इमाम हसन असकरी (अ) की 31 महत्वपूर्ण हदीसें

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इमाम हसन असकरी (अ) की 31 महत्वपूर्ण हदीसें

इमाम हसन अस्करी (अ) के शहादत दिवस के अवसर पर, अख़लाक़, ईमान और जीवन के तौर-तरीकों से संबंधित इमाम हम्माम की 31 हदीसें मुसलमानों के व्यक्तिगत और सामूहिक जीवन के लिए एक व्यावहारिक मार्गदर्शन के रूप में प्रकाशित की जा रही हैं।

ग्यारहवें इमाम, हज़रत इमाम हसन अस्करी (अ) की हदीसें इस दुनिया और आख़िरत के लिए, हर मुसलमान और हर जगह आज़ाद इंसान के लिए मार्गदर्शन और जलती हुई मशाल हैं, जिसका दिल रहमते इलाही  से लाभ उठाने के लिए तत्पर है, इस दुनिया और आख़िरत के लिए एक मार्गदर्शक प्रकाश और एक चमकती हुई मशाल हैं। इस अज़ीम इमाम की शहादत दिवस के अवसर पर उनकी कुछ प्रमाणित और विश्वसनीय हदीसों का दिल और जान से अध्ययन करेंगे:।

1- ईमान की निशानी

قالَ (علیه السلام) : عَلامَهُ الاْیمانِ خَمْسٌ: التَّخَتُّمُ بِالْیَمینِ، وَ صَلاهُ الإحْدی وَ خَمْسینَ، وَالْجَهْرُ بِبِسْمِ اللهِ الرَّحْمنِ الرَّحیم، وَ تَعْفیرُ الْجَبین، وَ زِیارَهُ الاْرْبَعینَ क़ाला अलैहिस्सलामोः अलामतुल ईमाने ख़म्सुनः अत तख़त्तमो बिल यमीने, व सालतुल एहदा व खम्सीना, वल जहरो बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्राहीम, व तअफ़ीरुल जबीन, व ज़ियारतुल अरबईना

इमाम (अ) ने फ़रमाया: ईमान की पाँच निशानियाँ: दाहिने हाथ में अंगूठी पहनना, इक्यावन रकअत नमाज़ (वाजिब और मुस्तहब) पढ़ना, (ज़ोहर और अस्र की नमाज़ मे) ज़ोर से "बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्राहीम" पढ़ना, सजदा करते समय पेशानी को खाक पर रखना, और इमाम हुसैन (अ) ज़ियारत अरबईन अंजाम देना।

2- हक़ीक़ी इबादत

قالَ (علیه السلام) : لَیْسَتِ الْعِبادَهُ کَثْرَهُ الصّیامِ وَالصَّلاهِ، وَ إنَّمَا الْعِبادَهُ کَثْرَهُ التَّفَکُّرِ فی أمْرِ اللهِ क़ाला अलैहिस्सलामोः लैसतिल इबादतो कसरतुस सियामे वस सलाते, व इन्नमल इबादतो कसरतुत तफ़क्कुरे फ़ि अमरिल्लाहे

इमाम (अ) ने फ़रमाया: इबादत ज़्यादा नमाज़ और रोज़ा नहीं है, बल्कि विभिन्न मामलों में अल्लाह की असीम शक्ति में चिंतन और भय के साथ इबादत है।

3- सबसे अच्छी विशेषता

قالَ (علیه السلام) : خَصْلَتانِ لَیْسَ فَوْقَهُما شَیْءٌ: الاْیمانُ بِاللهِ، وَنَفْعُ الاْخْوانِ क़ाला अलैहिस्सलामोः खस्लताने लैसा फ़ौक़होमा शैउनः अल ईमानो बिल्लाह, व नफ़्उल अख़्वान

 इमाम (अ) ने फ़रमाया:  गुण और स्थितियाँ जिनसे ऊपर कोई चीज़ भी महत्वपूर्ण नहीं हैं: अल्लाह पर ईमान और विश्वास, दोस्तों और परिचितों को लाभ पहुँचाना।

