رضوی

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स्वीडन में ईरानी सांस्कृतिक परामर्श के अनुसार, "हांक Bahonar" सामाजिक शोधकर्ताओं में से ऐक ने इस बारे में कहा: उच्च विद्यालय के छात्रों के बीच हुऐ सर्वे के अनुसार बताया गया है, कि छात्रों में 18 प्रतिशत लोग यहूदियों के बारे में नकारात्मक सोच रखते हैं लेकिन मुस्लिम परिवार के छात्रों के बीच यह आंकड़े 55% तक पहुंच जाते हैं।
बेशक, वह अपने सर्वे में कहता है: सफेद जातिवाद समूहों के बीच भी सह्यूनिज़्म दुश्मनी मौजूद है पोलैंड और हंगरी जैसे छोटे मुस्लिम आबादी वाले देशों में भी सह्यूनिज़्म दुश्मनी विचारधारा अधिक है।
पिछले 20 वर्षों में स्वीडिश समाज में सह्यूनिज़्म दुश्मनी एक वर्तमान मुद्दा बन गया है, और अधिकतम मध्य पूर्व के घटनाक्रम और इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष के विषय से संबंधित है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद बैतुल मुक़द्दस के बारे में किसी भी एकपक्षीय फ़ैसले को क़ानूनी तौर पर अवैध क़रार देने के लिए एक प्रस्ताव लाने पर विचार कर रहा है।

मिस्र द्वारा इस प्रस्तावित मसौदे को तय्यार किया गया है और इसे शनिवार को सुरक्षा परिषद के सदस्यों के बीच बांटा गया जिस पर अगले हफ़्ते के शुरु में संभवतः मतदान होना तय है।

रोयटर्ज़ के अनुसार, इस प्रस्ताव के मसौदे में आया है, "हर उस फ़ैसले व कार्यवाही की कोई क़ानूनी हैसियत नहीं है जिसका लक्ष्य पवित्र बैतुल मुक़द्दस का दर्जा, उसकी जनांकिकी संरचना या उसकी स्थिति को बदलना है और उस फ़ैसले व कार्यवाही को सुरक्षा परिषद के संबंधित प्रस्तावों का पालन करते हुए रद्द होना चाहिए।"

इस प्रस्ताव के मसौदे में यह भी आया है, "सभी राष्ट्रों पर बल दिया जाता है कि वह सुरक्षा परिषद के 1980 में पारित हुए प्रस्ताव नंबर 478 का पालन करते हुए बैतुल मुक़द्दस में किसी तरह का कूटनैतिक मिशन क़ायम करने से दूर रहे।"

यह प्रस्तावित मसौदा, अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प के 6 दिसंबर 2017 को बैतुल मुक़द्दस को ज़ायोनी शासन की राजधानी के रूप में मान्यता देने और अमरीकी दूतावास को तेल अविव से बैतुल मुक़द्दस स्थानांतरित करने के एलान के ख़िलाफ़ लाया गया है।

यह मसौदा "सभी राष्ट्रों से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के बैतुल मुक़द्दस से संबंधित प्रस्तावों का पालन करने और इन प्रस्तावों के ख़िलाफ़ किसी भी कार्यवाही को मान्यता न देने की मांग करता है।"

इन्डोनेशिया के हज़ारों लोगों प्रदर्शन करके अमरीकी उत्पादों के बाॅयकाॅट की मांग की है।

जकार्ता से एसोशिएटेड प्रेस की रिपोर्ट के अनुसार इंडोनेशिया में लगभग 80 हज़ार लोगों ने रविवार को एक बार फिर बैतुल मुक़द्दस के बारे में अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के फ़ैसले की निंदा करते हुए प्रदर्शन किए।

अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के फ़ैसले के बाद से इन्डोनेशिया में दस दिनों से निरंतर प्रदर्शन हो रहे हैं।

जकार्ता पुलिस के प्रवक्ता ने भी कहा है कि प्रदर्शनकारियों के हाथ में एेसे प्ले कार्ड थे जिन पर फ़िलिस्तीन के समर्थन में नारे लिखे हुए थे। प्रदर्शनकारियों ने नेश्नल म्यूज़ियम के पार्क से अमरीकी दूतावास तक तीन किलोमीटर की यात्रा तय की।

