رضوی

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इस संसार के अन्त में लौटने का कोई मार्ग नहीं है ठीक उसी प्रकार जैसे अविकसित व विकरित बच्चा विकास करने एवं विकार दूर करने के लिये पुनः माता के पेट में नहीं जा सकता तथा पेड़ से टूटा हुआ फल दोबारा पेड़ में नहीं लग सकता।

यह एक प्रकार से हमारे लिये चेतावनी है कि हम जान लें कि सम्भव है कि एक पल में सब कुछ समाप्त हो जाये, तौबा व प्रायश्चित के मार्ग बन्द हो जायें, भले कर्मों का कोई अवसर न बचे और हम लालसा और हसरत के साथ इस संसार से चले जायें। अतः रमज़ान के पवित्र समय को हमें अपने नैतिक विकास का महत्वपूर्ण अवसर समझना चाहिये।

हज़रत अली (अ) का कथन है कि पापी विचारों से दूरी मन का रोज़ा है जो पेट के रोज़े अर्थात भूख-प्यास सहन करने से बढ़ कर होता है।

अब आइये पैगम्बरे इस्लाम(स) के पौत्र इमाम सज्जाद(अ) की दुआ मकारेमुल अखलाक़ अर्थात शिष्टाचार व नैतिकता के चरण का एक भाग सुनते हैः हे ईश्वर मेरे प्रति पापियों एवं अत्याचारियों की ईष्या को प्रेम व मित्रता में परिवर्तित कर दे।

ईष्या किसी के पास से उस अनुकंपा के समाप्त हो जाने की आरज़ू को कहते हैं जिसे वह अनुकंपा प्राप्त होनी ही चाहिये। जो लोग ईश्वर एवं इस्लामी शिक्षाओं पर पूर्ण विश्वास रखते हैं वे कभी दूसरों के पास से अनुकंपाओं के समाप्त होजाने की कामना नहीं करते बल्कि ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि स्वयं उनको भी वह अनुकंपा प्राप्त हो जाये।

परन्तु पाखंण्डी एवं बिना ईमान वाले लोग ईर्ष्या करते हैं और चाहते हैं कि दूसरों के पास कोई अच्छी वस्तु या गुण न रहे। पैगम्बरे इस्लाम(स) के एक अन्य पौत्र इमाम जाफ़र सादिक़(अ) का कहना है कि ईमान वाला व्यक्ति ईर्ष्या नहीं करता बल्कि इच्छा करता है कि ईश्वर उसे भी वैसी ही अनुकंपा प्रदान करदे जबकि पाखंण्डी ईर्ष्या करता है और अनुकंपा के अन्त की इच्छा करता है।

इस आधार पर दूसरों को प्राप्त अनुकंपाओं से ईर्ष्या का कारण अधिकतर धन या पद होता है परन्तु इमाम सज्जाद(अ) के पास न तो धन था कि ईर्ष्यालु लोग ईर्ष्या करते न ही शासन व सरकार में उन्हें कोई पद प्राप्त था कि जलने वाले उससे जलते, इस लिये उनसे शत्रुओं की ईर्ष्य़ा का कारण उनकी उत्तम क्षमतायें, महान गुण, अद्वतीय आध्यात्मिक स्थान एवं ईश्वर पर उनका दृढ़ विश्वास था।

इमाम की दृष्टि में मनुष्य के लिये सर्वश्रेष्ठ मूल्य अपने पालनहार से उसका विशुद्ध संपर्क है और इमाम के पास यह अनुकंपा मौजूद थी और इसी लिये वे किसी भी भौतिक व सांसारिक वस्तु की परवा नहीं करते थे। इस्लाम में यही वास्तविक वैराग है।

शुक्रवार, 15 मार्च 2024 17:01

बंदगी की बहार- 4

रमज़ान के महीने ने अपनी अपार विभूतियों और असीम ईश्वरीय क्षमा व दया के साथ हमें अपना अतिथि बनाया है।

इस पवित्र महीने की विभूतियों व विशेषताओं के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम व उनके परिजनों ने अनेक हदीसें बयान की हैं। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम अपनी एक दुआ में रमज़ान के पवित्र महीने के गुणों के बारे में कहते हैं। प्रभुवर! हमें इस महीने की विशेषताओं को समझने और इसका सत्कार करने का सामर्थ्य प्रदान कर।

रमज़ान के पवित्र महीने के गुणों को समझने का अर्थ इस महीने की वास्तविकता को समझना है। जो भी इस महीने के गुणों को सही ढंग से समझ लेगा और इस महीने की महानता को पहचान जाएगा निश्चित रूप से वह अपना समय इसमें निष्ठापूर्ण ढंग से उपासना में व्यतीत करेगा। रमज़ान के महीने की एक विशेषता, इसका आध्यात्मिक स्थान और ईश्वर के निकट इसकी विशेष स्थिति है। अनन्य ईश्वर ने इस महीने को एक पवित्र, शीतल व उबलते हुए पानी के सोते की तरह रखा है ताकि उसके बंदे एक महीने के दौरान अपनी आत्मा को उसमें धोएं, अपने अस्तित्व से पापों को दूर करें और ईश्वरीय प्रकाश की ओर आगे बढ़ें। यह महीना, पवित्र होने और आध्यात्मिक छलांग लगाने का है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम कहते हैं कि अगर कोई बंदा रमज़ान के महीने के महत्व को समझ जाता तो यही कामना करता कि पूरा साल, ईश्वर के आतिथ्य का महीना रहे।

