رضوی

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शनिवार, 10 जून 2017 04:37

रमज़ान का नवॉं दिन।

इस साल स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह की बरसी 9 रमज़ान को पड़ रही ।

इमाम ख़ुमैनी ने ईरान में ऐसी क्रान्ति का नेतृत्व संभाला जिसकी सफलता से अंतर्राष्ट्रीय समीकरण उलट पलट गए। ऐसी क्रान्ति जो थोड़े समय में अन्य देशों की जनता को अपना समर्थक बनाने में सफल हुयी। इमाम ख़ुमैनी का व्यक्तित्व या शख़सियत ईरानी राष्ट्र में आध्यात्मिक बदलाव लाने में सबसे अहम तत्व था। इस्लामी क्रान्ति के दौरान और फिर इराक़ द्वारा थोपी गयी आठ वर्षीय जंग में जनता की भव्य उपस्थिति और जनता में इस्लामी मूल्यों की ओर रुझान का श्रेय इमाम ख़ुमैनी को जाता है। एक ऐसा नेता जो साम्राज्य के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने के साथ साथ आत्मज्ञानी व धर्मपरायण विद्वान थे। इमाम ख़ुमैनी आध्यात्मिक हस्ती होने के साथ साथ पीड़ितों की रक्षा और अत्याचारियों का मुक़ाबला करने में पूरी तरह दृढ़ थे। ज्ञान, राजनीति और अध्यात्म के संगम से हासिल अतुल्य शक्ति इमाम ख़ुमैनी के व्यक्तित्व के आकर्षक जलवे थे। एक ऐसी हस्ती जो ज्ञान व अध्यात्म के जटिल चरणों को तय करते हुए शिखर पर पहुंचे और साथ ही एक सामाजिक व राजनैतिक दृष्टि से प्रभावी नेता भी हो। ऐसी हस्ती इतिहास की सबसे ज़्यादा आश्चर्य में डालने वाली सच्चाई है। उनका संतुष्ट दिखाई देने वाला चेहरा, ईश्वरीय अनुकंपाओं पर गहरी आस्था की देन था। धैर्य के ऐसे चरण पर थे कि सख़्त से सख़्त हालात भी उन्हें डिगा न सके। इमाम ख़ुमैनी की नज़र में यह संसार ईश्वर की जलवागाह है अर्थात जिस तरफ़ नज़र उठाओ ईश्वर का जलवा नज़र आएगा। इसी प्रकार वह ईश्वरीय कृपा पर आस्था रखते थे। जो भी इमाम ख़ुमैनी के जीवन की समीक्षा तो वह पाएगा कि पवित्र क़ुरआन की छत्रछाया में जीवन बिताते थे। इस बारे में वह कहते थे, “अगर हम अपनी ज़िन्दगी के हर क्षण ईश्वर का इस बात के लिए आभार व्यक्त करने हेतु सजदे में रहें कि क़ुरआन हमारी किताब है, तब भी हम इसका हक़ अदा नहीं कर सकते।”

 

पवित्र क़ुरआन को समझने के लिए सबसे पहला क़दम यह है कि उसे हमेशा पढ़ें क्योंकि ऐसा न करने की स्थिति हम पवित्र क़ुरआन के तर्क व अर्थ को नहीं समझ पाएंगे। इमाम ख़ुमैनी के इराक़ के पवित्र नगर नजफ़ में देश निकाला के जीवन के समय साथ रहने वाले एक व्यक्ति का कहना है, “जिन दिनों में नजफ़ में इमाम ख़ुमैनी रह रहे थे, उन्हें अनेक मुश्किलों का सामना था। पवित्र रमज़ान के महीने में हर दिन 10 पारह पढ़ते थे और इस तरह तीन दिन में पूरा क़ुरआन पढ़कर ख़त्म कर देते थे।”                

क़ुरआन की दुनिया में क़दम रखने के संबंध में यह बात अहम है कि सोच-समझ कर क़ुरआन पढ़ने की बहुत अहमियत है और क़ुरआन की आयतों पर चिंतन मनन से ही हम इस ख़ज़ाने से लाभ उठा सकते हैं। इमाम ख़ुमैनी इस तरह क़ुरआन पढ़ने पर बहुत बल देते थे। वह अपनी एक बहू से अनुशंसा करते हुए कहते हैं, “ईश्वर की कृपा के स्रोत क़ुरआन में चिंतन मनन करो। हालांकि महबूब ख़त समान इस किताब को पढ़ने का सुनने वाले पर अच्छा असर पड़ता है लेकिन इसमें सोच विचार से इंसान का उच्च स्थान की ओर मार्गदर्शन होता।”

इमाम ख़ुमैनी की एक संतान उनके बारे में कहती है, “पवित्र रमज़ान में उनका उपासना का कार्यक्रम यूं होता था कि रात से सुबह तक नमाज़ और दुआ पढ़ते थे और सुबह की नमाज़ पढ़ने और थोड़ा आराम के बाद अपने काम के लिए तय्यार होते थे। पवित्र रमज़ान को विशेष रूप से अहमियत देते थे। इतनी अहमियत देते थे कि इस महीने में कुछ काम नहीं करते थे ताकि पवित्र रमज़ान की विभूतियों से ज़्यादा से ज़्यादा फ़ायदा उठाएं। वह अपनी ज़िन्दगी में इस विशेष महीने में बदलाव लाते थे। बहुत कम खाना खाते थे। यहां तक कि लंबे दिनों में सहरी और इफ़्तार के समय इतना कम खाते थे कि हमें लगता था कि हुज़ूर ने कुछ खाया ही नहीं है।”       

सूरे निसा की 69वीं आयत में ईश्वर कह रहा है, “जो लोग ईश्वर और उसके दूतों का पालन करते हैं वे ईश्वरीय दूतों, सच्चों, शहीदों और सदाचारियों के साथ होंगे कि जिन्हें ईश्वर अपनी अनुकंपाओं से नवाज़ता है और ऐसी लोग अच्छे साथी हैं।”

 

इस आयत का अर्थ यह है कि जो लोग ईश्वर और उनके दूत के आदेश का पालन करते हुए ख़ुद को समर्पित कर देते हैं, वे ऐसे लोगों के साथ होंगे जिन्हें ईश्वर अपनी नेमतों से नवाज़ता है। पवित्र क़ुरआन के हम्द नामक सूरे में कि जिसे मुसलमान कम से कम हर दिन 10 बार पढ़ता है, इस प्रकार के लोगों का उल्लेख है। जैसा कि सूरे हम्द में जब हम यह कहते हैं कि इहदिनस सिरातल मुस्तक़ीम अर्थात ईश्वर हमारा सीधे रास्ते की ओर मार्गदर्शन कर, तो इसके बाद वाले टुकड़े में सीधा मार्ग उन लोगों का मार्ग कहा गया है जिन पर ईश्वर की अनुकंपाएं नाज़िल होती हैं। जो लोग सीधे मार्ग पर चलते हैं वह तनिक भी नहीं भटकते।

निसा सूरे की आयत नंबर 69 उन लोगों के बारे में हैं जिन पर ईश्वर की अनुकंपाएं पूरी हुयीं। इसमें पहला गुट ईश्वरीय दूतों का है जो लोगों को सीधे मार्ग की ओर बुलाने का बीड़ा उठाते हैं। उसके बाद सिद्दीक़ीन अर्थात सच बोलने वालों का गुट है। सिद्दीक़ीन उन्हें कहते हैं जो सच बोलते हैं और अपने व्यवहार व चरित्र से अपनी सच्चाई को साबित करते हैं और यह दर्शाते हैं कि वह सिर्फ़ दावा नहीं करते बल्कि ईश्वरीय आदेश पर उन्हें आस्था व विश्वास है। इस आयत से स्पष्ट होता है कि नबुव्वत अर्थात ईश्वरीय दूत के स्थान के बाद सच्चों से ऊंचा किसी का स्थान नहीं है।

इसके बाद शोहदा का स्थान है। शोहदा वे लोग हैं जो प्रलय के दिन लोगों के कर्मों के गवाह होंगे। यहां शोहदा से अभिप्राय जंग में शहीद होने वाले नहीं है। आख़िर में सालेहीन अर्थात सदाचारियों का स्थान है। ये वे लोग हैं जो सार्थक व लाभ दायक कर्म करते हैं। ईश्वरीय दूतों का पालन करके ऐसे स्थान पर पहुंचे कि ईश्वरीय अनुकंपाओं के पात्र बन सकें। स्पष्ट है कि ऐसे लोग भले साथी हैं।

 

दूसरी ओर यह आयत इस सच्चाई की ओर भी इशारा करती है एक इंसान की दूसरे इंसान के साथ संगत इतनी अहम है कि परलोक में स्वर्ग की अनुकंपाओं को संपूर्ण करने के लिए उन्हें दूसरी अनुकंपाओं के साथ साथ ईश्वरीय दूतों, सच्चों, शहीदों और सदाचारियों के साथ रहने का अवसर भी मिलेगा।

