رضوی

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65 हिजरी में मरवान के मरने के बाद उसका बेटा अब्दुल मलिक मिस्त्र व शाम का बादशाह तसलीम किया गया। यह बनी उमय्या का असलन नमूना था चूंकि मुसतबद फ़रेबी और ईमान से दूर था। वह अजीब क़ाबलियत के साथ अपनी खि़लाफ़त को मुस्तहकम करने में मसरूफ़ हुआ। उसकी राह में मुख़्तार बिन अबी उबैदा सक़फी और अब्दुल्ला इब्ने ज़ुबैर रूकावट थे। उनके बाद जमादुस्सानिया 73 हिजरी में अब्दुल मलिक इब्ने मरवान तमाम मुमालिके इस्लाम का अकेला बादशाह बन गया। इब्ने ज़ुबैर से लड़ने में चूंकि हज्जाज बिन यूसुफ़ अमवी जरनल ने नुमायां किरदार अदा किया था इस लिये अब्दुल मलिक बिन मरवान ने उसे हिजाज़ का गर्वनर बना दिया था।

75 हिजरी में अब्दुल मलिक ने इसे अपनी मशरिक़ी सलतनत, ईराक़, फ़ारस और सिस्तान, किरमान और ख़ुरासान का जिसमें काबुल और कुछ हिस्सा मावरा अल नहर का भी शामिल था वायस राय बना दिया।

हज्जाज ने अपनी हिजाज़ की गर्वनरी के ज़माने में मदीने के लोगों पर जिनमें असहाबे रसूल (स. अ.) भी थे बड़े बड़े ज़ुल्म किये। ईराक़ में अपनी बीस बरस की गर्वनरी के दौरान में उसने तक़रीबन डेढ़ लाख (1,50000 और बा रवायत मिशक़ात 5,00000 पांच लाख) बन्दगाने ख़ुदा का ख़ून बहाया था। जिनमें से बहुत लोगों पर झूठे इल्ज़ाम और बोहतान लगाये गये थे। उसकी वफ़ात के वक़्त 50,000 (पचास हज़ार) मर्द व ज़न क़ैद ख़ानों में पड़े हुए उसकी जान को रो रहे थे। बे सख़फ़ (बग़ैर छत) क़ैद ख़ाना उसी की ईजाद है।

इब्ने ख़ल्क़ान लिखता है कि अब्दुल मलिक बड़ा ज़ालिम और सफ़्फ़ाक था और ऐसे ही उसके गवरनर, हज्जाज ईराक़ में, मेहरबान ख़ुरासान में, हश्शाम इब्ने इस्माईल हिजाज़ और मग़रेबी अरब में और उसका बेटा अब्दुल्लाह मिस्त्र में, हस्सान बिन नोमान मग़रिब में, हज्जाज का भाई मोहम्मद बिन यूसुफ़ यमन में, मोहम्मद बिन मरवान जज़ीरे में, यह सब के सब ज़ालिम और सफ़्फ़ाक थे। और मसूदी लिखता है कि बे परवाही से ख़ून बहाने में अब्दुल मलिक के आमिल इसी के नक़्शे क़दम पर चलते थे मुवर्रेख़ीन लिखते हैं कि यह कंजूस, बे रहम, सफ़्फ़ाक, वायदा खि़लाफ़, दग़ा बाज़ बे ईमान था। यह मतलब बरारी के लिये सब कुछ किया करता था। अख़तल इसके दरबार का मशहूर शायर और ज़हरी मशहूर मोहद्दिस था जिसने सब से अव्वल हदीस की किताब लिखी। (तारीख़े इस्लाम जिल्द 1 सफ़ा 42)

ज़हरी का असल नाम इमाम अबू बकर मोहम्मद बिन मुस्लिम बिन अबीद उल्ला इब्ने शहाब ज़हरी मदनी शामी था। यह ताबई फ़क़ीह और मोहद्दिस था। 51 हिजरी में पैदा हो कर 124 हिजरी में फ़ौत हुआ। मदीने के नामी मोहद्दिसों और फ़की़हो में था, अब्दुल मलक और हश्शाम ख़ुल्फ़ा बनी उमय्या की सोहबत में रहा। इमाम मालिक का उस्ताद और इल्मे हदीस का मदून था।

(तारीख़े इस्लाम जिल्द 5 सफ़ा 79 सफ़ा 19, 20)

 बहुत से उलमा ने लिखा है कि अब्दुल मलक बिन मरवान ने हुक्म दे दिया था कि अली इब्ने हुसैन (अ.स.) को गिरफ़्तार कर के शाम पहुँचा दिया जाए। चुनांचे आप को जंजीरों में जकड़ कर मदीने से बाहर एक ख़ेमें में ठहरा दिया गया।

ज़हरी का बयान है कि मैं उन्हें रूख़सत करने के लिये उनकी खि़दमत में हाज़िर हुआ। जब मेरी नज़र हथकड़ी और बेड़ियों पर पड़ी तो मेरी आंखांे से आंसू निकल पड़े और मैं अर्ज़ परदाज़ हुआ कि काश आपके बजाए लोहे के ज़ेवरात मैं पहन लेता और आप इससे बरी हो जाते। आपने फ़रमाया ज़हरी तुम मेरी हथकड़ियां, बेड़ी और मेरे तौक़े गरां बार को देख कर घबरा रहे हो सुनों ! मुझे इसकी कोई परवाह नहीं है। (शवाहेदुन नबूवत सफ़ा 177 व अर हज्जुल मतालिब सफ़ा 422 हयातुल औलिया जिल्द 3 सफ़ा 135 तबा मिस्त्र)

अल्लामा मोहम्मद बिन तल्हा शाफ़ेई बा हवाला ज़हरी लिखते हैं कि इस वाक़ेए के बाद अब्दुल मलिक इब्ने मरवान के पास गया मैंने कहा कि ‘‘ ऐ अमीर , लैयसा अली इब्नुल हुसैन हैस तज़न अन्दा मशगू़ल बे रब्बेही ’’ इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) पर किसी क़िस्म का कोई इल्ज़ाम नहीं है। वह तेरी हुकूमत के मामेलात से कोई दिलचस्पी नहीं रखते वह ख़ालिस अल्लाह वाले हैं। कि ज़हरी के तज़किरे ख़ुसूसी के बाद अब्दुल मलिक इब्ने मरवान ने हज्जाज बिन यूसुफ़ को लिखा कि ‘‘ अन यजूतनेबा देमा बनी अब्दुल मुत्तलिब ’’ बनी हाशिम को सताने और उनके ख़ून बहाने से इज्तेनाब करें। (सवाएक़े मोहर्रेक़ा सफ़ा 119)

अल्लामा शिबली लिखते हैं कि बादशाह ने हज्जाज को इज्तेनाब की वजह भी लिखी थी और वह यह थी कि बनी उमय्या के अकसर बादशाह उन्हें सताकर जल्द तबाह हो गए हैं। (नूरूल अबसार सफ़ा 127) ग़रज़ अब्दुल मलिक के ज़माने में इस वाक़िये के बाद से औलादे अबु तालिब हज्जाज के हाथों से अमान में रही। (तारीख़े इस्लाम जिल्द 1 सफ़ा 141)

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) और बुनियादे काबा ए मोहतरम व नसबे हजरे असवद

