رضوی

رضوی

आप अगर चे गोशा नशीनी की ज़िन्दगी बसर फ़रमा रहे थे लेकिन आप के रूहानी इक़तेदार की वजह से बादशाहे वक़्त वलीद बिन अब्दुल मलिक ने आपको ज़हर दिया और आप बतारीख़ 25 मोहर्रमुल हराम 95 हिजरी मुताबिक़ 714 ई0 को दरजा ए शहादत पर फ़ाएज़ हो गये। इमाम मोहम्मद बाक़िर (अ.स.) ने नमाज़े जनाज़े पढ़ाई और आप मदीने के जन्नतुल बक़ी मंे दफ़्न कर दिये गये।

अल्लामा शिब्लन्जी, अल्लामा इब्ने सबाग़ मालेकी, अल्लामा सिब्ते इब्ने जोज़ी तहरीर फ़रमाते हैं कि ‘‘ व अनल लज़ी समआ अल वलीद बिन अब्दुल मलिक ’’ जिसने आपको ज़हर दे कर शहीद किया वह वलीद बिन अब्दुल मलिक ख़लीफ़ा ए वक़्त है। (नूरूल अबसार सफ़ा 128, सवाएक़े मोहर्रेक़ा सफ़ा 120, फ़ुसूल अल महमा, तज़किराए सिब्ते जौज़ी, अर हज्जुल मतालिब सफ़ा 444, मनाक़िब जिल्द 4 सफ़ा 121) मुल्ला जामी तहरीर फ़रमाते हैं कि आपकी शहादीन के बाद आपका नाक़ा क़ब्र पार नाला व फ़रियाद करता हुआ तीन रोज़ में मर गया। (शवाहेदुन नबूवत सफ़ा 179) शहादत के वक़्त आपकी उम्र 57 साल की थी।

आपकी औलाद

उलेमा ए फ़रीक़ैन का इत्तेफ़ाक़ है कि आपने ग्यारह लड़के और चार लड़कियां छोड़ीं। (सवाएक़े मोहर्रेक़ा सफ़ा 120 व अर हज्जुल मतालिब सफ़ा 444)

अल्लामा शेख़ मुफ़ीद फ़रमाते हैं कि उन 15 अवलादों के नाम यह हैं।

  1. हज़रत इमाम मोहम्मद (अ.स.) आपकी वालेदा हज़रत इमाम हसन (अ.स.) की बेटी अम्मे अब्दुल्लाह जनाबे फ़ात्मा थीं।
  2. अब्दुल्लाह,
  3. हसन,
  4. ज़ैद,
  5. उमर,
  6. हुसैन,
  7. अब्दुल रहमान,
  8. सुलैमान,
  9. अली,
  10. मोहम्मद असग़र,
  11. हुसैन असग़र
  12. ख़दीजा,
  13. फ़ात्मा,
  14. आलीया
  15. उम्मे कुल्सूम।

(इरशाद मुफ़ीद फ़ारसी सफ़ा 401)

जनाबे ज़ैद शहीद

आपकी औलाद में हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़र (अ.स.) के बाद सब से नुमाया हैसियत जनाबे ज़ैद शहीद की है। आप 80 हिजरी में पैदा हुये। 121 हिजरी में हश्शाम बिन अब्दुल मलिक से तंग आ कर आप अपने हम नवा तलाश करने लगे और यकुम सफ़र 122 हिजरी को चालीस हज़ार (40000) कूफ़ीयों समैत मैदान में निकल आये। ऐन मौक़ा ए जंग में कूफ़ीयों ने साथ छोड़ दिया। बाज़ मआसरीन लिखते हैं कि कूफ़ीयों के साथ छोड़ने का सबब इमाम अबू हनीफ़ा की नकस बैअत है क्यों कि उन्होंने पहले जनाबे ज़ैद की बैअत की थी फिर जब हश्शाम ने आपको दरबार में बुला कर इमामे आज़म का खि़ताब दिया तो यह हुकूमत के साथ हो गये और उन्होंने ज़ैद की बैअत तोड़ दी। इसी वजह से उनके तमाम मानने वाले उन्हें छोड़ कर अलग हो गये। उस वक़्त आपने फ़रमाया ‘‘ रफ़ज़त मूनी ’’ ऐ कूफी़यों ! तुम ने मेरा साथ छोड़ दिया। इसी फ़रमाने की वजह से कूफ़ीयों को राफ़ज़ी कहा जाता है। जहां उस वक़्त चंद अफ़राद के सिवा कोई भी शिया न था सब हज़रते उस्मान और अमीरे माविया के मानने वाले थे। ग़रज़ के दौराने जंग में आपकी पेशानी पर एक तीर लगा जिसकी वजह से आप ज़मीन पर तशरीफ़ लाये यह देख कर आपका एक ख़ादिम आगे बढ़ा और उसने आपको उठा कर एक मकान में पहुँचा दिया। ज़ख़्म कारी था, काफ़ी इलाज के बवजूद जां बर न हो सके फिर आपके ख़ादिमों ने ख़ुफ़िया तौर पर आप को दफ़्न कर दिया और क़ब्र पर से पानी गुज़ार दिया ताकि क़ब्र का पता न चल सके लेकिन दुश्मानांे ने सुराग लगा कर लाश क़ब्र से निकाल ली और सर काट कर हश्शाम के पास भेजने के बाद आपके बदन को सूली पर लटका दिया। चार साल तक यह जिस्म सूली पर लटका रहा। ख़ुदा की क़ुदरत तो देखिये उसने मकड़ी को हुक्म दिया और उसने आपके औरतैन (पोशीदा मक़ामात) पर घना जाला तान दिया। (ख़मीस जिल्द 2 सफ़ा 357 व हैवातुल हैवान) चार साल के बाद आपके जिस्म को नज़रे आतश कर के राख दरियाए फ़रात में बहा दी गई। (उमदतुल मतालिब सफ़ा 248)

