رضوی

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एक एसा मामला प्रकाश में आया है जिससे ज़ायोनी शासन की नृशंस प्रवत्ति का एक और आयाम सामने आता है।

इस्राईली पुलिस ने हिरासत में फ़िलिस्तीनी महिला से होने वाले बलात्कार के मामले की दस महीने जांच करने के बाद जांच यह कह कर रोक दी कि आरोपी अज्ञात हैं। हालांकि मामले में यह सुनिश्चित था कि अपराध किस स्थान पर किया गया और किस समय किया गया तथा उस समय उस पुलिस केन्द्र में कौन लोग कार्यरत थे।

फ़िलिस्तीनी महिला ने जब इस मामले की शिकायत की तो उसका लाइ डिक्टेक्टर मशीन से टेस्ट हुआ और देखा गया कि वह सच बोल रही है इसके अलावा भी अनेक साक्ष्य थे जिनसे महिला के साथ होने वाले जघन्य अपराध की पुष्टि होती थी लेकिन इसके बावजूद जांचकर्ताओं ने क्लोज़र रिपोर्ट लगा। इसके लिए यह कारण नहीं बताया गया कि साक्ष्यों में कमी है बल्कि एक अजीब बहाना पेश किया गया कि आरोप अज्ञात व्यक्ति हैं।

यह घटना पांच साल पहले शुरू हुई जब लैला (काल्पनिक नाम) को बैतुल मुक़द्दस में एक चेकपोस्ट के पास गिरफ़तार कर लिया गया फिर उसे पुलिस स्टेशन ले जाया गया। एक कमरे में पूछगछ के बाद महिला को दूसरे कमरे में ले जाया गया जहां जांचकर्ता ने उसका यौन उत्पीड़न शुरू कर दिया। इसके बाद जांचकर्ता कमरे से निकल गया और बार्डर सेक्युरिटी गार्ड की वर्दी में एक सैनिक कमरे आया जिसने महिला के साथ बलात्कार किया। महिला का कहना है कि इसके बाद वह कमरे से भागी और घर जाकर उसने अपने पति को घटना के बारे में बताया। अगले दिन महिला अपने पति के साथ पुलिस स्टेशन पहुंची और इस मामले की शिकायत दर्ज कराई। मामले की जांच आरंभ हुई लेकिन कुछ समय बाद इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। तीन साल तक ख़ामोशी रही जिसके बाद महिला के वकील ने नए सिरे से कोशिश शुरू की और घटना की तह तक जाने की कोशिश की। वकील की भाग दौड़ के बाद पता चला कि जांच इस लिए रोक दी गई कि आरोपी अज्ञात हैं।

जांच पुनः शुरू हो गई और लैला ने उस व्यक्ति को पहचान भी लिया जिसने उसके साथ बलात्कार किया था और किसने उसका यौन उत्पीड़न किया था। मगर किसी भी आरोपी को कोई सज़ा नहीं मिली। पुलिस अधिकारियों का रवैया इस प्रकार का है जैसे कोई ख़ास बात नहीं हुई है।

ज़ायोनी शासन की नीतियां और कार्यवाहियां एसी हैं जिनसे फ़िलिस्तीनियों के भीतर भारी आक्रोश है जो लगातार बढ़ता जा रहा है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने बैतुल मुक़द्दस के बारे में अमरीका की हालिया कार्यवाही को बहुत बड़ी ग़लती बताया और कहा कि वह इस काम को अंजाम देने में सक्षम नहीं होंगे और उनके प्रयासों का कोई परिणाम नहीं निकलेगा।

