رضوی

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सोमवार, 18 मार्च 2024 18:20

बंदगी की बहार 7

 रमज़ान, पूरी दुनिया के मुसलमानों के मध्य एकता का एक स्पष्ट प्रतीक है।

 

पुरी दुनिया के मुसलमान चाहे वह जिस देश के हों या जिस जाति से भी संबंध रखते हों, बड़ी ही श्रद्धा के साथ इस महीने का स्वागत करते हैं। क़ुरआने मजीद,पैग़म्बरे इस्लाम को एकता व भाईचारे का आह्वान करने वाला बताता है और उनके शिष्टाचार की सराहना करता है। पैगम्बरे इस्लाम की जीवनी एकता के लिए किये जाने वाले प्रयासों से भरी है। पैगम्बरे इस्लाम ने पलायन या हिजरत के पहले साल ही, अपने साथ पलायन करने वाले मुहाजिरों और मदीना के स्थानीय लोगों अन्सार के मध्य " वधुत्व बंधन " बांधा और उन्हें एक दूसरे का भाई बनाया । यह दोनों लोग, जाति, वंश, वातावरण और आर्थिक स्थिति की दृष्टि से एक दूसरे से बहुत भिन्न थे। इसी लिए  जब मक्का से पैगम्बरे इस्लाम के साथ पलायन करने वाले मदीना नगर पहुंचे और वहां रहने लगे तो यह चिंता होने लगी कि कहीं उनमें आपस में फूट न पड़ जाए इसी लिए पैगम्बरे इस्लाम ने मदीने के स्थानीय लोगों और मक्का तथा अन्य नगरों से मुसलमान होकर मदीना पहुंचने वालों के बीच यह रिश्ता बनाया जिसका उन सब ने अंत तक निर्वाह भी किया। इसके साथ ही पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने इस काम से यह स्पष्ट कर दिया कि इस्लाम में एकता का क्या महत्व है।

 

यह एकता रमज़ान के महीने में और अधिक स्पष्ट रूप से नज़र आती है और पूरी दुनिया में सारे मुसलमान एक तरह से रोज़ा रखते हैं, एक निर्धारित समय पर शुरु करते और एक निर्धारित समय पर रोज़ा खत्म करते हैं लेकिन इस उपासना में एकता के साथ ही साथ, कुछ ऐसे संस्कार भी जुड़े हैं जो सहरी और इफ्तार पर स्थानीय रंग चढ़ा देते हैं जिस पर नज़र डालने से  रमज़ान में मुसलमानों के मध्य विविधता पूर्ण एकता नज़र आती है। इसी लिए हम कुछ देशों में रमज़ान में मुसलमानों के विशेष संस्कारों पर एक दृष्टि डालेंगे।

पाकिस्तान उन देशों में शामिल है जहां रमज़ान को विशेष महत्व प्राप्त है। पाकिस्तान में मुसलमान 90 प्रतिशत हैं। इस लिए इस देश में रमज़ान, बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। पाकिस्तानी, अन्य इस्लामी देशों की जनता की ही भांति, रमज़ान आने से पहले ही, इस पवित्र महीने के स्वागत की तैयारी कर लेते हैं। रमज़ान से पहले पाकिस्तान में मस्जिदों की साफ सफाई की जाती है और उन्हें सजाया जाता है। इस देश में चांद समिति है जो रमज़ान के महीने के आरंभ होने और ईद के चांद आदि की घोषणा करती है। पाकिस्तान में रमज़ान का एलान होने के बाद सारे लोग, कुरआने मजीद की तिलावत करते हैं और धार्मिक संस्कारों में व्यस्त हो जाते हैं।

इस्लाम में इफ्तार कराना बहुत पुण्य का काम है इस लिए पूरी दुनिया में मुसलमान रमज़ान के महीने में रोज़ा रखने वालों को इफ्तारी कराते हैं किंतु पाकिस्तान में इस पर विशेष ध्यान दिया जाता है। विशेष रूप से मस्जिद में इफ्तार भेजने की पंरपरा बहुत पुरानी है। पाकिस्तान में मस्जिदों और घरों में इफ्तार कराने के अलावा, सड़क के किनारे भी इफ्तार की व्यवस्था होती है  ताकि राहगीर भी यदि अज़ान हो जाए तो इफ्तार कर सकें।

पाकिस्तान में रमज़ान के अवसर पर इफ्तारी और सहरी के  लिए विशेष प्रकार के पकवानों का बहुत चलन है। रमज़ान के पवित्र महीने में कुल्चा और नाहारी से सहरी और भांति भांति के पकवानों से इफ्तारी का चलन है। इफ्तार में पकौड़ियों और चने से बने पकवान ज़्यादा नज़र आते हैं। हलीम  तो रमज़ान का बेहद खास पकवान है।  पाकिस्तान में रमज़ान से अधिक ईद के स्वागत की तैयारी होती है और वास्तव में बीस रमज़ान के बाद से ईद तक के दिन , पाकिस्तानियों के लिए बेहद अहम होते हैं क्योंकि इस दौरान वह जहां शबे क़द्र में उपासनाएं करते हैं वहीं ईद के लिए विशेष प्रकार की तैयारियां भी करते हैं। ईद आने से पहले बाज़ारों में भीड़ बढ़ जाती हैं और लोग कपड़े खरीदते हैं और लड़कियां और महिलाएं मेहंदी लगाती हैं। ईद के दिन नमाज़ के बाद सब लोग एक दूसरे से गले मिलते हैं और छोटों को ईदी दी जाती है और मेहमानों का सत्कार, सेवइयों से किया जाता है।