शहादत के वक़्त आपकी उम्र 42 साल की थी। हज़रत ज़ैद शहीदे अज़ीम मनाक़िब व फ़ज़ाएल के मालिक थे। आपको ‘‘ हलीफ़ अल क़ुरआन ’’ कहा जाता था। आप ही की औलाद को ज़ैदी कहा जाता है और चूंकि आपका क़याम बा मक़ाम वासित था इस लिये बाज़ हज़रात अपने नाम के साथ ज़ैदी अल वास्ती लिखते हैं। तारीख़ इब्नुल वरदी में है कि 38 हिजरी में हज्जाज बिन यूसुफ़ ने शहरे वासित की बुनियाद डाली थी। जनाबे ज़ैद के चार बेटे थे जिनमें जनाबे याहया बिन ज़ैद की शुजाअत के कारनामे तारीख़ के अवराख़ में सोने के हुुरूफ़ से लिखे जाने के क़ाबिल हैं। आप दादहियाल की तरफ़ से हज़रत इमाम हुसैन (अ.स.) और नानिहाल की तरफ़ से जनाबे मोहम्मद बिन हनफ़िया की यादगार थे। आपकी वालेदा का नाम ‘‘ रेता ’’ था जो मोहम्मद बिन हनफ़िया की पोती थीं। नसले रसूल (स. अ.) में होने की वजह से आपको क़त्ल करने की कोशिश की गई। आपने जान के तहफ़्फ़ुज़ के लिये यादगार जंग की। बिल आखि़र 125 हिजरी में आप शहीद हो गये। फिर वलीद बिन यज़ीद बिन अब्दुल मलिक के हुक्म से आपका सर काटा गया और हाथ पाओं काटे गये। उसके बाद लाशे मुबारक सूली पर लटका दी गई फिर एक अरसे के बाद उसे उतार कर जलाया गया और हथौड़े से कूट कूट कर रेज़ा रेज़ा किया गया फिर एक बोरे में रख कर कशती के ज़रिये से एक एक मुठ्ठी राख दरियाए फ़रात की सतह पर छिड़क दी गई। इस तरह इस फ़रज़न्दे रसूल (स. अ.) के साथ ज़ुल्मे अज़ीम किया गया।

  1. उन्होंने सलतनते हश्शाम में दावा ए खि़लाफ़त किया था बहुत से लोगों ने बैअत कर ली थी। तदाएन, बसरा, वास्ता, मूसल, ख़ुरासान, रै, जरजान के अलावा सिर्फ़ कूफ़े ही के 15 हज़ार शख़्स थे। जब यूसुफ़ सक़फ़ी उनके मुक़ाबले में आया तो यह सब लोग उन्हें छोड़ कर भाग गये। ज़ैद शहीद ने फ़रमाया ‘‘ ज़फ़ज़र अल यौम ’’ उस दिन से राफ़ज़ी का लफ़्ज़ निकाला........... इनके चार फ़रज़न्द थे। 1. यहीया, 2. हुसैन, 3. ईसा, 4. मोहम्मद। सादाते बाराह व बिल गिराम का नसब मोहम्मद बिन ईसा तक पहुँचता है। (किताब रहमतुल आलेमीन जिल्द 2 सफ़ा 142)

ईसा बिन ज़ैद

यह भी जनाबे ज़ैद शहीद के निहायत बहादुर साहब ज़ादे थे। ख़लीफ़ा ए वक़्त आपके भी ख़ून का प्यासा था। आप अपना हसब नसब ज़ाहिर न कर सकते थे। ख़लीफ़ा ए जाबिर की वजह से रूपोशी की ज़िन्दगी गुज़ारते थे। कूफ़े में आब पाशी का काम शुरू कर दिया था और वहीं एक औरत से शादी कर ली थी और उस से भी अपना हसब नसब ज़ाहिर नहीं किया था। इस औरत से आपकी एक बेटी पैदा हुई जो बड़ी हो कर शादी के क़ाबिल हो गई। इसी दौरान में आपने एक मालदार बेहिश्ती के वहां मुलाज़ेमत कर ली जिसके एक लड़का था। मालदार बेहिश्ती ने जनाबे ईसा की बीवी से अपने लड़के का पैग़ाम दिया। जनाबे ईसा की बीवी बहुत ख़ुश हुई कि मालदार घराने से लड़की का रिश्ता आया है जब जनाबे ईसा घर तशरीफ़ लाये तो उनकी बीवी ने कहा कि मेरी लड़की की तक़दीर चमक उठी है क्यों कि मालदार घराने से पैग़ाम आया है यह सुनना था कि जनाबे ईसा सख़्त परेशान हुयें बिल आखि़र खुदा से दुआ की, बारे इलाहा सैदानी ग़ैरे सय्यद से बिहाई जा रही है मालिक मेरी लड़की को मौत दे दे। लड़की बीमार हुई और दफ़अतन उसी दिन इन्तेक़ाल कर गई। उसके इन्तेक़ाल पर आप रो रहे थे उनके एक दोस्त ने कहा कि इतने बहादुर हो कर आप रोते हैं उन्होंने फ़रमाया कि इसके मरने पर नहीं रो रहा हूँ मैं अपनी इस बे बसी पर रो रहा हूँ कि हालात ऐसे हैं कि मैं इस से यह तक नहीं बता सका कि मैं सय्यद हूँ और यह सय्यद ज़ादी है। (उमदतुल मतालिब सफ़ा 278, मिनहाज अल नदवा सफ़ा 57)

अल्लामा अबुल फ़रज़ असफ़हानी अल मतूफ़ी 356 हिजरी लिखते हैं कि जनाबे ईसा बिन ज़ैद ने अपने दोस्त से कहा था कि मैं इस हालत में नहीं हूँ कि इन लोगों को यह बता सकूं ‘‘ बाना ज़ालेका ग़ैर जाएज़ ’’ कि यह शादी जाएज़ नहीं है इस लिये कि यह लड़का हमारे कफ़ो का नहीं है। (मक़ातिल अल तालेबैन सफ़ा 271, मतबुआ नजफ़े अशरफ़ 1385 हिजरी)

अब्दुल मलिक बिन मरवान के अहदे खि़लाफ़त में हज़रते मुख़्तार बिन अबू उबैदा सक़फी क़ातेलाने हुसैन से बदला लेने के लिये मैदान में निकल आये।

अल्लामा मसूदी लिखते हैं कि इस मक़सद में कामयाबी हासिल करने के लिये उन्होंने इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की बैअत करनी चाही मगर आपने बैअत लेने से इन्कार कर दिया। (मरूजुल ज़हब जिल्द 3 सफ़ा 155) अल्लामा नुरूल्लाह शूस्तरी शहीदे सालिस तहरीर फ़रमाते हैं कि अल्लामा हिल्ली ने मुख़्तार को मक़बूल लोगों में शुमार किया है। इमाम मोहम्मद बाक़र (अ.स.) ने उन पर नुक़ता चीनी करने से रोका है और इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ.स.) ने उनके लिये रहमत की दुआ की है। (मजालेसुल मोमेनीन जिल्द 346)

