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हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लेमीन आलमी-ज़ादेह नूरी ने कहा: मदरसों के प्रशासकों को मदरसों के संचालन तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि उनकी पूरी चिंता, इच्छा और सपना छात्रों को प्रशिक्षित करना होना चाहिए। हालाँकि, चूँकि मदरसे के सभी कार्य प्रशासकों की ज़िम्मेदारी हैं, इसलिए कभी-कभी उनके मन में प्रशिक्षण का स्थान कम हो जाता है, इसलिए योजना इस तरह बनाई जानी चाहिए कि छात्रों की शिक्षा हमेशा मदरसों के प्रशासकों की सर्वोच्च प्राथमिकता रहे।

ईरान में मदरसों के प्रबंधन केंद्र के प्रमुख, हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लिमीन मोहम्मद आलमी-ज़ादेह नूरी ने तेहरान प्रांत के मदरसों, विशेष केंद्रों, सहायकों और इस्लामी मदरसों के समन्वयकों के साथ रे शहर स्थित हज़रत अब्दुल अज़ीम हसनी इस्लामी मदरसे में आयोजित एक बैठक में कहा: धार्मिक विद्वानों के प्रशिक्षण केंद्र का मुख्य कार्य धार्मिक विद्वानों, मुजाहिदों और नेताओं का प्रशिक्षण है।

उन्होंने कहा: धर्मोपदेश, शिक्षण और अनुसंधान के सभी क्षेत्र तहजीब के दायरे में आते हैं। यदि प्रशिक्षण और तहजीब का कार्य ठीक से किया जाए, तो छात्र स्वतः ही शिक्षण और अनुसंधान के क्षेत्र में सक्रिय हो जाएँगे।

हुज्जतुल इस्लाम आलमी ज़ादेह नूरी ने आगे कहा: कभी-कभी प्रशिक्षण वास्तव में शिक्षण से ज़्यादा महत्वपूर्ण हो जाता है, जबकि वास्तव में, इस्लामी स्कूलों में प्रशिक्षण को सभी कार्यक्रमों में सबसे ऊपर रखा जाना चाहिए। हम तहजीब और प्रशिक्षण के विषय को उसके मूल स्थान पर वापस लाने का प्रयास कर रहे हैं। इस्लामी स्कूलों के प्रशासकों और अभिभावकों को तहजीब परिषद की स्थापना को और अधिक गंभीरता से लेना चाहिए।

उन्होंने कहा: हमें एक व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम की आवश्यकता है ताकि तहजीब इस्लामी स्कूलों में और अधिक प्रमुखता से शामिल हो सके। हमें प्रशिक्षण के विषय के लिए एक सहायक ढाँचे की आवश्यकता है। हम ईश्वर की योजना में उन व्यक्तियों के प्रशिक्षण को आगे बढ़ा रहे हैं जो तहजीब और प्रशिक्षण के क्षेत्र में प्रभावी और सक्रिय हैं। इस्लामी स्कूलों का पूरा ध्यान सबसे पहले प्रशिक्षण और तहजीब के मामलों पर होना चाहिए।

 

अंजुमन-ए-साहिब-ए-ज़मान कारगिल लद्दाख प्रशासन ने एक बयान जारी कर वली अमर मुस्लिमीन के सर्वोच्च नेता हज़रत अयातुल्ला सैय्यद अली ख़ामेनेई के सम्मान के विरुद्ध इंडिया टीवी और हिंदुस्तान टाइम्स द्वारा प्रकाशित ईशनिंदा वाली रिपोर्ट की कड़ी निंदा की है।

अंजुमन-ए-साहिब-ए-ज़मान कारगिल लद्दाख प्रशासन ने एक बयान जारी कर वली अमर मुस्लिमीन के सर्वोच्च नेता हज़रत आयतुल्लाह सय्यद अली ख़ामेनेई के सम्मान के विरुद्ध इंडिया टीवी और हिंदुस्तान टाइम्स द्वारा प्रकाशित ईशनिंदा वाली रिपोर्ट की कड़ी निंदा की है।

एसोसिएशन ने एक बयान में कहा कि इन मीडिया संगठनों ने गाजा में जारी अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाने वाले और दुनिया भर के उत्पीड़ितों के लिए आशा की किरण माने जाने वाले एकमात्र नेता के चरित्र हनन का घृणित प्रयास किया है, जो न केवल खेदजनक है, बल्कि असहनीय भी है।

संगठन ने मांग की है कि भारत सरकार इन दोनों संगठनों के जिम्मेदार व्यक्तियों के खिलाफ तत्काल कानूनी कार्रवाई करे, क्योंकि यह कृत्य भी प्यारी मातृभूमि की अखंडता को ठेस पहुँचाने के समान है।

बयान में आगे कहा गया है कि हम इन मीडिया संगठनों के इस शर्मनाक कृत्य को सर्वोच्च नेता के साहसी, ईमानदार और जागरूक नेतृत्व से उत्पन्न घबराहट के रूप में देखते हैं। आज दुनिया भर के कर्तव्यनिष्ठ लोग सर्वोच्च नेता के दूरदर्शी और निडर नेतृत्व के कायल हो रहे हैं और यह कारवां रुकेगा नहीं, बल्कि आगे बढ़ता रहेगा, जब तक कि पूरे विश्व में सत्य की विजय और असत्य की पराजय सुनिश्चित न हो जाए।

अंजुमन-ए-साहिब-ए-ज़मां संगठन इन समाचार चैनलों के इस घृणित कृत्य को न केवल वैश्विक इस्लामी नेतृत्व का अपमान मानता है, बल्कि राष्ट्रीय अखंडता के विरुद्ध एक षड्यंत्र भी मानता है, तथा इसके विरुद्ध तत्काल एवं कठोर कार्रवाई की मांग करता है।

