
رضوی
यमन के हमलों से इस्राईल को कोई डिफेंस सिस्टम नहीं बचा सकता
यमन जनांदोलन अंसारुल्लाह ने अवैध राष्ट्र इस्राईल पर जवाबी कार्रवाई करते हुए कहा है कि यमन के जवाबी हमलों से बचाने के लिए इस्राईल का कोई डिफेंस सिस्टम काम नहीं करेगा।
अंसारुल्लाह यमन के ख़ुफ़िया विभाग के उप प्रमुख नस्रुद्-दीन अमीर ने कहा कि ज़ायोनी दुश्मन को पता होना चाहिए कि उसकी रक्षा प्रणाली अवैध राष्ट्र को हमारे हमलों से नहीं बचा सकती।
उन्होंने कहा कि मिसाइल हमलों से बचने के लिए ज़ायोनी शासन को गज़्ज़ा मे युद्धविराम स्वीकार करना ही होगा।
गौरतलब है कि इस बयान से कुछ समय पहले ही यमन ने मक़बूज़ा फ़िलिस्तीन पर मिसाइल हमले किए थे, जिसे ज़ायोनी सरकार की रक्षा प्रणाली रोक नहीं सकी। यमनी मिसाइल हमले के बाद, दर्जनों भयभीत ज़ायोनी पनाहगाहों की ओर भाग गए।
चीन ने अमेरिका की 28 कंपनियों पर पाबंदी लगाई
चीन ने अमेरिका की उकसावेपूर्ण हरकतों पर कडा रुख अपनाते हुए अमेरिका की 28 कंपनियों पर पाबंदी लगा दी है। चीन के इस कदम से एक बार फिर अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव बढ़ गया है। चीन ने 28 अमेरिकी कंपनियों पर नए निर्यात नियंत्रण लगाए हैं, जिनमें से 10 कंपनियों को पूरी तरह देश में व्यापार करने पर प्रतिबंधित कर दिया गया है।
इन 28 कंपनियों के समूह में मुख्य रूप से रक्षा ठेकेदार शामिल हैं, जिनमें लॉकहीड मार्टिन और उसकी पांच सहायक कंपनियां, जनरल डायनेमिक्स और उसकी तीन सहायक कंपनियां, रेथियॉन की तीन सहायक कंपनियां, बोइंग की एक सहायक कंपनी और एक दर्जन से अधिक अन्य कंपनियां शामिल हैं।
चीनी कंपनियों को अब इनमें से किसी भी इकाई को “दोहरे उपयोग” वाले सामान – सैन्य और नागरिक दोनों अनुप्रयोगों वाली वस्तुएं – बेचने से प्रतिबंधित कर दिया गया है।
चीनी वाणिज्य मंत्रालय ने कहा कि यह प्रतिबंध “राष्ट्रीय सुरक्षा हितों की रक्षा करने और परमाणु अप्रसार जैसे अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों को पूरा करने के लिए” लगाए गए हैं।
क़ुम अल-मुक़द्देसा में क्रांतिकारी पुस्तक "रेड वर्सेज़" का औपचारिक विमोचन
मौलाना सय्यद शमा मुहम्मद रिज़वी ने वर्तमान विश्व स्थिति पर टिप्पणी करते हुए इस्लामी देशों को पीड़ितों के समर्थन में स्पष्ट और मजबूत रुख अपनाने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि ईरान हमेशा पीड़ितों के साथ खड़ा है और दुश्मनों के प्रलोभनों को विफल करता रहा है। मौलाना ने ईरान के लोगों के प्यार और बलिदान की सराहना करते हुए कहा कि यह देश कभी भी मजलूमों का साथ नहीं छोड़ेगा।
जमीयत अल-मुस्तफा अल-अलामिया और सदा वा सीमा के सहयोग से क़ोम अल-मकदीसा में मदरसा इमाम खुमैनी के ग्रेट हॉल में एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इस कार्यक्रम का उद्देश्य शहीद सरदार कासिम सुलेमानी, शहीद सैयद हाशिम सफीउद्दीन और अन्य शहीदों के लिए प्रार्थना समारोह और क्रांतिकारी आंदोलन को उजागर करना था।
