رضوی
ईरान और एजेंसी के बीच समझौते पर हस्ताक्षर, इराक़ची
ईरान के विदेश मंत्री और अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के महानिदेशक ने ईरान और एजेंसी के बीच सहयोग को फिर से शुरू करने के समझौते पर हस्ताक्षर किए।
ईरान के विदेश मंत्री सैयद अब्बास इराक़ची ने जो मंगलवार सुबह मिस्र की राजधानी काहिरा पहुंचे थे, पहले मिस्र के विदेश मंत्री और IAEA के महानिदेशक राफाएल ग्रोसी के साथ त्रिपक्षीय बैठक की। इसके बाद उन्होंने ग्रोसी के साथ दो घंटे की बंद कमरे में वार्ता की। इसके बाद इराक़ची काहिरा के यूनियन पैलेस गए और मिस्र के राष्ट्रपति से मिले और चर्चा की।
आईआरआईबी के हवाले से बताया कि इराक़ची और ग्रोसी ने मिस्र के विदेश मंत्री बद्र अब्दुलआती की उपस्थिति में ईरान और IAEA के बीच सहयोग पुनः शुरू करने के समझौते पर हस्ताक्षर किए।
शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा के लिए ईरान के वैध अधिकारों की गारंटी
ईरान के विदेश मंत्री ने मिस्र के विदेश मंत्री बद्र अब्दुलआती और अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के महानिदेशक राफाएल ग्रोसी के साथ संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में ईरान और एजेंसी के बीच वार्ता की प्रक्रिया का उल्लेख करते हुए कहा: आज मैंने और IAEA के महानिदेशक ने ईरान की परमाणु निगरानी प्रतिबद्धताओं के क्रियान्वयन के तरीके पर अंतिम दौर की वार्ता आयोजित की और इसे सफलतापूर्वक अंतिम रूप दिया। यह वार्ता उन घटनाओं के मद्देनज़र हुई जो ईरान की परमाणु सुविधाओं के खिलाफ गैरकानूनी कार्यों से उत्पन्न हुई थीं।
ईरान के विदेश मंत्री ने कहा कि सहमति से निर्धारित व्यावहारिक कदम पूरी तरह से ईरानी संसद के कानूनों के अनुरूप हैं यह ईरान की चिंताओं का समाधान करता है और सहयोग जारी रखने के लिए एक रूपरेखा प्रदान करता है। उन्होंने कहा कि हमने जो किया है, वह न केवल हमें शांतिपूर्ण परमाणु ऊर्जा उपयोग के वैध अधिकारों की गारंटी देता है बल्कि एजेंसी के साथ सहयोग को एक सहमति रूपरेखा के तहत बनाए रखता है। यह समझौता एक व्यावहारिक तंत्र स्थापित करता है जो ईरान की विशेष सुरक्षा स्थितियों और एजेंसी की तकनीकी आवश्यकताओं दोनों को प्रतिबिंबित करता है।
इराक़ची ने यह भी कहा: “हम क़तर में ज़ायोनी शासन द्वारा किए गए आतंकवादी और आक्रामक हमले तीव्र निंदा करते हैं और फ़िलिस्तीनी जनता के साथ-साथ क़तर सरकार के प्रति अपनी पूर्ण एकजुटता व्यक्त करते हैं जिसकी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का स्पष्ट रूप से इज़राइल द्वारा उल्लंघन किया गया।
ग्रोसी: ईरान और एजेंसी का समझौता सही दिशा में एक क़दम है
अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के महानिदेशक राफाएल ग्रोसी ने ईरान के साथ तकनीकी निरीक्षणों को पुनः शुरू करने के समझौते के बाद कहा: यह सही दिशा में एक कदम है जो कूटनीति और स्थिरता के लिए रास्ता खोलता है।
उन्होंने बताया कि ईरान और एजेंसी के सहयोग को अमेरिका और ज़ायोनी शासन द्वारा ईरान की शांतिपूर्ण परमाणु सुविधाओं पर किए गए गैरकानूनी हमलों के बाद निलंबित कर दिया गया था।
इस्लामी दुनिया एकजुट होकर ज़ायोनी शासन के ख़िलाफ़ क़दम उठाए
ईरान के विदेश मंत्री ने मंगलवार को क़तर पर ज़ायोनी शासन के हमले के जवाब में कहा कि इस शासन के अहंकारी व्यवहार का निर्णायक मुकाबला करने का एकमात्र तरीका इस्लामी दुनिया का एकजुट और समन्वित क़दम है।
इरना: सैयद अब्बास इराक़ची ने मंगलवार रात सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर लिखा: ज़ायोनी शासन ने ऐसा दुष्टतापूर्ण कार्य किया है जिसकी कल्पना ईरान कभी भी नहीं कर सकता: क़तर के लोगों और सरकार पर हमला।
इराक़ची ने कहा कि ईरान अपने क़तरी और फ़िलिस्तीनी भाइयों के साथ खड़ा है और इस गैरकानूनी हमले की जो गैरसैन्य क्षेत्रों में किया गया, जहां क़तर सरकार के आम नागरिक और मेहमान थे, कड़ी निंदा करता है।
विदेश मंत्री ने कहा कि इस निंदनीय हमले में निर्दोष क़तरी नागरिक और फ़िलिस्तीनी लोगों की शहादत पर उन्हें शोक है और कई अन्य लोग भी घायल हुए हैं। इराक़ची ने जोर देकर कहा कि ज़ायोनी शासन के अनियंत्रित व्यवहार का निर्णायक मुकाबला करने का एकमात्र तरीका इस्लामी दुनिया का एकजुट और समन्वित कदम उठाना है। ईरान अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के खिलाफ खतरों से निपटने के लिए सहयोग बढ़ाने के लिए पूरी तरह तैयार है।
हम वैश्विक बेड़े "समूद" के साथ ग़ाज़ा क्यों जा रहे हैं?
