رضوی

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अदयान व मज़ाहीब विश्वविद्यालय के संरक्षक ने कहा,ईरान और मचर (थाईलैंड) की विश्वविद्यालयों और धार्मिक केंद्रों के बीच शैक्षिक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर दोनों देशों में शैक्षिक कूटनीति को बढ़ावा देंगे।

अदयान व मज़ाहीब विश्वविद्यालय के संरक्षक हज़रत हुज्जतुल इस्लाम सैयद अबुलहसन नवाब ने थाईलैंड के दौरे के दौरान जुलालोंगकोर्न विटयालय (मचर) विश्वविद्यालय में प्रोफेसरों और जिम्मेदार अधिकारियों से मुलाकात की और बातचीत की।

इस बैठक की शुरुआत में, प्राजरावत वोतयानो ने विश्वविद्यालय के प्रतिनिधि के रूप में सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया और बैठक के उद्देश्यों को बताते हुए कहा,इस बैठक का उद्देश्य ईरान और थाईलैंड के शैक्षिक और धार्मिक संस्थानों के बीच संपर्क का एक पुल स्थापित करना है ताकि संवाद, अनुभवों का आदान-प्रदान और साझेदारी के विकास के रास्ते खोले जा सकें।

उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि इन वार्ताओं के परिणामों को व्यवहार में लाना आवश्यक है, खासकर शिक्षा, शोध और सांस्कृतिक क्षेत्रों में सहयोग के समझौतों के रूप में।

इसके बाद,डॉक्टर प्रा बान्डित सोटिरात, विश्वविद्यालय के उपाध्यक्ष ने ईरानी प्रतिनिधिमंडल का स्वागत करते हुए कहा, जुलालोंगकोर्न विटयालय (मचर) विश्वविद्यालय पहले भी ईरान के शैक्षिक संस्थानों के साथ सहयोग कर चुकी है और हमेशा ईरानी प्रोफेसरों और विद्वानों की मेजबानी को स्वागत योग्य माना है।

उन्होंने कहा,यह विश्वविद्यालय ईरान के शैक्षिक, सांस्कृतिक और धार्मिक केंद्रों के साथ सहयोग के द्वार खोल चुकी है और पूरी तरह तैयार है कि निकट भविष्य में प्रोफेसरों और छात्रों के आदान-प्रदान, सम्मेलनों के आयोजन और संयुक्त शैक्षिक शोध जैसे परियोजनाओं पर काम करे।

डॉक्टर प्रा बान्डित सोटिरात ने आगे कहा,मचर और ईरान की विश्वविद्यालयों के बीच औपचारिक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर करने का मार्ग प्रशस्त करना और इन समझौतों का आयोजन धार्मिक ज्ञान के प्रचार, शैक्षिक सहयोग के विस्तार और वैश्विक शांति संस्कृति के विकास के लिए एक नई नींव प्रदान करेगा क्योंकि यह सहयोग दोनों देशों के बीच शैक्षिक, सांस्कृतिक और धार्मिक कूटनीति के क्षेत्रों में रणनीतिक संबंधों की बुनियाद है।

धर्म और संप्रदाय विश्वविद्यालय के संरक्षक सैयद अबुलहसन नवाब ने इस विश्वविद्यालय की मेजबानी के लिए आभार व्यक्त करते हुए सामाजिक और वैश्विक स्तर पर धर्म की भूमिका को पुनः स्थापित करने के महत्व पर प्रकाश डाला और कहा,ऐसे समय में जब मानव समाज नैतिक, सामाजिक और पर्यावरणीय संकटों का सामना कर रहा है, विभिन्न धर्म अपनी साझा मूल्यों के माध्यम से वैश्विक शांति और न्याय की प्राप्ति के लिए एक नया रास्ता खोल सकते हैं।

उन्होंने आगे कहा,इस्लाम और बौद्ध धर्म की शिक्षाओं में कई समानताएं हैं और यह शैक्षिक, सांस्कृतिक और धार्मिक सहयोग के लिए एक बड़ी क्षमता है।

 

भारत में वली फक़ीह के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन डॉ. अब्दुलमजीद हकीम इलाही ने क़ुम अलमुकद्देसा में भारतीय छात्रों के साथ विचार-विमर्श की बैठक में कहा कि भारत की धरती बड़े-उलेमा और मुज्तहिदीन का गढ़ रही है।

भारत में वली फक़ीह के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन डॉ. अब्दुलमजीद हकीम इलाही ने क़ुम अल-मुकद्देसा में हौज़ा इल्मिया ईरान के प्रमुख आयतुल्लाह अराफ़ी और भारत में रहबर मुअज़म के पूर्व और वर्तमान प्रतिनिधियों की मौजूदगी में भारतीय छात्रों के साथ एक फिक्री बैठक हुई।

