
رضوی
सीरिया के शिया बहुल गाँव 'ग़ोर ग़रबी' के निवासियों का दर्द
'ग़ोर ग़रबी' गांव, जो हुम्स शहर के बाहरी इलाके में स्थित है, पिछले कुछ दिनों से हिंसा और अत्याचार का सामना कर रहा है। लेकिन यह पीड़ा नई नहीं है। इसका आरंभ सीरियाई शासन के पतन के समय हुआ, जब गांव के निवासियों को अपने घरों को छोड़ने और लेबनान और सीरिया की सीमाओं की ओर पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ा। यह पलायन सुरक्षा की आशंका और संभावित खतरों से बचने के लिए था।
कुछ समय बाद, तहरीर अल-शाम, जिसने देश के प्रशासन की जिम्मेदारी संभाली, ने ग्रामीणों को आश्वासन दिया कि वे अपने घरों को लौट सकते हैं, हथियार जमा कर सकते हैं, और अपने हालात से प्रशासन को आगाह कर सकते हैं। इन आश्वासनों ने ग्रामीणों को लौटने के लिए प्रेरित किया।
हालिया घटनाएं:
गांव में अस्थायी शांति के बाद, पिछले मंगलवार को तहरीर अल-शाम के सशस्त्र लड़ाके गांव में घुस आए। स्थानीय सूत्रों के अनुसार, उन्होंने अत्यंत बर्बरता के साथ गांव में अंधाधुंध गोलीबारी शुरू कर दी। इसके साथ ही, उन्होंने गांव के आसपास चौकियां स्थापित कर दीं और ग्रामीणों को अपमानजनक संप्रदायिक गालियां दीं, जैसे "तुम काफिर हो" और "हम तुम्हें नहीं बख्शेंगे।"
नरसंहार:
इस हिंसा में गांव के कई निवासी मारे गए। पहले चरण में, बासिल क़ासिम और मोहम्मद सईद जुरूद, जो कि 69 वर्षीय सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी थे, को मार दिया गया। मोहम्मद सईद, जो 2011 में गृहयुद्ध शुरू होने से पहले ही सेवानिवृत्त हो चुके थे, एक छोटी सी स्टेशनरी की दुकान चलाते थे।
इसके बाद, अहमद जर्दो, एक अन्य ग्रामीण, को उनकी ही आंखों के सामने उनकी पत्नी और बच्चों के बीच मार डाला गया, क्योंकि उन्होंने अपने घर को ध्वस्त करने का विरोध किया था। उनके घर को ध्वस्त कर दिया गया, उनकी पत्नी का अपमान किया गया, और उनके शहीद भाई के सीरियाई सेना के मेडल को अपमानित किया गया।
महिलाओं और परिवारों पर अत्याचार:
उम्म सामी सालेह, जिन्होंने अपने बेटे को गिरफ्तार करने से रोकने की कोशिश की, उन्हें "तुम्हारा कत्ल जायज़ है" जैसी संप्रदायिक गालियों का सामना करना पड़ा।
मौजूदा हालातः
गांव इस समय पूरी तरह से घेराबंदी में है। न तो कोई खाद्य सामग्री, न सब्जियां, और न ही अन्य आवश्यक वस्तुएं गांव तक पहुंच रही हैं। इस स्थिति के जारी रहने से ग्रामीणों के बीच कुपोषण की गंभीर समस्या हो सकती है।
इस हिंसा को रोकने में नई सीरियाई सरकार की उदासीनता स्पष्ट है। स्थानीय सूत्रों के अनुसार, इन अत्याचारों को "अबू अल-बरा अल-अक्शी" और "अहमद बकोरी" द्वारा नेतृत्व किए गए समूहों ने अंजाम दिया है।
गांव 'ग़ोर ग़रबी' के निर्दोष नागरिकों पर हो रहे इन अत्याचारों ने इंसानियत को झकझोर कर रख दिया है। इस समस्या का समाधान और ग्रामीणों की सुरक्षा सुनिश्चित करना बेहद जरूरी है।
लेबनान, इस्राइल से संघर्ष के दौरान ईरानी और इराकी समर्थन को कभी नहीं भूलेगा।
हिज़बुल्लाह के प्रमुख शेख नईम क़ासिम ने कहा है कि लेबनान, इस्राइल के साथ हुए युद्ध के दौरान ईरान और इराक द्वारा दिये गये समर्थन को कभी नहीं भूलेगा। उन्होंने कहा इन देशों द्वारा दी गई सामग्री, सैन्य और राजनीतिक सहायता का आभार व्यक्त किया, जिसने लेबनान की प्रतिरोध और रक्षा प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
ईरान की भूमिका
ईरान, जो हज़बुल्लाह का लंबे समय से साथी है, ने वित्तीय सहायता, उन्नत हथियारों और रणनीतिक मार्गदर्शन प्रदान किया।शेख नईम क़ासिम ने यह स्पष्ट किया कि अगर ईरान का समर्थन न होता, तो लेबनान के लिए इस्राइली आक्रमण का मुकाबला करना बहुत मुश्किल हो जाता।
इराक़ का योगदान
शेख नईम ने इराकी समूहों और नेताओं का भी उल्लेख किया, जिन्होंने अपनी आंतरिक चुनौतियों के बावजूद लेबनान को युद्ध के संकटपूर्ण क्षणों में अपना समर्थन दिया।