कार्यक्रम का उद्घाटन भाषण लेबनान की प्रतिष्ठित शख्सियत हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लिमीन मोईन मुकीफ ने दिया, जबकि समापन भाषण जमीयत अल-मुस्तफा अल-अलामिया के अध्यक्ष डॉ. अब्बासी ने दिया। इस कार्यक्रम में ईरान के विभिन्न महत्वपूर्ण संस्थानों के प्रमुखों और हस्तियों ने भाग लिया, जबकि 12 विभिन्न देशों के कवियों ने अपने क्रांतिकारी शब्दों के माध्यम से शहीदों को श्रद्धांजलि दी।
कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण मौलाना सैयद शमा मुहम्मद रिज़वी (होज़ा उलमिया अयातुल्ला अमीनिया, भीखपुर, भारत के संस्थापक) की क्रांतिकारी पुस्तक "रेड वर्सेस" का अनुष्ठानिक विमोचन था। इस मौके पर मौलाना ने कहा, "मैं क्रांतिकारी और प्रतिरोध विषयों पर कविताएं लिखता हूं और मेरी इच्छा है कि ये कविताएं अल-अक्सा मस्जिद में पढ़ी जाएं।"
उन्होंने सरदार कासिम सुलेमानी के बलिदान को याद किया और कहा कि उनकी आवाज और बलिदान हमेशा जीवित रहेगा और पीड़ितों के दिलों में लालसा पैदा करेगा। मौलाना ने फ़िलिस्तीनी बच्चों पर हो रहे ज़ुल्म पर भी रोशनी डाली और उनके सपनों और संघर्षों को अपनी शायरी में बयान किया।
मौजूदा विश्व स्थिति पर टिप्पणी करते हुए मौलाना ने इस्लामिक देशों को पीड़ितों के समर्थन में स्पष्ट और मजबूत रुख अपनाने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि ईरान हमेशा पीड़ितों के साथ खड़ा है और दुश्मनों के प्रलोभनों को विफल करता रहा है। मौलाना ने ईरान के लोगों के प्यार और बलिदान की सराहना करते हुए कहा कि यह देश कभी भी मजलूमों का साथ नहीं छोड़ेगा.
कार्यक्रम का समापन प्रार्थना के साथ हुआ और शहीदों को श्रद्धांजलि दी गयी. विद्वानों और कवियों को शॉल पहनाना और उपस्थित लोगों के लिए विशेष व्यवस्था भी कार्यक्रम का हिस्सा थी।
अल्लाह के लिए किया जाने वाला काम बाकी रहता है
गुरुवार को नौचंदी पर बड़ागांव का जुलूस इस साल भी निकला।
जूलूस से पहले मजलिस आयोजित की गई जिसे मौलाना सैयद अली हाशिम आबिदी ने संबोधित किया।
मौलाना सय्यद अली हाशिम आबिदी ने इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ) की हदीस "धर्म 5 चीजों पर आधारित है। नमाज, जकात, रोज़ा, हज और विलायत।" उन्होंने इसे सरनाम कलाम बताते हुए कहा: विलायत के बिना कोई भी कार्य स्वीकार नहीं किया जाता. जिसके पास विलायत नहीं उसके पास धर्म नहीं।
मौलाना ने इमाम मुहम्मद बाकिर (अ) की हदीस जो कुछ अहले-बैत के घर से नहीं निकलता वह अमान्य है।" इसे समझाते हुए उन्होंने कहा: वही ज्ञान और वही धर्म स्वीकार्य है जो अहले-बैत (अ) से प्राप्त किया गया हो। इसलिए, उससे धर्म ले लो जो अहले-बैत (अ) की शिक्षाओं के प्रकाश में समझाता है।
मौलाना सय्यद अली हाशिम आबिदी ने कहा कि अल्लाह की खातिर जो भी काम किया जाता है वह वैसा ही रहता है, इसलिए हर काम में अल्लाह की रजा ही समझनी चाहिए।