निसा सूरे की आयत नंबर 69 की व्याख्या में ख़्वाजा अब्दुल्लाह अंसारी कहते हैं, “सौबान पैग़म्बरे इस्लाम के विशेष साथियों में थे। उन्हें पैग़म्बरे इस्लाम से बहुत गहरी श्रद्धा थी। एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम ने उनसे पूछा, बहुत ज़्यादा कठिनाई सहन कर रहे हो कि इतने कमज़ोर हो गए हो? सौबान ने कहा, “मुझे इस बात की चिंता सता रही है कि आप परलोग में स्वर्ग के सबसे उच्च स्थान में होंगे और हम आपका दीदार न कर पाएंगे।” तो यह आयत उनके बारे में उतरी।”       

 

हम ने पवित्र रमज़ान के महीने में पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थ के सेवन और सेहत पर उसके असर के बारे में बताया। यह बिन्दु भी बहुत अहम कि पवित्र रमज़ान में किस प्रकार का खाद्य पदार्थ हो और उसे किस तरह उपभोग करें। रोज़ेदारों की यह कोशिश होती है कि अपने परिजनों के लिए हलाल व पाक आजीविका कमाए। क्योंकि हलाल रोज़ी व आजीविका से ही इंसान में नैतिक गुण पनपते हैं। कृपालु व आजीविका देने वाला ईश्वर इस बात का उल्लेख करते हुए कि सृष्टि में उसने उपभोग के लिए बहुत सी अनुकंपाएं इंसान के लिए मुहैया की हैं, इंसान पर बल देता है कि वह पाक व हलाल आजीविका हासिल करे। पवित्र क़ुरआन में पाक खाने और सदकर्म पर बहुत बल दिया गया है। जैसा कि मोमेनून नामक सूरे की आयत नंबर 51 में ईश्वर अपने दूतों से कह रहा है कि वे पाक खाना खाएं और उससे हासिल ऊर्जा को लाभदायक कर्म में इस्तेमाल करें। ईश्वर ने पाक रोज़ी को मानव जाति की अन्य प्राणियों पर श्रेष्ठता का तत्व कहा है। पाक व हलाल रोज़ी अच्छी बातों की तरह इंसान के व्यक्तित्व के विकास में प्रभावी होती है। उसे आध्यात्मिक आत्मोत्थान व नैतिक मूल्यों की रक्षा में मदद देती है और स्वच्छ बारिश की तरह इंसान के अस्तित्व में नैतिकता का पौधा उगाती है। खाना स्वच्छ, हलाल, पाक, गंदगी से दूर, मूल पदार्थ और उसका बर्तन उचित हो और उसमें खाद्य पदार्थ के सभी प्रकार के गुट शामिल हों। ये वे बिन्दु हैं जिन पर भोजन के संबंध में ध्यान देने की ज़रूरत है।

पाक लुक़मे से ही इंसान की प्रवृत्ति संतुलित रहती है। अपनी मेहनत से हासिल भोजन के सेवन से इंसान संतुष्टि का आभास करता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इंसान की हलाल व पाक आजीविका, उसे सेहत व शिफ़ा देती है।

पवित्र क़ुरआन में ऐसी अनेक आयतें हैं जिनमें ऐसे फलों व खाद्य पदार्थ का उल्लेख है जो इंसान की सेहत के लिए बहुत अहम हैं। इस्लामी रवायतों में इन खाद्य पदार्थ के इंसान के व्यवहार व शिष्टाचार पर पड़ने वाले कुछ प्रभाव का उल्लेख किया गया है। जैसा कि इस्लामी रिवायत में आया है, “मुध या शहद खाने से याददाश्त बढ़ती है। खजूर से इंसान में धैर्य आता है।” इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम ज़ैतून खाने की अनुशंसा करते हुए फ़रमाते हैं, “ज़ैतून का तेल खाने से अमाशय साफ़ रहता है, स्नायु तंत्र मज़बूत होता है, इंसान में शिष्टाचार विकसित होता है और आत्मा को सुकून मिलता है।” अंगूर भी उन फलों में है जिससे दुख ख़ुशी में बदल जाता है। आहार विशेषज्ञों का कहना है कि रोज़ा रखने वालों इन फलों व मेवों को अपने खाने में शामिल करना चाहिए।

 

 

 

हर आंदोलन और क्रांति के आरंभ और अंत का एक बिंदु होता है।

इस्लामी क्रांति की मुख्य चिंगारी भी उसकी सफलता से पंद्रह साल पहले वर्ष 1963 में फूटी थी। यद्यपि इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह का चेतनापूर्ण आंदोलन कुछ समय पहले ही शुरू हो चुका था लेकिन 1963 के जून महीने के आरंभ में ईरानी जनता का रक्तरंजित आंदोलन ही था जिसने अत्याचारी शाही सरकार के विरुद्ध उन्हें इस्लामी आंदोलन के नेता के रूप में पेश किया। अत्याचारी शाही सरकार के विरुद्ध इमाम ख़ुमैनी के पूरे संघर्षपूर्ण जीवन में 15 ख़ुर्दाद या पांच जून का आंदोलन एक अहम मोड़ समझा जाता है और इस्लामी क्रांति को इसी आंदोलन का क्रम बताया जाता है।

 

यह आंदोलन एक ऐसा संघर्ष था जिसके तीन अहम स्तंभ इस्लाम, इमाम ख़ुमैनी व जनता थे। यद्यपि जून 1963 के इस आंदोलन को बुरी तरह कुचल दिया गया और उसके एक साल बाद इमाम ख़ुमैनी को तुर्की और वहां से इराक़ निर्वासित कर दिया गया था लेकिन इसी आंदोलन के बाद ईरान में अत्याचारी शासक मुहम्मद रज़ा पहलवी और उसके अमरीकी समर्थकों के ख़िलाफ़ संघर्ष ने व्यापक रूप धारण कर लिया। पंद्रह ख़ुर्दाद के आंदोलन के अस्तित्व में आने की वजह ईरान में नहीं बल्कि ईरान के बाहर थी। 1960 में अमरीका में हुए राष्ट्रपति चुनाव के बाद, जिसमें डेमोक्रेट प्रत्याशी जॉन एफ़ केनेडी विजयी हुए थे, अमरीका की विदेश नीति में काफ़ी बदलाव आया।

केनेडी, रिपब्लिकंज़ के विपरीत तीसरी दुनिया में अपने पिट्ठू देशों के संकटों से निपटने के बारे में अधिक लचकपूर्ण नीति में विश्वास रखते थे। उनका मानना था कि अमरीका की पिट्ठू सरकारों में सैनिक समझौतों के बजाए आर्थिक समझौते किए जाने चाहिए, सेना के प्रयोग के बजाए सुरक्षा व गुप्तचर तंत्र को अधिक सक्रिय बनाना चाहिए, सांस्कृतिक कार्यक्रमों का प्रचलन किया जाना चाहिए, नियंत्रित चुनावों का प्रचार होना चाहिए और तय मानकों वाले प्रजातंत्र को प्रचलित किया जाना चाहिए। असैनिक पिट्ठू सरकारों को सत्ता में लाना इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए केनेडी सरकार के मुख्य हथकंडों में शामिल था।

तत्कालीन ईरानी शासक मुहम्मद रज़ा पहलवी वर्ष 1953 में अमरीका व ब्रिटेन द्वारा ईरान में कराए गए विद्रोह और डाक्टर मुसद्दिक़ की सरकार गिरने के बाद अमरीका की छत्रछाया में आ गया था। उसके पास अपना शाही शासन जारी रखने और अमरीका को ख़ुश करने के लिए केनेडी की नीतियों को लागू करने और दिखावे के सुधार करने के अलावा और कोई मार्ग नहीं था। ये सुधार, श्वेत क्रांति के नाम से ईरानी समाज से इस्लाम को समाप्त करने और पश्चिमी संस्कृति को प्रचलित करने के उद्देश्य से किए जा रहे थे। इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने शाह के इस्लाम विरोधी षड्यंत्रों की ओर सचेत करते हुए देश की जनता को पिट्ठू सरकार की इन साज़िशों से अवगत कराने का प्रयास किया।

इमाम ख़ुमैनी के भाषणों के कारण श्वेत क्रांति के नाम से शाह के तथाकथित सुधारों के ख़िलाफ़ आपत्ति और विरोध की लहर निकल पड़ी। शाह ने कोशिश की कि फ़ैज़िया नामक मदरसे पर हमला करके और धार्मिक छात्रों व धर्मगुरुओं को मार पीट कर इन आपत्तियों को दबा दे लेकिन हुआ इसके विपरीत और उसकी इन दमनकारी नीतियों के कारण जनता के विरोध में और अधिक वृद्धि हो गई। तेहरान और ईरान के अन्य शहरों व ग्रामीण क्षेत्रों में हर दिन शाह के ख़िलाफ़ जुलूस निकलने लगे, दीवारों पर उसकी सरकार के ख़िलाफ़ क्रांतिकारी नारे लिखे जाने लगे और इमाम ख़ुमैनी के समर्थन में वृद्धि होने लगी। वर्ष 1342 हिजरी शमसी में आशूरा के दिन इमाम ख़ुमैनी ने फ़ैज़िया मदरसे में जो क्रांतिकारी भाषण दिया उसके बाद से जनता के आंदोलन में विशेष रूप से क़ुम, तेहरान और कुछ अन्य शहरों में वृद्धि हो गई।

