رضوی

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रूसी स्टेट ड्यूमा (रूसी संसद) के डिप्टी एलेक्सी डिडेन्को ने कहा है कि रूस में गूगल, गूगल एंड्रॉयड और आईओएस को जल्द ही ब्लॉक कर दिया जाएगा। रूस में सरकारी अधिकारियों और नौकरशाहों को इन प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करने से बहुत पहले ही रोक दिया गया था। अब पुतिन इसे पूरे देश में लागू करने का प्लान है।

बंदूकों और तोपों के बाद रूस अब डिजिटल वॉर की तैयारी में लगा है। रूसी स्टेट ड्यूमा (रूसी संसद) के एक अधिकारी ने बताया कि रूस में गूगल, गूगल एंड्रॉयड और आईओएस को जल्द ही ब्लॉक कर दिया जाएगा, साथ ही लोगों से कहा गया है कि वो जल्द ही दूसरे प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल करना शुरू कर दें।

रूसी अधिकारी इसे ट्रेजेडी नहीं समझने को कहा है ऐसा इसलिए क्योंकि रूस में ऐसे कई और भी ऐप और प्लेटफार्म हैं जिनका इस्तेमाल किया जाता है।

 

ईरान और इज़रायल में बढ़ते तनाव के बीच एअर इंडिया ने तेलअवीव से आने जाने वाली फ्लाइट्स 8 अगस्त तक तत्काल निलंबित कर दीं हैं कंपनी ने कहा कि हमने मध्य पूर्व के कुछ हिस्सों के मौजूदा हालातों को देखते हुए यह फैसला लिया है।

ईरान और इज़रायल में बढ़ते तनाव के बीच एअर इंडिया ने तेलअवीव से आने जाने वाली फ्लाइट्स 8 अगस्त तक तत्काल  निलंबित कर दीं हैं कंपनी ने कहा कि हमने मध्य पूर्व के कुछ हिस्सों के मौजूदा हालातों को देखते हुए यह फैसला लिया है।

भारतीय दूतावास ने पश्चिम एशिया में बढ़ते तनाव के बीच शुक्रवार को अवैध राष्ट्र इस्राईल में रह रहे सभी भारतीय नागरिकों के लिए एडवाइजरी जारी की दूतावास ने कहा कि नागरिक सतर्क रहने के साथ स्थानीय प्रशासन की ओर से सुझाए गए सुरक्षा प्रोटोकॉल का पालन करें।

ज़ायोनी शासन के हमले में एक के बाद एक दो हमास नेताओं और हिज़्बुल्लाह के एक कमांडर के मारे जाने के बाद पश्चिम एशिया में नए सिरे से बढ़े तनाव के मद्देनजर भारतीय दूतावास ने यह परामर्श जारी किया।

अवैध राष्ट्र की इस कायरतापूर्ण और अनैतिक हरकत के बाद उसे गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी गई है। हनीया की शहादत से इलाके में तनाव खतरनाक स्तर पर पहुंचने की आशंका है।

भारतीय दूतावास ने अपनी एडवाइज़री में कहा है कि कृपया सावधानी बरतें, देश के भीतर आवश्यक यात्रा से बचें और सुरक्षा आश्रयों के करीब रहें।

दूतावास स्थिति पर बारीकी से नजर रख रहा है और अपने सभी नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ज़ायोनी अधिकारियों के साथ नियमित संपर्क में है।

मक़तल अबी मख़नफ़ सफ़ा 88 में है कि एक साल तक क़ैद खा़ने शाम की सऊबत बरदाश्त करने के बाद जब अहले बैते रसूल (अ.स.) की रिहाई हुई और यह काफ़ला करबला होता हुआ मदीना की तरफ़ चला तो क़रीबे मदीना पहुँच कर इमाम (अ.स.) ने लोगों को ख़ामोश हो जाने का इशारा किया सब के सब ख़ामोश हो गये, आपने फ़रमाया:

हम्द उस ख़ुदा की जो तमाम दुनिया का परवरदिगार है, रोज़े जज़ा का मालिक है। तमाम मख़्लूक़ात का पैदा करने वाला है जो इतना दूर है बुलन्द आसमान से भी बुलन्द है और इतना क़रीब है कि सामने मौजूद है और हमारी बातों को सुनता है। हम ख़ुदा की तारीफ़ करते हैं और उसका शुक्र बजा लाते हैं। अज़ीम हादसों, ज़माने की हौलनांक गरदिशों, दर्द नाक ग़मों, ख़तरनाक आफ़तों शदीद तकलीफ़ों और क़ल्बो जिगर को हिला देने वाली मुसीबतों के नाज़िल होने के वक़्त ऐ लोगों ! खु़दा और सिर्फ़ खु़दा के लिये हम्द है। हम बड़े बड़े मसाएब में मुबतिला किए गए, दीवारे इस्लाम में बहुत बड़ा रखना (शिग़ाफ़) पड़ गया। हज़रत अबू अब्दुल्लाह हुसैन (अ.स.) और उनके अहले बैत शहीद कर दिये गये। इनकी औरतें और बच्चे क़ैद कर दिये गये और लशकरे यज़ीद ने इनके सर हाय मुबारक को बुलन्द नैज़ों पर रख कर शहरों में फिराया। यह वह मुसीबत है जिसके बराबर कोई मुसीबत नहीं। ऐ लोगों ! तुम में से कौन मर्द है जो शहादते हुसैन (अ.स.) के बाद खु़श रहे या कौन सा दिल है जो शहादते हुसैन (अ.स.) से ग़मगीन न हो या कौन सी आंख है जो आंसू को रोक सके। शहादते हुसैन (अ.स.) पर सातों आसमान रोए। समन्दर और उसकी मौजे रोईं, आसमान और उसके अरकान रोए, ज़मीन और उसके अतराफ़ रोए। दरख़्त और उसकी शाख़ें रोईं, मछलियां और समन्दर के गिरदाब रोए। मलाएक मुक़रेबीन और तमाम आसमान वाले रोए। ऐ लोगों ! कौन सा क़ल्ब है जो शहादते हुसैन (अ.स.) की ख़बर सुन कर फट न जाए। कौन सा क़ल्ब है जो महज़ून न हो। कौन सा कान है जो इस मुसीबत को सुन कर जिससे दीवारे इस्लाम में रखना पड़ा, बहरा न हो। ऐ लोगों ! हमारी यह हालत थी कि हम कशाँ कशाँ फिराये जाते थे। दर बदर ठुकराए जाते थे। ज़लील किए गये शहरों से दूर थे गोया हम को औलादे तुर्क दकाबिल समझ लिया गया था हालां कि न हम ने कोई जुर्म किया था न किसी की बुराई का इरतेक़ाब किया था न दीवारे इस्लाम में कोई रखना डाला था और न इन चीज़ों के खि़लाफ़ किया था जो हम ने अपने आबाओ अजदाद से सुना था, ख़ुदा की क़सम अगर हज़रत नबी (स. अ.) भी इन लोगों (लशकरे यज़ीद) को हम से जंग करने के लिये मना करते तो यह न मानते जैसे कि हज़रत नबी (स. अ.) ने हमारी वसीअत का ऐलान किया और इन लोगों ने न माना बल्कि जितना उन्होंने किया है इस से ज़्यादा सुलूक करते । हम ख़ुदा के लिये हैं और खुदा की तरफ़ हमारी बशाग़त है।

