
رضوی
इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की शहादत
पूरे इस्लामी जगत विशेषकर शिया समुदाय के लिए सन 260 हिजरी क़मरी की 8 रबीउल अव्वल दुख का संदेश लेकर आई।
आज ही के दिन जब इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की शहादत की ख़बर आम हुई तो सामर्रा के वे लोग भी इमाम असकरी के घर की ओर दौड़ पड़े जो लंबे समय से शासन के दमन के कारण अपनी आस्था को छिपाए हुए थे। इस दिन सामर्रा के लोग रोते-बिलखते, इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम के घर के बाहर एकत्रित हुए।
पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) के पौत्र इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम ग्यारहवें इमाम थे। आपका जन्म सन 232 हिजरी कमरी को हुआ था। इमाम हसन असकरी के पिता, दसवें इमाम, इमाम हादी अलैहिस्सलाम थे। इमाम असकरी की माता का नाम "हुदैसा" था जो बहुत ही चरित्रवान और सुशील महिला थीं। आपको असकरी इसलिए कहा जाता है क्योंकि तत्तकालीन अब्बासी शासक ने हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम और उनके पिता हज़रत इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को सामर्रा के असकरिया नामक एक सैन्य क्षेत्र में रहने पर मजबूर किया था ताकि उनपर नज़र रखी जा सके। इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम के उपनामों में नक़ी और ज़की है जबकि कुन्नियत अबू मुहम्मद है। जब आपकी आयु 22 वर्ष की थी तो आपके पिता इमाम अली नक़ी की शहादत हुई। इमाम हसन असकरी की इमामत का काल छह वर्ष था। आपकी आयु मात्र 28 वर्ष थी। शहादत के बाद इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम को उनके पिता इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम की क़ब्र के पास दफ़्न कर दिया गया।
महापुरूषों विशेषकर इमामों का जीवन लोगों के लिए आदर्श है। जो लोग उचित मार्गदर्शन और कल्याण की तलाश में रहते हैं उन्हें इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम का अनुसरण करना चाहिए। इमाम हसन असकरी, अपना अधिक समय ईश्वर की उपासना में बिताया करते थे। उनके बारे में कहा जाता है कि वे दिन में रोज़े रखते और रात में उपासना किया करते थे। वे अपने काल के सबसे बड़े उपासक थे। इमाम असकरी के साथ रहने वालों में से एक, "मुहम्मद शाकेरी" का कहना है कि मैंने कई बार देखा है कि इमाम पूरी-पूरी रात इबादत किया करते थे। वे कहते हैं कि रात में कभी-कभी मैं सो जाया करता था लेकिन जब भी सोकर उठता था तो देखता था कि वे इबादत में मशग़ूल हैं।
अपने पिता की शहादत के समय इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम 22 साल के थे। उनके कांधे पर उसी समय से इमामत अर्थात ईश्वरीय मार्गदर्शन का दायित्व आ गया था। आपकी इमामत का काल 6 वर्ष था। इमामत के छह वर्षीय काल में उनपर अब्बासी शासन की ओर से कड़ी नज़र रखी जाती थी। सरकारी जासूस उनकी हर गतिविधि पर नज़र रखते थे। एसे अंधकारमय काल में कि जब अज्ञानता से लोग जूझ रहे थे और भांति-भांति की कुरीतियां फैली हुई थीं, इमाम असकरी ने एकेश्वरवाद का पाठ सिखाते हुए लोगों को धर्म की वास्तविकता से अवगत करवाया। धर्म के मूल सिद्धांतों को लोगों तक पहुंचाने के लिए आपने अथक प्रयास किये। हज़रत इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम के जीवनकाल को मूलतः दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। पहला भाग वह है जिसे उन्होंने पवित्र नगर मदीने में व्यतीत किया। दूसरा भाग वह है जिसे उन्होंने इमामत का ईश्वरीय दायित्व संभालने के बाद सामर्रा में व्यतीत किया।
विरोधियों ने भी इमाम असकरी अलैहिस्सलाम की मानवीय विशेषताओं की पुष्टि की है। इस बारे में इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई कहते हैं कि इमाम के ज़माने के शिया, इमाम के विरोधी, धर्म पर आस्था न रखने वाले तथा अन्य सभी लोग इमाम के ज्ञान, उनकी पवित्रता, उनकी वीरता और अन्य विशेषताओं को स्वीकार करते थे। कठिनाइयों और समस्याओं के मुक़ाबले में इमाम का धैर्य और उनका प्रतिरोध प्रशंसनीय था। जब वे दुश्मनों के हाथों ज़हर से शहीद किये गए तो उनकी आयु मात्र 28 साल थी। 28 वर्ष की आयु में इमाम हसन असकरी ने अपनी योग्यताओं से जो स्थान लोगों के बीच बनाया था उसके कारण इमामत के विरोधी भी आपके आचरण और ज्ञान की प्रशंसा करते थे।