ज्ञात रहे कि बैतुल मुक़द्दस के बारे में अमरीकी राष्ट्रपति के फ़ैसले के बाद से पूरी दुनिया में प्रदर्शनों का क्रम जारी है।

इस्राईल की संसद में अरब प्रतिनिधि ने मांग की है कि इस्लामी देशों को चाहिए कि अपने राजदूतों को वे अमरीका से वापस बुलाएं।

तसनीम समाचार एजेन्सी के अनुसार इस्राईल की संसद में अरब प्रतिनिधि तलाल अबूअरार ने कहा है कि ट्रम्प के हालिया फैसले पर विरोध स्वरूप इस्लामी देशों को चाहिए कि वे अपने राजदूतों को अमरीका से वापस बुलवा लें।

उन्होंने इस्तांबोल में में बोलते हुए कहा कि इस्लामी देशों को चाहिए कि वे अपने राजदूतों को वापस बुलाकर अमरीका पर दबाव डालें ताकि ट्रम्प के फैसले को वापस करवााय जा सके।  उन्होंने कहा कि बैतुल मुक़द्दस के बारे में अरब जगत की प्रतिक्रिया वैसी नहीं थी जैसी होनी चाहिए थी।  तलाल अबूअरार ने कहा कि अमरीकी राष्ट्रपति के फैसले की जितनी निंदा की जाए वह कम है।  तलाल ने कहा कि बैतुल मुक़द्दस, फ़िलिस्तीन की राजधानी है जहां पर अमरीकी दूतावास के लिए कोई स्थान नहीं है।

उल्लेखनीय है कि अमरीकी राष्ट्रपति ने बैतुल मुक़द्दस को इस्राईल की राजधानी के रूप में मान्यता की घोषणा की है जिसका व्यापक स्तर पर विरोध किया जा रहा है। 

 

फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हमास ने प्रदर्शनकारियों पर ज़ायोनी सैनिकों के हमले और तीन फ़िलिस्तीनी प्रदर्शनकारियों की शहादत पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए ज़ायोनी शासन को सचेत किया है।

इर्ना की रिपोर्ट के अनुसार हमास ने शुक्रवार की शाम एक बयान में कहा कि ज़ायोनी सैनिकों के हाथों फ़िलिस्तीनी प्रदर्शनकारियों की शहादत, इस शासन के अपराधी होने का चिन्ह है।

हमास के बयान में आया है कि अतिग्रहणकारियों के मुक़ाबले में फ़िलिस्तीनी जनता का इंतेफ़ाज़ा जो अमरीकी राष्ट्रपति की कार्यवाहियों से मुक़ाबले के लिए, इस बात पर बल है कि फ़िलिस्तीनी कभी भी इस कार्यवाही को स्वीकार नहीं करेंगे और अपने अधिकारों की प्राप्ति तक इंतेफ़ाज़ा जारी रखेंगे।

शुक्रवार को ग़ज़्जा पट्टी और पश्चिमी तट में फ़िलिस्तीनियों के विरोध प्रदर्शनों पर ज़ायोनी सैनिकों के हमले में कम से कम 4 फ़िलिस्तीनी शहीद जबकि 367 घायल हो गये।

बैतुल मुक़द्दस को ज़ायोनी शासन की राजधानी के रूप में स्वीकार करने के अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के फ़ैसले के ़ख़िलाफ़ इस हफ़्ते के आरंभ से अब तक फ़िलिस्तीनियों के प्रदर्शनों पर ज़ायोनी सैनिकों की हमलों में कम से कम दो हज़ार लोग घायल हो चुके हैं।  

 

atimes समाचार साइट के मुताबिक, 2014 में, यिलान सिटी के कुछ स्वदेशी मछुआरों को यह इरादा हुआ कि एक मस्जिद बनाने की जगह ढूंढी जाऐ।
उन्हों ने इस शहर में नैनान रोड पर एक पुरानी इमारत खरीदकर उसकी मरम्मत और पुनर्निर्मित किया फिर मस्जिद में परिवर्तित कर दिया।
नेनफांगगांव के मछली पकड़ने की बंदरगाह में येलान शहर में 1,300 इंडोनेशियाई मछुआरे जो काम कर रहे हैं, उनमें से ज्यादातर मुसलमान हैं।
आर्या, मुस्लिम मछुआरों में से एक ने कहा: मुसलमान रोज़ाना पांच प्रार्थनाओं को पढ़ने के लिए बाध्य होते हैं, और जब वे समुद्र में नहीं होते हैं, तो वे मस्जिद में प्रार्थना और कुरान पढ़ना पसंद करते हैं।
मस्जिद,इसी तरह मुस्लिम मछुआरों को इकट्ठा व संवाद करने का एक स्थान है और उसकी सफाई स्वयंसेवक सदस्यों द्वारा की जाती है।

