़ों को छोड़कर हर छोटे-बड़े वक़्फ़ को जल्द से जल्द रजिस्टर कराएँ।

वक़्फ़ कानून के सिलसिले में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के इक़दामात की हिमायत करते हुए मौलाना ने कहा:अब तक बोर्ड ने सारे काम क़ानून के दायरे में किए हैं और इंशा अल्लाह आगे भी यही करेंगे, इसलिए हमें इस मसले में उनकी पूरी हिमायत करनी चाहिए।

आख़िर में मौलाना सैयद रूहे ज़फर रिज़वी ने नौजवानों की तालीम पर ज़ोर देते हुए कहा:हमें अपनी क़ौम के बच्चों की तालीम और तरबियत पर ख़ास ध्यान देना चाहिए और उन्हें आगे बढ़ने के लिए हौसला देना चाहिए।

 

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