इमाम हसन असकरी का पूरा जीवन अब्बासी शाकसों के घुटन भरे राजनैतिक वातावरण में गुज़रा। आपने 28 वर्ष के अपने जीवनकाल में समाज पर एसी अमिट छाप छोड़ी जो आज भी मौजूद हैं। इतनी कम आयु में इमाम की शहादत यह दर्शाती है कि तत्कालीन अब्बासी शासक, इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम से कितना प्रभावित और चिंतित थे। इमाम पूरे साहस के साथ लोगों से कहा करते थे कि वे राजनैतिक मामलों में पूरी तरह से होशियार रहें। वे शासकों की अत्याचारपूर्ण नीतियों की आलोचना किया करते थे। यह कैसे संभव था कि जब समाज, अज्ञानता के अंधकार में पथभ्रष्टता के मार्ग पर चल निकले और वे उनके मार्गदर्शन के लिए कोई काम अंजाम न दें। इमाम असकरी अलैहिस्सलाम ने अपने दायित्व का निर्वाह पूरी ज़िम्मेदारी के साथ किया। अब्बासी शासक यह चाहते थे कि इमाम को नज़रबंद करके लोगों के साथ उनके सीधे संपर्क को समाप्त कर दिया जाए। इस प्रकार वे पैग़म्बरे इस्लाम (स) के परिजनों के प्रति अपनी शत्रुता का बदला लेते थे।
इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम के ऊपर तरह-तरह के प्रतिबंध थे। वे लोगों से सीधे तौर से मिल नहीं सकते थे। उनको एक स्थान पर नज़रबंद कर दिया गया था किंतु इसके बावजूद आपने लोगों तक ईश्वरीय संदेश पहुंचाया और उनको वास्तविकताओं से अवगत करवाया। एसे घुटन के वातावरण में इमाम ने न केवल यह कि लोगों तक अच्छाई के संदेश पहुंचाए बल्कि कुछ एसे लोगों का प्रशिक्षण भी किया जिन्होंने बाद में इस्लामी शिक्षाओं का प्रचार – प्रसार और लोगों की शंकाओं का निवारण किया। जिन शिष्यों का इमाम ने घुटन भरे काल में प्रशिक्षण किया उन्होंने बाद के काल में वास्तव में बहुत ही ज़िम्मेदारी से लोगों का मार्गदर्शन किया। इस्लामी जगत के एक जानेमाने विद्वान और धर्मगुरू शेख तूसी ने लिखा है कि इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम ने जिन शिष्यों का प्रशिक्षण किया उनकी संख्या 100 से भी अधिक हैं। उन्होंने उनमें से कुछ के नामों का उल्लेख इस प्रकार किया हैः अहमद अशअरी क़ुम्मी, उस्मान बिन सईद अमरी, अली बिन जाफ़र और मुहम्मद बिन हसन सफ्फार आदि।
बारह इमामों के बीच ग्यारहवें इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम का विशेष स्थान है। इसका मुख्य कारण यह था कि उनको 12वें इमाम के नज़रों से ओझल हो जाने वाले काल की भूमिका प्रशस्त करनी थी। अंधकारमय काल में जब तरह-तरह की बुराइयां और कुरीतियां आम थीं एसे में इमाम पूरी दृढ़ता के साथ लोगों के सामने वास्तविकताओं को रख रहे थे। उस काल मे शिया मुसलमानों विशेषकर उनके संभ्रांत लोगों पर बहुत अधिक दबाव था। एसे में इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम अपने मार्गदर्शनों से उन्हें दबावों से बचाने के प्रयास कर रहे थे। उनका प्रयास था कि उनके मानने वाले, राजनैतिक, सामाजिक और आर्थिक दबाव के बावजूद पूरी दृढ़ता के साथ अपने दायित्वों का निर्वाह कर सकें।
उस काल के एक वरिष्ठ शिया विद्धान "अली बिन हुसैन बिन बाबवैह क़ुम्मी" को पत्र लिखकर उनसे इस प्रकार कहा था कि तुम धैर्य से काम लो और इमाम के आने की प्रतीक्षा करो। वे कहते हैं कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) फ़रमाते थे कि मेरे मानने वालों का सबसे अच्छा कर्म, इमाम के आने की प्रतीक्षा करना है। मेरे शिया दुख और दर्द में होंगे कि इस बीच मेरा बेटा जो बारहवां इमाम होगा, प्रकट होगा। वह धरती पर न्याय स्थापित करेगा ठीक उसी प्रकार जैसे वह अत्याचार से भर चुकी होगी। हे बाबवैह, तुम स्वंय धैर्य करो और मेरे मानने वालों को भी धैर्य करने की शिक्षा दो। अच्छा अंजाम ईश्वर से भय रखने वालों का होगा।
इमाम हसन असकरी अलैहिस्सलाम की शहादत के दुखद अवसर पर पुनः हार्दिक संवेदना प्रकट करते हुए कार्यक्रम के अंत में उनके कुछ कथन पेश करते हैं। आप कहते हैं कि मैं तुमसे अनुरोध करता हूं कि तुम ईश्वर का भय रखो, धर्म का पालन करो, सच बोलो, लोगों की अमानतों को वापस करो, पड़ोसियों से अच्छा व्यवहार करो, लंबे सजदे करो और हमेशा प्रयासरत रहो। जो एसा करता है वह हमारा मानने वाला है। तुम हमारे लिए खुशी का कारण बनों दुख का नहीं। हमेशा ईश्वर को याद रखो। मौत को कभी न भूलो। पवित्र क़ुरआन पढ़ा करो और पैग़म्बरे इसलाम (स) पर दुरूद भेजो। मेरी इन बातों को याद रखो और उनपर अमल करो।
आईएस का अंत, अमरीका, ज़ायोनी और सऊदी साज़िशें नाकाम।
हुज्जतुल इस्लाम काज़िम सिद्दीक़ी ने जुमे की नमाज़ के विशेष भाषण में दाइश के अंत का उल्लेख करते हुए कहा कि अमरीका, ज़ायोनी शासन और सऊदी अरब दाइश के ज़रिए क्षेत्र में अराजकता, जंग, झड़प और अशांति फैलाना चाहते थे लेकिन उनकी साज़िशें नाकाम हो गयीं।