जार्ड सैक्स और ज़ोकिसवा वैनर जो कि केप टाउन में रहने वाले लेखक और सांस्कृतिक सक्रियकर्मी हैं, ने अल जज़ीरा में हम वैश्विक समूद बेड़े के साथ ग़ाज़ा क्यों जा रहे हैं? शीर्षक से एक लेख में लिखा: हम आशा बनाए रखने के लिए समुद्री यात्रा कर रहे हैं। आशा खो देने और ग़ाज़ा के लोगों से निराश हो जाने का अर्थ उन्हें एक दुष्ट शासन के सामने समर्पित कर देना है।
“जार्ड सैक्स” और “ज़ोकिसवा वैनर” ने अल जज़ीरा में अपने लेख में यह भी बताया कि पिछले 23 महीनों में हमने देखा कि इस्राएल का नस्लभेदी शासन दुनिया के कुछ सबसे शक्तिशाली देशों के समर्थन से, ग़ाज़ा के लोगों की बुनियादी आवश्यकताएं जैसे भोजन, दवा, आश्रय, स्वतंत्र गतिशीलता और पानी छीन रहा है। हम और दुनिया भर के काफी लोग विरोध कर चुके हैं, प्रतिबंध लगाए हैं और ग़ाज़ा की घेराबंदी समाप्त करने के लिए गंभीर कार्रवाई की मांग की है लेकिन ये प्रयास पर्याप्त नहीं रहे हैं।
वैश्विक समूद बेड़ा नागरिक मानवीय प्रयासों का सबसे बड़ा मिशन है, जिसका उद्देश्य ग़ाज़ा की घेराबंदी को तोड़ना और वहां के लोगों तक आवश्यक सहायता पहुंचाना है। यह समुद्री बेड़ा दुनिया भर के सक्रियकर्मी, डॉक्टर, कलाकार, धर्मगुरु और वकीलों को शामिल करता है, जो ग़ाज़ा में मानवतावादी संकट का सामना करने के लिए उस पट्टी की ओर बढ़ रहे हैं।
दक्षिण अफ़्रीका की प्रतिनिधि टीम भी पूरे देश से और विभिन्न पृष्ठभूमियों से इस अभियान में शामिल हुई है। इस बेड़े को विशेष रूप से अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का समर्थन प्राप्त है जिसने अपने अस्थायी आदेश में इस्राएल से कहा है कि वह ग़ाज़ा तक मानवीय सहायता पहुँचाए। इसके बावजूद, इस्राएल ने अब तक इन आदेशों का पालन नहीं किया है।
9 जून को इस्राइली बलों ने “मेडलीन” नामक जहाज़ को, जो मानवीय सहायता ले जा रहा था, अंतरराष्ट्रीय पानी में रोक लिया और उसके बाद “हिंदाला” नामक दूसरे जहाज़ को भी जब्त किया। ये कदम मानवाधिकारों के उल्लंघन और युद्ध अपराधों का संकेत देते हैं, जिन्हें ध्यान में रखने और कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
उन लोगों के जवाब में जो पूछते हैं कि जहाँ दूसरे असफल हुए, वहां हम सफल कैसे होंगे, यह कहा जा सकता है कि यह अभियान दक्षिण अफ़्रीका में रंगभेद (अपार्थाइड) के खिलाफ संघर्ष की उसी राह को जारी रखने जैसा है। वैश्विक एकजुटता और सरकारों पर डाले गए दबाव ने अंततः रंगभेद शासन को समाप्त किया। हम इसी अनुभव का उपयोग ग़ाज़ा की घेराबंदी को तोड़ने के लिए कर रहे हैं।
हालांकि कई देश इस्राइल के खिलाफ प्रतिबंध लगाने में सक्षम हैं, लेकिन अब तक कोई गंभीर और ठोस कार्रवाई नहीं हुई है जबकि दुनिया के कई देश अभी भी इस्राइली शासन का समर्थन कर रहे हैं।
वैश्विक “समूद” बेड़ा केवल एक प्रतीकात्मक कार्रवाई नहीं है, बल्कि यह न्याय और मानवाधिकारों के लिए वैश्विक आंदोलन का हिस्सा है। आज 40 से अधिक देशों के दर्जनों लोग ग़ाज़ा की ओर बढ़ रहे हैं। यह कदम दुनिया भर के लोगों की अन्याय और अपराध के खिलाफ एकजुटता को दर्शाता है। हम आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ रहे हैं क्योंकि हम जानते हैं कि हमारी लड़ाई न्यायपूर्ण है।
यह मानवीय मिशन, जिसे दुनिया भर के सैकड़ों ईमानदार और संवेदनशील लोग चला रहे हैं, इस बात पर जोर देता है कि हम मौन नहीं रह सकते और हमें इस्राइल के अपराधों को उजागर करने और ग़ाज़ा की घेराबंदी को तोड़ने के लिए कदम उठाना चाहिए। दक्षिण अफ़्रीका के लोगों की इस अभियान के प्रति एकजुटता, आशा और न्याय की दृढ़ता का प्रतीक है। जैसा कि कोलंबिया के राष्ट्रपति गुस्तावो पेट्रो ने बेड़े को लिखे पत्र में कहा “शांति कोई आदर्श नगर नहीं है, बल्कि एक कर्तव्य है।”
इसी संदर्भ में, दक्षिण अफ़्रीका में रंगभेद के खिलाफ संघर्ष के दिवंगत नेता नेल्सन मंडेला के पोते, मंडेला मंडेला, ने भी कहा कि इस्राइली शासन के कब्जे में फिलिस्तीनियों का जीवन उस सब कुछ से भी बदतर है जो दक्षिण अफ़्रीका में काले लोगों ने रंगभेद के दौरान अनुभव किया। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से उनसे सहायता करने का अनुरोध किया।
दोहा में कई विस्फोटों की आवाज़, हमास के वरिष्ठ सदस्य आतंकवादी हमले का निशाना बने
रॉयटर्स ने क़तर की राजधानी दोहा में कई विस्फोटों की ख़बर दी है।
रॉयटर्स ने रिपोर्ट किया है कि दोहा में 12 से 14 विस्फोटों की आवाज़ सुनी गई है। इस रिपोर्ट के अनुसार ज़ायोनी शासन के एक अधिकारी ने इस शासन के चैनल 12 को बताया कि दोहा में हुए विस्फोट हमास आंदोलन के अधिकारियों की हत्या के लिए किये गये थे।
इज़राइली रेडियो ने दावा किया कि दोहा में हुए हमलों में हमास की वार्ता टीम के एक वरिष्ठ सदस्य को निशाना बनाया गया है। एक्सियोस ने भी घोषणा की कि दोहा के विस्फोट, हमास नेताओं की हत्या के लिए इज़राइल के अभियान का परिणाम थे।