71 हिजरी में अब्दुल मलिक बिन मरवान ने ईराक़ पर लशकर कशी कर के मसअब बिन ज़ुबैर को क़त्ल किया फिर 72 हिजरी में हज्जाज बिन यूसुफ़ को एक अज़ीम लशकर के साथ अब्दुल्लाह इब्ने ज़ुबैर को क़त्ल करने के लिये मक्के मोअज़्ज़मा रवाना किया। (अबुल फ़िदा) वहीं पहुँच कर हज्जाज ने इब्ने ज़ुबैर से जंग की इब्ने ज़ुबैर ने ज़बर दस्त मुक़ाबला किया और बहुत सी लड़ाईयां हुईं, आखि़र में इब्ने ज़ुबैर महसूर हो गए, और हज्जाज ने इब्ने ज़ुबैर को काबे से निकालने के लिये काबे पर संग बारी शुरू कर दी यही नहीं बल्कि उसे खुदवा डाला। इब्नु ज़ुबैर जमादिल आखि़र 73 हिजरी में क़त्ल हुआ। (तारीख़ इब्नुल वरदी) और हज्जाज जो ख़ाना ए काबा की बुनियाद तक ख़राब कर चुका था, इसकी तामीर की तरफ़ मुतवज्जे हुआ।

अल्लामा सद्दूक़ किताब एललुश शराए में लिखते हैं कि हज्जाज के हदमे काबा के मौक़े पर लोग उसकी मिट्टी तक उठा कर ले गए और काबा को इस तरह लूट लिया कि इसकी कोई पुरानी चीज़ बाक़ी न रही। फिर हज्जाज को ख़्याल पैदा हुआ कि इसकी तामीर करानी चाहिए। चुनान्चे उस ने तामीर का प्रोग्राम मुरत्तब कर लिया और काम शुरू करा दिया। काम की अभी बिल्कुल इब्तेदाई मंज़िल थी कि एक अज़दहा बरामद हो कर ऐसी जगह बैठ गया जिसके हटे बग़ैर काम आगे नहीं बढ़ सकता था। लोगों ने इस वाक़िए की इत्तेला हज्जाज को दी, हज्जाज घबरा उठा और लोगों को जमा कर के उन से मशविरा किया कि अब क्या करना चाहिए। जब लोग इसका हल निकालने से का़सिर रहे तो एक शख़्स ने खड़े हो कर कहा कि आज कर फ़रज़न्दे रसूल (स. अ.) हज़रत ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) यहां आए हुए हैं बेहतर होगा कि उन से दरयाफ़्त कराया जाए यह मसला उनके अलावा कोई हल नहीं कर सकता। चुनान्चे हज्जाज ने आपको ज़हमते तशरीफ़ आवरी दी। आपने फ़रमाया हज्जाज तूने ख़ाना ए काबा को अपनी मीरास समझ लिया । तूने तो बेनाए इब्राहीम (अ.स.) उखड़वा कर रास्ते में डलवा दिया। ‘‘ सुन ! तुझे ख़ुदा उस वक़्त तक काबे की तामीर में कामयाब न होने देगा जब तक तू काबे का लूटा हुआ सामान वापस न मंगाएगा। यह सुन कर ऐलान किया कि काबे से मुतअल्लिक़ जो शय भी किसी के पास हो वह जल्द अज़ जल्द वापस करें चुनान्चे लोगों ने पत्थर मिट्टी वग़ैरा जमा कर दी। जब सब कुछ जमा हो गया तो आप उस अज़दहे के क़रीब गए और वह हट कर एक तरफ़ हो गया। आपने उसकी बुनियाद इस्तेवार की और हज्जाज से फ़रमाया कि इसके ऊपर तामीर करो ‘‘ फ़ल ज़ालिक सार अल बैत मरतफ़अन ’’ फिर इसी बुनियाद पर ख़ाना ए काबा की तामीर बुलन्द हुई। किताब अल ख़राएज वल हराए में अल्लामा कुतब रावन्दी लिखते हैं कि जब तामीरे काबा उस मक़ाम तक पहुँची जिस जगह हजरे असवद नसब करना था यह दुशवारी पैदा हुई कि जब कोई आलिम, ज़ाहिद, क़ाजी़ उसे नस्ब करता था तो ‘‘ यताज़ल ज़लव यज़तरब वला यसतक़र ’’ हजरे असवद मुताज़लज़िल और मुज़तरिब रहता और अपने मुक़ाम पर ठहरता न था बिल आखि़र इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) बुलाए गए और आपने बिस्मिल्लाह कह कर उसे नसब कर दिया, यह देख कर लोगों ने अल्लाहो अकबर का नारा लगाया। (दमए साकेबा जिल्द 2 सफ़ा 437) उल्मा व मुवर्रेख़ीन का बयान है कि हज्जाज बिन यूसुफ़ ने यज़ीद बिन माविया ही की तरह ख़ाना ए काबा पर मिनज़नीक़ से पत्थर वग़ैरा फिकवाए थे।

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) और अब्दुल मलिक बिन मरवान का हज

बादशाहे दुनिया अब्दुल मलिक बिन मरवान अपने अहदे हुकूमत में अपने पाये तख़्त से हज के लिये रवाना हो कर मक्के मोअज़्ज़मा पहुँचा और बादशाहे दीन हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) भी मदीना ए मुनव्वरा से रवाना हो कर पहुँच गए। मनासिके हज के सिलसिले में दोनों का साथ हो गया। हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) आगे आगे चल रहे थे और बादशाह पीछे पीछे चल रहे था। अब्दुल मलिक को यह बात नागवार हुई और उसने आपसे कहा क्या मैंने आप के बाप को क़त्ल किया है जो आप मेरी तरफ़ मुतवज्जे नहीं होते? आपने फ़रमाया कि जिसने मेरे बाप को क़त्ल किया है उसने अपनी दुनिया व आख़ेरत ख़राब कर ली ह,ै क्या तू भी यही हौसला रखता है? उसने कहा नहीं। मेरा मतलब यह है कि आप मेरे पास आयें ताकि मैं आपसे कुछ माली सुलूक करूँ। आपने इरशाद फ़रमाया, मुझे तेरे माले दुनिया की ज़रूरत नहीं है, मुझे देने वाला ख़ुदा है। यह कह कर आपने उसी जगह ज़मीन पर रिदाए मुबारक डाल दी और काबे की तरफ़ इशारा कर के कहा, मेरे मालिक इसे भर दे। इमाम (अ.स.) की ज़बान से अल्फ़ाज़ का निकलना था कि रिदाए मुबारक मोतियों से भर गई। आपने उसे राहे ख़ुदा में दे दिया। (दमए साकेबा, जन्नातुल ख़ुलूद सफ़ा 23)

बद किरदार और रिया कार हाजियों की शक्ल

इमामुल हदीस ज़हरी का बयान है कि मैं हज के मौक़े पर इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) के पास मक़ामे अराफ़ात में खड़ा हाजियों को देख रहा था। दफ़तन मेरे मुहं से निकला कि मौला कितने लाख हाजी हैं और कितना ज़बरदस्त शोर मचा हुआ है। हज़रत ने फ़रमाया कि मेरे क़रीब आओ। जब मैं बिल्कुल नज़ीद हुआ तो आपने मेरे चेहरे पर हाथ फेर कर फ़रमाया, ‘‘ अब देखो ’’ जब मैं ने फिर नज़र की तो मुझे लाखों आदमियों में दस हज़ार के एक के तनासुब से इन्सान दिखाई दिये बाक़ी सब के सब बन्दर , कुत्ते, सुअर, भेड़िये और इसी तरह के जानवर नज़र आये। यह देख कर मैं हैरान रह गया। आपने फ़रमाया कि सुनो ! जो सही नियत और सही अक़ीदे के बग़ैर हज करते हैं उनका यही हश्र होता है। ऐ ज़हरी नेक नियत और हमारी मोवद्दत व मोहब्बत के बग़ैर सारे आमाल बेकार हैं। (तफ़सीरे इमाम हसन असकरी व दमए साकेबा, जिल्द 2 सफ़ा 438)

