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इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा है कि ईरान से अमरीका और ज़ायोनी शासन के विरोध का कारण इस्लाम है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने मंगलवार को तेहरान में मुसलमान देशों के राजदूतों और देश के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ भेंट में कहा है कि अमरीका और ज़ायोनी शासन, इस्लामी गणतंत्र ईरान का विरोध इसलिए करते हैं क्योंकि वह उनकी मांगों के आगे सिर नहीं झुकाता।

पैग़म्बरे इस्लाम (स) की पैग़म्बरी की घोषणा के दिवस पर आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि इस्लामी देशों को यह बात समझनी चाहिए कि अमरीका, एक इस्लामी देश के साथ मित्रता और दूसरे से शत्रुता का उद्देश्य, मुसलमानों की एकता को तोड़ना और उसमें बाधाएं डालना है।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस्लाम के नाम पर आतंकवादी गुटों का गठन करके इस्लामी देशों के बीच मतभेद फैलाना, अमरीका और ज़ायोनी शासन का षडयंत्र है।  आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि विध्वंसकारियों के साथ कुछ क्षेत्रीय देश साज़िश में शामिल हैं।  उन्होंने कहा कि इस काम को आगे बढ़ाने के लिए इस्लामी गणतंत्र ईरान या शिया विचारधारा को अपना शत्रु बता रहे हैं।  वरिष्ठ नेता ने कहा कि सबको यह जानना चाहिए कि वर्चस्ववादियों के मुक़ाबले में प्रतिरोध ही इस्लामी जगत की प्रगति का मार्ग है।

उन्होंने कहा कि अमरीका के वर्तमान और पूर्व अधिकारियों द्वारा ईरानी राष्ट्र का विरोध, उनकी भ्रष्ट नियत को दर्शाता है।  उन्होंने कहा कि अमरीकियों ने ईरान को नुक़सान पहुंचाने के लिए हर संभव प्रयास किया किंतु उसे इसमें विफलता ही मिली।  वरिष्ठ नेता ने कहा कि जो भी ईरानी राष्ट्र को क्षति पहुंचाने का प्रयास करेगा वह ख़ुद ही घाटा उठाएगा।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने राष्ट्रपति पद के प्रत्याशियों को संबोधित करते हुए उनसे कहा है कि वे लोग जनता को वचन दे कि देश के विकास के लिए विदेश से आस नहीं लगाएंगे।   

 

 

भारत के परिवहन मंत्री ने ईरान में चाबहार बंदरगाह परियोजना को महत्वपूर्ण बताते हुए उसके विस्तार पर बल दिया है।

प्राप्त समाचारों के अनुसार भारत के परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने क्षेत्र के देशों के बीच व्यापारिक मामलों में वृद्धि को लेकर ईरान के चाबहार बंदरगाह के महत्व की ओर इशारा करते हुए कहा है कि चाबहार बंदरगाह विस्तार परियोजना पर तेज़ी से काम हो रहा है।

नितिन गडकरी ने मंगलवार को अपने एक बयान में कहा कि भारत सरकार ने दक्षिणी ईरान में स्थित चाबहार बंदरगाह के विकास के लिए वहाँ एक अंतर्राष्ट्रीय कंपनी की स्थापना भी की है। उन्होंने कहा कि हमारा प्रयास है कि हम जितनी जल्दी हो सके इस परियोजना को पूरा कर लें।

उल्लेखनीय है कि चाबहार बंदरगाह परियोजना में भारत द्वारा पचास लाख डॉलर का निवेश किया जा रहा है साथ ही दो जेटियों के निर्माण समझौते पर पिछले साल ईरान और भारत के परिवहन मंत्रियों ने हस्ताक्षर किए थे, जबकि त्रिपक्षीय ट्रांज़िट समझौते पर पिछले साल भारतीय प्रधानमंत्री के ईरान दौरे के अवसर पर भारत, अफ़ग़ानिस्तान और ईरान के राष्ट्राध्यक्षों ने हस्ताक्षर किए थे।

ज्ञात रहे कि चाबहार बंदरगाह, भारत के लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण है। इस बंदरगाह के माध्यम से भारत की पहुंच अफ़ग़ानिस्तान और मध्य एशिया तक बहुत आसान हो जाएगी।  

 

 