रमज़ान के पवित्र महीने की एक अन्य विशेषता इसमें क़ुरआने मजीद व अन्य बड़ी आसमानी किताबों का भेजा जाना है। क़ुरआने मजीद, तौरैत, इन्जील, ज़बूर और हज़रत इब्राहीम व हज़रत मूसा की किताबें इसी पवित्र महीने में भेजी गई हैं। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं। पूरा क़ुरआन रमज़ान के महीने में शबे क़द्र में एक ही बार में पैग़म्बरे इस्लाम पर नाज़िल हुआ अर्थात भेजा गया। फिर वह बीस साल में क्रमबद्ध ढंग से उन पर नाज़िल हुआ। हज़रत इब्राहीम की किताब, रमज़ान महीने की पहली रात में, तौरैत, रमज़ान के छठे दिन, इंजील, रमज़ान के तेरहवें दिन और ज़बूर रमज़ान की 18वीं तारीख़ को नाज़िल हुई है।

 

रमज़ान महीने की विशेषताएं और उसके गुण असीम हैं। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की हदीस है कि रमज़ान के महीने में की गईं भलाइयां स्वीकृत होती हैं और बुराइयां क्षमा की जाती हैं। जिसने रमज़ान के महीने में क़ुरआने मजीद की एक आयत की तिलावत की वह उस व्यक्ति की तरह है जिसने अन्य महीनों में पूरे क़ुरआन की तिलावत की हो। रमज़ान का महीना, विभूति, दया, क्षमा, तौबा व ईश्वर की ओर लौटने का महीना है। अगर किसी को रमज़ान के महीने में क्षमा न किया गया तो फिर किस महीने में क्षमा किया जाएगा? ईश्वर से प्रार्थना करो कि वह इस महीने में तुम्हारे रोज़ों को स्वीकार करे और इसे तुम्हारी आयु का अंतिम वर्ष क़रार न दे, तुम्हें उसके आज्ञापालन का सामर्थ्य प्रदान करे और उसकी अवज्ञा से तुम्हें दूर रखे कि निश्चित रूप से प्रार्थना के लिए ईश्वर से बेहतर कोई नहीं है।

रमज़ान महीने की एक अन्य अहम विशेषता यह है कि ईश्वर इस विभूतियों भरे महीने में, ईमान वालों पर शैतानों को वर्चस्व को रोक देता है और उन्हें बेड़ियों में जकड़ देता है। यही कारण है कि इस महीने में मनुष्य की आत्मा अधिक शांत रहती है और वह इस स्वर्णिम अवसर को अपनी आत्मा के प्रशिक्षण और अध्यात्म तक पहुंच के लिए प्रयोग कर सकता है। दयावान ईश्वर ने आत्मिक व आध्यात्मिक ऊंचाइयों तक ईमान वालों की पहुंच के लिए रमज़ान के पवित्र महीने और रोज़ों में ख़ास विशेषताएं रखी हैं। उसने न खाने और न पीने जैसी सीमितताओं के मुक़ाबले में अपने बंदों के लिए अत्यंत मूल्यवान पारितोषिक दृष्टिगत रखे हैं जिन्हें बयान करना संभव नहीं है।

इस ईश्वरीय आतिथ्य में न केवल यह कि उपासनाओं का पूण्य कई गुना अधिक मिलता है बल्कि इस महीने में ईमान वालों का सोना और सांस लेना भी उपासना और ईश्वरीय गुणगान समझा जाता है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम का कथन है कि इस महीने में तुम्हारी सांसें ईश्वर का गुणगान और तुम्हारी नींद ईश्वर की उपासना है। ईश्वर की यह विशेष व बेजोड़ कृपादृष्टि साल के किसी भी अन्य महीने या दिन में दिखाई नहीं देती।

इस पवित्र महीने में रोज़ा रखने का बहुत अधिक पुण्य और विभूतियां हैं। रोज़ा रखने से मनुष्य की आत्मा कोमल होती है, उसका संकल्प मज़बूत होता है और उसकी आंतरिक इच्छाएं नियंत्रित होती हैं। अगर इंसान अपनी वासना और आंतरिक इच्छाओं को नियंत्रित कर ले और उनकी लगाम अपने हाथ में ले ले तो फिर वह आध्यात्मिक पहलू से अपना प्रशिक्षण कर सकता है और वांछित पवित्रता व परिपूर्णता तक पहुंच सकता है। अगर इंसान अपनी प्रगति की मार्ग की बाधाओं को एक एक करके हटाना और अपने आपको शारीरिक वासनाओं में व्यस्त नहीं रखना चाहता तो रमज़ान के पवित्र महीने में रोज़ा रखना उसके लिए सबसे अच्छा अवसर है। क़ुरआने मजीद के सूरए बक़रह की आयत क्रमांक 183 में कहा गया हैः हे ईमान वालो! तुम पर रोज़े उसी तरह अनिवार्य किए गए जिस प्रकार तुमसे पहले वालों पर अनिवार्य किए गए थे कि शायद तुममें ईश्वर का भय पैदा हो जाए।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम से रमज़ान के महीने में रोज़े की विभूतियों व विशेषताओं के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहाः लोगों पर रोज़ा इस लिए अनिवार्य किया गया ताकि वे भूख और प्यास की पीड़ा और तकलीफ़ को समझ सकें और फिर प्रलय की भूख, प्यास और अभाव की पीड़ाओं को समझ सकें जिसके बारे में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने कहा है कि तुम रोज़े में अपनी भूख और प्यास के माध्यम से प्रलय में अपनी भूख और प्यास को याद करो। यह याद मनुष्य को प्रलय के लिए तैयारी करने पर प्रेरित करती है और वह ईश्वर की प्रसन्नता के लिए अधिक कोशिश करता है। यही कारण है कि पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने रोज़ा रखने वालों को यह मूल्यवान शुभ सूचना दी है कि रमज़ान के पवित्र महीने का आरंभ, दया है, उसका मध्यम भाग, क्षमा है और उसका अंत नरक की आग से मुक्ति है।