 

रौज़ा ए रसूल (स. अ.) पर इमाम (अ.स.) की फ़रयाद

मक़तल अबी मख़नफ़ सफ़ा 143 में है कि यह लुटा हुआ काफ़िला मदीने में दाखि़ल हुआ तो हज़रत उम्मे कुलसूम (अ.स.) गिरयाओ बुका करती हुई मस्जिदे नबवी में दाखि़ल हुईं और अर्ज़ कि, ऐ नाना आप पर मेरा सलाम हो ‘‘ अनी नाऐतहू अलैका वलदक अल हुसैन ’’ मैं आपको आपके फ़रज़न्द हुसैन (अ.स.) की ख़बरे शहादत सुनाती हूँ। यह कहना था कि क़ब्रे रसूल (स. अ.) गिरये की सदा बुलन्द हुई और तमाम लोग रोने लगे फिर हज़रत ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) अपने नाना की क़बे्र मुबारक पर तशरीफ़ लाए और अपने रूख़सार क़बे्र मुताहर से रगड़ते हुए यूँ फ़रयाद करने लगे।

اناجیک یاجداہ یاخیرمرسل

اناجیک محزوناعلیک موجلا

سبیناکماتسبی الاماء ومسنا

حبیبک مقتول ونسلک ضائع

اسیرا ومالی حامیا ومدافع

من الضرمالاتحملہ الاصابع

तरजुमा:

मैं आपसे फ़रयाद करता हूँ ऐ नाना, ऐ तमाम रसूलों में सब से बेहतर आपका महबूब हुसैन (अ.स.) शहीद कर दिया गया और आपकी नस्ल तबाह व बरबाद कर दी गई। ऐ नाना हम सब को इस तरह क़ैद किया गया जिस तरह लावारिस कनीज़ों को कै़द किया जाता है। ऐ नाना हम पर इतने मसाएब ढाए गए जो उंगलियों पर गिने नहीं जा सकते।

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) और ख़ाके शिफ़ा

मिसबाह उल मुजतहिद में है कि हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) के पास एक कपड़े में बंधी हुई थोड़ी सी ख़ाके शिफ़ा रहा करती थी। (मुनाक़िब जिल्द 2 सफ़ा 329 तबा मुलतान)

हज़रत के हमराह ख़ाके शिफ़ा का हमेशा रहना तीन हाल से ख़ाली न था या उसे तबर्रूक समझते थे या उस पर नमाज़ में सजदा करते थे या उसे ब हैसीयत मुहाफ़िज़ रखते थे और लोगों को बताना मक़सूद रहता था कि जिसके पास ख़ाके शिफ़ा हो वह जुमला मसाएब व अलाम से महफ़ूज़ रहता है और इसका माल चोरी नहीं होता जैसा कि अहादीस से वाज़े है।

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) और मोहम्मदे हनफ़िया के दरमियान हजरे असवद का फ़ैसला

आले मोहम्मद (अ.स.) के मदीने पहुँचने के बाद इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) के चचा मोहम्मद हनफ़िया ने बरावयते अहले इस्लाम से ख़्वाहिश की कि मुझे तबर्रूकाते इमामत दे दो कि मैं बुर्ज़ग ख़ानदान और इमामत का अहल व हक़दार हूँ। आपने फ़रमाया कि हजरे असवद के पास चलो वह फ़ैसला कर देगा। जब यह हज़रत उसके पास पहुँचे तो वह ब हुक्मे ख़ुदा यूं बोला, ‘‘ इमामत ज़ैनुल आबेदीन का हक़ है ’’ इस फ़ैसले को दोनों ने तसलीम कर लिया। (शवाहेदुन नबूअत सफ़ा 176)

कामिल मबरद में है कि इस वाक़िये के बाद से मोहम्मद हनफ़िया इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की बड़ी इज़्ज़त करते थे। एक दिन अबू ख़ालिद काबली ने उनसे इसकी वजह पूछी तो कहा हजरे असवद ने खि़लाफ़त का इनके हक़ में फ़ैसला दे दिया है और यह इमामे ज़माना हैं यह सुन कर वह मज़हबे इमाम का क़ाएल हो गया। (मुनाक़िब जिल्द 2 सफ़ा 326)

सुबूते इमामत में इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) का कन्करी पर मुहर लगाना

