رضوی

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ईरान में शहीद मुतह्हरी की शहादत के दिन को टीचर-डे के रूप में मनाया जाता है।

उस्ताद मुतह्हरी के नाम से मश्हूर, शहीद मुतह्हरी चौदहवी शताब्दी के एक धर्मगुरू, विद्वान, लेखक, विचारक और महान शोधकर्ता थे।

वे स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी और अल्लामा तबातबाई के शागिर्द थे।  उन्होंने इस्लामिक स्टडीज़ के लगभग सारे ही क्षेत्रों में दक्षता हासिल कर ली थी।  शहीद मुर्तज़ा मुतह्हरी, इस्लामी दर्शन, धर्मशास्त्र और क़ुरआन के बहुत महान शिक्षक थे।  उन्होंने बहुत से विषयों पर किताबें लिखी हैं।  उनहोंने इस्लामी क्रांति की सफलता से पहले और बाद में धार्मिक गतिविधियों के अतिरिक्त राजनीति में भी सक्रिय भूमिका निभाई।

वे इस्लामी क्रांति के प्रभावशाली लोगों में से एक थे जिनको ईरान की इस्लामी क्रांति के बौद्धिक नेता के रूप में देखा जाता है।  शहीद मुतह्हरी, मार्कस्वादी विचारधारा का मुक़ाबला करते और विद्धानों के साथ विभिन्न मुद्दों पर विचार-विमर्श और शास्त्रार्थ किया करते थे।  उन्होंने हुसैनिया इरशाद बनवाया था जहां पर वे विद्वानों से शास्त्रार्थ करते थे। ईरान में शहीद मुतह्हरी की शहादत के दिन को टीचर-डे के रूप में मनाया जाता है।

यूनिवर्सिटी में गतिविधियाः

शहीद मुतह्हरी ने 1954 में तेहरान यूनिवर्सिटी में पढ़ाना शुरू किया था।  उन्होंने वहां पर 20 साल से भी अधिक समय तक इस्लामी विषयों की शिक्षा दी।

तेहरान यूनिवर्सिटी में शहीद मुतह्हरी ने स्नातक, डाक्ट्रेट, सामान्य इस्लामी विज्ञान, तर्कशास्त्र, दर्शनशास्त्र, रहस्यवाद, न्याशास्त्र, दर्शन तथा रहस्यवाद के बीच संबन्ध जैस बहुत से विषयों की शिक्षा दी।

इस्लाम पर एक नज़रः

शहीद मुतह्हरी का मानना था कि इस्लाम एसा धर्म है जिसको अभीतक ठीक से पहचाना नहीं गया है।  इसकी वास्तविकताएं धीरे-धीरे लोगों के बीच बदल गई हैं जिसका मुख्य कारण कुछ लोगों द्वारा इस्लाम के नाम पर ग़लत शिक्षाओं को देना रहा है।  वे यह भी मानते हैं कि इस्लाम को उन लोगों से अधिक नुक़सान पहुंचा जो इसकी हिमायत का दम भरते हैं।

भौतिकवाद की ओर झुकाव के कारणः

सन 1971 में शहीद मुतह्हरी की एक किताब प्रकाशित हुई जिसका शीर्षक था, "भौतिकवाद की ओर झुकाव के कारण"।  इस किताब में उनके दो लेक्चर हैं जो उन्होंने 1969 और 1970 में यूनिवर्सिटी में दिये थे।  उनकी यह किताब उस ज़माने में प्रकाशित हुई थी जब देश में जवानों के बीच मार्कस्वाद जैसी भौतिकवादी विचारधाराओं की ओर रुझान बढ़ रहा था।  इस किताब में वे भौतिकवाद की ओर झुकाव में गिरजाघरों, दार्शनिक-सामाजिक और राजनीतिक अवधारणाओं की भूमिका की समीक्षा करते हैं।  इसी के साथ वे इस ओर आने के कारणों की भी जांच-परख करते हैं।

इस्लामी आइडियालोजी की भूमिकाः

शहीद मुरतज़ा मुतह्हरी ने जब यह देखा कि इस्लाम का दावा करने वाले कुछ मुसलमान बुद्धिजीवियों की रचनाओं में इस्लामी आइडियालोजी के बारे में ग़लत विचारों को पेश किया जा रहा है तो इनको रोकने और इस्लाम की सही छवि को स्पष्ट करने के उददेश्य से इस किताब को लिखा था।  इसके माध्यम से उन्होंने कुछ तथाकथित इस्लामी विद्वानों की ग़लतियों को स्पष्ट किया था।