रमज़ान का महीना बड़ी तेज़ी से गुज़रता है और हम उन राहगीरों की तरह हैं जिन्हें इस मार्ग पर बिना निश्चेतना के, सबसे अच्छे कर्मों और सबसे अच्छे व्यवहार के साथ आगे बढ़ना है। चूंकि इस्लाम में मनुष्य का सबसे बड़ा दायित्व आत्म निर्माण और अपने आपको बुराइयों से पवित्र करना है इस लिए रमज़ान का महीना, आत्म निर्माण, नैतिकता व मानवता तक पहुंचने का सबसे अच्छा अवसर है। आत्म निर्माण के लिए जिन बातों की सिफ़ारिश की गई है उनमें से एक अहम बात, अधिक बोलने से बचना है। मौन व कम बात करना ऐसा ख़ज़ाना है जो मनुष्य के मन में ईश्वर की पहचान के दरवाज़े खोल देता है। रमज़ान के महीने में, जो ईश्वरीय आतिथ्य का महीना है, यह सिफ़ारिश और बढ़ जाती है कि कहीं रोज़ेदार व्यक्ति दूसरों की बुराई करने, उन पर आरोप लगाने और झूठ बोलने जैसे पापों में न ग्रस्त हो जाए।

एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम एक गली से गुज़र रहे थे कि उन्होंने एक महिला की आवाज़ सुनी जो अपनी दासी को गालियां दे रही थी। महिला ने सुन्नती रोज़ा भी रखा हुआ था। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने आदेश दिया कि कुछ भोजन लाया जाए। फिर आपने उस महिला से कहा कि इसे खा लो। उसने कहा कि हे ईश्वर के पैग़म्बर! मैं रोज़े से हूं। उन्होंने कहा कि तू किस प्रकार रोज़े से है कि अपनी दासी को गालियां दे रही है? इसके बाद आपने फ़रमाया कि रोज़ा केवल न खाना और न पीना नहीं है। इसके बाद आपने जो वाक्य कहा वह चिंतन का विषय है। उन्होंने कहाः रोज़ेदार कितने कम हैं और भूखे कितने ज़्यादा हैं।

धर्म व शिष्टाचार के नेताओं ने कम बात करने और मौन के बारे में बहुत सी सिफ़ारिशें की हैं। लुक़मान हकीम ने अपने बेटे से कहा हैः हे मेरे पुत्र! जब भी तुम यह सोचो कि बात करने का मूल्य चांदी है तो यह जान लो कि चुप रहने का मूल्य सोना है। कम बोलने और मौन के कुछ लाभ हैं जिन पर लोग कम ही ध्यान देते हैं और रमज़ान का महीना इस बात का अच्छा अवसर है कि हम उन पर विशेष ध्यान दें। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के पौत्र इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने कहा है कि बुद्धि, ज्ञान व विनम्रता के चिन्हों में से एक मौन है।

निश्चित रूप से मौन, तत्वदर्शिता के दरवाज़ों में से एक है, मौन, प्रेम का कारण बनता है और हर अच्छे काम का मार्गदर्शक है। रोज़ेदार व्यक्ति, जिसकी आत्मा अधिक शांत होती है, कम बात करने और मौन का प्रयास कर सकता है और बात करने से पहले अधिक सोच-विचार कर सकता है। सोच-विचार एक बड़ी उपासना है जिसके बारे में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने कहा है कि एक घंटे सोच विचार करना, सत्तर साल की उपासना से बेहतर है।

शुक्रवार, 15 मार्च 2024 16:59

ईश्वरीय आतिथ्य- 4

रमज़ान का पवित्र महीना, आत्मनिर्माण और पापों से स्वयं को बचाने का बहुत अच्छा अवसर है।

यही कारण है कि बहुत से मुसलमान इस अवसर से लाभ उठाने का प्रयास करते हैं।  रमज़ान का महीना विशेष महत्व का रखता है।  यह महीना अपनी आत्मा को पवित्र करने का बेहतरीन अवसर है।  यह लोगों के जीवन को गहराई से प्रभावित करता है।  इस महीने में जो कुछ हासिल होता है वह कठिन उपासना का परिणाम होता है।  ईश्वर चाहता है कि मनुष्य, पवित्र रमज़ान में इबादत करके ईश्वर से डरता रहे ताकि उसे कल्याण प्राप्त हो सके।