 अल्लामा मजलिसी लिखते हैं कि हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ने उनकी कार गुज़ारी के लिससिले में ख़ुदा का शुक्र अदा किया है।

(जिलाउल उयून)

आप कूफ़े के रहने वाले थे। जनाबे मुस्लिम इब्ने अक़ील को आप ही ने सब से पहले मेहमान रखा था। आपको इब्ने ज़ियाद ने आले मोहम्मद (अ.स.) से मोहब्बत के जुर्म में कै़द कर दिया था। वहां से छूटने के बाद आप ने ख़ूने हुसैन (अ.स.) का बदला लेने का अज़मे बिल जज़म कर लिया था। चुनान्चे 26 हिजरी में एक बड़ी जमाअत के साथ बरामद हो कर कूफ़े के हाकिम बन बैठे और आपने किताब, सुन्नत और इन्तेक़ामे ख़ूने हुसैन (अ.स.) पर बैअत ले कर बड़ी मुस्तैदी से इन्तेक़ाम लेना शुरू कर दिया। शिम्र को क़त्ल कर दिया, ख़ूली को क़त्ल कर के आग में जला दिया, उमर बिन सअद और उसके बेटे हफ़स को क़त्ल किया। (तारीख़ अबुल फ़िदा)

मुल्ला मुबीन लिखते हैं कि शिम्र को क़त्ल कर के उसकी लाश को उसी तरह घोड़ों की टापों से पामाल कर दिया जिस तरह उसने इमाम हुसैन (अ.स.) की लाशे मुबारक को पामाल किया था। (वसीलतुन नजात) 67 हिजरी मंे इब्ने ज़ियाद को गिरफ़्तार करने के लिये इब्राहीम इब्ने मालिके अशतर की सरकरदगी में एक बड़ा लशकर मूसल भेजा जहां का वह उस वक़्त गर्वनर था। शदीद जंग के बाद इब्राहीम ने उसे क़त्ल किया और उसका सर मुख़्तार के पास भेज कर बाक़ी बदन नज़रे आतश कर दिया। (अबुल फ़िदा) फिर मुख़्तार के हुक्म से कै़स इब्ने अशअस की गरदन मारी गई। बजदल इब्ने सलीम (जिसने इमाम हुसैन (अ.स.) की उंगली एक अंगूठी के लिये काटी थी) के हाथ पाओं काटे गये। फिर हकीम इब्ने तुफ़ैल पर तीर बारानी की गई। उसने अलमदारे करबला हज़रत अब्बास (अ.स.) को शहीद किया था। इसी के साथ यज़ीद इब्ने सालिक, इमरान बिन ख़ालिद, अब्दुल्लाह बिजली, अब्दुल्लाह इब्ने क़ैस ज़रआ इब्ने शरीक, सबीह शामी और सनान बिन अनस तलवार के घाट उतारे गये। (हबीब उल सैर) उमर बिन हज्जाज भी गिरफ़्तार हो कर क़त्ल हुआ। (रौज़तुल सफ़ा)

मिन्हाल बिन उमर का कहना है कि मैं इसी दौरान में हज के लिये गया तो हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) से मुलाक़ात हुई। आपने पूछा हुरमुला बिन काहिल असदी का क्या हश्र हुआ? मैंने कहा वह तो सालिम था। आपने आसमान की तरफ़ हाथ उठा कर फ़रमाया, ख़ुदाया उसे आतशे तेग़ का मज़ा चखा। जब मैं कूफ़े वापस आया और मुख़्तार से मिला और उन से वाक़ेया बयान किया तो वह इमाम (अ.स.) की बद दुआ की तकमील पर सजदा ए शुक्र अदा करने लगे।ग़र्ज़ कि आपने बेशुमार क़ातेलाने हुसैन (अ.स.) को तलवार के घाट उतार दिया।

क़ाज़ी मेबज़ी ने शरहे दीवाने मुतर्ज़वी में लिखा है कि मुख़्तारे आले मोहम्मद (स. अ.) के हाथों से क़त्ल होने वालों की तादाद अस्सी हज़ार तीन सौ तीन (80,303) थी।

मुवर्रेख़ीन का बयान है कि जनाबे मुख़्तार के सामने जिस वक़्त इब्ने ज़ियाद मलऊन का सर रखा गया था तो एक सांप आ कर उसके मुंह में घुस कर नाक से निकलने लगा। इसी तरह देर तक आता जाता रहा। वह यह भी लिखते हैं कि हज़रते मुख़्तार ने इब्ने ज़ियाद का सर हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) की खि़दमत में मदीना ए मुनव्वरा भेज दिया। जिस वक़्त वह सर पहुँचा तो आपने शुक्रे ख़ुदा अदा किया और मुख़्तार को दुआएं दीं। मुवर्रेखी़न का यह भी बयान है कि उसी वक़्त औरतों ने बालों में कंघी करनी और सर में तेल डालना और आंखों में सुरमा लगाना शुरू किया जो वाक़ेए करबला के बाद से इन चीज़ों को छोड़े हुये थीं । (अक़दे फ़रीद जिल्द 2 सफ़ा 251, नुरूल अबसार सफ़ा 124, मजालिसे मोमेनीन, बेहारूल अनवार) ग़र्ज़ कि जनाबे मुख़्तार ने इन्तेक़ामे ख़ूने शोहदा लेने के सिलसिले में कारहाय नुमायां किये। बिल आखि़र 14 रमज़ान 67 हिजरी को आप कूफ़े के दारूल इमाराह के बाहर शहीद कर दीये गये। ‘‘ इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजेऊन ’’ (तफ़सील के लिये मुलाहेज़ा हो किताब मुख़्तार आले मोहम्मद (स. अ.) मोअल्लेफ़ा हक़ीर मतबूआ लाहौर)

