
رضوی
मक्का; अत्यधिक गर्मी के कारण कई हाजीयो का स्वर्गवास
मक्का के सबसे बड़े अल-मसीम शवगृह में 550 शव लाए गए, जिनमें से सभी की अत्यधिक गर्मी के कारण मृत्यु हो गई।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी ने अंतरराष्ट्रीय मीडिया के हवाले से बताया कि सऊदी अधिकारियों का कहना है कि अत्यधिक गर्मी के कारण बीमार पड़े 2,000 हाजीयो का विभिन्न अस्पतालों में इलाज किया जा रहा है, जिससे मरने वाले हाजीयो की संख्या बढ़ने की आशंका है।
मक्का; अत्यधिक गर्मी के कारण कई हाजीयो का स्वर्गवास
अंतरराष्ट्रीय समाचार संस्था "एएफपी" ने दावा किया है कि मृत हाजीयो की संख्या में बढ़ोतरी हुई है और कुल संख्या अब 577 हो गई है।
यह याद रखना चाहिए कि पिछले वर्ष हज के दौरान गर्म मौसम के कारण 240 हाजीयो, जिनमें से अधिकांश इंडोनेशियाई नागरिक थे, की मृत्यु की पुष्टि की गई थी।
पिछले महीने प्रकाशित एक सऊदी शोध रिपोर्ट के अनुसार, अत्यधिक गर्म मौसम और जलवायु परिवर्तन से बड़ी संख्या में तीर्थयात्रियों के प्रभावित होने की संभावना है और तापमान 50 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो सकता है।
यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि सऊदी अरब के अधिकारियों ने हाजीयो को दिन के सबसे गर्म घंटों के दौरान छाते का उपयोग करने, खूब पानी पीने और धूप के संपर्क में आने से बचने की सलाह दी है।
सऊदी हज और उमरा मंत्रालय के अनुसार, इस वर्ष लगभग 1.8 मिलियन भाग्यशाली हाजीयो ने हज किया, जिनमें से 1.6 मिलियन विदेश से आए तीर्थयात्री थे।
मक्का की तेज़ गर्मी के बीच खराब व्यवस्था ने ली सैंकड़ों हाजियों की जान
हज के दौरान सऊदी अरब और खास कर मक्का में हो रही मौतों में गर्मी से ज़्यादा खराब व्यवस्था हाजियों की जान ले रही है। इस साल हज के दौरान गर्मी के अलावा अव्यवस्था का सामना भी हज यात्रियों ने किया है। इससे स्थिति और ज्यादा खराब हो गई। बड़ी संख्या में भारतीयों ने भारतीय हज समिति (एचसीआई) के अधिकारियों द्वारा कुप्रबंधन की शिकायत की है। शिकायत में शिविरों में साफ-सफाई की कमी, अपर्याप्त भोजन और मीना में टेंट सिटी में भीड़भाड़ शामिल है।
हाजियों ने शिविरों की खराब स्थितियों के बारे में शिकायत करने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया। तेलंगाना के एक तीर्थयात्री ने सोशल मीडिया पर वीडियो शेयर करते हुए लिखा कि हमारे साथ भिखारियों से भी बदतर व्यवहार किया गया।
हाजियों ने कहा कि भारतीय शिविर भीड़भाड़ वाले और गंदे थे और सऊदी अरब में एचसीआई के अधिकारी मददगार नहीं थे। मुंबई स्थित हज तीर्थयात्री सामाजिक न्याय समूह के शम्स चौधरी ने कहा कि ऐसी रिपोर्ट हैं कि जिस तंबू 80 से 100 तीर्थयात्रियों को रहना था, उसमें 200 तकर हाजियों को रखा गया।
चौधरी ने कहा कि आप इसके लिए हज समिति और सरकार को दोषी ठहरा सकते हैं। ऐसी परेशानी केवल भारतीयों को ही नहीं हुई बल्कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और तुर्की के तीर्थयात्रियों को भी इसी तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
पुतिन की उत्तर कोरिया यात्रा ने उड़ाई दुश्मनों की नींद सर्वे में चौंकाने वाला खुलासा
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के उत्तर कोरिया दौरे से पश्चिमी देशों की नींद उड़ी हुई है। बुधवार तड़के उत्तर कोरिया पहुंचे पुतिन का कोरियाई नेता किम जोंग ने बेहद गर्मजोशी से स्वागत किया।
बता दें कि पुतिन के उत्तर कोरियाई दौरे को रूस और पश्चिमी देशों के बीच बढ़ते टकराव के रूप में देखा जा रहा है। इस बीच iTV नेटवर्क ने व्लादिमीर पुतिन के उत्तर कोरिया दौरे को लेकर एक सर्वे किया है। इस सर्वे के नतीजे चौंकाने वाले रहे। सर्वे में पूछा गया कि क्या
क्या पुतिन-किम की मुलाक़ात पश्चिमी देशों के लिए एक बड़ा ख़तरा है?