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) और एक मर्दे बल्ख़ी

अल्लामा शेख़ तरही और अल्लामा मजलिसी रक़म तराज़ हैं कि बलख़ का रहने वाला एक दोस्त दारे आले मोहम्मद (अ.स.)  हमेशा हज किया करता था और जब हज को आता था तो मदीने जा कर इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की ज़ियारत का शरफ़ भी हासिल किया करता था। एक मरतबा हज से लौटा तो उसकी बीवी ने कहा कि तुम हमेशा अपने इमाम की खि़दमत मे तोहफ़े ले जाते हो मगर उन्होंने आज तक तुम को कुछ न दिया। उसने कहा तौबा करो तुम्हारे लिये यह कहना सज़ावार नहीं है, वह इमामे ज़माना हैं। वह मालिके दीनो दुनियां हैं। वह फ़रज़न्दे रसूल (स. अ.) हैं। वह तुम्हारी बातें सुन रहे हैं। यह सुन कर वह ख़ामोश हो गई। अगले साल जब वह हज से फ़राग़त कर के इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की खि़दमत में पहुँचा और सलाम व दस्त बोसी के बाद आपके पास बैठा तो आप ने खाना तलब फ़रमाया। हुक्मे इमाम (अ.स.) से मजबूर हो कर उसने इमाम (अ.स.) के साथ खाना खाया। जब दोनों खाना खा चुके तो इमाम के दोस्त बलख़ी ने हाथ धुलाना चाहा। आपने फ़रमाया तू महमान है, यह तेरा काम नहीं। उसने इसरार किया और हाथ धुलाना शुरू कर दिया। जब तश्त भर गया तो आपने पूछा यह क्या है। उसने कहा ‘‘ पानी ’’ हज़रत ने फ़रमाया नहीं ‘‘ याक़ूते अहमर ’’ हैं। जब उसने ग़ौर से देखा तो वह तश्त ‘‘ याकूते सुर्ख ’’ से भरा हुआ था। इसी तरह ‘‘ ज़मुर्रदे सब्ज़ ’’ और ‘‘ दुरे बैज़ ’’ से भर गया। यानी तीन बार ऐसा ही हुआ यह देख कर वह हैरान हो गया और आपके हाथों का बोसा देने लगा। हज़रत ने फ़रमाया इसे लेते जाओ और अपनी बीवी को दे देना और कहना कि हमारे पास और कुछ माले दुनिया से नहीं है। वह शख़्स शरमिन्दा हो कर बोला, मौला आपको हमारी बीवी की बात किसने बता दी? इमाम (अ.स.) ने फ़रमाया हमें सब मालूम हो जाता है। उसके बाद वह इमाम (अ.स.) से रूख़सत हो कर बीवी के पास पहुँचा। जवाहेरात दे कर सारा वाक़ेया बयान किया। बीवी ने कहा आइन्दा साल मैं भी चल कर ज़ियारत करूँगी। जब दूसरे साल बीवी हमराह रवाना हुई, तो रास्ते में इन्तेक़ाल कर गई। वह शख़्स हज़रत की खि़दमत में रोता पीटता हाज़िर हुआ। हज़रत ने दो रकअत नमाज़ पढ़ कर फ़रमाया, जाओ तुम्हारी बीवी भी ज़िन्दा हो गई है। उस ने क़याम गाह पर लौट कर बीवी को ज़िन्दा पाया। जब वह हाज़िरे खि़दमत हुई तो कहने लगी, ख़ुदा की क़सम इन्होंने मुझे मलकुल मौत से कह कर ज़िन्दा किया था और उस से कहा था कि यह मेरी ज़ायरा है। मैंने इसकी उम्र तीस साल बढ़वा ली है।

(अल मुन्तखि़ब वल बिहार)

 

 

अहादीस में है कि ज़राअत (खेती) व काश्त कारी सुन्नत है। हज़रत इदरीस के अलावा कि वह ख़य्याती करते थे। तक़रीबन जुमला अम्बिया ज़राअत किया करते थे। हज़रात आइम्माए ताहेरीन (अ.स.) का भी यही पेशा रहा है लेकिन यह हज़रात इस काश्त कारी से ख़ुद फ़ायदा नहीं उठाते थे बल्कि इस से ग़ुरबा, फ़ुक़रा और तयूर के लिये रोज़ी फ़राहम किया करते थे। हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) फ़रमाते हैं ‘‘ माअजरा अलज़रा लतालब अलफ़ज़ल फ़ीह वमाअज़रा अलालैतना वलहू अल फ़क़ीरो जुल हाजता वलैतना वल मना अलक़बरता ख़सता मन अल तैर ’’ मैं अपना फ़ायदा हासिल करते के लिये ज़राअत नहीं किया करता बल्कि मैं इस लिये ज़राअत करता हूँ कि इस से ग़रीबों , फ़क़ीरों मोहताजों और ताएरों ख़ुसूसन कु़बर्रहू को रोज़ी फ़राहम करूँ। (सफ़ीनतुल बेहार जिल्द 1 सफ़ा 549)

वाज़े हो कि कु़बरहू वह ताएर हैं जो अपने महले इबादत में कहा करता है ‘‘ अल्लाह हुम्मा लाअन मबग़ज़ी आले मोहम्मद ’’ ख़ुदाया उन लोगों पर लानत कर जो आले मोहम्मद (स.अ.) से बुग़्ज़ रखते हैं। (लबाब अल तावील बग़वी)