उन्होंने पैगंबर मुहम्मद स.ल.व. और उनके पुत्र इमाम जाफ़र सादिक स.ल. की विलादत पर मुबारकबाद पेश की।उन्होंने भारतीय उलेमा, उपस्थित लोगों और विभिन्न सांस्कृतिक संस्थाओं का धन्यवाद करते हुए कहा कि फ़लसफ़ा ने अस्तित्व (वजूद) की तीन प्रकारों को बताया है।

पहली किस्म माद्दी अस्तित्व है, जो सीमित और कमजोर होता है तथा एक समय में केवल एक स्थान पर रह सकता है, जैसे यह दुनिया जहाँ देखने के लिए आंख और चलने के लिए पैर चाहिए।

दूसरी किस्म उजूद मिसाली अस्तित्व है, जो पूरी तरह से मुज्रद नहीं, लेकिन माद्दी समय और स्थान से स्वतंत्र होता है। जैसे सपने में आत्मा का विभिन्न स्थानों पर होना कभी लखनऊ, कभी मुंबई, कभी नजफ़। मरने के बाद भी आत्मा इसी आदर्श दुनिया में रहती है।

तीसरी किस्म अक़्ली अस्तित्व है, जो न समय और न स्थान से बंधा होता है। यह पूर्णता का प्रतीक है और किसी क्रिया के लिए किसी उपकरण या माध्यम की आवश्यकता नहीं होती। इसी तरह का अस्तित्व सैय्यदुश्शोहदा जैसे अवलिया का होता है।

डॉ. हकीम इलाही ने कहा कि यदि इंसान सभी सीमाओं को तोड़कर अपने अस्तित्व को ईश्वर के अस्तित्व से जोड़ दे, तो वह भी विकास के ज़रिए अक़्ली और व्यापक अस्तित्व तक पहुँच सकता है, जो समय और स्थान से परे है।

उन्होंने हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मेंहदी महदवी पूर की सेवाओं की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्होंने पिछले 15 वर्षों में डेढ़ सौ वर्षों के बराबर उल्लेखनीय कार्य किए हैं और आशा जताई कि हम सब भी उनकी राह पर चलने की क्षमता पाएंगे।

उन्होंने भारत के इल्मी गौरव का उल्लेख करते हुए कहा कि जब साहिब जवाहर ने अपनी मशहूर किताब "जवाहर अल-कलाम" की रचना की, तो इसकी तश्रीह और प्रकाशन की अनुमति के लिए भारत भेजा गया था। भारत में ऐसे महान मुज्तहिदीन और उलेमा मौजूद थे जिनकी कब्रें आज भी "कब्रिस्तान ग़ुफ़रान मआब" में मौजूद हैं। लगभग 50 मुज्तहिदीन थे जिनका मुस्लिम जगत में गहरा इल्मी प्रभाव था।

डॉ. हकीम इलाही ने कहा कि भारत का धार्मिक और इल्मी इतिहास अत्यंत शानदार रहा है। बड़े बड़े हौज़ात इल्मिया और उनकी इमारतों के नक़्शे-ओ-निगार देखकर उसकी महानता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। यहाँ तक कि कुछ विषयों पर, जैसे यह बहस कि क्या शब-ए-आशूरा को इमाम हुसैनؑ के खीमे में पानी था या नहीं, भारत में ढाई सौ से अधिक किताबें लिखी गईं।

 

इज़रायल में बंधकों की रिहाई के लिए सक्रिय संगठन ने प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को ग़ज़्ज़ा युद्ध के समाप्त होने में सबसे बड़ी बाधा बताया है। यह प्रतिक्रिया दोहा (कतर) में हुए एक इज़रायली हवाई हमले के बाद आई है، जिसे बंधकों के परिजनों ने संभावित समझौते को नाकाम बनाने की कोशिश करार दिया। 

इज़रायल में बंधकों की रिहाई के लिए सक्रिय संगठन ने प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को ग़ज़्ज़ा युद्ध के समाप्त होने में सबसे बड़ी बाधा बताया है। यह प्रतिक्रिया दोहा (कतर) में हुए एक इज़रायली हवाई हमले के बाद आई है، जिसे बंधकों के परिजनों ने संभावित समझौते को नाकाम बनाने की कोशिश करार दिया। 

प्राप्त जानकारी के अनुसार "बंधक और लापता परिवार संगठन" ने अपने बयान में कहा कि जैसे ही कोई शांति समझौता करीब आता है, नेतन्याहू उसे विफल कर देते हैं। संगठन का मानना है कि नेतन्याहू जानबूझकर युद्ध को खींच रहे हैं ताकि सत्ता में बने रह सकें।