 

 

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) द्वारा मिस्र को दिए जा रहे 8 अरब डॉलर के क़र्ज़ का इस्तेमाल, इज़राइल द्वारा मिस्र की सेना के अंदर तक घुसपैठ करने के लिए किया जा सकता है।

मिस्र ने पिछले अप्रैल में घोषणा की थी कि वह देश की सशस्त्र सेनाओं से जुड़ी 5 कंपनियों के ढांचे में बदलाव करेगा, और यह समीक्षा कुछ अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के सलाह के आधार पर की जाएगी, जिन्हें IMF ने ही मिस्र के सामने पेश किया है।

जिन मिस्री कंपनियों का जाएज़ा लिया जाना चाहिए, उनमें  नेशनल कंपनी फॉर डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स,"चिल आउट" (ईंधन स्टेशन ऑप्रेटर), नेशनल मिनरल वाटर कंपनी (साफी),"साइलो फूड्स" और नेशनल कंपनी फॉर रोड्स एंड कम्युनिकेशन्स वग़ैरा शामिल हैं।

 यह क़दम दिसम्बर 2022 में IMF के साथ हुए 3 अरब डॉलर के क़र्ज़ समझौते के तहत उठाया गया है। मार्च 2024 में IMF ने इस राशि को 5 अरब डॉलर और बढ़ाकर कुल क़र्ज़ा 8 अरब डॉलर कर दिया। समझौते के अनुसार, मिस्र को अगले 4 साल में IMF द्वारा तय सुधार लागू करने हैं, जिनमें सरकारी कंपनियों का निजीकरण शामिल है और सेना से जुड़ी कंपनियां इसकी सबसे बड़ी जद में हैं।

इसके अलावा, काहिरा को सरकारी कंपनियों, खासकर सेना से जुड़े व्यापारों की वित्तीय रिपोर्ट्स सार्वजनिक करनी होंगी। यह निर्णय मिस्र के लिए एक बड़ा मोड़ है, क्योंकि इन सुधारों में सेना की आर्थिक गतिविधियों की पड़ताल भी शामिल है, जिसे मिस्र पिछले 4 साल से टालता आ रहा था। समझौते की एक अहम शर्त यह भी है कि 1952 से चली आ रही मिस्र की सेना की आर्थिक गतिविधियों का खुलासा किया जाए और उनकी समीक्षा की जाए।

 इज़राइल से जुड़े सलाहकारों का ख़तरा

 चिंता की बात यह है कि IMF द्वारा नियुक्त कम से कम 3 अंतर्राष्ट्रीय सलाहकार कंपनियां न सिर्फ इज़राइल के साथ गहरे व्यावसायिक संबंध रखती हैं, बल्कि वहां उनके कार्यालय भी हैं। इनमें "द बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप" (BCG) भी शामिल है, जिसने इज़राइली सेना के साथ मिलकर "ग़ज़ा ह्यूमैनिटेरियन फाउंडेशन" बनाया था। क्या यह कंपनियां मिस्र की संवेदनशील सैन्य-आर्थिक जानकारियों को इज़राइल तक पहुंचाएंगी? यह सवाल मिस्र की सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा पैदा करता है।

 बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप: एक पैर मिस्र मेंएक पैर ग़ज़ा में

 मिस्र और IMF के बीच हुए समझौते के तहत, बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (BCG) इस डील का रणनीतिक सलाहकार है जबकि PwC और ग्रांट थॉर्नटन (Grant Thornton) कंपनियां वित्तीय व लेखा सलाहकार सेवाएँ प्रदान कर रही हैं। ये तीनों कंपनियाँ इज़राइल में भारी निवेश कर चुकी हैं और वहाँ की सेना के साथ गहरे संबंध रखती हैं, खासकर BCG, जिसकी स्थापना 1963 में अमेरिका में हुई थी। यह दुनिया की तीन सबसे बड़ी स्ट्रैटेजिक कंसल्टिंग फर्मों में से एक है और 50 से अधिक देशों में इसके 100 कार्यालय हैं। BCG का इज़राइल से संबंध दशकों पुराना है। नेतन्याहू के ज़िंदगी नामे में उल्लेख है कि उन्होंने 1976 से 1978 तक BCG में आर्थिक सलाहकार के रूप में काम किया था। 2010 में BCG ने तेल अवीव में अपना कार्यालय खोला और जल्द ही यह इज़राइली कंपनियों, खासकर रक्षा क्षेत्र की कंपनियों, को सलाह देने वाला प्रमुख फ़र्म बन गया।

 मिस्र की सैन्य कंपनियों के निजीकरण सलाहकारों का इज़राइल से संबंध

 IMF के साथ हुए समझौते के अनुसार, PwC को मिस्र की सशस्त्र सेनाओं से जुड़ी कंपनियों को वित्तीय व लेखा सलाह देनी है। PwC का जिसकी स्थापना 1998 में लंदन में हुई थी, इज़राइल के साथ सलाहकारी व ऑडिटिंग सेवाओं में गहरा संबंध है। चिंताजनक बात यह है कि इस कंपनी के अधिकांश विशेषज्ञों का सैन्य पृष्ठभूमि है और वे इज़राइल के साइबर सुरक्षा प्रोजेक्ट्स पर काम कर चुके हैं। उदाहरण के लिए, PwC इज़राइल की प्रमुख तालिया गाज़ित इज़राइली सेना की रिज़र्व कर्नल हैं।

 तीसरी कंपनी, ग्रांट थॉर्नटन, जिसकी स्थापना 1924 में हुई थी, दुनिया की सातवीं सबसे बड़ा अकाउंटिंग फ़र्म है। इसका इज़राइल में 1955 से ही मजबूत प्रभाव रहा है और आज यह वहाँ की छठी सबसे बड़ी अकाउंटिंग कंपनी है। इसके सभी इज़राइली प्रबंधकों का सैन्य पृष्ठभूमि है, जैसे मिकी ब्लूमेंथल, जो इज़राइली सेना में मेजर रह चुके हैं।

 क्या मिस्र की सैन्य गोपनीयता ख़तरे में है?