तबस में अमरीकी हमले की विफलता की वर्षगांठ मनाई गई।

पूर्वी ईरान के तबस मरूस्थल में मंगलवार को अमरीकी हमले की विफलता की वर्षगांठ मनाई गई।  तबस नगर के इमामे जुमा हुज्जतुल इस्लाम इब्राहीम महाजिरयान ने इस अवसर पर कहा कि यहां पर एक एसा संग्रहालय बनाया जाए जिसमें अमरीका के विफल हमले के बाद वहां पर मौजूद चीज़ों को रखा जाए।

ज्ञात रहे कि अमरीका ने तेहरान में अपने जासूसों को स्वतंत्र कराने के लिए 25 अप्रैल 1980 को पूर्वी ईरान में स्थित तबस मरूस्थल में एक पुराने हवाई अडडे को प्रयोग करके कार्यवाही करने की योजना बनाई थी किंतु रेत के तूफ़ान के कारण उनकी योजना विफल हो गई।

इस घटना के बाद वहां पर मिलने वाले उपकरणों और जले हुए जहाज़ के मलबे के अध्धयन से पता चलता है कि अमरीका ने अपने जासूसों को आज़ाद कराने के लिए कितनी गहराई से योजना बनाकर उसे क्रियान्वित करने का प्रयास किया था किंतु ईश्वर की कृपा से वह विफल रही।

लेबनान के हिज़्बुल्लाह संगठन के उप महासचिव शैख़ नईम क़ासिम ने कहा है कि यह हिज़्बुल्लाह की व्यापक स्तर की तय्यारी है जिसने इस्राईल को लेबनान पर नए अतिक्रमण से रोक रखा है। इसके साथ ही उन्होंने चेतावनी भी दी कि भविष्य में इस तरह की जंग में ज़ायोनी शासन की हार निश्चित है। 

शैख़ नईम क़ासिम ने गुरुवार को अलअख़बार से इंटर्व्यू में कहा, सभी संकेत इस सच्चाई का पता देते हैं कि इस्राईल भयभीत है। इस समय लेबनान के ख़िलाफ़ नए आक्रमण के बारे में उसने फ़ैसला नहीं किया है। इसका कारण यह नहीं है कि इस्राईल नैतिकता की बुनियाद पर ऐसा नहीं कर रहा है बल्कि उसे यह बात समझ में आ गयी है कि लेबनान के ख़िलाफ़ किसी भी प्रकार की जंग में इस्राईल की हार निश्चित है। 

ग़ौरतलब है कि अतिग्रहित फ़िलिस्तीनी क्षेत्र के मध्य में स्थित हत्ज़र हवाई छावनी में ‘डेविड्स स्लिंग’ मीज़ाईल सिस्टम के इस्राईल द्वारा अनावरण किए जाने के बाद, 2 अप्रैल को लेबनानी प्रधान मंत्री साद हरीरी ने चेतावनी दी कि इस्राईल का हालिया क़दम यह दर्शाता है कि वह नए टकराव का इरादा रखता है। 

गुरुवार को हिज़्बुल्लाह ने लेबनानी सीमा पर पत्रकारों को आमंत्रित किया ताकि वे इस बात को कवरेज दें कि इस्राईल द्वारा उठाए गए क़दम नई जंग की तय्यारी का पता देते हैं। 
हिज़्बुल्लाह के प्रवक्ता मोहम्मद अफ़ीफ़ ने कथित ब्लू लाइन के बग़ल में एक पहाड़ी के ऊपर कहा, “इस दौरे का उद्देश्य दुश्मन द्वारा किए गए रक्षात्मक उपाय को दिखाना है।”  

 

अंतर्राष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी ने "UChicago" समाचार एजेंसी के अनुसार बताया कि "मानवीयत" सप्ताह में विभिन्न कार्यक्रमों जुमे की नमाज, धर्मों और धार्मिक परंपराओं का तआरूफ मुसलमानों के इस विशेष समारोह का हिस्सा है।

"मानवीयत"सप्ताह के आयोजन का उद्देश्य विभिन्न धर्मों के अनुयायियों को धर्मों और धार्मिक परंपराओं से परिचित के लिए आमंत्रित किया है।

यह तैय है कि शनिवार 22 अप्रैल को भी दक्षिण एशिया में मुसलमानों और हिंदुओं के गठन को धार्मिक कला के विकास में उनकी भूमिका के लिए विश्वविद्यालय में सम्मानित करने के लिए कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा।