वहीं, नेतन्याहू ने कहा है कि ग़ज़्ज़ा युद्ध का अंत तभी संभव है जब कतर में रह रहे हमास नेताओं को खत्म कर दिया जाए। उन्होंने हमास पर युद्धविराम समझौतों को तोड़ने का आरोप लगाया और कहा कि यही नेता बंधकों की रिहाई में बाधा हैं। परंतु, बंधकों के परिवारों ने इस बयान को नेतन्याहू की विफलता छुपाने की कोशिश बताया और कहा कि अब समय आ गया है कि इन बहानों को खत्म किया जाए और युद्ध को समाप्त कर बंधकों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित की जाए।

 

गाज़ा पट्टी में फिलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय ने घोषणा की है कि इजरायली सेना के हमलों में शहीद होने वालों की संख्या बढ़कर 64,905 हो गई है।

गाज़ा पट्टी में फिलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक नए बयान में पिछले साल 7 अक्टूबर से अब तक के हमलों में हताहतों के नवीनतम आंकड़े जारी किए हैं।

फिलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, 7 अक्टूबर, 2023 से लेकर इस समय तक इजरायली सेना के हमलों के परिणामस्वरूप 64,905 लोग शहीद हो चुके हैं।

साथ ही, इस फिलिस्तीनी चिकित्सा प्राधिकरण ने यह भी कहा कि इस पट्टी में युद्ध शुरू होने के बाद से इजरायली हमलों में घायल होने वालों की कुल संख्या 164,926 हो गई है।

मंत्रालय ने यह भी घोषणा की कि पिछले 24 घंटों में 34 शहीदों के शव अस्पताल लाए गए हैं। इस अवधि में 316 अन्य लोग घायल हुए हैं।

इसके अलावा, 18 मार्च, 2025 से गाजा पर नए सिरे से शुरू किए गए हमलों में भी 12,354 लोग शहीद और 52,885 लोग घायल हुए हैं।अभी भी हज़ारों लोग गाजा पट्टी में लापता हैं और मलबे के नीचे दबे हुए हैं।

सहायता वितरण केंद्रों पर पिछले 24 घंटों में 3 लोग शहीद और 47 अन्य घायल हुए हैं, जिससे इन केंद्रों पर शहीद होने वाले फिलिस्तीनियों की संख्या बढ़कर 2,497 और घायलों की संख्या 18,182 हो गई है।

 

स्पेन की उप प्रधानमंत्री ने कहा है कि गाज़ा में हो रहे अत्याचारों के बाद इजरायल को किसी भी खेल या सांस्कृतिक कार्यक्रम में भाग लेने का अवसर नहीं दिया जाना चाहिए।

स्पेन की उप प्रधानमंत्री योलांडा डियाज़ ने कहा कि इजरायल को किसी भी खेल या सांस्कृतिक आयोजन में भाग लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। उन्होंने फिलिस्तीन समर्थक विरोध प्रदर्शनों का पूरा समर्थन किया, जिसके कारण मैड्रिड में विश्व प्रसिद्ध साइकिल रेस "वुएल्टा" का फाइनल चरण रोकना पड़ा।

योलांडा डियाज़ ने आगे कहा कि स्पेन का समाज गाज़ा में हो रहे नरसंहार को अस्वीकार करता है। खेलों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में इजरायल की भागीदारी को रोकना फिलिस्तीनी लोगों के साथ व्यावहारिक एकजुटता है।

याद रहे कि पिछले दिनों होने वाली इस रेस के दौरान हज़ारों प्रदर्शनकारियों ने इजरायली टीम की मौजूदगी के खिलाफ विरोध करते हुए रास्ता रोक दिया और ज़ायोनी अत्याचारों के खिलाफ नारे लगाए।

सूत्रों के मुताबिक, एक लाख से अधिक लोग विरोध प्रदर्शन में शामिल थे, जबकि एक हज़ार से अधिक पुलिस कर्मियों की तैनाती के बावजूद स्थिति पर काबू नहीं पाया जा सका। जन दबाव के कारण रेस का अंतिम चरण रद्द कर दिया गया, जिसे स्पेन की उप प्रधानमंत्री ने जन शक्ति और सिद्धांतों की जीत बताया।

 

आयतुल्लाह सैयद अली अकबर मूसवी यज़्दी हौज़ा ए इल्मिया क़ुम की प्रमुख धार्मिक और शैक्षिक हस्ती और रहबर-ए मोअज़्ज़म के कार्यालय 'दफ्तर-ए वजूहात' के प्रमुख थे, आज सुबह लंबी इल्मी व तबलीगी सेवाओं के बाद इस दुनिया से रुख़्सत हो गए। उनके निधन की ख़बर से शैक्षिक और धार्मिक हौज़ा के हलक़ों में गहरी दुःख और निराशा की लहर दौड़ गई है।