प्रकाशित रचनाएः

शहीद मुतह्हरी ने 50 से अधिक किताबें लिखीं।  उनकी इन रचनाओं में से कुछ महत्वपूर्ण रचनाओं के नाम इस प्रकार से हैं- मुक़द्दमेई बर जहानबीनी इस्लामी, आशनाई बा क़ुरआन, इस्लाम व मुक़तज़ियाते ज़मान, इंसाने कामिल, पीरामूने इन्क़ेलाबे इस्लामी, पीरामूने जम्हूरिये इस्लामी, तालीम व तरबियत दर इस्लाम, तौहीद, नुबूवत, मआद, हमासे हुसैनी, ख़िदमाते मुतक़ाबिले इस्लाम व ईरान, अद्ले इलाही, दास्ताने-रास्तान, सैरी दर नहजुल बलाग़ा, सैरी दर सीरए नबवी, सैरी दर सीरए आइम्मए अतहार, शरहे मबसूते मंज़ूमे, एलले गेराइशे माददिगरी, फ़ितरत, फ़लसफ़ए एख़लाक़, फ़लसफ़ए तारीख़, गुफ़्तारहाए मानवी, मसअलए हेजाब, नेज़ामे हुक़ूक़े ज़न दर इस्लाम, क़ेयाम व इन्क़ेलाबे इमामे मेहदी।

इमाम ख़ुमैनी के भरोसेमंद सलाहकारः

ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता और पहलवी व्यवस्था के गिर जाने के बाद आयतुल्ला मुतह्हरी ने इस्लाम सरकार के गठन के लिए बहुत अधिक प्रयास किये।  यही कारण है कि वे स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी के बहुत ही भरोसेमंद सलाहकार थे।

उनकी शहादतः

देश से संबन्धित विषयों के बारे में पहली मई सन 1979 की रात एक बैठक के बाद जब वे अपने घर जा रहे थे तो गली में किसी ने पीछे उनको उनके नाम से पुकारा।  जैसे ही शहीद मुतह्हरी ने पीछे पलटकर देखा उसी समय उनको गोली मार दी गई।  गोली मारने वाले व्यक्ति का नाम "मुहम्मद अली बसीरी" था जो "फ़ुरक़ान" नामक ख़तरनाक गुट का एक सदस्य था।  यह वह गुट था जो धर्म और समाज को लेकर अतिवाद का शिकार था।  गोली लगने के बाद मुरतोज़ा मुतह्हरी को अस्पताल ले जाया गया जहां पर उनकी शहादत हो गई।

उनकी शहादत पर इमाम ख़ुमैनी के संदेश का एक भागः

बुरा चाहने वालों की इच्छाओं के बावजूद ईरान की इस्लामी क्रांति, ईश्वर की कृपा से सफल हुई लेकिन इस्लाम विरोधी मुनाफ़ेक़ीन के हाथों राष्ट्र और इस्लामी विद्वानों को जो नुक़सान हुआ है उसकी भरपाई बहुत मुश्किल है,  जैसाकि महान इस्लामी विद्वान शेख मुरतज़ा मुतह्हरी की निर्मम हत्या।  उनके बारे में जो मैं कहना चाहता हूं वह यह है कि उन्होंने इस्लाम और ज्ञान के श्रेत्र में बड़ी मूल्यवान सेवाएं कीं।  बड़े अफ़सोस की बात है कि विश्वासघाती हाथों ने इस फलदार वृक्ष को ज्ञान तथा इस्लाम के क्षेत्रों से छीन लिया और इसके बहुमूल्य फलों से सबको वंचित कर दिया।

मुतह्हरी मेरा अज़ीज़ बेटा था।  वह धार्मिक एवं ज्ञान के क्षेत्र का मज़बूत समर्थक था।  उन्होंने इस्लाम, राष्ट्र और देश के लिए उपयोगी सेवाएं कीं।  ईशवर उनको शांति प्रदान करे।

शहीद मुतह्हरी के बारे में इमाम ख़ामेनेई का दृष्टिकोणः

अगर समाज के विभिन्न वर्गों की वैचारिक ज़रूरतों को पूरा करने और समाज के लिए नए मुद्दों के समाधान के लिए उस शहीद के प्रयास न होते तो आज इस्लामी समाज की स्थति कुछ और ही होती।