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) और फ़ित्नाए इब्ने ज़ुबैर

मुवर्रिख़ मि0 ज़ाकिर हुसैन लिखते हैं कि अब्दुल्लाह बिन ज़ुबैर जो आले मोहम्मद (स. अ.) का शदीद दुश्मन था 3 हिजरी में हज़रत अबू बकर की बड़ी साहब ज़ादी असमा के बतन से पैदा हुआ, इसे खि़लाफ़त की बड़ी फ़िक्र थी। इसी लिये जंगे जमल में मैदान गरम करने में उसने पूरी सई से काम लिया था। यह शख़्स इन्तेहाई कन्जूस और बनी हाशिम का सख़्त दुश्मन था और उन्हें बहुत सताता था। बरवाएते मसूदी उसने जाफ़र बिन अब्बास से कहा कि मैं चालीस बरस से तुम बनी हाशिम से दुश्मनी रखता हूँ। इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत के बाद 61 हिजरी में मक्का में और रजब 64 हिजरी में मुल्के शाम के बाज़ इलाक़ों के अलावा तमाम मुमालिके इस्लाम में इसकी बैअत कर ली गई। अक़दुल फ़रीद और मरूज उज़ ज़हब में है कि जब इसकी कु़व्वत बहुत बढ़ गई तो उसने ख़ुतबे में हज़रत अली (अ.स.) की मज़म्मत की और चालीस रोज़ तक ख़ुत्बे में दुरूद नहीं पढ़ा और मोहम्मद हनफ़िया और इब्ने अब्बास और दीगर बनी हाशिम को बैअत के लिये बुलाया उन्होंने इन्कार किया तो बरसरे मिम्बर उनको गालियां दीं और ख़ुत्बे से रसूल अल्लाह (स. अ.) का नाम निकाल डाला और जब इसके बारे में इस पर एतिराज़ किया गया तो जवाब दिया कि इस से बनी हाशिम बहुत फ़ुलते हैं, मैं दिल में कह लिया करता हूँ। इसके बाद उस ने मोहम्मद हनफ़िया और इब्ने अब्बास को हब्से बेजा में मय 15 बनी हाशिम के क़ैद कर दिया और लकड़िया क़ैद ख़ाने के दरवाज़े पर चिन दीं और कहा कि अगर बैअत न करोगे तो मैं आग लगा दूंगा। जिस तरह बनी हाशिम के इन्कारे बैअत पर लकड़िया चिनवा दी गई थीं। इतने में वह फ़ौज वहां पहुँच गई जिसे मुख़्तार ने उनकी मदद के लिये अब्दुल्लाह जदली की सर करदगी में भेजी थी और उसने इन मोहतरम लोगों को बचा लिया और वहां से ताएफ़ पहुँचा दिया। (अक़दे फ़रीद व मसूदी)

उन्हीं हालात की बिना पर हज़रत ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) अकसर फ़ित्नाए इब्ने ज़ुबैर का ज़िक्र फ़रमाते थे। आलिमे अहले सुन्न्त अल्लामा शिबली लिखते हैं कि अबू हमज़ा शुमाली का बयान है कि एक दिन हज़रत की खि़दमत में हाज़िर हुआ और चाहा कि आपसे मुलाक़ात करूँ लेकिन चूंकि आप घर के अन्दर थे, इस लिये सुए अदब समझते हुए मैंने आवाज़ न दी। थोड़ी देर के बाद ख़ुद बाहर तशरीफ़ लाए और मुझे हमराह ले कर एक जानिब रवाना हो गए। रास्ते में आपने एक दिवार की तरफ़ इशारा करते हुए फ़रमाया, ऐ अबू हमज़ा ! मैं एक दिन सख़्त रंजो अलम में इस दीवार से टेक लगाए खड़ा था और सोच रहा था कि इब्ने ज़ुबैर के फ़ितने से बनी हाशिम को क्यों कर बचाया जाए। इतने में एक शरीफ़ और मुकद्दस बुज़ुर्ग साफ़ सुथरे कपड़े पहने हुए मेरे पास आए और कहने लगे आखि़र क्यों परेशान खड़े हैं? मैंने कहा मुझे फ़ितनाए इब्ने ज़ुबैर का ग़म और उसकी फ़िक्र है। वह बोले, ऐ अली इब्नुल हुसैन (अ.स.) ! घबराओ नहीं जो ख़ुदा से डरता है, ख़ुदा उसकी मद्द करता है। जो उससे तलब करता है वह उसे देता है। यह कह कर वह मुक़द्दस शख़्स मेरी नज़रों से ग़ाएब हो गये और हातिफ़े ग़ैबी ने आवाज़ दी। ‘‘ हाज़ल खि़ज़्र ना हबाक़ा ’’ कि यह जो आपसे बातें कर रहे थे वह जनाबे खि़ज्ऱ (अ.स.) थे। (नुरूल अबसार सफ़ा 129, मतालेबुल सुवेल सफ़ा 264, शवाहेदुन नबूवत सफ़ा 178) वाज़े हो कि यह रवायत बरादराने अहले सुन्नत की है। हमारे नज़दीक इमाम कायनात की हर चीज़ से वाक़िफ़ होता है।

हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की अपने पदरे बुज़ुर्गवार के क़र्ज़े से सुबुक दोशी

उलेमा का बयान है कि हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) क़ैद ख़ाना ए शाम से छूट कर मदीने पहुँचने के बाद से अपने पदरे बुज़ुर्गवार हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) के क़र्ज़े की अदाएगी की फ़िक्र में रहा करते थे और चाहते थे कि किसी न किसी सूरत से 75 हज़ार दीनार जो हज़रत सय्यदुश शोहदा का क़र्ज़ा है मैं अदा कर दूं। बिल आखि़र आपने ‘‘ चश्मए तहनस ’’ को जो कि इमाम हुसैन (अ.स.) का बामक़ाम ‘‘ ज़ी ख़शब ’’ बनवाया हुआ था फ़रोख़्त कर के क़रज़े की अदाएगी से सुबुक दोशी हासिल फ़रमाई। चशमे के बेचने में यह शर्त थी कि शबे शम्बा को पानी लेने का हक़ ख़रीदने वाले को न होगा बल्कि उसकी हक़दार सिर्फ़ इमाम (अ.स.) की हमशीरा होंगी।

(बेहारूल अनवार, वफ़ा अल वफ़ा जिल्द 2 सफ़ा 249 व मनाक़िब जिल्द 4 सफ़ा 114)

 

माविया इब्ने यज़ीद की तख़्त नशीनी और इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.)

यज़ीद के मरने के बाद उसका बेटा अबू लैला, माविया बिन यज़ीद ख़लीफ़ा ए वक़्त बना दिया गया। वह इस ओहदे को क़बूल करने पर राज़ी न था क्यों कि वह फ़ितरतन हज़रत अली (अ.स.) की मोहब्बत पर पैदा हुआ था और उनकी औलाद को दोस्त रखता था। बा रवायत हबीब अल सैर उसने लोगों से कहा कि मेरे लिये खि़लाफ़त सज़ावार और मुनासिब नहीं है मैं ज़रूरी समझता हूँ कि इस मामले में तुम्हारी रहबरी करूँ और बता दूं कि यह मन्सब किस के लिये ज़ेबा है, सुनो ! इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) मौजूद हैं उन में किसी तरह का कोई ऐब निकाला नहीं जा सकता। वह इस के हक़ दार और मुस्तहक़ हैं, तुम लोग उनसे मिलो और उन्हें राज़ी करो अगरचे मैं जानता हूँ कि वह इसे क़ुबूल न करेंगे।

मिस्टर ज़ाकिर हुसैन लिखते हैं कि 64 हिजरी में यज़ीद के मरते ही माविया बिन यज़ीद की बैअत शाम में, अब्दुल्लाह इब्ने ज़ुबैर की हिजाज़ और यमन में हो गई और अब्दुल्लाह इब्ने ज़ियाद ईराक़ में ख़लीफ़ा बन गया।