4- लोगों के साथ अच्छा व्यवहार

قالَ (علیه السلام) : قُولُوا لِلنّاسِ حُسْناً، مُؤْمِنُهُمْ وَ مُخالِفُهُمْ، أمَّا الْمُؤْمِنُونَ فَیَبْسِطُ لَهُمْ وَجْهَهُ، وَ أمَّا الْمُخالِفُونَ فَیُکَلِّمُهُمْ بِالْمُداراهِ لاِجْتِذابِهِمْ إلَی الاْیِمانِ क़ाला अलैहिस्सलामोः क़ूलू लिन्नासे हुसना, मोमेनोहुम व मुख़ालेफ़ोहुम, अम्मल मोमेनूना फ़यब्सेतो लहुम वज्हहू, व अम्मल मुख़ालेफ़ूना फ़योकल्लोमोहुम बिल मुदाराते लेइज्तेज़ाबेहिम एलल ईमान 

आपने फ़रमाया: दोस्तों और दुश्मनों के साथ दोस्ताना और मित्रवत व्यवहार करो, लेकिन ईमान वाले दोस्तों के साथ, एक कर्तव्य के रूप में, उन्हें हमेशा एक-दूसरे के साथ प्रसन्नतापूर्वक व्यवहार करना चाहिए, लेकिन विरोधियों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करना चाहिए, ताकि सहिष्णुता और इस्लाम और उसके अहकाम की ओर आकर्षित रहे।

5- दोस्ती की निरंतरता

قالَ (علیه السلام) : اللِّحاقُ بِمَنْ تَرْجُو خَیْرٌ مِنَ المُقامِ مَعَ مَنْ لا تَأْمَّنُ شَرَّهُ क़ाला अलैहिस्सलामोः अल लेहाक़ो बेमन तरजू ख़ैरुम मिनल मुकामे मआ मन ला ताम्मनो शर्राहू

आपने फ़रमाया: किसी ऐसे व्यक्ति के साथ दोस्ती और संगति जारी रखना बेहतर है जिसके साथ आपके रिश्ते अच्छे होने की संभावना हो, बजाय किसी ऐसे व्यक्ति के जिसके साथ व्यक्तिगत, वित्तीय, धार्मिक, आदि नुकसान की संभावना हो।

6- अफवाहें फैलाना और सत्ता की लालसा

قالَ (علیه السلام) : إیّاکَ وَ الاْذاعَهَ وَ طَلَبَ الرِّئاسَهِ، فَإنَّهُما یَدْعُوانِ إلَی الْهَلَکَهِ क़ाला अलैहिस्सलामोः इय्याका वल इज़ाअता व तलबर रियासते, फ़इन्नहोमा यदओवाने एलल हलकते

इमाम (अ) ने फ़रमाया: सावधान रहो कि तुम अफ़वाहें न फैलाओ, न ही बातें करो, न ही कोई पद और राज्य पाने की चाहत रखो और न ही उसके लिए प्यासे रहो, क्योंकि ये दोनों ही इंसान को बर्बाद कर देते हैं।

7- अक़्ल की खूबसूरती

قالَ (علیه السلام) : حُسْنُ الصُّورَهِ جَمالٌ ظاهِرٌ، وَ حُسْنُ الْعَقْلِ جَمالٌ باطِنٌ क़ाला अलैहिस्सलामोः हुस्नुस सूरते जमालुन ज़ाहेरुन, व हुस्नुल अक़्ले जमालुन बातेनुन

आप (अ) ने फ़रमाया: चेहरे की सुन्दरता और सौन्दर्य मनुष्य के बाहरी रूप में दिखाई देता है, और बुद्धि और ज्ञान की सुंदरता और सौन्दर्य मनुष्य के अंदर होती है।