शाह की सरकार और उसके इस्लाम विरोधी कार्यक्रमों में वृद्धि के बाद, शासन ने समझा के उसके पास इमाम ख़ुमैनी को गिरफ़्तार करने के अलावा कोई मार्ग नहीं है और उसने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया। क़ुम नगर में इमाम ख़ुमैनी की गिरफ़्तारी के बाद इस नगर में और फिर तेहरान व अन्य नगरों में जनता के विरोध प्रदर्शनों में अभूतपूर्व वृद्धि हो गई। शाह की सरकार ने बड़ी निर्दयता व क्रूरता से इन प्रदर्शनों को कुचलने की कोशिश की और सैकड़ों लोगों का जनसंहार कर दिया जबकि हज़ारों लोगों को गिरफ़्तार किया गया। शाह सोच रहा था कि इमाम ख़ुमैनी और उनके साथियों को गिरफ़्तार और पंद्रह ख़ुर्दाद के आंदोलन का दमन करके उसने अपने विरोध को समाप्त कर दिया है।

यह ऐसी स्थिति में था कि इमाम ख़ुमैनी के रुख़ में कोई परिवर्तन नहीं आया था, उनकी लोकप्रियता में कमी नहीं आई थी और न ही लोग मैदान से हटे थे। इमाम ख़ुमैनी के, जो अब आंदोलन के नेता के रूप में पूरी तरह से स्थापित हो चुके थे, भाषण जारी रहे। इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व में क़ुम के उच्च धार्मिक शिक्षा केंद्र में जो आंदोलन आरंभ हुआ था, वह शाह की अत्याचारी सरकार की ओर से निर्दयतापूर्ण दमन के बावजूद समाप्त नहीं हुआ बल्कि वह ईरान की धरती में एक बीज की तरह समा गया जो पंद्रह साल बाद फ़रवरी 1979 में एक घने पेड़ की भांति उठ खड़ा हुआ और उसने ईरान में अत्याचारी तानाशाही व्यवस्था का अंत कर दिया।

 

इमाम ख़ुमैनी ने सन 1979 में इस्लामी क्रांति की सफलता के बरसों बाद पंद्रह ख़ुर्दाद के आंदोलन के बारे में कहा था कि यह आंदोलन इस वास्तविकता का परिचायक था कि अगर किसी राष्ट्र के ख़िलाफ़ कुछ तानाशाही शक्तियां अतिक्रमण और धौंस धांधली करें तो सिर्फ़ उस राष्ट्र का संकल्प है जो अत्याचारों के मुक़ाबले में डट सकता है और उसके भविष्य का निर्धारण कर सकता है। पंद्रह ख़ुर्दाद, ईरानी राष्ट्र का भविष्य बदलने का एक शुभ आरंभ था जो यद्यपि इस धरती के युवाओं के पवित्र ख़ून से रंग गया लेकिन समाज में राजनैतिक व सामाजिक जीवन की दृष्टि से एक नई आत्मा फूंक गया।

इस्लामी क्रांति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी ने इसी प्रकार कहा थाः पंद्रह ख़ुर्दाद के आंदोलन में जो चीज़ बहुत अहम है वह शाही सरकार की दिखावे की शक्ति का चूर चूर होना था जो अपने विचार में स्वयं को जनता का स्वामी समझ बैठी थी लेकिन एक समन्वित क़दम और एक राष्ट्रीय एकता के माध्यम से अत्याचारी शाही सरकार का सारा वैभव अचानक ही धराशायी हो गया और उसका तख़्ता उलट गया।

पंद्रह ख़ुर्दाद के आंदोलन ने इसी तरह शाह की सरकार से संघर्ष करने वाले इस्लामी धड़े और अन्य राजनैतिक धड़ों के अंतर को भी पारदर्शी कर दिया। यह आंदोलन ईरानी जनता के बीच एक ऐसे संघर्ष का आरंभ बन गया जो पूरी तरह से इस्लामी था। इस आंदोलन का इस्लामी होना, इसके नेता के व्यक्तित्व से ही पूरी तरह उजागर था क्योंकि इसके नेता इमाम ख़ुमैनी एक वरिष्ठ धर्मगुरू थे। इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व के कारण शाह की सरकार द्वारा बरसों से धर्म और राजनीति को अलग अलग बताने के लिए किया जा रहा कुप्रचार भी व्यवहारिक रूप से विफल हो गया और ईरान के मुसलमानों ने एक ऐसे संघर्ष में क़दम रखा जिस पर चलना उनके लिए नमाज़ और रोज़े की तरह ही अनिवार्य था।

इस्लाम, इस संघर्ष की विचारधारा था और इसके सिद्धांत, क़ुरआन और पैग़म्बर व उनके परिजनों के चरित्र से लिए गए थे। पंद्रह ख़ुर्दाद के आंदोलन की दूसरी विशेषता, शाह की सरकार से संघर्ष के इस्लामी आंदोलन के नेता के रूप में इमाम ख़ुमैनी की भूमिका का अधिक प्रभावी होना था। इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व ने राजनीति से धर्म के अलग होने के विचार को हमेशा के लिए समाप्त कर दिया। शाह की सरकार से संघर्ष में इमाम ख़ुमैनी का रुख़, संसार में साम्राज्य विरोधी वामपंथी व धर्म विरोधी संघर्षकर्ताओं जैसा नहीं था बल्कि उनके विचार में यह एक ईश्वरीय आंदोलन था जो धार्मिक दायित्व के आधार पर पूरी निष्ठा के साथ चलाया गया था। इस आंदोलन की तीसरी विशेषता इसका जनाधारित होना था। पंद्रह खुर्दाद के आंदोलन का संबंध किसी ख़ास वर्ग से नहीं था बल्कि समाज के सभी वर्ग इसमें शामिल थे जिनमें शहर के लोग, गांव के लोग, व्यापारी, छात्र, महिला, पुरुष, बूढ़े और युवा सभी मौजूद थे। जिस बात ने इन सभी लोगों को मैदान में पहुंचाया और आपस में जोड़ा था, वह इस्लाम था।

इमाम ख़ुमैनी ने क्रांति के आरंभ में ही अमरीका, ब्रिटेन और सोवियत यूनियन को ईरानी जनता के पिछड़ेपन के लिए दोषी बताया था और विदेशी शक्तियों के साथ संघर्ष आरंभ किया था। ईरान की जनता, इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व में राजनैतिक स्वाधीनता का सबसे बड़ा जलवा देख रही थी। यही वह बातें थीं जो पंद्रह ख़ुर्दाद के आंदोलन का कारण बनीं थीं और इन्हीं के कारण ईरान की इस्लामी क्रांति भी सफल हुई और इस समय भी यही बातें इस्लामी गणतंत्र ईरान की प्रगति और विकास का आधार बनी हुई हैं। ईरान की क्रांति का इस्लामी होना, जनाधारित होना और जनता की ओर से क्रांति के नेतृत्व का भरपूर समर्थन करना वे कारक हैं जिनके चलते इस्लामी गणतंत्र ईरान पिछले तीस बरसों में अमरीका और उसके घटकों की विभिन्न शत्रुतापूर्ण कार्यवाहियों के मुक़ाबले में सफल रहा है। यही विशेषताएं, क्षेत्रीय राष्ट्रों के लिए ईरान के आदर्श बनने और अत्याचारी व अमरीका की पिट्ठू सरकारों के ख़िलाफ़ आंदोलन आरंभ होने का कारण बनी हैं।

 

 

इस्लामी गणतंत्र ईरान के संस्थापक इमाम खुमैनी की 28वीं बरसी के कार्यक्रम स्थानीय समयानुसार शाम ६ बजे आरंभ हुई जिसमें भाषण देते हुए इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने इमाम खुमैनी के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला और विश्व व ईरान के ज्वलंत मुद्दों पर अपने विचार रखे।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि इमाम खुमैनी के बारे में जानकार लोगों ने अब तक बहुत कुछ कहा है किंतु यह बात याद रखनी चाहिए कि इमाम खुमैनी और क्रांति एक दूसरे से जुड़े हैं और इस संदर्भ में अब भी बहुत कुछ कहा जाना बाकी है।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि इमाम खुमैनी और क्रांति एक दूसरे से अलग नहीं हो सकते और इस्लामी क्रांति, इमाम खुमैनी का सब से बड़ा कारनामा है। वरिष्ठ नेता ने कहा कि सच्चाई को बार बार दोहराना चाहिए वर्ना उसमें फेर-बदल की संभावना पैदा हो जाती है।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि ईरान की इस्लामी क्रांति ईश्वर की कृपा से इमाम खुमैनी द्वारा सफल हुई किंतु वह वास्तव में एक राजनीतिक बदलाव नहीं था बल्कि पूरे समाज को उसकी पहचान के साथ बदलना था।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि इमाम खुमैनी हमारे बीच से उठ गये हैं किंतु उसकी आत्मा हमारे बीच है और उनका संदेश हमारे समाज में जीवित है।

वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने कहा कि बहरैन में सऊदी अरब की उपस्थिति आतार्किक है किसी दूसरे देश को बहरैन में सैनिक भेजने की क्या ज़रूरत है और वह क्यों किसी  राष्ट्र पर अपनी इच्छा थोपना चाहता है। 

वरिष्ठ नेता ने कहा कि सऊदी अरब अगर कई अरब डॅालर की रिश्वत से भी अमरीका को अपने साथ करना चाहेगा तब भी उसे सफलता नहीं मिलेगी और वह यमन की जनता के सामन जीत नहीं सकता। 