माविया इब्ने यज़ीद हिल्म व सलीम अल बतआ जवाने सालेह था। वह अपने ख़ानदान की ख़ताओं और बुराईयों को नफ़रत की नज़र से देखता और अली (अ.स.) और औलादे अली (अ.स.) को मुस्तहक़े खि़लाफ़त समझता था। (तारीख़े इस्लाम जिल्द 1 सफ़ा 37) अल्लामा मआसिर रक़म तराज़ हैं कि 64 हिजरी में यज़ीद मरा तो उसका बेटा माविया ख़लीफ़ा बनाया गया। उसने चालीस रोज़ और बाज़ क़ौल के मुताबिक़ 5 माह खि़लाफ़त की। उसके बाद ख़ुद खि़लाफ़त छोड़ दी और अपने को खि़लाफ़त से अलग कर लिया। इस तरह कि एक रोज़ मिम्बर पर चढ़ कर देर तक ख़ामोश बैठा रहा फिर कहा, ‘‘ लोगों ! ’’ मुझे तुम लोगों पर हुकूमत करने की ख़्वाहिश नहीं है क्यों कि मैं तुम लोगों की जिस बात (गुमराही और बे ईमानी) को ना पसन्द करता हूँ वह मामूली दरजे की नहीं बल्कि बहुत बड़ी है और यह भी जानता हूँ कि तुम लोग भी मुझे ना पसन्द करते हो इस लिये कि मैं तुम लोगों की खि़लाफ़त से बड़े अज़ाब में मुब्तिला और गिरफ़्तार हूँ और तुम लोग भी मेरी हुकूमत के सबब मुमराही की सख़्त मुसीबत में पड़े हो। ‘‘ सुन लो ’’ कि मेरे दादा माविया ने इस खि़लाफ़त के लिये उस बुज़ुर्ग से जंगो जदल की जो इस खि़लाफ़त के लिये उस से कहीं ज़्यादा सज़ावार और मुस्तहक़ थे और वह हज़रत इस खि़लाफ़त के लिये सिर्फ़ माविया ही नहीं बल्कि दूसरे लोगों से भी अफ़ज़ल थे इस सबब से कि हज़रत को हज़रत रसूले ख़ुदा (स. अ.) से क़राबते क़रीबिया हासिल थी। हज़रत के फ़जा़एल बहुत थे। ख़ुदा के यहां हज़रत को सब से ज़्यादा तक़र्रूब हासिल था। हज़रत तमाम सहाबा, महाजेरीन से ज़्यादा अज़ीम उल क़द्र, सब से ज़्यादा बहादुर, सब से ज़्यादा साहेबे इल्म, सब से पहले ईमान लोने वाले, सब से आला अशरफ़ दर्जा रखने वाले और सब से पहले हज़रत रसूले ख़ुदा (स. अ.) की सोहबत का फ़ख्ऱ हासिल करने वाले थे। अलावा इन फ़ज़ाएल व मनाक़िब के वह जनाबे हज़रत रसूले ख़ुदा (स. अ.) के चचा ज़ाद भाई, हज़रत के दामाद और हज़रत के दीनी भाई थे जिनसे हज़रत ने कई बार मवाख़ात फ़रमाई। जनाबे हसनैन (अ.स.) जवानाने अहले बेहिश्त के सरदार और इस उम्मत में सब से अफ़ज़ल और परवरदए रसूल (स. अ.) और फ़ात्मा बुतूल (स. अ.) के दो लाल यानी पाको पाकीज़ा दरख़ते रिसालत के फूल थे। उनके पदरे बुज़ुर्गवार हज़रत अली (अ.स.) ही थे। ऐसे बुज़ुर्ग से मेरा दादा जिस तरह सरकशी पर आमादा हुआ उसको तुम लोग ख़ूब जानते हो और मेरे दादा की वजह से तुम लोग जिस गुमराही में पड़े उस से भी तुम लोग बे ख़बर नहीं हो। यहां तक कि मेरे दादा को उसके इरादे में कामयाबी हुई और उसके दुनिया के सब काम बन गए मगर जब उसकी अजल उसके क़रीब पहुँच गई और मौत के पंजों ने उसको अपने शिकंजे में कस लिया तो वह अपने आमाल में इस तरह गिरफ़्तार हो कर रह गया कि अपनी क़ब्र में अकेला पड़ा है और जो ज़ुल्म कर चुका था उन सब को अपने सामने पा रहा है और जो शैतनत व फ़िरऔनियत उसने इख़्तेयार कर रखी थी उन सब को अपनी आख़ों से देख रहा है। फिर यह खि़लाफ़त मेरे बाप यज़ीद के सिपुर्द हुई तो जिस गुमराही में मेरा दादा था उसी ज़लालत में पड़ कर मेरा बाप भी ख़लीफ़ा बन बैठा और तुम लोगों की हुकूमत अपने हाथ में ले ली हालां कि मेरा बाप यज़ीद भी इस्लाम कुश बातों दीन सोज़ हरकतों और अपनी रूसियाहियो की वजह से किसी तरह उसका अहल न था कि हज़रत रसूले करीम (स. अ.) की उम्मत का ख़लीफ़ा और उनका सरदार बन सके, मगर वह अपनी नफ़्स परस्ती की वजह से इस गुमराही पर आमादा हो गया और उसने अपने ग़लत कामों को अच्छा समझा जिसके बाद उसने दुनियां में जो अंधेरा किया उस से ज़माना वाक़िफ़ है कि अल्लाह से मुक़ाबला और सरकशी करने तक पर आमादा हो गया और हज़रत रसूले ख़ुदा (स. अ.) से इतनी बग़ावत की कि हज़रत की औलाद का ख़ून बहाने पर कमर बांध ली, मगर उसकी मुद्दत कर रही और उसका ज़ुल्म ख़त्म हो गया। वह अपने आमाल के मज़े चख रहा है और अपने गढ़े (क़ब्र्र) से लिपटा हुआ और अपने गुनाहांे की बलाओं में फंसा हुआ पड़ा है। अलबत्ता उसकी सफ़ाकियों के नतीजे जारी और उसकी ख़ूं रेज़ियों की अलामतें बाक़ी हैं। अब वह भी वहां पहुँच गया जहां के लिये अपने करतूतों का ज़ख़ीरा मोहय्या किया था और अब किये पर नादिम हो रहा है। मगर कब? जब किसी निदामत का कोई फ़ायदा नहीं और वह इस अज़ाब में पड़ गया कि हम लोग उसकी मौत को भूल गये और उसकी जुदाई पर हमें अफ़सोस नहीं होता बल्कि उसका ग़म है कि अब वह किस आफ़त में गिरफ़्तार है, काश मालूम हो जाता कि वहां उसने क्या उज़्र तराशा और फिर उससे क्या कहा गया, क्या वह अपने गुनाहों के अज़ाब में डाल दिया गया और अपने आमाल की सज़ा भुगत रहा है? मेरा गुमान तो यही है कि ऐसा ही होगा। उसके बाद गिरया उसके गुलूगीर हो गया और वह देर तक रोता रहा और ज़ोर ज़ोर से चीख़ता रहा।

फिर बोला, अब मैं अपने ज़ालिम ख़ानदान बनी उमय्या का तीसरा ख़लीफ़ा बनाया गया हूँ हालां कि जो लोग मुझ पर मेरे दादा और बाप के ज़ुल्मों की वजह से ग़ज़ब नाक हैं उनकी तादाद उन लोगों से कहीं ज़्यादा है जो मुझ से राज़ी हैं।

