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मंगलवार, 26 दिसम्बर 2017 11:38

हज़रत ईसा मसीह का शुभ जन्म दिवस

सलाम हो ईश्वर का संदेश लाने वालों पर, सलाम हो उन पर जो ईश्वरीय दया की वर्ष की तरह प्यासी आत्माओं पर बरसते हैं और इंसान की मुरझाई हुई आत्मा को, उच्चतम ईश्वरीय शिक्षाओं की बारिश से प्रफुल्लित करते हैं।

ईश्वर का सलाम हो ईसा मसीह पर जिन्होंने मरे हुए लोगों को जीवित और सोए हुए लोगों को जागृत किया। सलाम हो उनकी महान माता पर जिन्होंने न्याय व शांति की प्यासी मानवता को इस प्रकार के इंसान का तोहफ़ा दिया और सलाम हो हज़रत ईसा के सच्चे अनुयाइयों पर जो उनकी और अन्य ईश्वरीय दूतों की उच्च शिक्षाओं व विचारों का प्रचार करते हैं।

25 दिसम्बर ईश्वरीय पैग़म्बर हज़रत ईसा मसीह का शुभ जन्म दिवस है, वे ऐसे पैग़म्बर थे जो संसार के सभी लोगों को प्रेम और ईश्वरीय खोज की शुभ सूचना देने वाले थे। उन्होंने ईश्वर के आदेश पर झूले से ही बात करना शुरू कर दी और निश्चेत लोगों को इस प्रकार संबोधित कियाः मैं ईश्वर का बंदा हूं, उसने मुझे (आसमानी) किताब दी है और मुझे पैग़म्बर बनाया है। मैं जहां भी रहूं मुझे बरकत वाला बनाया है और जब तक मैं जीवित हूं मुझे नमाज़ और ज़कात की सिफ़ारिश की है। (ईश्वर का) सलाम हो मुझ पर जिस दिन मैंने जन्म लिया, जिस दिन मैं मरूंगा और जिस दिन पुनः उठाया जाऊंगा।

हज़रत ईसा मसीह उस काल में दुनिया में आए जब विभिन्न यहूदी गुटों के बीच अपने धर्म के बारे में अत्यधिक मतभेद फैला हुआ था। सेडूसीज़ और फ़ैरीसीज़ जैसे दो मुख्य गुटों का लोगों की आस्थाओं पर गहरा प्रभाव था। सेडूसीज़ गुट में अधिकतर धन संपन्न लोग और धर्मगुरू थे जो अपनी धार्मिक परंपराओं की रक्षा के लिए रोम साम्राज्य से सहयोग करते थे और यूनानी संस्कृति से उनका कोई टकराव नहीं था क्योंकि उनका मानना था कि ईश्वर ने अपनी पवित्र किताब के आचरण और शिष्टाचार ग़ैर यहूदियों में भी प्रसारित किए हैं।

इसके मुक़ाबले में फ़ैरीसीज़ गुट था जिसमें अधिकतर साधारण लोग थे जो धर्मगुरू तो न थे लेकिन उनका प्रभाव सेडूसीज़ से अधिक था। उनका मानना था कि यहूदी जाति को अन्य लोगों से अलग होना चाहिए, उन्हें दूसरों का अनुसरण नहीं करना चाहिए और उनके साथ घुल मिल कर नहीं रहना चाहिए। उनका कहना था कि यहूदियों को अपने धर्म व संस्कृति के मूल्य पर धन व सत्ता हासिल करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। फ़ैरीसीज़ गुट फ़िलिस्तीन में हर जगह मौजूद था और उन्होंने उन उपासना स्थलों पर भी अपना नियंत्रण जमा लिया था जो यहूदियों ने बैतुल मुक़द्दस के बाहर बनाए थे और जहां वे अध्ययन और उपासना के लिए एकत्रित होते थे।