प्राप्त सूचनाओं के अनुसार मुख्य लक्ष्य फ़िलिस्तीनी इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हमास के वरिष्ठ सदस्य खलील अल-हय्या थे। क़तर की राजधानी दोहा में हमास के राजनीतिक दफ़्तर से धुएँ के गुबार उठते देखे गए।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार इज़राइल ने दोहा में हमास के दफ़्तरों पर 10 से अधिक हवाई हमले किए हैं।
रसूले इस्लाम (स.अ.) और आपका सादा जीवन
पैग़म्बर हज़रत मुहम्मदे मुस्तफ़ा (स.अ.व.स) जिनको अल्लाह ने सभी मुसलमानों के लिए उस्वतुल हस्ना (आइडियल) बनाकर भेजा है और हम सब की ज़िम्मेदारी है कि पैग़म्बरे अकरम (स) की सीरत और उनके जीवन को आइडियल बनाते हुए उस पर अमल करें ताकि हमारा जीवन कामयाब हो सकें।
हम इस लेख में पैग़म्बर (स) के साधारण जीवन की कुछ मिसालों को शिया और सुन्नी किताबों से पेश कर रहे हैं ताकि सभी मुसलमान पैग़म्बर (स) की रोज़ाना की ज़िंदगी को देखते हुए अपनी ज़िंदगी को उसी तरह बना सकें।
सबसे पहले तो इस्लाम में साधारण जीवन किसे कहते हैं इसको समझना होगा। इस्लाम की निगाह में साधारण जीवन और सादा ज़िंदगी का मतलब है दुनिया की चमक धमक से मोहित होकर उसके पीछे न भागे और दुनिया, दौलत और दुनिया के पदों को हासिल करने के लिए ही सारी कोशिश न हो, ऐसा नहीं है कि इस्लाम ने पैसा कमाने या अच्छा जीवन बिताने पर रोक लगाई है, बल्कि आप ख़ूब कमाइये अच्छा जीवन बिताइये लेकिन साथ साथ अल्लाह के हुक्म पर भी अमल कीजिए और उसके ग़रीब बंदों का भी ख़याल कीजिए।
आप (स) का खाना पीना
हज़रत उमर का बयान है कि एक दिन मैं पैग़म्बरे इस्लाम (स) से मिलने गया देखा आप एक बोरी पर लेटे आराम कर रहे हैं और आप का खाना भी जौ की रोटी ही हुआ करती थी, मैं आपको बोरी पर लेटे हुए देखकर रोने लगा, पैग़म्बर (स) ने पूछा: ऐ उमर! क्यों रो रहे हो? मैंने कहा: या रसूल अल्लाह! (स) मैं कैसे न रोऊं, आप अल्लाह के ख़ास बंदे होकर बोरी पर लेटते हैं और जौ की रोटी खाते हैं जबकि ख़ुसरू और क़ैसर (दोनों ईरानी बादशाह थे) अनेक तरह की नेमतें और खाने खाते, नर्म बिस्तर पर सोते। पैग़म्बर (स) ने मुझ से कहा कि ऐ उमर! क्या तुम राज़ी नहीं हो कि वह लोग दुनिया के मालिक रहें और आख़ेरत पर हमारा अधिकार रहे, मैं उनके जवाब से सहमति जताते हुए चुप हो गया। (सुननुल कुबरा, बैहक़ी, जिल्द 7, पेज 46, सहीह इब्ने हब्बान, जिल्द 9, पेज 497)
पैग़म्बर (स) के खाने के बारे में बहुत सारी हदीसें बयान हुई हैं, जैसे यह कि आपने पूरे जीवन में कभी भी तीन रात लगातार भर पेट खाना नहीं खाया। (अल-एहतजाज तबरसी, जिल्द 1, पेज 335, सुननुल कुबरा, जिल्द 2, पेज 150)
कभी कभी तो तीन महीने गुज़र जाते थे आपके घर खाना पकाने के लिए चूल्हा तक नहीं जलता था क्योंकि अधिकतर आपका खाना खजूर और पानी हुआ करता था और कभी कभी आपके पड़ोसी आपके लिए भेड़ का दूध भेज देते थे वही आपका खाना होता था। (तबक़ातुल कुबरा, जिल्द 1, पेज 307, सुननुल कुबरा, जिल्द 7, पेज 47)
कुछ रिवायतों में इस तरह भी नक़्ल हुआ है कि आप लगातार दो दिन जौ की रोटी भी नहीं खाते थे। (मुसनदे अहमद इब्ने हंबल, जिल्द 6, पेज 97, अल-बिदाया वल-निहाया, इब्ने कसीर, जिल्द 6, पेज 58)
अनस इब्ने मालिक से रिवायत नक़्ल हुई है कि एक बार हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.अ) आपके लिए रोटी लेकर आईं, आपने पूछा बेटी क्या लाई हो? हज़रत ज़हरा (स.अ) ने फ़रमाया: बाबा रोटी बनाई थी दिल नहीं माना आपके लिए भी ले आई, आपने फ़रमाया बेटी तीन दिन बाद आज रोटी खाऊंगा। (तबक़ातुल कुबरा, इब्ने असाकिर, जिल्द 4, पेज 122)
यह रिवायत भी अनस से नक़्ल हुई है कि मेहमान के अलावा कभी भी आपके खाने में रोटी और गोश्त एक साथ नहीं देखा गया। (तबक़ातुल कुबरा, जिल्द 1, पेज 404, सहीह इब्ने हब्बान, जिल्द 14, पेज 274)
अबू अमामा से नक़्ल है कि कभी भी पैग़म्बर (स) के दस्तरख़ान से रोटी का एक भी टुकड़ा बचा हुआ नहीं देखा गया। (वसाएलुश-शिया, हुर्रे आमुली, जिल्द 5, पेज 54, अल-नवादिर, फ़ज़्लुल्लाह रावंदी, पेज 152)
आप (स.अ) का लिबास
पैग़म्बर (स) कपड़े पहनने में भी सादगी का ध्यान रखते थे, आप कभी पैवंद लगे कपड़े भी पहनते थे। (अमाली, शैख़ सदूक़, पेज 130, मकारिमुल अख़लाक़, पेज 115) इसी तरह कभी कभी आपको ऊन के मामूली कपड़े पहने भी देखा गया। (तबक़ातुल कुबरा, जिल्द 1, पेज 456, मीज़ानुल एतदाल, जिल्द 3, पेज 128) अनस इब्ने मालिक से रिवायत है कि रोम के बादशाह ने एक बड़ी क़ीमती रिदा आपको तोहफ़े के रूप में भेजी, पैग़म्बर (स) उसको पहनकर जब लोगों के बीच आए तो लोगों ने पूछा, ऐ रसूले ख़ुदा! (स) क्या यह रिदा आसमान से आई है? आपने फ़रमाया: तुम लोगों को यह रिदा देखकर आश्चर्य हो रहा है जबकि ख़ुदा की क़सम! जन्नत में साद इब्ने मआज़ का रूमाल इस से ज़ियादा क़ीमती है, फिर आपने वह रिदा जाफ़र इब्ने अबी तालिब को देकर रोम के बादशाह को वापस भेज दी। (सहीह बुख़ारी, जिल्द 7, पेज 28, तबक़ातुल कुबरा, जिल्द 1, पेज 457) आप अपने सोने के लिए जिस बिस्तर का प्रयोग करते थे वह खजूर के पेड़ की छाल से बना हुआ था (तारीख़े दमिश्क़, जिल्द 4, पेज 105)