जिसका जवाब 48% लोगों ने हाँ में दिए जबकि 40% लोगों ने इस का नकारात्मक जवाब दिया जबकि 12% का कहना था कि कुछ कह नहीं सकते।
क्या किम जोंग का मक़सद हथियारों के बदले पुतिन से परमाणु तकनीक हासिल करना है? इस के जवाब में 58% ने हाँ, 26% ने ना और 16% ने कहा कि कुछ कह नहीं सकते।
अमेरिका रूस तनाव पर विश्व युद्ध के संभावित खतरे पर - 61% लोगों ने सहमति जताई जबकि 34 % लोगों ने ऐसी किसी भी संभावना का इंकार किया।
दिल्ली-एनसीआर पर गर्मी का कहर 24 घंटे में 50 लोगों की मौत
दिल्ली-एनसीआर में गर्मी ने हाहाकर मचा रखा है। दिल्ली के कुछ क्षेत्रों में तो कुछ लोग लू की चपेट में आ गए हैं, और कई लोगों के लिए यह गर्मी जानलेवा साबित हो रही है।
राजधानी दिल्ली में गर्मी कहर बरपा रही है। इतना ही नहीं अस्पतालों में गर्मी की चपेट में आए लोगों की संख्या दिन पर दिन बढ़ती जा रही है।
गर्मी के कारण पिछले 24 घंटे में गौतमबुद्ध नगर के कुछ स्थानों पर अबतक कुल 14 लोगों की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो चुकी है। इसमें से मरने वाले 14 लोगों में से 6 से 7 लोगों के शव ऐसे भी हैं जिनकी पहचान अभी तक नहीं हो पाई है।
गर्मी से बेहाल हाजी अब तक 900 से अधिक की मौत 1400 लापता
सऊदी अरब में जारी आमाले हज के दौरान गर्मी और हीट स्ट्रोक के साथ साथ सऊदी अरब की ओर से किये गए घटिया इंतेज़ाम के कारण हाजियों की जान पर बन आयी है।
यहां मक्का-मदीना पहुंच रहे हज यात्रियों की मौत की संख्या लगातार बढ़ रही है। एएफपी की रिपोर्ट के अनुसार, लू और हीटस्ट्रोक के कारण मरने वालों की संख्या 900 पार कर गई है और 1400 हज यात्री लापता हैं। अरब अधिकारियों के मुताबिक, लू से मरने वालों में 600 अकेले मिस्रवासी हैं, जबकि 90 भारतीय हज यात्रियों की भी मौत हो गई है।
आले सऊद के घटिया प्रबंध के साथ साथ सऊदी अरब की भीषण गर्मी हाजियों के लिए बड़ी मुश्किल बनी है। गर्मी की वजह से हुई बीमारियों से अब तक 900 हाजियों की मौतें सऊदी अरब में हो चुकी हैं, इनमें भारत के भी 90 लोग शामिल हैं। हज की रस्मों के दौरान लापता हो गए हाजियों को ढूंढ़ने में भी उनके परिजनों को काफी मुश्किल आ रही है। लापता हज यात्रियों के परिजन अस्पतालों में अपने लोगों को ढूंढ़ रहे हैं। मक्का में तापमान 51.8C तक पहुंच जाने की वजह से यहां सबसे ज्यादा मौतें हुई हैं। इस साल हज में करीब 18 लाख लोग शामिल हुए।
कनाडा ने आईआरजीसी को आतंकवादी संगठन घोषित किया
कनाडा ने एक बार फिर ईरान विरोध में क़दम उठाते हुए इस देश के शक्तिशाली सशस्त्र बल आईआरजीसी को आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया है।
ईरान के सशस्त्र बलों की एक शाखा, ईरान इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कोर (आईआरजीसी) को आतंकवादी संगठन घोषित करते हुए कनाडा के सार्वजनिक सुरक्षा मंत्री डोमिनिक लेब्लांक ने कहा कि उनका देश आईआरजीसी की आतंकवादी गतिविधियों से निपटने की पूरी कोशिश करेगा। कनाडा में शीर्ष आईआरजीसी सदस्यों सहित ईरानी अधिकारियों का प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया गया है।