शहीद मुतह्हरी के कुछ मशहूर भाषणः

जेहादः

क़ुरआन कहता है कि इसलिए कि तुम्हारा रोब, दुश्मनों पर पड़े और उनके दिमाग़ में भी तुमपर हमले की सोच न आए तो तुम ताक़त जमा करो और शक्तिशाली बन जाओ।(जेहाद/पेज-28)

इस्लाम में काम का महत्वः

इस्लाम बेकारी का दुश्मन है।  मनुष्य को उपयोगी काम इसलिए भी करने चाहिए क्योंकि उससे समाज को लाभ होता है। काम ही व्यक्ति और समाज का सबसे बड़ा कारक है जबकि बेरोज़गारी या बेकारी, भ्रष्टाचारका सबसे बड़ा कारक है अतः लाभदायक काम किये जाने चाहिए।

(वहय व नुबूवत/पेज-118)

अर्थव्यवस्थाः

इस्लाम की यथार्थवादी विचारधारा, अर्थव्यवस्था को आधार या बुनियाद तो नहीं मानती लेकिन उसकी आवश्यक भूमिका को भी अनदेखा नहीं करती है।

(दह गुफ़्तार/पेज-309)

पूरब में जीवनः

अब वह समय आ गया है कि जब पश्चिम को चाहिए कि वह अपनी सारी प्रगति के बावजूद ज़िंदगी की सीख पूरब से प्राप्त करे।

(अख़लाक़े जिंसी/पेज-28)

एकेश्वरवादी दृष्टिकोणः

एकेश्वर में विश्वास की विचारधारा में कशिश पाई जाती है।  यह लोगों को प्रोत्साहन और शक्ति देती है तथा ऊंचे एवं पवित्र लक्ष्य भी प्रदान करती है।  यह लोगों को समर्पित भी बनाती है।

(मजमूअए आसार/ भाग-5 पेज-84)

पैग़म्बरे इस्लाम (स) और परामर्शः

पैग़म्बरे इस्लाम (स) हालांकि ईश्वरीय दूत थे और उनको लोगों के विचारों या परामर्श की कोई ज़रूरत नहीं थी लेकिन लोगों को महत्व देने के लिए वे उनके साथ परामर्श किया करते थे।

(हिकमतहा व अंदर्ज़हा/पेज-120)

 

 

मन के लोकप्रिय जनांदोलन अंसारुल्लाह के राजनीतिक कार्यालय के सदस्य "अली अल-कहुम" ने "एक्स" (पूर्व ट्विटर) पर एक पोस्ट में साफ़ शब्दों में कहा है कि कोई भी सैन्य अड्डा या देश जहाँ से यमन पर हमला किया जाता है यमनी बल उसे निशान बनाने में ज़रा भी संकोच नहीं करेंगे।

उन्होंने कहा कि हम जवाबी कार्रवाई करते हुए अपने अभियान को विस्तृत करते हुए अपने लक्ष्य बढ़ा सकते हैं और संबंधित देश के आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्रों तथा रणनीतिक और अन्य महत्वपूर्ण ठिकानों को लक्ष्य में शामिल करेंगे ।

अल-कहूम ने कहा कि हमारे शत्रु को पिछले 9 वर्षों में यमन के खिलाफ हुए आक्रमणों के परिणामों पर ध्यान देने की ज़रूरत है। आज समीकरण बदल गये हैं और साथ ही शक्ति संतुलन भी बदल गया है।

यमन में शांति स्थापना के बारे में, अल-कहूम ने कहा कि यहाँ शांति बहाल होना यमन, सऊदी अरब, यूएई और पूरे क्षेत्र के हित में है, साथ ही सुरक्षा और स्थिरता हासिल करना भी इलाक़े के सभी देशों के लिए लाभकारी है।

 

भारत ने एक बार फिर फिलिस्तीन का समर्थन जारी रखने का ऐलान करते हुए अवैध राष्ट्र इस्राईल को ज़ोर का झटका दिया है। भारत ने संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन विवाद पर अपने 2 राज्य समाधान की बात दोहराते हुए फिलिस्तीन का समर्थन किया। संयुक्त राष्ट्र की एक बैठक में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कांबोज ने कहा कि भारत 2 राज्य समाधान का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध है, जहां फिलिस्तीन के लोग सुरक्षित सीमा के भीतर एक स्वतंत्र देश में रह सकेंगे।