उन्होंने क्षेत्रीय चुनौतियों का सामना करने में एकजुटता और गठबंधनों की महत्वपूर्णता पर जोर दिया। नईम क़ासिम का बयान उस समय आया है जब मध्य पूर्व में तनाव बढ़ा हुआ है, और उनका यह संदेश हिज़बुल्लाह, ईरान और इराक के बीच गहरे रिश्तों को दर्शाता है।
ब्रिटेन ने ट्रंप के प्रस्ताव को ठुकरा दिया
ग़ज़्ज़ा में नरसंहार और तबाही के समर्थक ब्रिटेन ने ट्रंप की अपमानजनक सलाह पर प्रतिक्रिया व्यक्त की और डाउनिंग स्ट्रीट में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के प्रवक्ता ने इसे खारिज कर दिया।
ब्रिटेन ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के उस प्रस्ताव को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने फ़िलिस्तीनियों को ग़ज़्ज़ा से पड़ोसी देशों में स्थानांतरित करने का सुझाव दिया था।
डाउनिंग स्ट्रीट में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के प्रवक्ता ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में ट्रंप के प्रस्ताव को खारिज करते हुए कहा,फ़िलिस्तीनी नागरिकों को अपने घरों में लौटने और अपनी ज़िंदगी फिर से बनाने का मौका मिलना चाहिए।
हालांकि ग़ज़्ज़ा के पीड़ित लोगों के खिलाफ ज़ायोनी शासन के नरसंहार को ब्रिटेन द्वारा अंतरराष्ट्रीय मंचों पर समर्थन देने की हमेशा आलोचना होती रही हैं।
डाउनिंग स्ट्रीट ने आगे कहा,जैसा कि विदेश मंत्री ने कहा है ग़ज़्ज़ा के लोगों के लिए जिनमें से कई ने अपने प्रियजनों घरों या ज़िंदगियों को खो दिया है, पिछले 14 महीने संघर्ष का एक जीवित दुःस्वप्न रहे हैं। यही कारण है कि ब्रिटेन लगातार ग़ज़्ज़ा में संघर्ष का समाधान खोजने की कोशिश कर रहा है।
चीन के साथ एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) में मुकाबला कड़ा होगा
अमेरिका ने साफ कर दिया है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) के मामले में चीन के साथ उसकी टक्कर बहुत गंभीर है। एआई एक ऐसी तकनीक है जो मशीनों को इंसानों की तरह सोचने और काम करने की ताकत देती है। यह आने वाले समय में हर देश की ताकत और तरक्की का सबसे बड़ा जरिया बन सकती है।
चीन और अमेरिका की ये रेस क्यों इतनी अहम है?
तकनीक में आगे निकलने की होड़:
एआई का इस्तेमाल अब हर जगह हो रहा है – दवा बनाने में, स्कूलों में पढ़ाई में, और यहां तक कि सेनाओं में भी। जो देश एआई में सबसे आगे रहेगा, वही बाकी दुनिया पर दबदबा बना सकेगा।
सुरक्षा और हथियार:
अमेरिका और चीन एआई का इस्तेमाल अपनी सेनाओं को और स्मार्ट बनाने के लिए कर रहे हैं। इसमें रोबोट, ड्रोन और साइबर हमलों से बचाव की तकनीकें शामिल हैं।
आर्थिक फायदे:
एआई की मदद से देशों की फैक्ट्रियां तेज़ी से काम कर सकती हैं, बिज़नेस को बढ़ावा मिल सकता है, और नई नौकरियां पैदा हो सकती हैं।
अमेरिका को चिंता क्यों है? चीन की तेज़ी:
चीन एआई के विकास में बहुत पैसा लगा रहा है और उसने 2030 तक इस क्षेत्र में दुनिया में सबसे आगे निकलने का लक्ष्य रखा है।
डेटा का फायदा: चीन के पास बड़ी आबादी है, जिससे उसे काफी डेटा मिलता है। डेटा एआई को स्मार्ट बनाने के लिए सबसे जरूरी चीज है।
अमेरिका की बढ़त पर खतरा: अमेरिका अब तक एआई में सबसे आगे था, लेकिन चीन तेजी से उसकी बराबरी कर रहा है। अमेरिका क्या कर रहा है? ज्यादा पैसा लगा रहा है:
अमेरिका एआई के रिसर्च और विकास पर बड़ा बजट खर्च कर रहा है।
नियम-कानून बना रहा है:
अमेरिका चाहता है कि एआई का इस्तेमाल सही तरीके से हो। वो चीन पर आरोप लगाता है कि वह इसका गलत इस्तेमाल कर रहा है, जैसे लोगों की जासूसी और सेंसरशिप।
दोस्त देशों के साथ मिलकर काम: अमेरिका जापान, भारत और यूरोप जैसे अपने सहयोगियों के साथ मिलकर चीन को चुनौती देने की कोशिश कर रहा है।
चीन का मकसद क्या है?
