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मंगलवार, 02 अप्रैल 2024 17:56

बंदगी की बहार- 22

21वीं रमज़ान ईमान वालों के सरदार हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत की तारीख़ है और हम आप सबकी सेवा में हार्दिक संवेदना प्रकट करते हैं।

इस रात एक ऐसे व्यक्ति ने दुनिया को विदा कहा जिसकी वास्तविकता को न तो पहले वाले लोग समझ सके हैं और न ही आने वाले उस जैसा व्यक्ति देख सकेंगे। ऐसा महान व्यक्ति जिसका संपूर्ण अस्तित्व हर भलाई की कुंजी था और अगर लोग उसे स्वीकार कर लेते तो उन पर ईश्वर की अनुंकपाओं की वर्षा होने लगती लेकिन वे अनुकंपाओं पर अकृतज्ञ रहे और उन्होंने संसार को प्रलय पर प्राथमिकता दी। इस प्रकार संसार हज़रत अली अलैहिस्सलाम के अस्तित्व और उनके ईमान व ज्ञान की छाया में जीने की अनुकंपा से वंचित हो गया।

"ईश्वर की सौगंध! मार्गदर्शन के स्तंभ ध्वस्त हो गए, ईश्वरीय भय की निशानियां मिट गईं और रचयिता व रचना के बीच जो मज़बूत रस्सी थी वह टूट गई। मुहम्मद मुस्तफ़ा के चचेरे भाई की हत्या कर दी गई, अली शहीद हो गए और सबसे बड़े दुर्भागी ने उन्हें शहीद कर दिया।" यह आवाज़ कूफ़े में गूंजी और इसने दुनिया को एक बड़ी दुर्घटना से अवगत करा दिया। इस आवाज़ ने बताया कि मानवता, अनाथ हो गई और ईश्वर द्वारा लोगों की मुक्ति के लिए तैयार किया गया मार्गदर्शन का सबसे मज़बूत स्तंभ धराशायी हो गया और इसके बाद इस धरती पर मानव इतिहास का हर क्षण अंधकार में डूब जाएगा।

दो दिन से हज़रत अली अलैहिस्सलाम का घायल शरीर बिस्तर पर है और पूरा कूफ़ा व्याकुल है। यह वही कूफ़ा है जिसने उन्हें कई बार दुखी किया था, यहां तक कि संसार के सबसे दयालु व कृपालु व्यक्ति ने अपने हाथ आसमान की ओर उठा कर कहा थाः प्रभुवर! मेरे लिए ऐसे लोग भेज दे जो इनसे बेहतर हों और इनके लिए ऐसे को भेज दे जिसके आने से इन्हें मेरे मूल्य का पता चले। जी हां! वही लोग जिन्होंने अपने अज्ञान व समय की सही पहचान न होने के कारण हज़रत अली अलैहिस्सलाम को बहुत अधिक दुखी किया था, अब चिंताग्रस्त थे कि अब अली के बिना, उनके प्रेम के बिना, उनके साहस के बिना, उनके न्याय के बिना, उनके फ़ौलादी संकल्प के बिना, उनकी दोधारी तलवार के बिना और उनके प्रकाशमयी अस्तित्व के बिना उनके शांत व सुरक्षित जीवन और कमज़ोर ईमान का क्या होगा?

दूसरी ओर हज़रत अली अलैहिस्सलाम के मित्र, सहायक व चाहने वाले, जो हमेशा उनकी सेवा में रहते थे और उनके हर आदेश का हर क़ीमत पर पालन करते थे, व्याकुल थे और आंसू भरी आंखों के साथ उनके घर के बाहर एकत्रित थे। वे ऐसे लोग थे जो ग़दीर की घटना को भूले नहीं थे जब पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने हज़रत अली को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था और कहा था कि जिसका मैं स्वामी हूं, उसके ये अली स्वामी हैं। इसके बाद उन्हों ने सभी से उनके आज्ञापालन का वचन लिया था। इन लोगों को मुस्लिम समाज की चिंता थी और उस महान सभ्यता की चिंता थी जिसकी नींव पैग़म्बरे इस्लाम ने रखी थी और पैग़म्बर के तथाकथित मानने वाले उसके स्तंभों को धराशायी करते जा रहे थे। इन्हें मानव इतिहास की चिंता थी कि अली के बिना उसका क्या होगा?