 चूँकि मिस्र का नेशनल सर्विस प्रोजेक्ट्स ऑर्गनाइजेशन (NSPO) रक्षा मंत्रालय के अधीन है और उसकी कंपनियाँ सैन्य बलों से सीधे जुड़ी हैं, ऐसे में इज़राइल व अमेरिका से संबंध रखने वाली इन कंसल्टिंग कंपनियों को मिलने वाली जानकारी, जैसे वित्तीय डेटा, संगठनात्मक ढाँचे और सैन्य ब्यौरे को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। इज़राइल द्वारा फिलिस्तीनियों के जनसंहार, मिस्र में उनके विस्थापन की माँग और मिस्र की सैन्य शक्ति को लेकर इज़राइल की चिंताओं को देखते हुए, यह आशंका निराधार नहीं है कि ये कंपनियाँ संवेदनशील जानकारियों का दुरुपयोग कर सकती हैं। क्या मिस्र अपनी सुरक्षा की कीमत पर IMF का कर्ज़ ले रहा है? यह सवाल मिस्र की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। 

 

 ईरान के राष्ट्रपति डॉ. मसूद पिजेश्कियान ने फ्रांस के राजदूत से मुलाकात के दौरान कहा कि ईरान युद्ध नहीं चाहता लेकिन किसी भी आक्रामकता का करारा जवाब दिया जाएगा।

ईरानी राष्ट्रपति ने स्पष्ट किया कि इस्लामी गणतंत्र ईरान किसी भी संभावित आक्रमण के सामने कमजोर नहीं पड़ेगा अगर फिर किसी ने हमला किया तो उसे निर्णायक और कड़ा जवाब मिलेगा। 

तेहरान में फ्रांस के नए राजदूत पियरे कुशार द्वारा अपने कार्यभार संभालने के अवसर पर आयोजित समारोह में राष्ट्रपति ने कहा कि ईरान खुद युद्ध नहीं चाहता और हमेशा वार्ता को प्राथमिकता देता है। लेकिन यह शांतिप्रियता हमारी कमजोरी नहीं बल्कि हमारे सिद्धांतों की मजबूती को दर्शाती है। 

पिजेश्कियान ने आगे कहा कि ईरान आंतरिक एकता और वैश्विक सहमति की तलाश में है, लेकिन दुर्भाग्य से पश्चिमी देश झूठे प्रचार और ईरान पर परमाणु हथियार बनाने के आरोप लगाकर इस रास्ते में रुकावटें पैदा कर रहे हैं। ईरान अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत अपने अधिकारों की मांग करता है और इन कानूनों का पूरी तरह पालन करता आया है। 

उन्होंने पश्चिम की चुप्पी की आलोचना करते हुए गाजा में इस्राइली आक्रमण को बर्बर और अभूतपूर्व बताया उन्होंने कहा कि यूरोपीय देशों, खासकर फ्रांस की चुप्पी शर्मनाक है। 

इस अवसर पर फ्रांस के राजदूत पियरे कुशार ने ज़ाहेदान में हालिया आतंकी हमले में ईरानी नागरिकों की शहादत पर दुख जताया और कहा कि फ्रांस राजनयिक प्रक्रिया को जारी रखने में विश्वास रखता है। 

उन्होंने आगे कहा कि फ्रांसीसी सरकार ईरान के साथ सहयोग बढ़ाना चाहती है और परमाणु मुद्दे पर वार्ता ही एकमात्र रास्ता है।

 

मॉस्को में ईरान के राजदूत काज़िम जलाली ने रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया ज़खारोवा से मुलाक़ात की, जिसमें फ़र्जी ख़बरों से निपटने के उपायों और मीडिया सहयोग को मज़बूत करने पर चर्चा हुई।

काज़िम जलाली ने मंगलवार को मारिया ज़खारोवा के साथ हुई बैठक में हालिया घटनाक्रमों पर विचार-विमर्श किया। इस दौरान दोनों पक्षों ने मीडिया सहयोग बढ़ाने, सार्वजनिक राय व दृष्टिकोण को बेहतर ढंग से समझने और फ़र्ज़ी ख़बरों तथा विनाशकारी मीडिया प्रवाहों से निपटने के तरीकों पर गहन चर्चा की।

 रूसी विदेश मंत्रालय ने पहले भी पश्चिमी और अमेरिकी मीडिया द्वारा ईरान के खिलाफ़ फ़ैलाई जा रही झूठी ख़बरों को "गंदा राजनीतिक अभियान" क़रार दिया था।

 यूरोपीय ट्रॉइका ने तीन साल तक रोड़े अटकाए, अब समय को बहाना बना रहा है

 रूस के अंतर्राष्ट्रीय संगठनों में स्थायी प्रतिनिधि मिखाइल उल्यानोव ने ज़ोर देकर कहा कि ईरान को परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग का अधिकार है जिसमें यूरेनियम संवर्धन भी शामिल है। उन्होंने कहा कि इस अधिकार पर सवाल उठाना बिल्कुल हास्यास्पद है।"

 उल्यानोव ने जेसीपीओए वार्ता को पुनर्जीवित करने में यूरोपीय ट्रॉइका द्वारा की गई बाधाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि "तीन साल तक अड़ंगे लगाने के बाद, अब ये देश दावा कर रहे हैं कि समय खत्म हो रहा है और एक नए समझौते की आवश्यकता है। क्या इसे कूटनीति कहते हैं?"