चीन सिर्फ अमेरिका से आगे नहीं निकलना चाहता, बल्कि एआई की मदद से दुनिया में अपनी पकड़ मजबूत करना चाहता है। वह अपनी टेक्नोलॉजी को हर जगह इस्तेमाल करने के लिए धकेल रहा है।
नतीजा:
अमेरिका और चीन की यह होड़ सिर्फ टेक्नोलॉजी तक सीमित नहीं है। यह आने वाले वक्त में तय करेगी कि दुनिया की सबसे ताकतवर और असरदार देश कौन होगा। एआई के इस मुकाबले का असर हर किसी की जिंदगी पर पड़ेगा।
क्या आप जानते हैं कि पैगंबर (स.) के आने से पहले कैसे थे, अरब के हालात?
पैगंबर के समय दुनिया में बड़े साम्राज्य खत्म हो रहे थे, जैसे सासानी और रोमन साम्राज्य। उस समय बड़े धर्म जैसे ईसाई और ज़रोस्त्रियन धर्म भी गलत मान्यताओं से मिल गए थे। लोग अज्ञानता और ज़ुल्म का शिकार थे, जगह-जगह हंगामे और धोखाधड़ी थी। समाज में बुरे कानून, वर्ग भेद, जनजातीय लड़ाईयाँ, गलत भेदभाव, और महिलाओं के साथ खराब व्यवहार था। इसलिए, क़ुरआन ने उस समय को "स्पष्ट गुमराही" कहा है। इसे इस्लामी स्रोतों में "जाहिलियत का दौर" कहा जाता है।
पैग़म्बर के आने से पहले अरब के हालात
राजनीतिक स्थिति: अरब में कोई एक बड़ा राज्य नहीं था। लोग क़बीले (जनजातियों) में रहते थे और हर क़बीले का अपना नेता होता था। मक्का में क़ुरैश क़बीला का प्रभुत्व था, और मदीना में भी कई क़बीले थे। इस समय कोई केंद्रीय सरकार नहीं थी, और लोग अपने-अपने क़बीले के अनुसार चलते थे।
धार्मिक स्थिति: अधिकांश लोग कीअसनाम की पूजा करते थे। मक्का में काबा में कई ख़ुदा रखे जाते थे, जिनकी लोग इबादत करते थे। इसके अलावा, कुछ लोग यहूदी और ईसाई थे, लेकिन उनकी संख्या कम थी। किताबों में यह बताया गया है कि लोग असली धर्म से भटक चुके थे और बहुत सी गलत बातें फैल चुकी थीं।
आर्थिक स्थिति: अरब की ज्यादातर अर्थव्यवस्था व्यापार और खेती पर आधारित थी। मक्का एक प्रमुख व्यापारिक शहर था, क्योंकि यह दो बड़े व्यापार मार्गों के बीच था। यहाँ पर व्यापार से क़ुरैश क़बीला को बहुत फायदा होता था।
सामाजिक स्थिति: समाज में असमानताएँ थीं। लोग अपने क़बीले के हिसाब से जीवन जीते थे, और महिलाओं की स्थिति बहुत कमजोर थी। किताबों में बताया गया है कि इस समय कुछ क़बीले अपनी बेटियों को ज़िंदा दफन कर देते थे, जो एक बहुत ही खराब प्रथा थी। इसके अलावा, लोग ज्यादातर अनपढ़ थे और बहुत सी गलत बातें मानते थे।
इस स्थिति को बदलने के लिए, इस्लाम आया और पैगंबर ने लोगों को एक नया और सही रास्ता दिखाया।
आज ईरान सही दुनिया भर के मुसलमान ईद ए बेसत मना रहे
आज 28 जनवारी 27रजब हैं,जिस दिन हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व. के ईश्वरीय दूत होने की घोषणा की गई।
आज 28 जनवारी 27रजब हैं,जिस दिन हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व. के ईश्वरीय दूत होने की घोषणा की गई।
27 रजब को जब पैग़म्बरे इस्लाम की आयु 40 वर्ष थी, हिरा नामक ग़ुफ़ा में जिबरईल ने अल्लाह की ओर से उन्हें ईश्वरीय दूत घोषित किया।
इस प्रकार, आमुल फ़ील के 40वें वर्ष में मोहम्मद मुस्तफ़ा अंतिम ईश्वरीय दूत घोषित हुए, ताकि लोगों को जिहालत से निकालकर नैतिकता का पाठ पढ़ाएं और इंसानियत को नई ऊंटाईयों पर लेकर जाएं।
पैग़म्बरे इस्लाम को अंतिम ईश्वरीय दूत घोषित करने की घटना को इस्लाम में बेसत कहा जाता है, जो दुनिया में इस्लामी और नैतिक सभ्यता की शुरूआत का दिन है।
पैग़म्बरे इस्लाम ने मानवता के मार्गदर्शन के लिए आदर्श के रूप में अपने आचरण के साथ ही ईश्वरीय किताब क़ुरान को पेश किया, ताकि रहती दुनिया तक लोग इसके प्रकाश में सही मार्ग पर आगे बढ़ सकें।
आज के दिन ईरान और दुनिया भर में मुसलमान ईदे बेसत मना रहे हैं और मिठाईयों के साथ ही एक दूसरे को बधाई प्रस्तुत कर रहे हैं।