भारत ने फिलिस्तीन की ओर से पिछले दिनों यूएन की सदस्यता के लिए किये गए आवेदन का भी समर्थन किया जो अमेरिका के वीटो के चलते पास नहीं हो सका था। भारत ने संयुक्त राष्ट्र में फिलिस्तीन के आवेदन पर पुनर्विचार करने की बात कही है। भारत के इस कदम को मक़बूज़ा फिलिस्तीन के ज़ायोनी शासन के लिए झटके के रूप में देखा जा रहा है। ज़ायोनी प्रधानमंत्री फिलिस्तीनी राष्ट्र को खतरे के रूप में देखते हैं।

संयुक्त राष्ट्र में भरतीय प्रतिनिधि रुचिरा कांबोज ने कहा कि हम आशा करते हैं कि उचित समय पर इस पर पुनर्विचार किया जाएगा और संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनने के फिलिस्तीन के प्रयास को समर्थन मिलेगा। 

 

पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान के साथ सुधरते रिश्तों पर संतोष जताया है.

मुमताज ज़हरा ने गुरुवार को कहा: आतंकवाद के खिलाफ युद्ध में पाकिस्तान और ईरान के बीच संयुक्त सहयोग की प्रणाली में सुधार हुआ है.

उन्होंने गुरुवार को एक प्रेस ब्रीफिंग में कहा, आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में ईरान और पाकिस्तान के बीच मौजूदा तंत्र बहुत महत्वपूर्ण है.

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि हाल के महीनों में आतंकवाद के खिलाफ युद्ध के क्षेत्र में ईरान और पाकिस्तान के बीच सहयोग मजबूत हुआ है और दोनों देश साझा सीमाओं और सीमावर्ती क्षेत्रों की सुरक्षा में सुधार के लिए प्रतिबद्ध हैं।

पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के संबंध में ईरान, चीन और पाकिस्तान के बीच त्रिपक्षीय वार्ता का भी जिक्र किया और कहा कि हम इस त्रिपक्षीय प्रणाली को बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं और ईरान, चीन और पाकिस्तान के बीच अगली बैठक की तारीख तय की जाएगी. बैठक की घोषणा उचित समय पर की जाएगी।

उन्होंने कहा: ईरान और पाकिस्तान की सीमाएँ मित्रता, शांति और समृद्धि की सीमाएँ हैं और दोनों पड़ोसी देश आतंकवाद से मुक्त सीमाएँ चाहते हैं।

ईरान-पाकिस्तान गैस पाइपलाइन और अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल के पाकिस्तान आगमन के संबंध में उन्होंने कहा: पाकिस्तान की स्थिति स्पष्ट है और हम अमेरिकी पक्ष के साथ रचनात्मक संबंध चाहते हैं, लेकिन साथ ही, हम इस्लामिक गणराज्य के साथ अपने संबंध विकसित करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। ईरान का और हम अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर निर्णय चाहते हैं।

उन्होंने सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही अफवाहों का खंडन करते हुए कहा, पाकिस्तान किसी भी हालत में किसी दूसरे देश को अपनी जमीन पर सैन्य कैंप बनाने की इजाजत नहीं देगा.

उन्होंने गाजा के लोगों पर ज़ायोनी सरकार के अत्याचारों के ख़िलाफ़ अमेरिकी छात्रों के विरोध पर कहा कि हम किसी भी देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करते हैं और हम दूसरों से भी यही उम्मीद करते हैं कि वे पाकिस्तान के मामलों में हस्तक्षेप से दूर रहें ध्यान भटकाने से.

उन्होंने कहा, फिलिस्तीनियों पर इजरायल के हमले और गाजा में मानवीय संकट ने दुनिया भर और खासकर पाकिस्तान में लोगों की भावनाओं को आहत किया है।

 

हमास के एक नेता ने कहा है कि कैदियों की अदला-बदली के संबंध में बातचीत के दौरान ज़ायोनी सरकार ने प्रतिरोध मोर्चे की कुछ शर्तें मान ली हैं.