भारत भी उन देशों में शामिल है जहां मुसलमान बड़ी संख्या में रहते हैं । भारत को विविधतापूर्ण संस्कृति वाला देश कहा जाता है और वास्तव में भी ऐसा ही है। भारत में हिन्दु बहुसंख्यक हैं किंतु लगभग 15 प्रतिशत मुसलमान भी काफी बड़ी संख्या हो जाते हैं। भारत हमेशा सहिष्णुता के लिए प्रसिद्ध रहा है और सभी धर्मों के लोग एक दूसरे की आस्थाओं का सम्मान करते हैं। भारत वासियों में सहिष्णुता की मज़बूती ही है जो बहुत से गुट, आपसी बैर पैदा करने की लाख कोशिशों के बावजूद अभी तक नाकाम रहे हैं।

भारत में वैसे भी रोज़ा, कोई नयी चीज़ नहीं है और भारत के बहुसंख्यक हिन्दु भी उपवास से भली भांति परिचित हैं और उपवास, एक धार्मिक संस्कार है। भारत में शाबान के अंत से ही रोज़ा रखने का क्रम आरंभ हो जाता है और पाकिस्तान की ही भांति बहुत पहले से रमज़ान के स्वागत की तैयारी आरंभ हो जाती है और चूंकि भारत और पाकिस्तान की संस्कृति एक है इस लिए वहां पर धार्मिक संस्कार भी एक दूसरे से मिलते जुलते हैं और दोनों देशों में लगभग एक ही तरह से रमज़ान का स्वागत होता है, सहरी और इफ्तार होती है तथा ईद मनायी जाती है।

भारत में रमज़ान के अवसर पर छोटे बड़े शहरों में कुरआने मजीद की क्लासें होती हैं जिनमें छोटे और बड़े शामिल होते हैं और एक महीने तक कुरआन पढ़ते और उसकी शिक्षा हासिल करते हैं। इसके साथ ही रमज़ान के महीने में मस्जिदों में इस्लामी नियमों के वर्णन की सभा का भी आयोजन होता है और मुसलमान बाहुल्य इलाक़ों में रात भर रेस्टोरेंट खुल रहते हैं और लोगों की भीड़ लगी रहती है। भारत में भी इफ्तार के अवसर पर पाकिस्तान की भांति खिचड़ा, हलीम, पकौड़े और दही वड़ा आदि जैसी पकवानों का रिवाज है। भारतीय मुसलमान भी ईद के दिन नमाज़ पढ़ने के बाद एक दूसरे से मिलते हैं, छोटों को ईदी देते हैं और मेहमानों को सेवइयां खिलाते हैं।

अफगानिस्तान में 99 प्रतिशत मुसलमान हैं। इस लिए रमज़ान का इस देश में महत्व ही अलग होता है। अफगानिस्तान के लोग, रमज़ान का चांद देखने के बाद प्राचीन परंपरा के अनुसार आग जलाते हैं और उपासना आरंभ कर देते है। आग इस लिए जलाते हैं ताकि सब लोगों को रमज़ान के आगमन का पता चल सके, रमज़ान के सम्मान में अफगानिस्तान में रमज़ान के पहले दिन सरकारी अवकाश रहता है और इसी प्रकार पूरे महीने सरकारी कार्यालय में काम का समय तीन घंटे कम कर दिया जाता है। अफगानिस्तान में लोग, इस महीने, गरीबों की दिल खोल कर मदद करते हैं। अफगानिस्तान में भी इफ्तारी बेहद रंग बिरंगी होती है और चटनी भी भारत व पाकिस्तान की ही तरह खूब इस्तेमाल होती है।

अफगानिस्तान में रमज़ान के महीने में टीवी और रेडियो पर रमज़ान के विशेष कार्यक्रम प्रसारित किये जाते हैं और विशेषकर धार्मिक कार्यक्रम और धर्मगुरुओं के भाषण प्रसारित किये जाते हैं जिन्हें अफगानी जनता बेहद पसन्द भी करती है। अफगानिस्तान के बामियान के लोग, ईद से एक रात पहले मुर्दों की ईद मनाते हैं और उस रात, अपने परिवारों के मृत लोगों के लिए हलवा और रोटी पकायी जाती है और निर्धनों में बांटा जाता है। रमज़ान के अंतिम दिनों में इस देश में भी बाज़ार, खरीदारों से भरे होते हैं। और लोग खूब खरीदारी करते हैं और फिर एक साथ ईद की नमाज़ पढ़ते हैं और एक दूसरे से गले मिलते हैं। अफगानिस्तान में ईद, सब से बड़ा त्योहार है।