 इसी संदर्भ में फ्रांस के विदेश मंत्री जीन-यवेस ले ड्रियन ने ईरान को "ट्रिगर मैकेनिज्म" सक्रिय करने की धमकी दी। अमेरिका के परमाणु समझौते से एकतरफा हटने का जिक्र किए बिना, उन्होंने ईरान के परमाणु हथियार हासिल करने को रोकने पर जोर दिया। MM

 

 

ईरानी संसदसभापित ने अंतर्राष्ट्रीय क़ानून के पालन पर आयोजित एक बैठक में इज़राइली शासन की ग़ाज़ा में की गई कार्रवाइयों की तुलना नाज़ियों के अपराधों से की है।

 मोहम्मद बाक़िर क़ालीबाफ़ ने मंगलवार को जिनेवा में विश्व की संसदों के अध्यक्षों के छठे सम्मेलन के मार्जिन पर आयोजित "अंतर्राष्ट्रीय कानून और संयुक्त राष्ट्र चार्टर का पालन: अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की गारंटी" विषय की बैठक में कहा: " ग़ाज़ा में हो रहा अपराध केवल एक क्षेत्रीय संकट नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया के लिए ख़तरे की घंटी है।"

 क़ालीबाफ़ ने आगे कहा: "यह ज़ायोनी शासन एक ऐसा शासन है जो शांतचित्त होकर और योजनाबद्ध तरीके से एक ऐसा अपराध कर रहा है, मानो यह इतिहास के सबसे भयानक अपराधों के सपनों से निकला हो।"

 उन्होंने जोर देकर कहा: "इज़राइल के सामने खड़े होने में हर पल की देरी, 21वीं सदी के नाज़ियों के अपराधों में साझीदारी के समान है। अगर 21वीं सदी के ये नाज़ी ग़ाज़ा में जीत जाते हैं, तो यह आग दुनिया के अन्य हिस्सों में भी फैल जाएगी।"

 अमेरिका ने चीन को चेतावनी दी

अमेरिकी वित्त मंत्री "स्कॉट बेसेंट" ने मंगलवार को देशों के आंतरिक मामलों में खुला हस्तक्षेप करते हुए घोषणा की कि स्टॉकहोम में अमेरिका-चीन व्यापार वार्ता के दौरान, चीनी अधिकारियों को चेतावनी दी गई है कि रूस और ईरान से प्रतिबंधित तेल की ख़रीद जारी रखने पर 100% तक भारी टैरिफ लगाया जा सकता है।

 यमनी हमला बेन-गुरियन हवाई अड्डे पर

यमन के सशस्त्र बलों के प्रवक्ता ब्रिगेडियर जनरल यहिया सरई ने मंगलवार को एक बयान में घोषणा की कि फिलिस्तीनी लोगों के समर्थन में एक विशेष सैन्य अभियान के तहत, याफ़ा क्षेत्र में स्थित बेन-गुरियन हवाई अड्डे को हाइपरसोनिक बैलिस्टिक मिसाइल "फिलिस्तीन-2" से निशाना बनाया गया। बयान के अनुसार यह ऑपरेशन पूरी तरह से सफल रहा।

 मेदवेदेव ने ग्राहम की बयानबाजी का जवाब दिया

रूस की सुरक्षा परिषद के उपाध्यक्ष "दिमित्री मेदवेदेव" ने मंगलवार को अमेरिकी रिपब्लिकन सीनेटर "लिंडसे ग्राहम" के उस बयान का जवाब दिया, जिसमें उन्होंने कहा था कि यूक्रेन युद्ध के समाधान के लिए मा᳴स्को को अब बातचीत की मेज़ पर आना चाहिए। मेदवेदेव ने स्पष्ट किया: "यह तय करना कि मा᳴स्को कब बातचीत की मेज़ पर आएगा, यह अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प या किसी और का निर्णय नहीं है।"

 यूनान के समुद्र तटों पर ज़ायोनी पर्यटकों का प्रवेश रोका गया

ग़ाज़ा में नरसंहार और मानवीय सहायता को रोके जाने के विरोध में, यूनान के लोगों ने इज़रायली पर्यटकों को अपने देश के द्वीपों में प्रवेश करने से रोक दिया है। इस मुद्दे ने यूनानी पुलिस के साथ उनकी झड़पों को जन्म दिया है।

 अल्बानेस ने ज़ायोनी शासन के अपराधों के खिलाफ़ पश्चिम की निष्क्रियता पर आपत्ति जताई

संयुक्त राष्ट्र की विशेष रैपोर्टर "फ्रांसेस्का अल्बानेस" ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक संदेश में कहा: "इज़रायल के प्रति अंतरराष्ट्रीय कानून लागू करने में पश्चिमी नेताओं की पूर्ण अक्षमता, उनकी निष्क्रियता का एक महाकाव्य है। मंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति कुछ नहीं करते, ध्यान भटकाते हैं, कुछ मंत्रियों पर प्रतिबंध लगाते हैं - लेकिन यह अंतरराष्ट्रीय कानून का कार्यान्वयन नहीं है।"

 संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में फ़िलिस्तीन देश के गठन पर सहमति

संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय, न्यूयॉर्क में आयोजित "अंतर्राष्ट्रीय फ़िलिस्तीन सम्मेलन" के अंतिम बयान के मसौदे के अनुसार, जिसका उद्देश्य फिलिस्तीन मुद्दे के शांतिपूर्ण समाधान के प्रयासों को आगे बढ़ाना है, प्रतिभागियों ने संघर्ष और युद्ध को समाप्त करने तथा एक स्वतंत्र फिलिस्तीन देश के गठन की आवश्यकता पर सहमति व्यक्त की।

 ईरान-रूस मीडिया सहयोग को मजबूत करने की आवश्यकता

मॉस्को में ईरान के राजदूत "काज़िम जलाली" और रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता "मारिया ज़खारोवा" ने मंगलवार को एक बैठक में दोनों देशों के बीच संबंधों को नुकसान पहुंचाने वाली मीडिया शरारतों का ज़िक्र करते हुए, फ़र्ज़ी ख़बरों और विनाशकारी मीडिया प्रवाह से निपटने के उपायों पर चर्चा की और इस संबंध में सुझाव पेश किए।

 इज़रायली राजदूत का यौन कांड - यूएई में शर्मसार

इज़राइली चैनल 12 ने खुलासा किया कि यूएई में इज़राइल के राजदूत "योसी शेली" एक यौन कांड के बाद पद छोड़कर तेल अवीव लौटेंगे।

 यूरोप को ईरान पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार नहीं - रूसी विशेषज्ञ

रूसी विश्वविद्यालय की प्रोफेसर "लाना रवांदी फ़िदाई" ने कहा कि यूरोपीय ट्रॉइका ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी के पास ईरान पर प्रतिबंध वापस लगाने का कोई कानूनी अधिकार नहीं है।

 UNRWA: ग़ाज़ा को हवाई सहायता भेजना ख़तरनाक और बेअसर

UNRWA की संचार निदेशक "जुलिएट तोमा" ने कहा कि ग़ाज़ा को हवाई मार्ग से सहायता भेजना प्रचार तो करता है, लेकिन व्यावहारिक रूप से अप्रभावी है, जबकि ट्रकों से सहायता भेजना बेहतर विकल्प है।

 

 

तीन यूरोपीय देशों ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के नेताओं ने एक बार फिर ईरान को ट्रिगर मैकेनिज्म सक्रिय करने की धमकी दी है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री कार्यालय की वेबसाइट पर प्रकाशित एक बयान के अनुसार, "ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर, तीनों देशों के नेताओं ने सहमति व्यक्त की है कि अगर ईरान अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के साथ सहयोग करने और कूटनीति पर लौटने में विफल रहता है, तो अगस्त के अंत में उस पर फिर से प्रतिबंध लगाए जाएँगे।"

तीन यूरोपीय देशों ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी के नेताओं ने एक बार फिर ईरान को ट्रिगर मैकेनिज्म सक्रिय करने की धमकी दी है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री कार्यालय की वेबसाइट पर प्रकाशित एक बयान के अनुसार, "ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर, तीनों देशों के नेताओं ने सहमति व्यक्त की है कि अगर ईरान अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के साथ सहयोग करने और कूटनीति पर लौटने में विफल रहता है, तो अगस्त के अंत में उस पर फिर से प्रतिबंध लगाए जाएँगे।"

जब भी विश्व शक्तियों द्वारा ईरान पर कड़े प्रतिबंधों की धमकी दी जाती है, तो कोई भी हँसे बिना नहीं रह सकता। ईरान पिछले चालीस वर्षों से पश्चिम के बढ़ते आर्थिक और व्यापारिक प्रतिबंधों से जूझ रहा है, लेकिन पश्चिमी दबाव के आगे झुकने के बजाय, ईरान ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की एक सफल नीति अपनाई है।

ईरान ने समझौते का पालन किया है

2015 से 2018 तक, आईएईए निरीक्षकों ने अपनी रिपोर्टों में पुष्टि की कि ईरान परमाणु समझौते का पूरी तरह से पालन कर रहा है, लेकिन बदले में ईरान को क्या मिला? समझौते की एक प्रमुख शर्त यह थी कि ईरान पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों में ढील दी जाएगी, बदले में उसके परमाणु कार्यक्रम को सीमित किया जाएगा। हालाँकि, पश्चिमी देश, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका, प्रतिबंधों को हटाने में अनिच्छुक रहे हैं। हालाँकि कुछ प्रतिबंध प्रतीकात्मक रूप से हटा दिए गए थे, लेकिन व्यवहार में ईरान की अर्थव्यवस्था को कोई बड़ी राहत नहीं मिली है। अंतर्राष्ट्रीय बैंकों और कंपनियों ने अमेरिकी दबाव में ईरान के साथ व्यापार करने से परहेज किया है, जिससे ईरान समझौते का आर्थिक लाभ नहीं उठा पा रहा है।

अमेरिका की वापसी और वैश्विक चुप्पी

2018 में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एकतरफ़ा तौर पर जेसीपीओए से हटने की घोषणा की और "अधिकतम दबाव" की नीति के तहत ईरान पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए। इस फ़ैसले ने समझौते की मूल भावना को गहरा आघात पहुँचाया। यूरोपीय देशों (यूके, फ़्रांस, जर्मनी) ने अमेरिका के फ़ैसले की निंदा की, लेकिन व्यवहार में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की। उन्होंने ईरान के साथ व्यापार के लिए एक वैकल्पिक व्यवस्था शुरू की, लेकिन यह व्यवस्था अप्रभावी साबित हुई और ईरान की आर्थिक समस्याओं का समाधान नहीं कर सकी।