उन्होंने कहा कि मानव इतिहास में कोई ऐसा अपराध नहीं है जो दाइश ने न किया हो। उन्होंने कहा कि बेगुनाह लोगों का जनसंहार, उनकी गर्दने काटना, उन्हें आग में जलाना और मस्जिदों को ध्वस्त करना दाइश के अपराध का एक भाग है।
हुज्जतुल इस्लाम काज़िम सिद्दीक़ी ने दाइश पर जीत के तत्वों में वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई के मार्गदर्शन, आयतुल्लाह सीस्तानी के योगदान, आईआरजीसी की क़ुद्स ब्रिगेड के कमान्डर जनरल क़ासिम सुलैमानी की जंग के मैदान में युक्ति, इराक़ और सीरिया की सरकारों और इन दोनों देशों के स्वंय सेवी बल की ईश्वर पर आस्था और स्वंयसेवी बल की शहादत पाने की इच्छा, और इराक़ व सीरिया की सरकारों को ईरान की ओर से समर्थन को गिनवाया।
उन्होंने इस बात का उल्लेख करते हुए कि दुश्मन अभी भी ईरानोफ़ोबिया फैलाने की कोशिश में है, कहा कि दुश्मन ईरानोफ़ोबिया के ज़रिए इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था को नुक़सान पहुंचाना चाहता है लेकिन इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था दिन प्रतिदिन मज़बूत होती जा रही है।
मिस्र में मस्जिद मे विस्फोट, वहाबी सोच का नतीजाः हिज़बुल्लाह
लेबनान के हिज़बुल्लाह संगठन ने मिस्र में नमाज़ के दौरान किये गए विस्फोट की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए इसे वहाबी व तकफ़ीरी विचारधारा का परिणाम बताया है।
अलमनार के अनुसार हिज़बुल्लाह ने एक बयान जानी करके मिस्र में जुमे के दिन नमाज़ियों को लक्ष्य बनाकर उनकी हत्या करने की भर्त्सना की है। हिज़बुल्लाह का कहना है कि यह हमला, वहाबी व तकफीरी विचाराधारा का नतीजा है। हिज़बुल्लाह के अनुसार इस प्रकार के हमलों का उद्देश्य, इस्लामी देशों में अस्थिरता उत्पन्न करना है।
उल्लेखनीय है कि शुक्रवार को मिस्र के अलअरीश के "अर्रौज़ा" क्षेत्र में जुमे की नमाज़ के दौरान नमाज़ियों को लक्ष्य बनाकर मस्जिद के निकट विस्फोट पदार्थ रखा गया था जिसके विस्फोट होने और बाद में नमाज़ियों पर गोलीबारी के परिणाम स्वरूप कम से कम 235 लोग मारे गए और 100 से अधिक घायल हो गए। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि मस्जिद के बाहर चार वाहनों पर सवार सशस्त्र आतंकवादियों ने अपनी जान बचाकर भागने वाले नमाज़ियों पर फ़ाएरिंग की। इस घटना को मिस्र की अबतक की सबसे भयानक आतंकवादी घटना बताया जा रहा है।
ईरान, एकता का ध्वजवाहक, ईरान से दूर रहने वाले भी हुए हैरान
ईरान की राजधानी तेहरान में पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों से प्रेम करने वाले और तकफ़ीरी समस्या शीर्षक के अंतर्गत एक अंतर्राष्ट्रीय कांफ़्रेंस बुधवार को आरंभ हुई जिसमें दुनिया भर के लगभग पांच सौ बुद्धिजीवियों और प्रसिद्ध हस्तियों ने भाग।
यह इस प्रकार की पहली कांफ़्रेंस तेहरान में आयोजित हुई है जिसके लक्ष्यों में से एक लक्ष्य, दुनिया भर के मुसलमानों के बीच एकता पैदा करना है। यहां पर इस बात उल्लेख आवश्यक है कि ईरान में मुसलमानों के बीच एकता पैदा करने के लिए एकता सप्ताह के अवसर पर भी अंतर्राष्ट्रीय कांफ़्रेंस आयोजित होती है।
सुन्नी मुसलमान 12 रबीउल अव्वल जबकि शीया मुसलमान 17 रबीउल अव्वल को पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम का जन्म दिवस मनाते हैं। वर्षों पहले ईरान की इस्लाम क्रांति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी ने इस्लामी जगत में एकता का नारा लगाया और उन्होंने इस बात का प्रयोग मुसलमानों तथा विभिन्न संप्रदायों को एक दूसरे से निकट लाने के लिए किया और इन दोनों तारीख़ों के मध्य अंतर को मुसलमानों के मध्य “हफ्तये वहदत” अर्थात एकता सप्ताह के रूप में मनाये जाने की घोषणा की।
यह सप्ताह इस्लामी जगत में विशेषकर इस समय एकता व एकजुटता की आवश्यकता को बयान करने का बेहतरीन अवसर है क्योंकि इस समय दुनिया विशेषकर इस्लामी जगत को संकटों व समस्याओं का सामना है और एकता व एकजुटता से बहुत सी समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।
अब यहां पर प्रश्न यह उठता है कि जब ईरान में एकता सप्ताह की कांफ़्रेंस हर वर्ष होती है कि इस कांफ़्रेंस के आयोजन के पीछे क्या लक्ष्य है। इसका जवाब कांफ़्रेंस में गये रेडियो तेहरान के प्रतिनिधि अख़्तर रिज़वी ने कांफ़्रेंस में भाग लेने वालों से पूछा तो उनका कहना था कि लक्ष्य की दृष्टि से दोनों कांफ़्रेंस के लक्ष्य एक ही हैं किन्तु मुसलमानों के बीच एकता पैदा करना इस कांफ़्रेंस का एक लक्ष्य है जबकि इस कांफ़्रेंस के दूसरे भी लक्ष्य हैं जिसको कांफ़्रेंस के दौरान दुनिया भर से आए बुद्धिजीवियों और धर्मगुरुओं से बातचीत के माध्यम से प्राप्त किया जाएगा।