बांग्लादेश में भी 16 करोड़ की जनंसख्या है जिनमें से 90 प्रतिशत मुसलमान हैं। इस देश में भी रमज़ान को बहुत अधिक महत्व दिया जाता है और देश में ढाई लाख से अधिक मस्जिदों में रमज़ान के साथ ही विशेष प्रकार की रौनक़ छा जाती है। इस देश में भी भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान की ही भांति , रमज़ान के महीने में कुरआने मजीद की तिलावत के साथ ही विशेष प्रकार कीउपासना की जाती है तथा मस्जिदों में उपदेश और धर्मगुरुओं के भाषण होते हैं जिनमें सब लोग भाग लेते हैं। कहते हैं कि ढाका का रमज़ान अलग ही महत्व रखता है और रमज़ान में इफ्तारी के बाज़ार बेहद दर्शनीय होते हैं जहां तरह तरह के पकवान हर देखने वाले को कुछ देर ठहरने पर मजबूर कर देते हैं।

बांग्लादेश में भी इफ्तारी कराने का बहुत रिवाज है और इसके लिए खास तौर पर निर्धन लोगों को ज़रूर याद रखा जाता है। सब से अधिक इफ्तारी, मस्जिदों में करायी जाती है और लोग बढ़ चढ़ कर मस्जिदों में इफ्तारी में भाग लेते हैं इस  लिए यदि किसी गरीब के पास इफ्तार की व्यवस्था न हो तो भी वह बड़ी आसानी से मस्जिद में जाकर बड़े ही सम्मान के साथ इफ्तारी करता है और इफ्तारी के समय सब लोग एक साथ बैठ कर खाते पीते हैं और धनी व निर्धन सब एक साथ  खाते पीते हैं। बांग्लादेश में भी ईद, सब से बड़ा त्योहार माना जाता है और लोग लंबी छुट्टियां पर जाते हैं और एक दूसरे से मिलते हैं । इस देश में भी ईद की नमाज़ के बाद लोग एक दूसरे से गले मिलते हैं और एक दूसरे के घरों में जाकर ईद की बधाई देते हैं। इस देश में भी भारत और पाकिस्तान की भांति, सेवइयां, ईद का विशेष पकवान है।

 

सोमवार, 18 मार्च 2024 18:19

ईश्वरीय आतिथ्य- 7

असअद बिन ज़ुरारा मक्के पहुंचा और अपने दोस्त अत्बा बिन रबीआ के घर गया।

उसने दो क़बीलों के बीच बढ़ रहे मतभेद के समाधान के लिए उससे मदद मांगी। अत्बा ने जवाब में कहा कि आज कल हमारे सामने एक नई समस्या पैदा हो गई है जिसमें हम उलझे हुए हैं और इसी लिए हम तुम्हारी मदद नहीं कर सकते। असअद ने पूछा कि तुम लोग तो मक्के जैसे सुरक्षित स्थान पर जीवन बिता रहे हो, तुम्हें क्या समस्या आ गई है। अत्बा ने कहाः हमारे बीच एक व्यक्ति है जो कहता है कि मैं ईश्वर का पैग़म्बर हूं। वह हमें बुद्धिहीन समझता है और हमारे पूज्यों व मूर्तियों को बुरा कहता है। उसने हमारी एकता तोड़ दी है और हमारे युवाओं को गुमराह कर दिया है।

असअद ने पूछा कि वह किस घराने से है? अत्बा ने बताया कि वह अब्दुल्लाह का पुत्र व अब्दुल मुत्तलिब के पोता और बनी हाशिम क़बीले के सम्मानीय परिवार का है। वह इस समय मस्जिदुल हराम में है लेकिन अगर तुम वहां जाना चाहते हो तो उसकी बातें न सुनना क्योंकि वह एक ज़बरदस्त जादूगर है। असअद ने कहा कि मेरे पास कोई मार्ग नहीं है, मैंने एहराम पहन लिया है और मुझे काबे का तवाफ़ अर्थात परिक्रमा करनी ही होगी। अत्बा ने कहा कि तो फिर अपने कान में रूई डाल लो ताकि उसकी बातें तुम्हें सुनाई न दें।

असअद अपने दोनों कानों में रूई डाल कर मस्जिदुल हराम पहुंचा और काबे का तवाफ़ करने लगा। उसने पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम को देखा जिनके पास कुछ लोग बैठे हुए थे और बड़े ध्यान से उनकी बातें सुन रहे थे। उसने उन पर एक नज़र डाली और तेज़ी से गुज़र गया। तवाफ़ के दूसरे चक्कर में उसने अपने आपसे कहा कि मुझसे बड़ा मूर्ख कोई नहीं होगा। क्या यह हो सकता है कि इतनी अहम बात मक्के के लोगों की ज़बानों पर हो और मुझे उसके बारे में कोई ख़बर न हो?