8- गुप्त नसीहत

قالَ (علیه السلام) : مَنْ وَعَظَ أخاهُ سِرّاً فَقَدْ زانَهُ، وَمَنْ وَعَظَهُ عَلانِیَهً فَقَدْ شانَهُ  क़ाला अलैहिस्सलामोः मन वअज़ा अख़ाहो सिर्रन फ़क़द ज़ानहू, व मन वअज़ा अलानियतन फ़क़द शानहू 

इमाम (अ) ने फ़रमाया: जो कोई अपने दोस्त या भाई को गुप्त रूप से नसीहत करता है, उसने उसको सम्मानित किया; और अगर यह सार्वजनिक है, तो उसका अपमान किया।

9- इलाही तक़वा

قالَ (علیه السلام) : مَنْ لَمْ یَتَّقِ وُجُوهَ النّاسِ لَمْ یَتَّقِ اللهَ  क़ाला अलैहिस्सलामोः मन लम यत्तक़े वजूहन नासे लम यत्तक़िल्लाह

आप (अ) ने फ़रमाया: जो लोगों के सामने निडर रहता है और लोगों के नैतिक मुद्दों और अधिकारों का सम्मान नहीं करता, वह इलाही तक़वा का भी सम्मान नहीं करता।

10- मोमिन का अपमान

قالَ (علیه السلام) : ما أقْبَحَ بِالْمُؤْمِنِ أنْ تَکُونَ لَهُ رَغْبَهٌ تُذِلُّهُ क़ाला अलैहिस्सलामोः मा अक़्बहा बिल मोमिने अय तकूना लहू रग़बतुन तोज़िल्लोहू

इमाम (अ) ने फ़रमाया: एक मोमिन के लिए सबसे बुरी स्थिति और चरित्र यह है कि वह ऐसी इच्छा रखता है जो उसे अपमानित और लज्जित करती है।

11- सबसे अच्छे दोस्त

قالَ (علیه السلام) : خَیْرُ إخْوانِکَ مَنْ نَسَبَ ذَنْبَکَ إلَیْهِ क़ाला अलैहिस्सलामोः ख़ैरो इख़वानेका मन नसबा ज़म्बका इलैह

इमाम (अ) ने फ़रमाया: सबसे अच्छा दोस्त और भाई वह है जो तुम्हारी गलतियों की ज़िम्मेदारी लेता है और खुद को दोषी मानता है।

12- अधिकार का त्याग

قالَ (علیه السلام) : ما تَرَکَ الْحَقَّ عَزیزٌ إلاّ ذَلَّ، وَلا أخَذَ بِهِ ذَلیلٌ إلاّ عَزَّ क़ाला अलैहिस्सलामोः मा तरकल हक़्क़ा अज़ीज़ुन इल्ला ज़ल्ला, वला अख़ज़ा बेहि ज़लीलुन इल्ला अज़्ज़ा

आप (अ) ने फ़रमाया: "किसी भी पद या प्रतिष्ठा वाले व्यक्ति ने सत्य का परित्याग नहीं किया, सिवाय उस व्यक्ति के जिसे अपमानित किया गया हो, और कोई भी व्यक्ति सत्य को न्याय के कटघरे में नहीं लाया, सिवाय उस व्यक्ति के जिसे सम्मानित किया गया हो।"

13- शियो की विशेषता

قالَ (علیه السلام) لِشیعَتِهِ: أوُصیکُمْ بِتَقْوَی اللهِ وَالْوَرَعِ فی دینِکُمْ وَالاْجْتِهادِ لِلّهِ، وَ صِدْقِ الْحَدیثِ، وَأداءِ الاْمانَهِ إلی مَنِ ائْتَمَنَکِمْ مِنْ بِرٍّ أوْ فاجِر، وِطُولِ السُّجُودِ، وَحُسْنِ الْجَوارِ  क़ाला अलैहिस्सलामोः लेशीअतेहिः ऊसीकुम बे तक़वल्लाहे वल वरऐ फ़ी दीनेकुम वल इज्तेहादे लिल्लाहे, वस सिद्क़िल हदीसे, व अदाइल अमानते ऐला मनेतमेनकुम मिन बिर्रिन औ फ़ाजेरिन, व तूलिस सुजूदे, व हुस्नि जवारे

