अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) द्वारा मिस्र को दिए जा रहे 8 अरब डॉलर के क़र्ज़ का इस्तेमाल, इज़राइल द्वारा मिस्र की सेना के अंदर तक घुसपैठ करने के लिए किया जा सकता है।
मिस्र ने पिछले अप्रैल में घोषणा की थी कि वह देश की सशस्त्र सेनाओं से जुड़ी 5 कंपनियों के ढांचे में बदलाव करेगा, और यह समीक्षा कुछ अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों के सलाह के आधार पर की जाएगी, जिन्हें IMF ने ही मिस्र के सामने पेश किया है।
जिन मिस्री कंपनियों का जाएज़ा लिया जाना चाहिए, उनमें नेशनल कंपनी फॉर डिस्ट्रीब्यूशन ऑफ पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स,"चिल आउट" (ईंधन स्टेशन ऑप्रेटर), नेशनल मिनरल वाटर कंपनी (साफी),"साइलो फूड्स" और नेशनल कंपनी फॉर रोड्स एंड कम्युनिकेशन्स वग़ैरा शामिल हैं।
यह क़दम दिसम्बर 2022 में IMF के साथ हुए 3 अरब डॉलर के क़र्ज़ समझौते के तहत उठाया गया है। मार्च 2024 में IMF ने इस राशि को 5 अरब डॉलर और बढ़ाकर कुल क़र्ज़ा 8 अरब डॉलर कर दिया। समझौते के अनुसार, मिस्र को अगले 4 साल में IMF द्वारा तय सुधार लागू करने हैं, जिनमें सरकारी कंपनियों का निजीकरण शामिल है और सेना से जुड़ी कंपनियां इसकी सबसे बड़ी जद में हैं।
इसके अलावा, काहिरा को सरकारी कंपनियों, खासकर सेना से जुड़े व्यापारों की वित्तीय रिपोर्ट्स सार्वजनिक करनी होंगी। यह निर्णय मिस्र के लिए एक बड़ा मोड़ है, क्योंकि इन सुधारों में सेना की आर्थिक गतिविधियों की पड़ताल भी शामिल है, जिसे मिस्र पिछले 4 साल से टालता आ रहा था। समझौते की एक अहम शर्त यह भी है कि 1952 से चली आ रही मिस्र की सेना की आर्थिक गतिविधियों का खुलासा किया जाए और उनकी समीक्षा की जाए।
इज़राइल से जुड़े सलाहकारों का ख़तरा
चिंता की बात यह है कि IMF द्वारा नियुक्त कम से कम 3 अंतर्राष्ट्रीय सलाहकार कंपनियां न सिर्फ इज़राइल के साथ गहरे व्यावसायिक संबंध रखती हैं, बल्कि वहां उनके कार्यालय भी हैं। इनमें "द बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप" (BCG) भी शामिल है, जिसने इज़राइली सेना के साथ मिलकर "ग़ज़ा ह्यूमैनिटेरियन फाउंडेशन" बनाया था। क्या यह कंपनियां मिस्र की संवेदनशील सैन्य-आर्थिक जानकारियों को इज़राइल तक पहुंचाएंगी? यह सवाल मिस्र की सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा पैदा करता है।
बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप: एक पैर मिस्र में, एक पैर ग़ज़ा में
मिस्र और IMF के बीच हुए समझौते के तहत, बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (BCG) इस डील का रणनीतिक सलाहकार है जबकि PwC और ग्रांट थॉर्नटन (Grant Thornton) कंपनियां वित्तीय व लेखा सलाहकार सेवाएँ प्रदान कर रही हैं। ये तीनों कंपनियाँ इज़राइल में भारी निवेश कर चुकी हैं और वहाँ की सेना के साथ गहरे संबंध रखती हैं, खासकर BCG, जिसकी स्थापना 1963 में अमेरिका में हुई थी। यह दुनिया की तीन सबसे बड़ी स्ट्रैटेजिक कंसल्टिंग फर्मों में से एक है और 50 से अधिक देशों में इसके 100 कार्यालय हैं। BCG का इज़राइल से संबंध दशकों पुराना है। नेतन्याहू के ज़िंदगी नामे में उल्लेख है कि उन्होंने 1976 से 1978 तक BCG में आर्थिक सलाहकार के रूप में काम किया था। 2010 में BCG ने तेल अवीव में अपना कार्यालय खोला और जल्द ही यह इज़राइली कंपनियों, खासकर रक्षा क्षेत्र की कंपनियों, को सलाह देने वाला प्रमुख फ़र्म बन गया।
मिस्र की सैन्य कंपनियों के निजीकरण सलाहकारों का इज़राइल से संबंध
IMF के साथ हुए समझौते के अनुसार, PwC को मिस्र की सशस्त्र सेनाओं से जुड़ी कंपनियों को वित्तीय व लेखा सलाह देनी है। PwC का जिसकी स्थापना 1998 में लंदन में हुई थी, इज़राइल के साथ सलाहकारी व ऑडिटिंग सेवाओं में गहरा संबंध है। चिंताजनक बात यह है कि इस कंपनी के अधिकांश विशेषज्ञों का सैन्य पृष्ठभूमि है और वे इज़राइल के साइबर सुरक्षा प्रोजेक्ट्स पर काम कर चुके हैं। उदाहरण के लिए, PwC इज़राइल की प्रमुख तालिया गाज़ित इज़राइली सेना की रिज़र्व कर्नल हैं।
तीसरी कंपनी, ग्रांट थॉर्नटन, जिसकी स्थापना 1924 में हुई थी, दुनिया की सातवीं सबसे बड़ा अकाउंटिंग फ़र्म है। इसका इज़राइल में 1955 से ही मजबूत प्रभाव रहा है और आज यह वहाँ की छठी सबसे बड़ी अकाउंटिंग कंपनी है। इसके सभी इज़राइली प्रबंधकों का सैन्य पृष्ठभूमि है, जैसे मिकी ब्लूमेंथल, जो इज़राइली सेना में मेजर रह चुके हैं।
क्या मिस्र की सैन्य गोपनीयता ख़तरे में है?
चूँकि मिस्र का नेशनल सर्विस प्रोजेक्ट्स ऑर्गनाइजेशन (NSPO) रक्षा मंत्रालय के अधीन है और उसकी कंपनियाँ सैन्य बलों से सीधे जुड़ी हैं, ऐसे में इज़राइल व अमेरिका से संबंध रखने वाली इन कंसल्टिंग कंपनियों को मिलने वाली जानकारी, जैसे वित्तीय डेटा, संगठनात्मक ढाँचे और सैन्य ब्यौरे को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। इज़राइल द्वारा फिलिस्तीनियों के जनसंहार, मिस्र में उनके विस्थापन की माँग और मिस्र की सैन्य शक्ति को लेकर इज़राइल की चिंताओं को देखते हुए, यह आशंका निराधार नहीं है कि ये कंपनियाँ संवेदनशील जानकारियों का दुरुपयोग कर सकती हैं। क्या मिस्र अपनी सुरक्षा की कीमत पर IMF का कर्ज़ ले रहा है? यह सवाल मिस्र की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है।