कांफ़्रेंस में शामिल सुन्नी समुदाय के धर्मगुरु ने कहा कि मुसलमानों के बीच एकता पैदा करने के लिए ईरान के इस क़दम का हम स्वागत करते हैं और हम दुनिया के अन्य मुस्लिम देशों से भी यह अपील करते हैं कि वह ईरान का अनुसरण करते हुए अपने अपने देशों में भी मुसलमानों के बीच एकता को मजब़ूत करने के लिए कांफ़्रेंस आयोजित करें। उनका कहना था कि आज के दौर में मुसलमानों के बीच एकता सबसे महत्वपूर्ण ज़रूरत बन गयी है।
उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान के जमीअते उलमा फ़ज़लुर्रहमान गुट के प्रतिनिधि ने कांफ़्रेंस में भाषण देते हुए कहा कि मैं ईरान से बहुत दूर था और मैं ईरान से घृणा करता था किन्तु यहां आने के बाद मेरा दृष्टिकोण पूरी तरह बदल गया। मैं ईरानियों को अपना दुश्मन समझता था किन्तु जिस प्रकार उन्होंने हमारा और दूसरे सुन्नी मुसलमान धर्मगुरुओं का स्वागत किया और उनका सम्मान किया, मैं देखकर आश्चर्यचकित रह गया।
दाइश का अंत, अमरीका और उसके घटकों के लिए झटका, वरिष्ठ नेता
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने बल दिया है कि दाइश के अभिशप्त अस्तित्व का अंत अमरीका की पूर्व और वर्तमान सरकारों तथा इस क्षेत्र में उसके घटकों के लिए एक अघात है कि जिन्हों ने इस गुट को बनाया था और हर तरह से उसकी मदद की थी ताकि पश्चिमी एशिया में अपना वर्चस्व बढ़ाएं और अतिग्रहणकारी ज़ायोनी शासन को इस क्षेत्र पर थोप सकें।
वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने क्रांति संरक्षक बल आईआरजीसी की कु़दस ब्रिगेड के कमांडर, जनरल क़ासिम सुलैमनी के पत्र का उत्तर देते हुए कहा कि ईश्वर अपने पूरे अस्तित्व से आभार प्रकट करता हूं कि उसने आप और आप के असंख्य साथियों के बलिदानों से भरे संघर्ष में मदद की और अत्याचारियों द्वारा बोए गये कांटों को उसने सीरिया और इराक़ में आप जैसे अपने योग्य दासों के हाथों साफ कराया।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि यह केवल अत्याचारी व निर्लज्ज दाइश के लिए ही अघात नहीं था बल्कि इस पराजय से, दाइश से अधिक उस दुष्टतापूर्ण नीति को नुक़सान पहुंचा है जिसके तहत भ्रष्ट दाइश संगठन के सरगनाओं द्वरा क्षेत्र में गृहयुद्ध भड़काने, ज़ायोनी शासन के विरोध प्रतिरोध मोर्चे के अंत और स्वाधीन सरकारों को कमज़ोर करने की साज़िश रची गयी थी।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का पवित्र रौज़ा ईरान के पवित्र नगर मशहद में श्रद्धालुओं से भरा पड़ा है।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की शहादत के दुःखद अवसर पर लोग श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए उनके पवित्र रौज़े पर जा रहे हैं। रौज़े पर जाने वालों में बूढ़े, बच्चे, जवान और महिलाएं सब शामिल हैं। इस दुःखद अवसर पर हम एक बार फिर आप सबकी सेवा में हार्दिक संवेदना प्रस्तुत करते हैं।
183 हिजरी क़मरी में इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम शहीद हो गये। उस समय इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की उम्र 35 साल थी। अपने पिता की शहादत के बाद इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने लोगों के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व संभाला। 201 हिजरी कमरी तक वे पवित्र नगर मदीना में रहे। उसी साल एक राजनीतिक चाल के तहत अब्बासी ख़लीफा मामून ने इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम का आह्वान किया कि वह मदीना से मर्व आ जायें। मर्व ईरान के खुरासान प्रांत का एक नगर है। उस समय वह अब्बासी शासकों की राजधानी था। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की मर्व की यात्रा उनके पावन जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। क्योंकि इस यात्रा से इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की आध्यात्मिक महानता और शैक्षिक स्थान अधिक स्पष्ट हो गया। इस प्रकार से कि जब मर्व और खुरासान के लोग इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की महानता और उनके महत्व से अगवत हो गये तो वे निकट से इमाम से मिलने और उनके ज्ञान के अथाह सागर से लाभ उठाने की अभिलाषा करने लगे। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम लगभग दो साल तक मर्व अर्थात प्राचीन खुरासान में रहे। उसके दो साल बाद 203 हिजरी कमरी में मामून अब्बासी ने उन्हें ज़हर दिलवा दिया जिसके कारण इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम सफर महीने के अंतिम दिन शहीद हो गये।