विश्व शक्तियों की इस चुप्पी ने ईरान के आत्मविश्वास को और कमज़ोर कर दिया। ईरान का कहना था कि अगर समझौते के पक्ष अपने दायित्वों को पूरा नहीं कर रहे हैं, तो ईरान को भी समझौते से छूट दी जा सकती है। परिणामस्वरूप, ईरान ने 2019 से अपने परमाणु कार्यक्रम पर कुछ सीमाएँ तोड़नी शुरू कर दीं, जैसे कि यूरेनियम संवर्धन का स्तर बढ़ाना, लेकिन उसने हमेशा दावा किया कि ये उपाय अस्थायी थे और बातचीत के ज़रिए इन्हें वापस लिया जा सकता है।

आईएईए के विरुद्ध हालिया विवाद और आरोप

हाल के वर्षों में, विशेष रूप से 2024-2025 के दौरान, ईरान और इज़राइली-अमेरिकियों के बीच तनाव चरम पर पहुँच गया है। इज़राइल ने प्रमुख ईरानी सैन्य अधिकारियों और परमाणु वैज्ञानिकों को निशाना बनाया है और ईरानी परमाणु प्रतिष्ठानों पर हमला किया है। ईरान ने अपनी जाँच के बाद निष्कर्ष निकाला है कि कुछ आईएईए निरीक्षकों ने इज़राइल और संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए जासूसी की थी, जिसके कारण ईरान ने आईएईएनिरीक्षकों को अपने प्रतिष्ठानों में प्रवेश करने से प्रतिबंधित कर दिया। ईरान का कहना है कि यह निर्णय उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा के लिए आवश्यक था, क्योंकि निरीक्षकों की रिपोर्ट संवेदनशील जानकारी लीक कर रही थी जिसका इस्तेमाल हमलों के लिए किया गया था। आईएईए ने अभी तक यह साबित नहीं किया है कि ईरान परमाणु हथियार बना रहा है, लेकिन उसने चेतावनी दी है कि ईरानी परमाणु प्रतिष्ठानों पर हमले क्षेत्र में तबाही मचा सकते हैं। ईरान का कहना है कि उसने अपनी परमाणु गतिविधियों का विस्तार केवल रक्षात्मक उद्देश्यों के लिए किया है, और यह पश्चिमी आक्रमण का जवाब है।

प्रतिबंधों का प्रभाव और ईरान का लचीलापन

ईरान पिछले चार दशकों से विभिन्न प्रकार के प्रतिबंधों के अधीन है। इन प्रतिबंधों के बावजूद, ईरान ने अपनी रक्षा क्षमताओं, विशेष रूप से मिसाइल और ड्रोन तकनीक में उल्लेखनीय प्रगति की है। हाल ही में ईरान-इज़राइल संघर्ष के दौरान, ईरानी मिसाइलों ने इज़राइल की उन्नत वायु रक्षा प्रणालियों (जैसे एरो और डेविड्स स्लिंग) को नष्ट कर दिया, जिससे इज़राइली शहरों और कतर में एक अमेरिकी सैन्य अड्डे को भारी नुकसान पहुँचा। यह घटनाक्रम प्रतिबंधों के बावजूद ईरान की आत्मनिर्भरता और तकनीकी क्षमताओं को दर्शाता है।

ईरान का कहना है कि प्रतिबंधों के खतरे का उस पर कोई असर नहीं है, क्योंकि वह दशकों से इनका सामना कर रहा है। सच तो यह है कि जेसीपीओए के तहत प्रतिबंधों को कभी पूरी तरह से हटाया नहीं गया है, और दी गई प्रतीकात्मक राहत ईरान की अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए अपर्याप्त रही है। इसलिए, "स्नैपबैक" तंत्र या नए प्रतिबंधों का खतरा ईरान के लिए कोई नई बात नहीं है। मिसाइल और ड्रोन तकनीक में ईरान की प्रगति ने साबित कर दिया है कि प्रतिबंध उसकी आत्मनिर्भरता को कमज़ोर करने के बजाय मज़बूत करते हैं। वर्तमान स्थिति में, "स्नैपबैक" तंत्र का खतरा ईरान पर दबाव बढ़ाने का एक और प्रयास है, लेकिन इसका ईरान पर कोई असर नहीं होगा, हालाँकि इससे क्षेत्र में तनाव और बढ़ेगा। पश्चिमी शक्तियों को यह समझना चाहिए कि ईरान अतीत में धमकियों के आगे नहीं झुका है और भविष्य में भी ऐसा नहीं करेगा। ईरान ने अपना परमाणु कार्यक्रम नहीं छोड़ा है।लेकिन वह हमेशा बातचीत के लिए तैयार रहा है, लेकिन पश्चिमी शक्तियों ने हमेशा उसे धोखा दिया है।

लेखक: जमाल अब्बास फ़हमी

आज जब कि इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत की हर तरफ़ धूम है जिसको देखो वहीं आपकी ज़ियारत के लिये दुनिया के कोने कोने से चला जा रहा है तो इस समय कुछ इस्लाम के दुश्मन और हुसैनियत से दूर लोग इसके विरुद्ध दुषप्रचार कर रहे हैं और हर प्रकार से इसको इस्लाम के विरुद्ध और बिदअत बताने का प्रयत्न कर रहे हैं, और कहते हैं कि चूँकि यह पैदल यात्रा चेहलुम में कर्बला जाना पैग़म्बर (स) के ज़माने में नहीं था इसलिये यह बिदअत है और मुसलमानों को यह नहीं करना चाहिए यह शिक्र है आदि, लेकिन इन बिदअत कहने वालों ने एक बार भी यह न