 

पैग़म्बरे इस्लाम की नवासी और हज़रत अली व हज़रत फ़ातेमा ज़हेरा अलैहिमुस्सलाम की पुत्री हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की शहादत की बर्सी के अवसर पर हम हार्दिक संवेदना व्यक्त करते हैं और इसी उपलक्ष्य में एक विशेष चर्चा लेकर आपकी सेवा में उपस्थित हैं।

अच्छी मिट्टी हो तो वहां हरियाली उगती है और फूल महकते हैं, बंजर ज़मीन पर कंटीली झाड़ियां ही नज़र आती हैं। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा का जन्म एसे परिवार में हुआ जो पवित्रता का स्रोत था और जिसने मानवीय मूल्यों और महानताओं को सींचा। उनके नाना पैग़म्बरे इस्लाम को क़ुरआन मजीद ने सारी सृष्टि के लिए ईश्वर की दया व कृपा की संज्ञा दी है।

जब हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के जन्म का समय निकट आया तो ईश्वर के फ़रिश्ते हज़रत जिबरईल धरती पर उतरे और पैग़म्बरे इस्लाम से कहा कि आप इस बच्ची का नाम ज़ैनब रखिए। इसके बाद हज़रत जिबरईल रोने लगे। पैग़म्बरे इस्लाम ने उनसे रोने की वजह पूछी तो बताया कि यह बच्ची अपने जीवन के आरंभ से अंत तक दुखों और पीड़ाओं का सामना करती रहेगी। कभी आपकी जुदाई का ग़म मनाएगी, कभी हज़रत फ़ातेमा ज़हेरा की शहादत पर रोएगी और कभी अपने पिता हज़रत अली और भाई हसन का ग़म मनाएगी। सबसे बढ़कर इस बच्ची को कर्बला में दुखों और पीड़ाओं का सामना करना पड़ेगा और यह मुसीबतें उसे बूढ़ कर देंगी। यह सुनकर सब रोने लगे। हज़रत फ़ातेमा ज़हरा ने सवाल किया कि मेरी बेटी ज़ैनब पर रोने का क्या सवाब होगा तो पैग़म्बरे इस्लाम ने जवाब दिया कि उस पर रोने का सवाब हुसैन पर रोने के सवाब के बराबर होगा।

जब हज़रत ज़ैनब विवाह की आयु को पहुंची तो उनका विवाह चाचा के बेटे अब्दुल्लाह इब्ने जाफ़र से हुआ। अब्दुल्लाह को अरब जगत  के धनवान लोगों में गिना जाता था।  मगर हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा न कभी भी भौतिकवाद से ख़ुद को क़रीब नहीं किया। उनके सामने तो बहुत बड़ा ध्येय कर्बला में पेश की जाने वाली क़ुरबानी थी। उन्होंने अपने जीवन में यह पाठ सीखा था कि कभी भी सच्चाई को अत्याचारियों के स्वार्थों पर न्योछावर नहीं होने देना चाहि। इसी लिए उन्होंने अपने भाई इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के मिशन की ज़िम्मेदारी संभाली और धर्म के शुद्धिकरण और समाज के सुधार के लिए क़दम आगे बढ़ाया। शादी के समय हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने अपने पति हज़रत अब्दुल्लाह के सामने यह शर्त रखी थी कि वह सभी परिस्थितियों में अपने भाई इमाम हुसैन का साथ देंगी। अब्दुल्लाह ने यह शर्त मान ली। अतः जब इमाम हुसैन ने अपना एतिहासिक सफ़र शुरू किया और मदीना से कर्बला गए तो इस सफ़र में हज़रत ज़ैनब भी उनके साथ थीं और उन्होंने भ्रष्ट व अत्याचारी उमवी शासक यज़ीद के मुक़ाबले में कर्बला की महान शौर्यगाथा में एक नया रंग भरा।