उसूले काफ़ी में है कि एक औरत जिसकी उम्र 113 साल की हो चुकी थी एक दिन इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) के पास आई उसके पास वह कन्करी थी जिस पर हज़रत अली (अ.स.) इमाम हसन (अ.स.) इमाम हुसैन (अ.स.) की मोहरे इमामत लगी हुई थी। उसके आते ही बिला कहे हुये आपने फ़रमाया कि वह कन्करी ला जिस पर मेरे आबाओ अजदाद की मोहरें लगी हुई हैं उस पर मैं भी मोहर कर दूँ। चुनान्चे उस ने कन्करी दे दी। आपने उसे मोहर कर के वापस कर दी और उसकी जवानी भी पलटा दी। वह ख़ुश व खुर्रम वापस चली गई। (दमए साकेबा जिल्द 2 सफ़ा 436)

 

 

मारकाए करबला की ग़मगीन दास्तान तारीख़े इस्लाम ही नहीं तारीख़े आलम का अफ़सोस नाक सानेहा है। हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) अव्वल से आखि़र तक इस होशरूबा और रूह फ़रसा वाक़ेए में अपने बाप के साथ रहे और बाप की शहादत के बाद खु़द इस अलमिया के हीरो बनेे और फिर जब तक ज़िन्दा रहे इस सानेहा का मातम करते रहे। 10 मोहर्रम 61 हिजरी का यह अन्दोह नाक हादसा जिसमें 18 बनी हाशिम और 72 असहाब व अनसार काम आए। हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) मुदतुल उम्र घुलता रहा और मरते दम तक इसकी याद फ़रामोश न हुई और इसका सदमाए जां काह दूर न हुआ। आप यूं तो इस वाक़ेए के बाद चालिस साल ज़िन्दा रहे मगर लुत्फ़े ज़िन्दगी से महरूम रहे और किसी ने आपको बशशाशा और फ़रहानाक न देखा। इस जान का वाक़ेए करबला के सिलसिले में आपने जो जाबजा ख़ुत्बे इरशाद फ़रमाये हैं उनका तरजुमा दर्जे ज़ैल है।

कूफ़े में आपका ख़ुत्बा

किताब लहूफ़ सफ़ा 68 में है कि कूूफ़ा पहुँचने के बाद इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ने लोगों को ख़ामोश रहने का इशारा किया, सब ख़ामोश हो गये, आप खड़े हुए ख़ुदा की हम्दो सना की। हज़रत बनी सालिम का ज़िक्र किया उन पर सलवात भेजी फिर इरशाद फ़रमाया, ऐ लोगों ! जो मुझे पहचानता है वह तो पहचानता ही है, जो नहीं पहचानता उसे मैं बताता हूँ। मैं अली इब्नुल हुसैन बिन अली बिन अबी तालिब (अ.स.) हूँ। मैं उसका फ़रज़न्द हूँ जिसकी बेहुरमती की गई, जिसका सामान लूट लिया गया, जिसके अहलो अयाल क़ैद कर दिये गये। मैं उसका फ़रज़न्द हूँ जो साहिले फ़ुरात पर ज़ब्हा कर दिया गया और बग़ैर कफ़न व दफ़न छोड़ दिया गया और शहादते हुसैन (अ.स.) हमारे फ़ख़्र के लिये काफ़ी है। ऐ लोगों ! मैं तुम्हे ख़ुदा की क़सम देता हूँ ज़रा सोचो तुम ने ही मेरे पदरे बुज़ुर्गवार को ख़त लिखा और फिर तुम ने ही उनको धोखा दिया, तुम ने ही उनके साथ अहदो पैमान किया और उनकी बैअत की और फिर तुम ने ही उनको शहीद कर दिया। तुम्हारा बुरा हो कि तुम ने अपने लिये हलाकत का सामान इकठ्ठा कर लिया, तुम्हारी राहें किस क़द्र बुरी हैं, तुम किन आख़ों से रसूल (स. अ.) को देखोगे। जब रसूल बाज़ पुर्स करेंगे कि तुम लोगों ने मेरी इतरत को क़त्ल किया और मेरे अहले हरम को ज़लील किया ‘‘ इस लिये तुम मेरी उम्मत से नहीं ’’।