बाद में जुलूस निकला, जो अपने निर्धारित मार्गों से होता हुआ सुबह हजरत अब्बास (अ) के शबिया रोजा पर समाप्त हुआ। स्थानीय और विदेशी संगठनों द्वारा शोक व्यक्त किया गया। जुलूस के दौरान मौलाना आरिफ, बड़ागांव के इमाम जुमा मौलाना सय्यद अजमी अब्बास, मौलाना एजाज मोहसिन, मौलाना आरजू आबिदी और मौलाना सैयद शौकत अली रिजवी ने तकरीर की।
अंग्रेजी मीडिया का दावा: रूस में बशर अल-असद को मारने की कोशिश नाकाम
एक अंग्रेजी मीडिया ने दावा किया है कि सीरिया के पूर्व राष्ट्रपति बशर अल-असद को रूस में जहर देकर मारने की कोशिश नाकाम हो गई है।
एक अंग्रेजी मीडिया ने दावा किया है कि सीरिया के पूर्व राष्ट्रपति बशर अल-असद को रूस में जहर देकर मारने की कोशिश नाकाम हो गई है।
पाकिस्तानी जर्नलिज्म की रिपोर्ट के मुताबिक, सन अखबार ने दावा किया है कि रविवार को सीरिया के पूर्व राष्ट्रपति के खिलाफ ये नाकाम कोशिश की गई।
रूस के एक पूर्व शीर्ष जासूस द्वारा चलाए जा रहे एक ऑनलाइन अकाउंट का हवाला देते हुए अखबार ने दावा किया कि असद ने तुरंत चिकित्सा सहायता मांगी क्योंकि उन्हें घुटन महसूस हुई और गंभीर खांसी हुई।
सन अखबार ने दावा किया कि यह मानने का कारण था कि हत्या का प्रयास किया गया था।
इस अंग्रेजी मीडिया के अनुसार, असद का इलाज उनके अपार्टमेंट में किया गया और सोमवार तक उनकी शारीरिक स्थिति स्थिर बनी हुई है।
रिपोर्ट में दावा किया गया है कि परीक्षण से उनके शरीर में विषाक्त पदार्थों की मौजूदगी का पता चला है।
द सन ने कहा कि खबर का हवाला देने वाले सूत्रों का नाम नहीं बताया गया है और रूस ने इसकी पुष्टि नहीं की है।
मीडिया ने बताया कि पूर्व सीरियाई राष्ट्रपति 18 दिसंबर से रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के समर्थन में हैं।
पाकिस्तानी मीडिया के मुताबिक, रविवार 18 दिसंबर की सुबह सीरिया में सशस्त्र विपक्ष ने दमिश्क पर कब्ज़ा कर लिया और उसके बाद सीरियाई सेना की कमान ने एक बयान में बशर अल-असद के शासन के अंत की घोषणा की। सीरिया छोड़ने के बाद, असद और उनका परिवार मास्को चले गए और पुतिन द्वारा उन्हें राजनीतिक शरण दी गई।
हजः संकल्प करना
हज का शाब्दिक अर्थ होता है संकल्प करना। वे लोग जो ईश्वर के घर के दर्शन का संकल्प करते हैं, उनको इस यात्रा की वास्तविकता से अवगत रहना चाहिए और उसको बिना पहचान के संस्कारों को पूरा नहीं करना चाहिए
हज का शाब्दिक अर्थ होता है संकल्प करना। वे लोग जो ईश्वर के घर के दर्शन का संकल्प करते हैं, उनको इस यात्रा की वास्तविकता से अवगत रहना चाहिए और उसको बिना पहचान के संस्कारों को पूरा नहीं करना चाहिए