इस मौके पर हम आपकी खिदमत में अपनी पूरी टीम की तरफ से ईद ए बेसत की बहुत सारी बधाई पेश करते हैं।
मैराजे पैग़म्बर
किताबे मुन्तहल आमाल मे बयान किया गया है कि आयाते क़ुराने करीम और अहादीसे मुतावातिरा से साबित होता है कि परवरदिगारे आलम ने रसुले अकरम स.अ.व.व. को मक्का ए मोअज़्ज़मा से मस्जिदे अक़सा और वहा से आसमानो और सिदरतुल मुन्तहा व अर्शे आला की सैर कराई और आसमानो की अजीबो ग़रीब मख़्लुक़ात रसुले अकरम स.अ.व.व. को दिखाई और पोशीदा राज़ो और न तमाम होने वाले मआरिफ आपको अता किये।
रसूले अकरम स.अ.व.व. ने बैते मामूर मे खुदा वंदे आलम की इबादत की और तमाम अंबिया से मुलाक़ात की और जन्नत मे दाखिल हुऐ और अहले बहीश्त की मंज़िलो को देखा।
शिया और सुन्नी दोनो की अहादीसे मुतावातिरा मे आया है की रसूले अकरम स.अ.व.व. की मैराज जिस्मानी थी न कि रुहानी।
किताबे चौदह सितारे मे नजमुल हसन कर्रारवी साहब ने तफसीरे क़ुम्मी के हवाले से नक़ल किया कि बैसत के बारहवे साल मे सत्ताइस रजब को खुदा वंदे आलम ने जिबरईल को भेज कर बुर्राक़ के ज़रीऐ रसूले अकरम स.अ.व.व. को क़ाबा क़ौसेन की मंज़िल पर बुलाया और वहा इमाम अली (अ.स.) की खिलाफतो इमामत के बारे मे हिदायते दीं।
उसुले काफी मे इमाम सादिक़ (अ.स.) से रिवायत है कि जो शख्स भी चार चीज़ो का इंकार करे वो हमारे शियो मे से नही हैः
मैराजे रसूले अकरम स.अ.व.व.
खिलक़ते जन्नतो जहन्नम
क़र्ब मे होने वाले सवाल जवाब
शिफाअत
और इसके बाद इमाम रज़ा (अ.स.) से रिवायत है कि जो भी मैराजे रसूले अकरम स.अ.व.व.
को झूठ मानता है उसने रसूले अकरम स.अ.व.
पैग़म्बर (स) की सीरत के जलते चराग़
1- हमेशा ग़ोर व फ़िक्र करते थे।
2- ज़्यादा तर चुप रहते थे।
3- अच्छे अख़लाक़ के मालिक थे।
4- किसी का भी अपमान नहीं करते थे।
5- दुनिया की मुशकिलात पर कभी ग़ुस्सा नहीं करते थे।
6- अगर किसी का हक़ पामाल होता देखते थे तो जब तक हक़ न मिल जाऐ ग़ुस्सा रहते थे और उन को कोई पहचान नहीं पाता था।
7- इशारा करते समय पूरे हाथ से इशारा करते थे।
8- जब वह खुश होते थे तो पलकों को बन्द कर लिया करते थे।
9- ज़ौर से हसने की जगह आप सिर्फ़ मुसकुराते थे।
10- फ़रमाते थे जो कोई ज़रूरत मन्द मुझ तक नहीं पहुंच सकता तुम उस तक पहुंचो।
11- जिस के पास जितना ईमान होता था रसूल उसका उतना ही ऐहतेराम किया करते थे।
12- लोगों से प्रेम करते थे और उन को कभी अपने आप से दूर नहीं करते थे।
13- हर काम में ऐतेदाल पसन्द थे और कमी और ज़्यादती का परहेज़ करते थे।
14- बिला वजह की बातों से परहेज़ करते थे।
15- ज़िम्मेदारी को अंजाम देने में किसी भी तरह की सुसती नहीं करते थे।
16- रसूल (स.) के नज़दीक सब से अच्छा शख़्स वोह है जो लोगों की भलाई चाहता है।
17- पैग़म्बर (स.) किसी मेहफ़िल, अंजुमन, और जलसे में नहीं बेठते थे जो यादे ख़ुदा से ख़ाली हो।
18- मजलिस में अपने लिये कोई ख़ास जगह मोअय्यन नहीं करते थे।
19- जब किसी मजमे में जाते थे तो ख़ाली जगह ठूंड कर बैठ जाते थे और अपने असहाब को भी हुक्म देते थे कि इस तरह किया करें।
20- जब कोई ज़रूरत मन्द आप के पास आता था तो उसकी ज़रूरत को पूरा करते थे या फिर अपनी बातों से उसको राज़ी कर लेते थे।
21- आप का तर्ज़े अमल इतना अच्छा था कि लोग आपको एक शफ़ीक़ बाप समझते थे और सब लोग उन के नज़दीक एक जैसे थे
22- आप की नशिस्त व बरख़्वास्त बुर्दबारी, शर्म व हया, सच्चाई और अमानत पर होती थी।
23- किसी की बुराई नहीं करते थे और न किसी की ज़्यादा तारीफ़ करते थे।
24- रसूले ख़ुदा (स.) तीन चीज़ों से परहेज़ करते थे झगड़ा, बिला वजह बोलना, बिना ज़रूरत के बात करना।
25- कभी किसी को बुरा भला नहीं कहते थे।
26- लोगों की बुराईयों को तलाश नहीं करते थे।