यदि हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के गुणों की बात की जाए तो उनका त्याग, उपासना, कठिन परिस्थितियों का साहस और दृढ़ता से मुक़ाबला आदि बहुत स्पष्ट विशेषताएं हैं। वह मात्र छह साल की थीं जब उनकी माता हज़रत फ़ातेमा ज़हरा ने मस्जिदे नबी में फ़ेदक नामक बाग़ और हज़रत अली अलैहिस्सलाम के अधिकार के बचाव में अपना एतिहासिक ख़ुतबा दिया। हज़रत ज़ैनब को उसी समय यह ख़ुतबा याद हो गया। कूफ़े की प्रतिष्ठित हस्ती बशीर इब्ने ख़ुज़ैम असदी कहते हैं कि मैंने लज्जा की चादर ओढ़े रहने वाली किसी महिला को हज़रत ज़ैनब की तरह भाषण देते कभी नहीं सुना। वह जब भाषण देती थीं तो ऐसा लगता था कि हज़रत अली भाषण दे रहे हैं। उन्होंने भाषण की कला अपने पिता से सीखी थी। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की सामाजिक स्थिति यह थी कि उनके पति अब्दुल्लाह भी उन्हें अली की बेटी और बनी हाशिम ख़ानदान की बुद्धिमान महिला कहकर पुकारते थे। कूफ़ा में हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के उस ख़ुतबे के बाद जिसमें उन्होंने सुनने वालों को हिलाकर रख दिया  था, हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन ने कहा कि आप गुरू के बग़ैर ही महान विचारक और ज्ञानी हैं।

हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के व्यक्ति को समझने के लिए सबसे अच्छा तरीक़ा यह है कि कर्बला की घटना और इसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम के परिवार के लोगों को यज़ीद द्वारा क़ैदी बनाए जाने की घटना का जायज़ा लिया जाए। समय के अत्याचारियों से निपटने की शैली हज़रत अली अलैहिस्सलाम की बेटी की महानता की गवाही देती है। वह अपने पति अब्दुल्लाह की अनुमति से जो बीमारी के कारण यात्रा में इमाम हुसैन के साथ न जा सके इमाम हुसैन के साथ कर्बला गईं। उन्होंने कर्बला की घटना में भी महान साहस का परिचय दिया और इसके बाद चौथे इमाम हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की रक्षा और देखभाल और साथ ही इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के मिशन के उद्देश्यों के प्रचार में अनुदाहरणीय भूमिका निभाई। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा वास्तव में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के मिशन की पूरक थीं। यदि ईश्वर ने हज़रत ईसा के साथ उनकी माता हज़रत मरियम को रखा, पैग़म्बरे इस्लाम के साथ उनकी बेटी हज़रत फ़ातेमा को रखा तो इमाम हुसैन के साथ उनकी बहन हज़रत ज़ैनब को रखा जिन्होंने ईश्वरीय मिशन में बड़ी केन्द्रीय भूमिका निभाई। यदि हज़रत ज़ैनब की भूमिका न होती तो इमाम हुसैन का कर्बला मिशन अपनी मंज़िल तक नहीं पहुंच पाता। वैसे इमाम हुसैन ने इस यात्रा में अपने घर वालों को साथ रखने का फ़ैसला इसी लक्ष्य के तहत किया था। कर्बला से दमिश्क़ की यात्रा में इमाम हुसैन और उनके साथियों के कटे हुए सिरों को भालों पर उठाया गया और पैग़म्बरे इस्लाम के ख़ानदान की महिलाओं और बच्चों को क़ैदी बनाया गया जो यज़ीद और उसके साथियों की दुष्टता को साबित करने के लिए काफ़ी है। इसी तरह हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा और हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने अलग अलग अवसरों पर जो ख़ुतबे दिए वह सच्चाई को सामने लाने में बहुत प्रभावी साबित हुए।