इस्लामी शिक्षाओं में बताया गया है कि ईश्वर की उपासना करके मनुष्य का अन्तिम लक्ष्य, कल्याण व सफलता प्राप्त करना है।  पवित्र क़ुरआन की बहुत सी आयतों में तक़वा अर्थात ईश्वर से भय की बात कही गई है।  तक़वे का भी लक्ष्य, कल्याण हासिल करना है।  सूरए बक़रा की आयत संख्या 130 में ईश्वर कहता है कि और ईश्वर से डरते रहो ताकि तुम्हें फ़लाह या कल्याण प्राप्त हो जाए।  क़ुरआन की आयतों में 40 बार फ़लाह शब्द का प्रयोग उसके विभिन्न रूपों में किया गया है।

फ़लाह का अर्थ होता है सामने मौजूद रुकावटों को दूर करना और उस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए समस्याओं को नियंत्रित करना जो कल्याण व सफलता का कारण बनता है।  ईमान वाले ईश्वर पर भरोसा करते हुए लक्ष्य तक पहुंचने का हर संभव प्रयास करते हैं और संसार की क्षमता के अनुसार सफलताएं प्राप्त करते हैं किंतु उनके प्रयासों का संपूर्ण पारितोषिक प्रलय में दिया जाएगा और वे ईश्वरीय दया की छाया में और पवित्र व भले लोगों के साथ स्वर्ग में सदा के लिए रहेंगे।  क़ुरआन के अनुसार वे स्वतंत्र लोग जो ईश्वर को दिल की गहराइयों से मानते हैं उनका ईश्वर पर अटूट भरोसा होता है।  ऐसे लोग कठिन परिश्रम करके अच्छाइयां प्राप्त करते हैं।  सूरे तौबा की 20वीं आयत में कहा गया है कि वे लोग जो ईमान और अमल अर्थात आस्था एवं कर्म को साथ-साथ रखते हैं, सफल रहते हैं।

मनुष्य के हर कार्य को अच्छा काम नहीं कहा जा सकता।  केवल वही काम अच्छा काम माना जाएगा जो बुद्धि के आधार पर और पूरी निष्ठा के साथ किया गया हो।  इस प्रकार से ईश्वर, ऐसा काम करने का निमंत्रण देता है जिसे पूरी निष्ठा के साथ किया जाए।  अपने व्यवहार के बारे में मनुष्य के सतर्क रहने से वह अच्छे काम की ओर अग्रसर रहता है।  ऐसे में वह केवल वे काम ही करता है जिससे ईश्वर नाराज़ न हो।  जिन लोगों को इस बात पर विश्वास है कि ईश्वर हमें देख रहा है और हमारे सारे कर्मों से अवगत है वे सच्चाई के साथ भले काम करते हैं जो तक़वे का कारण बनते हैं।

अब जबकि रमज़ान का महीना चल रहा है एसे में हम यह काम बड़ी सरलता से कर सकते हैं।  रोज़ा रखकर आंतरिक इच्छाओं पर नियंत्रण किया जा सकता है।  रमज़ान के महीने में पवित्र क़ुरआन पढ़ने पर अधिक से अधिक बल दिया गया है।  जितना भी संभव हो सके मनुष्य इस महीने में क़ुरआन पढ़ता रहे।  यहां पर यह बात ध्यान योग्य है कि केवल क़ुरआन का पढ़ना की पर्याप्त नहीं है बल्कि इसका मुख्य लक्ष्य, क़ुरआन की बातों को समझकर उनपर अमल करना है।

रमज़ान के महीने के बारे में ईश्वर सूरे बक़रा की आयत संख्या 185 में कहता हैः रमज़ान का महीना वह महीना है जिसमें क़ुरआन ईश्वर की ओर से उतरा है, जो लोगों का मार्गदर्शक है तथा, असत्य से सत्य को अलग करने हेतु स्पष्ट तर्कों व मार्गदर्शन को लिए हुए है, तो तुम में से जो कोई भी ये महीना पाए तो उसे रोज़ा रखना चाहिए और जो कोई बीमार या यात्रा में हो तो वह उतने ही दिन किसी अन्य महीने में रोज़ा रखे, ईश्वर तुम्हारे लिए सरलता चाहता है, कठिनाई नहीं, तो तुम रोज़ा रखो यहां तक कि दिनों की संख्या पूरी हो जाए और तुम्हें मार्गदर्शन देने के लिए ईश्वर का महिमागान करो और शायद तुम (ईश्वर के प्रति) कृतज्ञ हो।

पवित्र क़ुरआन का तेइसवां सूरा, मोमेनून है।  इसमें मोमिनों के बारे में बताया गया है ताकि उनकी सफलता को देखकर अन्य लोग भी कामयाबी के रास्ते पर आगे बढ़ें।  बाद में सफलता के लिए कुछ विशेषताएं बयान की गई हैं।  यह वे विशेषताए हैं जिनको व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर लागू किया जा सकता है।  आरंभ में ईश्वर, मोमिनों को सफल बताता है।  पहली आयत एक संक्षिप्त वाक्य में स्पष्ट रूप से लोक परलोक में ईमान वालों के निश्चित कल्याण व सफलता की सूचना देती है। इस आयत में फ़लाह शब्द का प्रयोग किया गया है।  आयत में प्रयोग होने वाले शब्द फ़लाह का अर्थ होता है सामने मौजूद रुकावटों को दूर करना और उस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए समस्याओं को नियंत्रित करना जो विजय व सफलता का कारण बनता है।  ईमान वाले ईश्वर पर भरोसा करते हुए लक्ष्य तक पहुंचने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं और संसार की क्षमता के अनुसार सफलताएं प्राप्त करते हैं किंतु उनके प्रयासों का संपूर्ण पारितोषिक प्रलय में दिया जाएगा और वे ईश्वरीय दया की छाया में और पवित्र व भले लोगों के साथ स्वर्ग में सदा के लिए रहेंगे।