हज़रत आयेशा से रिवायत है कि एक दिन किसी अंसार की बीवी किसी काम से पैग़म्बर (स) के घर आई, उसने मेरे घर में पैग़म्बर (स) का बिस्तर देखा और जब वापस गई तो उसने ऊन से बने बिस्तर को आपके लिए भेजवाया, पैग़म्बर (स) जब घर आए तो उन्होंने उस बिस्तर के बारे में पूछा, मैंने बताया अंसार के घराने की एक औरत ने आपके मामूली बिस्तर को देखने के बाद यह ऊनी बिस्तर भेजा है, आपने उसी समय कहा कि इसको वापस करवा दो, फिर मुझ से फ़रमाया कि अगर मैं चाहता तो अल्लाह सोने और चांदी के पहाड़ को मेरे क़ब्ज़े में दे देता। (तबक़ातुल कुबरा, जिल्द 1, पेज 465, सीरए हलबी, जिल्द 3, पेज 454)
एक और रिवायत में है कि कभी कभी पैग़म्बर (स) रिदा बिछाकर ही सोते थे और अगर कोई चाहे उसकी जगह कुछ और बिछा दे तो आप मना करते थे। (तबक़ातुल कुबरा, जिल्द 1, पेज 467, अल-बिदाया वल-निहाया, जिल्द 6, पेज 56)
अब्दुल्लाह इब्ने मसऊद से नक़्ल की गई रिवायत में मिलता है कि एक दिन पैग़म्बर (स) खजूर की चटाई पर सो रहे थे, चटाई पर सोने की वजह से आपके बदन पर निशान पड़ गए थे, जब आप उठे तो मैंने पैग़म्बर (स) से कहा, या रसूल अल्लाह! (स) अगर आपकी अनुमति हो तो इस चटाई के ऊपर बिस्तर बिछा दिया जाए ताकि आपके बदन पर इस तरह के निशान न बनें, आपने फ़रमाया: मुझे इस दुनिया की आराम देने वाली चीज़ों से क्या लेना देना, मेरी और दुनिया की मिसाल एक सवारी की तरह है जो थोड़ी देर आराम करने के लिए एक पेड़ के नीचे रुकती है और उसके बाद तेज़ी से अपनी मंज़िल की ओर बढ़ जाती है। (तारीख़े दमिश्क़, जिल्द 3, पेज 390, तबक़ातुल कुबरा, जिल्द 1, पेज 363)
आप (स) का मकान
वाक़ेदी ने अब्दुल्लाह इब्ने ज़ैद हज़ली से रिवायत की है कि जिस समय उमर इब्ने अब्दुल अज़ीज़ के हुक्म से पैग़म्बर (स) और उनकी बीवियों के घर वीरान किए गए मैंने वह मकान देखे थे, आंगन की दीवारें कच्ची मिट्टी की थीं और कमरे, लकड़ी, खजूर की छाल और कच्ची मिट्टी से बने हुए थे, आपका कहना था कि मेरी निगाह में सबसे बुरा यह है कि मुसलमानों का पैसा घरों के बनवाने में ख़र्च हो। (तबक़ातुल कुबरा, जिल्द 1, पेज 499, अमताउल असमाअ, जिल्द 10, पेज 94)
वलीद इब्ने अब्दुल मलिक के दौर में उसके हुक्म के बाद पैग़म्बर (स) और आपकी बीवियों के कमरों को तोड़कर मस्जिद में शामिल कर लिया गया, सईद इब्ने मुसय्यब का कहना है कि ख़ुदा की क़सम! मैं चाहता था कि पैग़म्बर (स) का पूरा घर वैसे ही बाक़ी रहे ताकि मदीने के लोग आपके घर को देखकर समझ सकें कि आप कितना साधारण जीवन बिताते थे और फिर लोग दौलत और अच्छे मकानों की आरज़ू को छोड़कर सादगी की ओर आकर्षित होते। (अमाली, पेज 130, मकारिमुल अख़लाक़, पेज 115)
इंसान की बुनियादी ज़रूरते यही तीन हैं एक उसका खाना, दूसरा उसके कपड़े और तीसरा उसका घर, हम इस लेख में देख सकते हैं कि इन तीनों में अल्लाह के बाद सबसे महान शख़्सियत का जीवन कितना सादा और साधारण था।
हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ (अ)
हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम हज़रत पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद (स) के छठे उत्तराधिकारी और आठवें मासूम हैं आपके वालिद (पिता) इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ) थे।
हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.ह) पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद (स.अ) के छठे उत्तराधिकारी और आठवें मासूम हैं आपके वालिद (पिता) इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ.) थेऔर माँ जनाबे उम्मे फ़रवा बिंतें क़ासिम इब्ने मुहम्मद इब्ने अबू बक्र थीं। आप अल्लाह की तरफ़ से मासूम थे।
अल्लामा इब्ने ख़लक़ान लिखते हैं कि आप अहलेबैत (स.अ.) में से थे और आपकी फ़ज़ीलत, बड़ाई और आपकी अनुकम्पा, दया व करम इतना मशहूर है कि उसको बयान करने की ज़रूरत नहीं है।आपकी विलादत (शुभ जन्म)आपकी विलादत 17 रबीउल अव्वल 83 हिजरी तथा 702 ईसवी दिन सोमवार को मदीना-ए-मुनव्वरा मे हुआ आपकी जन्मतिथि को अल्लाह ने बड़ी प्रतिष्ठा दे रक्खी है, हदीसों मे है कि इस दिन में रोज़ा रखना एक साल के रोज़े के बराबर है।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ.) का कथन है कि यह मेरा बेटा कुछ ख़ास लोगों मे से है जिनके वुजूद से ख़ुदा ने अपने बन्दों पर उपकार किया है और यही मेरे बाद मेरा उत्तराधिकारी होगा।आप का नाम, उपनाम और उपाधियांआप का नाम जाफ़र (अ) आपके उपनाम अब्दुल्लाह, अबू इस्माईल और आपकी उपाधियां सादिक़, साबिर, फ़ाज़िल, ताहिर इत्यादि हैं।
अल्लामा मजलिसी लिखते हैं कि, जनाब रसूले ख़ुदा (स) ने अपनी ज़िंदगी मे हज़रत जाफ़र बिन मुहम्मद (अ) को सादिक़ की उपाधि दी थी। उल्मा का बयान है कि जाफ़र नाम की जन्नत मे एक मीठी नहेर है, उसी के नाम पर आपको जाफ़र की उपाधि दी गई है, क्योंकि आपकी अनुकम्पा एक जारी नहर की तरह थी इसी लिए आपको यह उपाधि दी गई।