यह सोच कर उसने अपने कानों में से रूई निकाल कर फेंक दी और पैग़म्बरे इस्लाम के पास पहुंचा। वह उनकी बातें ध्यान से सुनने लगा, उसने पाया कि कोई जादू-टोना नहीं है बल्कि जो कुछ वह सुन रहा था वह मार्गदर्शन का एक प्रकाश था जो उसके हृदय को चमका रहा था और उसकी बुद्धि उन बातों की पुष्टि कर रही थी। वह आगे बढ़ा और उसने सवाल कियाः आप हमें किस चीज़ का निमंत्रण देते हैं? पैग़म्बर ने पूरे संतोष से जवाब दिया। मैं इस बात की गवाही देने का निमंत्रण देता हूं कि ईश्वर अनन्य है और मैं उसका पैग़म्बर हूं। इसके बाद उन्होंने सूरए अनआम की आयत क्रमांक 151, 152 और 153 की तिलावत की। असअद का दिल क़ुरआने मजीद की मार्गदर्शक बातें सुन कर पूरी तरह से बदल गया और उसने ऊंची आवाज़ में कहाः मैं गवाही देता हूं कि अल्लाह के अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं और मैं इस बात की भी गवाही देता हूं कि मुहम्मद, ईश्वर के पैग़म्बर हैं।

इस्लाम के आरंभिक काल में क़ुरआने मजीद मुसलमानों के लिए जीवनदाता बन गया था और आज भी वह अपनी इसी क्षमता के माध्यम से मुस्लिम राष्ट्रों की शक्ति, वैभव, सम्मान और शांति का कारण है। आज भी क़ुरआने मजीद की आयतें एकेश्वरवाद और सम्मान का निमंत्रण देती हैं। क़ुरआन का यह निमंत्रण रमज़ान के पवित्र महीने में अधिक स्पष्ट रूप से सामने आता है। इस महीने में क़ुरआने मजीद से मुसलमान का रिश्ता अधिक घनिष्ट होता हैं और वे अपने दिन व रात के भागों को इस ईश्वरीय किताब की तिलावत से पावन बनाते हैं। रमज़ान का पवित्र महीना अपनी समस्त ईश्वरीय व आध्यात्मिक अनुकंपाओं व सुपरिणामों के साथ सामाजिक जीवन में क़ुरआने मजीद के सही स्थान को पुनर्स्थापित करने और इसी तरह इस्लामी समाज के वैचारिक व सांस्कृतिक आधारों को सुधारने व मज़बूत बनाने का एक अच्छा अवसर है।

क़ुरआने मजीद से घनिष्ट रिश्ते के लिए अरबी भाषा में उन्स शब्द का प्रयोग किया जाता है जिसका अर्थ होता है किसी चीज़ का आदी हो जाना, किसी चीज़ से संतुष्टि मिलना, किसी का हर पल का साथी होना और एक साधारण संपर्क से बढ़ कर एक मज़बूत रिश्ता जो प्रभाव लेने और प्रभाव डालने का कारण बने। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से किसी भी चीज़ से घनिष्ट रिश्ते का मार्ग, उससे अधिक से अधिक संपर्क है जिसके स्वाभाविक परिणाम सामने आते हैं जो सकारात्मक और नकारात्मक दोनों हो सकते हैं।

पैग़म्बरों और ईश्वर के प्रिय बंदों के चरित्र पर एक नज़र डाल कर हम यह बात समझ सकते हैं कि सबसे अहम घनिष्ट रिश्ते, अपने ईश्वर से मनुष्य का सीधा रिश्ता है। यह व्यवहारिक रवैये वाला सबसे छोटा रास्ता है। इस्लाम में क़ुरआने मजीद को ईश्वर से सामिप्य का सबसे संतुष्ट मार्ग बताया गया है। क़ुरआन, ईश्वर को उसकी महानता, कृपा, दया व तत्वदर्शिता के साथ पहचनवाता है। अगर इंसान यह जान ले कि इतने महान गुणों वाले ईश्वर और उसके कथन का प्रतिबिंबन क़ुरआने मजीद में हुआ है तो वह हर क्षण उससे बात कर सकता है और बिना किसी माध्यम के सीधे उससे अपनी बात कह सकता है। तब वह क़ुरआने मजीद के एक एक शब्द को प्रकाश, तत्वदर्शिता, उपदेश व मार्गदर्शन पाएगा।

मनुष्य कभी भी क़ुरआने मजीद के साथ घनिष्ट संपर्क से आवश्यकतामुक्त नहीं हो सकता क्योंकि उसकी परिपूर्ण शिक्षाएं और विषयवस्तु, मानव जीवन की अहम आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। यही कारण है कि क़ुरआने मजीद ने ईमान वालों से कहा है कि वे प्रकाश के इस स्रोत की जहां तक संभव हो तिलावत करें और इसके असीम ज्ञान वाले समुद्र से लाभ उठाएं। पैग़म्बरे इस्लाम के नाती इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इंसानों को चार गुटों में बांटा है जिनमें से हर गुट अपनी क्षमता के अनुसार क़ुरआने मजीद से लाभान्वित हो सकता है। वे कहते हैं। ईश्वर की किताब चार चीज़ों पर आधारित है। इबारत, इशारे, रोचक बिंदु और तथ्य। इसकी इबारतों या मूल पाठ से सभी लोग लाभ उठाते हैं, इशारे, विशेष लोगों, रोचक बिंदु, ईश्वर के प्रिय बंदों और तथ्य पैग़म्बरों के लिए हैं।