भाईयों मैं तुम लोगों के गुनाहों के बार उठाने की ताक़त नहीं रखता और ख़ुदा वह दिन भी मुझे न दिखाए कि मैं तुम लोगों की गुमराहियांे और बुराईयों के बार से लदा हुआ उसकी दरगाह में पहुँचूँ। अब तुम लोगों को अपनी हुकूमत के बारे में इख़्तेयार है उसे मुझ से ले लो और जिसे पसन्द करो अपना बादशाह बना लो कि मैंने तुम लोगों की गरदनों से अपनी बैअत उठा ली । वस्सलाम । जिस मिम्बर पर माविया इब्ने यज़ीद ख़ुत्बा दे रहा था उसके नीचे मरवान बिन हकम भी बैठा हुआ था। ख़ुत्बा ख़त्म होने पर वह बोला, क्या हज़रत उमर की सुन्नत जारी करने का इरादा है कि जिस तरह उन्होंने अपने बाद खि़लाफ़त को ‘‘ शूरा ’’ के हवाले किया था तुम भी इसे शूरा के सिपुर्द करते हो। इस पर माविया बोला, आप मेरे पास से तशरीफ़ ले जायें, क्या आप मुझे भी मेरे दीन मंे धोखा देना चाहते हैं। ख़ुदा की क़सम मैं तुम लोगों की खि़लाफ़त का कोई मज़ा नहीं पाता अलबत्ता इसकी तलखि़यां बराबर चख रहा हूँ। जैसे लोग उमर के ज़माने में थे, वैसे ही लोगों को मेरे पास भी लाओ। इसके अलावा जिस तारीख़ से उन्होंने खि़लाफ़त को शूरा के सिपुर्द किया और जिस बुज़ुर्ग हज़रत अली (अ.स.) की अदालत में किसी क़िस्म का शुब्हा किसी को हो भी नहीं सकता, इसको उस से हटा दिया। उस वक़्त से वह भी ऐसा करने की वजह से क्या ज़ालिम नहीं समझे गये। ख़ुदा की क़सम अगर खि़लाफ़त कोई नफ़े की चीज़ है तो मेरे बाप ने उस से नुक़सान उठाया और गुनाह ही का ज़ख़ीरा मोहय्या किया और अगर खि़लाफ़त कोई और वबाल की चीज़ है तो मेरे बाप को उस से जिस क़द्र बुराई हासिल हुई वही काफ़ी है।

यह कह कर माविया उतर आया, फिर उसकी माँ और दूसरे रिश्ते दार उसके पास गये तो देखा कि वह रो रहा है। उसकी मां ने कहा कि काश तू हैज़ ही में ख़त्म हो जाता और इस दिन की नौबत न आती । माविया ने कहा ख़ुदा की क़सम मैं भी यही तमन्ना करता हूँ फिर कहा मेरे रब ने मुझ पर रहम नहीं किया तो मेरी नजात किसी तरह नहीं हो सकती। उसके बाद बनी उमय्या उसके उस्ताद उमर मक़सूस से कहने लगे कि तू ही ने माविया को यह बातें सिखाई हैं और उसको खि़लाफ़त से अलग किया है और अली (अ.स.) व औलादे अली (अ.स.) की मोहब्बत उसके दिल में रासिख़ कर दी है। ग़र्ज़ उसने हम लोगों के जो अयूब व मज़ालिम बयान किये उन सब का बाएस तू ही है और तू ही ने इन बिदअतों को उसकी नज़र में पसंदीदा क़रार दे दिया है जिस पर उस ने यह ख़ुत्बा बयान किया है। मक़सूस ने जवाब दिया ख़ुदा की क़सम मुझ से उसका कोई वास्ता नहीं है बल्कि वह बचपन ही से हज़रत अली (अ.स.) की मोहब्बत पर पैदा हुआ है लेकिन उन लोगों ने बेचारे का कोई उज्ऱ नहीं सुना और क़ब्र खोद कर उसे ज़िन्दा दफ़्न कर दिया।

(तहरीर अल शहादतैन सफ़ा 102, सवाएक़े मोहर्रेक़ा सफ़ा 122, हैवातुल हैवान जिल्द 1 सफ़ा 55, तारीख़े ख़मीस जिल्द 2 सफ़ा 232, तारीख़े आइम्मा सफ़ा 391)

मुवर्रिख़ मिस्टर ज़ाकिर हुसैन लिखते हैं, इसके बाद बनी उमय्या ने माविया बिन यज़ीद को भी ज़हर से शहीद कर दिया। उसकी उम्र 21 साल 18 दिन की थी। उसकी खि़लाफ़त का ज़माना चार महीने और बा रवायते चालीस यौम शुमार किया जाता है। माविया सानी के साथ बनी उमय्या की सुफ़यानी शाख़ की हुकूमत का ख़ात्मा हो गयाा और मरवानी शाख़ की दाग़ बेल पड़ गई। (तारीख़े इस्लाम जिल्द 1 सफ़ा 38) मुवर्रिख़ इब्नुल वरदी अपनी तारीख़ में लिखते हैं कि माविया इब्ने यज़ीद के मरने के बाद शाम में बनी उमय्या ने मुतफ़्फ़ेक़ा तौर पर मरवान बिन हकम को ख़लीफ़ा बना लिया।

मरवान की हुकूमत सिर्फ़ एक साल क़ायम रही फिर उसके इन्तेक़ाल के बाद उसका लड़का अब्दुल मलिक इब्ने मरवान ख़लीफ़ाए वक़्त क़रार दिया गया।

 

बाल्तिस्तान पाकिस्तान के अली मुहम्मद ने दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची पहाड़ की चोटी पर हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का परचम लहराया

एक रिपोर्ट के मुताबिक , बाल्तिस्तान के पर्वतारोही अली मुहम्मद सदपारा ने मुहर्रम में दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची चोटी पर हज़रत इमाम हुसैन का झंडा फहराकर उन्हें श्रद्धांजलि दी है।

दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची पहाड़ की चोटी पर एक पाकिस्तानी ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का परचम लहराया

अली मुहम्मद सदपारा ने इस महान काम को अंजाम देने के बाद दुनिया के आज़ाद पसंद लोगों को और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चाहने वालों को संवेदना व्यक्त की हैं।

यूक्रेन ने रूस पर बड़ा ड्रोन हमला करते हुए स्कूल से लेकर ऑयल फील्ड तक को निशाना बनाया। रूसी अधिकारियों के अनुसार एक रात में ही यूक्रेन सेना ने देश के कई इलाकों पर दर्जनों ड्रोन दागे हैं। रूस के रक्षा मंत्रालय के बयान के मुताबिक, उसकी एयर डिफेंस सिस्टम ने यूक्रेन सीमा और उसके नजदीकी कई क्षेत्रों में कुल 75 ड्रोन को इंटरसेप्ट किया। मंत्रालय के मुताबिक इन 75 ड्रोन में से रोस्तोव क्षेत्र में ही छत्तीस ड्रोन को मार गिराया गया।

यू्क्रेन के ड्रोन हमलों से यू्क्रेन सीमा के पास बेलगोरोड, क्रास्नोडार, कुर्स्क, ओर्योल, रोस्तोव, वोरोनिश और रियाजान इलाके दहल उठे. रात भर एयर डिफेंस सिस्टम और ड्रोन के टकराव की आवाजे सुनाई दी। खबरों के मुताबिक यूक्रेन के इस ड्रोन बैराज की वजह से रोस्तोव में ऑयल फील्ड में आग लग गई। इसके अलावा डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन ने कहा कि हमले में रेसिडेंशियल बिंल्डिंग, कारखानों और स्कूल को भी नुकसान पहुंचा है।

 

ब्रिटेन के साउथपोर्ट में हाल ही में हुई तीन लड़कियों की हत्या के बाद देश के कई हिस्सों में हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। देश के कई शहरों में दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं की पुलिस और नस्लवाद विरोधी प्रदर्शनकारियों से झड़प हुई। इस हिंसक झड़प में कई ब्रिटिश पुलिस अधिकारी घायल हो गए।