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलिही व सल्लम और दूसरे इमामों की भांति नैतिकता और बंदगी की सही जीवन शैली के मापदंड थे। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम और दूसरे इमामों ने जिन कार्यों से मना किया है वह उन कार्यों की गूढ़ पहचान का नतीजा है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम पवित्र कुरआन की आयतों से लाभ उठाकर और पवित्र कुरआन को अपने जीवन में उतार कर एकेश्वरवाद का बीज बोते थे। इसी प्रकार इमाम पवित्र कुरआन से लाभ उठाकर अपना और दूसरों का ध्यान महान व सर्वसमर्थ ईश्वर की ओर दिलाते थे। लोगों को मुक्ति व कल्याण का मार्ग दिखाते थे। इमाम अलैहिस्सलाम एक सुन्दर बयान में फरमाते हैं” हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की अंगूठी पर यह दो वाक्य लिखे हुए थे जिन्हें इंजिल से लिया गया था “धन्य है वह बंदा जिसका देखना ईश्वर की याद का कारण बनता है और खेद है उस बंदे पर जिसका देखना ईश्वर के भूलने का कारण बने।“
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की उम्र 55 साल थी जिसमें से 20 साल तक उन्होंने इमामत की अर्थात लोगों के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व संभाला। यह वह समय था जब ज्ञान परवान चढ़ रहा था। उस समय इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम विभिन्न धर्मों के विद्वानों से शास्त्रार्थ करके सबको हतप्रभ कर रहे थे। आसमानी किताबों के प्रति इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के ज्ञान को देखकर सब चकित हो जाते थे। इस्लामी विद्वानों का मानना है कि इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की जो बातें हैं वे एक प्रकार से एकेश्वरवाद, नबुव्वत, इमामत, प्रलय, ईमान और कुफ्र आदि के बारे में कुरआन की आयतों की व्याख्या हैं। वास्तव में उनकी जो नसीहतें हैं वे रज़ा अलैहिस्सलाम की जीवन शैली है। आपके कथन नैतिकता के बारे में पवित्र कुरआन की आयतों के परिचायक है और पवित्र कुरआन इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की कथनी, करनी और विचारों में साक्षात हुआ है।
इब्राहीम बिन अब्बास इस बारे में कहता है” इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की बात, जवाब और बयान सबका स्रोत कुरआन होता था। वे हर तीन दिन में एक पूरा कुरआन ख़त्म कर देते और फरमाते थे” अगर मैं चाहता तो तीन दिन से पहले पूरा कुरआन खत्म कर लेता लेकिन मैं किसी आयत को पढ़कर नहीं गुज़रता किन्तु यह कि मैं उसके बारे में सोचता हैं कि वह कहां नाज़िल हुई?
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के एक अनुयाई ने आप से पूछा कि क़ुरआन के बारे में आपका क्या ख़याल है? इमाम ने जवाब में फरमाया कुरआन ईश्वरीय वाणी है उसकी सीमा को पार न करो और कुरआन के प्रकाश के अलावा कहीं और पथप्रदर्शन न ढूंढ़ो। अगर कहीं और से मार्गदर्शन चाहोगे तो गुमराह हो जाओगे।“
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ने अपनी इस बात से स्पष्ट कर दिया कि मार्ग दर्शन पवित्र कुरआन की शिक्षाओं में है और उससे आगे बढ़ जाना या पीछे रह जाना पथभ्रष्टता है। इमाम पवित्र कुरआन को मजबूत रस्सी और बंदों के मध्य सर्वोत्तम कानून बताते थे। क़ुरआन इंसान का मार्ग दर्शन स्वर्ग की ओर करता है और नरक से मुक्ति दिलाता है। समय बीतने से वह पुराना नहीं होगा और लोगों की जबानों पर उसके दोहराने से उसका मूल्य व प्रभाव कम नहीं होगा क्योंकि ईश्वर ने उसे किसी विशेष समय के लिए नाज़िल नहीं किया है बल्कि वह समस्त इंसानों के लिए सर्वकालिक है और उसमें किसी प्रकार असत्य प्रवेश नहीं कर सकता। वह तत्वदर्शी और प्रशसनीय ईश्वरीय की ओर से नाज़िल किया गया है।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम को आले मोहम्मद के ज्ञानी की उपाधि दी गयी है। अबासल्त ने लिखा है कि इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम अपने बेटों से कहते थे कि तुम्हारे भाई अली बिन मूसा पैग़म्बर के परिवार के ज्ञानी हैं। अपनी धार्मिक ज़रूरतों और शिक्षाओं को उनसे सीखो और उन्होंने जो कुछ तुम्हें सिखाया है उसे याद रखो।