अल्जीरिया में हमास के प्रतिनिधि यूसुफ हमदान ने एक साक्षात्कार में कहा: हमास का दृष्टिकोण स्पष्ट है और मध्यस्थों को इसकी सूचना दे दी गई है और उन्होंने कब्जा करने वालों को संदेश दे दिया है और अब वे जवाब का इंतजार कर रहे हैं।

उन्होंने कहाः हड़पने वाली ज़ायोनी सरकार ने 7 महीने के युद्ध के बाद प्रतिरोध की शर्तों को स्वीकार कर लिया है। अब बाल हड़पने वाली सरकार के दरबार में हैं और यदि वे सुलह और कैदियों की रिहाई चाहते हैं तो उनके पास हमारी शर्तों को स्वीकार करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

हमदान ने कहा: कब्जे वाले ज़ायोनी शासन द्वारा स्वीकार की गई शर्तों में युद्धविराम और नत्सारिम से वापसी शामिल है, जो उत्तरी और दक्षिणी गाजा को अलग करती है। इसी प्रकार, उन्होंने फ़िलिस्तीनियों की उत्तरी गाजा में वापसी की शर्त भी स्वीकार कर ली है, लेकिन हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि युद्धविराम स्थायी होगा और कैदियों की अदला-बदली से पहले गाजा से आक्रमणकारियों की पूर्ण वापसी आवश्यक है।

इस्लामी गणतंत्र ईरान के विदेश मंत्री ने यूरोपीय संघ और ईरान के बीच सहयोग के लिए बातचीत जारी रहने का स्वागत किया है।

विदेश मंत्री होसैन अमीर अब्दुल्लाहियन ने कहा: IAEA और ईरान के बीच सहयोग सही दिशा में आगे बढ़ रहा है और हम IAEA निदेशक राफेल ग्रॉसी की ईरान यात्रा का स्वागत करते हैं।

विदेश मंत्री ने यूरोपीय संघ के विदेश मामलों के मंत्री जोसेप बोरेल के साथ टेलीफोन पर बातचीत में यूरोपीय संघ-ईरान संबंधों के साथ-साथ क्षेत्रीय मुद्दों पर भी चर्चा की।

विदेश मंत्री होसैन अमीर अब्दुल्लाहियन ने गाजा के खिलाफ युद्ध में इजरायल द्वारा किए गए अपराधों और नरसंहार को तत्काल समाप्त करने की आवश्यकता पर जोर दिया और कहा कि संयुक्त राष्ट्र को फिलिस्तीनियों की इच्छा और कानूनी अधिकारों का सम्मान करते हुए गंभीर कार्रवाई करनी चाहिए इस संबंध में क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर भूमिका निभाना और कार्रवाई करना बहुत जरूरी है।

विदेश मंत्री ने क्षेत्र में शांति बनाए रखने और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स की रचनात्मक भूमिका का उल्लेख किया और कहा कि यूरोपीय संघ को अंतरराष्ट्रीय कानूनों के संदर्भ में इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान के सशस्त्र बलों का सम्मान करना चाहिए।

इस टेलीफोन बातचीत में, जोसेप बोरेल ने गाजा में संघर्ष विराम और कैदियों की अदला-बदली की बढ़ती अंतरराष्ट्रीय मांग पर ध्यान दिया और कहा कि सभी पक्षों को एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना के माध्यम से स्थायी शांति पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

इसराइली अखबार हारेत्ज़ ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा है कि इसराइली युवा इस समय बहुत हताश हैं और वे इसराइल छोड़ने की योजना बना रहे हैं।

 इसराइली अख़बार हारेत्ज़ ने अपनी एक रिपोर्ट में इस बात पर ज़ोर देते हुए कि इसराइल में युवा इस समय पूरी तरह से निराश हो गए हैं और यह घर विनाश के कगार पर पहुँच गया है, लिखा है: यह अचानक नहीं है नतीजा लेकिन एक प्रक्रिया और इज़राइल अब सुरक्षित नहीं है और उन्हें अब सरकारी संस्थानों पर भरोसा नहीं है।

 रिपोर्ट में कहा गया है कि इजरायली युवा इसलिए जा रहे हैं क्योंकि उन्होंने उम्मीद खो दी है। वे रिजर्व बल में अपनी अनिवार्य सेवा के बाद और हताशा के कारण फिर से बुलाए जाने से पहले कहीं भी जाने को तैयार हैं, कोई भी नेता जो उन्हें बेहतर भविष्य और युद्ध को लंबे समय तक जारी रखने का वादा नहीं कर सकता है।