वरिष्ठ नेता ने क्षेत्रीय देशों में प्राॅक्सी वार की दुश्मनों की साज़िश का उल्लेख करते हुए कहा कि आज आतंकवादी गुट दाइश, अपनी जन्मस्थली अर्थात सीरिया और इराक़ से खदेड़ा जा चुका है और अब अफगानिस्तान, पाकिस्तान बल्कि फिलिपीन और युरोप जैसे क्षेत्रों में जा रहा है और यह वह आग है जिसे खुद उन लोगों ने भड़काया था और अब खुद उसका शिकार हो रहे हैं। 

वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई  ने इसी प्रकार ईरान में हालिया दिनों में राष्ट्रपति चुनाव के भव्य आयोजन का उल्लेख करते हुए बल दिया कि ज़रा देखें दुश्मन किस सीमा तक दुष्ट है कि अमरीका के राष्ट्रपति एक क़बाइली व अत्याधिक गिरी हुई सरकार के साथ तलवार का नाच नाचते हैं और ईरानी जनता के चार करोड़ के वोटों पर टीका टिप्पणी करते हैं।  

 

 

शायद ईरानी जनता ने अपने पूरे राजनैतिक जीवन में 4 जून 1989 से ज़्यादा दुखी दिन का अनुभव नहीं किया होगा।

यह वह दिन है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान के संस्थापक इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह इस नश्वर संसार से चले गये। एक ऐसी हस्ती जिसने ईरान के इतिहास पर गहरा व निर्णायक असर डाला और साथ ही जनता के इरादे को इस्लामी गणतंत्र ईरान के सांचे में पेश किया। इमाम ख़ुमैनी ईरानी राष्ट्र सहित सारे मुसलमानों के लिए सिर्फ़ एक राजनेता ही नहीं बल्कि वह एक बड़े धर्मगुरू, सादा जीवन बिताने वाले और अत्याचार व अन्याय के ख़िलाफ़ संघर्ष के प्रतीक भी थे। यही वजह है कि इमाम ख़ुमैनी के स्वर्गवास को आज 28 साल गुज़रने के बाद भी उनकी याद लोगों के दिलों में उसी तरह बाक़ी और उनकी बातें लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं।

 

आज की दुनिया में जो अत्याचार व अन्याय से भरी हुयी है, इमाम ख़ुमैनी की भेदभाव व अतिक्रमण के ख़िलाफ़ डटे रहने की शिक्षाएं, मार्गदर्शक का काम कर रही हैं। उनका मानना था, “इस संसार में पहले इंसान के क़दम रखते ही अच्छे और बुरे लोगों के बीच विवाद का द्वार खुल गया।” इस्लामी क्रान्ति के संस्थापक इस्लाम को अत्याचारियों के ख़िलाफ़ संघर्ष के लिए प्रेरणा का बेहतरीन माध्यम मानते थे, क्योंकि इस धर्म की शिक्षाओं में अत्याचार के विरोध पर साफ़ तौर पर बल दिया गया है। वह साफ़ तौर पर कहते थे, “हमारे धार्मिक आदेशों ने कि जिनके ज़रिए सबसे ज़्यादा प्रगति की जा सकती है, हमारे लिए मार्ग निर्धारित किए हैं। हम इन आदेशों और दुनिया के महान नेता हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के नेतृत्व के सहारे उन सभी शक्तियों के ख़िलाफ़ संघर्ष करेंगे जो हमारे राष्ट्र पर अतिक्रमण करने का इरादा रखती हैं।” यही वजह है कि जब हम इमाम ख़ुमैनी के ईरान में अत्याचारी पहलवी शासन, अमरीका और ज़ायोनी शासन के ख़िलाफ़ संघर्ष पर नज़र डालते हैं तो पाते हैं उनका यह संघर्ष इस्लामी मूल्यों के आधार पर था जो अत्याचार को पसंद नहीं करता और अत्याचारियों के ख़िलाफ़ संघर्ष पर बल देता है।      

देश के भीतर अत्याचार और विश्व साम्राज्य के ख़िलाफ़ संघर्ष में वीरता और दृढ़ता इमाम ख़ुमैनी के व्यक्तित्व की स्पष्ट विशेषताएं थीं। उनमें ये विशेषताएं ईश्वर पर भरोसे से पैदा हुयी थी। वह हर काम में ईश्वर पर भरोसा करते थे। इस्लामी क्रान्ति के संस्थापक को पवित्र क़ुरआन के मोहम्मद सूरे की आयत नंबर 7 पर गहरी आस्था थी जिसमें ईश्वर कह रहा है, “अगर तुम ईश्वर की मदद करो तो वह तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हारे क़दम जमा देगा।” यही वजह है कि इमाम ख़ुमैनी पहलवी शासन के ख़िलाफ़ संघर्ष के दौरान कभी भी निराश नहीं हुए। अमरीकी हथकंडों और उसकी दुश्मनी के सामने कभी नहीं घबराए। क्योंकि इमाम ख़ुमैनी ईश्वर को सर्वशक्तिमान मानते थे और उसे अपना और लोगों का मददगार समझते थे। इस महान शक्ति के भरोसे दुनिया के राष्ट्रों को अमरीकी वर्चस्ववाद और आंतरिक स्तर पर मौजूद अत्याचारियों के ख़िलाफ़ प्रतिरोध के लिए प्रेरित करते और उन्हें यह वचन देते थे कि अगर वे ऐसा करेंगे तो सफलता उनके क़दम चूमेगी।

 

ईश्वर के बाद इमाम ख़ुमैनी जनता की शक्ति पर भरोसा करते थे। उनका मानना था कि अगर आम लोग जागरुक व एकजुट हो जाएं तो कोई भी शक्ति उनके सामने टिक नहीं सकती। इमाम ख़ुमैनी इस्लामी क्रान्ति में जनता की भूमिका के बारे में कहते हैं, “इस बात में शक नहीं कि इस्लामी क्रान्ति के बाक़ी रहने का रहस्य भी वही है जो उसकी सफलता का रहस्य है और राष्ट्र सफलता के रहस्य को जानता है और आने वाली पीढ़ियां भी इतिहास में यह पढेंगी कि उसके दो मुख्य स्तंभ इस्लामी शासन जैसे उच्च उद्देश्य की प्राप्ति की भावना और इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए पूरे राष्ट्र की एकजुटता थी।”

इमाम ख़ुमैनी अपने वंशज पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम का अनुसरण करते थे और पवित्र क़ुरआन के फ़त्ह नामक सूरे की अंतिम आयत उन पर चरितार्थ होती थी कि जिसमें ईश्वर कह रहा है, “मोहम्मद ईश्वरीय दूत हैं। जो लोग उनके साथ हैं वे नास्तिकों के ख़िलाफ़ कठोर लेकिन आपस में मेहरबान हैं।” इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह हमेशा देश के अधिकारियों पर बल देते थे कि आम लोगों की मुश्किलों को हल करें। इसी प्रकार वह ख़ुद भी एक मेहरबान पिता के समान आम जनता का समर्थन करते थे। लोग भी उनसे गहरी श्रद्धा रखते थे और उनके निर्देशों को पूरी तनमयता से स्वीकार करते और उस पर अमल करते थे। इमाम ख़ुमैनी व जनता के बीच यह संबंध शाह के पतन के लिए जारी संघर्ष और इराक़ के पूर्व तानाशाह सद्दाम के हमले से ईरान की भूमि की रक्षा के दौरान पूरी तरह स्पष्ट था।             

एक ओर इमाम ख़ुमैनी इस्लाम और जनता के दुश्मनों का दृढ़ता से मुक़ाबला करते तो दूसरी ओर इस्लामी जगत के भीतर हमेशा एकता, समरस्ता व भाईचारे के लिए कोशिश करते थे। वह राष्ट्रों से भी और सरकारों से भी एकता की अपील करते हुए बल देते थे, “अगर इस्लामी सरकारें जो सभी चीज़ों से संपन्न हैं, जिनके पास बहुत ज़्यादा भंडार हैं, आपस में एकजुट हो जाएं, तो इस एकता के नतीजे में उन्हें किसी दूसरी चीज़, देश या शक्ति की ज़रूरत नहीं पड़ेगी।” इसके साथ ही इमाम ख़ुमैनी ने इस बिन्दु की ओर भी ध्यान था कि इस्लाम के दुश्मनों के साथ इस्लामी जगत के भीतर भी कुछ सरकारें व गुट मौजूद हैं जो मुसलमानों के बीच एकता के ख़िलाफ़ हैं ताकि इस प्रकार अपने पश्चिमी दोस्तों के हितों का रास्ता समतल करें। इमाम ख़ुमैनी की नज़र में मुसलमानों के बीच एकता के मार्ग में सबसे बड़ी रुकावट सऊदी सरकार है कि जिसका आधार पथभ्रष्ट वहाबी मत की शिक्षाए हैं। एक स्थान पर इमाम ख़ुमैनी फ़रमाते हैं, “जैसे ही एकता के लिए कोई आवाज़ उठती है तो उसी वक़्त हेजाज़ से एक व्यक्ति यह कहता हुआ नज़र आता है कि पैग़म्बरे इस्लाम का शुभ जन्म दिवस मनाना शिर्क अर्थात अनेकेश्वरवाद है। मुझे नहीं मालूम कि यह बात किस आधार पर कही जा रही है, यह कैसे अनेकेश्वरवाद हो सकता है? अलबत्ता ऐसा कहने वाला वहाबी है। वहाबियों को सुन्नी मत के लोग भी नहीं मानते। ऐसा नहीं है कि सिर्फ़ हम उन्हें नहीं मानते बल्कि सुन्नी भाई भी उन्हें नहीं मानते।”

इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह का मानना था कि वहाबियत एक पथभ्रष्ट विचारधारा है जो मुसलमानों के पिछड़ेपन का कारण बनेगी। जैसा कि मौजूदा दौर में हम यह देख रहे हैं कि इस हिंसक व आधारहीन मत के अनुयायी इराक़, सीरिया, अफ़ग़ानिस्तान, यमन, और लीबिया में लोगों के ख़ून से होली खेल रहे हैं। वास्तव में ये लोग इस्लाम के दुश्मनों की सेवा कर रहे हैं। इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह आले सऊद और वहाबियों के बारे में बहुत ही गहरी बात कहते हैं,“क्या मुसलमानों को यह नज़र नहीं आ रहा है कि आज दुनिया में वहाबियत के केन्द्र साज़िश व जासूसी के गढ़ बन चुके हैं जो एक ओर कुलीन वर्ग के इस्लाम, अबू सुफ़ियान के इस्लाम, दरबारी कठमुल्लों के इस्लाम, धार्मिक केन्द्रों व यूनिवर्सिटियों के विवेकहीन लोगों का बड़ा पवित्र दिखने वाले इस्लाम, तबाही व बर्बादी में ले जाने वाले इस्लाम, धन व ताक़त के इस्लाम, धोखा, साज़िश व ग़ुलाम बनाने वाले इस्लाम, पीड़ितों व निर्धनों पर पूंजिपतियों के इस्लाम, और एक शब्द में अमरीकी इस्लाम का प्रचार कर रहे हैं और दूसरी ओर पूरी दुनिया को लूटने वाले अमरीकियों के सामने अपना सिर झुकाते हैं।”

इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह जो बातें सऊदियों की इस्लामी जगत से ग़द्दारी के बारे में कह गए, ऐसा लगता है कि वे हमारे बीच मौजूद हैं और अपनी आंखों से ये होता हुआ देख रहे हैं। जैसा कि पवित्र मक्का में ईरानी श्रद्धालुओं के जनसंहार की बरसी के अवसर पर अपने संदेश में लिखते हैं, “मुसलमान यह नहीं जानता कि यह दर्द किससे बांटे कि आले सऊद इस्राईल को यक़ीन दिलाता है कि हम अपने हथियार तुम्हारे ख़िलाफ़ इस्तेमाल नहीं करेंगे और अपनी बात को साबित करने के लिए ईरान के साथ संबंध विच्छेद करता है।”           

इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने सभी कठिनाइयों व रुकावटों के बावजूद ईरान में एक ऐसी सरकार की बुनियाद रखी जो पथभ्रष्ट व रूढ़ीवादी वहाबी विचारधारा के मुक़ाबले में प्रगतिशील इस्लाम की प्रतीक और प्रजातांत्रिक है। आज 38 साल गुज़रने के बाद भी इस्लामी गणतंत्र ईरान दुनिया में एक शक्तिशाली शासन के तौर पर पहचाना जाता है कि जिसका आधार इस्लामी सिद्धांत और जनता की राय है।

 

ईरान में 19 मई को ताज़ा चुनाव आयोजित हुए जो पूरी आज़ादी व प्रतिस्पर्धा के साथ संपन्न हुए कि जिसके दौरान जनता ने अपने मतों से राष्ट्रपति और नगर परिषद के सदस्यों को चुना। यह ऐसा चुनाव है जिसकी सऊदी अरब की जनता सहित फ़ार्स खाड़ी के शाही शासन वाले ज़्यादातर देशों की जनता कामना करती है। इमाम ख़ुमैनी ने इस्लामी नियमों और जनता पर भरोसे के सहारे शुरु में भी शासन व्यवस्था के चयन का अख़्तियार जनता को सौंप दिया और जनता के राय से शासन व्यवस्था का गठन हुआ। इमाम ख़ुमैनी के योग्य उत्तराधिकारी वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई जनता के संबंध में इमाम ख़ुमैनी के दृष्टिकोण के बारे में कहते हैं, “इमाम जब जनता के बारे में बात करते थे तो यह बातें भावनात्मक नहीं होती थीं। जैसे बहुत से देशों के नेताओं की तरह सिर्फ़ बातों की हद तक जनता पर निर्भरता की बातें नहीं करते थे बल्कि वे व्यवहारिक रूप से जनता के स्थान को अहमियत देते थे। ऐसे लोग बहुत कम नज़र आते हैं जो इमाम के जितना आम लोगों से मन की गहराई से प्रेम करे और उन पर भरोसा करे क्योंकि उन्हें जनता की आस्था व वीरता पर भरोसा था।”

इमाम ख़ुमैनी के स्वर्गवास के बाद उनकी भव्य शवयात्रा और उनकी शोकसभाएं ख़ुद इस बात का पता देती हैं कि आम लोग इमाम ख़ुमैनी से कितनी गहरी श्रद्धा रखते थे। क्योंकि इमाम ख़ुमैनी ऐसे नेता थे जिन्होंने पूरा जीवन आम लोगों के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया था और वे मन की गहरायी से आम लोगों से प्रेम करते थे। जनता और इमाम ख़ुमैनी के बीच इस गहरे लगाव की वजह से 38 साल गुज़रने के बाद भी इमाम ख़ुमैनी के क्रान्तिकारी विचार न सिर्फ़ ईरान बल्कि दुनिया के अन्य देशों में लोकप्रिय हो रहे हैं।

 

 

हज़रत अली अलैहिस्सलाम, पैगम्बरे इस्लाम के चचेरे भाई और दामाद हैं, उनका जन्म हिजरत से 23 साल पहले ( 601 ईसवी में) मक्का में काबे के भीतर हुआ था। चौथी सदी हिजरी में सैयद रज़ी नामक प्रसिद्ध धर्मगुरु ने उनके कथनों का संकलन प्रकाशित किया जिसे" नहजुलबलागा" कहा जाता है।

यह हज़रत अली अलैहिस्सलाम के कथनों और भाषणों का संकलन है। भारत के राष्ट्रीय पक्षी मोर के बारे में हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने एक भाषण दिया था जिसे सैयद रज़ी ने " नहजुलबलागा" में लिखा है। नहजुल बलागा में दर्ज भाषण नंबर 165 में हज़रत अली ने विस्तार से मोर और उसकी रचना पर बात की है,  एक हिस्सा इस तरह हैः

... रचना की दृष्टि से सबसे अधिक आश्चर्यजनक, ''मोर '' होता है जिसे उसने अत्यधिक मज़बूत संतुलन से बनाया और उसके रंगों को अत्यधिक व्यवस्था से सजाया है, ऐसे पंख दिए जिसके पर एक दूसरे पर चढ़े हुए हैं और लम्बी दुम बनाई कि जब वह अपनी मादा के पास जाता है तो उसे फैला कर उससे छतरी की भांति अपने सिर पर छाया कर लेता है जैसे वह किसी नौका का बादबान हो जिसे माँझी ने फैला दिया हो। अपने रंगों पर इतराता है,  मस्ती में अपनी दुम इधर-उधर हिलाता है, मुर्ग़ों की भांति समागम करता है और कामेच्छा में मस्त होकर नर की भांति मादा को गर्भवती करता है। यदि विश्वास नहीं है तो तुम स्वयं जाकर देख लो, मैं उस व्यक्ति की भांति नहीं हूँ जो कमज़ोर हवालों का सहारा लेता हो। यदि कोई यह सोचता है कि मोर अपनी आँखों से निकलने वाले आँसू की बूंद से अपनी मादा को गर्भवती करता है इस प्रकार से कि आँसू की बूंद उसकी पलकों पर ठहरती है और उसकी मादा उसे पी जाती है जिसके बाद वह यही आँसू पीने के कारण अंडे देती है न कि नर के समागम के कारण तो उसकी यह सोच उस व्यक्ति की सोच से अधिक आश्चर्यजनक नहीं है जो यह समझता है कि कौआ, अपनी चोंच से मादा को चारा खिला कर गर्भवती करता है। '' 

( नहजुलबलागा भाषण 165)

 

 

 