आज जब कि इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत की हर तरफ़ धूम है जिसको देखो वहीं आपकी ज़ियारत के लिये दुनिया के कोने कोने से चला जा रहा है तो इस समय कुछ इस्लाम के दुश्मन और हुसैनियत से दूर लोग इसके विरुद्ध दुषप्रचार कर रहे हैं और हर प्रकार से इसको इस्लाम के विरुद्ध और बिदअत बताने का प्रयत्न कर रहे हैं, और कहते हैं कि चूँकि यह पैदल यात्रा चेहलुम में कर्बला जाना पैग़म्बर (स) के ज़माने में नहीं था इसलिये यह बिदअत है और मुसलमानों को यह नहीं करना चाहिए यह शिक्र है आदि, लेकिन इन बिदअत कहने वालों ने एक बार भी यह नहीं सोंचा कि पैग़म्बर के ज़माने में तो स्वंय इनका भी वजूद नहीं था तो क्या यह स्वंय भी बिदअत की पैदाइश हैं?!

बहरहाल इस लेख में हमाला मक़सद बिदअत पर बहस करना नहीं है, लेकिन चूँकि इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत के विरुद्ध आज यह वहाबी लोग बहुत कुछ बोल रहे हैं इसलिये हम इस लेख में अहलेबैत (अ) की हदीसों द्वारा इमाम हुसैन (अ) ज़ियारत को छोड़ देने के नतीजों और प्रभावों के बारे में बातचीत करेंगे।

  1. हलबी ने इमाम सादिक़ (अ) से रिवायत की है कि आपने फ़रमायाः जो भी इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत को छोड़ दे, जब कि वह इस कार्य पर सामर्थ हो तो उसने पैग़म्बरे इस्लाम (स) की अवहेलना की है।
  2. अबदुर्रहमान बिन कसीर रिवायत करते हैं कि इमाम सादिक़ (अ) ने फ़रमायाः अगर कोई पूरा जीवन जह करता रहे, लेकिन इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत न करे उसने पैग़म्बरे इस्लाम (स) के अधिकारों में से एक अधिकार का हनन किया है, एक दूसरी रिवायत में आया हैः अगर तुम में से कोई हज़ार हज करे, लेकिन हुसैन (अ) की क़ब्र की ज़ियारत के लिये न जाए उसने पैग़म्बरे इस्लाम (स) के अधिकारों में से एक अधिकार का हनन किया है।
  3. मोहम्मद बिन मुस्लिम ने अबू जाफ़र (अ) से रिवायत की है कि आपने फ़रमायाः जो भी हमारे शियों मे से इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत पर न जाए उसका ईमान और दीन ख़राब हो गया है।
  4. एक दूसरी रिवायत में आया है कि इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत का न करना आप पर ज़ुल्म है। अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली (अ) ने फ़रमायाः मेरे पिता, हुसैन (अ) पर क़ुरबान हो जाएं, वह कूफ़ा के द्वार पर क़ल्त किया जाएगा, मैं देख रहा हूँ कि जंगली जानवरों ने अपनी गर्दनों को उसके शरीर पर झुका रखा है और सुबह तक उस पर मरसिया पढ़ते हैं, जब ऐसा है, मेरे हुसैन (अ) पर अत्याचार करने से बचो।
  5. इब्ने मैमून ने रिवायत की है कि इमाम सादिक़ (अ) ने मुझ से फ़रमायाः मुझे सूचना मिली है कि हमारे कुछ शिया एक साल, दो साल और इससे अधिक उमर उनकी बीत चुकी है लेकिन वह हुसैन इब्ने अली बिन अबीतालिब (अ) की ज़ियारत को नहीं जाते हैं। (यानी कई कई साल हुसैन की ज़ियारत के लिये कर्बला नहीं जाते हैं)

मैंने कहाः मेरी जान आप पर क़ुरबान! मैं ऐसे बहुत अधिक लोगों को नहीं जानता हूँ (कि वह ज़ियारत को न जाएं)

आपने फ़रमायाः ईश्वर की सौगंध उन्होंने ग़ल्त किया और ईश्वर के सवाब को बरबाद किया और मोहम्मद (स) के पड़ोस से दूर हो गये।

मैंने पूछाः अगर कोई हर साल एक बार ज़ियारत पर जाए तो क्या यह काफ़ी है?

आपने फ़रमायाः हाँ, उसका बाहर निकलना ही अल्लाह के नज़दीक़ बहुत सवाब रखता है और उसके लिये नेकी है।

कहा गया है कि आपकी यह बात (कि उसने ईश्वर के सवाब को बरबाद किया है) उस व्यक्ति के लिये भी सही है जो बहुत दूर रहता है और इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत पर जाने पर सामर्थ भी रखता है लेकिन तीन साल तक न जाए।

  1. बहुत सी रिवायतों में आया है कि ज़ियारत पर न जाना आयु को घटाता है, दूसरी रिवायत में आया है कि आपकी ज़ियारत को छोड़ना, जीवन से एक साल कम कर देता है, और इसमें कोई संदेह नहीं है।
  2. एक रिवायत के अनुसार, आपकी ज़ियारत को छोड़ने वाला, अगर स्वर्ग में प्रवेश करे, उसका स्थान स्वर्ग के हर मोमिन के स्थान से नीचा होगा, और पैग़म्बर (स) के पड़ोस से दूर है।
  3. इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत को छोड़ने वाला नर्क वालों मे से है और वह लज्जित और अपमानित होगा।

(ख़साएसे हुसैनिया किताब से लिया गया)