 

फ़िलिस्तीन के इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन हमास की इज़्ज़ुद्दीन क़साम ब्रिगेड ने अपने बयान में इस्राईनल के विनाश तक क़ुद्स इंतेफ़ाज़ा के जारी रहने पर बल दिया है।

लेबनान की अलअहद वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार इज़्ज़ुद्दीन क़स्साम ब्रिगेड ने रविवार को एक बयान जारी करके बैतुल मुक़द्दस को इस्राईल की राजधानी के रूप में स्वीकार किए जाने के अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प के फ़ैसले की निंदा करते हुए कहा कि यह कल्पना ही ग़लत हे कि ज़ायोनी फ़िलिस्तीन और बैतुल मुक़द्दस पर क़ब्ज़ा जमा लेंगे।

क़स्साम ब्रिगेड ने अपने बयान में बल दिया कि क़ुद्स इंतेफ़ाज़ा को पूरी शक्ति के साथ अपने रास्ते को जारी रखना होगा और अतिग्रहणकारियों से मुक़ाबले के लिए प्रतिरोध के सारे रास्तों को खुलना चाहिए।

क़स्साम ब्रिगेड के बयान में आया है कि बैतुल मुक़द्दस, पश्चिमी तट और ग़ज़्ज़ा पट्टी में इंतेफ़ाज़ा से नये परिवर्तन सामने आ रहेे हैं।

अल-आलम ने अपने तत्काल समाचार में एलान किया कि अयातुल्ला सिस्तानी ने अमेरिकी सरकार के निर्णय कुद्स को इज़राइल की राजधानी के रूप में मान्यता देने के लिए निंदा किया।
अयातुल्ला सिस्तानी के बयान में कहा गया है: कि कुद्स को इज़राइल की राजधानी के रूप में मान्यता देने के ट्रम्प के फैसले से सैकड़ों अरब और मुसलमानों की भावनाओं को चोट पहुंचाई है। इस निर्णय को ख़त्म कर कुद्स को फिलीस्तीनियों को वापस करना होगा।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने बुधवार 6 सितंबर को व्हाइट हाउस के भाषण में कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने कुद्स को आधिकारिक तौर पर इज़राइल (जियोनिस्ट शासन) की राजधानी के रूप में मान्यता दी है, और तेल अवीव से शहर के दूतावासों की सेवाओं का स्थानांतरण तुरंत शुरू हुआ।
यह कार्रवाई अंतरराष्ट्रीय संस्थानों और पश्चिम एशियाई क्षेत्र के नेताओं द्वारा फैसले निंदा की गई है

प्राप्त सूत्रों के अनुसार सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह सैयद अली ख़ामेनई के ऑफ़िस की रिपोर्ट के अनुसार सुप्रीम लीडर से ईरान के उच्च अधिकारियों एवं इस्लामिक देशों के राजदूत और वहदते  इस्लामी कांफ्रेंस के मेहमानों ने कल हुसैनिया इमाम खुमैनी रहमतुल्लाह में भेंट की, जिसमें सुप्रीम लीडर ने पैग़म्बरे अकरम की शिक्षाओं को इस्लाम की उम्मत की आज़ादी और क्षेत्रों से स्वतंत्रता की बुनियादी शर्त बताया है, और कहा कि अगर मुसलमान दुनिया में सम्मान और शक्ति चाहते हैं तो उन्हें आपसी एकता को अपने जीवन में सर्वोपरि रखना होगा।
 सुप्रीम लीडर ने रसूले खुदा स. और इमाम सादिक. अलैहिस्सलाम के जन्मदिवस के शुभ अवसर पर सभी इस्लामी जगत एवं खासतौर से हर स्वतंत्रता प्रेमी मनुष्य को बधाई देते हुए कहा कि पैग़म्बरे अकरम संपूर्ण मानवता के लिए अल्लाह की रहमत हैं, और आपके बताए रास्ते पर चलना संपूर्ण मानवता को जुल्म और सभी दुख दर्द से बचा सकता है। हज़रत आयतुल्लाह खामेनई ने अमेरिका, अवैध राष्ट्र इस्राईल, रूढ़िवाद की मोहरों को आज का फ़िरऔन बताते हुए उन्हें इस्लामी जगत के लिए सबसे बड़ा विश्वास्घाती बताया और कहा कि बहुत से अमेरिकी चाहते हुए या न चाहते हुए भी यह मान बैठे हैं कि भविष्य में पश्चिमी एशिया को हर हाल में युद्ध की आग में जलते रहना चाहिए जिससे कि अवैध ज़ायोनियों को राहत मिली रहे और इस्लामी जगत तरक़्क़ी से दूर रहे।