इन दो गुटों के अलावा यहूदियों में सामेरी और ज़िलोट्स जैसे कुछ अन्य गुट भी मौजूद थे। सामेरियों को अन्य मत के लोग काफ़िर मानते थे जबकि ज़िलोट्स युद्धक गुट था जो रोमियों के हाथों फ़िलिस्तीन के अतिग्रहण के ख़िलाफ़ आतंकवाद का सहारा लेता था। यह गुट न केवल रोम वालों को बल्कि अपने विचार में पर्याप्त धर्म परायणता न रखने वाले अपने हमवतन यहूदियों को हमलों का निशाना बनाता था।

हज़रत ईसा मसीह अलैहिस्सलाम इस प्रकार के वातावरण में पैदा हुए। यहूदी जाति के विद्वानों को, अपनी प्राचीन किताबों और भविष्यवाणियों के माध्यम से उनकी विशेषताओं का ज्ञान था लेकिन उन्होंने आरंभ में ही उन सभी बातों की अनदेखी कर दी और इस ईश्वरीय पैग़म्बर के मुक़ाबले में उठ खड़े हुए। उन्होंने पहले क़दम के तौर पर हज़रत ईसा मसीह की माता पर व्यभिचार का आरोप लगाया ताकि मां और बेटे दोनों को लोगों की नज़रों से गिरा दें। लेकिन हज़रत ईसा मसीह अलैहिस्सलाम ने झूले में ही यह कह कर उनके सभी षड्यंत्रों को विफल बना दिया कि मैं ईश्वर का बंदा हूं, उसने मुझे किताब अर्थात इंजील दी है और मुझे पैग़म्बर बनाया है। इस प्रकार मां और बेटा दोनों शत्रुओं के षड्यंत्रों से सुरक्षित रहे।

हज़रत ईसा मसीह सन तीस ईसवी के आस-पास पैग़म्बरी के पद पर नियुक्त हुए। जैसा कि इंजील से पता चलता है उन्होंने लोगों के बीच अपनी पैग़म्बरी की घोषणा की। उन्होंने लोगों को अपने अनुसरण का निमंत्रण दिया और कोशिश की कि यहूदियों के बीच प्रचलित हो जाने वाली पथभ्रष्टताओं का मुक़ाबल करें। उन्होंने यहूदियों के बीच वर्जित व वैध बातों को लेकर जो मतभेद थे उन्हें स्पष्ट किया और कुछ चीज़ें जो उनके लिए वर्जित हो गई थीं, उन्हें वैध घोषित किया। मत्ता की इंजील में लोगों को संबोधित करते हुए उनका जो पहला वाक्य लिखा हुआ है वह यह है कि हे लोगो! तौबा व प्रायश्चित करो कि आकाश का राज्य निकट है।

हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम लोगों के मार्गदर्शन के साथ ही रोगियों को भी स्वस्थ कर देते थे। वह जन्मजात अंधे को आंखें प्रदान कर देते थे, कोढ़ियों को ठीक कर देते थे और मर जाने वालों को जीवित कर देते थे। वे मिट्टी से पक्षी बनाते और उसमें फूंक मारते थे तो ईश्वर की आज्ञा से उसमें जान पड़ जाती थी। हज़रत ईसा मसीह वंचितों और कमज़ोरों के सहायक थे और बच्चों व महिलाओं के साथ अत्यधिक भलाई करते थे लेकिन इसी के साथ वे कुछ फ़ैरीसीज़ की कड़ाइयों और कट्टरपंथी ज़िलोट्स के अतिवाद के विरोधी थे।