27- बिना किसी ज़रूरत के गुफ़तगू नहीं करते थे।
28- किसी की बात नहीं काटते थे मगर यह कि ज़रूरत से ज़्यादा हो।
29- बड़े इतमेनान और आराम के साथ क़दम उठाते थे।
30- आप की गुफ़तगू मुख़तसर, जामे और पुर सुकून और मझी हुई होती थी और आप की आवाज़ तमाम लोगों से अच्छी और दिल नशीन होती थी।
31- रसूले ख़ुदा (स.) सब से ज़्यादा बहादुर, और सब से ज़्यादा सख़ी थे।
32- पैग़म्बर (स.) तमाम मुशकिलात में सब्र से काम लिया करते थे।
33- पैग़म्बर (स.) ज़मीर पर बैठ कर ख़ाना ख़ाते थे।
34- अपने हाथों से अपने जूते टांकते और कपड़े सिलते थे।
35- इतना ख़ुदा से डरते थे कि आंसूओं से जानमाज़ भीग जाया करती थी।
36- हर रोज़ सत्तर बार इसतग़फ़ार पढ़ते थे।
37- अपनी ज़िन्दगी का एक लमहा भी बेकार नहीं गुज़ारा।
38- तमाम लोगों के बाद रसूल को ग़ुस्सा आता था और सब से पहले राज़ी होते थे।
39- आप मालदार और फ़क़ीर दोनों से एक ही तरह से मिलते थे और मुसाफ़ेहा (हाथ मिलाते) करते थे और अपने हाथ को दूसरों से पहले नहीं खींचते थे।
40- आप लोगों से मिज़ाह (हसी मज़ाक) फ़रमाते थे ताकि लोगों को ख़ुश कर सकें
इमामे सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमायाः मैं उसको पसन्द नहीं करता कि जिस इंसान को मौत आ जाऐ और वह रसूल (स.) की सीरत पर अमल न करता हो।
पैग़म्बरे इस्लाम की बेसत
वह एक रहस्यमय रात थी। चांद का मंद प्रकाश नूर नामक पर्वत और उसके दक्षिण में स्थित मरूस्थल पर फैला हुआ था। मक्का और उसके आसपास की प्रकृति पर गहरी निद्रा छायी हुई थी। हर ओर आश्चर्य में डालने वाला एक मौन व्याप्त था। उन रहस्यम क्षणों में अचानक एक अनोखा और बिजली जैसा प्रकाश, आसमान में चमका और पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम के सामने क्षतिज पर छा गया। आपको अपने अस्तित्व में एक अजीब सी भावना का आभास हुआ। अचानक एक वैभवशाली अस्तित्व हज़रत मुहम्मद (स) के सामने प्रकट हुआ। पैग़म्बरे इस्लाम आकाश में जिस ओर भी दृष्टि दौड़ाते वह अस्तित्व हर क्षितिज पर दिखायी देता। वह ईश्वरीय दूतों तक ईश्वरीय संदेश वही पहुंचाने वाला फ़रिश्ता, जिबरईल था। जिरईल ने कहाः पढ़िये अपने प्रभु का नाम लेकर। वह प्रभु जिसने आपको और सभी मनुष्यों को पैदा किया। पढ़िये और उसको बड़ाई के साथ याद कीजिए। जिसने आपको पढ़ना सिखाया। अपने प्रभु का नामक लेकर पढ़िये जिसने सृष्टि की रचना की। जिसने मनुष्य को जमे हुए ख़ून से पैदा किया। पढ़िये कि आपका प्रभु सबसे महान है। जिसने क़लम द्वारा शिक्षा दी और मनुष्य को वह सब बताया जो वह नहीं जानता था। हज़रत मुहम्मद (स) ने, जिनका पूरा अस्तित्व ईश्वरीय प्रेम में डूबा हुआ था, उस आसमानी अस्तित्व के साथ पढ़ना आरंभ किया।
एक बार फिर आत्मा में समा जाने वाली आवाज़ वातावरण में गूंजी। हे मोहम्मद, आप ईश्वर के पैग़म्बर हैं और मैं उसका फ़रिश्ता जिबरईल हूं। पैग़म्बरे इस्लाम (स) उन विचित्र क्षणों में, कि जब संसार नींद में डूबा हुआ था, ईश्वर ने मक्के में अमीन अर्थात अमानतदार व ईमानदार के नाम से विख्यात हज़रत मोहम्मद (स) को पैग़म्बरी के महान पद पर सुशोभित कर दिया।
इस महाघटना के पश्चात पैग़म्बरे इस्लाम हेरा नामक गुफा से बाहर निकले। तारे अभी भी झिलमिला रहे थे और पैग़म्बरे इस्लाम (स) के सामने चांद अपने बारीक रूप में छटा बिखेर रहा था और मक्के का वातावरण शांत था। किन्तु यह मौन एक ऐसे आंदोलन की पृष्टठभूमि था जिसने संसार के अस्तित्व में फिर से प्राण डाल दिए। पूरी सृष्टि ईश्वर द्वारा पैग़म्बरे इस्लाम (स) के इस सम्मान पर गुनगुना रही थी। मानो पहाड़, मरुस्थल और जो कुछ आकाश व पृथ्वी पर था सबकुछ धीमे स्वर में कह रहे हों सलाम हो आप पर हे ईश्वर के सर्वश्रेष्ठ बंदे!