इमाम (अ) ने अपने शियो से कहा: अल्लाह का तक़वा इख़्तियार करो और दीन के मामलों में नेक बनो, अल्लाह के क़रीब रहने की कोशिश करो और अपनी संगति में ईमानदारी दिखाओ, जो भी तुम्हें सौंपा गया है उसे सकुशल लौटाओ, अल्लाह के सामने सजदे को तूलानी करो और अपने पड़ोसियों के साथ नेकी और भलाई करो।

14- विनम्रता

قالَ (علیه السلام) : مَنْ تَواضَعَ فِی الدُّنْیا لاِخْوانِهِ فَهُوَ عِنْدَ اللهِ مِنْ الصِدّیقینَ، وَمِنْ شیعَهِ علیِّ بْنِ أبی طالِب (علیه السلام)حَقّاً  क़ाला अलैहिस्सलामोः मन तवाज़आ फ़िद दुनिया लेइख़्वानेहि फ़होवा इन्दल्लाहे मिनस सिद्दीक़ीना, व मिन शीअते अली इब्ने अबि तालिब (अलैहिस सलामो) हक़्क़न

इमाम (अ) ने फ़रमाया: जो कोई इस दुनिया में अपने दोस्तों और साथियों के सामने खुद को नम्र बनाएगा, वह अल्लाह के सामने नेक लोगों में और इमाम अली (अ) के शियो में से होगा।

15- बुखार की समाप्ति

قالَ (علیه السلام) : إنَّهُ یُکْتَبُ لِحُمَّی الرُّبْعِ عَلی وَرَقَه، وَ یُعَلِّقُها عَلَی الْمَحْمُومِ: «یا نارُکُونی بَرْداً»، فَإنَّهُ یَبْرَءُ بِإذْنِ اللهِ क़ाला अलैहिस्सलामोः इन्नहू युकतबो लेहुम्मर रब्ऐ अला वरक़ते व योअल्लेक़ोहा अल महमूमेः या नारो कूनि बरदा, फ़इन्नहू यबरओ बेइज़्निल्लाह

इमाम (अ) ने फ़रमाया: जो कोई भी दर्द और बुखार से पीड़ित है, वह कुरान की "सूरह अंबिया, आयत 69" में इस आयत को एक कागज़ पर लिखकर उसकी गर्दन मे लटका दे, ताकि वह अल्लाह तआला की इजाज़त से ठीक हो जाए।

16- अल्लाह की याद

قالَ (علیه السلام) : أکْثِرُوا ذِکْرَ اللهِ وَ ذِکْرَ الْمَوْتِ، وَ تَلاوَهَ الْقُرْآنِ، وَالصَّلاهَ عَلی النَّبیِّ (صلی الله علیه وآله وسلم)، فَإنَّ الصَّلاهَ عَلی رَسُولِ اللهِ عَشْرُ حَسَنات क़ाला अलैहिस्सलामोः अक़्सेरु ज़िक्रिल्लाहे व ज़िक्रिल मौते, व तलावतिल क़ुरआने, वस सलाता अलन नबीय्ये (सललल्लाहो अलैहे वा आलेहि व सल्लम) फ़इन्नस सलाता अला रसूलिल्लाहे अश्रो हसनात 

आपने फ़रमाया: अल्लाह तआला का ज़िक्र और मौत का ज़िक्र और उसके हालात, क़ुरआन की तिलावत और हज़रत रसूल और अहले बैत (अ) पर बार-बार सलाम भेजो, बेशक उन पर सलाम का सवाब दस नेकियाँ का सवाब है।

17- उम्र का उपयोग

قالَ (علیه السلام) : إنَّکُمْ فی آجالِ مَنْقُوصَه وَأیّام مَعْدُودَه، وَالْمَوْتُ یَأتی بَغْتَهً، مَنْ یَزْرَعُ شَرّاً یَحْصَدُ نِدامَهً क़ाला अलैहिस्सलामोः इन्नकुम फ़ी आजाले मंक़ूसते व अय्यामे मअदूदते, वल मौतो याती बग़्ततन, मन यज़्रओ शर्रन यहसदो निदामतन