मस्जिदे दमिश्क़ (शाम) में आपका ख़ुत्बा

मक़तल अबी मख़नफ़ सफ़ा 135, बेहारूल अनवार जिल्द 10 सफ़ा 233, रियाज़ुल कु़द्स जिल्द 2 सफ़ा 328 और रौज़ातुल अहबाब वग़ैरा में है कि जब हज़रत ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.)  अहले हरम समेत दरबारे यज़ीद में दाखिल किये गये और उनको मिम्बर पर जाने का मौक़ा मिला तो आप मिम्बर पर तशरीफ़ ले गये और अम्बिया की तरह शीरी ज़बान में निहायत फ़साहत व बलाग़त के साथ ख़ुत्बा इरशाद फ़रमाया। ऐ लोगों ! जो मुझे पहचानता है वह तो पहचानता ही है, जो नहीं पहचानता उसे मैं बताता हूँ कि मैं कौन हूँ सुनो मैं अली बिन हुसैन बिन अली इब्ने अबी तालिब (अ.स.) हूँ। मैं उसका फ़रज़न्द हूँ जिसने हज किये हैं उसका फ़रज़न्द हूँ जिसने तवाफ़े काबा किया है और सई की है। मैं पिसरे ज़मज़म व सफ़ा हूँ मैं फ़रज़न्दे फ़ात्मा ज़हरा (स. अ.) हूँ मैं उसका फ़रज़न्द हूँ जो पसे गरदन से ज़िब्हा किया गया। मैं उस प्यासे का फ़रज़न्द हूँ जो प्यासा ही दुनिया से उठा। मैं उसका फ़रज़न्द हूँ जिस पर लोगों ने पानी बन्द कर दिया हालां कि तमाम मख़लूक़ात पर पानी जायज़ क़रार दिया। मैं मोहम्मदे मुस्तफ़ा (स. अ.) का फ़रज़न्द हूँ। मैं उसका फ़रज़न्द हूँ जो करबला में शहीद किया गया। मैं उसका फ़रज़न्द हूँ जिसके अनसार ज़मीन में आराम की निन्द सो गये मैं उसका पिसर हूँ जिसके अहले हरम क़ैद कर दिये गये। मैं उसका फ़रज़न्द हूँ जिसके बच्चे बग़ैर जुर्मों ख़ता ज़िब्हा कर डाले गये। मैं उसका बेटा हूँ जिसके ख़ेमों में आग लगा दी गई। मैं उसका फ़रज़न्द हूँ जो ज़मीने करबला पर शहीद कर दिया गया। मैं उसका फ़रज़न्द हूँ जिसको न ग़ुस्ल दिया गया और न कफ़न। मैं उसका फ़रज़न्द हूँ जिसका सर नोके नैज़ा पर बुलन्द किया गया। मैं उसका फ़रज़न्द हूँ जिसके अहले हरम की करबला में बेहुरमी की गई। मैं उसका फ़रज़न्द हूँ जिसका जिस्म ज़मीने करबला पर छोड़ दिया गया और सर दूसरे मक़ामात पर नोके नैज़ा पर बुलन्द कर के फिराया गया। मैं उसका फ़रज़न्द हूँ जिसके इर्द गिर्द सिवाए दुश्मन के कोई और न था। मैं उसका फ़रज़न्द हूँ जिसके अहले हरम को क़ैद कर के शाम तक फिराया गया। मैं उसका फ़रज़न्द हूँ जो बे यारो मददगार था। फिर इमाम (अ.स.) ने फ़रमाया लोगों ख़ुदा ने हम को पाँच चीजो से फ़ज़ीलत बख़्शी है। 1. ख़ुदा की क़सम हमारे ही घर से फ़रिश्तों की आमदो रफ़्त रही और हम ही मादने नबूवत व रिसालत हैं। 2. हमारी ही शान में क़ुरआन की आयतें नाज़िल कीं और हम ने लोगों की हिदायत की। 3. शुजाअत हमारे ही घर की कनीज़ है, हम कभी किसी की क़ुव्वत व ताक़त से नहीं डरे और फ़साहत हमारा ही हिस्सा है। जब फ़सहा (ज्ञानी) फ़क़रो मुबाहात करे। 4. हम ही सिरातल मुस्तक़ीम और हिदायत का मरकज़ हैं और इसके लिये इल्म का सर चश्मा हैं जो इल्म हासिल करना चाहे और दुनियां के मोमेनीन के दिलों में हमरी मोहब्बत है। 5. हमारे ही मरतबे आसमानों और ज़मीनों में बुलन्द हैं। अगर हम न होते तो ख़ुदा दुनिया ही को पैदा न करता। हर फ़ख़्र हमारे फ़़ख़्र के सामने पस्त है। हमारे दोस्त रोज़े क़यामत सेरो सेराब होंगे और हमारे दुश्मन रोज़े क़यामत बद बख़्ती में होंगे। जब लोगों ने इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) का कलाम सुना तो चीख़ मार कर रोने और पीटने लगे और उनकी आवाज़ें बे साख़्ता बुलन्द होने लगीं। यह हाल देख कर यज़ीद घबरा उठा कि कहीं कोई फ़ितना न खडा़ हो जाये। इसके लिये उसने रद्दे अमल में फ़ौरन मोअजि़्ज़न को हुक्म दिया कि अज़ान शुरू कर के इमाम के ख़ुत्बे को मुन्क़ता कर दे। जब मोअजि़्ज़न गुलदस्ता ए अज़ान पर गया और कहा ‘‘ अल्लाहो अकबर ’’ (ख़ुदा की ज़ात सब से बुज़ुर्ग व बरतर है) इमाम (अ.स.) ने फ़रमाया तुने एक बड़ी ज़ात की बढ़ाई बयान की एक अज़ीमुश्शान ज़ात की अज़मत का इज़हार किया और जो कुछ कहा हक़ कहा । फिर मोअजि़्ज़न ने काह ‘‘ अश हदोअन ला इलाहा अल्लल्लाह ’’ (मैं गवाही देता हूँ कि नहीं कोई माबूद सिवाए अल्ला के) इमाम (अ.स.) ने फ़रमाया कि मैं भी इस मक़सद की हर गवाह के साथ गवाही देता हूँ और हर इन्कार करने वाले के खि़लाफ़ इक़रार करता हूँ। फिर मोअजि़्ज़न ने कहा ‘‘ अश हदो अन्ना मोहम्मदन रसूल अल्लाह ’’ (मैं गवाही देता हूँ कि मोहम्मद मुस्तफ़ा (स. अ.) अल्लाह के रसूल हैं) ‘‘ फ़बका अलीउन ’’ यह सुन कर हज़रत अली बिन हुसैन (अ.स.) रो पड़े और फ़रमाया ऐ यज़ीद मैं तुझे ख़ुदा का वास्ता दे कर पूछता हूँ बता हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स. अ.) मेरे नाना थे या तेरे? यज़ीद ने कहा आपके। आपने फ़रमाया, फिर क्यों तूने उनके अहले बैत को शहीद किया? यज़ीद ने कोई जवाब नहीं दिया और अपने महल में यह कहता हुआ चला गया ‘‘ ला हाजतः ली बिल सलवातः ’’ मुझे नमाज़ से कोई वास्ता नहीं है। इसके बाद मिन्हाल बिन उमर खड़े हुए और कहा ऐ फ़रज़न्दे रसूल (अ.स.)  आपका क्या हाल है? फ़रमाया ऐ मिन्हाल ऐसे शख़्स का क्या हाल पूछते हो जिसका बाप निहायत बे दर्दी से शहीद कर दिया गया। जिसके मद्दगार ख़त्म कर दिये गये हों, जो अपने चारों तरफ़ अहले हरम को क़ैद देख रहा हो जिनका न परदा रह गया न चादरें रह गई, जिनका न कोई मद्दगार है। तुम तो देख ही रहे हो कि मैं मुक़य्यद हूँ, ज़लील रूसवा किया गया हूँ, ना कोई मेरा नासिर है न मद्दगार मैं और मेरे अहले बैत लिबासे कुहना में मलबूस हैं, हम पर नये लिबास हराम कर दिये गये हैं। अब जो मेरा हाल पूछते हो तो मैं तुम्हारे सामने मौजूद हूँ तुम देख ही रहे हो हमारे दुश्मन हमंे बुरा भला कहते हैं और हम सुब्हो शाम मौत का इन्तेज़ार करते हैं। फिर फ़रमाया अरब व अजम इस पर फ़ख्र करते हैं कि हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा (स. अ.) इन में से थे और क़ुरैश अरब पर इस लिये फ़ख़्र करते हैं कि आं हज़रत (स.अ.) क़ुरैश थे और हम इन के अहले बैत हैं लेकिन हम को क़त्ल किया गया, हम पर ज़ुल्म किया गया, हम पर मुसीबतों के पहाड़ टूट गये और हम को क़ैद कर के दर बदर फिराया गया गोया हमारा हसब बहुत गिरा हुआ है और बहुत ज़लील है, गोया हम इज़्ज़तों की बुलन्दी पर नहीं चढ़े और बुज़ुर्गियों के फ़रश पर जलवा अफ़रोज़ नहीं हुए। आज गोया तमाम यज़ीद और इसके लशकर का हो गया आले मुस्तफ़ा (स.अ.) यज़ीद की अदना ग़ुलाम हो गई है। यह सुनना था कि हर तरफ़ से रोने पीटने की सदाए बुलन्द हो गईं। यज़ीद बहुत ख़ाएफ़ हुआ कि कोई फ़ितना न खड़ा हो जाए इसने इस शख़्स से कहा जिसने इमाम को मिम्बर पर तशरीफ़ ले जाने को गया था, ‘‘ वयहका अरदत बसअव दह ज़वाली मलकी ’’ तेरा बुरा हो तू इनको मिम्बर पर बिठा कर मेरी सलतनत ख़त्म करना चाहता है। इसने जवाब दिया, ब खु़दा मैं यह न जानता था कि यह लड़का इतनी बुलन्द गुफ़्तुगू करेगा। यज़ीद ने कहा ‘‘ क्या तू नहीं जानता कि यह अहले बैते नबूवत और मादने रिसालत की एक फ़रद है ’’ यह सुन कर मोअजि़्ज़न से न रहा गया और उसने कहा कि ऐ यज़ीद ! ‘‘ अज़कान कज़ालका फ़लम्मा क़लत अबाह ’’ जब तू यह जानता था तो तूने इनके पदरे बुज़ुर्गवार को क्यों शहीद किया? मोअजि़्ज़न की गुफ़्तुगू सुन कर यज़ीद बरहम हो गया ‘‘ फ़मर बज़र अनक़ह ’’ और मोअजि़्ज़न की गरदन मार देने का हुक्म दिया।