पैग़म्बरे इस्लाम (स) सोच-विचार में डूबे धीरे-धीरे क़दम बढ़ा रहे थे। वह अपने घर पहुंचना चाहते थे ताकि थोड़ा आराम करके इस महा-रहस्य को अपनी जीवनसाथी हज़रत ख़दीजा को बताएं। यह सोच कर पैग़म्बरे इस्लाम (स) अपने घर की ओर चल पड़े।
जब हज़रत ख़दीजा ने घर का द्वार खोला तो उन्हें पैग़म्बरे इस्लाम की काली व तेज भरी आखों में विशेष चमक दिखायी दी। उनके दमकते हुए चेहरे का तेज कई गुना हो गया था। हज़रत ख़दीजा समझ गयीं कि कोई घटना घटी है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने थोड़ा आराम करने के पश्चात हज़रत ख़दीजा को वह सब कुछ बताया जिसे उन्होंने देखा था। हज़रत ख़दीजा के मन में एक हलचल मच गयी। उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम (स) से कहाः सलाम हो आप पर हे ईश्वर के पैग़म्बर! ईश्वर की सौगंध! जिसके हाथ में ख़दीजा का प्राण है, यह आपकी सदाचारिता व कठिनाइयां सहन करने का बदला है। इस प्रकार हज़रत ख़दीजा पैग़म्बरे इस्लाम (स) पर सबसे पहले ईमान लायीं।
अंधकार पर प्रकाश के प्रभुत्व व मानवता के पुनर्जीवन के इस दिवस पर एक बार फिर आप सबको हार्दिक बधाइयां।
जिस समय पैग़म्बरे इस्लाम (स) को ईश्वर ने अंतिम ईश्वरीय दूत बनाया उस समय संसार में उहापोह मची हुयी थी। अंधविश्वास व अज्ञानता के अंधकार ने मानवीय मूल्यों को इस प्रकार कुचल दिया था कि उसके चिन्ह दिखायी नहीं पड़ते थे। मनुष्य अपने मौलिक अधिकारों से वंचित था। हेजाज़ अर्थात वर्तमान सउदी अरब के एक बड़े भूभाग में महिला को पिता, पति या बड़े पुत्र की संपति समझा जाता था और वह उसे मीरास के रूप में अपने साथ ले जाता था। मनुष्य को वस्तु समझने का सबसे घृणित रूप, रीति-रिवाजो व धर्म के नाम पर होने वाले समारोहों में दिखायी देता था। कुछ क़बीलों में बेटियों को जीवित क़ब्र में दफ़्न करने का दृष्य बड़ा ही हृदय विदारक होता था। हर बुराई में निर्दयता व नृशंसता मौजूद थी। मनुष्य के सीने में ऐसा कठोर हृदय था कि वह ईश्वर के बजाए पत्थर व सितारों को पूजता था। धरती के दूसरे क्षेत्रों में लोगों की हत्या करना और युवराजों व अपदस्थ राजाओं को अंधा करना राजनैतिक प्रतिस्पर्धियों की एक आम शैली थी। ईश्वर को साकार रूप में देखने की अपनी इच्छा के कारण मनुष्य सूर्य और चंद्रमा, जैसी आसमानी चीज़ों, नाना प्रकार के पशुओं यहां तक कि मनुष्य को पूजने लगा था और इस अंधकार से बुद्धिमत्ता की ओर बढ़ना बहुत कठिन लग रहा था।
हर ओर फैले हुए इस संकटमय वातावरण में पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने सुधार का ध्वज फहराया।
इतिहास में है कि मक्के का एक निवासी कहता हैः मैंने पैग़म्बरे इस्लाम को देखा कि वह लोगों से अनन्य ईश्वर की उपासना के लिए कह रहे थे ताकि उन्हें मोक्ष मिल जाए। किन्तु कुछ लोग उनका मखौल उड़ा रहे थे और कुछ उनपर धूल-मिटटी फेंक रहे थे। कुछ दूसरे उन्हें गालियां दे रहे थे। इसी बीच एक बच्ची जिसके चेहरे से चिंता झलक रही थी, पानी से भरा एक बर्तन लायी। पैग़म्बरे इस्लाम ने अपना हाथ और चेहरा धोया और उस बच्ची से कहाः बेटी! चिंतित न हो! धैर्य रखो! अपने पिता के पराजित होने का भय न रखो। ईश्वर के धर्म की ही विजय होगी।
एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम (स) मस्जिद में लोगों के बीच भाषण देते हुए कह रहे थेः हे लोगो! एक दूसरे के अधिकारों का सम्मान करो। सच बोलो और आपसी फूट से बचो! इस बीच एक गुट ताली बजाने लगा ताकि पैग़म्बरे इस्लाम (स) की आवाज़ लोगों के कानों तक न पहुंचे और उसने मखौल भरे स्वर में पैग़म्बरे इस्लाम से कहाः मोहम्मद! तुम्हारे प्रभु ने और क्या कहा है? कहो, ताकि हम हंसें। किन्तु पैग़म्बरे इस्लाम ने, शत्रु की यातनाओं पर ध्यान दिए बिना, धैर्य व स्नेह भरे मन से अपना हाथ आसमान की ओर उठाया और कहाः हे प्रभु! लोगों का मार्गदर्शन कर। इन्हें मार्ग दिखा! ये लोग अज्ञानी हैं।