ईरान की इस्लामी क्रांति ने दुनिया में जागरूकता पैदा की
जामिया अल मुदर्रिसीन क़ुम के मेंबर आयतुल्लाह मोहम्मद फ़ाज़िल लंकरानी ने कहा कि ईरान का इस्लामी इंक़ेलाब दूसरी अन्य घटनाओं की तरह नहीं थी कि जो गुज़रते वक़्त के साथ भुला दी जाए बल्कि, सबूत बताते हैं कि इस्लामी क्रांति मानवता के लिए अल्लाह का एक विशेष उपहार थी, जो ईरान में हुई।
इस क्रांति ने पहले देश में बाहरी और अन्य शक्तियों के हस्तक्षेप को कम किया और आज ईरान राजनैतिक रूप से सक्षम और आत्मनिर्भर है। उन्होंने कहा कि ईरान की इस्लामी क्रांति ने पूरी दुनिया में एक सामान्य जागरूकता और बेदारी फैला दी है। आयतुल्लाह फ़ाज़िल लंकारानी ने कहा कि आज हम इस्राईल का पतन और अमेरिका की महाशक्ति को पतन की ओर जाते देख रहे हैं, और विश्व समुदाय इन घटनाओं से अनभिज्ञ नहीं रह सकता।
आयतुल्लाह ख़ामेनेई की लीडरशिप की तारीफ करते हुए उन्होंने कहा कि इस्लामी क्रांति के आधार स्तंभों को मुजाहेदीन की क़ुर्बानियों, शहीदों के पाक लहू और लोगों की मैदान में उपस्थिति के बिना हासिल नहीं किया जा सकता था।
आयतुल्लाह फ़ाज़िल लंकारानी ने कहा कि अल्लाह उस वक़्त तक किसी भी क़ौम की हालत नहीं बदलता जब तक वह खुद अपनी हालत बदलने के लिए कोई अमली और क़दम न उठाए। यह अल्लाह की सुन्नत है कि सामाजिक नियति का परिवर्तन इंसान के अपने हाथों से होता है, और इसलिए, यदि हम एक नेक और ईमानदार सरकार की तलाश करते हैं, तो अल्लाह भी हमें वैसा ही फल देगा। उन्होंने कहा कि यह इस्लामी क्रांति एक नेमत है जिसे हिफाज़त से आने वाली नस्लों के सुपुर्द करना है।
अमेरिका से हथियार मिलने में देरी बौखलाए नेतन्याहू ने बाइडन को आंखें दिखाई
ग़ज़्ज़ा में जनसंहार कर रहा अवैध राष्ट्र इस्राईल हथियारों की आपूर्ति में हो रही देरी की वजह से बौखलाया हुआ है। बताया जा रहा है कि ज़ायोनी प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन से नाराज है। नेतन्याहू ने बाइडन प्रशासन पर इस्राईल को गोलाबारूद और हथियार मुहैया नहीं कराने का आरोप लगाया है। नेतन्याहू ने अमेरिका को अपना सबसे करीबी दोस्त तो बताया साथ में ये शिकायत भी की है कि पिछले कुछ महीने से बाइडन प्रशासन हथियार देने में देरी कर रहा है, जो अवैध राष्ट्र के लिए हैरान करने वाला है।
बता दें कि पिछले साल अक्टूबर में हमास ने दशकों से चले आ रहे दमन और हर दिन हो रहे हमलों और क़त्ल के जवाब में इस्राईल पर ज़बरदस्त हमला किया था जिसके बाद ज़ायोनी सेना फिलिस्तीन में लगातार जनसंहार में लगी हुई है और अब तक 38 हजार फिलिस्तीनी नागरिकों का क़त्ले आम कर चुकी है।
हजः संकल्प करना-7
हज का शाब्दिक अर्थ होता है संकल्प करना। वे लोग जो ईश्वर के घर के दर्शन का संकल्प करते हैं, उनको इस यात्रा की वास्तविकता से अवगत रहना चाहिए और उसको बिना पहचान के संस्कारों को पूरा नहीं करना चाहिए.............