इस हदीस के आधार पर क़ुरआने मजीद की शिक्षाएं बड़ी गहन हैं और जिन लोगों का ज्ञान सीमित है और जो कुरआन की गहराइयों को नहीं समझ सकते वे उसकी सादा व रोचक इबारतों से लाभ उठा सकते हैं। जिन लोगों का दृष्टिकोण व्यापक है वे क़ुरआने मजीद में निहित इशारों से लाभान्वित हो सकते हैं। ईश्वर के प्रिय बंदे जिनका ईश्वरीय कथन से निकट रिश्ता है वे उसकी बारीकियों व रोचक बिंदुओं से अपनी आत्माओं को तृप्त करते हैं जबकि पैग़म्बर जिनके हृदय व आत्मा पर ईश्वर का सीधा प्रकाश पड़ता है वे इस किताब से वे तथ्य सीखते हैं जिनकी दूसरे मनुष्य कल्पना भी नहीं कर सकते।

इस प्रकार क़ुरआने मजीद से घनिष्ठ रिश्ता, उससे जुड़ने वालों की आत्मा और सोच की गहराइयों में एक व्यापक परिवर्तन पैदा करता है और सत्य के खोजियों के समक्ष एक प्रकाशमयी क्षितिज खोलता है। ईश्वर, क़ुरआने मजीद को स्पष्ट करने वाली किताब बताता है। सूरए माएदा की पंद्रहवीं आयत के एक भाग में कहा गया है। निःसन्देह ईश्वर की ओर से तुम्हारे लिए नूर अर्थात प्रकाश और स्पष्ट करने वाली किताब आ चुकी है। इस सूरे की अगली आयत में वह बल देकर कहता है कि ईश्वर इस (किताब) के माध्यम से उसकी प्रसन्नता प्राप्त करने का प्रयास करने वालों को शांतिपूर्ण एवं सुरक्षित मार्गों की ओर ले जाता है।

क़ुरआने मजीद लोगों का अन्धकार से प्रकाश की ओर मार्गदर्शन करता है। ईरान समेत सभी इस्लामी देशों में रमज़ान के पवित्र महीने में ईश्वरीय किताब क़ुरआन की तिलावत, व्याख्या और उसे याद करने की बैठकें आयोजित होती हैं। हर मस्जिद और गली कूचे में इस तरह की बैठकें देखी जा सकती हैं जिनमें बच्चे, युवा और वृद्ध सभी भाग लेते हैं। सभी क़ुरआने मजीद की तिलावत करके पूरे वातावरण को मनमोहक बना देते हैं। इस पवित्र महीने में बहुत से घरों में क़ुरआने मजीद की तिलावत और पूरा क़ुरआन पढ़ने की सभाएं आयोजित होती हैं। हालांकि ये सभाएं रमज़ान के महीने से विशेष नहीं हैं और साल के दूसरे महीनों और दिनों में भी आयोजित होती हैं लेकिन रमज़ान में इन सभाओं की रौनक़ कुछ और ही होती है और सभी औरत-मर्द और बच्चे-बूढ़े इनमें भाग लेते हैं।

वरिष्ठ धर्मगुरुओं और अहम हस्तियों के जीवन का अध्ययन करने से पता चलता है कि ये महान लोग बचपन से ही क़ुरआने मजीद से जुड़े रहे और इसी के माध्यम से उन्होंने परिपूर्णता का मार्ग तै किया। इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह हमेशा, क़ुरआने मजीद से अधि से अधिक जुड़ाव की कोशिश करते थे, कभी कभी यह अवसर दो मिनट का भी होता था। उनकी बहू डाक्टर फ़ातिमा तबातबाई बताती हैं कि जब इमाम ख़ुमैनी नजफ़ में थे तो एक बार उनकी आंखों में तकलीफ़ हुई। डाक्टर ने उनका निरीक्षण करने के बाद कहा कि आप कुछ दिन तक क़ुरआन न पढ़िए और आराम कीजिए। इमाम ख़ुमैनी हंसने लगे। उन्होंने कहा कि डाक्टर साहब मैं आंखें, क़ुरआन पढ़ने के लिए ही तो चाहता हूं, अगर मेरी आंख हो और मैं क़ुरआन न पढ़ पाऊं तो इसका क्या फ़ायदा है? आप कुछ ऐसा कीजिए कि मैं क़ुरआन पढ़ सकूं।

राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतने पर रूस के राष्ट्र्पति को ईरान के राष्ट्रपति ने बधाई दी है।

ईसना की रिपोर्ट के अनुसार इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति सैयद इब्राहीम रईसी ने पुनः राष्ट्रपति चुने जाने पर रूसी राष्ट्रपति विलादिमीर पुतीन को बधाई दी है।

अपने बधाई संदेश में ईरान के राष्ट्रपति ने रूस के साथ बढ़ते संबन्धों पर खुशी जताते हुए दोनो देशों के बीच संबन्धों में अधिक से अधिक वृद्धि की कामना की है। 

पिछले 25 वर्षों में 71 वर्षीय विलादिमीर पुतीन रुस में सत्ता के चरम पर रहे हैं।  अब वे अगले छह वर्षों तक राष्ट्रपति पद पर आसीन रहेंगे।  क्रेमलिन के हवाले से बताया जा रहा है कि रूस में राष्ट्रपति चुनाव के आयोजन के बाद विलादिमीर पुतीन ने 87.32 प्रतिशत वोट हासिल किये।