हज का शाब्दिक अर्थ होता है संकल्प करना। वे लोग जो ईश्वर के घर के दर्शन का संकल्प करते हैं, उनको इस यात्रा की वास्तविकता से अवगत रहना चाहिए और उसको बिना पहचान के संस्कारों को पूरा नहीं करना चाहिए। इसका कारण यह है कि उचित पहचान और परिज्ञान, ईश्वर के घर का दर्शन करने वाले का वास्तविकताओं की ओर मार्गदर्शन करता है जो उसके प्रेम और लगाव में वृद्धि कर सकता है तथा कर्म के स्वाद में भी कई गुना वृद्धि कर सकता है। ईश्वर के घर के दर्शनार्थी जब अपनी नियत को शुद्ध कर लें और हृदय को मायामोह से अलग कर लें तो अब वे विशिष्टता एवं घमण्ड के परिधानों को अपने शरीर से अलग करके मोहरिम होते हैं। मोहरिम का अर्थ होता है बहुत सी वस्तुओं और कार्यों को न करना या उनसे वंचित रहना। लाखों की संख्या में एकेश्वरवादी एक ही प्रकार के सफेद कपड़े पहनकर और सांसारिक संबन्धों को त्यागते हुए मानव समुद्र के रूप में काबे की ओर बढ़ते हैं। यह लोग ईश्वर के निमंत्रण को स्वीकार करने के लिए वहां जा रहे हैं। पवित्र क़ुरआन के सूरए आले इमरान की आयत संख्या ९७ में ईश्वर कहता है कि लोगों पर अल्लाह का हक़ है कि जिसको वहाँ तक पहुँचने का सामर्थ्य प्राप्त हो, वह इस घर का हज करे। एहराम बांधने से पूर्व ग़ुस्ल किया जाता है जो उसकी भूमिका है। इस ग़ुस्ल की वास्तविकता पवित्रता की प्राप्ति है। इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि मोहरिम हो अर्थात दूरी करो हर उस वस्तु से जो तुमको ईश्वर की याद और उसके स्मरण से रोकती है और उसकी उपासना में बाधा बनती है।मोहरिम होने का कार्य मीक़ात नामक स्थान से आरंभ होता है। वे तीर्थ यात्री जो पवित्र नगर मदीना से मक्का जाते हैं वे मदीना के निकट स्थित मस्जिदे शजरा से मुहरिम होते हैं। इस मस्जिद का नाम शजरा रखने का कारण यह है कि इस्लाम के आरंभिक काल में पैग़म्बरे इस्लाम (स) इस स्थान पर एक वृक्ष के नीचे मोहरिम हुआ करते थे। अब ईश्वर का आज्ञाकारी दास अपने पूरे अस्तित्व के साथ ईश्वर का सामिप्य प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ता है। अपने विभिन्न प्रकार के संस्कारों और आश्चर्य चकित करने वाले प्रभावों के साथ हज, लोक-परलोक के बीच एक आंतरिक संपर्क है जो मनुष्य को प्रलय के दिन को समझने के लिए तैयार करता है। हज एसी आध्यात्मिक उपासना है जो परिजनों से विदाई तथा लंबी यात्रा से आरंभ होती है और यह, परलोक की यात्रा पर जाने के समान है। हज यात्री सफ़ेद रंग के वस्त्र धारण करके एकेश्वरवादियों के समूह में प्रविष्ट होता है और हज के संस्कारों को पूरा करते हुए मानो प्रलय के मैदान में उपस्थित है। इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम हज करने वालों को आध्यात्मिक उपदेश देते हुए कहते हैं कि महान ईश्वर ने जिस कार्य को भी अनिवार्य निर्धारित किया और पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने जिन परंपराओं का निर्धारण किया है, वे चाहे हराम हों या हलाल सबके सब मृत्यु और प्रलय के लिए तैयार रहने के उद्देश्य से हैं। इस प्रकार ईश्वर ने इन संस्कारों को निर्धारित करके प्रलय के दृश्य को स्वर्गवासियों के स्वर्ग में प्रवेश और नरक में नरकवासियों के जाने से पूर्व प्रस्तुत किया है। हज करने वाले एक ही प्रकार और एक ही रंग के वस्त्र धारण करके तथा