हज का शाब्दिक अर्थ होता है संकल्प करना। वे लोग जो ईश्वर के घर के दर्शन का संकल्प करते हैं, उनको इस यात्रा की वास्तविकता से अवगत रहना चाहिए और उसको बिना पहचान के संस्कारों को पूरा नहीं करना चाहिए.............
हज का शाब्दिक अर्थ होता है संकल्प करना। वे लोग जो ईश्वर के घर के दर्शन का संकल्प करते हैं, उनको इस यात्रा की वास्तविकता से अवगत रहना चाहिए और उसको बिना पहचान के संस्कारों को पूरा नहीं करना चाहिए। इसका कारण यह है कि उचित पहचान और परिज्ञान, ईश्वर के घर का दर्शन करने वाले का वास्तविकताओं की ओर मार्गदर्शन करता है जो उसके प्रेम और लगाव में वृद्धि कर सकता है तथा कर्म के स्वाद में भी कई गुना वृद्धि कर सकता है। ईश्वर के घर के दर्शनार्थी जब अपनी नियत को शुद्ध कर लें और हृदय को मायामोह से अलग कर लें तो अब वे विशिष्टता एवं घमण्ड के परिधानों को अपने शरीर से अलग करके मोहरिम होते हैं। मोहरिम का अर्थ होता है बहुत सी वस्तुओं और कार्यों को न करना या उनसे वंचित रहना। लाखों की संख्या में एकेश्वरवादी एक ही प्रकार के सफेद कपड़े पहनकर और सांसारिक संबन्धों को त्यागते हुए मानव समुद्र के रूप में काबे की ओर बढ़ते हैं। यह लोग ईश्वर के निमंत्रण को स्वीकार करने के लिए वहां जा रहे हैं। पवित्र क़ुरआन के सूरए आले इमरान की आयत संख्या ९७ में ईश्वर कहता है कि लोगों पर अल्लाह का हक़ है कि जिसको वहाँ तक पहुँचने का सामर्थ्य प्राप्त हो, वह इस घर का हज करे। एहराम बांधने से पूर्व ग़ुस्ल किया जाता है जो उसकी भूमिका है। इस ग़ुस्ल की वास्तविकता पवित्रता की प्राप्ति है। इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि मोहरिम हो अर्थात दूरी करो हर उस वस्तु से जो तुमको ईश्वर की याद और उसके स्मरण से रोकती है और उसकी उपासना में बाधा बनती है।मोहरिम होने का कार्य मीक़ात नामक स्थान से आरंभ होता है। वे तीर्थ यात्री जो पवित्र नगर मदीना से मक्का जाते हैं वे मदीना के निकट स्थित मस्जिदे शजरा से मुहरिम होते हैं। इस मस्जिद का नाम शजरा रखने का कारण यह है कि इस्लाम के आरंभिक काल में पैग़म्बरे इस्लाम (स) इस स्थान पर एक वृक्ष के नीचे मोहरिम हुआ करते थे। अब ईश्वर का आज्ञाकारी दास अपने पूरे अस्तित्व के साथ ईश्वर का सामिप्य प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ता है। अपने विभिन्न प्रकार के संस्कारों और आश्चर्य चकित करने वाले प्रभावों के साथ हज, लोक-परलोक के बीच एक आंतरिक संपर्क है जो मनुष्य को प्रलय के दिन को समझने के लिए तैयार करता है। हज एसी आध्यात्मिक उपासना है जो परिजनों से विदाई तथा लंबी यात्रा से आरंभ होती है और यह, परलोक की यात्रा पर जाने के समान है। हज यात्री सफ़ेद रंग के वस्त्र धारण करके एकेश्वरवादियों के समूह में प्रविष्ट होता है और हज के संस्कारों को पूरा करते हुए मानो प्रलय के मैदान में उपस्थित है। इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम हज करने वालों को आध्यात्मिक उपदेश देते हुए कहते हैं कि महान ईश्वर ने जिस कार्य को भी अनिवार्य निर्धारित किया और पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने जिन परंपराओं का निर्धारण किया है, वे चाहे हराम हों या हलाल सबके सब मृत्यु और प्रलय के लिए