सूरे मोमेनून में मोमिनों की प्रशंसा करते हुए ईश्वर पहले नमाज़ का उल्लेख करता है।  नमाज़, ईश्वर से संपर्क का सबसे अच्छा माध्यम है।  ईश्वर कहता है कि मोमिन वे लोग हैं जो पूरी विनम्रता के साथ नमाज़ पढ़ते हैं।  विनम्रता ऐसी स्थिति है जिसका प्रभाव शरीर पर भी दिखाई देता है। रमज़ान के पवित्र महीने में रोज़ा रखने वाले के लिए सबसे अच्छा काम अपने ईश्वर की उपासना करना है।  रोज़ेदार बड़ी ही श्रद्धा के साथ रमज़ान में अपने ईश्वर को याद करता है।

नमाज़, बंदगी का रहस्य और आज़ादी की पहचान है।  इस सूरे में नमाज़ के अतिरिक्त एक अन्य विशेषता की ओर संकेत किया गया है जो लगभग सात आयतों में मिलता है।  रोज़ेदार, इन विशेषताओं का अध्ययन करके अपनी अच्छी विशेषताओं में अधिक से अधिक वृद्धि कर सकते हैं।  इन विशेषताओं को हमें ध्यान से पढ़ना चाहिए।  निश्चित रूप से ईश्वर पर ईमान रखने वाले सफल रहे कि जो अपनी नमाज़ों में विनम्र रहते हैं।  और जो लोग व्यर्थ बातों व कार्यों से मुंह मोड़ लेते हैं। और जो ज़कात अदा करते हैं।  और जो स्वयं को व्यभिचार से बचाते हैं। सिवाय अपनी पत्नियों या (ख़रीदी हुई) दासियों के, कि इस पर वे निन्दनीय नहीं हैं। तो जो कोई इसके अतिरिक्त कुछ और चाहे तो ऐसे ही लोग सीमा लांघने वाले है। और जो लोग अपनी अमानतों और अपनी प्रतिज्ञा का पालन करते हैं। और जो सदैव अपनी नमाज़ों की रक्षा करते हैं। यही लोग तो वारिस हैं। जो स्वर्ग की विरासत पाएँगे (और) वे उसमें सदैव रहेंगे।

रमज़ान का महत्व समझाते हुए इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम कहते हैं कि ईश्वर ने पवित्र रमज़ान को जागरूकता का प्रमुख कारक बताते हुए कहा कि यह महीना, ईश्वर के मार्ग पर चलने का बहुत अच्छा ज़माना है।  इस महीने में कुछ लोग भलाई में एक-दूसरे से आगे बढ़ जाते हैं।  इसी महीने में कुछ लोग उदंडता करके अपना नुक़सान कर लेते हैं।  आश्चर्य है उन लोगों पर जो बहुत हंसते हैं और अपना समय खेल में गुज़ारते हैं।  उस दिन जब भलाई करने वालों को उनकी भलाई का बदला दिया जाएगा, एसे में बुराई करने वाले घाटा उठाएंगे।  ईश्वर के कथनानुसार वास्तविक कल्याण पाने वाले प्रकाश में रहेंगे।

शुक्रवार, 15 मार्च 2024 16:57

: قال رسول الله صلی اللہ علیه وآله وسلم

إِنَّ فِي الْجَنَّةِ بَابًا يُقَالُ لَهُ: الرَّيَّانُ، يَدْخُلُ مِنْهُ الصَّائِمُونَ يَوْمَ الْقِيَامَةِ، لا يَدْخُلُ مِنْهُ أَحَدٌ غَيْرُهُمْ، يُقَالُ: أَيْنَ الصَّائِمُونَ؟ فَيَقُومُونَ لا يَدْخُلُ مِنْهُ أَحَدٌ غَيْرُهُمْ، فَإِذَا دَخَلُوا أُغْلِقَ فَلَمْ يَدْخُلْ مِنْهُ أَحَدٌ

हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व. ने फरमाया:

जन्नत में एक दरवाज़ा है जिसे रियान कहते हैं कयामत के दिन सिर्फ रोज़ेदार उस दरवाज़े से जन्नत में दाखिल होंगे और उनके अलावा कोई दूसरा उस दरवाज़े से जन्नत में दाखिल नहीं होगा, कयामत के दिन आवाज़ आएगी की रोज़ेदार कहां है बस वह उठाएंगे और उनके सिवा कोई दूसरा जन्नत में दाखिल नहीं होगा और जब वह दाखिल हो जाएंगे तो दरवाजा बंद हो जाएगा और कोई दूसरा उस में दाखिल नहीं होगा,

आलामुद्दीन फी सिफाते मोमिनीन,भाग 1,पेंज 278

 

 

शुक्रवार, 15 मार्च 2024 16:56

माहे रमज़ान के चौथे दिन की दुआ (4)

माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।

اَللّهُمَّ قَوِّني فيہ عَلى اِقامَة اَمرِكَ وَاَذِقني فيہ حَلاوَة ذِكْرِكَ وَاَوْزِعْني فيہ لِأداءِ شُكْرِكَ بِكَرَمِكَ وَاحْفَظْني فيہ بِحِفظِكَ و َسَتْرِكَ يا اَبصَرَ النّاظِرينَ.