हज़रत ईसा मसीह अलैहिस्सलाम ने लोगों के मार्गदर्शन और यहूदियों को सही मार्ग पर लाने में अत्यधिक कठिनाइयां सहन कीं। इन कठिनाइयों और दुखों के दौरान उन्हें यह समझ में आया कि बनी इस्राईल के कुछ लोग, जो उनके विरोध और पाप पर आग्रह कर रहे हैं, अपनी पथभ्रष्टता नहीं छोड़ेंगे। इस लिए वे लोगों के बीच गए और उनसे पूछा कि ईश्वर के मार्ग में कौन मेरी मदद करेगा? कुछ ही लोगों ने उनकी बात का सकारात्मक जवाब दिया। ये वे पवित्र लोग थे जिन्हें ईश्वर ने क़ुरआने मजीद में "हवारी" कहा है। हवारियों ने हज़रत ईसा मसीह अलैहिस्सलाम की हर तरह की मदद करने के लिए अपनी तैयारी की घोषणा की और कहा कि हम ईश्वर के (धर्म) के सहायक हैं। हम ईश्वर पर ईमान लाए हैं और हे ईसा! आप भी गवाह रहिए कि हम ईश्वर के प्रति समर्पित हैं। प्रभुवर! जो कुछ तूने उतारा है हम उस पर ईमान लाए और हमने तेरे पैग़म्बर का अनुसरण किया अतः हमें उन लोगों की पंक्ति में रख जिन्होंने (हज़रत ईसा की पैग़म्बरी की) गवाही दी।

हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम हवारियों के साथ फ़िलिस्तीन के उत्तरी क्षेत्रों में पहुंचे और उन्होंने लोगों को ईश्वर के वास्तविक धर्म से परिचित कराया। हज़रत ईसा लोगों को जो ईश्वरीय शिक्षाएं देते थे उनसे लोग आश्चर्यचकित जबकि समाज पर राज करने वाले क्रोधित हो जाते थे क्योंकि हज़रत ईसा यहूदी धर्म के प्रतिष्ठित लोगों के ऐश्वर्य में डूबने और भोग विलास का कड़ा विरोध करते थे। हज़रत ईसा के लिए किसी भी प्रकार के अपराध का कोई औचित्य नहीं है, इसी लिए अधिकतर लोग उनके विरोधी हो गए और उनकी हत्या की साज़िशें रची जाने लगीं। उन लोगों ने अपने इस निंदनीय लक्ष्य को पूरा करने के लिए रोम के शासक को उकसाया और उससे कहा कि अगर यह स्थिति जारी रही तो तुम्हारा शासन समाप्त हो जाएगा अतः तुम्हारे पास अपने शासन को बचाने के लिए ईसा की हत्या करने के अलावा कोई मार्ग नहीं है।

हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को उनके षड्यंत्र की सूचना मिल गई और वे हवारियों के साथ एक बाग़ में चले गए और वहीं पर छिप कर रहने लगे लेकिन यहूदा नाम के एक व्यक्ति ने उनके ठिकाने के बारे में शासक को बता दिया। सरकारी कारिंदों ने रात में वहां पर हमला किया और हवारियों को घेर लिया। हवारियों ने जब अपने को ख़तरे में देखा तो हज़रत ईसा को अकेले छोड़ दिया लेकिन उन ख़तरनाक क्षणों में ईश्वर ने उन्हें अकेला नहीं छोड़ा और उनकी मदद की। उसने उनके अस्तित्व को लोगों की नज़रों से ओझल कर दिया। इसी के साथ उसने यहूदा के चेहरे को, जो हमेशा हज़रत ईसा की चुग़ली किया करता था और उनके ठिकाने के बारे में सरकारी कारिंदों को बता दिया करता था, हज़रत ईसा जैसा बना दिया। इसके बाद सरकारी कारिंदों ने उसे हज़रत ईसा की जगह गिरफ़्तार कर लिया। यहूदा क्रोध व भय के कारण कुछ बोल ही नहीं पाया और जब वह बोलने योग्य हुआ तो किसी ने भी उसकी बात स्वीकार ही नहीं की और उसे सूली पर लटका दिया गया। देखने वालों को लगा कि हज़रत ईसा मार दिए गए लेकिन क़ुरआने मजीद के शब्दों में न उन्होंने ईसा की हत्या की और न ही उन्हें सूली पर लटकाया बल्कि बात उनके लिए संदिग्ध हो गई।