इस्लामी गणतंत्र ईरान के संस्थापक इमाम खुमैनी की 28वीं बरसी के कार्यक्रम स्थानीय समयानुसार शाम ६ बजे आरंभ हुई जिसमें भाषण देते हुए इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने इमाम खुमैनी के व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला और विश्व व ईरान के ज्वलंत मुद्दों पर अपने विचार रखे।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि इमाम खुमैनी के बारे में जानकार लोगों ने अब तक बहुत कुछ कहा है किंतु यह बात याद रखनी चाहिए कि इमाम खुमैनी और क्रांति एक दूसरे से जुड़े हैं और इस संदर्भ में अब भी बहुत कुछ कहा जाना बाकी है।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि इमाम खुमैनी और क्रांति एक दूसरे से अलग नहीं हो सकते और इस्लामी क्रांति, इमाम खुमैनी का सब से बड़ा कारनामा है। वरिष्ठ नेता ने कहा कि सच्चाई को बार बार दोहराना चाहिए वर्ना उसमें फेर-बदल की संभावना पैदा हो जाती है।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि ईरान की इस्लामी क्रांति ईश्वर की कृपा से इमाम खुमैनी द्वारा सफल हुई किंतु वह वास्तव में एक राजनीतिक बदलाव नहीं था बल्कि पूरे समाज को उसकी पहचान के साथ बदलना था।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि इमाम खुमैनी हमारे बीच से उठ गये हैं किंतु उसकी आत्मा हमारे बीच है और उनका संदेश हमारे समाज में जीवित है।

वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने कहा कि बहरैन में सऊदी अरब की उपस्थिति आतार्किक है किसी दूसरे देश को बहरैन में सैनिक भेजने की क्या ज़रूरत है और वह क्यों किसी  राष्ट्र पर अपनी इच्छा थोपना चाहता है। 

वरिष्ठ नेता ने कहा कि सऊदी अरब अगर कई अरब डॅालर की रिश्वत से भी अमरीका को अपने साथ करना चाहेगा तब भी उसे सफलता नहीं मिलेगी और वह यमन की जनता के सामन जीत नहीं सकता। 

वरिष्ठ नेता ने क्षेत्रीय देशों में प्राॅक्सी वार की दुश्मनों की साज़िश का उल्लेख करते हुए कहा कि आज आतंकवादी गुट दाइश, अपनी जन्मस्थली अर्थात सीरिया और इराक़ से खदेड़ा जा चुका है और अब अफगानिस्तान, पाकिस्तान बल्कि फिलिपीन और युरोप जैसे क्षेत्रों में जा रहा है और यह वह आग है जिसे खुद उन लोगों ने भड़काया था और अब खुद उसका शिकार हो रहे हैं। 

वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई  ने इसी प्रकार ईरान में हालिया दिनों में राष्ट्रपति चुनाव के भव्य आयोजन का उल्लेख करते हुए बल दिया कि ज़रा देखें दुश्मन किस सीमा तक दुष्ट है कि अमरीका के राष्ट्रपति एक क़बाइली व अत्याधिक गिरी हुई सरकार के साथ तलवार का नाच नाचते हैं और ईरानी जनता के चार करोड़ के वोटों पर टीका टिप्पणी करते हैं।  

 

 

अंतरराष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी ख़बर «जकार्ता पोस्ट»के अनुसार, आचे में रमज़ान त्योहार अज़ान प्रतियोगिता आयोजन पर भी शामिल है।

इसी तरह कुरान पाठ और हिफ़्ज़े कुरान टूर्नामेंट भी इस क्षेत्र में आयोजित किया जाएगा।

आचे नदी के तट में रमजान के गांव की स्थापना की जा रही है और लोग इस जगह इफ्तार और सहार के लिए खाद्य पदार्थों की किस्मों को हासिल कर सकते हैं।

समारोह"ज़िक्रे अकबर", अन्य Ramazani प्रोग्राम्स से आचे में है कि भगवान की प्रशंसा में सामूहिक गीत पढ़ना है जो मस्जिदे जामे बैतुर-रहमान में आयोजित किया जाएगा।

रमजान के दौरान, आचे में शाम के समय संग्रहालयों और पर्यटन रिसॉर्ट्स पर लोग जा सकते हैं।

इफ्तार भोज, Taraweeh प्रार्थना (सुन्नियों के बीच प्रचलित प्रार्थना), कुरान पढ़ना,ज़िक्र पढ़ना,ख़त्मे क़ुरान और शबे क़द्र के समारोह अन्य कार्यक्रमों में हैं जो रमजान के दौरान आचे में आयोजित किऐ जाएंगे।

 

अंतरराष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी «Rappler» समाचार साइट के अनुसार, 5 मिलियन से अधिक फिलिपिनी मुस्लिमों ने, रमज़ान के दौरान उपवास को कल 27 मई से शुरू कर दिया।

मनीला में हाल ही में बम विस्फोट और उग्रवादी ताकतों और सरकारी सैनिकों के बीच शहर Maravy में संघर्ष भी Myndanatv के मुसलमानों को रमजान के दौरान उपवास से नहीं रोक सका।

उपवास के बाद उत्सव, "Bakas 'या तंदूरी मछली रमजान में सबसे ज्यादा बिकने वाली है। फिलीपीन मुसलमान पवित्र महीने के दौरान हर सहर और इफ्तार में भोज की स्थापना ककरते हैं।

रमजान का आनंद: साधारण दिनों में फिलीपींस के लोग केवल अंडे या सार्डिन का उपयोग करते हैं, लेकिन रमज़ान के दौरान, मांस, मुर्ग़ और Bakas उनके टेबल पर पाया जाता है, यह उन लड़कियों का कहना है जो प्रार्थना के लिए इंतजार करती हैं।

इबादत: कुरान पढ़ना ऐसा काम है कि फिलीपींस में रमज़ान में मुसलमानों को उसके करने पर प्रोत्साहित किया जाता है क्या है।

इफ्तार, Taraweeh प्रार्थना मुसलमानों के बाद रमजान में अधिक प्रार्थना भी दैनिक प्रार्थना के अलावा फिलीपींस कहते हैं।

नमाज़ इज़ाफ़ी: रमजान महीने में इफ़्ततारर के बाद, फिलीपींनी मुसलमान दैनिक प्रार्थना के अलावा Taraweeh प्रार्थना भी करते हैं।

नियमित जीवन:यहां के मुसलमान दिन के दौरान खाते या पीते नहीं साल के अन्य दिनों की तरह काम करते हैं और अपने कार्य करने के लिए जाते हैं।

कम बिक्री के दिनः पिछले कुछ महीनों या रमजान से पहले दिनों की तरह कारोबार नहीं है दुकानदार अपनी बिक्री के 60 प्रतिशत कटौती की शिकायत करते हैं, उसकी दलील केवल बम विस्फोट नहीं है, बल्कि तस्करी से निपटने के लिए राष्ट्रपति की नीति ऐक बड़ा कारण है वह स्वीकार करते हैं कि बहुत से उनके धनी ग्राहक इस अवैध व्यापार में भागीदारी की ख़ातिर छिप गऐ हैं।

प्रक्रिया में: मनीला के निवासी मिंडानाओ की घटनाओं की समीक्षा में हैं और वहां की ख़बरों में लगे हैं और वे लोग अक्सर अपपने रिश्तेदारों के बारे में चिंतित हैं।

 

रविवार, 28 मई 2017 09:58

रमज़ान की पहली तारीख़

 

वर्ष 1438 हिजरी के रमज़ान मुबारक की पहली तारीख़ है, हम ईश्वर का बहुत बहुत शुक्र अदा करते हैं कि उसने हमें इस महत्वपूर्ण और मुबारक महीने में इबादतों का एक और अवसर प्रदान किया।

रमज़ान की अपनी विशेषताएं हैं, इसमें हमारी आत्मा, विवेक और चरित्र अध्यात्म का एक सुन्दर अनुभव करते हैं। रमज़ान का मुबारक महीना, ईश्वर की बंदगी के अभ्यास का बेहतरीन महीना है। रमज़ान के रूप में ईश्वर ने हमें अवसर प्रदान किया है कि हम उसके कार्यक्रम के मुताबिक़ कुछ प्राकृतिक एवं हलाल चीज़ों से भी एक निर्धारित समय के लिए परहेज़ करें और अपने ईश्वर के समक्ष नतमस्तक हो जायें।

हम आपको और विश्व के समस्त मुसलमानों को इस मुबारक महीने की बधाई प्रस्तुत करते हैं। इस महीने में हम ईश्वर के क्षमा करने की अनुकंपाओं का लाभ उठाते हैं और अपने वजूद को बुराईयों से पाक करते हैं, ताकि हमारी आत्मा ईश्वर के मार्गदर्शन के प्रकाश से प्रकाशमय हो जाए।

ईश्वर की कृपा से हम भी इन तीस दिनों में ईश्वर का महीना नाम से एक कार्यक्रम लेकर आपकी सेवा में उपस्थित रहेंगे। इस आशा के साथ कि आपके आध्यात्मिक अनुभव में हम भी कुछ भुमिका अदा कर सकें। हमने इस कार्यक्रम की पहली कड़ी को पैग़म्बरे इस्लाम (स) के रमज़ान के स्वागत से विशेष कथन से सजाया है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) सिफ़ारिश करते हैं, हे लोगो, ईश्वरीय महीना, बरकत, रहमत और क्षमा के साथ आन पहुंचा है। ऐसा महीना जो ईश्वर के निकट सर्वश्रेष्ठ महीना है और उसके दिन, दिनों में सर्वश्रेष्ठ हैं, उसकी रातें, रातों में सर्वश्रेष्ठ हैं और घंटे, घंटों में सर्वश्रेष्ठ हैं।