 

उलेमा का बयान है कि आप शबो रोज़ में एक हज़ार रकअतें अदा फ़रमाया करते थे। (सवाएक़े मोहर्रेक़ा सफ़ा 119 मतालेबुल सुवेल सफ़ा 267)े चूंकि आपके सजदों का कोई शुमार न था इसी लिये आपके आज़ाए सुजूद ‘‘ सफ़ना बईर ’’ ऊँट के घट्टे की तरह हो जाया करते थे और साल में कई मरतबा काटे जाते थे। (अल फ़रआ अल नामी सफ़ा 158 व दमए साकेबा, कशफ़ल ग़म सफ़ा 90)

अल्लामा मजलिसी लिखते हैं कि आपके मक़ामाते सुजूद के घट्टे साल में दो बार काटे जाते थे हर मरतबा पांच तह निकलती थीं। (बेहारूल अनवार जिल्द 2 सफ़ा 3)

अल्लामा दमीरी मुवर्रिख़ इब्ने असाकर के हवाले से लिखते हैं कि दमिशक़ में हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) के नाम से मौसूम एक मस्जिद है जिसे ‘‘ जामेए दमिशक़ ’’ कहते हैं। (हैवातुल हैवान जिल्द 1 सफ़ा 121)

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) मन्सबे इमामत पर फ़ाएज़ होने से पहले

अगरचे हमारा अक़ीदा यह है कि इमाम बतने मादर से इमामत की तमाम सलाहियतों से भर पूर आता है। ताहम फ़राएज़ की अदाएगी की ज़िम्मेदारी इसी वक़्त होती है जब वह इमामे ज़माना की हैसियत से काम शुरू करें, यानी ऐसा वक़्त आजाए जब काएनाती अरज़ी पर कोई भी उस से अफ़ज़ल व इल्म में बरतर व अकमल न हो। इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) अगरचे वक़्ते विलादत ही से इमाम थे लेकिन फ़राएज़ की अदाएगी की ज़िम्मेदारी आप पर उस वक़्त आएद हुई जब आपके वालिदे माजिद हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) दर्जए शहादत पर फ़ाएज़ हो कर हयाते ज़ाहेरी से महरूम हो गए।