सत्य की रक्षा और कठिनाइयों को सहन करने के संबंध में एक मुसलमान महिला की क्या  भूमिका होती है यह हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने अपने आचरण से दिखाया। पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि आज़ाद इंसान हर हाल में आज़ाद रहता है। यदि उस पर दुख पड़ता है तो संयम का परिचय देता है, यदि दुखों का सिलसिला जारी रहता है तो भी उसका संयम नहीं टूटता, यदि उसे क़ैदी बना लिया जाए, उसे परास्त कर दिया जाए और उसका आराम कठिनाइयों में बदल जाए तो हज़रत युसुफ़ की तरह उसकी स्वाधीनता पर क़ैद और दासता से भी कोई आंच नहीं आती।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि हज़रत ज़ैनब एक संपूर्ण मुस्लिम महिला का प्रतीक थीं। अर्थात इस्लाम ने महिलाओं के प्रशिक्षण के लिए जो आदर्श रखा है उसे हज़रत ज़ैनब ने दुनिया वालों के सामने पेश किया। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के व्यक्तित्व की कई पहलू हैं। वह ज्ञानी और बहुत महान हस्ती हैं, उनके सामने बड़े बड़े बुद्धिमान और ज्ञानी नत मस्तक हो जाता है। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने भावना और भावुकता को एक मोमिन इंसान के हृदय में पायी जाने वाली दृढ़ता और महानता से जोड़ दिया। उन्होंने अपना हृदय और अस्तित्व ईश्वर के सिपुर्द कर दिया जिसके नतीजे में वह इतनी महानता पर पहुंच गईं कि बड़ी से बड़ी घटना भी उनकी नज़र में तुच्छ थी, कर्बला जैसी घटना भी उनके हौसले को नहीं तोड़ सकी।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की कर्बला में शहादत के बाद हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा डेढ़ साल से ज़्यादा जीवित नहीं रहीं। वर्ष 62 हिजरी क़मरी में रजब के महीने में 56 साल की आयु में हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा इस दुनिया से चली गईं। बहरुल मसाएब पुस्तक के लेखक ने लिखा है कि कर्बला की घटना और इसके बाद के कठिन हालात ने हज़रत ज़ैनब को बूढ़ कर दिया। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के लिए अपने भाई इमाम हुसैन के बग़ैर जीवन व्यतीत करना बहुत कठिन था। वैसे तो कर्बला की घटना ही इतनी बड़ी घटना थी कि हज़रत ज़ैनब का इसके बाद एक पल के लिए भी जीवित रह पाना कठिन था लेकिन उन्होंने हालात को देखा, अपने ज़िम्मेदारी को समझा, अपने भाई के मिशन को पूरा करने के दायित्वों का आभास किया और एसे संयम का प्रदर्शन किया जिसका कोई और उदाहरण नहीं हो सकता। अपने दायित्व पूरा कर लेने और अपने भाई इमाम हुसैन का संदेश लोगों तक पहुंचा देने के बाद हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने इस दुनिया से विदा ली।

 

अंतर्राष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी खबर साइट«बाल्टीमोर सन»के अनुसार,इस साल की सभा, "सच्ची सफलता के लिए प्रास: मूसा, ईसा और मुहम्मद (PBUH) के दिव्य संदेश" विषय के साथ आयोजित की गई।

इस सम्मेलन में जो उत्तरी अमेरिका के इस्लामी ब्यूरो (ICNA) द्वारा आयोजन किया गया है प्रमुख आंकड़ों सहित 150 से भी अधिक वक्ताओं ने भाग लिया।

इस तीन दिवसीय बैठक में जो आज, 16 अप्रैल को समाप्त होरही है, सामाजिक और मनोरंजक गतिविधियां भी आयोजित की गई।

बच्चों के लिए कुरान प्रतियोगिता, बाजार और मनोरंजक गतिविधियां, हर साल इस सभा का हिस्सा होती हैं।

इस वर्ष भी इसी तरह विभिन्न धर्मों के समूहों और बाल्टीमोर इस्लामिक सोसायटी के सहयोग से, 750 से अधिक सहायता पैकेज बेघरों के लिए और 1000 गर्म भोजन के पैकेज जरूरतमंद लोगों को वितरित किऐ गऐ।

इस तरह की बैठकें "इस्लामोफोबिया से मुक़ाबला", "राष्ट्रपति ट्रम्प के समय अपने अधिकारों की रक्षा" और "कठिन समय में सक्रिय होना" जैसे विषयों के साथ आयोजित की गईं और उनमें मुसलमानों के खिलाफ नफरत के आधार पर अपराधों में वृद्धि और ट्रम्प सरकार की इस्लामी देशों के नागरिकों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने की कार्रवाइयों पर भी चर्चा की गई।

 

अंतर्राष्ट्रीय कुरान समाचार ऐजेंसी  खबर "अल्यौमुस्साबेअ" के अनुसार, लंदन का सूदबी नीलामी मार्केट 26 अप्रेल को "इस्लामी दुनिया की कला" शीर्षक के साथ नीलामी का आयोजन करेगा और उसमें कुरान की पांडुलिपियां और सैकड़ों वर्षों पुराने कुरानों को नीलामी के लिऐ पेश किया जाऐगा।