शताब्दियों के इंतेज़ार का क्षण खत्म हुआ और मानवजाति के सबसे बड़े मार्गदर्शक ने इस दुनिया में क़दम रखा।

ईश्वर के सर्वश्रेष्ठ इंसान का जन्म हुआ, पूरी सृष्टि के लिए कृपा की वर्षा हुयी, दया व मार्गदर्शन का सोता फूटा और मोहम्मद सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम का प्रकाश मलकूती नामक आध्यात्मिक जगत पर छा गया।

ज्योतिषियों ने क़सम खायी कि उन्होंने ऐसे चमकदार सितारे को देखा है जिसके उदय से दुनिया में उथल पुथल मच जाएगी। उस समय हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा प्रकाश के हल्क़े में पैदा हुए। उनकी पैदाइश से अज्ञानता व भेदभाव के मरुस्थलीय रूप ने मोहब्बत व विचार के चमन का रूप धारण कर लिया। इंसान के जीवन में ठहराव आया। ईश्वर का संदेश लाने वाली इस हस्ती ने 17 रबीउल अव्वल को पवित्र नगर मक्के में एक सज्जन परिवार में आंखे खोलीं। जिनकी पैदाइश से ईश्वर पर आस्था रखने वालों के मन में ईश्वर की पहचान का सोता फूटा। ईश्वर ने उनके वजूद से पूरी मानव जाति को कृपा का तोहफ़ा भेजा। इस शुभ अवसर पर एक बार फिर आप सबको बधाई पेश करते हैं।

पैग़म्बरे इस्लाम की मां हज़रत आमेना कहती हैं, "उस दिन मानो ईश्वरीय आभा मुझ पर छाया किए हुए थी। एक चमकता प्रकाश मेरे सिर के ऊपर से आसमान में गया। मेरे चारों ओर ईश्वरीय फ़रिश्ते उतरे और मैं अपने भीतर शांति का आभास करने लगी। पूरा कमरा प्रकाशमान हो गया और मेरा बेटा मोहम्मद दुनिया में आया। उनका चेहरा अपने पिता अब्दुल्लाह की तरह था लेकिन मोहम्मद अधिक सुंदर और उनके चेहरा अधिक आकर्षक था। उनके माथे पर आसमानी प्रकाश था जो बहुत ही सुंदर ढंग से चमक रहा था। मोहम्मद ने एक हाथ को ज़मीन पर और दूसरे हाथ को आसमान की ओर उठाया।उन्होंने बहुत ही सुंदर अंदाज़ में ईश्वर के अनन्य होने की गवाही दी। फ़रिश्तों ने उन्हें अपनी गोद में लिया और मुझे बधाई दी और बहुत ही स्वादिष्ट शर्बत मुझे पिलाया। उनमें से एक ने ऊंची आवाज़ में कहा, हे आमिना! अपने बेटे को ईश्वर के हवाले कर दो और कहो! उसे ईर्ष्या व द्वेष रखने वाले की बुराई से अनन्य ईश्वर की शरण में देती हूं।"