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की विलादत 38 हिजरी में हुई जब कि हज़रत अली (अ.स.) इमामे ज़माना थे। दो साल उनकी ज़ाहिरी ज़िन्दगी में आपने हालते तफ़ूलियत में अय्यामे हयात गुज़ारे फिर 50 हिजरी तक इमामे हसन (अ.स.) का ज़माना रहा फिर आशुरा 61 हिजरी तक इमाम हुसैन (अ.स.) फ़राएज़े इमामत की अंजाम देही फ़रमाते रहे। आशूर की दो पहर के बाद सारी ज़िम्मेदारी आप पर आएद हो गईं। इस अज़ीम ज़िम्मेदारी से क़ब्ल के वाक़ेयात का पता सराहत के साथ नहीं मिलता अलबत्ता आपकी इबादत गुज़ारी और आपके इख़्लाक़ी कार नामे बाज़ किताबों में मिलते हैं बहर सूरत हज़रत अली (अ.स.) के आख़री अय्यामे हयात के वाक़ेयात और इमाम हसन (अ.स.) के हालात से मुताअस्सिर होता एक लाज़मी अमर है। फिर इमाम हसन (अ.स.) के साथ तो 22- 23 साल गुज़ारे थे यक़ीनन इमाम हसन (अ.स.) के जुमला मामलात में आप ने बड़े बेटे की हैसियत से साथ दिया ही होगा लेकिन मक़सदे हुसैन (अ.स.) के फ़रोग़ देने में आपने अपने अहदे इमामत के आगा़ज़ होने पर इन्तेहाई कमाल कर दिया।

वाक़ेए करबला के सिलसिले में इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) का शानदार किरदार

28 रज़ब 60 हिजरी को आप हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) के हमराह मदीने से रवाना हो कर मक्का मोअज़्ज़मा पहुँचे चार माह क़याम के बाद वहां से रवाना हो कर 2 मोहर्रमुल हराम को वारिदे करबला हुए। वहां पहुँचते ही या पहुँचने से पहले आप अलील हो गए और आपकी अलालत ने इतनी शिद्दत एख़तियार की आप इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत के वक़्त इस क़ाबिल न हो सके कि मैदान में जा कर दर्जए शहादत हासिल करते। ताहम हर अहम मौक़े पर आपने जज़बाते नुसरत को बरूए कार लाने की सई की। जब कोई आवाज़े इस्तेग़ासा कान में आई आप उठ बैठे और मैदाने में कारज़ार में शिद्दते मर्ज़ के बावजूद जा पहुचने की सईए बलीग़ की। इमाम हुसैन (अ.स.) के इस्तेग़ासा पर तो आप ख़ेमे से बाहर निकल आए एक चोबा ए खे़मा ले कर मैदान का अजम कर दिया नागाह इमाम हुसैन (अ.स.) की नज़र आप पर पड़ गई और उन्होंने जंगाह से बक़ौले हज़रते ज़ैनब (स. अ.) को आवाज़ दी ‘‘ बहन सय्यदे सज्जाद को रोको वरना नस्ले मोहम्मद (स. अ.) का ख़ातमा हो जाएगा ’’ हुक्मे इमाम से ज़ैनब (स. अ.) ने सय्यदे सज्जाद (अ.स.) को मैदान में जाने से रोक लिया। यही वजह है कि सय्यदों का वजूद नज़र आ रहा है। अगर इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) अलील हो कर शहीद होने से न बच जाते तो नस्ले रसूल (स. अ.) सिर्फ़ इमाम मोहम्मद बाक़र (अ.स.) में महदूद रह जाती। इमाम सालबी लिखते हैं कि मर्ज़ और अलालत की वजह से आप दर्जए शहादत पर फ़ाएज़ न हो सके। (नूरूल अबसार सफ़ा 126)

शहादते इमाम हुसैन (अ.स.) के बाद जब खेमों में आग लगाई तो आप उन्हीं ख़ेमों में से एक ख़ेमे में बदस्तूर पड़े हुए थे। हमारी हज़ार जानें क़ुर्बान हो जायें हज़रत ज़ैनब बिन्ते अली (अ.स.) पर कि उन्होंने अहद फ़राएज़ की अदाएगी के सिलसिले में सब से पहला फ़रीज़ा इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) के तहफ़्फ़ुज़ का अदा फ़रमाया और इमाम को बचा लिया। अलग़रज़ रात गुज़री और सुबह नमूदार हुई, दुश्मनों ने इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) को इस तरह झिंझोड़ा कि आप अपनी बिमारी भूल गये। आपसे कहा गया कि नाक़ों पर सब को सवार करो और इब्ने ज़्याद के दरबार में चलो। सब को सवार करने के बाद आले मोहम्मद (अ.स.) का सारेबान फूफियों, बहनों और तमाम मुख़द्देरात को लिये दाखि़ले दरबार हुआ। हालत यह थी कि औरतें और बच्चे रस्सीयों में बंधे हुए और इमाम लोहे में जकड़े हुए दरबार में पहुँच गये। आप चूंकि नाक़े की बरैहना पुश्त पर संभल न सकते थे इस लिये आपके पैरों को नाक़े की पुश्त से बांध दिया गया था। दरबारे कूफ़ा में दाखि़ल होने के बाद आप और मुख़द्देराते अस्मत क़ैद ख़ाने में बन्द कर दिये गये। सात रोज़ के बाद आप सब को लिये हुए शाम की तरफ़ रवाना हुए और 19 मंज़िले तय कर के तक़रीबन 36 यौम (दिनों) में वहां पहुँचे।

कामिल बहाई में है कि 16 रबीउल अव्वल 61 हिजरी को आप दमिश्क़ पहुँचे हैं। अल्लाह रे सब्रे इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) बहनों और फुफियों का साथ और लबे शिकवा पर सकूत की मोहर हुदूदे शाम का एक वाक़ेया यह है आपके हाथों में हथकड़ी, पैरों में बेड़ी और गले मे ख़ारदार तौक़े आहनी पड़ा हुआ था, इस पर मुस्तज़ाद यह कि लोग आप पर आग बरसा रहे थे। इसी लिये आपने बाद वाक़ेय करबला एक सवाल के जवाब में ‘‘ अश्शाम, अश्शाम, अश्शाम ’’ फ़रमाया था। (तहफ़्फ़ुज़े हुसैनिया अल्लामा बसतामी)