अल्लाह हुम्मा क़व्विनी फ़ीहि अला इक़ामति अम्रिक, व अज़िक़नी फ़ीहि हलावति ज़िकरिक, व औज़िअनी फ़ीहि ले अदाएका शुकरिक, बे करमिका वह फ़ज़ नी फ़ीहि बे हिफ़ज़िका व सतरिका या अबसरन नाज़िरीन (अल बलदुल अमीन, पेज 220, इब्राहिम बिन अली)

ख़ुदाया! तू मुझे इस महीने में अपने अहकाम को क़ाएम करने की क़ुव्वत अता फ़रमा और मुझको अपने ज़िक्र की मिठास चखा और मुझे अपने करम से अपनी शुक्र गुज़ारी के लिए तैयार कर दे और अपनी पर्दापोशी व हिफ़ाज़त के ज़रिए मुझे महफ़ूज़ कर, ऐ देखभाल करने वालों में सबसे ज़ियादा देखभाल करने वाले...

अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम..

 

आज तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा हुज्जतुल इस्लाम काज़िम सिद्दीक़ी की इमामत में अदा की गयी

आज तेहरान की केन्द्रीय नमाजे जुमा तेहरान के अस्थाई इमाम जुमा हुज्जतुल इस्लाम काज़िम सिद्दीक़ी की इमामत में अदा की गयी।

उन्होंने नमाज़े जुमा के ख़ुत्बों में गज्जा पट्टी में जायोनी सरकार के अपराधों की ओर संकेत करते हुए कहा कि फिलिस्तीन इस्लामी जगत का सर्वप्रथम मुद्दा है और हालिया समय में जायोनियों ने कई बार सीरिया और दूसरे क्षेत्रों में हमारे कमांडरों पर हमला किया अलबत्ता सीरिया, इराक, लेबनान और पाकिस्तान में उन्हें करारा जवाब मिला है और प्रतिरोध अच्छी पोज़ीशन में है और ईरानी प्रतिरोध के कमांडर सर बुलंद हैं।

इसी प्रकार हुज्जतुल इस्लाम काज़िम सिद्दीक़ी ने कहा कि गज्जा युद्ध ने लोगों के लिए कठिनाइयां उत्पन्न की हैं परंतु साथ ही वह कुछ चीज़ों को स्पष्ट करता है एक अमेरिका और इस्राईल के सीमा रहित अपराध जो अपराध करने में किसी सीमा को नहीं मानते हैं, वे निहत्थे लोगों की हत्या कर रहे हैं, बीमारों और अस्पतालों पर हमला करके बच्चों की हत्या कर रहे हैं, गज्जा गज्जा पट्टी में न खाना है न पीना है न सुरक्षा और न आश्रय। इस हालत में इंसान खून का आंसू रोता है।

उन्होंने सवाल किया और कहा कि क्या गज्जा के लोग इंसान और मुसलमान नहीं हैं क्यों अरब सरकारें इस्राईल के साथ संबंध विच्छेद नहीं करती हैं जबकि उन्होंने अपना नाम मुसलमान रख रखा है और कुछ सरकारों ने इस्राईल की मदद की है और प्रतिरोध के खिलाफ काम कर रही हैं? इसी प्रकार उन्होंने कहा कि इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने बिल्कुल सही कहा है कि प्रतिरोध जल्द ही इस्राईल की नाक रगड़ देगा इंशा अल्लाह इस प्रकार का दिन निकट है और उन देशों के लिए हसरत और शर्मिन्दगी का कारण बनेगा जो सामने नहीं आये हैं और काफिरों के साथ हो गये हैं और मुसलमानों को कमज़ोर किया है और वे बच्चों का खून बहाने में भागीदार हैं।

ग़ज़ा पट्टी में मानवीय स्थिति के बिगड़ने और फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ भोजन और दवा को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की ज़ायोनी शासन की साज़िश से पर्दा उठने के बाद विश्व समुदाय यहां तक ​​कि इस शासन के कुश पश्चिमी समर्थक सदमे में हैं।

ग़ज़ा में ज़ायोनी शासन भुखमरी को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहा है और वह भोजन और दवा की डिलीवरी को रोकने के गंभीर परिणामों की चेतावनी के बावजूद अपनी इस साज़िश पर अमल कर रहा है। यूरोपीय संघ की आयुक्त एलिसा फ़रेरा ने इस साज़िश से पर्दा उठाते हुए यूरोपीय संसद को इसके भयानक परिणामों से अवगत करवाया है। उन्होंने ग़ज़ा में युद्ध विराम, तत्काल रूप से मानवीय सहायता बढ़ाने और क़ैदियों को रिहा करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।

यूरोपीय संघ की आयुक्त का कहना था कि जो कोई भी ग़ज़ा की स्थिति के बारे में चिंतित है, उसे ग़ज़ा को सहायता भेजने के लिए इस्राईल पर दबाव डालना चाहिए। फ़रेरा ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को ग़ज़ा में निर्दोष नागरिकों को भूख और ज़ायोनी सेना की हिंसा से बचाने के लिए व्यवहारिक क़दम उठाने चाहिए। उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि यूरोपीय संघ फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र राहत और कार्य एजेंसी (यूएनआरडब्ल्यूए) के साथ सहयोग जारी रखेगा। फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र राहत और कार्य एजेंसी (यूएनआरडब्ल्यूए) ने घोषणा की है कि अगर इस एजेंसी का फिर से समर्थन शुरू नहीं किया गया, तो वह जल्द ही अपनी गतिविधियां बंद कर देगी। अमरीका, इंग्लैंड और जर्मनी सहित कई पश्चिमी देशों ने यूएनआरडब्ल्यूए के ख़िलाफ़ ज़ायोनी शासन के आरोपों के आधार पर इसके साथ सहयोग बंद कर दिया है। इस्राईल ने अपने इन सहयोगियों के इस क़दम का स्वागत किया है। इससे पता चलता है कि इस्राईल, ग़ज़ा के पीड़ित लोगों की सहायता के लिए बढ़ने वाले हर हाथ को काट देना चाहता है।