मंगलवार की शाम तेहरान में आयोजित इस्लामी अंतरसंसदीय संघ की 13वीं बैठक के मेहमानों ने वरिष्ठ नेता से मुलाक़ात की। इस मुलाक़ात में वरिष्ठ नेता ने फ़िलिस्तीन के विषय को इस्लामी जगत का सर्वोपरि मुद्दा बताया और कहा कि फ़िलिस्तीन के विषय में धरती का अतिग्रहण, लाखों लोगों को देश निकाला दिया जाना और आम जनसंहार तथा मानवता के विरुद्ध बड़े अपराध जैसी तीन महत्वपूर्ण घटनाएं घटी और इस अत्याचार का इतिहास में कोई उदाहरण नहीं मिलता।

वरिष्ठ नेता ने फ़िलिस्तीन की रक्षा को समस्त लोगों की ज़िम्मेदारी बताया और बल दिया कि यह सोचना भी नहीं चािए कि ज़ायोनी शासन से मुक़ाबले का कोई फ़ायदा नहीं है बल्कि ईश्वर की कृपा और उसकी अनुमति से ज़ायोनी शासन के मुक़ाबले में संघर्ष का परिणाम निकलेगा जैसा कि प्रतिरोधकर्ता धड़ों ने अतीत के वर्षों में ज़बरदस्त प्रगति की है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने बल दिया कि वह सरकारें जो क्षेत्र में अमरीका की सहायता करती हैं और ज़ायोनी शासन के साथ सहयोग करती हैं ताकि मुस्लिम भाईयों से दुश्मनी करे, खुला विश्वासघात कर रही हैं और यह वही काम हो जो सऊदी अंजाम देर रहे हैं।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि एक दिन था जब ज़ायोनियों ने नील से फ़ुरात तक का नारा दिया था किन्तु अब अपनी रक्षा के लिए दीवार खींचने पर मजबूर हो गये हैं। उन्होंने कहा कि निसंदेह फ़िलिस्तीन बहर से नहर तक एक इतिहास और संग्रह का नाम है और बैतुल मुक़द्दस उसकी राजधानी है और इस वास्तविकता में तनिक भी शंका नहीं है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने इस्लामी अंतर संसदीय संघ की बैठक में म्यांमार और कश्मीर के विषयों के पेश किए जाने और इसी के साथ इस बैठक में यमन और बहरैन जैसे महत्वपूर्ण विषयों की निश्चेतना की ओर संकेत करते हुए कहा कि इस बात की कदापि अनुमति नहीं दी जानी चाहिए कि पश्चिम का ख़तरनाक प्राचारिक साम्राज्य जो अधिकतर ज़ायोनियों के हाथ में है, इस्लामी जगत के महत्वपूर्ण विषयों की अनदेखी कर दे और चुप रहने के षड्यंत्र से इस्लामी जगत के महत्वपूर्ण मुद्दे को मिटा दे।

वरिष्ठ नेता ने इस्लामी देशों के बीच मेल मिलाप की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि इस बात की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए कि इस्लामी जगत में मतभेद, युद्ध और रक्तपात जिसके मुख्य षड्यंत्रकारी अमरीकी और ज़ायोनी हैं, ज़ायोनी शासन के लिए सुरक्षित ठिकाने की भूमिका बने।

 

 

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने मंगलवार की रात तेहरान में इस्लामी सहयोग संगठन के सदस्य देशों की संसदीय संघ के तेरहवें सम्मेलन में भाग लेने वाले मेहमानों से मुलाक़ात में फ़िलिस्तीन के विषय को इस्लामी जगत का सबसे अहम मुद्दा बताया।

आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने फ़िलिस्तीन की रक्षा को सभी का कर्तव्य बताते हुए बल दिया कि इस सोच को मन में जगह नहीं देनी चाहिए कि ज़ायोनी शासन से मुक़ाबले का कोई फ़ायदा नहीं है, बल्कि ईश्वर की कृपा से ज़ायोनी शासन से मुक़ाबले का नतीजा निकलेगा जैसा कि पिछले वर्षों की तुलना में प्रतिरोध के मोर्चे ने सफलता हासिल की है।