हज़रत अब्दुल मुत्तलिब हज़रत आमिना के पास पहुंचे और प्रकाश की तरह दमकते हुए इस नवजात को अपनी गोद में ले लिया और मस्जिदुल हराम ले गए ताकि ईश्वर का आभार प्रकट करें कि उसने उनके परिवार में ऐसे बच्चे को जन्म दिया। हज़रत अब्दुल मुत्तलिब काबे के भीतर गए। जिस समय हज़रत अब्दुल मुत्तलिब काबे में दाख़िल हो रहे थे कि उसी वक़्त बच्चे ने अपना मुंह खोला और काबे के भीतर यह आवाज़ गूंजने लगी बिस्मिल्लाह व बिल्लाह। इस दौरान एक आवाज़ आयी, "हे संसार के लोगों सत्य आया और असत्य मिट गया और असत्य तो मिटने ही वाला है।"            

पैग़म्बरे इस्लाम जब 12 साल के थे तो अपने चाचा हज़रत अबू तालिब के साथ सीरिया के व्यापारिक सफ़र पर गए। रास्ते में कारवां ने एक उपासनास्थल में पड़ाव डाला। उस उपासनास्थल में एक नेक पादरी रहता था जिसका नाम बुहैरा था। बुहैरा मुसाफ़िरों का आव-भगत करते थे। जब मुसाफ़िर उपासनास्थल पहुंचे तो बुहैरा ने पूछाः कोई बाक़ी तो नहीं रह गया है? हज़रत अबू तालिब ने कहा, सिर्फ़ एक किशोर बाहर है। बुहैरा ने कहा कि उस किशोर को भी बुला लाइये। जिस वक़्त हज़रत मोहम्मद दाख़िल हुए तो बुहैरा ने हैरत से पूछाः मेरा एक सवाल है। मैं आपको लात और उज़्ज़ा की मूर्तियों की क़सम देता हूं कि सच बताइयेगा! हज़रत मोहम्मद ने जवाब दिया, मेरे निकट ये दोनों सबसे ज़्यादा अप्रिय चीज़ें हैं। बुहैरा ने कहा, आपको महान ईश्वर की क़सम देता हूं कि सच कहिएगा। हज़रत मोहम्मद ने कहा, "मैं हमेशा सच बोलता हूं।" बुहैरा ने पूछा, क्या चीज़ सबसे ज़्यादा पसंद है? हज़रत मोहम्मद ने कहा, एकान्त। बुहैरा ने कहा, "विभिन्न दृष्यों में कौनसा दृष्य सबसे ज़्यादा पंसद है?" हज़रत मोहम्मद ने कहा, "आसमान और तारे।" बुहैरा ने कुछ और सवालों के बाद हज़रत मोहम्मद के शानों को देखने की इच्छा जतायी क्योंकि बुहैरा अपने ज्ञान से समझ चुके थे कि मोहम्मद वही पैग़म्बर हैं जिनके आगमन की हज़रत ईसा शुभसूचना दे चुके थे। बुहैरा ने बड़ी उत्सुकता से हज़रत अबू तालिब से पूछाः यह बच्चा कौन है? हज़रत अबू तालिब ने कहा, मेरा बेटा है। बुहैरा ने कहा, नहीं! इस किशोर के पिता को जीवित नहीं होना चाहिए। हज़रत अबू तालिब ने हैरत से पूछाः आपको यह बातें कहां से मालूम हुयीं? बुहैरा ने कहा, इस किशोर का भविष्य बहुत अहम है। जो कुछ मैने उनमें देखा है दूसरे भी उसे देख कर समझ गए तो उन्हें मार डालेंगे। उनकी रक्षा करो क्योंकि यह अंतिम ईश्वरीय दूत हैं।          

हज़रत मोहम्मद अपने दौर के दूषित समाज से बहुत दुखी थे। जैसे जैसे हज़रत मोहम्मद के विचार में गहरायी आती थी वैसे वैसे वह अपने और आम लोगों के बीच वैचारिक खाई को बढ़ता हुआ देखते थे। वह ज़्यादातर वक़्त हेरा नामक गुफा में बिताते और दुनिया की स्थिति के बारे में सोच विचार करते और ईश्वर की उपासना में समय बिताते। जब वह 40 साल के हुए तो एक दिन हेरा नामक गुफा में उपासना में लीन थे कि ईश्वरीय संदेश वही लाने वाला फ़रिश्ता प्रकट हुआ और उसने ईश्वर की ओर से पवित्र क़ुरआन की सबसे पहले उतरने वाली कुछ आयतें पढ़ीं।