वास्तव में मनुष्य का मार्गदर्शन व मोक्ष पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी के दायित्व का मुख्य संदेश है। पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी अज्ञानता, अनेकेश्वरवाद, अंधविश्वास और दूसरों के अधिकारों पर अतिक्रमण रोकने की दिशा में महाक्रांति लायी। इसीलिए बुद्धिजीवी, पैग़म्बरे इस्लाम (स) को मानव जीवन के इतिहास में आध्यात्म, मूल्यों के पालन और सामाजिक जीवन के क्षेत्र में सबसे बड़ी क्रान्ति का आधार मानते हैं। उन्होंने लोक-परलोक, दायित्वबोध, अर्थव्यवस्था और राजनीति, नैतिकता तथा आध्यात्म सहित हर छोटे-बड़े मामलों में मनुष्य के सामने उपाय पेश किए हैं। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने मानवता, न्याय और तर्क के माध्यम से मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ मार्ग दिखाया।
पवित्र क़ुरआन के शब्दों में पैग़म्बरे इस्लाम (स) की पैग़म्बरी ने मनुष्य के सामने नया मार्ग खोला और उसका अत्याचार व अज्ञानता के अंधकार से प्रकाश व मोक्ष की ओर मार्गदर्शन किया। जैसाकि पवित्र क़ुरआन के सूरए अहज़ाब की आयत क्रमांक 43 में ईश्वर कहता हैः वह, वह है जो स्वंय और उसके फ़रिश्ते तुम मोमिनों पर सलाम भेजते हैं ताकि तुम्हें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाएं। इस अंधकार से अभिप्राय हर प्रकार का अंधकार है जिसका प्रभाव पूरे विश्व में, मनुष्य के जीवन में और इतिहास के सभी कालखंडों में दिखाई देता है। जैसे अनेकेश्वरवाद व नास्तिकता का अधंकार, अज्ञानता व अत्याचार का अंधकार, अन्याय व भेदभाव का अधंकार, नैतिकता से दूरी का अधंकार, भाई बंधुओं को मारने का अंधकार और ग़लत सोच का अन्धकार, जो भौतिकता का परिणाम है और जिसमें आज का मनुष्य ग्रस्त हो चुका है।
यह कहना उचित होगा कि आज के समाज को, जो आध्यात्मिक शून्य व बहुत अधिक अनैतिकता में ग्रस्त है, समय के किसी भी कालखंड की तुलना में ईश्वरीय दूतों की शिक्षाओं की बहुत अधिक आवश्यकता है। आज के युग में देशों के पास विगत की तुलना में बेहतर व व्यापक नियम हैं किन्तु अनुभवों ने यह दर्शा दिया है कि मानव द्वारा बनाए गए नियम उसके आत्मिक रोग के निदान के लिए पर्याप्त नहीं हैं। सामाजिक, आर्थिक व सुरक्षा संबंधी परिस्थितियां किसी भी समय की तुलना में इस समय अधिक जटिल हो चुकी हैं और यह सबकुछ वर्चस्ववादी शक्तियों के वर्चस्व की देन है। दूसरी ओर आजके मनुष्य का मानसिक स्तर पैग़म्बरे इस्लाम (स) के संदेश को समझने के लिए अधिक परिपक्व हो चुका है। ज्ञान जितना अधिक विस्तृत होगा इस्लाम का संदेश भी उतना ही फैलता जाएगा और बड़ी शक्तियां मानवीय भावनाओं के दमन और मनुष्य को अपने वश में करने के लिए पाश्विक हथकंडे जितना अधिक अपनाएंगी इस्लाम का प्रकाश उतना ही अधिक चमकेगा और मनुष्य को अपनी आत्मा की तृप्ति के लिए इसकी उतनी ही अधिक आवश्यकता पड़ेगी। आज इस्लाम के संदेश को समझने और अपनाने के लिए मनुष्य में व्याकुलता दिखाई पड़ रही है। वही संदेश जो एकेश्वरवाद, आध्यात्म, न्याय और मानवीय मूल्यों का संदेश है। जैसा कि लोगों विशेषकर वर्तमान समय के लोगों ने अपनी महाक्रान्तियों से यह दर्शा दिया है कि उन्हें आध्यात्म और नैतिकता की आवश्यकता है जो केवल ईश्वरीय दूतों की शिक्षा में ही मिलेगी।