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ की निगाह में

86 हिजरी में अब्दुल मलिक इब्ने मरवान के इन्तेक़ाल के बाद उसका बेटा वलीद बिन अब्दुल मलिक ख़लीफ़ा बनाया गया। यह हज्जाज बिन यूसुफ़ की तरह निहायत ज़ालिमों जाबिर था। इसके अहदे ज़ुल्मत में उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ जो कि चचा ज़ाद भाई था, हिजाज़ का गर्वनर मुक़र्रर हुआ। यह बड़ा मुनसिफ़ मिजाज़ और फ़य्याज़ था। उसी के अहदे गर्वनरी का एक वाक़ेया यह है कि 87 हिजरी में सरवरे कायनात के रौज़े की एक दीवार गिर गई थी। जब उसकी मरम्मत का सवाल पैदा हुआ और उसकी ज़रूरत महसूस हुई कि किसी मुक़द्दस हस्ती के हाथ से इसकी इब्तेदा की जाय तो उमर बिन अब्दुल अज़ीज़ ने हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ही को सब पर तरजीह दी। (वफ़ा अल वफ़ा जिल्द 1 सफ़ा 386) इसी ने फ़िदक वापस किया था और अमीरल मोमेनीन (अ.स.) पर से तबर्रा की वह बिदअत जो माविया ने जारी की थी बन्द कराई थी।

 

 

 

हिरोशिमा और नागासाकी पर अमेरिका के परमाणु हमले की 79वीं वर्षगांठ के अवसर पर जापानी लोगों ने ग़ज़्ज़ा में इस्राईल की ओर से किये जा रहे फिलिस्तीनी लोगों के जनसंहार का विरोध करते हुए फिलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन किया।

फिलिस्तीनी इस्लामिक प्रतिरोध आंदोलन के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख इस्माइल हनीयेह की शहादत के बाद हमास के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख के रूप में यह्या सनवार को चुना गया हैं।

अलजज़ीरा के हवाले से फिलिस्तीनी इस्लामिक प्रतिरोध आंदोलन के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख इस्माइल हनीयेह की शहादत को एक सप्ताह भी नहीं बीता था जब हमास ने एक बयान में घोषणा की कि उसने यह्या सनवार को राजनीतिक कार्यालय के नेता के रूप में शहीद इस्माइल हानियेह के उत्तराधिकारी के रूप में चुना है।

यह इस तथ्य के बावजूद है कि हमास के राजनीतिक कार्यालय के पूर्व प्रमुख खालिद मेशाल जैसे विभिन्न विकल्पों को शहीद हनियेह के उत्तराधिकारी के रूप में प्रस्तावित किया गया था लेकिन गाजा के खिलाफ़ इज़राईल शासन के विनाशकारी युद्ध के बीच सेनवार की पसंद स्ट्रिप के कई संदेश और निहितार्थ हैं।

सनवार एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जिसने अपना अधिकांश जीवन ज़ायोनी शासन की जेलों में और फिर इस शासन के साथ युद्ध में बिताया हैं।

यह्या सनवार सुरक्षा और राजनीतिक हलके और न ही ज़ायोनी निवासी उसके साथ सहज महसूस करते हैं और तेल अवीव उसे क्षेत्र में अपने सबसे खतरनाक दुश्मन के रूप में पहचानता है।

सेनवार कि जो ज़ायोनी शासन और उसके समाज को अच्छी तरह से जानते है और वे भी उसे अच्छी तरह से जानते हैं, क़ल्बे मैदान से हमास के राजनीतिक कार्यालय का नेतृत्व करते हैं। वह मूसा अबू मरज़ौक, खालिद मेशाल और शाहिद इस्माइल हनियेह के बाद हमास के चौथे नेता के रूप में यह पद संभाल रहे हैं।

 

 

 

 

 

दुनियाभर में चर्चा के केंद्र में आए बांग्लादेश को लेकर कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद का बयान तेज़ी से वायरल हो रहा है। कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने बयान दिया है कि बांग्लादेश में जो हो रहा है वो यहां भी हो सकता है। पूर्व केंद्रीय मंत्री ने दिल्ली में एक कार्यक्रम में ये बात कही। उन्होंने कहा कि कश्मीर में सब कुछ सामान्य लग सकता है। हम भले ही जीत का जश्न मना रहे हों, हालांकि निश्चित रूप से कुछ लोगों का मानना ​​है कि वह जीत या 2024 की सफलता शायद मामूली थी, शायद बहुत कुछ करने की जरूरत है।

उन्होंने कहा, ‘सच्चाई यह है कि सतह के नीचे कुछ है। बांग्लादेश में जो हो रहा है वह यहां भी हो सकता है।’ बांग्लादेश में जून से आरक्षण के खिलाफ प्रदर्शन हो रहा है, अगस्त में ये और हिंसक हो गया। कई लोगों की जान चली गई, लोगों की बढ़ती आवाज के कारण ही शेख हसीना की कुर्सी चली गई और उन्हें देश से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा।

 

बांग्लादेश में प्रधानमंत्री हसीना के देश छोड़ने और अभूतपूर्व उथल-पुथल के बीच पुलिस स्टेशन वीरान हो गए हैं। देश के ज्यादातर पुलिस स्टेशनों, जिनमें राजधानी ढाका भी शामिल है, में इस समय कोई पुलिसकर्मी मौजूद नहीं है। वे सभी सुरक्षित स्थानों पर शरण लिए हुए हैं। कई लोग निजी सुरक्षा के लिए अपने रिश्तेदारों के यहां रह रहे हैं। हाल ही में अपदस्थ अवामी लीग सरकार के करीबी उच्च पदस्थ अधिकारी छिप गए हैं।

ढाका ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, देश में हिंसक सरकार विरोधी प्रदर्शनों के बीच शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग के 20 से ज्यादा नेताओं के शव मिले हैं। देश में हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। अभिनेता शांतो खान और उनके पिता की हत्या कर दी गई है। वह शापला मीडिया के मालिक हैं। जानकारी के मुताबिक, दोनों लोगों की उपद्रवियों ने पीट-पीटकर हत्या कर दी।

एक जर्मन महिला को फिलिस्तीन के समर्थन और इस्राईल के युद्ध अपराधों का विरोध उस समय भारी पद गया जब जर्मनी की एक अदालत ने इस महिला को कठोर सज़ा सुनाई।

प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार ग़ज़्ज़ा पर इस्राईल के हमले के बाद बर्लिन में विरोध प्रदर्शन हुआ, जिसमें एक 22 साल की महिला ने फिलिस्तीन के समर्थन में नारे लगाए थे। इस नारे को नवंबर में गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया, जिसको लेकर अब अदालत ने महिला को सजा सुनाई है।

अदालत ने इस घटना पर फैसला करते हुए कहा कि जंग के शुरू होने के तुरंत ही इस तरह के नारे लगाने का मतलब अवैध राष्ट्र के अस्तित्व का खंडन और हमास के हमले को सपोर्ट करना माना जा सकता है।