आपने फ़रमाया: बेशक, तुम इंसानों की मौत एक छोटी सी अवधि में होगी, जो पहले से तय और निर्धारित है, और मौत अचानक और बिना किसी पूर्व सूचना के आती है और इंसान को मार देती है, इसलिए सावधान रहो कि जो कोई भी क़यामत के दिन इबादत, सेवा और नेक कामों में हर संभव कोशिश करेगा, उसे ईर्ष्या होगी क्योंकि उसने ज़्यादा नहीं किया, और जो कोई बुरा काम और पाप करेगा, उसे पछतावा और दुःख होगा।

18- नमाज़े शब

قالَ (علیه السلام) : إنّ الْوُصُولَ إلَی اللهِ عَزَّ وَ جَلَّ سَفَرٌ لا یُدْرَکُ إلاّ بِامْتِطاءِ اللَّیْلِ  क़ाला अलैहिस्सलामोः इन्नल वुसूला एलल्लाहे अज़्ज़ा व जल्ला सफ़रुन ला युदरको इल्ला बे इम्तेताइल लैले 

आपने फ़रमाया: बेशक, अल्लाह तआला और सर्वोच्च स्थानों तक पहुँचना एक ऐसी यात्रा है जो रात में जागकर इबादत और संतुष्टि और विभिन्न मामलों में तलाश करने के अलावा हासिल नहीं की जा सकती।

19- वाजेबात में सुस्ती

قالَ (علیه السلام) : لا یَشْغَلُکَ رِزْقٌ مَضْمُونٌ عَنْ عَمَل مَفْرُوض क़ाला अलैहिस्सलामोः ला यशग़लोका रिज़्क़ुन मज़्मूमुन अन अमलि मफ़रूज़िन

आपने फ़रमाया: ध्यान रहे कि रोज़ी की तलाश - जिसकी गारंटी अल्लाह तआला ने दी है - आपको काम और वाजिब कामो से न रोके (अर्थात, ध्यान रहे कि आप अत्यधिक खोज और काम के कारण अपने वाजेबात के संबंध में आलसी और लापरवाह न हो जाएँ)।

20- आक़े वालेदैन

قالَ (علیه السلام) : جُرْأهُ الْوَلَدِ عَلی والِدِهِ فی صِغَرِهِ تَدْعُو إلَی الْعُقُوقِ فی کِبَرِهِ क़ाला अलैहिस्सलामोः जुर्अतुल वलदे अला वालेदेहि फ़ि सिग़रेहि तदऊ एलल उक़ूक़े फ़ि केबरहि

आपने फ़रमाया: बचपन में पिता के सामने बच्चे का रोना और दुस्साहस करना, वयस्क होने पर पिता द्वारा उसके शाप और क्रोध का कारण बनेगा।

21- ज़ुहर और अस्र की नमाज़ों को मिलाना

قالَ (علیه السلام) : أجْمِعْ بَیْنَ الصَّلاتَیْنِ الظُّهْرِ وَالْعَصْرِ، تَری ما تُحِبُّ क़ाला अलैहिस्सलामोः अज्मेअ बैनस सलातैनिज़ ज़ोहरे वल अस्रे, तरा मा तोहिब्बो

आपने फ़रमाया: ज़ोहर और अस्र की नमाज़ें एक के बाद एक - जितनी जल्दी हो सके, अदा करो, जिससे गरीबी और कठिनाई दूर हो जाएगी और तुम अपने लक्ष्य तक पहुँच जाओगे।