हज़रत ईसा मसीह को ईश्वर ने आसमान पर पहुंचा दिया जिसके बाद हवारियों ने उनके मार्ग को आगे बढ़ाने की ज़िम्मेदारी संभाली। हवारियों में से पीटर या शमऊन को, जो हज़रत ईसा पर सबसे पहले ईमान लाए थे, लोगों के मार्गदर्शन का दायित्व सौंपा गया। उन्होंने हवारियों को हज़रत ईसा के आदेश के अनुसार बनी इस्राईल की विभिन्न जातियों और संसार के विभिन्न स्थानों पर भेजा ताकि वे हर जगह इंजील का संदेश पहुंचा दें।

एक दिन हज़रत ईसा हवारियों के पास गए और कहा कि मेरी एक इच्छा है, अगर तुम लोग वादा करो कि उसे पूरा करोगे तो मैं तुम्हें बताऊं। उन्होंने कहा कि हे ईश्वर के पैग़म्बर आप जो भी आदेश देंगे, हम पूरा करेंगे। हज़रत ईसा अपने स्थान से उठे और उनके पैरों की ओर झुके। फिर उन्होंने उन सबके पैर धोने शुरू किए। हवारियों को बड़ी शर्म आई लेकिन चूंकि वे वादा कर चुके थे इस लिए वे ख़ामोश रहे। जब वे सबके पैर धो चुके तो हवारियों ने पूछाः हे ईश्वरीय पैग़म्बर! आप हमारे गुरू हैं, उचित तो यह था कि हम आपके पैर धोते, आपने हमारे पैर क्यों धोए? हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम ने कहाः मैंने यह इस लिए किया ताकि तुम्हें यह समझा सकूं कि लोगों की सेवा के लिए सबसे उचित व्यक्ति, ज्ञानी है। मैंने यह विनम्रता दर्शाने के लिए किया ताकि तुम लोग विनम्रता सीखो और मेरे बाद, जब लोगों के मार्गदर्शन का दायित्व संभालो तो विनम्रता का मार्ग अपनाओ। मूल रूप से तत्वदर्शिता घमंड और अहंकार में नहीं बल्कि विनम्रता के बिस्तर पर फलती फूलती है जिस प्रकार से कि पौधा, न रेगिस्तान में और न पथरीली ज़मीन में बल्कि नर्म मिट्टी में उगता है।

फ़िलिस्तीन के विदेश मंत्रालय ने ग्वाटेमाला द्वारा अपना दूतावास बैतुल मुक़द्दस (येरूशलम) स्थानांतरित करने के फ़ैसले की कड़ी निंदा की है।

सोमवार को एक बयान जारी करके फ़िलिस्तीन के विदेश मंत्रालय ने ग्वाटेमाला के राष्ट्रपति जिम्मी मोरेल्स द्वारा अपने देश का दूतावास तेल-अवीव से बैतुल मुक़द्दस स्थानांतरित करने को एक ग़ैर क़ानूनी क़दम बताया है।

फ़िलिस्तीनी विदेश मंत्रालय के बयान में उल्लेख किया गया है कि ग्वाटेमाला का यह फ़ैसला बैतुल मुक़द्दस के ईसाई नेताओं की मांग के विरुद्ध एवं संयुक्त राष्ट्र संघ महासभा द्वारा गुरुवार को पारित किए गए प्रस्ताव का उल्लंघन है।

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने गुरुवार को अमरीका द्वारा बैतुल मुक़द्दस को इस्राईल की राजधानी घोषित किए जाने के फ़ैसले को 9 के मुक़ाबले 128 वोटों से रद्द कर दिया था।

ग़ौरतलब है कि विश्व समुदाय के व्यापक विरोध के बावजूद, वाशिंग्टन के नक़्शे क़दम पर चलते हुए ग्वाटेमाला ने भी अपना दूतावास बैतुल मुक़द्दस स्थानांतरित करने की घोषणा की है।

अमरीका के बाद मध्य अमरीकी देश ग्वाटेमाला ऐसा दूसरा देश है, जिसने अपना दूतावास बैतुल मुक़द्दस स्थानांतरित करने का फ़ैसला किया है।