पद, धन-संपत्ति और अन्य प्रकार के सांसारिक बंधनों को तोड़कर अपनी वास्तविकता को उचित ढंग से पहचानने का प्रयास करते हैं अर्थात उन्हें पवित्र एवं आडंबर रहित वातावरण में अपने अस्तित्व की वास्तविकताओं को देखना चाहिए और अपनी त्रुटियों एवं कमियों को समझना चाहिए। ईश्वर के घर का दर्शन करने वाला जब सफेद रंग के साधारण वस्त्र धारण करता है तो उसको ज्ञात होता है कि वह घमण्ड, आत्ममुग्धता, वर्चस्व की भावना तथा इसी प्रकार की अन्य बुराइयों को अपने अस्तित्व से दूर करे। जिस समय से तीर्थयात्री मोहरिम होता है उसी समय से उसे बहुत ही होशियारी से अपनी गतिविधियों और कार्यों के प्रति सतर्क रहना चाहिए क्योंकि उसे कुछ कार्य न करने का आदेश दिया जा चुका है। मानो वह ईश्वर की सत्ता का अपने अस्तित्व में आभास कर रहा है और उसे शैतान के लिए वर्जित क्षेत्र तथा सुरक्षित क्षेत्र घोषित करता है। इस भावना को मनुष्य के भीतर अधिक प्रभावी बनाने के लिए उससे कहा गया है कि वह अपने उस विदित स्वरूप को परिवर्ति करे जो सांसारिक स्थिति को प्रदर्शित करता है और सांसारिक वस्त्रों को त्याग देता है। जो व्यक्ति भी हज करने के उद्देश्य से सफ़ेद कपड़े पहनकर मोहरिम होता है उसे यह सोचना चाहिए कि वह ईश्वर की शरण में है अतः उसे वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जो उसके अनुरूप हो।यही कारण है कि शिब्ली नामक व्यक्ति जब हज करने के पश्चात इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की सेवा में उपस्थित हुआ तो हज की वास्तविकता को स्पष्ट करने के लिए उन्होंने शिब्ली से कुछ प्रश्न पूछे। इमाम सज्जाद अ. ने शिब्ली से पूछा कि क्या तुमने हज कर लिया? शिब्ली ने कहा हां, हे रसूल के पुत्र। इमाम ने पूछा कि क्या तुमने मीक़ात में अपने सिले हुए कपड़ों को उतार कर ग़ुस्ल किया था? शिब्ली ने कहा जी हां। इसपर इमाम ने कहा कि जब तुम मीक़ात पहुंचे तो क्या तुमने यह संकल्प किया था कि तुम पाप के वस्त्रों को अपने शरीर से दूर करोगे और ईश्वर के आज्ञापालन का वस्त्र धारण करोगे? शिब्ली ने कहा नहीं। अपने प्रश्नों को आगे बढ़ाते हुए इमाम ने शिब्ली से पूछा कि जब तुमने सिले हुए कपड़े उतारे तो क्या तुमने यह प्रण किया था कि तुम स्वयं को धोखे, दोग़लेपन तथा अन्य बुराइयों से पवित्र करोगे? शिब्ली ने कहा, नहीं। इमाम ने शिब्ली से पूछा कि हज करने का संकल्प करते समय क्या तुमने यह संकल्प किया था कि ईश्वर के अतिरिक्त हर चीज़ से अलग रहोगे? शिब्ली ने फिर कहा कि नहीं। इमाम ने कहा कि न तो तुमने एहराम बांधा, न तुम पवित्र हुए और न ही तुमने हज का संकल्प किया। एहराम की स्थिति में मनुष्य को जिन कार्यों से रोका गया है वे कार्य आंतरिक इच्छाओं के मुक़ाबले में मनुष्य के प्रतिरोध को सुदृढ़ करते हैं। उदाहरण स्वरूप शिकार पर रोक और पशुओं को क्षति न पहुंचाना, झूठ न बोलना, गाली न देना और लोगों के साथ झगड़े से बचना आदि। यह प्रतिबंध हज करने वाले के लिए