22- सबसे नेक लोग

قالَ (علیه السلام) : أوْرَعُ النّاسِ مَنْ وَقَفَ عِنْدَ الشُّبْههِ، أعْبَدُ النّاسِ مَنْ أقامَ الْفَرائِضَ، أزْهَدُ النّاس مَنْ تَرَکَ الْحَرامَ، أشَدُّ النّاسِ اجْتِهاداً مَنْ تَرَکَ الذُّنُوبَ क़ाला अलैहिस्सलामोः औरउन नासे मन वक़फ़ा इंदश शुब्हते, आबदुन नासे मन अक़ामल फ़राएज़े, अज़हदुन नासे मन तरकल हरामे, अशद्दुन नासे इज्तेहादन मन तरकज़ ज़ोनूबे

आपने फ़रमाया: सबसे नेक इंसान वह है जो विभिन्न संदिग्ध मामलों से दूर रहता है; सबसे नेक इंसान वह है जो हर चीज़ से पहले इलाही वाजेबात का पालन करता है; सबसे तपस्वी वह व्यक्ति है जो हराम कान नहीं करता; सबसे शक्तिशाली व्यक्ति वह है जो हर परिस्थिति में हर पाप और त्रुटि का त्याग करता है।

23- पहचान नेमत है

قالَ (علیه السلام) : لا یَعْرِفُ النِّعْمَهَ إلاَّ الشّاکِرُ، وَلا یَشْکُرُ النِّعْمَهَ إلاَّ الْعارِفُ क़ाला अलैहिस्सलामोः ला यअरेफ़ुन्नेअमता इल्लश शाकेरो, वला यशकोरुन्नेअमता इल्लल आरेफ़ो

आपने फ़रमायाः कृतज्ञ के अलावा कोई भी नेमत का मूल्य नहीं जानता, और ज्ञानी के अलावा कोई भी नेमत के लिए कृतज्ञता व्यक्त नहीं कर सकता।

24- पाखंड की बुराई

قالَ (علیه السلام) : بِئْسَ الْعَبْدُ عَبْدٌ یَکُونُ ذا وَجْهَیْنِ وَ ذالِسانَیْنِ، یَطْری أخاهُ شاهِداً وَ یَأکُلُهُ غائِباً، إنْ أُعْطِیَ حَسَدَهُ، وَ إنْ ابْتُلِیَ خَذَلَهُ क़ाला अलैहिस्सलामोः बेसल अब्दो अब्दुन यकूनो ज़ा वज्हैने व ज़ा लेसातैने, यतरा अख़ाहो शाहेदन व याकोलोहू ग़ाएबन, इन ओतेया हसदहू, व इब्तला ख़ज़लहू

आपने फ़रमाया: एक बुरा व्यक्ति वह है जिसके दो चेहरे और दो ज़बानें हों; वह अपने दोस्तों और भाइयों की उपस्थिति में प्रशंसा और महिमा करता है, लेकिन उनकी अनुपस्थिति में और उनकी पीठ पीछे, निंदा करता है, जो शरीर का मांस खाने के समान है।

25- विनम्रता की निशानी

قالَ (علیه السلام) : مِنَ التَّواضُعِ السَّلامُ عَلی کُلِّ مَنْ تَمُرُّ بِهِ، وَ الْجُلُوسُ دُونَ شَرَفِ الْمَجْلِسِ क़ाला अलैहिस्सलामोः मिनत तवाज़ेइस सलामो अला कुल्ले मन तमोर्रो बेहि, वल जुलूसो दूना शरफ़िल मजलिसे

इमाम (अ) ने फ़रमाया: विनम्रता की एक निशानी यह है कि आप जिस किसी से भी मिलें, उसका अभिवादन करें और सभा में प्रवेश करते समय जहाँ भी हों, वहीं बैठ जाएँ - दूसरों को अपने लिए रास्ता खोलने के लिए मजबूर न करें।

26- जेदाल की बुराई

قالَ (علیه السلام) : لا تُمارِ فَیَذْهَبُ بَهاؤُکَ، وَ لا تُمازِحْ فَیُجْتَرَأُ عَلَیْکَ क़ाला अलैहिस्सलामोः ला तोमारे फ़यज़्हबो बहाओका, वला तोमाज़ेहो फ़युज्तरओ अलैका