जुलाई के आखिर में एक डांस क्लास में चाकू से हमला किया गया था, जिसमें तीन लड़कियों की मौत हो गई थी और कई घायल हो गई थीं। इसके बाद ब्रिटेन के ब्रिस्टल और लिवरपूल शहरों में प्रदर्शनकारी विरोध में सड़कों पर उतर आए। इस दौरान पुलिस ने प्रदर्शनकारियों को पीछे धकेलने के लिए कुत्तों के साथ कई अधिकारियों की मदद ली।

 

बांग्लादेश में प्रदर्शनकारीयों ने अब तक कई सरकारी संपत्तियों में आग लगा दी, कर्फ्यू के बावजूद हालात बेकाबू ।

बांग्लादेश में प्रदर्शनकारीयों ने अब तक कई सरकारी संपत्तियों में आग लगा दी, कर्फ्यू के बावजूद हालात बेकाबू।

बांग्लादेश में हालात बेकाबू हो चुके हैं भीषण आगजनी और हिंसा के बीच खबर आ रही है कि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इस्तीफा दे दिया है और हेलिकॉप्टर से देश छोड़ दिया है. इस बीच सामने आए वीडियो में प्रदर्शनकारी बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान की मूर्ति तोड़ते हुए भी देखे गए हैं।

बांग्लादेश से सामने आए वीडियो में प्रदर्शनकारी बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान की मूर्ति पर चढ़कर उसे तोड़ते हुए नजर आ रहे हैं।

प्रदर्शनकारी इतने उग्र हो चुके हैं कि उन्होंने बांग्लादेश के राष्ट्रपिता कहे जाने वाले बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान की मूर्ति पर चढ़कर हथौड़े चलाए. देशव्यापी कर्फ्यू को दरकिनार कर हजारों की संख्या में प्रदर्शनकारी लॉन्ग मार्च के लिए ढाका के शाहबाग चौराहे पर इकट्ठा हुए हैं. इससे पहले रविवार को हुई हिंसा में 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई चुकी है।

नाइजीरिया अपने इतिहास के सबसे गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है। देश में गहराते आर्थिक संकट के बीच पिछले कुछ दिनों से हजारों प्रदर्शनकारी खराब शासन व्यवस्था और भ्रष्टाचार के खिलाफ लागोस की सड़कों पर उतरे हैं। इन प्रदर्शनों के दौरान प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़पें हुई हैं, जिसमें एक पुलिस अधिकारी समेत कम से कम 13 लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए।

प्रदर्शनकारी अपनी मुख्य मांगों में गैर-सब्सिडी वाली गैस और बिजली की बहाली, भ्रष्टाचार पर अंकुश और गरीबी उन्मूलन शामिल हैं। हालांकि, उत्तरी राज्यों में हिंसा और लूटपाट की घटनाएं भी सामने आई हैं। इस संकट के बीच, नाइजीरियाई नेतृत्व पर आम नागरिकों की जरूरतों को पूरा करने में विफल रहने का आरोप है।

नाइजीरियाई सरकारी अधिकारी अफ्रीका में सबसे अधिक वेतन पाने वालों में से हैं। साथ ही, यह देश शीर्ष तेल उत्पादकों में से एक होने के बावजूद दुनिया के सबसे गरीब और भूखे लोगों में से एक है।

 

ईरानी छात्रों की यूनियन ने राष्ट्रपति के नाम पत्र में बल देकर कहा है कि ईरान दुनिया के कमज़ोर लोगों का आश्रयस्थल है और उसे सुरक्षा व आश्रयस्थल ही बाक़ी रहना चाहिये।

ईरानी छात्रों की यूनियन ने राष्ट्रपति मसऊद पिज़िश्कियान के नाम पत्र में इस्माईल हनिया की हत्या के संबंध में और दुनिया के कमज़ोर लोगों के अधिकारों के बारे में कुछ बिन्दुओं का उल्लेख किया है और ज़ायोनी दुश्मन को उचित जवाब दिये जाने पर बल दिया है

इस पत्र में पवित्र क़ुरआन की आयतों के उल्लेख के साथ इस्माईल हनिया की हत्या का बदला लेने पर बल दिया गया है और राष्ट्रपति मसऊद पिज़िश्कियान से मांग की गयी है कि वह इस संबंध में क़दम उठायें। ईरानी छात्रों की यूनियन के पत्र में आया है कि ज़ायोनी दुश्मन प्रतिरोध के कमांडरों की हत्या करके यह संदेश देने के प्रयास में है कि ईरान और लेबनान अशांत हैं। इसी प्रकार छात्रों के पत्र में दुश्मन के हमले को ईरान की राष्ट्रीय सुरक्षा का उल्लंघन बताया गया है।

इसी प्रकार इस पत्र में ईरानी राष्ट्रपति से मांग की गयी है कि दुश्मन को करारा जवाब दिया जाना चाहिये ताकि उससे न केवल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ईरान की छवि की रक्षा होगी बल्कि फ़िलिस्तीनियों के दिलों को सुकून भी मिलेगा। इसी प्रकार ईरानी छात्रों की यूनियन ने अपने पत्र में बल देकर कहा है कि ईरान को कमज़ोरों के आश्रयस्थल के रूप में बाक़ी रहना चाहिये और अपने कार्यों से प्रतिरोध के मोर्चे को मज़बूत करना चाहिये।

पूरा पत्र इस प्रकार है

مِّنَ ٱلۡمُؤۡمِنِینَ رِجَالࣱ صَدَقُواْ مَا عَٰهَدُواْ ٱللَّهَ عَلَیۡهِۖ فَمِنۡهُم مَّن قَضَیٰ نَحۡبَهُۥ وَمِنۡهُم مَّن یَنتَظِرُۖ وَمَا

जनाब आक़ाये डॉक्टर मसऊद पिज़िश्कियान, राष्ट्रपति और राष्ट्रीय सुरक्षा के उच्च परिषद के प्रमुख

सलामुन अलैकुम

ज़ायोनी दुश्मन, जो अक़्सा तूफ़ान की घटनाओं में फ़स गया है, सैनिक लड़ाई के क्षेत्र को सुरक्षा के क्षेत्र से जोड़ व मिलाकर जंग में अपनी नाकामी पर पर्दा डालना चाहता है। गत रात्रि प्रतिरोध के कमांडरों की हत्या करके रणक्षेत्र को परिवर्तित करने की कोशिश कर रहा है ताकि यह संदेश दे सके कि ईरान और लेबनान में प्रतिरोध के आश्रयस्थल अशांत हैं।

ईरान की इस्लामी व्यवस्था के शक्ति प्रदर्शन के दिन, विश्व के नेताओं और प्रतिरोध के नेताओं की उपस्थिति और राजधानी में इस्माईल हनिया की हत्या हमारी कल्पना से बाहर कटु और दुखदायी है। दुश्मन ने आज उसे शहीद कर दिया है जो ईरान की इस्लामी व्यवस्था को अपना अस्ली आश्रयस्थल समझता था।

शहीद हनिया के हाथ कल इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति के हाथ में थे और अब उन्हें हमारे घर में शहीद कर दिया गया। ईरान के राष्ट्रपति के शपथग्रहण समारोह में भाग लेने आये मेहमान की हत्या करना, हमारी राष्ट्रीय संप्रभुता का उल्लंघन करना, प्रतिरोध के मोर्चे को कमज़ोर करना और अक़्सा तूफ़ान के बाद इस्लामी जगत में ईरान की छवि को ख़राब व कमज़ोर करना दुश्मन का कार्यक्रम व लक्ष्य है जो इंशाअल्लाह अपने लक्ष्यों को हासिल करने में नाकाम रहेगा।