एवा ने फिलिस्तीन के समर्थन में 11 अक्टूबर को किए गए विरोध प्रदर्शन के दौरान नारे लगाए थे। एवा ने नारा लगाते हुए कहा था कि "from the river to the sea, Palestine will be free" इस स्लोगन का अर्थ फिलिस्तानियों की आजादी से है।

बर्लिन में इस तरह के नारे बैन किए गए हैं। अदालत में अब इस मामले में फैसला सुनाते हुए उस पर 600 यूरो यानी 60 हजार से ज्यादा का जुर्माना लगाया गया है। एवा के वकील अलेक्जेंडर गोर्स्की ने अदालत के इस फैसले को फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन के लिए ब्लैक डे बताया है।

रूस की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव से मुलाक़ात में इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति ने कहा कि दुनिया में अमेरिका सहित कुछ शक्तियों के एकछत्र प्रभुत्व और वर्चस्व का दौर समाप्त हो गया है।

बहुध्रुवीय विश्व व्यव्सथा को बढ़ावा देने की दिशा में ईरान और रूस के बीच पाया जाने वाले समान नज़रिये और सहयोग से निश्चित रूप से वैश्विक सुरक्षा और शांति को और बढ़ावा मिलेगा। रूसी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव सर्गेई शोइगु ने इस्लामी गणतंत्र ईरान के अधिकारियों से मिलने के लिए तेहरान की यात्रा की है।

ईरान के राष्ट्रपति मसऊद पिज़िश्कियान ने रूसी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव सर्गेई शोइगु से अपनी मुलाक़ात में ग़ज़ा में ज़ायोनी शासन द्वारा किए गए भयानक अपराधों और क्षेत्र में युद्ध की आग भड़काने के लिए इस शासन की कार्रवाइयों का ज़िक्र करते हुए मानवाधिकार के दावेदार के रूप में अमेरिका और कुछ पश्चिमी देशों की ओर से ज़ायोनी शासन की आलोचना की।

राष्ट्रपति श्री पिज़िश्कियान ने कहा कि ग़ज़ा के मज़लूम और असहाय लोगों के खिलाफ ज़ायोनी शासन की आपराधिक कार्रवाइयां, साथ ही ईरान में हमास आंदोलन के राजनीतिक ब्यूरो के प्रमुख इस्माईल हनिया की हत्या की कार्रवाइ, सभी अंतरराष्ट्रीय कानूनों और नियमों के उल्लंघन का खुला उदाहरण है। उन्होंने कहा: ईरान क्षेत्र में युद्ध और संकट का दायरा बढ़ाना नहीं चाहता है लेकिन इस्राईली शासन को अपने अपराधों और अहंकार का जवाब निश्चित रूप से मिलेगा।

इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति ने भी रूस के साथ संबंधों के विस्तार को ईरान की विदेश नीति की प्राथमिकताओं में क़रार दिया और दोनों देशों के बीच हुए समझौतों के कार्यान्वयन में तेजी लाने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।

फ़िलिस्तीनी लोगों का समर्थन करने और ज़ायोनी शासन के आपराधिक कृत्यों की निंदा करने में रूस के रुख की सराहना करते हुए, चिकित्सा विशेषज्ञों ने दोनों देशों के बीच, विशेष रूप से राजनीतिक और आर्थिक मामलों में बातचीत विकसित करने के लिए इस्लामी गणराज्य ईरान के दृढ़ संकल्प पर जोर दिया।

इस मुलाक़ात में रूसी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव सर्गेई शोइगु ने ईरान को क्षेत्र में रूस के प्रमुख और रणनीतिक सहयोगियों में क़रार दिया और उन्होंने एक बहुध्रुवीय दुनिया बनाने और क्षेत्र की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए दोनों देशों के संयुक्त प्रयासों पर अपनी संतुष्टि व्यक्त की।

उन्होंने कहा: रूस और ईरान के बीच सभी क्षेत्रों में संबंध बढ़ रहे हैं और बातचीत के विस्तार की बहुत अच्छी संभावनाएं पायी जाती हैं।

रूस की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के सचिव ने भी उत्तर-दक्षिण गलियारे सहित दोनों देशों के बीच संयुक्त परियोजनाओं को पूरा करने में तेजी लाने में अपने देश की रुचि पर जोर दिया और स्पष्ट किया: रूस, संयुक्त राष्ट्र संघ, ब्रिक्स और शंघाई जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों में इस्लामी गणतंत्र ईरान के साथ सहयोग को बहुत महत्व देता है।

 

 

ईरान हमास लीडर इस्माइल हानिया की हत्या का बदला लेने की पूरी तैयारी कर चुका है। सूत्रों के मुताबिक-ईरानी सेना किसी भी वक्त इस्राईल पर हमला कर सकती है। हमले की आशंका को देखते हुए इस्राईल पूरी तरह से अलर्ट मोड पर आ गया है। अपने सभी नागरिकों को हाई अलर्ट कर दिया है।

ईरान की अंडरग्राउंड मिसाइल सिटी में इस वक्त हलचल बहुत तेज है। ईरानी सेना साइलो के पास बैलिस्टिक मिसाइलें पहुंचा रही है। ईरान ने घोषणा कर दी है कि अवैध राष्ट्र पर अब तक का सबसे बड़ा और विध्वंसक हमला होने जा रहा है।

पेंटागन ने भी ज़ायोनी शासन को अलर्ट करते हुए कहा है कि ईरान इस बार 2 हजार मिसाइलों से हमला करने जा रहा है। किसी भी वक्त यह हमला हो सकता है। ज़ायोनी शासन ने अलर्ट जारी करते हुए किर्यत शमोना और ऊपरी गलील से नहरिया तक, उत्तरी फिलिस्तीन में रह रहे ज़ायोनी अतिक्रमणकारियों को संरक्षित क्षेत्रों के करीब रहने का निर्देश दिया है। अगले 48 घंटे तक खुले में नहीं निकलने के लिए कहा गया है। दूसरी ओर ईरान ने भी अपना एयरस्पेस बंद कर दिया है।

 

