नई इस्लामी सभ्यता के गठन की आवश्यकता

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नई इस्लामी सभ्यता के गठन की आवश्यकता

इस्लामी जगत में पाई जाने वाली संभावना के दृष्टिगत इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने नई इस्लामी सभ्यता के गठन को आवश्यकत बताया है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा और इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के शुभ जन्म दिवस के अवसर पर तेहरान में इस्लामी शासन व्यवस्था के अधिकारियों और एकता सम्मेलन में भाग लेने वाले अतिथियों से भेंट की। इस भेंट में वरिष्ठ नेता ने बल देकर कहा कि अब इस्लामी जगत का नंबर है कि वह इसमें पाई जाने वाली संभावनाओं की सहायता से नई इस्लामी सभ्यता के गठन के मार्ग में क़दम आगे बढ़ाए।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि यह नई इस्लामी सभ्यता उस प्रकार की नहीं होगी जिस प्रकार पश्चिमी सभ्यता ने अतिक्रमण, अतिग्रहण, मानवाधिकारों के हनन और अनैतिकता को अन्य राष्ट्रों पर थोपने जैसे कार्य किये। उनके कथनानुसार यह इस्लामी सभ्यता, मानवता के लिए ईश्वरीय अनुकंपाओं के अर्थ में है। पश्चिमी सभ्यता में पाए जाने वाले आकर्षण के बावजूद उसने मानवता को कोई उपहार नहीं दिया बल्कि वह स्वयं विरोधाभास का शिकार हो गई। पश्चिमी सभ्यता, अपने विदित आकर्षण के बावजूद नैतिकता और आध्यात्म की दृष्टि से खोखली है। इस सभ्यता ने विस्तार के उद्देश्य से विश्व में युद्ध फैलाए। अमरीका ने हज़ारों किलोमीटर दूर जाकर इराक़ और अफ़ग़ानिस्तान में युद्ध किये। अमरीका ने यह युद्ध अपने एकपक्षीय हितों की पूर्ति के लिए आरंभ किये थे जिसके दुष्परिणाम आज सब देख रहे हैं। पश्चिमी सभ्यता और इस्लामी सभ्यता में खुला विरोधाभास पाया जाता है। इस्लामी सभ्यता सबके लिए विकास की इच्छुक है और उसमें तनिक भी वर्चस्व नहीं पाया जाता।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के अनुसार इस्लामी जगत में पाई जाने वाली संभावनाओं को यदि इस्लाम की वास्तविक शिक्षाओं से मिश्रित कर दिया जाए तो फिर ज्ञान-विज्ञान, तकनीक, राजनीति और समाज सहित विभिन्न क्षेत्रों में नई इस्लामी सभ्यता का उदय होगा।

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