तैयार रहने के उद्देश्य से हैं। इस प्रकार ईश्वर ने इन संस्कारों को निर्धारित करके प्रलय के दृश्य को स्वर्गवासियों के स्वर्ग में प्रवेश और नरक में नरकवासियों के जाने से पूर्व प्रस्तुत किया है। हज करने वाले एक ही प्रकार और एक ही रंग के वस्त्र धारण करके तथा पद, धन-संपत्ति और अन्य प्रकार के सांसारिक बंधनों को तोड़कर अपनी वास्तविकता को उचित ढंग से पहचानने का प्रयास करते हैं अर्थात उन्हें पवित्र एवं आडंबर रहित वातावरण में अपने अस्तित्व की वास्तविकताओं को देखना चाहिए और अपनी त्रुटियों एवं कमियों को समझना चाहिए। ईश्वर के घर का दर्शन करने वाला जब सफेद रंग के साधारण वस्त्र धारण करता है तो उसको ज्ञात होता है कि वह घमण्ड, आत्ममुग्धता, वर्चस्व की भावना तथा इसी प्रकार की अन्य बुराइयों को अपने अस्तित्व से दूर करे। जिस समय से तीर्थयात्री मोहरिम होता है उसी समय से उसे बहुत ही होशियारी से अपनी गतिविधियों और कार्यों के प्रति सतर्क रहना चाहिए क्योंकि उसे कुछ कार्य न करने का आदेश दिया जा चुका है। मानो वह ईश्वर की सत्ता का अपने अस्तित्व में आभास कर रहा है और उसे शैतान के लिए वर्जित क्षेत्र तथा सुरक्षित क्षेत्र घोषित करता है। इस भावना को मनुष्य के भीतर अधिक प्रभावी बनाने के लिए उससे कहा गया है कि वह अपने उस विदित स्वरूप को परिवर्ति करे जो सांसारिक स्थिति को प्रदर्शित करता है और सांसारिक वस्त्रों को त्याग देता है। जो व्यक्ति भी हज करने के उद्देश्य से सफ़ेद कपड़े पहनकर मोहरिम होता है उसे यह सोचना चाहिए कि वह ईश्वर की शरण में है अतः उसे वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जो उसके अनुरूप हो।यही कारण है कि शिब्ली नामक व्यक्ति जब हज करने के पश्चात इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की सेवा में उपस्थित हुआ तो हज की वास्तविकता को स्पष्ट करने के लिए उन्होंने शिब्ली से कुछ प्रश्न पूछे। इमाम सज्जाद अ. ने शिब्ली से पूछा कि क्या तुमने हज कर लिया? शिब्ली ने कहा हां, हे रसूल के पुत्र। इमाम ने पूछा कि क्या तुमने मीक़ात में अपने सिले हुए कपड़ों को उतार कर ग़ुस्ल किया था? शिब्ली ने कहा जी हां। इसपर इमाम ने कहा कि जब तुम मीक़ात पहुंचे तो क्या तुमने यह संकल्प किया था कि तुम पाप के वस्त्रों को अपने शरीर से दूर करोगे और ईश्वर के आज्ञापालन का वस्त्र धारण करोगे? शिब्ली ने कहा नहीं। अपने प्रश्नों को आगे बढ़ाते हुए इमाम ने शिब्ली से पूछा कि जब तुमने सिले हुए कपड़े उतारे तो क्या तुमने यह प्रण किया था कि तुम स्वयं को धोखे, दोग़लेपन तथा अन्य बुराइयों से पवित्र करोगे? शिब्ली ने कहा, नहीं। इमाम ने शिब्ली से पूछा कि हज करने का संकल्प करते समय क्या तुमने यह संकल्प किया था कि ईश्वर के अतिरिक्त हर चीज़ से अलग रहोगे? शिब्ली ने फिर कहा कि नहीं। इमाम ने कहा कि न तो तुमने एहराम बांधा, न तुम पवित्र हुए और न ही तुमने हज का संकल्प किया। एहराम की स्थिति में मनुष्य को जिन कार्यों से रोका गया है वे कार्य आंतरिक इच्छाओं के मुक़ाबले में मनुष्य के प्रतिरोध को सुदृढ़ करते हैं। उदाहरण स्वरूप शिकार पर रोक और पशुओं को क्षति न पहुंचाना, झूठ न बोलना, गाली न देना और लोगों के साथ झगड़े से बचना आदि। यह प्रतिबंध हज करने वाले