वैस तो एक निर्धारित समय तक ही लागू रहते हैं किंतु मानवता के मार्ग में परिपूर्णता की प्राप्ति के लिए यह प्रतिबंध, मनुष्य का पूरे जीवन प्रशिक्षण करते हैं। एहराम की स्थिति में जिन कार्यों से रोका गया है यदि उनके कारणों पर ध्यान दिया जाए तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि पशु-पक्षियों और पर्यावरण की सुरक्षा तथा छोटे-बड़े समस्त प्राणियों का सम्मान, इन आदेशों के लक्ष्यों में से है। इस प्रकार के कार्यों से बचते हुए मनुष्य, प्रशिक्षण के एक एसे चरण को तै करता है जो तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय की प्राप्ति के लिए व्यवहारिक भूमिका प्रशस्त करता है। इन कार्यों में से प्रत्येक, मनुष्य को इस प्रकार से प्रशिक्षित करता है कि वह उसे आंतरिक इच्छाओं के बहकावे से सुरक्षित रखे और अपनी आंतरिक इच्छाओं पर नियंत्रण की शक्ति प्रदान करता है।हज के दौरान जिन कार्यों से रोका गया है वास्तव में वे एसे कार्यों के परिचायक हैं जो तक़वे तक पहुंचने की भूमिका हैं। एहराम बांधकर मनुष्य का यह प्रयास रहता है कि वह एसे वातावरण में प्रविष्ट हो जो उसे ईश्वर के भय रखने वाले व्यक्ति के रूप में बनाए। हज के दौरान “मोहरिम”
हिज़्बुल्लाह; शहीद कासिम सुलेमानी की महान विरासत
इस्लामिक रेवोल्यूशन गार्ड्स कॉर्प्स के कुद्स फोर्स के कमांडर शहीद कासिम सुलेमानी की पांचवीं बरसी ईरान समेत पूरी दुनिया में श्रद्धा और सम्मान के साथ मनाई जा रही है।
इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान के रक्षा मंत्री जनरल अजीज नसीरजादेह ने हज कासिम सुलेमानी की शहादत की पांचवीं सालगिरह के मौके पर सभी शहीदों को श्रद्धांजलि दी और कहा कि की शहादत क़ासिम सुलेमानी इस्लामी गणतंत्र ईरान और इस्लाम की दुनिया के एक महान प्रतीक हैं, अभूतपूर्व बलिदान दें। उनका स्कूल, आशूरा, इस्लाम और क्रांति के स्कूल से अलग नहीं था। ये सभी विद्यालय उत्पीड़न के विरुद्ध संघर्ष, अहंकार के विरुद्ध प्रतिरोध और उत्पीड़ितों की रक्षा के सिद्धांतों पर आधारित हैं।
उन्होंने आगे कहा कि शहीद कासिम सुलेमानी की एक महत्वपूर्ण विशेषता मुस्लिम उम्माह के बीच सार्थक संबंध स्थापित करना था। आईआरजीसी के कुद्स फोर्स के अपने लगभग 22 साल के नेतृत्व के दौरान, वह अफगानिस्तान, इराक, सीरिया और यमन जैसे देशों में इस्लामी एकता के प्रतीक बन गए।
ईरानी रक्षा मंत्री ने शहीद सुलेमानी की विनम्रता, कड़ी मेहनत और ईमानदारी की ओर इशारा करते हुए कहा कि दुश्मन भी उनकी बुद्धिमत्ता, नवीनता और व्यावहारिक क्षमता को पहचानते थे। वह रणनीति को तुरंत क्रियान्वित करने में माहिर थे और हमेशा फुरसत के पल निकाल लेते थे।
अंत में उन्होंने कहा कि शहीद सुलेमानी की सबसे महत्वपूर्ण विरासत हिजबुल्लाह जैसी शक्तियां हैं, जिसे दुनिया के अन्य क्षेत्रों में एक मॉडल के रूप में माना जा रहा है।
सीरिया की नई सरकार में 50 से अधिक विदेशी / क्या बट जाएगा सीरिया?