समकालीन राजाआप के जन्म के समय अब्दुल मालिक बिन मरवान समकालीन राजा था, फिर वलीद, सुलैमान, उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ बिन अब्दुल मलिक, हिशाम बिन अब्दुल मलिक, वलीद बिन यज़ीद बिन अब्दुल मलिक, यज़ीदुन नाक़िस, इब्राहीम बिन वलीद और मरवान-अल-हेमार इसी क्रमानुसार खलीफ़ा हुए, मरवान-अल-हेमार के बाद बनी उमय्या की हुकूमत का सूरज डूब गया और बनी अब्बास ने हुकूमत पर क़ब्ज़ा जमा लिया।
बनी अब्बास का पहला बादशाह अबुल अब्बास सफ़्फ़ाह और दूसरा मन्सूर दवानि0क़ी हुआ। इसी मन्सूर ने अपनी हुकूमत के दो साल गुज़रने के बाद इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) को ज़हर से शहीद कर दिया।आप के शागिर्द (शिष्य)सभी इसलामी फ़ुक़ीहों के उस्ताद इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) है ख़ास कर इमाम अबू हनीफ़ा, यहिया बिन सईद अन्सारी, इब्ने जुरैह, इमाम मालिक इब्ने अनस, इमाम सुफ़यान सौरी, सुफ़यान बिन ऐनैह, अय्यूब सजिस्तयानी इत्यादि का नाम आप के शिष्यों मे दर्ज है।
इदार-ए-मारिफ़ुल क़ुरान के तीसरे हिस्से के पेज 109 पर (प्रकाशित मिस्र) मे है कि आप के शिष्यों मे जाबिर बिन हय्यान सूफ़ी तरसूसी भी हैं। आप के कुछ शिष्यों की महानता और उनकी रचनाओं और इल्मी सेवाओं पर रौशनी डालना तो बहुत ज़्यादा कठिन काम है, इस लिए यहां केवल जाबिर इब्ने हय्यान तरसूसी जो कि बहुत ज़्यादा माहिर और आलिम होने के बाद भी इमाम के शिष्य होने के सम्बन्ध से आम लोगों की नज़रों से छिपे हुए हें और कुछ दूसरे गुटों के लीडर व इमाम माने जाते हैं।
अफ़सोस तो इस बात का है कि वह इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) के शिष्यों को तो इमाम मानते हैं मगर ख़ुद इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) को इमाम क़ुबूल नही करते हैं।
हज़रत इमाम जाफर सादिक अलैहिस्सलाम की नज़र में दीनी विद्यार्थियों की अहमियत
इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने अपने शागिर्द से फ़रमाया कि अगर तुम्हारे पास क़ीमती हीरा हो तो सारी दुनिया कहती रहे कि यह पत्थर है, मगर चूंकि तुम्हें इल्म है कि यह हीरा है तुम दुनिया वालों की बात का एतेबार नहीं करोगे। इसी तरह अगर तुम्हारे हाथ में पत्थर है और सारी दुनिया कहती रहे कि यह क़ीमती हीरा है तो तुम दुनिया की बात नहीं सुनोगे क्योंकि तुम्हें इल्म है कि वह पत्थर है।
हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने फरमाया,इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने अपने शागिर्द से फ़रमाया कि अगर तुम्हारे पास क़ीमती हीरा हो तो सारी दुनिया कहती रहे कि यह पत्थर है, मगर चूंकि तुम्हें इल्म है कि यह हीरा है तुम दुनिया वालों की बात का एतेबार नहीं करोगे।
इसी तरह अगर तुम्हारे हाथ में पत्थर है और सारी दुनिया कहती रहे कि यह क़ीमती हीरा है तो तुम दुनिया की बात नहीं सुनोगे क्योंकि तुम्हें इल्म है कि वह पत्थर है।
जब क़ीमती जवाहरात आपके पास हैं तो सारी दुनिया कहती रहे कि यह तो बेकार चीज़ है, आप का इल्म कहेगा कि नहीं यह बहुत क़ीमती चीज़ है। हमारी क़ौम को इल्म है, वह समझ चुकी है, इसी लिए मज़बूत क़दमों से डटी हुई है।
हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के अख़्लाक़ी पहलू
मुआविया बिन वहब कहते हैं, मैं मदीना में हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के साथ था, आप अपनी सवारी पर सवार थे, अचानक सवारी से उतर गए, हम बाजार जाने का इरादा रखते थे लेकिन इमाम अलैहिस्सलाम सज्दा में गये और आपने एक लंबा सज्दा किया, मैं इंतजार करता रहा जब तक आपने सज्दा से सिर उठाया, मैंने कहा: मैं आप पर कुर्बान! मैंने आपको देखा कि सवारी से उतरे और सज्दे में चले गए? आपने फ़रमाया,मैं अपने ख़ुदा की नेअमतों को याद करके सज्दा कर रहा था
गैर शियों की मदद:
मुअल्ला बिन ख़ुनैस कहते हैं: हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम एक रात कि जिसमें हलकी हलकी बारिश हो रखी थी बनी साएदा के सायबान में जाने के लिए बैतुश शरफ़ से बाहर निकले, मैं आपके पीछे पीछे रवाना हुआ, अचानक आपके हाथ से कोई चीज़ गिरी, बिस्मिल्लाह, कहने के बाद आपने फरमाया: ख़ुदाया! इसको हमारी तरफ़ पलटा दे, मैं आगे बढ़ा और आपको सलाम किया, इमाम अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया मुअल्ला! मैंने कहा: जी हुज़ूर, मैं आप पर क़ुर्बान, कहा: तुम भी इस चीज़ को ढ़ूंढ़ो और अगर मिल जाए तो मुझे दे दो।
अचानक मैंने देखा कि कुछ रोटियाँ हैं जो ज़मीन पर बिखरी हुई हैं, मैंने उन्हें उठाया और इमाम अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में पेश किया, उस समय मैंने इमाम अलैहिस्सलाम के हाथों में रोटी का भरा हुआ एक बैग देखा, मैंने कहा: लाइये मुझे दे दीजिए मैं इसे लेकर चलता हूँ, इमाम अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया नहीं, मैं इसे ले चलूंगा, लेकिन मेरे साथ चलो।