6 दिसम्बर को अमरीकी राष्ट्रपति ने बैतुल मुक़द्दस को इस्राईल की राजधानी घोषित किया था और कहा था कि वाशिंग्टन अपनी राजधानी तेल-अवीव से बैतुल मुक़द्दस स्थानांतरित करेगा।

वर्तमान में बैतुल मुक़द्दस में किसी भी देश का कोई दूतावास नहीं है।  

 

भारत के विदेशमंत्रालय ने रोहिंग्या मुसलमानों की राख़ीन प्रांत वापसी के लिए म्यांमार सरकार को 2 करोड़ 50 लाख डाॅलर की सहायता की सूचना दी है।

इर्ना की रिपोर्ट के अनुसार भारत के विदेशमंत्रालय ने शुक्रवार को बताया कि नई दिल्ली ने म्यांमार सरकार के साथ समझौता किया है कि पांच साल के दौरान 2 करोड़ 50 लाख डाॅलर म्यांमार को दिया जाएगा ताकि वह राख़ीन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों की वापसी के लिए आधार भूत ढांचा तैयार करे।

इस सहमति के आधार पर भारत की ज़िम्मेदारी होगी कि वह रोहिंग्या पलायनकर्ताओं की आवश्यकताओं को तुरंत दूर करने के लिए राख़ीन प्रांत में घरों का निर्माण करे और इस प्रांत में विकास की योजनाओं को शुरु करे।

ज्ञात रहे कि म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमान वर्षों से अपने मूल अधिकारों से वंचित हैं और इस देश की सरकार इनको अपना नागरिक स्वीकार करने को तैयार है।

25 अगस्त 2015 अब तक बड़ी संख्या में रोहिंग्या मुसलमान, म्यांमार की कट्टरपंथी सेना और बौद्ध चरमपंथियों के हमलों से अपनी जान बचाने के लिए बांग्लादेश फ़रार हो गयी है।  

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने 26वें देश व्यापी नमाज़ सम्मेलन के नाम अपने संदेश में नमाज़ के निमंत्रण के लिए सभी संभावनाओं के इस्तेमाल की आवश्यकता पर बल दिया है।

आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने गुरुवार को अपने इस संदेश में कहा है कि नमाज़ के वार्षिक सम्मेलन के आयोजक इस ईश्वरीय सामर्थ्य का मूल्य समझें और इस सीधे रास्ते पर आग्रह करके यह जान लें कि ईश्वर धैर्य व प्रतिरोध करने वालों के साथ है। उन्होंने कहा है कि नमाज़ का निमंत्रण, जीवन के सुंदरतम जलवों का निमंत्रण है क्योंकि नमाज़ जीवन का एक अध्याय है जिसमें अपने रचयिता और सभी अच्छाइयों व सौंदर्य के मालिक के सामने प्रेमपूर्ण ज़रूरतों को अभिव्यक्त करता है और अपने मन व मस्तिष्क की सुंदरता व भलाई में वृद्धि करता है। उन्होंने क़ुरआने मजीद और हदीसों में नमाज़ की सिफ़ारिश के लिए प्रभावी भाषा को नमाज़ के निमंत्रण की इसी विशेषता का चिन्ह बताया और कहा कि ईश्वर के पवित्र व नेक बंदों को अपने लिए एक पाठ समझना चाहिए और नमाज़ का निमंत्रण देना चाहिए।

 

ज्ञात रहे कि 26वां देश व्यापी नमाज़ सम्मेलन गुरुवार से ईरान के सरकारी अधिकारियों, सांस्कृतिक हस्तियों और शिया व सुन्नी धर्मगुरुओं की उपस्थिति में दक्षिणी ईरान के बंदर अब्बास शहर में शुरू हुआ है।

तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम आयतुल्लाह मुहम्मद इमामी काशानी ने कहा कि यमन को मिसाइल देने का ईरान के ख़िलाफ़ अमरीका का आरोप निराधार है और इस आरोप का कोई सुबूत नहीं है।