एक ज़ायोनी मीडिया ने स्वीकार किया कि इज़राइली शासन पश्चिम एशिया में तुर्किए के विस्तारवाद पर अंकुश लगाना चाहता है और सीरिया को कई क्षेत्रों में विभाजित करके क्षेत्र में अपने हितों को सुरक्षित करना चाहता है।
ज़ायोनी समाचार पत्र "येदियेत अहारनोत" ने एलान किया है कि "बश्शार असद" की सरकार को उखाड़ फेंकने के बाद "नए सीरिया" में स्थापित दिखावे की शांति बहुत चिंताजनक है।
ज्यादातर विश्लेषकों का मानना है कि सीरिया जल्द ही आतंकियों का अड्डा बन जाएगा।
इस ज़ायोनी अख़बार का मानना है कि सीरिया में सशस्त्र विपक्ष के नेता "अबू मोहम्मद अल-जुलानी" के दुनिया के संबंध में और निश्चित रूप से इज़राइल के बारे में दिए गये बयानों को, जो हर पल अपना रूप बदलते रहे हैं और धीरे-धीरे एक सैन्य वर्दी से सूट और टाई वाले व्यक्ति में बदल चुके हैं, ग़लत नहीं ठहराया जाना चाहिए और ज़्यादा गंभीरता से नहीं लिया जाना चाहिए।
वहीं राजनीतिक मुद्दों के विश्लेषक "अब्दुर्रहीम अंसारी" ने भी मौजूदा सीरिया को पूरी तरह से मक़बूज़ा देश क़रार दिया है।
एक्स सोशल नेटवर्क पर "अंसारी" ने इस सवाल के जवाब में कहा कि सीरिया पर क़ब्ज़ा होगा या नहीं? उन्होंने लिखा, ''सीरिया पर अभी क़ब्ज़ा है। इस देश की सरकार पर हावी विद्रोहियों का नेता, सीरियाई नहीं कहा जाता है।
इस विश्लेषक ने आगे कहा, इस देश की नई सरकार में 50 से अधिक ग़ैर-सीरियाई लोगों को नियुक्त किया गया है, जिनमें से कुछ को अरबी भी नहीं आती है, ऐसी व्यवस्था नहीं चलेगी।
पश्चिम एशियाई मुद्दों के एक अन्य विशेषज्ञ हुसैन हाजी भी मानते हैं कि सीरिया में स्थिति बहुत नाज़ुक है और सीरिया में मौजूदा संकट ऐसा है कि इसने कई राजनेताओं को भ्रमित कर दिया है।
उनके अनुसार, 40 से अधिक ग्रुप्स, जिनमें से सभी को राजनीतिक हथियारबंदी की उपाधि प्राप्त है, सीरिया में हिस्सेदारी की मांग कर रहे हैं और यह एक दोहरी घटना है।
राजनीतिक मुद्दों के विशेषज्ञ सैफ़ अल-रज़ा शेहाबी ने ज़ोर देकर कहा: अमेरिका और इज़राइल की रणनीतियों में, अरब और इस्लामी देशों को विभाजित करना है, और अब वाशिंगटन और तेल अवीव सीरिया को विभाजित करने के लिए सबसे अच्छी पोज़ीशन में हैं।
सरदार शहीद सुलैमानी की याद हमेशा क़ौमों के दिलों में ज़िंदा रहेगी
आयतुल्लाह दरी नजफ़ाबादी ने शहीद सुलैमानी की पांचवीं बरसी के मौके पर अपने एक संदेश में इस महान शहीद को ज़ुल्म और नाइंसाफी के खिलाफ प्रतिरोध का प्रतीक करार दिया और कहा,उनकी याद हमेशा क़ौमों के दिलों में ज़िंदा रहेगी।