यह ऐसा महीना है, जिसमें तुम्हें ईश्वर का अतिथि बनाने के लिए आमंत्रित किया गया है और तुम्हें ईश्वरीय बंदों में गिना गया है। इस महीने में तुम्हरी सांसें, ईश्वर का नाम जपती हैं, तुम्हारी नींद इबादत होती है, तुम्हारे ज्ञान और दुआओं को स्वीकार कर लिया गया है। इस महीने में अपनी भूख और प्यास से प्रलय के दिन की भूख और प्यास को याद करो। ग़रीबों और फ़क़ीरों को दान दो, अपने बड़ों का सम्मान करो और छोटों पर कृपा करो और अपने रिश्तेदारों के साथ भलाई करो। अपनी ज़बान पर निंयत्रण रखो, हराम चीज़ों से अपनी निगाहों को बचाओं, हराम बातें मत सुनों, अनाथों से प्यार करो, ताकि तुम्हारे अनाथों पर भी लोग मोहब्बत करें। ईश्वर से अपने  पापों के लिए क्षमा मांगो, नमाज़ के समय दुआ के लिए अपने हाथों को ऊपर उठाओ, इसलिए कि यह समय सर्वश्रेष्ठ समय होता है, जब ईश्वर अपने बंदों पर रहमत की नज़र डालता है। इसलिए सच्ची नियत से और पाक दिल से अपने पालनहार से चाहो कि वह तुम्हें रोज़ा रखने और क़ुरान की तिलावत का अवसर प्रदान करे। इसलिए कि वह व्यक्ति अभाग्य है जो इस महीने में ईश्वरीय अनुकंपाओं से वंचित रहे। हे लोगो, जो कोई भी इस महीने में अपने आचरण में सुधार करेगा, प्रलय के दिन उसे इसका लाभ मिलेगा, जिन दिन पुले सिरात पर क़दम लड़खड़ायेंगे। और जो कोई भी इस महीने में बुराईयों पर निंयत्रण करेगा, ईश्वर प्रलय के दिन उससे क्रोधित नहीं होगा।

इस महीने में अच्छे संस्कारों में से क़ुरान की तिलावत करना और उसकी आयतों में विचार करना है। हमारे इस कार्यक्रम का एक भाग क़ुरान की आयतों की संक्षेप में व्याख्या करना है। सूरए बक़रा की 183वीं आयत... हे ईमान लाने वालो, तुम पर रोज़ा रखना वाजिब है, जिस तरह से तुमसे पहले वाले लोगों पर वाजिब था, ताकि अच्छा इंसान बन सको।

रमज़ान का महीना, क़ुरान के नाज़िल होने का महीना है। यह ईश्वरीय किताब उन लोगों को आदेश देती है कि जो ईमान लाए हैं कि इस महीने में रोज़ा रखें। जो आयतें रमज़ान के महीने में रोज़ा रखने पर संकेत करती हैं, क़ुरान के सूरए बक़रा में मौजूद हैं, इनमें पहली यही आयत है, जिसकी ओर हमने अभी इशारा किया है।

रोज़ा मुसलमानों की वाजिब इबादतों में से एक महत्वपूर्ण इबादत है, जो आत्मा के शुद्धिकरण में काफ़ी प्रभावी है। लेकिन दिलचस्प बिंदु यह है कि इस ईश्वरीय आदेश के पालन के लिए भूमि प्रशस्त करने के लिए आयत की शुरूआत इस प्रकार से होती है कि हे ईमान लाने वालो, ताकि इस बिंदु की ओर ध्यान आकर्षित करे कि तुम लोग तो ईमान ला चुके हो, इसलिए ईश्वर जो भी आदेश देता है, उसका पालन करो, यद्यपि उसके पालन में कुछ कठिनाईयां हों और भौतिक स्वाद से वंचित रहो और भूख व प्यास सहन करनी पड़े।

इस संदर्भ में इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) फ़रमाते हैं, हे ईमान लाने वालो के संबोधन में इतना अधिक स्वाद है कि इससे इबादत की कठिनाई और समस्या दूर हो गई है। वास्तव में पहली नज़र में रोज़े का आदेश कुछ कठिन लगता है, लेकिन इस संबोधन ने इस बेचैनी को समाप्त कर दिया है। इस वास्तविकता को बयान करने के बाद कि रोज़ा सिर्फ़ मुसलमानों से विशेष नहीं है, बल्कि इससे पहले दूसरे समुदायों में भी प्रचलित रहा है, इस बात का उल्लेख किया गया है कि यह समस्त धर्म के अनुयाईयों का कर्त्वय रहा है, इसलिए यह बात मुसलमानों को प्रेरणा देती है, इसीलिए क़ुरान कहता है कि यह इबादत केवल तुमसे ही विशेष नहीं है, बल्कि कोई भी समुदाय इससे अछूता नहीं रहा है। उसके तुरंत बाद रोज़े का कारण बयान किया गया है। वह यह है कि रोज़े से इंसान में तक़वा अर्थात सदाचार आता है। रोज़ेदार ईश्वर के लिए भौतिक स्वादों से बचता है और स्वयं पर निंयत्रण करने का अभ्यास करता है। वह एक महीने तक यह अभ्यास करता है, इसलिए उसमें पापों से बचने की ताक़त प्रबल होती है और धीरे धीरे उसका इरादा मज़बूत हो जाता है और फिर वह आसानी से पापों से बच सकता है, जैसे कि दूसरों का हराम माल हड़पना और दूसरों के अधिकारों का हनन करना। इसका अर्थ वही है, जो क़ुरान ने बयान किया है कि शायद तुम सदाचारी हो जाओ।

ख़्वाजा अब्दुल्लाह अंसारी इस आयत के संदर्भ में दिलचस्प बात कहते हैं कि अगर आपने शरीर से रोज़ा रखा है, तो वास्तविक सदाचारी दिल से रोज़ा रखते हैं, आप सुबह से शाम तक रोज़ा रखते हैं, लेकिन यह लोग उम्र की शुरूआत से अंत तक रोज़ा रखते हैं, आपका रोज़ा एक दिन का होता है, लेकिन उनका रोज़ा उम्र भर का होता है।

इस कार्यक्रम में हम रमज़ान में आपके लिए सही पोषण और आपके स्वास्थ्य की चर्चा भी करेंगे। महिलाएं पत्नी या मां होने की हैसियत से परिवार के पोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। आज हम रमज़ान के महीने में पोषण के बारे में एक ईरानी महिला के विचार सुनते हैं। रमज़ान के महीने का पहला दिन है और मैं इफ़तार के लिए दस्तरख़्वान लगा रही हूं। यह ऐसे क्षण होते हैं कि जो रमज़ान के अध्यात्म को दोगुना कर देते हैं और यह दुआ व इबादत के क़बूल होने का समय है। आज मैंने इस दस्तरख़्वान को काफ़ी मोहब्बत से लगाया है। मेरे पति ने भी ठीक समय पर घर पहुंचने का काफ़ी प्रयास किया है, इसलिए मुझे इसकी ख़ुशी है। हमारी दादी दस्तरख़्वान के निकट बैठी हुई इबादत में व्यस्त हैं और कमज़ोरी के कारण रोज़ा न रखने की वजह से काफ़ी चिंतित हैं।

मेरी बेटी ज़हरा ने पहला रोज़ा रखा है। वह अपनी दादी के पास बैठकर दस्तरख़्वान की ओर देख रही है और अज़ान की आवाज़ का इंतेज़ार कर रही है। दुआ की आवाज़ ने हमारे घर के आध्यात्मिक माहौल में अधिक वृद्धि कर दी है। आज मैंने चाय, रोटी, पनीर और सब्ज़ी के अलावा सूप बनाया है। रमज़ान में हमारे भोजन का कार्यक्रम कुछ बदल जाता है। डाक्टरों की सिफ़ारिश के मुताबिक़, रोज़ेदारों को इफ़्तार में गर्म पेयजलों का अधिक इस्तेमाल करना चाहिए, जैसे कि दूध और थोड़ी सी रोटी, अनाज, पनीर, अख़रोट और सूप। अधिकांश लोग इस महीने में कुछ बुरी आदतों से दूर हो जाते हैं जैसे कि धूम्रपान।

आज डाक्टर मजीद हाजी फ़र्जी ने रमज़ान में सब्ज़ी और फलों के इस्तेमाल पर काफ़ी बल दिया है और कहा है कि गर्मी के मौसम में रमज़ान आने के कारण, रोज़दारों को अधिक धैर्य से काम लेना होता है, उन्हें चाहिए कि इफ़्तार और सहरी में उचित भोजन करें, ताकि बिना किसी समस्या के इस मुबारक महीने से लाभ उठा सकें और कमज़ोरी, लो ब्लड प्रेशर, प्यास और भूख जैसी समस्याओं से ग्रस्त न हों। रमज़ान के महीने में अगर हम इन नियमों का पालन नहीं करेंगे और अधिक कैलोरी, शुगर और फ़ैट प्राप्त करेंगे तो मोटापे में वृद्धि हो सकती है। अब जबकि रमज़ान में अधिक भूख और प्यास से हमारा सामना है, सब्ज़ी के इस्तेमाल से हमारे शरीर में सही परिवर्तन उत्पन्न होता है। रमज़ान में फल और पकी हुई सब्ज़ियों के इस्तेमाल से हमारे शरीर में काफ़ी मात्रा में पानी स्टोर हो जाता है, सब्ज़ियों और फलों के इस्तेमाल से गैस भी कम बनती है।

मैं परिजनों के स्वास्थ्य को देखते हुए इफ़्तार और रात के खाने में फ़ासला रखती हूं, लेकिन गर्मियों में रातों के छोटा होने के कारण इफ़्तार और खाने के बीच फ़ासला कम होता है, इसीलिए मेरा प्रयास होता है कि खाना बहुत सादा हो और उसमें सब्ज़ियां, प्रोटीन और अनाज शामिल हो।                   

 

 

रविवार, 28 मई 2017 09:56

फ़ारसी सीखें, 19वां पाठ

 

दो मित्र मुहम्मद और रामीन बाज़ार की मस्जिद में पवित्र क़ुरआन को सजाने, उद्घोधन और उसको प्रदीप्त करने के बारे में बात कर रहे हैं। मुहम्मद मस्जिद में रखे सुन्दर मिंबर की ओर जाता है। लकड़ी की बनी सीढ़ीदार व ऊंची कुर्सी को मिंबर कहते हैं। मिंबर में लगभग चार से पांच सीढ़ीयां होती है। मिंबर पर बैठकर धर्म गुरू लोगों को धार्मिक और शिक्षा संबंधी विषयों के बारे में बताते हैं। सामान्यतः मस्जिद में रखा हुआ मिंबर जड़ाव और प्रस्वेदक जैसी विभिन्न कलाओं से सुसज्जित रहता है। आरंभ में इस वार्ता में प्रयोग होने वाले शब्दों पर ध्यान दीजिए!