यूएनआरडब्ल्यूए को वित्तीय सहायता बंद करने और उसके बाद युद्ध की कठिन परिस्थितियों में फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए इस अंतर्राष्ट्रीय एजेंसी की सेवाओं को रोकने से फ़िलिस्तीनियों की स्थिति पहले से कहीं अधिक कठिन हो जाएगी, जिन्हें तत्काल बुनियादी चीज़ों की ज़रूरत है। ताजा रिपोर्ट के मुताबिक़, कुपोषण और पानी की कमी के कारण ग़ज़ा पट्टी के उत्तर में अब तक 23 बच्चों की मौत हो चुकी है। ग़ज़ा पर ज़ायोनी सेना के हमलों में मरने वालों और घायलों के भयावह आंकड़े क्रमश: 31 हज़ार और 72 हज़ार को पार कर गए हैं।

 ज़ायोनी शासन और उसके समर्थकों का ग़ज़ा को सहायता भेजने से रोकने का निर्णय दर्शाता है कि ग़ज़ा वासियों और प्रतिरोध के ख़िलाफ़ युद्ध की विफलता के बाद इस्राईल और उसके समर्थक फ़िलिस्तीनोयों की इच्छा शक्ति को कमज़ोर करना चाहते हैं और लोगों को प्रतिरोध के ख़िलाफ़ खड़ा करने के लिए मजबूर करना चाहता हैं।

ईरान के विदेशमंत्री ने प्रतिरोधकर्ता गुटों को दिए अपने संदेश में कहा है कि ज़ायोनी दुश्मन अब तक अपने किसी भी लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाया है।

ईरानी विदेशमंत्री ने अपने संदेश में लेबनान और फ़िलिस्तीन के दृढ़ और धैर्यवान लोगों को रमज़ान के पवित्र महीने की बधाई देते हुए दृढ़ता के शहीदों को श्रद्धांजलि दी है।

हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान ने लेबनान के हिज़्बुल्लाह के प्रमुख सैयद हसन नसरुल्लाह, हमास आंदोलन के प्रमुख इस्माईल हनिया और जेहादे इस्लामी ज़ियाद नख़ाला के प्रमुख को संबोधित करते हुए कहा है कि दुनिया के मुसलमानों ने रमज़ान के महीने का ऐसे में स्वागत किया है कि अतिग्रहणकारी ज़ायोनी शासन मानवता के खिलाफ अपराध करना जारी रखे हुए है और फिलिस्तीन के मज़लूम लोगों, विशेषकर ग़ज़्ज़ा की महिलाओं और बच्चों का नरसंहार कर रहा है और संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद सहित किसी भी अंतरराष्ट्रीय संगठन द्वारा कोई प्रभावी कार्रवाई को स्वीकार नहीं कर रहा है।

 

विदेशमंत्री अमीर अब्दुल्लाहियान ने कहा कि एक तरफ हम ज़ायोनी शासन के व्यापक अपराधों के सामने मानवाधिकार के झूठे दावेदारों की चुप्पी देख रहे हैं और दूसरी तरफ़ पूरी तरह से सशस्त्र और अमरीका के भरपूर समर्थन से ज़ायोनी दुश्मन के मुक़ाबले में  फिलिस्तीनी राष्ट्र का प्रतिरोध और गौरव देख रहे हैं।

विदेशमंत्री का कहना था कि इस ऐतिहासिक दृढ़ता और संघर्ष ने ज़ायोनी दुश्मन की हार को पहले से ज़्यादा उजागर कर दिया है।

अपने संदेश के अंत में, ईरान के विदेशमंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान ने अल्लाह की मदद और समर्थन के वादे पर पूर्ण विश्वास और भरोसा जताया और फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के समर्थन और बैतुल मुक़द्दस की स्वतंत्रता के लिए अल्लाह से दुआ की।

हालिया वर्षों में, मोसाद के सहयोग से ज़ायोनी फ़िल्म निर्माण की मात्रा बहुत बढ़ गई है और इन कार्यों के दौरान "तेहरान" नाम बहुत बार दोहराया जाता है।

इस बार अवैध ज़ायोनी शासन का सिनेमा "तेहरान होटल" नामक एक और ईरानी विरोधी फ़िल्म का निर्माण करने की तैयारी कर रहा है।

एक्शन फ़िल्म "तेहरान होटल" का उद्देश्य, वास्तविक दुनिया में इस्राईल की ईरान विरोधी खुफिया एजेंसियों की विफलताओं को इस अतिग्रहणकारी शासन की जीत के रूप में पेश करना है।

"तेहरान होटल" की शूटिंग मई में शुरू होगी जबकि इसके निर्देशक गाय मोशे अपनी चौथी फिल्म की शूटिंग कर रहे हैं और इस्राईल के बाहर भी उन्हें कोई पहचानता तक नहीं है।