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) चूंकि फ़रज़न्दे रसूल (स. अ.) थे इस लिये आप में सीरते मोहम्मदिया का होना लाज़मी था। अल्लामा मोहम्मद इब्ने तल्हा शाफ़ेई लिखते हैं कि एक शख़्स ने आपको बुरा भला कहा, आपने फ़रमाया , भाई मैंने तो तेरा कुछ नहीं बिगाड़ा अगर कोई हाजत रखता हो तो बता ताकि मैं पूरी करूं। वह शरमिन्दा हो कर आपके अख़लाख का कलमा पढ़ने लगा।

(मतालेबुल सुवेल सफ़ा 267)

अल्लामा हजरे मक्की लिखते हैं, एक शख़्स ने आपकी बुराई आपके मुंह पर की, आपने उस से बे तवज्जीही बरती। उसने मुख़ातिब कर के कहा मैं तुम को कह रह हूँ। आप ने फ़रमाया मैं हुक्मे ख़ुदा ‘‘ वा अर्ज़ अनालन जाहेलीन ’’ जाहिलों की बात की परवाह न करो, पर अमल कर रहा हूँ। (सवाएक़े मोहर्रेक़ा सफ़ा 120)

अल्लामा शिब्लन्जी लिखते हैं कि एक शख़्स ने आप से आ कर कहा कि फ़लां शख़्स आपकी बुराई कर रहा था। आपने फ़रमाया कि मुझे उसके पास ले चलो, जब वहां पहुँचे, तो उस से फ़रमाया भाई जो बात तूने मेरे लिये कही है, अगर मैंने ऐसा किया हो तो खु़दा मुझे बख़्शे और अगर नहीं किया तो ख़ुदा तुझे बख़्शे कि तूने बोहतान लगाया।

एक रवायत में है कि आप मस्जिद से निकल कर चले तो एक शख़्श आपको सख़्त अल्फ़ाज़ में गालियां देने लगा। आपने फ़रमाया कि अगर कोई हाजत रखता है तो मैं पूरी करूँ, ‘‘ अच्छा ले ’’ यह पांच हज़ार दिरहम। वह शरमिन्दा हो गया।

एक रवायत में है कि एक शख़्स ने आप पर बोहतान बांधा। आपने फ़रमाया मेरे और जहन्नम के दरमियान एक खाई है अगर मैंने उसे तय कर लिया तो परवाह नहीं, जो जी चाहे कहो और अगर उसे पार न कर सकूं तो मैं इस से ज़्यादा बुराई का मुस्तहक़ हूँ जो तुमने की। (नूरूल अबसार सफ़ा 126- 127)

अल्लामा दमीरी लिखते हैं कि एक शामी हज़रत अली (अ.स.) को गालियां दे रहा था। इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ने फ़रमाया, भाई तुम मुसाफ़िर मालूम होते हो, अच्छा मेरे साथ चलो, मेरे यहां क़याम करो और जो हाजत रखते हो बताओ ताकि मैं पूरी करूं। वह शरमिन्दा हो कर चला गया। (हैवातुल हैवान जिल्द 1 सफ़ा 121)

अल्लामा तबरिसी लिखते हैं कि एक शख़्स ने आपसे बयान किया कि फ़लां शख़्स आपको गुमराह और बिदअती कहता है। आपने फ़रमाया अफ़सोस है कि तुम ने उसकी हम नशीनी और दोस्ती का कोई ख़्याल न रखा और उसकी बुराई मुझसे बयान कर दी। देखो यह ग़ीबत है अब ऐसा कभी न करना। (एहतेजाज सफ़ा 304)

जब कोई सायल आपके पास आता तो ख़ुश व मसरूर हो जाते थे और फ़रमाते थे कि ख़ुदा तेरा भला करे कि तू मेरा ज़ादे राहे आख़ेरत उठाने के लिये आ गया है। (मतालेबुल सुवेल सफ़ा 263)

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) सहीफ़ा ए कामेला में इरशाद फ़रमाते हंै, ख़ुदा वन्दा मेरा कोई दरजा न बढ़ा, मगर यह कि इतना ही खुद मेरे नज़दीक मुझको घटा और मेरे लिये कोई ज़ाहिरी इज़्ज़त न पैदा कर मगर यह कि ख़ुद मेरे नज़दीक इतनी ही बातनी लज़्ज़त पैदा कर दे।

इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) और सहीफ़ा ए कामेला

किताब सहीफ़ा ए कामेला आपकी दुआओं का मजमूआ है। इसमें बेशुमार उलूम व फ़ुनून के जौहर मौजूद हैं। यह पहली सदी की तसनीफ़ है। (मआलिम अल उलेमा सफ़ा 1 तबआ ईरान) इसे उलेमा ए इस्लाम ने ज़ुबूरे आले मोहम्मद (स.अ.) और इन्जीले अहलेबैत (अ.स.) कहा है। (नेयाबुल मोअद्दता सफ़ा 499 व फ़ेहरिस्त कुतुब ख़ाना ए तेहरान सफ़ा 36) और उसकी फ़साहत व बलाग़त मआनी को देख कर उसे कुतुबे समाविया और सहफ़े लौहिया व अरशिया का दरजा दिया गया है। (रियाज़ुल सालीक़ैन सफ़ा 1) इसकी चालीस हज़ार शरहें हैं जिनमें मेरे नज़दीक रियाज़ुल सालीकैन को फ़ौकी़यत हासिल है।