हौज़ा ए इल्मिया क़ुम की प्रमुख धार्मिक और शैक्षिक हस्ती और रहबर-ए मोअज़्ज़म (सर्वोच्च नेता) के कार्यालय 'दफ़्तर-ए वजूहात' के प्रमुख, आयतुल्लाह सैयद अली अकबर मूसवी यज़्दी आज सुबह लंबी शैक्षिक और धार्मिक सेवाओं के बाद इस दुनिया से रुख़्सत हो गए। उनके निधन की ख़बर से शैक्षिक और हौज़ा के हलक़ों में गहरे दुःख और शोक की लहर दौड़ गई है।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा:

आयतुल्लाह मूसवी यज़्दी का जन्म 1311 फ़ारसी कैलेंडर (1932 ईस्वी) में क़ुम शहर में एक धार्मिक परिवार में हुआ था। उनके पिता, हाजी सैयद अब्दुलवहाब मूसवी बफ़रूई, हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के प्रतिष्ठित शिक्षकों में से एक थे और आयतुल्लाहिल उज़्मा बुरूजर्दी के समय में कुछ अरसे तक उनके शहर के वित्तीय प्रबंधक भी रहे।

प्रारंभिक और माध्यमिक शिक्षा पूरी करने के बाद, 1326 फ़ारसी कैलेंडर (1947 ईस्वी) में उन्होंने हौज़ा ए इल्मिया क़ुम में दाख़िला लिया। प्रारंभिक पाठ्यक्रमों (दरूस) में उन्होंने सैयद सईद निशापुरी, सैयद मुहम्मद बाकिर हरंदी और शेख अबुल क़ासिम नहवी जैसे शिक्षकों से ज्ञान प्राप्त किया। उच्च स्तर (सतह) की शिक्षा में उन्होंने आयतुल्लाह शेख मुर्तज़ा हाएरी और आयतुल्लाह मुहम्मद अली जैसे वरिष्ठ शिक्षकों से विद्या अर्जित की।

दरस-ए ख़ारिज:

उन्होंने फ़िक़्ह (इस्लामी न्यायशास्त्र) और उसूल के उच्च स्तरीय पाठ्यक्रम (दरस-ए ख़ारिज) में लंबे समय तक भाग लिया और आयतुल्लाहिल-उज़्मा बुरूजर्दी, मिर्ज़ा हाशिम आमोली, इमाम ख़ुमैनी और आयतुल्लाह शेख अब्दुन्नबी आराकी से ज्ञान प्राप्त किया। आयतुल्लाह मूसवी यज़्दी को इमाम ख़ुमैनी और अन्य धार्मिक अधिकारियों से इज्तिहाद की अनुमति (इजाज़त-ए इज्तिहाद) प्राप्त हुई, साथ ही आयतुल्लाहिल-उज़्मा बुरूजर्दी, गुलपायगानी, ख़्वांसारी, इमाम ख़ुमैनी और रहबर-ए मोअज़्ज़म से धार्मिक करों (वजूहात-ए शरईया) के प्रबंधन के अधिकार भी प्राप्त हुए।

शिक्षण और सेवाएँ

मरहूम न केवल एक प्रमुख शोधकर्ता और फ़क़ीह  थे, बल्कि कई दशकों तक हौज़ा ए इल्मिया क़ुम में शिक्षण के कर्तव्यों का निर्वहन भी करते रहे। उन्होंने अदबियात से लेकर उच्च स्तरीय फ़िक़्ह और उसूल (ख़ारिज) तक विभिन्न स्तरों पर छात्रों को पढ़ाया। साथ ही, उन्होंने पचास साल तक मस्जिद-ए कामकर, क़ुम में नमाज़ जमात की इमामत का दायित्व भी निभाया।

आयतुल्लाह मूसवी यज़्दी सालों तक दफ़्तर-ए रहबर-ए मोअज़्ज़म में वजूहात-ए शरईया के ज़िम्मेदार रहे और आम मोमिनीन के फ़िक़्ही और शरई मसाइल के जवाब देते रहे।

इल्मी आसार:

उन्होंने कई विद्वतापूर्ण और शोधपूर्ण किताबें लिखीं, जिनमें इमाम ख़ुमैनी के उसूल के दरस-ए ख़ारिज के व्याख्यानों के नोट्स (तक़रीरात), 'किताब अलख़ुम्स' और 'अल-इमामा व अलविलाया फ़िल कुरआन अल-करीम' कुरआन में इमामत और नेतृत्व शामिल हैं। आख़िरी किताब (जलावतनी) के दिनों में आयतुल्लाह मिसबाह यज़्दी, आयतुल्लाह मुज़ाहिरी, आयतुल्लाह मुहम्मदी गिलानी और आयतुल्लाह मुहम्मद यज़्दी के साथ मिलकर लिखी गई थी, जिसमें कुरआन-ए करीम की इमामत और विलायत से संबंधित आयतों का गहन विश्लेषण किया गया है।

ख़िराज-ए अक़ीदत:

आयतुल्लाह मूसवी यज़्दी के निधन पर हौज़ा ए इल्मिया क़ुम और ईरान भर के इल्मी हलक़ों में गहरा दुःख है। मरहूम की आधी सदी तक चलने वाली शिक्षण, शोध और धार्मिक तबलीग़ी सेवाएँ हमेशा याद रखी जाएँगी और तलबा एवं शोधकर्ताओं के लिए मशअल-ए राह बनी रहेंगी।

 

जामिअतुल मुस्तफा के सांस्कृतिक और प्रशिक्षण मामलों के संरक्षक ने कहा,अल्हम्दुलिल्लाह, "इकतीसवां अलमुस्तफा अंतरराष्ट्रीय कुरआनी और हदीसी महोत्सव" आयोजित हो रहा है और यह महोत्सव विश्व इस्लाम में एकता और अहल ए बैत अलैहिस्सलाम के ज्ञान से लगाव का केंद्र है।

जामिअतुल मुस्तफा के सांस्कृतिक और प्रशिक्षण मामलों के संरक्षक और इस फेस्टिवल की नीति निर्धारक परिषद के अध्यक्ष हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद सालेह ने इकतीसवें अलमुस्तफा अंतरराष्ट्रीय कुरआनी और हदीसी फेस्टिवल" के आयोजन के मौके पर आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस महान अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम के उद्देश्यों नीतियों और उपलब्धियों की विस्तार से जानकारी दी।

उन्होंने इस फेस्टिवल के इल्मी और कुरआनी क्षेत्र में बेमिसाल स्थान की ओर इशारा करते हुए कहा, यह फेस्टिवल कुरान, हदीस और दुआ से लगाव बढ़ाने और उसे बढ़ावा देने के उद्देश्य से जामिअतुल मुस्तफा के उपसंस्थानों के छात्रों और स्नातकों के बीच आयोजित किया जाता है।

इसकी विशेषता है कि यह बहु राष्ट्रीयता, विभिन्न क्षेत्रों और व्यापक भौगोलिक क्षेत्र को समेटे हुए एक अनूठा कार्यक्रम है। इस वर्ष का फेस्टिवल दुनिया के 20 से अधिक देशों में एक साथ आयोजित होगा।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद सालेह ने कहा,इस वर्ष के फेस्टिवल को प्रतिभागियों की ओर से जबरदस्त रुचि मिली है। अब तक 688 लोग पंजीकृत हो चुके हैं, जिनमें 378 पुरुष और 310 महिलाएं शामिल हैं, और उम्मीद है कि पंजीकरण की अवधि समाप्त होने तक यह संख्या और बढ़ेगी। पिछले वर्ष के फेस्टिवल में लगभग 19 हजार लोग देश के अंदर और 2369 से अधिक लोग विदेशों से शामिल हुए थे, जो इस कार्यक्रम की व्यापक पहुंच को दर्शाता है।

जामिअतुल मुस्तफा के सांस्कृतिक और प्रशिक्षण मामलों के संरक्षक ने बताया: इस वर्ष के फेस्टिवल की खास विशेषताओं में "नहजुल बलाग़ा" और "सहीफ़ा सज्जादिया" पर विशेष ध्यान शामिल है।

कुरान के हिफ़्ज के साथ-साथ नहजुल बलाग़ा के लिए 7 और सहीफ़ा सज्जादिया के लिए भी 7 विशेष विभाग बनाए गए हैं। इसी तरह "विषयगत कुरान हिफ़्ज़", "काक दुआ और ज़ियारत का हिफ़्ज़", और "कुरानी और हदीसी खिताबत" (फारसी, अरबी, अंग्रेजी और उर्दू में) को भी शामिल किया गया है। कुरानी और हदीसी खुत्बात का विषय "जिहाद और मुक़ावमत" रखा गया है, जो विश्व इस्लाम की प्राथमिकताओं में से एक है।

उन्होंने अंत में कहा, यह भी तय किया गया है कि फेस्टिवल के समापन समारोह में चयनित प्रतिभागियों को सम्मानित किया जाएगा, साथ ही कुरान के सेवकों, उत्कृष्ट संगठनों, कुरानी केंद्रों, दारुल कुरान और प्रमुख परिवारों की भी प्रशंसा की जाएगी।

 

सामाजिक समीकरणों में स्त्री और पुरुष का स्थान और सामाजिक परिवर्तन में प्रत्येक की भूमिका, मानव चिंतन की प्राचीन चुनौतियों में से एक रही है।

इतिहास भर में, स्त्री और पुरुष की स्थिति के प्रति व्यक्तिगत और सामाजिक दृष्टिकोण में उल्लेखनीय परिवर्तन हुए हैं जो कभी-कभी लिंगों के बीच तीव्र टकराव तक पहुँच गए। जिस समाज में इस्लाम प्रकट हुआ वहाँ महिलाएँ अनेक बुनियादी मानवीय अधिकारों से वंचित थीं। अरब की अज्ञानता के युग में महिलाओं की स्थिति अत्यंत अनुचित थी और उन्हें वस्तु और सामान के रूप में देखा जाता था। इस लेख में पार्स टुडे ने इस्लाम में महिलाओं की स्थिति पर एक नज़र डाली है।