फ़िलिस्तीन का विषय ज़ायोनी शासन और मिस्र के बीच साठगांठ के नतीजे में हुए कैंप डेविड समझौते से शुरु हुआ और नॉर्वे में ओस्लो सम्मेलन में फ़िलिस्तीन के साठगांठ करने वाले तत्वों की साठगांठ के ज़रिए आगे बढ़ा। इस बीच अमरीका और इस्राईल फ़िलिस्तीन के विषय को ऊबाने वाला विषय बनाने, प्रतिरोध को कमज़ोर करने और इस्लामी देशों को भीतरी विवादों में उलझाने की कोशिश में लगे रहे।

बैतुल मुक़द्दस के बारे में अमरीका के हालिया एलान की समीक्षा में पश्चिम एशियाई मामलों के विशेषज्ञ सअदुल्लाह ज़ारई का मानना है कि जो कुछ आज हम क्षेत्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देख रहे हैं वह अमरीका और उसके तत्वों की ज़ायोनी शासन की इच्छानुसार फ़िलिस्तीन के मामले को जल्दी से ख़त्म करने की कोशिश है, वह भी ऐसी हालत में जब प्रतिरोध के मोर्चे ने इस्लामी जगत के अहम भाग को अमरीका व ज़ायोनी शासन और उसके क्षेत्रीय तत्वों के वर्चस्व से आज़ाद कराने में निरंतर सफलताएं हासिल की हैं।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता के शब्दों में अमरीका बैतुल मुक़द्दस का कुछ भी बिगाड़ नहीं सकता और उसकी कोशिश का कोई नतीजा नहीं निकलेगा।

 

 

क़ाहेरा सम्मेलन में भाग लेने वालों ने बैतुल मुक़द्दस के फ़िलिस्तीन की हमेशा की राजधानी घोषित होने पर बल दिया।

मिस्र की राजधानी क़ाहेरा के अलअज़हर विश्वविद्यालय में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में भाग  लेने वालों ने गुरुवार को बैतुल मुक़द्दस को फ़िलिस्तीन की हमेशा की राजधानी घोषित करने की मांग की।

समाचार एजेंसी मेहर के अनुसार, इस सम्मेलन के घोषणापत्र में अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के बैतुल मु़क़द्दस को ज़ायोनी शासन की राजधानी के रूप में मान्यता देने के हालिया फ़ैसले का कड़ाई से विरोध किया गया और इस फ़ैसले को व्यवहारिक होने से रोकने के लिए तुरंत क़दम उठाने पर बल दिया गया।

 

 

हमास के राजनीतिक मामलों के प्रभारी ने ईरान की ओर से फ़िलिस्तीनियों को दी जाने वाली सहायता पर आभार व्यक्त किया है।

फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध आन्दोलन हमास के राजनीतिक मामलों के प्रभारी इस्माईल हनिया ने ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता को पत्र भेजकर ईरान की ओर से फ़िलिस्तीनी प्रतिरोधकर्ताओं को दी जाने वाली सहायता और वरिष्ठ नेता के मार्गदर्शन की प्रशंसा की है।

अपने पत्र में इस्माईल हनिया ने बैतुल मुक़द्दस तथा फ़िलिस्तीनियों के प्रतिरोध के विरुद्ध वर्चस्ववादियों के षडयंत्र की ओर संकेत किया।  उन्होंने कहा कि हमने ईश्वर की कृपा से बैतुल मुक़द्दस के संबन्ध में ट्रम्प के षडयंत्र को विफल बना दिया।  उन्होंने अपने पत्र में लिखा है कि फ़िलिस्तीन के बारे में इस्लामी गणतंत्र ईरान की मूल्यवान नीति प्रशंसनीय है।

इस्माईल हनिया ने पत्र में लिखा है कि फ़िलिस्तीन के विरुद्ध षडयंत्रों को विफल बनाने का एकमात्र मार्ग, इन्तेफ़ाज़ा जनान्दोलन का जारी रहना है।  उनका कहना है कि हम इसका समर्थन करते हैं और फ़िलिस्तीनियों के विरुद्ध षडयंत्र को सफल नहीं होने देंगे।