अब्बासी खलीफा मामून इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की उपस्थिति में शास्त्रार्थ करवाता था। इस कार्य से वह यह नहीं चाहता था कि इमाम के ज्ञान की जो महानता है और पैगम्बरे इस्लाम के परिवार की जो सच्चाई है वह स्पष्ट हो बल्कि वह विभिन्न धर्मों व सम्प्रदायों के विद्वानों को बुलाता था और इमाम से उनका शास्त्रार्थ करवाता था ताकि उसके विचार में इस मार्ग से वह इमाम पर दबाव डाल सके। मामून जो सोचता था उसके विपरीत इस प्रकार के शास्त्रार्थों से उसे कोई लाभ नहीं पहुंचा बल्कि ज्ञान की सभाओं और शास्त्रार्थों से मामून की सरकार और उसकी खिलाफत के लिए समस्याएं उत्पन्न हो गयीं। इसी वजह से जब मामून यह समझ गया कि शास्त्रार्थों में इमाम की होशियारी भरी उपस्थिति से वह विद्वानों और लोगों के ध्यान का केन्द्र बन गये हैं और इमाम की इमामत के लिए भूमि प्रशस्त हो गयी है तो उसने इमाम को नियंत्रित करने का प्रयास किया। विद्वानों और लोगों के साथ इमाम के जो संबंध थे उसे मामून ने सीमित करने की चेष्टा की। इसी तरह उसने इमाम के साथ होने वाली बहसों और शास्त्रार्थों को प्रकाशित होने से रोकने का प्रयास किया। इसीलिए उसने मोहम्मद बिन अम्र को तूस भेजा ताकि वह लोगों को इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम की ज्ञान की सभाओं से दूर करे।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम आध्यात्मिक और उपासना के मामलों पर विशेष ध्यान देते थे। इमाम रज़ा अलैहस्सलाम अपने काल के सबसे सदाचारी उपासक थे और समस्त सदगुणों से सुसज्जित होने के कारण उन्होंने मानवता को वास्तविक अर्थ प्रदान कर दिया था।
रज़ा बिन अबी ज़ह्हाक कहता है ईश्वर की सौगन्ध किसी को भी मैंने इमाम रज़ा से बड़ा सदाचारी, ईश्वर को याद करने वाला और उससे डरने वाला नहीं पाया। इमाम हमेशा मुसलमानों की समस्याओं पर ध्यान देते थे और उनके निदान के लिए बहुत प्रयास करते थे। बीमारों को देखने के लिए जाते और बहुत ही नम्र भाव से अतिथि सत्कार करते थे। इमाम रज़ा अलैहिस्लाम के ज्ञान के कारण इस्लामी जगत के विद्वान और महान हस्तियां उनकी सेवा में हाज़िर होती थीं। इमाम अलैहिस्सलाम ने अपनी इमामत के काल में बहुत से विद्वानों का शिक्षण -प्रशिक्षण किया। आपने पवित्र कुरआन की व्याख्या, हदीस, नैतिकता, धार्मिक आदेश और इस्लामी चिकित्सा आदि के बारे में मूल्यान रचनाएं छोड़ी हैं।
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम समस्याओं का समाधान करने वाली इस्लाम की शिक्षाओं को लोगों के लिए बयान करते थे। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम जब मदीना में थे तो उन्होंने बहुत से शिष्यों को एकत्रित कर लिया था और उनका प्रशिक्षण करते थे। जो लोग इमाम रज़ा के पास एकत्रित थे और वे इमाम के शिष्य बन गये थे वे इमाम के अथाह ज्ञान के सागर से स्वयं को तृप्त करते थे। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के एक शिष्य ज़करिया बिन आदम थे जिन्हें इमाम ने ईरान के कुम नगर में अपना प्रतिनिधि बनाकर भेजा था। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम उनके नाम एक पत्र में लिखते हैं” ईश्वर तुम्हारी वजह से क़ुम नगर से विपत्तियों को दूर करता है जिस तरह से आपदा को इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम के अस्तित्व के कारण बग़दाद के लोगों से दूर करता है।“
इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के शिष्यों की संख्या काफी अधिक है। यूनुस बिन अब्दुर्रहमान, सफवान बिन यहिया, हसन बिन महबूब और अली बिन मीसम का नाम इमाम के शिष्यों में लिया जा सकता है।
आयतुल्लाह ख़ामेनई ने चेहलुम मार्च की सराहना की और आभार व्यक्त किया
अहलेबैत न्यूज़ एजेंसी अबना: सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनई ने इमाम हुसैन अलै. के चेहलुम के अवसर पर भव्य और आश्चर्यजनक मार्च की सराहना, ज़ियारत के कुबूल होने की दुआ और चेहलुम मार्च के आयोजकों का आभार व्यक्त किया है।
क़ुम और पूरबी आज़रबाइजान के वरिष्ठ अधिकारियों और सांस्कृतिक क्षेत्रों में काम करने वाले लोगों के एक समुदाय को संबोधित करते हुए सुप्रीम लीडर ने इमाम हुसैन अ. के चेहलुम के विशाल पैदल मार्च को पूरे इस्लामी वर्ल्ड में, अल्लाह की राह में जेहाद की भावना को मज़बूत करने और शहादत के लिए तैय्यारी की एक निशानी बताया।
सुप्रीम लीडर ने आतंकवाद के खतरे के बाद भी पूरी दुनिया के विभिन्न देशों से लोगों की बड़े पैमाने पर शिरकत को ऐसी महान घटना बताया कि जिससे ख़ुदा के लिए जेहाद की भावना बढ़ती है और इसके लिए तैय्यार होने की सूचक है।
सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनई ने चेहलुम मार्च की इलाही और रूहानी (आध्यात्मिक) घटना को बेमिसाल बताते हुए कहा कि इराक़ी सरकार और इराक़ी जनता का आभार व्यक्त करना चाहिए जिन्होंने अत्यंत ख़ुलूस और बढ़ चढ़ कर इमाम हुसैन अ. के ज़ाएरीन की मेहमान नवाज़ी की।
सुप्रीम लीडर नें ज़ाएरीन को सिक्योरिटी दिए जाने के लिए इराक़ी सेना, पुलिस फ़ोर्स और स्वंयसेवी सैनिकों के कार्य को भी सराहा। आयतुल्लाह ख़ामेनई ने नजफ़ और कर्बला के पवित्र रौज़ों के प्रबंधकों का भी आभार व्यक्त किया और इलाही बरकतों के बढ़ने की दुआ की।
आयतुल्लाह ख़ामेनई ने दिया भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में मदद और राहत पहुँचाने पर बल।
अहलेबैत न्यूज़ एजेंसी अबना: रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनई ने अपने संदेश में भूकंप से प्रभावित क्षेत्रों में तत्काल मदद और राहत पहुँचाने पर बल देते हुए कहा है कि सभी सरकारी संस्थान भूकंप से प्रभावित क्षेत्रों में अपनी पूरी कोशिशों से भरपूर मदद पहुँचाने का कार्य करें।
सुप्रीम लीडर ने सेना, सैनिकों, स्वयंसेवी संस्थाओं और रेड क्रास के अधिकारियों पर बल देते हुए कहा है कि पूरी हिम्मत और ताकत के साथ मदद पहुँचाने और राहत प्रक्रिया में भाग लें और घायलों को तत्काल चिकित्सा केन्द्र तक पहुंचाऐं और उनका इलाज करवाने में कड़ी मेहनत और सूझबूझ से काम लें।
सुप्रीम लीडर ने सैन्य और गैर सरकारी संगठनों पर बल दिया है कि भूकंप से प्रभावित क्षेत्रों में राहत दल के साथ भरपूर सहयोग करें।
सुप्रीम लीडर नें भूकंप से प्रभावित लोगों के साथ संवेदना प्रकट करते हुए सरकार को संबोधित करते हुए कहा है कि वह प्रभावित क्षेत्रों में जनता की समस्याओं को कम करने के लिए तत्काल कदम उठाऐ।
ईरान और इराक के सीमावर्ती क्षेत्रों में भूकंप के परिणामस्वरूप मरने वालों की संख्या 328 तक पहुंच गई है जबकि 4000 से अधिक लोग घायल हुए हैं। भूकंप की तीव्रता 7.2 रिकॉर्ड की गई है। उधर इराक़ के कुर्दिस्तान क्षेत्र में भूकंप के बाद कई इमारतें गिर गईं जिन में सैकड़ों लोगों के घायल होने की रिपोर्ट मिली है। सीमा और दूर दराज के क्षेत्र प्रभावित होने के कारण नुकसान की सूचनाऐं धीरे धीरे सामने आ रही हैं यह भी आशंका जताई जा रही है कि मृतकों की संख्या में वृद्धि हो सकती है।
वरिष्ठ नेता की नज़र में अमरीका से मुक़ाबला करने का सिर्फ़ एक रास्ता है और वह...
2 नवंबर 2017 को तेहरान में हज़ारों की संख्या में छात्रों की वरिष्ठ नेता ख़ामेनई से मुलाक़ात की तस्वीर
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने बल दिया कि अमरीकियों के सामने पीछे हटने से वे और दुस्साहसी होते जा रहे हैं इसलिए दृढ़ता ही उनसे निपटने का एक रास्ता है।
गुरुवार को हज़ारों की संख्या में छात्रों ने वरिष्ठ नेता से तेहरान में मुलाक़त की जिसमें उन्होंने जवान नस्ल को समाज को आगे ले जाने वाली पीढ़ी बताते हुल बल दिया यह क़ाबिल व समझदार पीढ़ी ही कठिनाइयों से पार पाते हुए प्रिय ईरान को वांछित तरक्क़ी दिलाएगी अलबत्ता इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए ज़रूरी है कि ईरानी राष्ट्र के मुख्य दुश्मन यानी अमरीका की पहचान ज़रूरी है जो बहुत ही नीच दुश्मन है।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि अमरीका सही अर्थ में नीच दुश्मन है और यह बात पक्षपात या दुर्भावना के तहत नहीं बल्कि ज़मीनी सच्चाई और मामलों की समझ से हासिल अनुभव के तहत कह रहा हूं।
उन्होंने अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प के हालिया बयान की ओर इशारा करते हुए, जिसमें उन्होंने ईरानी राष्ट्र को आतंकवादी कहा था, कहा कि यह मूर्खतापूर्ण बयान दर्शाता है कि अमरीकियों को सिर्फ़ ईरानी नेतृत्व व सरकार से ही नहीं बल्कि उस राष्ट्र के वजूद से दुश्मनी है जो उनके द्वेष व दुश्मनी के सामने डटा हुआ है।
आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने कई साल पहले एक अमरीकी अधिकारी के बयान का हवाला दिया कि जिसमें अमरीकी अधिकारी ने कहा था कि ईरानी राष्ट्र का जड़ से सफ़ाया करना चाहिए। वरिष्ठ नेता ने कहा कि अमरीकी अधिकारी इस सच्चाई को समझ नहीं पा रहे हैं कि जो राष्ट्र इतने उज्जवल अतीत का स्वामी हो उसे जड़ से उखाड़ा नहीं जा सकता।
उन्होंने कहा कि अमरीका ईरानी राष्ट्र से अपनी गहरी दुश्मनी के कारण अपने आंकलन व समीक्षाओं में बारंबार ग़लती करता है। उन्होंने कहा कि अमरीका उसी साज़िश को जारी रखी हुए है जो अब तक बेनतीजा रही है लेकिन वह अपनी अंधी दुश्मनी के कारण सच्चाई को नहीं समझ पा रहा है।
आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने इसी प्रकार अमरीका की ओर से जारी दुश्मनी का उल्लेख करते हुए कहा कि अमरीकी अब पूरी तरह नीचता पर उतरते हुए परमाणु वार्ता के नतीजे में होने वाले परमाणु समझौते जेसीपीओए को ख़राब करने पर तुले हुए हैं।
वरिष्ठ नेता ने एक बार फिर छात्रों से अस्ली दुश्मन यानी अमरीका को न भूलने की अनुशंसा करते हुए कहा कि यही ईरान को अच्छे भविष्य के मार्ग पर ले जाने की मुख्य शर्त है।
हम अमरीका को अलग- थलग और प्रतिबंधों को प्रभावहीन कर सकते हैं। , पुतीन से भेंट में वरिष्ठ नेता का एेलान
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने सीरिया में ईरान और रूस केअच्छे सहयोग के अनुभव की ओर संकेत करते हुए कहा कि इस सहयोग से यह सिद्ध हो गया कि तेहरान और मॅास्को, कठिन क्षेत्रों में , संयुक्त उद्देश्यों की पूर्ति कर सकते हैं।
बुधवार की शाम रूस के राष्ट्रपति विलादीमीर पुतीन ने इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सयैद अली ख़ामेनेई से तेहरान में मुलाक़ात की। इस मुलाक़ात में वरिष्ठ नेता ने कहा कि कुछ विदेशियों के समर्थन प्राप्त तकफ़ीरी आतंकवादियों के मुक़ाबले में तेहरान और मास्को के संयुक्त रूप से डटे रहने के महत्वपूर्ण परिणाम सामने आए हैं।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि सीरिया में आतंकवादियों के समर्थक अमरीकी गठबंधन की पराजय, अटल सच्चाई है किन्तु वे अब भी षड्यंत्र रचने में व्यस्त हैं, इस आधार पर सीरिया के मामले के संपूर्ण समाधान के लिए मज़बूत सहयोग का जारी रहना आवश्यक है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि सीरिया की जनता को ही अपने देश के बारे में फ़ैसला करने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि सीरिया की सरकार के बारे में समस्त समस्याएं और समस्त मामले देश के भीतर ही हल होने चाहिए तथा सीरिया की सरकार को कोई भी योजना लागू करने के लिए किसी के दबाव में नहीं आना चाहिए और उसको एेसे समाधान पेश करने चाहिए जिनसे सब सहमत हों।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने ईरान और रूस के विरुद्ध प्रतिबंधों से संयुक्त रूप से मुक़ाबले के लिए सहयोग को लाभदायक बताया और कहा कि देशों के संबंधों को कमज़ोर करने के लिए दुश्मनों के प्रोपेगेडों की अनदेखी करते हुए ईरान और रूस अमरीकी प्रतिबंधों को , डाॅलर में लेन -देन को समाप्त करके और द्विपक्षीय व बहुपक्षीय आर्थिक मामलों में राष्ट्रीय करेंसी का प्रयोग करने सहित विभिन्न शैैलियों से प्रभावहीन बना सकते हैं और अमरीका को अलग- थलग कर सकते हैं।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सयैद अली ख़ामेनेई ने इसी प्रकार कहा कि यमन में प्रतिदिन के अपराध सहित कुछ देशों में सऊदी अरब के रक्त रंजित हस्तक्षेप के कारण रियाज़ गहरी खाई में फंस गया है। उन्होंने कहा कि सऊदी अधिकारी यमन की अत्याचारग्रस्त जनता तक जो जानलेवा और प्राणघातक बीमारियों में ग्रस्त हैं, सहायता और दवाएं पहुंचाने की अनुमति नहीं देते।
वरिष्ठ नेता ने इस मुलाक़ात में जेसीपीओए तथा बहुपक्षीय समझौतों का सम्मान करने की आवश्यकता के बारे में रूस के राष्ट्रपति विलादीमीर पुतीन के बयान को अच्छा बताया और कहा कि खेद की बात यह है कि अमरीकी उल्लंघन जारी रखे हुए हैं इसीलिए बुद्धि पर भरोसा करते हुए तथा सही मार्गों से लाभ उठाते हुए उनका मुक़ाबला किया जाना चाहिए।
रूस के राष्ट्रपति ने भी इस मुलाक़ात में अपनी तेहरान यात्रा और इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सयैद अली ख़ामेनेई से अपनी मुलाक़ात पर बहुत अधिक प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि हम ईरान को अपना स्ट्राटैजिक सहयोगी और महान पड़ोसी समझते हैं और समस्त क्षेत्रों में सहयोग के विस्तार के लिए हर अवसर से लाभ उठाएंगे।
रूसी राष्ट्रपति ने इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सयैद अली ख़ामेनेई के दृष्टिकोण को सीरिया में संयुक्त लक्ष्यों के व्यवहारिक होने में बहुत प्रभावी और बुद्धिमत्तापूर्ण बताया और कहा कि सीरिया सहित किसी भी देश में कोई भी परिवर्तन देश के भीतर से ही होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि माॅस्को जेसीपीओए का समर्थन करता है और माॅस्को का यह मानना है कि अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेन्सी के मुख्य सिद्धांतों में परिवर्तन सही काम नहीं है तथा रूस रक्षा मामलों सहित दूसरे मामलों से ईरान के परमाणु कार्यक्रम को जोड़े जाने का विरोधी है।