पूर्ण मानवीय आत्मा से संपन्न

 इस्लाम ने स्त्री को भी पुरुष की तरह पूर्ण मानवीय आत्मा, इच्छाशक्ति और स्वतंत्रता से युक्त माना है और उसे उसी मार्ग पर देखा है जो सृष्टि का उद्देश्य है अर्थात् पूर्णता की ओर अग्रसर होना। इसलिए दोनों को एक ही पंक्ति में रखकर «या أَیهَا النَّاسُ» (हे लोगों) और «یا أَیهَا الَّذِینَ آمَنُوا» (हे ईमान लाने वालों) जैसे संबोधनों से पुकारा है और उनके लिए नैतिक, शैक्षिक और वैज्ञानिक कार्यक्रमों को अनिवार्य किया है।

 ईश्वर ने क़ुरआन में इस प्रकार की आयतों के माध्यम से, जैसे:وَ مَنْ عَمِلَ صَالِحًا مِنْ ذَکَرٍ أَوْ أُنْثَی وَ هُوَ مُؤْمِنٌ فَأُوْلَئِک یدْخُلُونَ الْجَنَّةَ»  और जिसने भी कोई नेक कार्य किया – चाहे वह पुरुष हो या महिला – जबकि वह ईमान वाला हो, तो वे लोग जन्नत में प्रवेश करेंगे और उन्हें बिना हिसाब रोज़ी दी जाएगी)दोनों लिंगों से पूर्ण सुख प्राप्ति का वादा किया है।

 और आयत:

«مَنْ عَمِلَ صَالِحًا مِنْ ذَکَرٍ أَوْ أُنْثَی وَ هُوَ مُؤْمِنٌ فَلَنُحْیِیَنَّهُ حَیَاةً طَیِّبَةً وَ لَنَجْزِیَنَّهُمْ أَجْرَهُمْ بِأَحْسَنِ مَا کَانُوا یعْمَلُونَ» जो कोई भी नेक कार्य करे – चाहे वह पुरुष हो या महिला – जबकि वह ईमान वाला हो, तो हम उसे एक पवित्र और स्वच्छ जीवन प्रदान करेंगे और हम उन्हें उनके श्रेष्ठतम कर्मों के अनुसार प्रतिफल देंगे।

 यह स्पष्ट करती है कि स्त्री और पुरुष दोनों, इस्लामी कार्यक्रमों के पालन से भौतिक और आध्यात्मिक पूर्णता प्राप्त कर सकते हैं और एक पवित्र, स्वच्छ और शांति से परिपूर्ण जीवन की ओर बढ़ सकते हैं।

 स्वतंत्र और आज़ाद

 इस्लाम स्त्री को भी पुरुष की तरह पूर्ण अर्थों में स्वतंत्र और आज़ाद मानता है। क़ुरआन भी इस स्वतंत्रता को सभी व्यक्तियों स्त्री और पुरुष के लिए आयतों जैसे:

«کُلُّ نَفْسٍ بِمَا کَسَبَتْ رَهِینَةٌ»  हर व्यक्ति अपने कर्मों के बंधन में है

और  مَنْ عَمِلَ صَالِحًا فَلِیْنَفْسِهِ وَ مَنْ أَسَاءَ فَعَلَیْهَसूरह फ़ुस्सिलत, आयत 46 जो भी नेक काम करता है, उसका लाभ स्वयं उसे ही मिलेगा और जो भी बुरा काम करता है, उसका नुकसान भी उसी को होगा के माध्यम से स्पष्ट करता है।

 दूसरी ओर चूँकि स्वतंत्रता, इच्छा और चयन की शर्त है, इस्लाम ने इस स्वतंत्रता को स्त्री के सभी आर्थिक अधिकारों में मान्यता दी है और स्त्री के लिए हर प्रकार के वित्तीय लेन-देन को वैध माना है तथा उसे अपनी आय और संपत्ति की मालकिन घोषित किया है।

 सूरह निसा, आयत 32 में भी आया है:

لِلرِّجَالِ نَصِیبٌ مِّمَّا اکتَسَبُوا وَ لِلنِّسَاءِ نَصِیبٌ مِّمَّا اکتَسَبْنَ  पुरुषों के लिए उनके अर्जित किए हुए का हिस्सा है और स्त्रियों के लिए भी उनके अर्जित किए हुए का हिस्सा है।