हमास के नेता ने इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के नाम अपने पत्र में ईरान को वास्तविक रूप में वर्चस्ववाद विरोधी देश बताया।  उन्होंने कहा कि फ़िलिस्तीनी जनता, ईरान की ओर से किये जा रहे उसके समर्थन का सम्मान करती है।

इंटरनेशनल क़ुरान न्यूज़ एजेंसी ने वफा.पीएस की न्यूज़ वेबसाइट का हवाला देते हुऐ, अमीरा अल-हाज ख़ालिद, फिलिस्तीनी बूढ़ी महिला पूर्वी क़ुद्स की निवासी ने दो हफ्ते पहले, जब उसने क़ुद्स की पहचान इजरायल की राजधानी के रूप ट्रम्प के खिलाफ रैली में भाग लिया था और फिलिस्तीनी झंडे को हाथ में उठाऐ थी ज़ियोनिस्ट पुलिस बल द्वारा गिरफ्तार हो गई थी।
गिरफ्तार होने और पूछताछ केंद्र में स्थानांतरित करने के बाद, उसे दो सप्ताह तक अल-अक़्सा मस्जिद में प्रवेश से वंचित किया गया है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

इंटरनेशनल क़ुरान न्यूज़ एजेंसी ने वफा.पीएस की न्यूज़ वेबसाइट का हवाला देते हुऐ, अमीरा अल-हाज ख़ालिद, फिलिस्तीनी बूढ़ी महिला पूर्वी क़ुद्स की निवासी ने दो हफ्ते पहले, जब उसने क़ुद्स की पहचान इजरायल की राजधानी के रूप ट्रम्प के खिलाफ रैली में भाग लिया था और फिलिस्तीनी झंडे को हाथ में उठाऐ थी ज़ियोनिस्ट पुलिस बल द्वारा गिरफ्तार हो गई थी।
गिरफ्तार होने और पूछताछ केंद्र में स्थानांतरित करने के बाद, उसे दो सप्ताह तक अल-अक़्सा मस्जिद में प्रवेश से वंचित किया गया है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

इंटरनेशनल क़ुरान न्यूज़ एजेंसी ने वफा.पीएस की न्यूज़ वेबसाइट का हवाला देते हुऐ, अमीरा अल-हाज ख़ालिद, फिलिस्तीनी बूढ़ी महिला पूर्वी क़ुद्स की निवासी ने दो हफ्ते पहले, जब उसने क़ुद्स की पहचान इजरायल की राजधानी के रूप ट्रम्प के खिलाफ रैली में भाग लिया था और फिलिस्तीनी झंडे को हाथ में उठाऐ थी ज़ियोनिस्ट पुलिस बल द्वारा गिरफ्तार हो गई थी।
गिरफ्तार होने और पूछताछ केंद्र में स्थानांतरित करने के बाद, उसे दो सप्ताह तक अल-अक़्सा मस्जिद में प्रवेश से वंचित किया गया है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

इंटरनेशनल क़ुरान न्यूज़ एजेंसी ने वफा.पीएस की न्यूज़ वेबसाइट का हवाला देते हुऐ, अमीरा अल-हाज ख़ालिद, फिलिस्तीनी बूढ़ी महिला पूर्वी क़ुद्स की निवासी ने दो हफ्ते पहले, जब उसने क़ुद्स की पहचान इजरायल की राजधानी के रूप ट्रम्प के खिलाफ रैली में भाग लिया था और फिलिस्तीनी झंडे को हाथ में उठाऐ थी ज़ियोनिस्ट पुलिस बल द्वारा गिरफ्तार हो गई थी।
गिरफ्तार होने और पूछताछ केंद्र में स्थानांतरित करने के बाद, उसे दो सप्ताह तक अल-अक़्सा मस्जिद में प्रवेश से वंचित किया गया है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