मिंबर      منبر

मस्जिद        مسجد

अनेक मस्जिद (बहु वचन)       مساجد

मनोहर या सूक्ष्म          ظريف

अति मनोहर         ظريف تر

सुंदर        زيبا

अति सुंदर       زيبا تر   

देश      كشور   

देशों       كشورها

दूसरे या अन्य     ديگر

सुन्दर       تزيين

रोचक        جالب

कला        هنر

वे कहते हैं         آنها می گويند

जड़ाव या जड़ना       منبت   

जड़ाव या जड़ने का कार्य         منبت كاری

लकड़ी           چوب   

तक्षकला या नक़्क़ाशी      كنده كاری

नक़्क़ाशी या तक्षकला करते हैं       كنده كاری مي كنيم

प्राचीन      قدیمی

फ़सा एक नगर का नाम      فسا

फ़ार्स    فارس

पांच हज़ार      پنج هزار

पांच हज़ार वर्षीय      پنج هزار ساله

मौजूद है        جود دارد

द्वार       درب

प्रस्वेदक कहते हैं     معرق ما مي گوئيم

उपकरण या माध्यम          وسيله

उपकरण या माध्यम (बहुवचन)   - تجهیزات وسایل

लकड़ी का     چوبی   

संबंधित      مربوط به   

अंतर या भिन्नता       تفاوت

अंतर या भिन्नताएं           تفاوتها   

टुकड़ा       قطعه   

तक्षकला या नक़्क़ाशी        کنده کاری

चिपकाना या जोड़ना       آنها چسبیده اند

ऐसा प्रतीत होता है        انگار

बड़ा        بزرگ   

छोटा        كوچك   

चिपकाना         چسبانده اند  

वे चिपकाते हैं या जोड़ते हैं          آنها مي چسبانند   

वे काटते हैं          آنها مي برند

टुकड़ा         تکه

रंगीन           رنگی

मुख्य            اصلی

विदित             متنوع   

रंग           رنگ   

सुन्दर         زيبا

अब हम मुहम्मद और रामीन की बातों पर एक नज़र डालते हैं। वह मिंबर और जड़ाव व प्रस्वेदक कलाओं के बारे में बातें कर रहे हैं।

मुहम्मदः रामीन, ईरान की मस्जिदों के मिंबर अन्य देशों के मिंबरों से अतिसुंदर और मनोहर होते हैं, इस मिंबर पर बहुत ही आकर्षक सजावट है, इस  कला को क्या कहते हैं।

محمد - رامین ! منبر مساجد ایران ظریف تر و زیباتر از منبر در کشورهای دیگر است . این منبر تزیین جالبی دارد ! به این هنر چه مي گويند ؟

रामीनः इस कला को जड़ाव की कला कहते हैं, अर्थात लकड़ी के ऊपर नक़्क़ाशी या तक्षकला की जाती है।

رامین - به اين هنر منبت کاری مي گوييم . یعنی روی چوب کنده کاری می کنیم .

मुहम्मदः क्या ईरान की प्राचीन कलाओं में से एक प्रस्वेदक भी है ?

محمد - منبت هم یک هنر قدیمی ایران است ؟

रामीनः हां, फ़ार्स प्रांत के फ़सा नगर में पांच हज़ार वर्षों से जड़ाव का कार्य हो रहा है।

رامین - بله . در شهر فسا در فارس ، منبت كاري پنج هزار ساله وجود دارد .

मुहम्मदः इस मस्जिद के द्वार पर भी जड़ाव का काम किया गया है ?

محمد - درب این مسجد هم منبت كاري شده است ؟

रामीनः नहीं, इस कला को प्रस्वेदक कहते हैं, प्रस्वेदक कला भी लकड़ी के उपकरणों से संबंधित कला है।

رامین - نه . به این هنر معرق می گوییم . معرق هم هنري مربوط به وسایل چوبی است .

मुहम्मदः प्रस्वेदक और जड़ाव की कलाओं में क्या अंतर है

محمد - منبت و معرق چه تفاوتی دارند ؟

रामीनः जड़ाव, एक बड़ी सी लकड़ी के टुकड़े पर नक़्क़ाशी है।

رامین - منبت ، کنده کاری روی یک قطعه چوب بزرگ است .

मुहम्मदः ऐसा लगता है कि प्रस्वेदक में इन छोटी लकड़ियों को एक दूसरे से जोड़ा गया है।

محمد - ولی انگار در معرق این چوبهای کوچک را به هم چسبانده اند .

रामीनः हां, लकड़ी के एक छोटे से रंगीन टुकड़े को काटते हैं और मुख्य लकड़ी पर चिपकाते हैं।

رامین - بله . تکه چوبهای رنگی کوچک را می برند و روی چوب اصلی می چسبانند .

मुहम्मदः इन लकड़ियों के रंग विदित और सुंदर हैं।

محمد - رنگ این چوبها هم متنوع و زيبا است .

मुजरीः एक बार फिर बिना अनुवाद के मुहम्मद और रामीन की वार्ता सुनते हैं।

محمد - رامین ! منبر مساجد ایران ظریف تر و زیباتر از منبر در کشورهای دیگر است . این منبر تزیین جالبی دارد ! به این هنر چه مي گويند ؟ رامین - به اين هنر منبت کاری مي گوييم . یعنی روی چوب کنده کاری می کنیم . محمد - منبت هم یک هنر قدیمی ایران است ؟ رامین - بله . در شهر فسا در فارس ، منبت كاري پنج هزار ساله وجود دارد . محمد - درب این مسجد هم منبت كاري شده است ؟ رامین - نه . به این هنر معرق می گوییم . معرق هم هنري مربوط به وسایل چوبی است . محمد - منبت و معرق چه تفاوتی دارند ؟ رامین - منبت ، کنده کاری روی یک قطعه چوب بزرگ است . محمد - ولی انگار در معرق این چوبهای کوچک را به هم چسبانده اند . رامین - بله . تکه چوبهای رنگی کوچک را می برند و روی چوب اصلی می چسبانند . محمد - رنگ این چوبها هم متنوع و زيبا است .

जड़ाव का काम, लकड़ी के बड़े से टुकड़े पर नक़्क़ाशी है। लकड़ी को छीलना और लकड़ी पर विभिन्न प्रकार की शक्लें बनाना और उभरे व नीचे की ओर गये सुन्दर बेल और बूटों से उसका श्रंगार करना है। जड़ाव के कार्य में एक लकड़ी का चयन करते हैं और उसके ऊपर नक़्क़ाशी की जाती है। यह नक़्क़ाशी विभिन्न प्रकार की शक्लों में हो सकती है किन्तु प्रस्वेदक इससे भिन्न है। प्रस्वेदक में एक आरंभिक डिज़ाइन या नक़्क़ाशी होती है और इस डिज़ाइन को बहुत छोटे-2 भागों में विभाजित किया जाता है और प्रत्येक भाग को पतली व नाज़ुक लकड़ी से छीला जाता है। छीले गये टुकड़े को मुख्य लकड़ी पर चिपकाते हैं ताकि डिज़ाइन और नक़्क़ाशी उभरी हुई दिखने लगे। प्रस्वेदक कला ईरान की एक सूक्ष्म कला है जो मिंबरों, मस्जिद व हवेलियों के दरवाज़ों, लकड़ी के बक्सों व बैनरों जैसे महत्त्वपूर्ण स्थानों पर की जाती है।

प्रत्येक दशा में ईरानी कलाओं में प्रत्येक चीज़ों व स्थलों को सुसज्जित किया जाता है। विशेषकर मस्जिदें और तीर्थस्थल जैसे आध्यात्मिक स्थलों पर ईरानी कलाएं चरम सीमा पर होती हैं। मित्रो आप ईरान की यात्रा करें और ईरानी कला के प्रदर्शन को निकट से देखें और प्रस्वेदक कला से बने सुदरतम और मूल्यवान बैनरों को अपने प्रिय जनों को उपहार दें।