 इक्तिसाब शब्द, कसब के विपरीत, उस संपत्ति के अर्जन के लिए प्रयोग होता है जिसका परिणाम अर्जन करने वाले व्यक्ति से संबंधित होता है। साथ ही इस सामान्य नियम को ध्यान में रखते हुए:  الناس مسلطون علی اموالهم (सब लोग अपनी संपत्ति पर अधिकार रखते हैं यह स्पष्ट हो जाता है कि इस्लाम ने स्त्री की आर्थिक स्वतंत्रता का किस प्रकार सम्मान किया है और स्त्री-पुरुष के बीच कोई भेद नहीं किया है।

 कार्य विभाजन

इस्लाम स्त्री और पुरुष को मानवीय दृष्टि से समान मानता है, लेकिन सामाजिक कर्तव्यों में उनके बीच कुछ भिन्नताएँ मौजूद हैं। ये भिन्नताएँ किसी प्रकार का भेदभाव या कानूनी असमानता नहीं हैं, बल्कि इनका उद्देश्य कार्यों का ऐसा विभाजन करना है जिससे प्रत्येक अपने कर्तव्यों को सर्वोत्तम रूप में निभा सके। ये भिन्नताएँ वास्तव में समाज में दोनों लिंगों के सामाजिक और प्राकृतिक कार्यों के अनुकूलन के लिए हैं।

अंततः क़ुरआन स्त्री के स्थान को एक ऐसे इंसान के रूप में देखता है जिसके अपने स्वतंत्र अधिकार और कर्तव्य हैं और यह ज़ोर देता है कि ईश्वर के दृष्टिकोण से मानवीय मूल्य में स्त्री और पुरुष के बीच कोई अंतर नहीं है। इसलिए, मनुष्यों की श्रेष्ठता का मापदंड ईश्वर के समक्ष केवल तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय और उत्तम आचरण है, न कि लिंग।

इस्लामी क्रांति के नेता ने ज़ोर देकर कहा है कि दुश्मन पर भरोसा मत करो।

ईरान की इस्लामी क्रांति के नेता हज़रत आयतुल्लाह इमाम ख़ामेनेई  ने 1399 हिजरी-शम्सी में इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (आईआरजीसी) की क़ुद्स फ़ोर्स के पूर्व कमांडर शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी की शहादत की बरसी के अवसर पर ज़िम्मेदार व्यक्तियों से मुलाक़ात में कहा: दुश्मन पर भरोसा मत करो  यह मेरी अंतिम और निश्चित सिफ़ारिश है। आपने देखा कि ट्रम्प का अमेरिका और ओबामा का अमेरिका आपसे कैसे पेश आया। बेशक, केवल ट्रम्प ही नहीं जिसने ईरानी राष्ट्र के साथ बुरा किया, बल्कि तीन यूरोपीय देश इंग्लैंड, फ़्रांस और जर्मनी – ने भी इसी तरह बुरा व्यवहार किया। इन तीन यूरोपीय देशों ने चरम स्तर की बदअमली की और ईरानी राष्ट्र के सामने नीचता,  दोगलापन और कपट दिखाया।

 परमाणु समझौते के पक्षकारों ने अपने वादों पर अमल नहीं किया

 इसी संदर्भ में इमाम ख़ामेनेई ने ईदे नौरोज़ के अवसर पर अपने भाषण में ईरानी राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा था कि हमने परमाणु समझौते के मामले में जल्दबाज़ी की हमें जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए थी उनके सारे काम काग़ज़ पर थे  हमारे सारे काम ज़मीन पर थे हमने जल्दबाज़ी की और अपने काम पूरे कर दिए  लेकिन उन्होंने अपने काम पूरे नहीं किए, अपने वादों पर अमल नहीं किया। बेशक, यह एक बहुत अहम मसला है कि हमें इस का ध्यान रखना चाहिए कि हमारा सब्र और धैर्य बहुत है और हम अपना काम कर रहे हैं हम इनके काम पर भरोसा नहीं करते इनके वादों का हमारे लिए कोई मूल्य नहीं है।

दुश्मन के सामने झुकना नहीं और उस पर भरोसा न करना

इसी तरह इस्लामी क्रांति के नेता ने ईदे मबअस अर्थात पैग़म्बर की पैग़म्बरी की घोषणा के अवसर पर टेलीविज़न भाषण में भी ज़ोर देकर कहा: हमें यह जानना चाहिए कि इस भारी अमानत के साथ, जो इस्लामी क्रांति ने हमारे कंधों पर और ईरानी राष्ट्र के कंधों पर रखी है और उनके सामने जो सुख और मुक्ति का मार्ग खोला है, हमारी ज़िम्मेदारियाँ हैं इन ज़िम्मेदारियों में से एक है – हक़ और सब्र की ताकीद, दुश्मन की पहचान, दुश्मन के सामने डटे रहना, दुश्मन के सामने समर्पण न करना और इस धूर्त दुश्मन पर भरोसा न करना।