बनी साएदा के सायबान में पहुंचे, यहां कुछ लोगों को देखा जो सोए हुये थे, इमाम अलैहिस्सलाम ने हर आदमी के कपड़ों के नीचे एक या दो रोटियाँ रखीं और जब सब तक रोटियाँ पहुंच गईं तो आप वापस पलट आए, मैं ने कहा,मैं आप पर कुर्बान! क्या यह लोग हक़ को पहचानते हैं? कहा: अगर वह हक़ को पहचानते होते तो बेशक नमक द्वारा (भी) उनकी मदद करता है।
रिश्तेदारों की मदद:
अबू जअफ़र बिन खसअमी कहते हैं कि हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने मुझे पैसों की एक थैली दी और कहा: उसे बनी हाशिम के परिवार के फ़लाँ आदमी तक पहुंचा दो, लेकिन यह न बताना कि मैंने भेजी है।
अबू जाफर कहते हैं: मैंने वह थैली उस आदमी तक पहुंचा दी, उसने वह थैली लेकर कहा: अल्लाह इस थैली के भेजने वाले को अच्छा बदला दे, हर साल यह पैसे मेरे लिए भेजता है और साल के आख़िर तक खर्च चलाता हूँ, लेकिन जाफ़र सादिक़ (अ) इतनी माल व दौलत रखने के बावजूद भी मेरी कोई मदद नहीं करते।
अख़लाक़ की बुलंदी:
हाजियों में से एक आदमी मदीने में सो गया और जब जागा तो उसने यह गुमान किया कि किसी ने उसकी थैली चुरा ली है, उस थैली की तलाश में दौड़ा, हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम को नमाज़ पढ़ते देखा और वह इमाम अ. को नहीं पहचानता था, इसलिए वह इमाम अलैहिस्सलाम से उलझ गया और कहने लगा: मेरी थैली तुमने उठाई है! इमाम अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया कि उसमें क्या था? उसने कहा: एक हजार दीनार, इमाम अलैहिस्सलाम उसे अपने घर ले आए और उसे हजार दीनार दे दिये।
लेकिन जब वह आदमी अपनी जगह पलट कर आया तो उसकी थैली उसे मिल गई, शर्मिंदा होकर हजार दीनार के साथ इमाम अलैहिस्सलाम का माल वापस करने के लिए आया, लेकिन इमाम अलैहिस्सलाम ने वह माल लेने से इंकार कर दिया और कहा कि जो कुछ हम दे दिया करते हैं उसे वापस नहीं लेते, उसने लोगों से सवाल किया कि यह आदमी ऐसे करम व एहसान वाला कौन है? तो उसे बताया गया कि यह जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम हैं, उसने कहा: यह करामत ऐसे ही इंसान के लिए सज़ावार है।
हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व. की बेसत का लक्ष्य
हज़रत रसूल अल्लाह स.अ.की बेसत का सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य न्याय प्रणाली और समानता को स्थापित करना था जैसा कि क़ुरआन फ़रमाता है कि, हम ने अपने पैग़म्बरों को लोगों की हिदायत और उन्हें सही दिशा दिखाने के लिए दलीलों और न्याय प्रणाली के साथ भेजा ता कि लोग न्याय और समानता के उसूलों पर चलें।
आपकी बेसत का सबसे अहम लक्ष्य लोगों को हिदायत का रास्ता दिखाया जाना है, जिस से लोगों को असली सुख, सफ़लता और निजात प्राप्त हो सके।
इंसान नबियों और अल्लाह की ओर से नबियों पर आने वाली ख़बरों के बिना उन सुख, सफ़लता और निजात तक नहीं पहुँत सकता, क्योंकि इंसान की अपनी बुध्दि और ज्ञान उसके जीवन की बहुत सी आवश्यकताओं को तो पूरा कर सकते हैं लेकिन व्यक्तिगत, सामाजिक, आध्यात्मिक, दुनिया और आख़ेरत सुख और सफ़लता और निजात तक नहीं पहुँचा सकते, इसलिए अगर इंसानी बुध्दि और उसके निजी ज्ञान के अलावा इन तक पहुँचने के लिए कोई और रास्ता न हो तो अल्लाह की रचना पर सवाल खड़ा हो जाएगा।
ऊपर दिये गए विश्लेषण के बाद यह परिणाम सामने आता है कि अल्लाह की हिकमत ने इस आवश्यकता को समझते हुए इंसानी बुध्दि और ज्ञान से मज़बूत चीज़ को इंसान के जीवन के सभी क्षेत्र के विकास के लिए रखा, अब इंसान ख़ुद अपने आपको इतना पवित्र कर ले कि उस स्थान तक पहुँच जाए या कुछ दूसरे पवित्र लोगों द्वारा वह फ़ार्मूला हासिल कर ले, और उस सिलसिले का नाम वही (وحی)है,
जिसको अल्लाह ने नबियों से विशेष कर रखा है, नबी सीधे अल्लाह से और बाक़ी सभी नबियों के द्वारा अल्लाह के संदेश को हासिल करते हैं, और वह सारी चीज़ें जो असली सुख, सफ़लता औल निजात के लिए अनिवार्य हैं उन्हें हासिल कर लेते हैं। (आमूज़िशे अक़ाएद, पेज 178)
आपकी बेसत का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य न्याय प्रणाली और समानता को स्थापित करना था, जैसा कि क़ुर्आन फ़रमाता है कि, हम ने अपने पैग़म्बरों को लोगों की हिदायत और उन्हें सही दिशा दिखाने के लिए दलीलों और न्याय प्रणाली के साथ भेजा ता कि लोग न्याय और समानता के उसूलों पर चलें। (सूरए हदीद, आयत 25)
क्या आप जानते हैं कि, अल्लाह ने नबियों और रसूलों क्या लक्ष्य दे कर भेजा है, क्या बेसत पूजा से रोकें? या बेसत का लक्ष्य यह था कि हर दौर से अन्याय, अत्याचार और जेहालत को हमेशा के लिए उखाड़ कर इंसानी सभ्यता को स्थापित कर सकें? या लक्ष्य यह था कि लोगों को नैतिक सिध्दांत और समाजिक प्रावधानों से परिचित करा सकें जिस से लोग इसी आधार पर अपने जीवन संबंधों को सुधार सकें?