शाम पहुँचने के कई घन्टों या दिनों के बाद आप आले मोहम्मद (अ.स.) को लिये हुए सरहाय शोहदा समेत दाखि़ले दरबार हुए फिर क़ैद ख़ाने में बन्द कर दिये गये। तक़रीबन एक साल क़ैद की मशक़्क़तें झेलीं। क़ैद खा़ना भी ऐसा था कि जिसमें तमाज़ते आफ़ताबी की वजह से इन लोगों के चेहरों की खालें मुताग़य्यर हो गई थी। लहूफ़ मुद्दते क़ैद के बाद आप सब को लिये हुए 20 सफ़र 62 हिजरी को वारिदे करबला हुए। आपके हमराह सरे हुसैन (अ.स.) भी कर दिया गया था।

 आपने उसे पदरे बुजु़र्गवार के जिस्में मुबारक से मुलहक़ किया (नासिख़ुल तवारीख़) 8 रबीउल अव्वल 62 हिजरी को आप इमाम हुसैन (अ.स.) का लुटा हुआ काफ़िला लिए हुए, मदीने मुनव्वरा पहुँचे, वहां के लोगों ने आहो जा़री और कमालो रंज से आपका इस्तेक़बाल किया। 15 शाबाना रोज़ नौहा व मातम होता रहा। (तफ़सीली वाक़ेआत के लिये कुतुब मक़ातिल व सैर मुलाहेज़ा किजिए)

इस अज़ीम वाक़ेया का असर यह हुआ की ज़ैनब (अ.स.) के बाल इस तरह सफ़ेद हो गये थे कि जानने वाले उन्हें पहचान न सके। (अहसन अलक़सस सफ़ा 182 तबा नजफ़) रूबाब ने साय में बैठना छोड़ दिया, इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) गिरया फ़रमाते रहे। (जलालुल ऐन सफ़ा 256) अहले मदीना यज़ीद की बैअत से अलाहेदा हो कर बाग़ी हुए बिल आखि़र वाक़ेए हर्रा की नौबत आ गई।

 

 

 

हज़रत आयतुल्लाह मज़ाहिरी ने अपने एक संदेश में इस्माइल हनिया की शहादत पर शोक व्यक्त किया है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी इस्फ़हान की रिपोर्ट के मुताबिक, शिया मरजा तकलीद हजरत आयतुल्लाह हुसैन मजाहिरी ने एक संदेश में इस्माइल हनिया की शहादत पर अपनी संवेदना व्यक्त की है। उनके संदेश का पाठ इस प्रकार है:

बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्राहीम

"इन्ना लिल्लाहे वा इन्ना इलैहे राजेऊन"

तेहरान में हुई भयावह आतंकवादी घटना में इस्लामी गणतंत्र ईरान के मेहमान, मुजाहिद और अथक फ़िलिस्तीनी नेता श्री इस्माइल हनिया की शहादत ने एक बार फिर ज़ायोनी शासन के बुरे स्वभाव, बुरे चेहरे और खूनी हाथों को दुनिया के सामने स्पष्ट कर दिया।

मैं इस बहादुर मुजाहिद और फिलिस्तीन और गाजा के सभी शहीदों की शहादत के लिए उत्पीड़ित फिलिस्तीनी राष्ट्र और स्थानीय मोर्चे के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करता हूं और बहुत जल्द फिलिस्तीनियों की जीत होगी और उत्पीड़ित फिलिस्तीन और गाजा को अत्याचारों से मुक्ति मिलेगी।

मन्नस्रो इल्ला मिन इंदिल्लाहे अल अज़ीज़िल हकीम

हुसैन अल-महारी

26/मुहर्रम अल हरम/1446 हिजरी

 

इस्लामी गणतंत्र ईरान के सशस्त्र बलों के जनरल स्टाफ के प्रमुख ने कहा है कि हम अपने मेहमान की शहादत का बदला ज़रूर लेंगे। ईरान और हमारी सेना बदला लेने के तरीके पर विचार कर रहे हैं, खून का बदला खून से लिया जाएगा।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक़ ईरानी सशस्त्र बलों के चीफ ऑफ स्टाफ मेजर जनरल मोहम्मद बाक़ेरी ने इस्लामी प्रतिरोधी आंदोलन हमास के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख इस्माइल हनीयह की शहादत पर ईरान की प्रतिक्रिया और बदले के बारे में कहा है कि बदला लेने के तरीके पर विचार किया जा रहा है खून का बदला खून से लिया जाएगा।

ईरानी सशस्त्र बलों के जनरल स्टाफ के प्रमुख ने शहीद इस्माइल हनिया के खून का बदला लेने पर जोर देते हुए कहा कि विभिन्न उपाय किए जाने चाहिए और ज़ायोनी शासन को निश्चित रूप से अपनी इस हरकत पर पछतावा होगा।

 

ईरान की राष्ट्रीय युवा वॉलीबॉल टीम ने दक्षिण कोरिया को हराकर एशियाई वॉलीबॉल चैंपियनशिप जीत ली है।

024  एशियाई अंडर-20 मेन्स वॉलीबॉल चैम्पियनशिप, आठ दिनों तक इंडोनेशिया के सुराबाया शहर में आयोजित की गई थी।

ईरान की राष्ट्रीय युवा वॉलीबॉल टीम ने इस प्रतियोगिता के अंतिम दिन लगातार छह जीत दर्ज करते हुए दक्षिण कोरिया का मुक़ाबला किया और प्रतिद्वंदी टीम को 3-0 के स्कोर से हराकर एशिया की चैंपियन बन गई।

ईरान की राष्ट्रीय युवा वॉलीबॉल टीम के कोच ग़ुलाम रज़ा मोमेनी मुक़द्दम के शिष्यों ने इस प्रतियोगिता के लगातार तीन सेटों में 25-12, 25-18 और 25-22 प्वाइंट्स के साथ जीत हासिल की और पिछले दो सीज़न में लगातार सातवीं जीत हासिल करते हुए इस प्रतियोगिता के चैंपियन बनकर हैट्रिक बनाने में कामयाबी हासिल की।