इमाम (अ) ने फ़रमाया: ऐसी किसी भी बहस या विवाद में न पड़ो जिससे तुम्हारी गरिमा कम हो जाए, अनुचित या अनावश्यक मज़ाक या हंसी-मज़ाक न करो, वरना लोग तुमसे नाराज़ हो जाएँगे।

27- औलिया ए इलाही की आज्ञाकारिता को प्राथमिकता देना

قالَ (علیه السلام) : مَنْ آثَرَ طاعَهَ أبَوَیْ دینِهِ مُحَمَّد وَ عَلیٍّ عَلَیْهِمَاالسَّلام عَلی طاعَهِ أبَوَیْ نَسَبِهِ، قالَ اللهُ عَزَّ وَ جَلَّ لِهُ: لاَُؤَ ثِرَنَّکَ کَما آثَرْتَنی، وَلاَُشَرِّفَنَّکَ بِحَضْرَهِ أبَوَیْ دینِکَ کَما شَرَّفْتَ نَفسَکَ بِإیثارِ حُبِّهِما عَلی حُبِّ أبَوَیْ نَسَبِکَ क़ाला अलैहिस्सलामोः मन आसरा ताअता अबवय दीनेहि मुहम्मदिन व अलीयिन अलैहेमस्सलामो अला ताआते अबवय नसबेहि, क़ालल्लाहो अज़्ज़ा व जल्ला लहूः लेऊसेरन्नका कमा आसरतनी, वला ओशर्रेफ़न्नका बेहज़्रेहि अबवय दीनेका कमा शर्रफ़ता नफ़सका बेइसारे हुब्बेहेमा अला हुब्बे अबवय नसबेका

इमाम (अ) ने फ़रमाया: जो कोई भी अपने भौतिक माता-पिता का अनुसरण करने की अपेक्षा पैगम्बर मुहम्मद (स) और अमीरुल मोमेनीन इमाम अली (अ) की आज्ञाकारिता और अनुसरण को प्राथमिकता देता है, अल्लाह उसे आशीर्वाद दे और उसे शांति प्रदान करे, अल्लाह तआला उसे संबोधित करता हैं: जिस प्रकार तुमने मेरे आदेशों को हर चीज़ पर प्राथमिकता दी, उसी प्रकार मैं तुम्हें दान और आशीर्वाद में प्राथमिकता देता हूँ, और मैं तुम्हें धार्मिक माता-पिता, अर्थात् हज़रत रसूल और इमाम अली (अ) का साथी बनाता हूँ, उसी प्रकार जैसे कि रुचि और प्रेम - व्यावहारिक और धार्मिक। उन्होंने खुद को हर चीज़ से पहले रखा।

28- बे अदब की निशानी

قالَ (علیه السلام) : لَیْسَ مِنَ الاْدَبِ إظْهارُ الْفَرَحِ عِنْدَ الْمَحْزُونِ क़ाला अलैहिस्सलामोः लैसा मिनल अदबे इज़्हारुल फ़रहे इंदल महज़ूने

आप (अ) ने फ़रमाया: किसी पीड़ित और दुखी व्यक्ति की उपस्थिति में ख़ुशी और आनंद व्यक्त करना शिष्टाचार और मानवीय तथा इस्लामी नैतिकता नही है।

29- दूसरों के हुक़ूक़ पहचानना

قالَ (علیه السلام) : أعْرَفُ النّاسِ بِحُقُوقِ إخْوانِهِ، وَأشَدُّهُمْ قَضاءً لَها، أعْظَمُهُمْ عِنْدَاللهِ شَأناً क़ाला अलैहिस्सलामोः आरफ़ुन्नासे बेहुक़ूक़े इख़वानेहि, व अशद्दोहुम क़ज़ाअन लहा, आज़मोहुम इंदल्लाहे शानन

इमाम (अ) ने फ़रमाया: जो कोई अपने ही लोगों के अधिकारों को पहचानता और उनका सम्मान करता है और उनकी कठिनाइयों और ज़रूरतों को दूर करता है, उसे अल्लाह के यहाँ महानता और एक विशेष अवसर प्राप्त होगा।