फ़िलिस्तीनियों का असली दुश्मन अमेरिका, इंग्लैंड और यहुदियों के दुष्ट सत्ताधारी हैं

इसी संदर्भ में इस्लामी क्रांति के नेता ने विश्व क़ुद्स दिवस के मौक़े पर टेलीविजन भाषण में कहा: फ़िलिस्तीनियों की एकता के दुश्मन, ज़ायोनी शासन, अमेरिका और कुछ अन्य राजनीतिक शक्तियाँ हैं मगर यदि फ़िलिस्तीनी समाज के भीतर की एकता न टूटे तो बाहरी दुश्मन कुछ भी कर नहीं पाएँगे। इस एकता का केन्द्र आंतरिक जिहाद और दुश्मनों पर भरोसा न करना होना चाहिए। फ़िलिस्तीनियों का असली दुश्मन — यानी अमेरिका और इंग्लैंड और दुष्ट ज़ायोनी शासन को फ़िलिस्तीनियों की नीतियों का सहारा व आधार नहीं बनाना चाहिए। फ़िलिस्तीनियों को चाहे वे ग़ाज़ा में हों, क़ुद्स और पश्चिमी किनारे में हों, 1948 के इलाक़ों में हों या यहाँ तक कि शरणार्थी शिविरों में हों — सब एक इकाई बनाते हैं और उन्हें एकदूसरे से जुड़े रहने की रणनीति अपनानी चाहिए हर हिस्सा दूसरे हिस्सों की रक्षा करे और उन पर दबाव पड़ने पर अपने पास उपलब्ध उपकरणों का इस्तेमाल करे।

ईरान के संयुक्त राष्ट्र में स्थायी प्रतिनिधि और दूत अमीर सईद एरवानी ने कहा कि ईरान दृढ़ता से कतर सरकार के खिलाफ आतंकवादी हमलों और आक्रमणों की निंदा करता है और अंतर्राष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के तहत कतर के वैध रक्षा अधिकार का समर्थन करता है।

अमीर सईद एरवानी ने गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आपातकालीन बैठक में अपने बयान में कहा कि हम एक बार फिर से इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) के सिद्धांतपूर्ण और अडिग रुख की पुष्टि करते हैं, जो इसके चार्टर में निहित है और जो शिखर सम्मेलन और विदेश मंत्रियों की बैठकों के प्रस्तावों द्वारा मजबूत किया गया है। इस रुख के अनुसार, सदस्य देशों की संप्रभुता और सुरक्षा पर किसी भी हमले को सख्ती से खारिज किया गया है।

 एरवानी ने यह भी बताया कि इस रुख की नवीनतम अभिव्यक्ति 22 जून 2025 को इस्तांबुल में इस्लामिक सहयोग संगठन के विदेश मंत्रियों की 51वीं बैठक में पारित प्रस्ताव है, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका और इज़राइल के हमलों की कड़ी निंदा की गई और सुरक्षा परिषद से तुरंत इन खतरों से निपटने के लिए कदम उठाने का आह्वान किया गया।

एरवानी ने कहा कि ईरान अपने स्पष्ट और दृढ़ रुख में, इज़राइल द्वारा कतर पर किए गए आतंकवादी हमलों की निंदा करता है, जिसमें कई फिलिस्तीनी और क़तरी नागरिक शहीद और घायल हुए हैं, और ईरान कतर सरकार के साथ अपनी एकजुटता और समर्थन की पुष्टि करता है।

 उन्होंने यह भी कहा कि ईरान कतर के वैध रक्षा अधिकार का पूरी तरह से समर्थन करता है, जो अंतर्राष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत है, और कतर को अपने नागरिकों, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा के लिए सभी आवश्यक राजनीतिक, कूटनीतिक और कानूनी उपाय करने का अधिकार देता है।

 एरवानी ने इज़राइल द्वारा कतर पर किए गए आक्रमण को संयुक्त राष्ट्र के चार्टर और अंतर्राष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों का स्पष्ट उल्लंघन बताया और कहा कि यह इज़राइल के निरंतर नरसंहार और आक्रमणों की श्रृंखला का हिस्सा है, जो अब कतर को भी प्रभावित कर रहा है।

 एरवानी ने आगे कहा कि सुरक्षा परिषद की निष्क्रियता ने इज़राइल को अपनी आक्रामकता जारी रखने के लिए उत्साहित किया है, और यह स्थिति वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर सुरक्षा परिषद अब भी कार्रवाई नहीं करता है, तो इज़राइल अपनी आक्रामक गतिविधियों को और बढ़ा सकता है और यह और देशों को अपने हमलों का शिकार बना सकता है।

 ईरान के प्रतिनिधि ने सुरक्षा परिषद से अपील की कि वे अपनी जिम्मेदारी निभाएं और इज़राइल को उसके अपराधों के लिए जवाबदेह ठहराएं।