"तेहरान होटल" की पटकथा मोशे ने "बाज़िल बासी" की मदद से लिखी थी जबकि बासी एक पटकथा लेखक होने का दावा करते हैं, इससे पहले वह सीआईए के विशेष अभियान के अधिकारियों में थे।

ज़ाहिर तौर पर, चार स्वतंत्र फिल्म निर्माण कंपनियां इस फिल्म के निर्माण में शामिल हैं जो सबसे अज्ञात अंतरराष्ट्रीय फिल्म निर्माण कंपनियों में हैं।

"तेहरान होटल" की निर्माण प्रक्रिया में इन अज्ञात निवेशकों और बासिल बासी की मौजूदगी ने इस अटकल को हवा दे दी है कि फिल्म मोसाद के आदेश पर और उसके इशारे पर बनाई जा रही है।

फिल्म विशेषज्ञों के मुताबिक, यह फिल्म अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन के अंदर की चरमपंथी और युद्धोन्मादी ताकतों को ही पसंद आ सकती है और यहां से बाहर बाक्स आफ़िस पर पूरी तरह से धराशायी हो जाएगी।

पर्यवेक्षक इस दिलचस्प तथ्य का उल्लेख करते हैं कि "होटल तेहरान" के निर्माण की ख़बर कुछ अज्ञात फिल्म साइटों और पत्रिकाओं में शामिल होने के अलावा, वैरायटी, स्क्रीन डेली और हॉलीवुड रिपोर्टर जैसे किसी भी प्रतिष्ठित मैगज़ीन में नहीं छपी है और यह बिंदु दर्शाता है कि इस फिल्म में सिनेमाई मूल्य और विश्वसनीयता बिल्कुल भी नज़र नहीं आती।

ज़ायोनी शासन का जासूसी संगठन अपने उत्पादनों में मैदाने जंग में प्रतिरोधकर्ता बलों, विशेष रूप से ईरान से मिलने वाली करारी हारों का औचित्य पेश करने के लिए एक विस्तृत योजना का पालन करता है और हक़ीक़त को उलटा दिखाकर आम जनमत में ईरान को एक युद्धोन्मादी देश के रूप में पेश करने की कोशिश करता है।

डेनियल सिर्किन द्वारा बनाये गये सीरियल "तेहरान" के निर्माण के बाद, जिसे 2020 में ऐप्पल टीवी द्वारा विश्व स्तर पर प्रसारित किया गया था और एरन रिकलिस द्वारा निर्देशित फ़िल्म "तेहरान में लोलिता खानी", जो 2023 में बनी थी और अभी तक रिलीज़ नहीं हुई है, फ़िल्म "होटल तेहरान" तीसरी फिल्म है जो इस्लामी गणतंत्र ईरान की राजधानी के लिए बनाई गई है।

"तेहरान होटल" जैसी फिल्में बनाकर, मोसाद ईरान को परमाणु ऊर्जा तक शांतिपूर्ण पहुंच में रुकावट डालने का प्रयास कर रहा है।

अपने क़ानूनी अधिकार को हासिल करने के लिए ईरान पर पिछले दो दशकों में सबसे कड़े प्रतिबंध लगे हैं और ईरानी राष्ट्र इन प्रतिबंधों के ख़िलाफ डटा हुआ है।

इस विषय की वजह से अमेरिकी जासूसी एजेंसी सीआईए और ज़ायोनी जासूसी एजेंसी मोसाद ईरान की विश्वसनीयता पर जनता की राय को प्रभावित फिल्म निर्माण पर सीधे तौर पर उतरने पर मजबूर हुआ है।

गुजरात में दसवीं कक्षा की छात्राओं से परीक्षा से पहले हिजाब उतरवाने का मामला सामने आया है।

डेक्कन हेराल्ड के अनुसार, भरूच ज़िले के अंकलेश्वर शहर में कुछ छात्राओं के माता-पिता ने आरोप लगाया है कि परीक्षा केंद्र पर उनके बच्चों को पेपर से पहले हिजाब उतारने के लिए मजबूर किया गया।

घटना एक निजी स्कूल- लायंस स्कूल में बुधवार को गणित के पेपर से पहले हुई। इस आरोप के बाद राज्य शिक्षा विभाग ने गुरुवार को परीक्षा केंद्र प्रशासक इलाबेन सुरतिया, जो उस स्कूल की प्रिंसिपल भी हैं, को हटाने का आदेश दिया है।

दसवीं कक्षा की परीक्षा आयोजित करवाने वाले गुजरात माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने यह स्पष्ट किया है कि परीक्षार्थियों द्वारा पहने जाने वाले कपड़ों के बारे में कोई विशेष नियम नहीं हैं और वे किसी भी ‘सभ्य’ परिधान में परीक्षा में शामिल हो सकते हैं।

जीएसएचएसईबी के नियमों के अनुसार, हर उस क्लास रूम, जहां विद्यार्थी पेपर देते हैं, की सीसीटीवी रिकॉर्डिंग होना अनिवार्य है।

माता-पिता के अनुसार, उनके पास मौजूद ऐसे ही एक सीसीटीवी फुटेज में दिखाया गया है कि कुछ महिला पर्यवेक्षकों ने दो मुस्लिम छात्राओं से उनके हिजाब हटाने के लिए कहा।