इस सवाल का जवाब इस प्रकार उचित होगा कि ऊपर जो भी कहा गया नबी का लक्ष्य और उद्देश्य इन सब से ऊँचे स्तर का होता है, ऊपर लक्ष्यों का नाम लिया गया है वह नबी के लक्ष्य और उद्देश्य का एक हिस्सा है, और वह लक्ष्य अत्याचार और अन्याय का सफ़ाया कर के व्यक्तिगत और समाजिक क्षेत्र में न्याय प्रणाली की स्थापना है, और हक़ीकत में यह लक्ष्य दूसरे तमाम लक्ष्यों को हासिल करने का बुनियादी ढ़ाँचा और पेड़ है,
बाकी लक्ष्य इसी के टहनी हैं, क्योंकि अल्लाह की इबादत, नैतिक सिध्दांत, समाजिक प्रावधान और इंसानी सभ्यता से दूरी का कारण सही न्याय प्रणाली का न होना है।
नहजुल बलाग़ा की दृष्टि में मुहासिब ए नफ़्स का महत्व
अमीरुल मोमिनीन अलैहिस सलाम, नहजुल बलाग़ा में मनुष्य जाति को अपने नफ़्स के हिसाब की तरफ़ ध्यान दिलाते हुए फ़रमाते हैं:
अपने आपको अपने लिये परख लो और अपना हिसाब किताब कर लो, चूंकि दूसरों को परखने और उनका हिसाब करने के लिये तुम्हारे अलावा कोई दूसरा मौजूद है।
हर काम में प्रगति की रफ़तार को मुअय्यन करना, परखना और हिसाब करना लक्ष्य तक पहुचने के कारणों में से एक कारण है। किसी भी केन्द्र की व्यवस्था व मार्गदर्शन में एक वह चीज़ जिस पर वहां के प्रबंधक के हमेशा ध्यान में रखना चाहिये वह मुहासिबा और हिसाब करना, परखना है।
किसी काम या केन्द्र की प्रगति उसके सही और बारीक़ हिसाब किताब के बिना संभव नही है कि उनके काम के तरीक़े का सही होना और सफलता की उम्मीद की जा सके और उस पर संतोष प्रकट किया जा सके। उस काम में लापरवाही से बहुत से भारी नुक़सान पहुचा सकती है और सहूलत और मौक़े के हाथ से निकल जाने का कारण बन सकती है जिससे सारे प्रयत्न और कार्यवाही बेकार रह जाते हैं।
हर इंसान अपने काम के तरीक़े, अंतिम फ़ैसले और बुनियादी कार्यवाही में व्यवस्था और मार्ग दर्शन का मोहताज है। ऐसी व्यवस्था जो उसी के हाथ में है जिसके बिना उसके लिये अपने लक्ष्य की राह में आगे बढ़ना और अपनी इच्छाओं तक पहुच हासिल करना संभव नही होता है।
इंसान का सबसे महत्वपूर्ण दायित्व भी यही है कि वह अपने सहूलत और सीमा के अनुसार अपने लक्ष्य और पसंद पर ध्यान देते हुए, कमाल और सफलता तक पहुचने के लिये अपने रवैये और तरीक़े में बुद्धिमता पूर्वक व्यवस्था व नज़्म रखें ता कि बिना मंसूबे और मक़सद अपनी सलाहियत का प्रयोग न करें और क्षति और नुक़सान से दोचार न हों।
इंसान के लिये अपने इंतेज़ाम का एक बुनियादी पहलु, इंसान का अपना हिसाब किताब और रुख़ है। यह हिसाब किताब और जांच पड़ताल जितनी ज़्यादा वास्तविकता, आलोचना और सही की बुनियाद पर होगी और बारीकियों से की जायेगी तो उतना ही इंसान की इस्लाह व भलाई की राह में और दोबारा ग़ल्तियां न करने में प्रभावित रोल अदा कर सकती है।
इस मुहासेबे और हिसाब किताब का मक़सद यह नही है कि उसका परिणाम दूसरों के सामने ऐलान किया जाये या दूसरों की शाबासी व आपत्ती का प्रमाण बने। नही बल्कि यह काम अपने लिये और ज़ाती होगा ताकि वह अपनी जांच पड़ताल कर सके कि कब कब और कौन कौन की सहुलतें और मौक़े उसे मिले हैं और उसने उन मौक़ों को कैसे भुनाया है?
और उसके काम और कार्यवाही, उसकी कोशिशें कितनी उसके लक्ष्य और मक़सद तक पहुचने में सहायक सिद्ध हो रही है? वह जिस मंज़िल तक पहुचना चाहता है उसमें उसे कितनी सफलता मिली है? उसकी कितनी सलाहियतें या सहूलते बेकार बर्बाद हुई है? वह उन्हे बर्बाद होने से कैसे रोक सकता था? वह इस काम के लिये किन लोगों से सहायता ले सकता था? पिछले कामों में उसकी सफलता या असफलता के कारण क्या क्या रहे हैं? और अंत में वह इस जांच पड़ताल से यह मुअय्यन कर ले कि वह भविष्य में इस राह पर चलने के लिये उसे क्या क्या करना पड़ेगा ताकि सफलता ही उसके हाथ लगे?