इंटरनेशनल क़ुरान न्यूज़ एजेंसी ने वफा.पीएस की न्यूज़ वेबसाइट का हवाला देते हुऐ, अमीरा अल-हाज ख़ालिद, फिलिस्तीनी बूढ़ी महिला पूर्वी क़ुद्स की निवासी ने दो हफ्ते पहले, जब उसने क़ुद्स की पहचान इजरायल की राजधानी के रूप ट्रम्प के खिलाफ रैली में भाग लिया था और फिलिस्तीनी झंडे को हाथ में उठाऐ थी ज़ियोनिस्ट पुलिस बल द्वारा गिरफ्तार हो गई थी।
गिरफ्तार होने और पूछताछ केंद्र में स्थानांतरित करने के बाद, उसे दो सप्ताह तक अल-अक़्सा मस्जिद में प्रवेश से वंचित किया गया है।

 

उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्‍फ़ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिज़वी भारतीय मुसलमानों के ख़िलाफ़ एक के बाद एक विवादित बयान दे रहे हैं।

रिज़वी ने अपने ताज़ा बयान में मदरसों की शिक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़ा करते हुए भारतीय प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी और यूपी के मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ से मांग की है कि देश में इस्लामी तालीम देने वाले मदरसों को बंद कर दिया जाए।

वसीम रिज़वी ने अपनी यह मांग रखते हुए कहा है कि मदरसों की तालीम से बच्चे आतंकवादी बन रहे हैं।

रिज़वी ने कहा कि मदरसों से पढ़कर कोई इंजीनियर, डॉक्टर और आईएएस नहीं बनता, हां कुछ मदरसों से पढ़कर बच्चे आतंकवादी ज़रूर बने हैं।

उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्‍फ़ बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिज़वी के इस बयान का देश भर में कड़ा विरोध हो रहा है।

इस्लामी संगठनों का कहना है कि वसीम रिज़वी ने वक्फ़ बोर्ड की संपत्तियों में बड़े बड़े घोटाले किए हैं और वह जांच से बचने के लिए बीजेपी एवं आरएसएस के नेताओं के तलवे चाट रहे हैं।

जमियते ओलमाए हिंद ने वसीम रिज़वी को एक क़ानूनी नोटिस भेजकर उनसे मदरसों और पूरे मुस्लिम समुदाय का अपमान करने के लिए स्पष्टीकरण मांगा है।

मदसरों के ख़िलाफ़ वसीम रिज़वी के विवादित बयान की शिया मुसलमान और शिया धर्मगुरू भी व्यापक पैमाने पर निंदा कर रहे हैं।

लखनऊ में वरिष्ठ शिया धर्मगुरू मौलाना कल्बे जवाद ने उत्तर प्रदेश सरकार से मांग की है कि रिज़वी को शिया सेंट्रल वक्‍फ़ बोर्ड के अध्यक्ष पद से तत्काल रूप से हटाया जाए।

उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर योगी सरकार ने मुस्लिम समुदाय की इस मांग पर कान नहीं धरा तो वह सरकार के ख़िलाफ़ एक बड़ा आंदोलन शुरू करेंगे।  

 

 

मजलिसे ओलमाए हिन्द दिल्ली ने ज़ायोनी शासन के प्रधानमंत्री की प्रस्तावित भारत यात्रा से ठीक पहले राजधानी दिल्ली में ज़बरदस्त विरोध-प्रदर्शन किया।

दिल्ली से हमारे संवाददाता की रिपोर्ट के अनुसार मजलिसे ओलमाए हिन्द की ओर से आयोजित इस विशाल विरोध-प्रदर्शन में शिया-सुन्नी मुसलमानों के साथ-साथ दूसरे धर्मों के शांतिप्रिय लोगों ने भी भाग लिया।