रैंकिंग मुक़ाबले में जापान और इंडोनेशिया का आमना-सामना हुआ जिसमें जापान ने अपने प्रतिद्वंदी टीम इंडोनेशिया को 3-1 से हरा कर तीसरी पोज़ीशन हासिल कर ली।

ईरान की युवा वॉलीबॉल टीम ने इस वर्ष इन प्रतियोगिताओं में अपनी 18वीं भागीदारी दर्ज की। इस आयु वर्ग की ईरान की राष्ट्रीय टीम के खिलाड़ियों ने पिछले सत्रह वर्षों में सात स्वर्ण, तीन रजत और दो कांस्य पदक सहित 12 पदक जीते हैं जबकि इस वर्ष की चैंपियनशिप के साथ  22वां कप तेहरान को दिलाने में कामयाबी हासिल की जो एशिया में ईरानी वॉलीबॉल के इस आयु वर्ग की आठवीं चैंपियनशिप है।

गाज़ा शहर के एक स्कूल पर इज़राईली सरकार के हवाई हमले में अब तक 13 बच्चे शहीद हो चुके हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार , गाज़ा युद्ध के आज़ 300 दिन पूरे हो गए हैं फिलिस्तीनी सूत्रों ने गाजा शहर में अलशुजाई नामक पड़ोस में एक स्कूल पर बमबारी की घोषणा की, जहां सैकड़ों लोग विस्थापित हुए लाइव और हालिया हमले के दौरान 13 बच्चे शहीद हो गए हैं और कई घायल हुए हैं।

इस बीच गाज़ा के अस्पताल के सूत्रों ने अलजज़ीरा को बताया कि ज़ायोनी सरकार के हमलों में आज सुबह से गाजा के विभिन्न इलाकों में 36 लोग मारे गए हैं।

पिछले 24 घंटों के दौरान इज़राईल शासन द्वारा किए गए अधिकांश हमले गाजा पट्टी के मध्य में, विशेष रूप से अलमुग़ाज़ी शिविर और अलज़ायतून के दक्षिण में हुए हैं।

ताजा आंकड़ों के मुताबिक गाज़ा में 49,480 लोग मारे गए हैं और 91,128 घायल हुए हैं और 10,000 से ज़्यादा लोग लापता हैं।

लेबनान के लोकप्रिय जनांदोलन हिज़्बुल्लाह के महासचिव सय्यद हसन नसरुल्लाह ने बेरूत के दक्षिणी उपनगरीय इलाके में सय्यदुश-शोहदा कॉम्प्लेक्स में शहीद कमांडर फुआद शुकर के अंतिम संस्कार समारोह में अपने भाषण की शुरुआत में इस्माइल हनीया की शहादत का उल्लेख करते हुए हमास के राजनीतिक कार्यालय, इस दल, फिलिस्तीनी प्रतिरोध समूहों, फिलिस्तीनी राष्ट्र और सभी अरब देशों को उनकी शहादत की तसलियत और बधाई देते हुए उन्हें प्यारा भाई और इस हत्या को खतरनाक दुस्साहस बताया।

हसन नसरुल्लाह ने कहा कि हम इस दुख, गुस्से, लड़ाई और जीत हासिल करने और प्रतिरोध के कमांडरों की शहादत के सम्मान में भी साझीदार हैंऔर इंशाल्लाह जीत हमारी ही होगी।

सय्यद हसन नसरुल्लाह ने कहा कि जाहिया पर हवाई हमले में दुश्मन का लक्ष्य मूल रूप से सय्यद मोहसिन शुकर की हत्या करना था और इस हमले में ईरानी नागरिक मीलाद बेदी भी शहीद हो गए। मैं इस घटना में शहीद हुए सभी प्रियजनों के परिवारों को बधाई देता हूं और उनके प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करता हूं।

सय्यद हसन नसरुल्लाह ने कहा कि जाहिया में जो हुआ वह सिर्फ हत्या और टारगेट किलिंग ही नहीं नहीं, बल्कि जघन्य आक्रमण था। उन्होंने नागरिक इमारतों को निशाना बनाया और आम नागरिकों को मार डाला। दुश्मन ने नागरिकों से भरी एक इमारत को निशाना बनाया।

हिज़्बुल्लाह लेबनान के महासचिव ने कहा कि क्षेत्र में जो कुछ हो रहा है वह हमारे क्षेत्र के खिलाफ ज़ायोनी-अमेरिकी युद्ध का हिस्सा है, और आंतरिक और विस्तृत जांच ने इस बात को साबित कर दिया कि मजदल शम्स पर हमला करने वाली मिसाइल हिज़्बुल्लाह की नहीं थी।

 मैं फिर से जोर देता हूं, इस लक्ष्य के लिए हिजबुल्लाह पर आरोप लगाना क्रूरता और झूठा प्रोपैगंडा है। इस्राईल की एयर डिफेंस मिसाइल ने मजदल शम्स पर हमला किया है और इस बात के कई सबूत हैं। इससे पहले, कई ज़ायोनी वायु रक्षा मिसाइलों ने एका और हैफ़ा पर हमला किया था और कई ज़ायोनीवादियों को घायल कर दिया था।

सय्यद ने कहा कि बेरूत के दक्षिणी उपनगरों पर ज़ायोनी शासन का हवाई हमला सिर्फ एक आतंकवादी अभियान नहीं था, बल्कि एक सैन्य आक्रमण था। सबसे पहले यह हमला राजधानी के दक्षिणी उपनगरीय इलाके में हुआ। दूसरा, यह नागरिक इमारतें थीं जिन्हें निशाना बनाया गया और सैन्य अड्डे को निशाना नहीं बनाया गया। तीसरा, इस हमले में, महिलाओं और बच्चों सहित नागरिकों को निशाना बनाया गया, और चौथा, प्रतिरोध के एक वरिष्ठ सैन्य कमांडर को निशाना बनाया गया। यह उल्लंघन है और इसका जवाब दिया जाना चाहिए।