मदरसे इल्मिया कौसर के प्रमुख ने कहा: अपने शिक्षा और ज्ञान को एक दीपक के रूप में इस्तेमाल करें ताकि वह हमारी वह सही रहनुमाई कर सके।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,आराक के एक संवाददाता के अनुसार, मदरसा इल्मिया कौसर ज़रांदिया के संस्थापक हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन रहमती नया ने शहीद शिक्षक मुर्तज़ा मुताहारी की बरसी के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में खिताब करते हुए कहा: नहजुल बालागा हिक्मत नं 113 अठारह शब्दों से मिलकर बना है। हम उनमें से एक का उल्लेख करते हैं जहां अमीरुल मोमिनीन (अ.स.) कहते हैं कि कोई भी माल व दौलत अक्ल से बेहतर नहीं है।

उन्होंने आगे कहा बुद्धि भौतिक और आध्यात्मिक संसाधन प्रदान कर सकती है, लेकिन यहां हमारी बुद्धि का मतलब सांसारिक चतुराई नहीं है, क्योंकि यह एक शैतानी अभ्यास और बुराई का एक रूप है।

मदरसे इल्मिया कौसर के प्रमुख ने कहा अक्ल के माध्यम से अल्लाह की इबादत करें और जन्नत तक पहुंचाने का रास्ता तलाश करें।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन रहमती नया ने आगे कहां,इल्म व अक्ल के दरमियान अक्ल को तरजीह दी जाती है,अक्ल के माध्यम से शिक्षा प्राप्त की जाती है जिस पर अमल करना जरूरी है अक्ल को हमेशा काबू में रखना चाहिए और धोखाधड़ी से दूर रहना चाहिए।

 

 

 

 

 

अमेरिका के दो विश्वविद्यालय प्रदर्शनकारी छात्रों की मांगें मानने पर सहमत हो गए हैं।

जहां कोलंबिया विश्वविद्यालय ने ज़ायोनी सरकार के अपराधों के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले छात्रों पर अस्थायी प्रतिबंध लगा दिया है, वहीं संयुक्त राज्य अमेरिका में कुछ विश्वविद्यालय फ़िलिस्तीनियों का समर्थन करने वाले छात्रों की मांगों को पूरा करने के लिए तैयार हैं

फ़ार्स न्यूज़ के अनुसार, गाजा में ज़ायोनी शासन के सैन्य हमले के विरोध में सैकड़ों छात्रों और कार्यकर्ताओं द्वारा अपने विश्वविद्यालय परिसरों में तंबू गाड़ने और विश्वविद्यालय के अधिकारियों के साथ एक समझौते पर पहुंचने के बाद संयुक्त राज्य भर के चुनिंदा विश्वविद्यालयों ने जीत का जश्न मनाया।

यूएसए टुडे ने बताया कि इलिनोइस में नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी सार्वजनिक रूप से यह घोषणा करने वाली पहली अमेरिकी यूनिवर्सिटी बन गई है कि उसने इस सप्ताह सोमवार और मंगलवार को छात्रों के साथ एक समझौता किया है। द्वीप राज्य में ब्राउन यूनिवर्सिटी के अधिकारियों ने कहा कि प्रदर्शनकारी छात्रों के साथ एक समझौता हो गया है।

इस अमेरिकी अखबार ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि विरोध प्रदर्शन का शांतिपूर्ण अंत और छात्रों की जीत एक बहुत ही महत्वपूर्ण उपलब्धि है, जबकि पिछले दो हफ्तों के दौरान अमेरिकी पुलिस बलों ने ज़ायोनी शासन के अपराधों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन को दबाने के लिए बल प्रयोग किया था. अमेरिकी विश्वविद्यालयों में प्रयास किये गये और व्यापक गिरफ्तारियाँ की गईं।

अप्रैल में जारी होने वाले एक सर्वे के अनुसार, अमेरिकियों की नई पीढ़ी, अपनी पुरानी पीढ़ियों के ख़िलाफ़, इस्राईलियों की तुलना में फिलिस्तीनियों के बारे में अधिक सकारात्मक दृष्टिकोण रखती है।