सैकड़ों की संख्या में एकत्रित हुए प्रदर्शनकारियों ने इस्राईली प्रधानमंत्री नेतनयाहू की प्रस्तावित भारत यात्रा के विरोध में जमकर नारे लगाए। प्रदर्शन कर रहे लोग यह मांग कर रहे थे कि भारत सरकार फ़िलिस्तीन की अत्याचारग्रस्त जनता के समर्थन में अत्याचारी ज़ायोनी शासन के प्रधानमंत्री की भारत यात्रा के कार्यक्रम को रद्द करे।

 

ईरान के सांची नामक तेल टैंकर के पूर्वी चीन में दुर्घटनाग्रस्त होने और 32 कर्मचारियों के हताहत होने के बाद सरकार ने सोमवार 15 जनवरी को आम शोक की घोषणा की।

इस्लामी गणतंत्र ईरान की सरकार ने एक बयान जारी करके तेल टैंकर की घटना में हताहत होने वाले कर्मचारियों के परिजनों को सांत्वना देते हुए देश के तेल उद्योग के प्रयासों की सराहना की और सोमवार को आम शोक की घोषणा की।

ज्ञात रहे कि 6 जनवरी को चीन का एक मालवाहक जहाज़ इस देश के पूर्वी तट पर ईरान के एक तेल टैंकर से टकराया था। यह टक्कर, ईरानी तेल टैंकर में आग लगने और विस्फोट का कारण बनी। ईरानी तेल टैंकर सांची पर 32 कर्मचारी सवार थे जिनमें 2 बांग्लादेशी थे। इससे पहले किये जाने वाले प्रयास के परिणाम स्वरूप तीन लोगों के शव प्राप्त किये जा सके जो ईरानी हैं।

ईरान के जहाज़रानी व बंदरगाह विभाग ने इससे पहले पुष्टि की थी कि ईरान का एक तेल टैंकर, चीन के तट पर डूब गया जिसमें 32 कर्मचारी भी थे।  जहाज़रानी विभाग के अनुसार इस तेल टैंकर में आग लग गई थी।  सांची तेल टैंकर की स्थिति की जानकरी लेने चीन पहुंचे मुहम्मद रासताद ने रविवार को शंघाई में बताया कि तेल टैंकर में आग इतनी ज़्यादा भड़क चुकी थी कि उसमें प्रवेश करना असंभव हो चुका था। उन्होंने बताया कि तेल टैंकर में फैली आग के कारण उस पर सवार लोगों में से किसी के जीवित बचने की कोई आशा नहीं रही थी।

 

इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति डाक्टर हसन रूहानी ने रविवार को एक संदेश में विदेशमंत्रालय, तेल मंत्रालय और परिवहन मंत्रालय सहित संबंधित संबंधित संस्थाओं से घटना की जांच के आदेश दिए और भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं को रोकने की मांग की है।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा है कि एक बार फिर ईरानी जनता ने पूरी शक्ति के साथ अमरीका और ब्रिटेन को मुंह तोड़ उत्तर दिया हे और उन्हें स्पष्ट संदेश दे दिया है कि इस बार भी तुम कुछ नहीं कर सके और आगे भी कुछ नहीं कर सकोगे।

क़ुम के हज़ारों लोगों ने 19 दय बराबर 9 जनवरी 1978 में क़ुम की जनता के क्रांतिकारी आंदोलन की वर्षगांठ के अवसर पर मंगलवार को इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता से मुलाक़ात की।

इस अवसर पर संबोधित करते हुए वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस्लामी क्रांति ने ईरान में दुश्मनों की जड़ें काट कर फेंक दी इसीलिए दुश्मन निरंतर क्रांति से बदला लेने का प्रयास करता है और हर बार उसको विफलता का मुंह देखना पड़ता है और ईरानी जनता के प्रतिरोध और संघर्ष से वह आगे भी कुछ नहीं कर सकेगा। 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने इस्लामी व्यवस्था और क्रांति के मूल्यों के समर्थन में पिछले कुछ दिनों के दौरान ईरानी जनता द्वार निकाली गयी भव्य रैलियों की ओर संकेत करते हुए कहा कि ईरानी जनता ने इस बार भी अमरीका, ब्रिटेन और लंदन में बैठे हुए तत्वों को पूरी शक्ति के साथ मुंह तोड़ जवाब दिया और यह संदेश दे दिया कि इस बार भी तुम कुछ नहीं कर सकोगे।

आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि दुश्मन के षड्यंत्रो के मुक़ाबले में ईरानी जनता की ओर से इस प्रकार की निकाली गयी व्यवस्थित, तत्वदर्शी और भव्य रैलियों का दुनिया में कहीं भी उदाहरण नहीं मिलता और ईरानी जनता की इस प्रकार की भव्य रैलियों का क्रम पिछले चालीस वर्षों से जारी है।

उन्होंने कहा कि यह एक साल, दो साल और पांच साल की बात नहीं है बल्कि ईरान की जनता का युद्ध ईरानी राष्ट्र के दुश्मनों से है, ईरान की जंग, ईरान के विरोधियों से है, इस्लाम का युद्ध, इस्लाम के दुश्मनों से है और यह क्रम जारी है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने पिछले दिनों कुछ शहरों में जनता की वैध मांगों को लेकर किए गये प्रदर्शनों और बाद में इन प्रदर्शनों में कुछ अराजक तत्वों के शामिल हो जाने और उपद्रवी कार्यवाही अंजाम दिए जाने का उल्लेख करते हुए कहा कि जनता की क़ानूनी और वैध मांगों में, और हंगामे तथा पवित्र स्थालों का अनादर करने वालों की कार्यवाहियों में अंतर है।

उन्होंने कहा कि कुछ लोग अपनी वैध मांगों को लेकर प्रदर्शन करें , रैलियां करें, इसमें कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता किन्तु कुछ लोग इन प्रदर्शनों से ग़लत लाभ उठाकर पवित्र स्थलों का अनादर करें, राष्ट्रीय ध्वज को आग लगाएं, मस्जिदों को नुक़सान पहुंचाएं, यह अलग विषय है और दोनों को आपस में नहीं मिलाया जात सकता और अपनी वैध मांगों के संबंध में प्रदर्शन करने वालों ने भी तुरंत स्वयं को इन तत्वों से अलग कर दिया। 

वरिष्ठ नेता ने कहा कि इन हंगामों के पीछे एक त्रिकोण लिप्त है। उन्होंने कहा कि अमरीका, ज़ायोनी शासन, फ़ार्स की खाड़ी के आसपास की एक मालदार सरकार और आतंकवादी गुट एमकेओ ने इन हंगामों की योजना तैयार की िी और इस का सारा ख़र्चा इसी मालदार सरकार ने ही उठाया क्योंकि जब तक यह सरकारें हैं अमरीका पैसे ख़र्च नहीं कर सकता। 

उन्होंने ईरान से अमरीकी अधिकारियों की दुश्मनी और अप्रसन्नता का उल्लेख करते हुए कहा कि अमरीका, ईरानी जनता और सरकार से इसके लिए बहुत अधिक नाराज़ है कि उसको इस्लामी क्रांति और ईरानी जनता से पराजय हुई है। उन्होंने ईरान की इस्लामी व्यवस्था को जनव्यवस्था क़रार देते हुए कहा कि ईरान की सरकार अपनी जनता पर ही भरोसा करती है क्योंकि यह सरकार ईरानी जनता की अपनी निर्वाचित और बनाई हुई सरकार है। 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने अमरीकी अधिकारियों के इस प्रकार के बयान को निर्लज्जता बताते हुए कि जिनमें वह कहते हैं कि ईरान, अमरीका की शक्ति से डरता है, कहा कि यदि तुमसे डरते तो 1970 के दशक के अंत में हमने तुम्हें ईरान से कैसे निकाल दिया और अभी कुछ वर्षों में तुम्हें पूरे क्षेत्र से कैसे निकाल दिया?