के लिए वैस तो एक निर्धारित समय तक ही लागू रहते हैं किंतु मानवता के मार्ग में परिपूर्णता की प्राप्ति के लिए यह प्रतिबंध, मनुष्य का पूरे जीवन प्रशिक्षण करते हैं। एहराम की स्थिति में जिन कार्यों से रोका गया है यदि उनके कारणों पर ध्यान दिया जाए तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि पशु-पक्षियों और पर्यावरण की सुरक्षा तथा छोटे-बड़े समस्त प्राणियों का सम्मान, इन आदेशों के लक्ष्यों में से है। इस प्रकार के कार्यों से बचते हुए मनुष्य, प्रशिक्षण के एक एसे चरण को तै करता है जो तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय की प्राप्ति के लिए व्यवहारिक भूमिका प्रशस्त करता है। इन कार्यों में से प्रत्येक, मनुष्य को इस प्रकार से प्रशिक्षित करता है कि वह उसे आंतरिक इच्छाओं के बहकावे से सुरक्षित रखे और अपनी आंतरिक इच्छाओं पर नियंत्रण की शक्ति प्रदान करता है।हज के दौरान जिन कार्यों से रोका गया है वास्तव में वे एसे कार्यों के परिचायक हैं जो तक़वे तक पहुंचने की भूमिका हैं। एहराम बांधकर मनुष्य का यह प्रयास रहता है कि वह एसे वातावरण में प्रविष्ट हो जो उसे ईश्वर के भय रखने वाले व्यक्ति के रूप में बनाए। हज के दौरान “मोहरिम”
हज,इस्लाम की पहचान- 6
जिस तरह से ईश्वरीय धर्म इस्लाम ने मनुष्य के आत्मिक और आध्यात्मिक आदि पहलुओं पर भरपूर ध्यान दिया है, हज में इस व्यापकता को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है जिस तरह से ईश्वरीय धर्म इस्लाम ने मनुष्य के आत्मिक और आध्यात्मिक आदि पहलुओं पर भरपूर ध्यान दिया है, हज में इस व्यापकता को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। हज इस्लाम की एक पहचान है और वह धर्म के सामाजिक, राजनीतिक और आस्था संबंधी आयाम के बड़े
जिस तरह से ईश्वरीय धर्म इस्लाम ने मनुष्य के आत्मिक और आध्यात्मिक आदि पहलुओं पर भरपूर ध्यान दिया है, हज में इस व्यापकता को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है
जिस तरह से ईश्वरीय धर्म इस्लाम ने मनुष्य के आत्मिक और आध्यात्मिक आदि पहलुओं पर भरपूर ध्यान दिया है, हज में इस व्यापकता को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। हज इस्लाम की एक पहचान है और वह धर्म के सामाजिक, राजनीतिक और आस्था संबंधी आयाम के बड़े भाग को प्रतिबिम्बित करता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम का कथन है कि हज इस्लाम की पताका है। ज़िलहिज्जा का महीना वहि अर्थात ईश्वरीय संदेश उतरने की भूमि में महान ईश्वर पर आस्था रखने वालों के महासम्मेलन का महीना है। आज इस महीने का पहला दिन है। इस महान महीने की पहली तारीख को हम अपने हृदयों को वहि की मेज़बान भूमि की ओर ले चलते है तथा महान ईश्वर के प्रेम व श्रद्धा में डूबे लाखों व्यक्तियों की आवाज़ से आवाज़ मिलाते हैं जो हज के संस्कारों में भाग लेने की तैयारी कर रहे हैं, लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैकहे ईश्वर हमने तेरे निमंत्रण को स्वीकार किया। यह पावन ध्वनि ईश्वरीय उपासना और प्रेम की वास्तविकता की सूचक है जो ईश्वर के घर का दर्शन करने वालों की ज़बान पर जारी है। हज उपासना एवं बंदगी व्यक्त करने का एक अन्य अवसर है और उससे ऐसी महानता