30- इमाम का सम्मान

قالَ (علیه السلام) : اِتَّقُوا اللهُ وَ کُونُوا زَیْناً وَ لا تَکُونُوا شَیْناً، جُرُّوا إلَیْنا کُلَّ مَوَّدَه، وَ اَدْفَعُوا عَنّا کُلُّ قَبیح، فَإنَّهُ ما قیلَ فینا مِنْ حُسْن فَنَحْنُ أهْلُهُ، وَ ما قیلَ فینا مِنْ سُوء فَما نَحْنُ کَذلِکَ  क़ाला अलैहिस्सलामोः इत्तक़ुल्लाहो व कूनू जैनन वला तकूनू शयनन, जुर्रू इलैना कुल्ला मव्वदा, अदफ़ऊ अन्ना कुल्लो क़बीह, फ़इन्नहू मा क़ीला फ़ीना मिन हुस्ने फ़नहनो अहलोहू, व मा क़ीला फ़ीना मिन शूइन फ़मा नहनो कज़ालेका

आपने फ़रमाया: हर मामले में अल्लाह के तक़वा का सम्मान करो, और ज़ीनत बनो, और न ही शर्म का कारण बनो, लोगों को मेरे प्रेम और रुचि की ओर आकर्षित करने की कोशिश करो, और बुरी चीज़ों को मुझसे दूर रखो; वे हमारे गुणों के बारे में जो कुछ कहते हैं वह सही है और हम हर प्रकार के दोषों से मुक्त होंगे।

31- धर्मी विद्वान

قالَ (علیه السلام) : یَأتی عُلَماءُ شیعَتِنَاالْقَوّامُونَ لِضُعَفاءِ مُحِبّینا وَ أهْلِ وِلایَتِنا یَوْمَ الْقِیامَهِ، وَالاْنْوارُ تَسْطَعُ مِنْ تیجانِهِمْ عَلی رَأسِ کُلِّ واحِد مِنْهُمْ تاجُ بَهاء، قَدِ انْبَثَّتْ تِلْکَ الاْنْوارُ فی عَرَصاتِ الْقِیامَهِ وَ دُورِها مَسیرَهَ ثَلاثِمِائَهِ ألْفِ سَنَه क़ाला अलैहिस्सलामोः याती उलामाओ शीअतेनल कव्वामूना लेज़ोअफ़ाए मोहिब्बीना व अहले विलायतेना यौमल क़यामते, वल अनवारो तस्तओ मिन तीजानेहिम अला रासे कुल्ले वाहेदिन मिनहुम ताजो बहाए, क़दिन बस्सत तिलकल अनवारो फ़ी अरसातिल क़यामते व दूरेहा मसीरहा सलासेमेअते अलफ़े सनातिन 

इमाम (अ) ने फ़रमाया: वे शिया विद्वान और विद्वान जिन्होंने मार्गदर्शन और कठिनाइयों के निवारण के लिए मेरे मित्रों और समर्थकों की तलाश की है, क़यामत के दिन महशर रेगिस्तान में ऐसी स्थिति में प्रवेश करेंगे कि उनके सिरों पर सम्मान का मुकुट रखा जाएगा और प्रकाश पूरे स्थान को प्रकाशित करेगा और महशर के सभी लोग उस प्रकाश से लाभान्वित होंगे।

स्रोत:
1-उसूले काफ़ी,  भाग 1, पेज 519, हदीस 11

2- हदीक़ा तुश शिया, भाग 2, पेज 194, वाफ़, भाग 4, पेज 177, हदीस 42

3- मुस्तद्रिक अल-वसाइल, भाग 11, पेज 183, हदीस 12690

4- तोहफ़ उल उक़ूल, पेज 489, पेज 13, बिहार उल अनवार, भाग  75, पेज 374, हदीस 26,  अग्तान तबरसी: भाग 2, पेज 517, हदीस 340

5- तफसीर इमाम हसन अस्करी (स), पेज 345, हदीस 226

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