पैग़म्बरे इस्लाम अपनी पैग़म्बरी का उद्देश्य, संसार में नैतिकता को उसके चरम पर पहुंचाना बताते हुए कहा करते थेः मुझे नैतिकता को संपूर्ण चरण तक पहुंचाने के लिए भेजा गया है। यह इस भौतिक संसार की ज़जीर की खोई हुई वह कड़ी है जिसे अंतिम ईश्वरीय दूत मानवता के लिए उपहार में लाया है।
हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व. की बेसत का लक्ष्य
हज़रत रसूल अल्लाह स.अ.की बेसत का सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य न्याय प्रणाली और समानता को स्थापित करना था जैसा कि क़ुरआन फ़रमाता है कि, हम ने अपने पैग़म्बरों को लोगों की हिदायत और उन्हें सही दिशा दिखाने के लिए दलीलों और न्याय प्रणाली के साथ भेजा ता कि लोग न्याय और समानता के उसूलों पर चलें।
आपकी बेसत का सबसे अहम लक्ष्य लोगों को हिदायत का रास्ता दिखाया जाना है, जिस से लोगों को असली सुख, सफ़लता और निजात प्राप्त हो सके।
इंसान नबियों और अल्लाह की ओर से नबियों पर आने वाली ख़बरों के बिना उन सुख, सफ़लता और निजात तक नहीं पहुँत सकता, क्योंकि इंसान की अपनी बुध्दि और ज्ञान उसके जीवन की बहुत सी आवश्यकताओं को तो पूरा कर सकते हैं लेकिन व्यक्तिगत, सामाजिक, आध्यात्मिक, दुनिया और आख़ेरत सुख और सफ़लता और निजात तक नहीं पहुँचा सकते, इसलिए अगर इंसानी बुध्दि और उसके निजी ज्ञान के अलावा इन तक पहुँचने के लिए कोई और रास्ता न हो तो अल्लाह की रचना पर सवाल खड़ा हो जाएगा।
ऊपर दिये गए विश्लेषण के बाद यह परिणाम सामने आता है कि अल्लाह की हिकमत ने इस आवश्यकता को समझते हुए इंसानी बुध्दि और ज्ञान से मज़बूत चीज़ को इंसान के जीवन के सभी क्षेत्र के विकास के लिए रखा, अब इंसान ख़ुद अपने आपको इतना पवित्र कर ले कि उस स्थान तक पहुँच जाए या कुछ दूसरे पवित्र लोगों द्वारा वह फ़ार्मूला हासिल कर ले, और उस सिलसिले का नाम वही (وحی)है,
जिसको अल्लाह ने नबियों से विशेष कर रखा है, नबी सीधे अल्लाह से और बाक़ी सभी नबियों के द्वारा अल्लाह के संदेश को हासिल करते हैं, और वह सारी चीज़ें जो असली सुख, सफ़लता औल निजात के लिए अनिवार्य हैं उन्हें हासिल कर लेते हैं। (आमूज़िशे अक़ाएद, पेज 178)
आपकी बेसत का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण लक्ष्य न्याय प्रणाली और समानता को स्थापित करना था, जैसा कि क़ुर्आन फ़रमाता है कि, हम ने अपने पैग़म्बरों को लोगों की हिदायत और उन्हें सही दिशा दिखाने के लिए दलीलों और न्याय प्रणाली के साथ भेजा ता कि लोग न्याय और समानता के उसूलों पर चलें। (सूरए हदीद, आयत 25)
क्या आप जानते हैं कि, अल्लाह ने नबियों और रसूलों क्या लक्ष्य दे कर भेजा है, क्या बेसत पूजा से रोकें? या बेसत का लक्ष्य यह था कि हर दौर से अन्याय, अत्याचार और जेहालत को हमेशा के लिए उखाड़ कर इंसानी सभ्यता को स्थापित कर सकें? या लक्ष्य यह था कि लोगों को नैतिक सिध्दांत और समाजिक प्रावधानों से परिचित करा सकें जिस से लोग इसी आधार पर अपने जीवन संबंधों को सुधार सकें?
इस सवाल का जवाब इस प्रकार उचित होगा कि ऊपर जो भी कहा गया नबी का लक्ष्य और उद्देश्य इन सब से ऊँचे स्तर का होता है, ऊपर लक्ष्यों का नाम लिया गया है वह नबी के लक्ष्य और उद्देश्य का एक हिस्सा है, और वह लक्ष्य अत्याचार और अन्याय का सफ़ाया कर के व्यक्तिगत और समाजिक क्षेत्र में न्याय प्रणाली की स्थापना है, और हक़ीकत में यह लक्ष्य दूसरे तमाम लक्ष्यों को हासिल करने का बुनियादी ढ़ाँचा और पेड़ है,
बाकी लक्ष्य इसी के टहनी हैं, क्योंकि अल्लाह की इबादत, नैतिक सिध्दांत, समाजिक प्रावधान और इंसानी सभ्यता से दूरी का कारण सही न्याय प्रणाली का न होना है।