आयतुल्लाह मुहम्मद इमामी काशानी ने नमाज़े जुमा के ख़ुतबों में कहा कि यमन के भीतर मिसाइलों के निर्माण में ईरान का हाथ नहीं रहा है और न ही ईरान से यमन मिसाइल की सप्लाई का कोई साक्ष्य है।

तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम ने कहा कि अमरीका तो आले सऊद शासन को अरबों डालर के हथियार बेच रहा है क्षेत्र में संकट बना रहे और यमन पर बमबारी जारी रहे लेकिन कोई भी देश इस पर आपत्ति नहीं जता रहा है।

आयतुल्लाह मुहम्मद इमामी काशानी ने कहा कि अमरीका के राष्ट्रपति ट्रम्प ईरान के ख़िलाफ़ निराधार आरोप इलाक़े में अपनी विफलताओं पर पर्दा डालने के लिए लगा रहे हैं। उन्होंने कहा कि ट्रम्प ने अमरीकी राष्ट्र को अपमानित करके रख दिया है। आयतुल्लाह मुहम्मद इमामी काशानी ने कहा कि बैतुल मुक़द्दस को व्यवहारिक रूप से इस्राईल की राजधानी बना पाना असंभव है।

तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम ने कहा कि अमरीका ने हमेशा इस्लाम के ख़िलाफ़ काम किया है और उसने सऊदी अरब के साथ मिलकर दाइश का गठन किया लेकिन उसकी यह साज़िश भी नाकाम हो गई।

 

ग़ज़्ज़ा पट्टी में फ़िलिस्तीनियों के आक्रोश दिवस के अवसर पर निकाले गये प्रदर्शन पर इस्राईली सैनिकों की फ़ायरिंग में एक फ़िलिस्तीनी युवा शहीद हो गया।

बैतुल मुक़द्दस के बारे में अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के फ़ैसले का विरोध करते हुए फ़िलिस्तीन जनता तीन सप्ताह से लगाकर प्रदर्शन कर रही है। प्रदर्शनकारी फ़िलिस्तीनियों और ज़ायोनी सैनिकों के बीच जार्डन नदी के पश्चिमी तट, ग़ज़्ज़ा और अवैध अधिकृत बैतुल मुक़द्दस के विभिन्न क्षेत्रों में झड़पें हुईं। सूतरों ने बताया कि उत्तरी ग़ज़्ज़ा पट्टी के जेबालिया क्षेत्र में गोली लगने से एक फ़िलिस्तीनी युवा ज़करिया कफ़ारेना शहीद और चार अन्य फ़िलिस्तीन घायल हो गये।

हज़ारों की संख्या में फ़िलिस्तीनियों ने जुमे की नमाज़ के बाद पश्चिमी तट और ग़ज़्ज़ा पट्टी के विभिन्न क्षेत्र में बैतुल मुक़द्दस को इस्राईल की राजधानी के रूप में स्वीकार करने के डोनल्ड ट्रम्प के फ़ैसले का विरोध करते हुए प्रदर्शन किए। 

ज़ायोनी सैनिकों ने शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे फ़िलिस्तीनियों को तितर बितर करने के लिए रबड़ की गोलियां चलाईं और आंसू गैस के गोले फ़ायर किए। 

फ़िलिस्तीन की समाचार एजेन्सी मअन ने रिपोर्ट दी है कि प्रदर्शन के दौरान बैते लहम में कई फ़िलिस्तीनी घायल हुए है जबकि सिफ़्लीत शहर में गोली लगने से दो फ़िलिस्तीनी युवा घायल हो गये। 

इससे पहले फ़िलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा था कि जब से अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने बैतुल मुक़द्दस को ज़ायोनी राजधानी के रूप में मान्यता दी है तब से इस फ़ैसले के विरुद्ध प्रदर्शनों के दौरान होने वाली झड़पों में 11 फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं।

फ़िलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय के प्रवक्ता ओसामा नज्जार ने गुरुवार को कहा कि बैतुल मुक़द्दस, जार्डन नदी के पश्चिमी तट, ग़ज़्ज़ा पट्टी तथा फ़िलिस्तीन के अन्य क्षेत्रों में फ़िलिस्तीनियों और इस्राईली सैनिकों के बीच हालिया दस दिनों से जारी झड़पों में अब तक 3300 से अधिक लोग घायल हो चुके हैं।  