हश्शाम बिन अब्दुल मलिक और क़सीदा ए फ़रज़दक़

अब्दुल मलिक इब्ने मरवान का सन् 105 में ख़लीफ़ा होने वाला बेटा हश्शाम बिन अब्दुल मलिक अपने बा पके अहदे हुकूमत में एक मरतबा हज्जे बैतुल्लाह के लिये मक्के मोअज़्ज़मा गया। मनासिके हज बजा लाने के सिलसिले में तवाफ़ से फ़राग़त के बाद हजरे असवद का बोसा देने आगे बढ़ा और पूरी कोशिश के बवजूद हाजियों की कसरत की वजह से हजरे असवद के पास न पहुँच सका। आखि़र कार एक कुर्सी पर बैठ कर मजमे के छटने का इन्तेज़ार करने लगा। हश्शाम के गिर्द उसके मानने वालों का अम्बोह कसीर था। यह बैठा हुआ इन्तेज़ार ही कर रहा था कि नागाह एक तरफ़ से फ़रज़न्दे रसूल (स. अ.) हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) बरामद हुए। आपने तवाफ़ के बाद ज्यों ही हजरे असवद की तरफ़ रूख़ किया मजमा फटना लगा, हाजी हटने लगे, रास्ता साफ़ हो गया और आप क़रीब पहुँच कर तक़बील फ़रमाने लगे। हश्शाम जो कुर्सी पर बैठा हुआ था हालात का मुतालेआ कर रहा था जल भुन कर ख़ाक हो गया और उसके साथी बहरे हैरत में ग़र्क़ हो गये। एक मुंह चढ़े ने हश्शाम से पूछा, हुज़ूर यह कौन हैं? हश्शाम ने यह समझते हुए कि अगर तअर्रूफ़ करा दिया और इन्हें बता दिया कि यह ख़ानदाने रिसालत के चश्मों चिराग़ हैं तो कहीं मेरे मानने वालों की निगाह मेरी तरफ़ से फिर कर उनकी तरफ़ मुड़ न जाये। तजाहुले आरोफ़ाना के तौर पर कहने लगा, ‘‘ मआ अरफ़ा ’’ मैं नहीं पहचानता। यह सुन कर शायरे दरबार जनाब फ़रज़दक़ से न रहा गया और उन्होंने शामियों की तरफ़ मुख़ातिब हो कर कहा, ‘‘ अना अराफ़ा ’’ इसे मैं जानता हूँ कि यह कौन हैं, ‘‘ मुझ से सुनो ’’ यह कह कर उन्होंने इरतेजालन और फ़िल बदीहा एक अज़ीम उश्शान क़सीदा पढ़ना शुरू कर दिया जिसका पहला शेर यह है तरजुमा यह वह शख़्स है जिस को खाना ए काबा हिल्लो हरम सब पहचानते हैं और उसके क़दम रखने की जगह, क़दम की चाप को ज़मीन बतहा भी महसूस कर लेती है। मैं इस रदीफ़ में इस क़सीदे का उर्दू मनजूम तरजुमा र्दजे ज़ैल करता हूँ।

यह वह है जानता है मक्का जिसके नक़्शे क़दम

ख़ुदा का घर भी है, आगाह और हिल्लो हरम

जो बेहतरीन ख़लाएक़ है उस का है फ़रज़न्द

है पाक व ज़ाहिद व पाकीज़ा व बुलन्द हशम

कु़रैश लिखते हैं जब , इसे तू कहते हैं

बुर्ज़ुगियों पे हुई इसकी इन्तेहाए करम

इस क़सीदे के तमाम नाक़ेलीन ने पहला शेर यह लिखा है।

हाज़ल लज़ी ताअररूफ अल बतहा व तातहू

वाअल बैतया अरफ़हू वाअलहलव अलहरम

लेकिन यह मालूम होने के बाद कि क़सीदे के लिये मतला ज़रूरी होता है। उसे पहला शेर क़रार नहीं दिया जा सकता, अल बत्ता यह मुम्किन है कि यह समझा जाए कि शायर ने मौक़े के लेहाज़ से अपने क़सीदे की इस वक़्त पढ़ने की इब्तेदा इसी शेर से की थी और मुवर्रेख़ीन ने इसी शेर को पहला शेर क़रार दे दिया। अल्लामा अब्दुल्लाह इब्ने मोहम्मद इब्ने यूसुफ़ ज़ाज़नी अल मौतूफ़ी 231 हिजरी शरहे सबहे मुअल्लेक़ात में लिखते हैं कि इस क़सीदे का पहला शेर यह है।

या साएली एन हल अलजदू व अल करम

अन्दी बयान अज़ा, तलाबहा क़दम

क़सीदाऐ फ़रज़दक़ के मुतालिक़ एक ग़लत फ़हमी और उसका इज़ाला

इमामे अहले सुन्नत मोहम्मद अब्दुल क़ादिर सईद अलराफ़ई ने 1927 ई0 में शाएर अरब अबू अलतमाम हबीब अदस बिन हारस ताई आमली शामी बग़दाद के कीवान ‘‘ हमासह ’’ के मिस्र तबा कराया है। इसकी जिल्द 2 सफ़ा 284 पर इस क़सीदे के इब्तेदाई 6 अश्आर को नक़ल कर के लिखा है कि यह अश्आर ‘‘ हज़ीन अल कनानी ’’ के हैं। इसने उन्हें अब्दुल्लाह बिन अब्दुल मलिक बिन मरवान की मदह में कहे थे, साथ ही साथ यह भी लिखा है ‘‘व अलनास यरोदन हाज़ह अल बयात अलप फ़रज़ोक़ यमदह बहा अली इबनुल हुसैन बिन अबी तालिब व हैग़लतमन रदहाफ़ह लान हाज़ा लेस ममायदहा बेही मिस्ल अली बिन अल हुसैन व लहमन अल फ़ज़ल अलबा हरमालैसा ला हद फ़ी वक़तहू ’’ और लोेग जो इन अबयात के मुताअल्लिक़ यह रवायत करते हैं कि यह फ़रज़दक़ के हैं और उसने उन्हें मदहे ‘‘ इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ‘‘ में कहा है ग़लत है क्यों कि यह अशआर उनके शायाने शान नहीं हैं वह तो अपने वक़्त के सब से बड़े साहेबे फ़ज़ीलत थे। मैं कहता हूँ कि यह अशआर फ़रज़दक ही के हैं क्यों कि इसे बेशुमार फ़हूल उलमा व मुवर्रेख़ीन ने उन्हीं के अश्आर तसलीम किए हैं जिनमें इमाम अल मोहक़ेक़ीन अल्लामा शेख़ मुफ़ीद अलै हिर रहमा मौतूफ़ी 413 हिजरी व इमाम ज़दज़नी अल मौतूफ़ी 431 हिजरी व अल्लामा इब्ने हजर मक्की व हाफ़िज़ अबू नईम और साहेबे मज़ा फिल अदब शामिल हैं। मुलाहेज़ा हो इरशाद मुफ़ीद सफ़ा 399 तबा ईरान 1303 इन उलमा के तसलीम करने के बाद किसी फ़रदे वाहिद के इनकार से कोई असर नहीं पड़ा।