और उसे अपने काम के तरीक़े, उस काम में प्रयोग होने वाले औज़ार और उपयोग में क्या क्या सुधार करना पड़ेगा? और संभवत वह कौन सी ग़लतियां और कमियां हैं जिन्हे दूर किया जा सकता है? कैसे और किस तरह से ऐसा किया जा सकता है।
अलबत्ता बहुत कम लोग ऐसे हैं जो साठ और सत्तर साल की उम्र में अपने आप अपना मुहासिबा और हिसाब किताब न करते हों, लेकिन उस वक़्त तक देर हो चुकी होती है और वह प्रभावित नही होता। चूंकि अब उसके परिणाम से फ़ायदा हासिल करने का मौक़ा और शक्ति ख़त्म हो चुकी होती है।
अहम यह है कि हम नौजवानी और जवानी में याद कर कर के और दोहरा दोहरा कर अपनी अपनी जांच पड़ताल और मुहासिब को एक महत्वपूर्ण काम मान कर उसकी तरफ़ ध्यान दें और ज़िन्दगी की शुरुवात में ही अपने रास्ते को मुअय्यन कर लें और अपने बुलंद लक्ष्यों और सदैव बाक़ी रहने वाले कमाल की तरफ़ लगातार ध्यान लगा कर अपनी सलाहियत और मिलने वाले मौक़ों का सही प्रयोग करें।
लेकिन अब भी देर नही हुई है। अपनी ज़िन्दगी के रूटीन में एक लम्हे, एक वक़्त ग़ौर व फिक्र, विचार, आलोचना, अध्धयन और हिसाब किताब, मुहासेबा, संभवत इंसान को नुक़सान और क्षति पहुचने से पहले रोक सकता है और अपने रास्ते और तरीक़े को बदलने में मदद कर सकता है।
हज़रत अमीरुल मोमिनीन अली अलैहिस सलाम, इस कड़वे सच की तरफ़ आकर्षित होने के कारणवश इंसान आम तौर से अपने जांच पड़ताल और हिसाब व मुहासेबे से ग़ाफ़िल हैं बल्कि दूसरों के आमाल व आचरण की जांच में पड़े हुए हैं, इसी की तरफ़ ध्यान दिलाते हुए फ़रमाते हैं कि अपना मुहासेबा, हिसाब किताब करो, लेकिन दूसरों के लिये नही और न ही दूसरों को दिखाने के लिये बल्कि ख़ुद अपने लिये।
और जान लो कि दूसरों को तुम्हारी जांच पड़ताल और मुहासेबे और हिसाब की कोई आवश्यकता नही है।
कोई दूसरा मौजूद है जो दूसरों का हिसाब किताब रखता है और उनकी जांच पड़ताल कर सकता है। तुम इससे ज़्यादा कि दूसरों की कमियों और बुराईयों पर ध्यान दो, अपनी बुराईयों औक कमियों पर ध्यान दो। चूंकि तुम्हारी तवज्जो से फ़ायदा उठाने और सुधार करने, जिसके लिये तुम्हारी तवज्जो की आवश्यकता है, उसके सबसे ज़्यादा पात्र तुम हो न कोई और। इस लिये कि जो समय तुम्हे ख़ुद अपनी जांच पड़ताल में ख़र्च करना चाहिये वह तुम दूसरों की जांच में ख़र्च कर रहे हो?
हज़रत अमीरुल मोमिनीन अली अलैहिस सलाम के इस प्रकाशमय व जीवन बख़्श कलाम को उस समय बयान फ़रमाया है कि जब आप अहले ज़िक्र की विशेषता व ख़ूबियां बयान करने में व्यस्त थे और उनका तौर व तरीक़ा बयान फ़रमा रहे थे कि अहले ज़िक्र वह हैं कि दुनियावी व्यस्तता और रोज़ाना का मामले उनको कमाल की राह और लक्ष्य से ग़ाफ़िल नही करते, यह लोग लोगों को न्याय व इंसाफ़ का आदेश देते हैं और ख़ुद भी न्याय और इंसाफ़ से काम लेते हैं, लोगों को बुरे कामों से रोकते हैं और खुद भी बुरे कामों से बचते हैं।
ऐसा लगता है कि यह लोग दुनिया से कट कर ज़िन्दगी जी रहे हों और उसका गहराई से अध्धयन कर रहे हों।
आख़िर में इमाम अलैहिस सलाम एक बार फिर होशियार और ख़बरदार करते हैं कि अपनी जांच पडताल करो और देखो कि क्या तुम अहले ज़िक्र हो या नही? यह न हो कि तुम दूसरों को विशेषताओं और ख़ूबियों को अपने तराज़ू में तौलने लगो। दूसरों को तुम्हारे जांच पडताल, हिसाब और मुहासेबे की ज़रुरत नही है।
अलबत्ता यह ख़्याल नही किया जा सकता कि हज़रत अली अलैहिस सलाम का इस बात से ख़बरदार करना, समाजी ज़िम्मेदारियों को न निभाने के मायना में हो। चूंकि अहले ज़िक्र की एक ख़ूबी ख़ुद समाजी ज़िम्मेदारियों और अम्र बिल मारुफ़ और नही अनिल मुनकर की तरफ़ ध्यान देना है। बल्कि यह होशियार करना अपनी जांच पडताल और नफ़्स के मुहासेबे व हिसाब पर ज़्यादा ताकीद को मौज़ू क़रार देता है।
जो कि मनचाहे कमाल तक इंसान के पहुचने की कामयाबी की बुनियादी और असली शर्त है। बिना लगातार मुहासेबे व हिसाब व जांच पड़ताल के वह गफ़लत, बे ध्यानी, ग़लती, भूल चूक, सुस्ती, रुकावट, गुमराही में पड़ कर अपनी मनचाही कामयाबी व मंज़िल तक न पहुचने से दोचार हो जायेगें।
अपना वास्तविक व ध्यान पूर्वक विचार विमर्श और जांच पड़ताल, हिसाब व मुहासेबा और उसके परिणाम को अपनी ग़लती व कमी के सुधार मे प्रयोग करना एक अहम क़दम है। जिसके बिना हज़रत अली अलैहिस सलाम की राह से कोई नाता नही जोड़ा जा सकता है और उसके बिना ऐसा हरगिज़ नही हो सकता है।