 

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इस्लामी गणतंत्र ईरान के साथ भारत के संबंध को मैत्रीपूर्ण बताया है।

शुक्रवार को नई दिल्ली में नए साल के उपलक्ष्य में विदेशी पत्रकारों के लिए आयोजित भोज में उन्होंने कहा कि भारत-ईरान संबंध बहुत अच्छी हालत में और यह संबंध निरंतर विस्तृत हो रहे हैं।

भारतीय विदेश मंत्री ने पत्रकार द्वारा उनके हालिया ईरान दौरे के बारे में पूछे गए सवाल पर कहा कि उनका तेहरान में थोड़े समय के लिए ठहरना बहुत लाभदायक रहा। भारतीय विदेश मंत्री दक्षिण-पूर्वी ईरान में स्थित चाबहार बंदरगाह के पहले फ़ेज़ के उद्घाटन समारोह में भाग लेने के लिए ईरान  आयी थीं।

सुषमा स्वराज ने बल दिया कि ईरान-भारत संबंधों में विस्तार का विजन बहुत व्यापक है।

 

पाकिस्तानी सेना के जनसंपर्क विभाग के डायरेक्टर जनरल मेजर जनरल आसिफ़ ग़फ़ूर का कहना है कि पाकिस्तान, अमरीकी सहायता के लिए आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध नहीं कर रहा है और न ही ब्रिकी के लिए है।

उन्होंने डाॅन न्यूज़ के एक कार्यक्रम में कहा कि जिस प्रकार पाकिस्तान ने आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध किया है किसी और देश ने नहीं किया, पाकिस्तान और अमरीका के बीच अच्छे संबंध रहने चाहिए, घटक एक दूसरे को नोटिस नहीं देते, आरोप नहीं लगाते, बातचीत चाहे फ़ाॅरेन डिप्लोमेसी के माध्यम से हो या मिलिट्री डिप्लोमेसी के माध्यम से चलती रहनी चाहिए और यह चलेगी।

अमरीका की ओर से पाकिस्तान से दबाव डालने और उसकी सफलताओं को स्वीकार न करने के बारे में उन्होंने कहा कि इसका बहुत बड़ा संबंध माहौल से है, पाकिस्तान ने अपनी सीमा में आतंकवादियों के विरुद्ध कार्यवाही की और उन्हें पराजित किया, अफ़ग़ानिस्तान का अपना इतिहास, सभ्यता और भूगोल है जिनका जब विदेशी सेनाएं सामना करती हैं तो उन्हें कई चुनौतियों का सामना होता है इसलिए वहां युद्ध करना इतना आसान नहीं है। मेजर जनरल आसिफ़ ग़फ़ूर का कहना था कि अमरीका ने इस संबंध में पाकिस्तान से सहयोग मांगा जो हमने दिया।

उन्होंने कहा कि हमने अपने भाग का बहुत काम कर लिया है अब अफ़ग़ानिस्तान की बारी है, हमने अफ़ग़ानिस्तान से मिलने वाले 2 हज़ार 600 किलोमीटर के क्षेत्र में आतंकवादियों के समस्त ठिकानों को समाप्त कर दिया, कई आतंकवादी गुट अफ़ग़ान सीमावर्ती क्षेत्र में सरकारी नियंत्रण न होने के कारण फ़रार हैं जिनको समाप्त करना अफ़ग़ानिस्तान की ज़िम्मेदारी है। 

मेजर जनरल आसिफ़ ग़फ़ूर का कहना था कि हम अफ़ग़ानिस्तान में अमरीका का युद्ध नहीं लड़ सकते, हम अमरीका के साथ हर प्रकार का रक्षा सहयोग करने को तैयार हैं और कर भी रहे हैं किन्तु ब्लेम गेम से कोई लाभ नहीं होगा। (AK)