प्यू के हालिया सर्वेक्षण से पता चलता है कि अमेरिकी नौजवान, इस्राईलियों की तुलना में फिलिस्तीनी जनता से अधिक सहानुभूति रखते हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, 30 वर्ष से कम उम्र के एक तिहाई अमेरिकियों का कहना है कि वे पूरी तरह या ज़्यादातर फ़िलिस्तीनियों से सहानुभूति रखते हैं जबकि 14 प्रतिशत अमरीकी नौजवान, इस्राईलियों से सहानुभूति रखते हैं।

प्यू रिसर्च सेंटर के एक सर्वे में पेश आंकड़े

इस सर्वेक्षण के अनुसार, अमेरिकी नौजवानों के पास इस्राईलियों की तुलना में फिलिस्तीनी जनता के बारे में अधिक पॉज़िटिव राय है। इस सर्वे के आधार पर, 30 वर्ष से कम आयु के दस अमेरिकी नौजवानों में से 6 का फ़िलीस्तीनियों के बारे में सकारात्मक नज़रिया है, जबकि 46 प्रतिशत का इस्राईलियों के बारे में सकारात्मक दृष्टिकोण है। हालिया वर्षों में अमेरिकी युवाओं के बीच इजरायलियों के लिए नज़रिए ख़राब हुए हैं।

प्यू रिसर्च सेंटर के सर्वे में उपलब्ध आंकड़े

2019  के बाद से इस्राईलियों के प्रति अनुकूल दृष्टिकोण वाले 30 वर्ष से कम उम्र के वयस्कों की हिस्सेदारी में 17 प्रतिशत की गिरावट आई है जबकि इस अवधि में फिलिस्तीनियों के बारे में पाए जाने वाले विचारों में कोई बदलाव नहीं आया है।

इस सर्वे के मुताबिक अमेरिकियों की पुरानी पीढ़ियों की तुलना में उनका झुकाव इस्राईल की ओर ज़्यादा है। मौजूदा विश्लेषणों के मुताबिक इसकी एक वजह इन पीढ़ियों की जानकारी के स्रोत में पाया जाने वाला फ़र्क़ है।

पुरानी पीढ़ियां, उन टेलीविज़न और समाचार चैनलों पर निर्भर थीं जो  अमेरिकी सत्ता पक्षों के नियंत्रण में थे जबकि नई पीढ़ी को इसकी जानकारी सीधे और मध्यस्थों के बिना सोशल नेटवर्क से मिलती है जो स्वाभाविक रूप से अधिक स्वतंत्रता होते हैं और समाचार संपादकों के प्रबंधन की ज़ंजीरों से आज़ाद होते हैं।

यह सर्वे पिछले महीने और ग़ज़ा में फिलिस्तीनी जनता पर इस्राईल के बड़े पैमाने पर हमले के मद्देनजर किया गया था।

7  अक्टूबर 2024 से, कई पश्चिमी देशों के पूर्ण समर्थन से, इस्राईल ने ग़ज़ा पट्टी और जॉर्डन नदी के पश्चिमी तट में फिलिस्तीनियों के ख़िलाफ बड़े पैमाने पर नरसंहार शुरू किया है।

ताज़ा रिपोर्टों के अनुसार, ग़ज़ा पर ज़ायोनी शासन के हमलों में 34000 से अधिक फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं और 77000 से अधिक घायल हुए हैं जबकि 10000 से अधिक फ़िलिस्तीनी लापता बताए जा रहे हैं।

ज़ायोनी शासन की स्थापना 1917 में ब्रिटिश साम्राज्य के षड्यंत्र और विभिन्न देशों ज्यादातर यूरोप से यहूदियों के फिलिस्तीन की भूमि पर पलायन के माध्यम से की गई थी और इसके अस्तित्व का एलान 1948 में किया गया था।

तब से लेकर आज तक फ़िलिस्तीनियों का नरसंहार करने और उनकी पूरी ज़मीन पर कब्ज़ा करने के लिए सामूहिक हत्या की विभिन्न योजनाएं अपानाई गयी हैं।

इस्लामी गणतंत्र ईरान सहित दुनिया के कई देश ज़ायोनी शासन के विघटन और यहूदियों की उनके मूल देशों में वापसी को इस समस्या का समाधान मानते हैं।इस्लामी गणतंत्र ईरान का मानना ​​है कि फ़िलिस्तीनियों को इस बारे में ख़ुद की फ़ैसला करने का हक़ है और जनमत संग्रह के माध्यम से वे बताएं कि वे इन यहूदी पलायनकर्ताओं को स्वीकार करना चाहते हैं या नहीं।