पहुँच गया है यह इज़्ज़त की उस बुलन्दी पर

जहां पर जा सके इस्लाम के अरब व अजम

                 यह चाहता है कि ले हाथों हाथ रूकने हतीम

                 जो चूमने हजरे असवद , आए निज़्दे हरम

छड़ी है हाथ में , जिसके महकती है ख़ुशबू

व्ह हाथ जो नहीं इज़्ज़त में और शान में कम

                 नज़र झुकाए हैं सब यह हया है रोब से लोग

                 जो मुस्कुराए तो आजाए, बात करने का दम

जबीं के नूरे हिदायत से , कुफ्ऱ घटता है यूँ

ज़ियाए महर से तारीकियाँ,  हों जैसे कम

                 फ़ज़ीलत और नबीयो की इसके जद से है पस्त

                 तमाम उम्मतें, उम्मत से इसके रूतबे में कम

यह वह दरख़्त है जिसकी है जड़ खुदा का रसूल

इसी से फ़ितरत व आदात भी हैं पाक बहम

                 यह फ़ात्मा का है , फ़रज़न्द ‘‘ तू नहीं वाक़िफ़ ’’

                 इसी के जद से नबियों का बढ़ सका न क़दम

अज़ल से लिखी है , हक़ ने शराफ़तों अज़्ज़त

चला इसी के लिये लौह पर खु़दा का क़लम

                 जो कोई ग़ैज़ दिला दे , तो शेर से बढ़ जाए

                 सितम करे कोई इस पर तो मौत का नहीं ग़म

ज़र्र न होगा उसे तू , बने हज़ार अन्जान

इसे तो जानते हैं सब अरब तमाम अजम

                बरसते हब्र हैं हाथ इसके जिनका फ़ैज़ है आम

 

                 वह बरसा करते हैं , यकसाँ कभी नहीं हुए कम

वह नरम है, कि डर जल्द बाज़ियों का नहीं

है हुसने ख़ुल्क, इसी की तो ज़ीनते बाहम

                 मुसिबतों में क़बीलों के , बार उठाता है

                 हैं जितने खूब शमाएल, हैं इतने खूब करम

कभी न उसने कहा ‘‘ ला ’’ बजुज़ तशहुद के

अगर न होता तशहुद तो होता ‘‘ ला ’’ भी नअम

                 खि़लाफ़े वादा नहीं करता , यह मुबारक ज़ात

                 है मेज़ बान भी, अक़ल व इरादह भी है बहम

तमाम ख़लक़ पे एहसाने आम है इसका

इसी से उठ गया अफ़लासो रंजो फ़क्रा क़दम

            मोहब्बत इसकी है ‘‘ दीन ’’ और अदावत इसकी है कुफ़्र

है क़ुरबा इसका , निजातो पनाह का आलम

शुमार ज़ाहिदों का हो , तो पेशवा यहा हो

कि बेहतरीन ख़लाएक़ , इसीको कहते है हम

                 पहुँचना इसकी सख़ावत , ग़ैर मुम्किन है

                 सख़ी हों लाख न पांएगे इसकी गरदे क़दम

जो क़हत की हो  यह अबरे बारां हैं

जो भड़के जंग की आतिश यह शेर से नहीं कम

                 न मुफ़लिसी का असर है , फ़राग़ दस्ती पर

                 कि इसको ज़र की ख़ुशी है न बेज़री का अलम

इसी की चाह से जाती है आफ़त और बदी

इसी की वजह से आती है नेकी और करम

                 इसी का ज़िक्र मुक़द्दम है बाद ज़िक्रे खु़दा

                 इसी के नाम से हर बात ख़त्म करते हैं हम

मज़म्मत आने से इसके क़रीब भागती है

करीमे ख़लक़ हैं होती नहीं सख़ावत कम

                 ख़ुदा बन्दों में है कौन ऐसा जिसका सर

                 इसी घराने के एहसान से हुआ न हो ख़म

ख़ुदा को जानता है जो इसे भी जानता है

इसी के घर से मिला उम्मतों को दीन बहम

इस क़सीदे को सुन कर हश्शाम ग़ैज़ो ग़ज़ब से पेचो ताब खाने लगा और उसका नाम दरबारी शोअरा की फ़ेहरीस्त से निकाल कर उसे बमुक़ाम असफ़ान क़ैद कर दिया। हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) को जब इसकी क़ैद का हाल मालूम हुआ तो आपने बारह हज़ार दिरहम उसके पास भेजा। फ़रज़दक़ ने यह कह कर वापिस कर दिया कि मैंने दुनियावी उजरत के लिये क़सीदा नहीं कहा है इस से मैं क़सदे सवाब का इरादा रखता हूँ। हज़रत ने फ़रमाया कि हम आले मोहम्मद (अ.स.) का यह उसूल है कि जो चीज़ दे देते हैं फिर उसे वापस नहीं लेते। तुम इसे ले लो। खुदा तुम्हारी नियत का अजरे अज़ीम देगा, वह सब कुछ जानता है। ‘‘ फ़ा क़बलहल फ़रज़दक़ ’’ फ़रज़दक़ ने उसे क़ुबूल कर लिया। (सवाएक़े मोहर्रेक़ा सफ़ा 120 मतालेबुल सुवेल सफ़ा 226, अर हज्जुल मतालिब सफ़ा 403, मजालिसे अदब, जिल्द 6 सफ़ा 254, वसीलतुन नजात सफ़ा 320, तारीख़े अहमदी सफ़ा 328, तारीख़े आइम्मा सफ़ा 369, हुलयतुल अवलिया हाफ़िज़ अबू नईम रिसाला हक़ाएक लख़नऊ)

अल्लामा इब्ने हसन जारचवी लिखते हैं कि ‘‘ हश्शाम उनको एक हज़ार दीनार सालाना दिया करता था जब उसने यह रक़म बन्द कर दी तो यह बहुत परेशान हुए। माविया बिने अब्दुल्लाह इब्ने जाफ़रे तय्यार ने कहा, फ़रज़दक़ घबराते क्यों हो , कितने साल ज़िन्दा रहने की उम्मीद है? उन्होंने कहा यही बीस साल। फ़रमाया कि यह बीस हज़ार दीनार ले लो और हश्शाम का ख़्याल छोड़ दो। उन्होंने कहा मुझे अबू मोहम्मद अली इब्नुल हुसैन (अ.स.) ने भी रक़म इनायत फ़रमाने का इरादा किया था मगर मैंने क़बूल नहीं किया। मैं दुनिया का नहीं आख़ेरत के अज्र का उम्मीदवार हूँ।

बेहारूल अनवार में है कि हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ.स.) ने चालीस दीनार अता फ़रमाये और हुआ भी ऐसी ही कि फ़रज़दक़ उसके बाद चालीस साल और ज़िन्दा रहे। (तज़किरा मोहम्मद (स. .अ.) व आले मोहम्मद (अ.स.) जिल्द 2 सफ़ा 190)