अमरीका के साथ जारी तनाव के बीच पाकिस्तान नेक हा है कि अमरीका की राष्ट्रीय सुरक्षा की नई रणनीति में पाकिस्तान पर अपुष्ट आरोप लगाए गए हैं, पाकिस्तान इस प्रकार के बेबुनियाद आरोपों को ख़ारिज करता है जो पाकिस्तान की आतंकवाद निरोधक कोशिशों और क़ुरबानियों का इंकार करते हैं।

मंगलवार को पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की ओर से अमरीका की राष्ट्रीय सुरक्षा की नई रणनीति पर यह प्रतिक्रिया आई है।

अमरीका की नई रणनीति में पाकिस्तान से और अधिक सहयोग करने और आतंकवाद के विरुद्ध कोशिशों में तेज़ी लाने की मांग की गई है। अमरीका ने पाकिस्तान से यह भी कहा है कि यह इस बात का यक़ीन दिलाता रहे कि वह परमाणु हथियारों की संरक्षक है।

इसके जवाब में पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा है कि ज़िम्मेदार परमाणु शक्ति की हैसियत से पाकिस्तान ने अपने परमाणु केन्द्रों को सुरक्षित रखने के लिए अत्यंत उपयोगी, शक्तिशाली और केन्द्रित कमांड एंड कंट्रोल व्यवस्था स्थापित कर रखी है।

बयान में कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों का खुले आम उल्लंघन करने वाले, दक्षिणी एशिया में परमाणु हथियार लाने वाले और आतंकवाद को सरकारी रणनीति के रूप में प्रयोग करने वाले देश को इलाक़े का अगुवा कहा जा रहा है।

बयान में कहा गया है कि अफ़ग़ानिस्तान में अमरीका की उपस्थिति के बावजूद आतंकी संगठन अफ़ग़ानिस्तान के इलाक़े पाकिस्तान के ख़िलाफ़ प्रयोग कर रहे हैं।

 

खबर रूसिया अलयौम  द्वारा उद्धृत, 300 मुस्लिम विद्वानों ने, 36 संगठनों, यूनियनों और दुनिया भर के इस्लामी संस्थान का प्रतिनिधित्व करते हुऐ इस्तांबुल, तुर्की पत्रकार सम्मेलन में, उपस्थित होकर "उम्मते इस्लाम के विद्वानों' मन्शूर में भाग लेकर हस्ताक्षर किए जिसमें ज़ियोनिस्ट शासन के साथ किसी भी तरह के संबंधों के सामान्यीकरण को हराम किया है।
यह प्रेस सम्मेलन ज़िओनीस्ट शासन के साथ संबंधों को सामान्य बनाने के खतरे का सामना करने और इसके संबंधों का बहिष्कार करने के लिए "इस्लामी उम्मा के विद्वानो" चार्टर को पेश करने के उद्देश्य से आयोजित किया गया था।
प्रेस ब्रीफिंग ने इस बात पर जोर दिया कि इजरायल के साथ संबंधों का सामान्यीकरण फिलीस्तीनी मुद्दे और विरोध करने वाली परियोजना के लिए एक गंभीर खतरा है।
यह चार्टर 44 पैराऐ में जमा किया गया है जिन में महत्वपूर्ण मुद्दे जो प्रस्तुत हुऐ उनमें से इन "यहूदी शासन और शरई हुक्म और उनके कानून", "संबंधों को सामान्य बनाना और हाकिम का कार्य" "संबंधों को सामान्य बनाने के मुक़ाब्ले में प्रतिरोध के मूल तत्व" और " इसराइल के साथ सामान्य संबंध बनाने के मफ़ासिद और खतरे" की ओर इशारा किया जा सकता है ।
इस्लामिक उम्मा के पत्र में, यह कहा गया है कि इजरायल के साथ किसी तरह के संबंधों का सामान्यीकरण हराम है, क्योंकि यह विश्वास की आवश्यकताओं और दोस्ती और विश्वासियों के प्रति वफादारी के विरोधाभास में है।