प्रदर्शित व प्रकट होती है जिसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। इस महानता को समझने के लिए हज के आध्यात्मिक महासम्मेलन में उपस्थित होकर उपासना के लिए माथे को ज़मीन पर रख देना चाहिये। अब विश्व के कोने कोने से हज़ारों मनुष्य काबे की ओर जा रहे हैं। वास्तव में कौन धर्म और पंथ है जो इस प्रकार मनुष्यों को उत्साह के साथ एक स्थान पर एकत्रित कर सकता है। इस का कारण इसके अतिरिक्त कुछ और नहीं है कि महान ईश्वरीय धर्म इस्लाम लोगों के हृदयों पर शासन कर रहा है और यह इस धर्म की विशेषता है जो श्रृद्धालुओं को इस तरह काबे की ओर ले जा रहा है जैसे प्यासा व्यक्ति पानी के सोते की ओर जाता है। काबे के समीप लाखों मुसलमानों के एकत्रित होने से पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम के जीवन के कुछ भागों की याद ताज़ा हो जाती है। पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने जीवन के अंतिम हज में मुसलमानों को भाई चारे और एकता का आह्वान किया तथा एक दूसरे के अधिकारों का हनन करने से मना किया और कहा हे लोगो! मेरी बात सुनो शायद इसके बाद मैं तुमसे इस स्थान पर भेंट न करूं। हे लोगों! तुम्हारा जीवन और धन एक दूसरे के लिए आज के दिन और इस महीने की भांति उस समय तक सम्मानीय हैं जब तुम ईश्वर से भेंट करोगे और उन पर हर प्रकार का अतिक्रमण हराम है। अब मुसलमानों के विभिन्न गुट व दल इस्लामी जगत के प्रतिनिधित्व के रूप में सऊदी अरब के पवित्र नगर मक्का और मदीना गये हैं ताकि इस्लामी इतिहास की निर्णायक एवं महत्वपूर्ण घटनाओं की याद ताजा करें। पैग़म्बरे इस्लाम की अनुशंसाओं को याद करें और एक दूसरे के साथ भाई चारे व समरसता के साथ उपासना की घाटी में क़दम रखें। विशेषकर इस वर्ष कि जब इस्लामी जागरुकता व चेतना तथा मुसलमानों की पहचान की रक्षा, बहुत महत्वपूर्ण विषय हो गई है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि इस्लामी जागरुकता हज के मौसम में मुसलमानों के एक स्थान पर एकत्रित होने का एक प्रतिफल है। इस आधार पर इस्लामी जागरुकता को मज़बूत करने के लिए हज का मौसम एक मूल्यवान अवसर है जो विभिन्न धर्मों व सम्प्रदायों के लोगों के मध्य एकता व वैचारिक समरसता से व्यवहारिक होगा। इस्लाम एक परिपूर्ण धर्म के रूप में मनुष्य की समस्त आवश्यकताओं पर ध्यान देता है और वह मनुष्य की समस्त प्राकृतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाला है। इस्लाम ने मनुष्य के अस्तित्व की पूर्ण पहचान के कारण महान ईश्वर ,मनुष्य और मनुष्यों के एक दूसरे के साथ संबंध के बारे में विशेष व्यवहार व क़ानून निर्धारित किया है। हज और उसके संस्कार इसी कार्यक्रम में से हैं जो मनुष्य की प्रगति व विकास में प्रभावी हो सकता है। जिस प्रकार धर्म ने मनुष्य के आध्यात्म एवं चरित्र आदि जैसे पहलुओं पर ध्यान दिया है हज के मौसम में उसकी व्यापकता को देखा जा सकता है। हज इस्लाम की एक पहचान है और वह धर्म के राजनीतिक सामाजिक एवं आस्था संबंधी पहलुओं के बड़े भाग को प्रतिबिंबित करने वाला है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम का कथन है कि हज इस्लाम की पताका है। पताका वह प्रतीक होता है जिसके माध्यम से एक संस्कृति की विशेषताओं को बयान करने