आंकड़े बताते हैं कि पुतीन के सारे ही प्रतिद्वदवी को 5 प्रतिशत के अंदर ही मत प्राप्त हुए हैं।  इस नई जीत के साथ पुतीन, रूस के इतिहास में सबसे अधिक समय तक सत्ता पर रहने वाले नेता बन जाएंगे।  रूस में पिछले शुक्रवार से तीन दिवसीय राष्ट्रपति चुनाव की शुरूआत हुई थी जो आज, विलादिमीर पुतीन के पुनः राष्ट्रपति चुने जाने की ख़बर लेकर आई। 

कुद्स रिज़वी लाइब्रेरी की ओर से आस्ताने कुद्स रिज़वी में पुस्तकालय, संग्रहालय और दस्तावेज़ीकरण केंद्र के संगठन के प्रमुख और टोक्यो विश्वविद्यालय के एशियन स्टडीज लाइब्रेरी द्वारा एक सहयोग ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, अस्तान कुद्स रिज़वी में पुस्तकालयों, संग्रहालयों और दस्तावेज़ीकरण केंद्र के संगठन और टोक्यो विश्वविद्यालय के एशियाई अध्ययन पुस्तकालय ने पुस्तकालय सेवाओं को बढ़ावा देने और आगे बढ़ाने पर व्यावहारिक और आभासी जानकारी और अनुभवों का आदान-प्रदान किया। इलेक्ट्रॉनिक संसाधनों और डिजिटल पुस्तकालयों के विकास और विस्तार, पुस्तकालय संसाधनों के संरक्षण और रखरखाव आदि क्षेत्रों में सहयोग पर हस्ताक्षर किए गए।

रिपोर्ट के मुताबिक, इस बैठक में टोक्यो यूनिवर्सिटी के एशियन स्टडीज लाइब्रेरी के प्रमुख प्रोफेसर डॉ. ईजी सागावा, हन्नान यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ. ताकुजी नागाटा, डॉ. काजुओ मोरिमोटो, एशियन स्टडीज के पीएचडी छात्र डॉ. नाओकी निशियामा ने भी हिस्सा लिया।

प्रो. डॉ. इजी सागावा ने अस्तान कुद्स रिज़वी में पुस्तकालय, संग्रहालय और दस्तावेज़ीकरण केंद्र संगठन के आतिथ्य की प्रशंसा की, इस यात्रा को ईरान की अपनी पहली यात्रा बताया और कहा: यद्यपि मेरी शैक्षणिक विशेषज्ञता प्राचीन चीनी इतिहास का अध्ययन है, मुझे विश्वास है कि आस्तान क़ुद्स रिज़वी इस देश में एक धार्मिक संस्था के रूप में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

टोक्यो विश्वविद्यालय के एशियाई अध्ययन पुस्तकालय के प्रमुख ने कहा: "साइट के धार्मिक महत्व के कारण, संग्रह महान शैक्षणिक और सांस्कृतिक मूल्य का है, जो अत्यधिक सराहनीय है।"

उन्होंने कहा: एस्तान कुद्स रिज़वी लाइब्रेरी संगठन के साथ अकादमिक और सांस्कृतिक संबंधों की स्थापना और विस्तार जापान के राष्ट्रीय स्तर पर इस्लामी और ईरानी अध्ययन के क्षेत्र में टोक्यो विश्वविद्यालय की स्थिति और इसके अकादमिक विकास में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

प्रोफेसर डॉ. ईजी सागावा ने निष्कर्ष निकाला: टोक्यो विश्वविद्यालय 150 साल पुराना है, जो पूर्वी एशिया के सबसे पुराने विश्वविद्यालयों में से एक है, और देश के सभी शैक्षणिक संस्थानों से एशियाई अध्ययन संदर्भ एकत्र करने के लिए एशियाई अध्ययन पुस्तकालय पिछले 4 वर्षों से खोला गया है।

 

सऊदी अरब में रमज़ान अलमुबारक के मौके पर सभी तरीके की तैयारी की जा रही हैं इस दौरान तीर्थ यात्रियों को किसी तरह की परेशानी ना हो उसका पूरा ख्याल रखा जाएगा बड़ी संख्या में वॉलंटियर को तैयार किया गया हैं।

बताया जा गया है कि 900 male और female scouts सहित 40 scout leaders को तीर्थ यात्रियों की सेवा के लिए तैयार किया गया है।

इस बात की जानकारी दी गई है कि स्काउट के द्वारा तीर्थ यात्रियों की मदद की जाएगी बुजुर्ग के कार्ट को घुमाना, इफ्तार मील डिस्ट्रीब्यूट करना, क्राउड मैनेजमेंट से लेकर सपोर्ट सिक्योरिटी सुरक्षा में अपना योगदान देंगेें।

Mecca और Medina के दो पवित्र मस्जिद में सेवाओं को अपडेट किया जायेगा उमराह का पाक सीजन होता है उमराह ऐसे में लोगों को काफी सावधानी बरतने की जरूरत हैं।

ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि अवैध ज़ायोनी शासन, अब हमेशा के लिए परास्त हो चुका है।