पैग़म्बरे इस्लाम नैतिक मूल्यों के बाद लोगों के बीच एकता को मानव जाति की सफलता के लिए बहुत ज़रूरी मानते थे इसलिए उन्होंने एक दूसरे की दुश्मन जातियों को आपस में एकजुट किया और उनके मन में द्वेष के स्थान पर मोहब्बत और बिखराव की जगह पर एकता व भाईचारे का बीच बोया। पैग़म्बरे इस्लाम ने मदीना पलायन करने के पहले साल जो सबसे अच्छी पहल की वह यह थी कि उन्होंने सभी मुसलमानों के बीच चाहे वे मर्द हों या औरत बंधुत्व की संधि क़ायम की। यह ऐसी संधि थी जो जातीय व क़बायली भावना से हट कर सत्य व सामाजिक सहयोग की भावना पर आधारित थी।

यूं तो हर ईश्वरीय पैग़म्बर अच्छे व्यवहार व शिष्टाचार के स्वामी होते थे लेकिन अंतिम ईश्वरीयदूत हज़रत मोहम्मद मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम इस दृष्टि बहुत ही ऊंचे स्थान पर हैं। जैसा कि ख़ुद पैग़म्बरे इस्लाम फ़रमाते हैं कि मैं इसलिए पैग़म्बरी के लिए नियुक्त हुआ हूं कि नैतिकता को उसके चरम पर पहुंचाऊं। स्वंय ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम के शिष्टाचार की तारीफ़ में पवित्र क़ुरआन में कहा है कि हे पैग़म्बर अगर आप अच्छे स्वभाव के न होते तो लोग आपसे दूर हो जाते। पैग़म्बरे इस्लाम का मेहरबान स्वभाव हर एक को सम्मोहित कर लेता था।

पैग़म्बरे इस्लाम जिस रास्ते से गुज़रते थे हर दिन एक यहूदी अपने घर की छत से उन के सिर पर मिट्टी डालता था, लेकिन पैग़म्बरे इस्लाम ख़ामोशी से गुज़र जाते और उसे कुछ नहीं कहते थे। एक दिन ऐसा हुआ कि जब पैग़म्बरे इस्लाम उस रास्ते से गुज़रे तो उस यहूदी ने उन पर कूड़ा नहीं फेंका। आपने बहुत ही मीठे स्वर में पूछा कि आज मेरा दोस्त नज़र नहीं आया। लोगों ने बताया कि वह बीमार है। तो आप उसे देखने के लिए गए। उसके बिस्तर के किनारे इस तरह बैठ गए मानो उस व्यक्ति से किसी तरह का कोई कष्ट न पहुंचा हो। वह यहूदी पैग़म्बरे इस्लाम के इस व्यवहार से हैरत में पड़ गया।                              

जिस समय मक्का फ़त्ह हुआ और पैग़म्बरे इस्लाम पूरी शान के साथ मक्के में दाख़िल हुए तो इस्लाम का ध्वज उठाने वाले एक शेर पढ़ रहे थे जिसका अर्थ है, आज लड़ाई का दिन है। आज तुम्हारी जान माल हलाल समझी जाएगी और आज क़ुरैश के अपमान का दिन है। पैग़म्बरे इस्लाम ने जब यह सुना तो नाराज़ हुए और तुरंत कहा, आज कृपा का दिन है। आज क़ुरैश के सम्मान का दिन है। आज वह दिन है कि ईश्वर ने काबे को इज़्ज़त दिलायी।

हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं, "ईश्वर का शुक्रिया कि उसने इतनी सारी जातियों में हमारे बीच हज़रत मोहम्मद को भेजा। हे ईश्वर उन पर अपनी कृपा नाज़िल कर जो तेरी वही के अमानतदार, तेरे बंदों में सबसे अच्छे बंदे हैं। वे अच्छाइयों के ध्वजवाहक और बरकत की कुन्जी हैं। हे प्रभु! उन्होंने तेरे मार्ग में जो कठिनायी सहन की उसके बदले में उन्हें स्वर्ग में ऐसा स्थान दे कि कोई भी उनके स्थान तक न पहुंच सके कोई फ़रिश्ता और पैग़म्बर उनकी बराबरी न करे।"