का प्रयास किया जाता है। पूरे विश्व से मुसलमान हज के महासम्मेलन में एकत्रित होते हैं। भौतिक सीमाओं से हटकर विभिन्न राष्ट्रों के काले- गोरे समस्त मुसलमान एक स्थान पर एकत्रित होते हैं और व्यक्तिगत, सामाजिक, राष्ट्रीय और सांस्कृतिक विशेषताओं व अंतरों पर ध्यान दिये बिना वे समान व संयुक्त कार्य अंजाम देते हैं। यह संयुक्त कार्य किसी विशेष व्यक्ति या राष्ट्र से विशेष नहीं है। इस प्रकार के महासमारोह में है कि इसके संस्कार उसके लक्ष्यों की जानकारी के साथ मनुष्य का मार्गदर्शन एक पहचान की ओर करता है। इस आधार पर धार्मिक पहचान की प्राप्ति को हज का एक प्रतिफल समझा जा सकता है। इस प्रकार से कि एक पूर्वी मामलों के विशेषज्ञ Bernard lewis स्वीकार करते हैं" परेशानी की घड़ी में इस्लामी जगत में मुसलमानों ने बारम्बार यह दर्शा दिया है कि वे धार्मिक समन्वय के परिप्रेक्ष्य में अपनी धार्मिक पहचान बहाल कर लेते हैं। वह पहचान जिसका मापदंड राष्ट्र या क्षेत्र नहीं होता, बल्कि इस की परिभाषा इस्लाम ने की है। ईश्वरीय संदेश उतरने की पावन भूमि में हज आयोजित होने से हज करने वाले के लिए इस्लामी संस्कृति की विशेषताओं व इस्लामी पहचान सेअवगत होने की भूमि प्रशस्त होती है और हज करने वाला दूसरी संस्कृतियों के मध्य अपनी इस्लामी संस्कृति की पहचान उत्तम व बेहतर ढंग से प्राप्त कर सकता है। विश्वस्त इस्लामी स्रोतों पर संक्षिप्त दृष्टि डालने से दावा किया जा सकता है कि हज इस्लाम की व्यापकता का उदाहरण है। पैग़म्बरे इस्लाम हज के कारणों को बयान करते हुए उसकी तुलना समूचे धर्म से करते हैं। मानो महान ईश्वर नेविशेष रूप से इरादा किया है कि हज को उसके समस्त आयामों के साथ एक उपासना का स्थान दे। हज के हर एक संस्कार व कर्म का अपना एक अलग रहस्य है और यही रहस्य है जो हज को विशेष अर्थ प्रदान करता है तथा हज करने वाले के भीतर गहरे परिवर्तिन का कारण बनता है। हज में सफेद वस्त्र धारण करने से लेकर सफा व मरवा नाम की पहाड़ियों के मध्य तेज़ तेज़ चलने, काबे की परिक्रमा, अरफात और मेना नाम के मैदानों में उपस्थिति तक क्रमशः मनुष्य की आत्मा रचनात्मक अभ्यास के चरणों से गुज़रती है ताकि हाजी के मस्तिष्क एवं व्यवहार में गहरा परिवर्तन उत्पन्न हो सके। इस उपासना का पहला लाभ यह है कि हज यात्रा आरंभ होने के साथ सांसारिक लगाव व मोहमाया समाप्त होने लगती है। हज भौतिकि लगाव से मुक्ति पाने का बेहतरीन मार्ग है। हज पर जाने वाला व्यक्ति मानो हाथों और पैरों में पड़ी भौतिक लालसाओंकी बैड़ियों से मुक्ति प्राप्त करके महान परिवर्तन की ओर बढ़ता है। हर प्रकार के व्यक्तिगत, जातीय और वर्गिय भेदभाव से मुक्ति हज का दूसरा सुपरिणाम है। सफेद वस्त्र धारण करने का एक रहस्य यही है कि मनुष्य रंग और हर उस चीज़ से दूर व अलग हो गया है जो सामाजिक एवं जातीय भेदभाव का सूचक हो। इस्लाम में उपासना का रहस्य यह है कि मनुष्य धार्मिक दायित्वों के निर्वाह से स्वयं को सर्वसमर्थ व महान ईश्वर से निकट कर सकता है। हज में उपासना की एक विशेषता यह है कि इस आध्यात्मिक यात्रा में मनुष्य ईश्वरीय भय एवं सामाजिक सदगुणों से सुसज्जित होता है। यह इस्लाम द्वारा मनुष्य के व्यक्तिगत और सामाजिक तथा विभिन्न पहलुओं पर ध्यान दिये जान