नासिर कनआनी ने सोमवार को अपने सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर लिखा है कि अवैध ज़ायोनी शासन न केवल यह कि ग़ज़्ज़ा युद्ध में हार गया बल्कि वह अपना भविष्य भी गंवा चुका है।

उन्होंने एक सेवा निवृत्त ज़ायोनी सैनिक इस्हाक़ ब्रीक के कथन को उद्धरित करते हुए यह बात कही है।  इस इस्राईली सैनिक ने कहा था कि ज़ायोनी शासन, हमास से युद्ध हार गया है और विश्व में अपने घटकों को भी खो चुका है।

ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता कनआनी कहते हैं कि अवैध ज़ायोनी शासन और उसके समर्थकों को भलिभांति पता है कि उनका मुक़ाबला न केवल हमास से है बल्कि उनके मुक़ाबले में फ़िलिस्तीन नामका एक एतिहासिक राष्ट्र खड़ा है।

निश्चित रूप में कल, फ़िलिस्तीनियों का ही होगा और इस्राईल के लिए हमेशा की बदनामी होगी।  उन्होंने कहा कि विश्व के आम जनमत में ज़ायोनी शासन का कोई महत्व नहीं रह पाएगा।

ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता कहते हैं कि इस अवैध ज़ायोनी शासन ने पिछले 5 महीनों के दौरान ग़ज़्ज़ा में 31000 से अधिक इंसानों की जानें ली हैं जिनमें से 22 हज़ार फ़िलिस्तीनी महिलाएं और बच्चे शामिल हैं।

वे कहते हैं कि हर फ़िलिस्तीनी के शहीद होने से फ़िलिस्तीन का मुद्दा पुनर्जीवित हुआ है।  विश्व के आम जनमत में इसको पहले से अधिक महत्व मिल रहा है।

उल्लेखनीय है कि ज़ायोनी शासन के एक रिटायर्ड ब्रिगेडियर जनरल इसहाक़ ब्रीक ने मआरयु नामक समाचारपत्र में अपने लेख में लिखा था कि जनता से लंबे समय तक झूठ नहीं बोला जा सकता।  हमास के साथ युद्ध में हार चुके हैं।  हमास से हम अपने बंधक भी नहीं छुटा पाए हैं।  दुनिया में हम अपने घटकों से भी अलग हो चुके हैं। 

 

 

नाइजर के नये प्रशासन ने इस देश में अमेरिकी सैनिकों की उपस्थिति के समझौते को निरस्त कर दिया है।

नाइजर की सैनिक परिषद के प्रवक्ता ने एलान किया है कि इसके बाद से नाइजर में अमेरिकी सैनिकों की उपस्थिति ग़ैर कानूनी और नाइजर के राष्ट्रीय हितों के खिलाफ है।

नाइजर के सैनिकों ने लगभग सात महीने पहले पश्चिम की ओर झुकाव रखने वाले इस देश के राष्ट्रपति मोहम्मद बाज़ूम को सत्ता से हटा दिया था और अपने देश से फ्रांसीसी सैनिकों की उपस्थिति का अंत कर दिया।

नाइजर का नया प्रशासन, माली और बुर्किना फासो के सैनिक प्रशासन के साथ अफ्रीक़ा महाद्वीप में यूरोपीय देशों और अमेरिकी प्रभाव के कम होने का कारण बना है।

जिम्बाब्वे की मंत्री का कहना है कि वो ईरान की महिलाओं की उन्नति देखकर हतप्रभ रह गईं और ईरान की महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए देश की सरकार की ओर से उठाए गए क़दमों ने उन्हें हैरान कर दिया है।

ज़िम्बाब्वे की महिला, सामाजिक कार्य, लघु व मध्यम उद्योग विकास मंत्री मोनिका मोत्सवांग्वा ने न्युयार्क में संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्यालय में ईरान की महिला व परिवार मामलों की उप राष्ट्रपति इंसिया ख़ज़अली से मुलाक़ात में अपनी ईरान यात्रा को याद करते हुए कहा कि ईरान की सरकार की ओर से जिम्बाब्वी जनता के संघर्ष के भरपूर समर्थन ने दोनों देशों के रिश्तों की बुनियादें मज़बूत कर दीं

मोनिका मोत्सवांग्वा ने कहा कि ईरान और ज़िम्बाब्वे पर पश्चिमी देशों की ओर से  लगाए गए एकपक्षीय व अन्यायपूर्ण प्रतिबंधों से महिलाओं और लड़कियों पर भारी दबाव पड़ा है।

इस मुलाक़ात में श्रीमती ख़ज़अली ने कहा कि दोनों देशों की साम्राज्यवादी विरोधी और स्वाधीनता प्रेमी भावना पारस्परिक रिश्तों को मज़बूत करने में प्रभावी रही है।

दोनों ही पक्षों ने ग़ज़ा में महिलाओं की स्थिति पर गहरा खेद जताया और ग़ज़ा के बेगुनाह अवाम के ख़िलाफ़ अमानवीय अपराधों का सिलसिला बंद किए जाने पर ज़ोर दिया।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने फ़िलिस्तीनी बच्चों और माओं की हालत पर गहरी चिंता जताते हुए कहा है कि डाक्टर अब ग़ज़ा में नवजात शिशुओं का स्वाभाविक आकार नहीं देख पा रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र संघ के जनसंख्या कोष के अधिकारी डोमिनिक एलेन ने ग़ज़ा का दौरा करने के बाद एक प्रेस कान्फ़्रेंस में कहा कि ग़ज़ा में मानवता विरोधी गतिविधियां फ़िलिस्तीनी माओं के लिए डरावना सपना बन गई हैं और उनके बच्चे प्राकृतिक आकार से छोटे और बीमार अवस्था में पैदा हो रहे हैं।