इस नीलामी में दुआओं की पुस्तकें और चौदहवीं शताब्दी ई से संबंधित आयतों को भी नीलामी के लिऐ पेश किया जाऐगा और उनकी कीमत 6 से 8 हजार पाउंड घोषणा की गई है।

इसी तरह फारसी कवि अब्दुर्रहमान जामी के हाथ से लिखी कुरान की पांडुलिपि कि सोलहवीं सदी के अंतर्गत आता है इस नीलामी में मूल्य 2 से 3 हजार पाउंड तक बेचने के लिऐ रखा जाऐगा।

सूतबी नीलामी बाज़ार इसी तरह मुस्तफ़ा अज़्ज़हनी के हाथ का लिखा दौरे उस्मानी का क़ीमती क़ुरआन जो कि 18वीं शताब्दी ई के अंतर्गत आता है 20 से 30 हज़ार पाउंड और ऐक क़ुरआन इस्तांबूल का 1124 से 1712 शताब्दी के अंतर्गत 180 से 250 हज़ार पाउंड की कीमत पर नीलामी के लिऐ रखेगा।

 

अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करज़ई ने अमरीकी कार्यवाही को अमानवीय कार्यवाही बताया है।

अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई ने अपने ट्वीट में अमरीकी सेना की ओर से अफ़ग़ानिस्तान में सबसे बड़े ग़ैर परमाणु बम गिराए जाने की कड़े शब्दों में निंदा की है।

उन्होंने कहा कि अमरीका ने जो किया है वह आतंकवादियों के विरुद्ध युद्ध नहीं बल्कि अमानीय कार्यवाही है। अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई ने कहा कि अमरीका, अफ़ग़ानिस्तान को नये और ख़तरनाक हथियारों के टेस्टिंग ग्राउंड के रूप में प्रयोग कर रहा है। उन्होंने कहा कि अमरीका की इस प्रकार की कार्यवाही के विरुद्ध अफ़ग़ानिस्तान को उठ खड़ा होना होगा और उसे रोकना होगा।

ज्ञात रहे कि अमरीका ने दाइश पर हमले का बहाना बनाकर गुरुवार की शाम लगभग सात बजे अफ़ग़ानिस्तान में नंगरहार के अचन ज़िले में 16 वर्षीय युद्ध के दौरान पहली बार सबसे बड़ा ग़ैर परमाणु ख़तरनाक बम का प्रयोग किया। 

अंतर्राष्ट्रीय कुरान एजेंसी ने अल-कफील इंटरनेशनल वेबसाइट के अनुसार बताया कि यह कुरआनी समारोह पांचवें "इमाम अली (अ0) वार्षिक सांस्कृतिक महोत्सव के अवसर पर इमाम हुसैन,इमाम अली,हज़रत अब्बास,असकरीएन के पवित्र हरम के कारीयों ने कुराने मजीद की तिलावत किया।

यह कुरआनी समारोह "कोलकाता" के इमामबाड़ा "फज़्लुन्निसा" में आयोजित किया गया जिसमें इमाम हुसैन अ0 के पवित्र हरम के क़ारी और मोअज़्ज़िन मुस्तफा अल-ग़ालबी ने इराकी शैली में तिलावत किया।

समारोह में इमाम अली अ0 के पवित्र हरम के "शेख मोहम्‍मद जाससिम" और असकरीएन के पवित्र हरम के क़ारी "कैसर अल ज़ोहैरी" ने कुरान के आयतों की तिलावत किया।

मोहब्बते इमाम अली (अ0) पर तवाशीह और हरमे हज़रत अब्बास के कारी "सैयद हैदर जोलु ख़ां ने दुआए कुमैल की तिलावत किया।

पांचवें "इमाम अली (अ0) वार्षिक सांस्कृतिक महोत्सव 13 अप्रैल से भारत के शहर कलकत्ता में शुरू हुआ जो 16 अप्रैल तक जारी रहेग़ा।

पांचवें "इमाम अली (अ0) वार्षिक सांस्कृतिक महोत्सव में पुस्तक मेला, भारत में अनाथ धार्मिक स्थल की यात्रा है।