जनाब आक़ाये पिज़िश्कियान, दुश्मन ग़लत विश्लेषण करके फ़िलिस्तीनी प्रतिरोध के बारे में जो आपका सही और प्रशंसनीय दृष्टिकोण है उसमें विघ्न उत्पन्न करना और अक़्सा तूफ़ान के आरंभ से इस्लामी गणतंत्र ईरान की उल्लेखनीय भूमिका का जवाब देना चाहता है। गौरव उत्पन्न करने वाले "सच्चा वादा" ऑप्रेशन के बाद दुश्मन को करारे और ठोस जवाब का समय होगा। आज इस्लामी जगत और ईरानी राष्ट्र की मांग यह है कि दुश्मन की कल्पना से परे जवाब दिया जाये ताकि दुश्मन दोबारा अपनी ग़लती की आग में जले।

ईरानी राष्ट्र के भरोसेमंद और ईरान की उच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष के रूप में आपसे अपेक्षा है कि ज़ायोनी दुश्मन को उचित जवाब देने की भूमि प्रशस्त करें। जैसाकि आपने बयान किया कि ऐसा जवाब दिया जायेगा जो अंतरराष्ट्रीय सतह पर ईरान की छवि की रक्षा करेगा और हर चीज़ से अधिक फ़िलिस्तीनियों के दिलों को सुकून मिलेगा और रणक्षेत्र में उनके लिए इस क्षति की वास्तविक भरपाई होगी।

आक़ाये पिज़िश्कियान ईरान की प्रतिक्रिया ऐसी होनी चाहिये जो संतुलन व दृष्टिकोण को परिवर्तित करने के अलावा इस्लामी राष्ट्र के आत्मविश्वास में सहायता करे, ईरान दुनिया के कमज़ोर लोगों का सहारा है और इसे दुनिया के कमज़ोर लोगों के सहारे के रूप में बाक़ी रहना चाहिये और प्रतिरोध के मोर्चे को नुकसान व क्षति पहुंचने से दुनिया के विभिन्न क्षेत्रों के लोगों के दिलों को जो तकलीफ़ पहुंची है उन्हें हमारी कार्यवाही से अधिक मुत्मईन व संतोष हो जाना चाहिये कि अवैध ज़ायोनी सरकार का अंत होकर रहेगा और वे पूरे विश्वास से ईरान को पहले से अधिक कमज़ोरों का भरोसा व आश्रयस्थल समझें। अल्लाह के फ़ज़्लो करम से प्रतिरोध मोर्चे के बारे में आपका जो प्रतिष्ठित दृष्टिकोण है सच्चे वादे के रूप में दोबारा उसकी पुनरावृत्ति होगी और प्रतिरोध मोर्चे का रोब दोबारा दुश्मनों के दिलों में घुस जायेगा।

हस्ताक्षर करने वाली यूनियनों के नाम

अदालतख़ाह दानिशजूई यूनियन

दानिशजुइयान मुस्तक़िल इस्लामी यूनियन

दफ़्तरे वह्दत इस्लामी यूनियन

इस्लामी गणतंत्र ईरान कि जवाबी हमले को देखते हुए इज़रायली प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने एक आपातकालीन कैबिनेट बैठक बुलाई है।

एक रिपोर्ट के अनुसार , इस्लामिक गणराज्य ईरान के जवाबी हमले के मद्देनजर इज़राईली प्रधान मंत्री नेतन्याहू ने एक आपातकालीन कैबिनेट बैठक बुलाई हैं जिसमें युद्ध मंत्री के साथ साथ शीर्ष सैन्य अधिकारी भी शामिल हुए हैं।

अलजज़ीरा की रिपोर्ट के अनुसार, इस्लामिक प्रतिरोध आंदोलन हमास के प्रमुख इस्माइल हनीयेह पर हमले के बाद ईरान की जवाबी कार्रवाई से इजराइल में डर और दहशत का माहौल पैदा कर दिया हैं तेहरान की जवाबी कार्रवाई को लेकर कब्जे वाले ज़ायोनी अधिकारी लगातार बैठकें कर रहे हैं।

प्रधान मंत्री नेतन्याहू ने रक्षा और सैन्य अधिकारियों के साथ एक संयुक्त बैठक बुलाई, जिसमें युद्ध मंत्री गैलेंट और अन्य शीर्ष अधिकारी शामिल हुए।

इस बैठक के दौरान युद्ध मंत्री ने प्रतिभागियों को नवीनतम स्थिति के बारे में जानकारी दी और संभावित हमले के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की हैं।

इस मौके पर नेतन्याहू ने कहा कि ईरान ने हमें चारों ओर से घेर लिया हैं ईरान और प्रतिरोध संगठन अलग अलग दिशाओं से इज़राइल पर हमला कर सकते हैं।

इस बैठक में इज़राईली सेना के प्रवक्ता डैनियल हागारी ने कहा है कि सरकार ने नागरिकों को ख़तरों की जानकारी देने के लिए एक नया एप्लिकेशन पेश किया है, जिसके तहत ख़तरे की स्थिति में निवासियों के फ़ोन नंबरों से अलर्ट किया जाएगा।

हौज़ा इल्मिया क़ज़वीन प्रांत के संपादक ने कहा: शहीदों के खून के आशीर्वाद के कारण आज हम न केवल कमजोर हैं बल्कि हम अपने लक्ष्य के एक कदम और करीब हैं। ये गवाहियां दुश्मन की कमजोरी और लाचारी की निशानी हैं।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन इरफ़ानी ने क़ज़वीन प्रांत के छात्रों और विद्वानों के साथ आयोजित एक बैठक में इस्माइल हनिया की शहादत पर बधाई और संवेदना व्यक्त की और कहा: यह मुसलमानों और प्रतिरोध के लिए एक बड़ी क्षति है।  वैसे ही हम ईरानियों के लिए जिनके प्रिय अतिथि को उनके देश में दुश्मन ने शहीद कर दिया।

उन्होंने आगे कहा: हाज कासिम सुलेमानी और इस्माइल हनिया जैसे शहीदों के खून ने दुनिया के स्वतंत्र लोगों के बीच एकता और सद्भाव की लहर पैदा की है और अब शहीदों के खून के आशीर्वाद से सत्ता प्रणाली और वैश्विक अहंकार, विशेष रूप से इस्राईल के विनाश की उलटी गिनती शुरू हो गई है।

क़ज़्वीन प्रांत के प्रबंधक ने कहा: सभी ताकतों, मीडिया और मानसिकता को उस दिशा में जाना चाहिए जिससे एक नया अवसर पैदा हुआ है और कुद्स और फिलिस्तीन की स्वतंत्रता का मार्ग तेजी से प्रशस्त हो रहा है और इस्लामी उम्माह के पास अपने बुद्धिमान और दूरदर्शी नेता इस आंदोलन को इमाम के जोहूर की नींव के रूप में वर्णित कर सकते हैं।

उन्होंने कहा: दुनिया के सभी स्वतंत्र लोग इस्राईली अत्याचारों और आतंकवाद पर गंभीर और महान बदला लेने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।