एक रिपोर्ट के अनुसार , सूबा ए मरकज़ी में वली ए फ़क़ीह के नुमाइंदे आयतुल्लाह क़ुरबान अली दरी नजफ़आबादी ने शहीद क़ासिम सुलैमानी की पांचवीं बरसी के मौके पर जारी अपने संदेश में कहा,यह महान शहीद ज़ुल्म और अन्याय के खिलाफ प्रतिरोध की प्रतीक हैं और आधुनिक ईरानी व क्षेत्रीय इतिहास में उनका एक अनोखा स्थान है उनकी याद हमेशा क़ौमों के दिलों में ज़िंदा रहेगी।
आयतुल्लाह दरी नजफ़आबादी ने कहा,पाँच साल गुज़र चुके हैं जब इस बहादुर फ़ौजी सिपाह-ए-कुद्स के मशहूर कमांडर शहीद क़ासिम सुलैमानी को शहीद किया गया।
वैश्विक अहंकार और स्वतंत्रता-प्रेमी क़ौमों के खूंखार दुश्मन, जिनकी अगुवाई शैतानी राज्य आतंकवाद और आपराधिक यहूदीवाद कर रहे थे ने हमारे अज़ीज़ सालार और उनके साथी मुजाहिदीन के खून को बहाकर दुनिया को अपनी असली सूरत दिखा दी।
लेकिन वे यह नहीं जानते थे कि जैसे 61 हिजरी में कर्बला के शहीदों के पवित्र खून ने इस्लाम को और ज़िंदा कर दिया था वैसा ही यहां भी है।
उन्होंने कहा,सालार सुलैमानी तमाम पीढ़ियों के लिए एक बेहतरीन आदर्श हैं वे निस्संदेह इस्लामी क्रांति और रक्षा आंदोलन के अग्रणी नेताओं में से एक थे।
आयतुल्लाह दरी नजफ़आबादी ने कहा,रहबर-ए-मुअज़्ज़म ने शहीद सुलैमानी की शहादत के मौके पर अपने संदेश में उन्हें इस्लाम के प्रशिक्षित और इमाम ख़ुमैनी रह. के मक़तब के शिष्य कहा उनके आचरण, व्यवहार और जीवन के हर पहलू में इस मक़तब की झलक साफ़ देखी जा सकती है।
समाज के सभी लोग इस्लामी प्रतिरोध को पुनर्जीवित करने की दिशा में कदम बढ़ाएं
हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा मक़ारिम शीराज़ी ने विश्व प्रतिरोध दिवस के अवसर पर अपने बयान में कहा कि हमें हर हाल में इस्लामी प्रतिरोध को पुनर्जीवित करने के लिए प्रयास करना चाहिए।
एक रिपोर्ट के अनुसार , आयतुल्लाहुल उज़मा नासिर मक़ारिम शीराज़ी ने विश्व प्रतिरोध दिवस के अवसर पर अपने बयान में कहा कि चाहे हम धर्म के अनुयायी हों या केवल दुनियावी मामलों में रुचि रखने वाले इस्लाम के समर्थक हों या केवल राष्ट्र और जाति के प्रेमी राजनेता हों या धर्मगुरु हर स्थिति में इस्लामी प्रतिरोध के पुनर्जीवन के लिए प्रयास करना चाहिए।
उन्होंने आगे कहा कि अल्लाह तआला ही सच्ची उम्मीद का स्रोत और इंसान की स्थिरता और प्रतिरोध का मूल केंद्र है इसी कारण हमें हर क्षेत्र में अल्लाह पर भरोसा करते हुए इस्लामी प्रतिरोध को मजबूत करने के लिए संघर्ष करना चाहिए।