 हुज्जतुल इस्लाम सैयद मुख़्तार हुसैन जाफ़री ने "हिंदुस्तान टाइम्स" द्वारा रहबर-ए-इन्क़िलाब इस्लामी हज़रत आयतुल्लहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई की शान में की गई गुस्ताख़ी की कड़ी निंदा करते हुए इसे यहूदी व पश्चिमी एजेंडे का हिस्सा और करोड़ों विलायत-परस्तों की भावनाओं पर हमला क़रार दिया।

भारत के राज्य जम्मू कश्मीर के वरिष्ठ आलिम-ए-दीन हुज्जतुल इस्लाम सैयद मुख़्तार हुसैन जाफ़री ने अपने बयान में हिंदुस्तान टाइम्स द्वारा रहबर-ए-इन्क़िलाब इस्लामी की शान में की गई बेहूदा टिप्पणी की सख़्त अल्फ़ाज़ में निंदा की है।

उन्होंने कहा,हम भारतीय मीडिया के उस घटिया, बेशर्म और गैर ज़िम्मेदार रवैये की कड़ी निंदा करते हैं, जिसमें रहबर-ए-मुअज़्ज़म, वली-ए-फ़क़ीह, इमाम सैयद अली ख़ामेनई पर बेबुनियाद, बकवास और सरासर झूठे इल्ज़ाम लगाए गए कि जैसे वह नशे के आदी हैं। यह आरोप न सिर्फ़ ईरान के रूहानी निज़ाम पर हमला है, बल्कि करोड़ों आशिक़ाने विलायत की भावनाओं को रौंदने की घिनौनी कोशिश है।

उन्होंने आगे कहा,भारतीय मीडिया को न सच्चाई से कोई वास्ता है, न तहक़ीक़ से। यह महज़ पश्चिमी व यहूदी एजेंडे को पूरा कर रहा है, जो हमेशा से मुस्लिम नेतृत्व को बदनाम करने की साज़िश करता आया है।

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि ईरान में नशाखोरी के ख़िलाफ़ सख़्त क़ानून मौजूद हैं, जिनमें मौत की सज़ा तक शामिल है। रहबर-ए-मुअज़्ज़म ने कई बार अपने ख़िताबों में नशे को ‘तबाहकुन, शैतानी हथियार’ कहा है। ऐसे झूठे प्रोपेगेंडा सिर्फ़ यहूदी लॉबी, अमेरिकी व पश्चिमी खुफिया एजेंसियों और उनके स्थानीय गुलामों का मानसिक हमला हैं।

अंत में उन्होंने दुनिया भर के मुसलमानों को संबोधित करते हुए कहा,हमें रहबर की रहनुमाई, परहेज़गारी और सच्चाई की पहचान को आम करना होगा और उनकी शान में गुस्ताख़ी करने वालों को सख़्त से सख़्त जवाब देना होगा। यह चुप रहने का नहीं, बोलने और डटकर जवाब देने का समय है रहबर की इज़्ज़त हमारी ग़ैरत है, और ग़ैरत का सौदा नहीं किया जाता।

 

नई दिल्ली में ईरानी दूतावास ने कुछ भारतीय मीडिया संस्थानों द्वारा ईरान और उसकी नेतृत्व के खिलाफ प्रकाशित असंतुलित और गैर जिम्मेदाराना खबरों को खारिज करते हुए कहा है कि ऐसी रिपोर्टिंग न केवल जनता के विश्वास को ठेस पहुँचाती है बल्कि पत्रकारिता के मूल सिद्धांतों का भी उल्लंघन है।

नई दिल्ली स्थित इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान के दूतावास द्वारा जारी एक आधिकारिक बयान में कुछ भारतीय मीडिया द्वारा ईरान और उसके महान नेतृत्व के खिलाफ प्रसारित खबरों को तथ्यों के विपरीत और सनसनी फैलाने वाला बताया गया है। 

बयान में कहा गया है कि इस तरह की अप्रमाणित और पक्षपातपूर्ण रिपोर्टिंग न केवल जनता के विश्वास को ठेस पहुँचाती है, बल्कि इन मीडिया संस्थानों की पेशेवर प्रतिष्ठा को भी गंभीर नुकसान पहुँचाती है। 

दूतावास ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जनता को सही जानकारी प्राप्त करने के अधिकार पर जोर देते हुए कहा कि मीडिया को अपनी खबरों में निष्पक्षता, पारदर्शिता और पेशेवर ईमानदारी को ध्यान में रखना चाहिए, और ईरान से संबंधित किसी भी जानकारी को प्रकाशित करने से पहले विश्वसनीय स्रोतों से इसकी पुष्टि करनी चाहिए। 

बयान में आगे कहा गया है कि इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान के सर्वोच्च नेता, जो देश की सशस्त्र सेनाओं के सर्वोच्च कमांडर भी हैं, ने सियोनी हमले के दौरान बड़ी हिकमत और साहस के साथ नेतृत्व करते हुए देश को एक बड़ी सफलता दिलाई। ईरान ने इस युद्ध में सियोनी सरकार को निर्णायक हार दी, जिसे वैश्विक स्तर पर एक महत्वपूर्ण रक्षात्मक सफलता के रूप में मान्यता मिली। 

अंत में, ईरानी दूतावास ने भारतीय मीडिया से आग्रह किया कि वह विदेशी प्रचार का औजार बनने के बजाय पत्रकारिता की ईमानदारी, संतुलन और जिम्मेदारी का प्रदर्शन करे, और ईरान भारत के बीच मौजूद ऐतिहासिक और मैत्रीपूर्ण संबंधों को और मजबूत करने में सकारात्मक भूमिका निभाए।