डोमिनिक एलेन ने कहा कि ग़ज़ा पट्टी में जो पूरी तरह उजड़ चुका इलाक़ा है और वहां भुखमरी और पानी की क़िल्लत है राज़ाना 180 महिलाएं बच्चों को जन्म दे रही हैं और कुपोषण और संसाधनों की भारी कमी की वजह से बहुत से बच्चे मुर्दा पैदा हो रहे हैं या पैदा होने के कुछ ही घंटों बाद उनकी मौत हो जा रही है।

संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिकारी ने संयुक्त राष्ट्र संघ के जनसंख्या कोष की ओर से भेजी गई सहायताओं की खेप इस्राईली अधिकारियों के ज़रिए रोक दिए जाने की कड़ी आलोचना करते हुए कहा कि मैंने ग़ज़ा में जो कुछ देखा वह मानवीय त्रास्दी से अधिक भयानक डरावना सपना है यह दरअस्ल मानवता का संकट है।

इस्राईली शासन अक्तूबर 2023 से पश्चिमी देशों के भरपूर समर्थन से ग़ज़ा पट्टी और वेस्ट बैंक में फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ जंग कर रहा है।

इस्राईली हमलों में अब तक 31 हज़ार से अधिक फ़िलिस्तीनी शहीद और 72 हज़ार से अधिक घायल हो चुके हैं।

इस्राईली शासन की स्थापना ब्रितानी साम्राज्यवाद की साज़िश का नतीजा है जिसके तहत दुनिया के अलग अलग देशों से यहूदियों को फ़िलिस्तीन में लाकर बसाया गया औज्ञ 1948 में इस्राईल के गठन की घोषणा कर दी गई। उसी ज़माने से फ़िलिस्तीनियों के जनसंहार और उनकी ज़मीनें हड़पने का सिलसिला जारी है।

जमीयत उलमाई सूर लेबनान के प्रमुख ने कहा: जो कोई ग़ज़्ज़ा पट्टी, वेस्ट बैंक और दक्षिण लेबनान में ज़ायोनीवादियों द्वारा क्रूर हत्याओं और आतंकवाद के दृश्यों से प्रभावित नहीं है, ऐसा लगता है कि उसके पास मानवता नहीं है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, जमीयत उलेमाई सूर लेबनान के प्रमुख शेख अली यासीन अल-अमिली ने टायर शहर में मदरसा अल-इमिया मस्जिद में अपने शुक्रवार के उपदेश के दौरान कहा: गाजा पट्टी, वेस्ट बैंक और दक्षिण में जो कुछ भी है लेबनान। यदि यह ज़ायोनीवादियों द्वारा क्रूर हत्याओं और आतंकवाद के दृश्यों से प्रभावित नहीं है, तो इसमें कई अरब और इस्लामी सरकारों की तरह मानवता नहीं है।

उन्होंने आगे कहा: भले ही ऐसे लोग जीवन भर उपवास करें, लेकिन वे ग़ज़्ज़ा में एक बच्चे की हत्या में अपनी भागीदारी का प्रायश्चित नहीं कर सकते।

लेबनान के जमीयत उलमाई सूर के प्रमुख ने कहा: ग़ज़्ज़ा, जो न केवल इजरायली घेराबंदी के तहत है, बल्कि अरब और इस्लामी घेराबंदी के तहत भी है, और कोई भी नहीं है जो इस क्रूर घेराबंदी को तोड़कर उनकी मदद कर सके, लेकिन दूर का देश यमन है।

उन्होंने कहा: हम अरब और इस्लामी देशों और दुनिया के स्वतंत्र लोगों से अनुरोध करते हैं कि वे रमज़ान के पवित्र महीने के अनुसार कार्य करें और यदि वे ज़ायोनीवादियों के नरसंहार को रोकने के लिए कोई कार्रवाई नहीं करते हैं, तो कम से कम नरसंहार को रोकने के लिए कोई कार्रवाई नहीं करें। ग़ज़्ज़ा के बाकियों के जानलेवा अकाल को रोकना है, तो कुछ हाथ-पैर मारो।

उन्होंने आगे कहा: उपवास विश्वास और पवित्रता का प्रतीक है, और ज़ायोनी दुश्मन, बच्चों और महिलाओं के उत्पीड़क और हत्यारे के साथ संबंधों को सामान्य बनाना अनैतिक और विश्वासघाती है।

उन्होंने कहा: हमें उपवास और उसके अर्थ और ज़ायोनीवादियों के साथ संबंधों को सामान्य बनाने के बीच चयन करना चाहिए, क्योंकि उपवास के दौरान दुश्मन के साथ संबंधों को सामान्य बनाना विश्वास और अपराध के साथ अविश्वास को मिलाने जैसा है।