हज़रत अली अलैहिस्सलाम के घर के बाहर एकत्रित व्याकुल लोगों के बीच कुछ ऐसे लोग भी थे जिन्होंने हज़रत अली के प्रेम व स्नेह का सबसे अधिक स्वाद चखा था और वे थे कूफ़े के अनाथ व दरिद्र बच्चे। उनकी रोती हुई आंखें और रंग उड़े चेहरे, पिछले दो दिनों में हज़रत अली के घर के बाहर एक हृदय विदारक दृश्य पेश कर रहे थे। इनमें से हर एक बच्चा अपने हाथ में दूध का एक प्याला लेकर आया था ताकि अपने आध्यात्मिक पिता के उपचार में मदद कर सके, उन्हें आशा थी कि इस तरह हज़रत अली के घायल शरीर में एक नई जान पड़ जाएगी, लेकिन खेद कि ऐसा न हो सका।

दो दिन से हज़रत अली अलैहिस्सलाम बिस्तर पर निढाल पड़े हुए थे और उनके घर के बाहर एकत्रित होने वाले चिंतित लोगों को उनसे मिलने की अनुमति थी। वे एक एक करके उनके पास जाते और उन्हें सलाम करते थे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम, जिनके शरीर में विष का प्रभाव बड़ी तेज़ी से फैल रहा था, उसी कमज़ोरी की हालत में लोगों से कहते थे कि इससे पहले कि तुम मुझे खो दो, मुझसे जो चाहो पूछ लो लेकिन संक्षेप में पूछो। विष के प्रभाव के कारण बेहोश होने से पहले वे हर क्षण लोगों का मार्गदर्शन करते रहते थे और उनसे कहते थे कि वे उनके ज्ञान से लाभ उठाएं।

इन दो दिनों में लोगों से मुलाक़ात के अलावा, जिसके दौरान उनकी बिगड़ती हालत और लोगों की अधिक संख्या के कारण कोई प्रश्न व उत्तर नहीं हो पाता था, उनके कुछ विशेष साथियों को भी उनके जीवन के अंतिम क्षणों में उनसे मिलने का अवसर मिला। उन्हीं में से एक हबीब बिन अम्र थे। वे कहते हैं कि मैं उनके घर में प्रविष्ट हुआ और उन्हें देख कर रोने लगा, कई और लोग रोने लगे। जब घर के अंदर से रोने की आवाज़ बाहर गई तो लोगों के धैर्य का बांध भी टूट गया और वे भी ऊंची आवाज़ से रोने लगे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपनी आंखें खोलीं और कहाः जो कुछ मैं देख रहा हूं, उसे अगर तुम भी देखते तो न रोते। मैंने पूछाः हे ईमान वालों के सरदार! आप क्या देख रहे हैं? उन्होंने कहा कि मैं ईश्वर के फ़रिश्तों को देख रहा हूं, मैं पैग़म्बरों व रसूलों को देख रहा हूं जो पंक्ति बना कर मुझे सलाम कर रहे हैं और स्वागतम कह रहे हैं। मैं पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम को देख रहा हूं जो मेरे पास बैठे हुए हैं और कह रहे हैं कि हे अली! जल्दी आओ, जो संसार तुम्हारी प्रतीक्षा में है, वह उस संसार से कहीं बेहतर है जिसमें तुम इस समय हो।

जब चिकित्सक ने हज़रत अली अलैहिस्सालम के उपचार से अपने असहाय व अक्षम होने की घोषणा कर दी तो उन्होंने अपने बड़े बेटे इमाम हसन अलैहिस्सलाम को अपने क़रीब बुलाया और वसीयत करने लगे। अपनी वसीयत के एक भाग में उन्होंने कहा कि मैं तुम सबको ईश्वर से डरने की सिफ़ारिश करता हूं, दुनिया के पीछे न भागना, चाहे वह तुम्हारे पीछे आती रहे, दुनिया की धन संपत्ति में से जो तुम्हारे हाथ से निकल जाए उस पर दुखी मत होना, सच्ची बात कहना, हक़ का साथ देना, प्रलय के पारितोषिक के लिए काम करना और अत्याचारी के दुश्मन और अत्याचारग्रस्त के सहायक रहना।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपनी वसीयत के एक अन्य भाग में कहा थाः अनाथों पर बहुत अधिक ध्यान देना, पड़ोसियों का बहुत ख़याल रखना, पैग़म्बर ने पड़ोसियों के बारे में इतनी सिफ़ारिश की कि हमें लगने लगा कि शायद पड़ोसी विरासत में भी भागीदार बन जाएंगे। क़ुरआने मजीद पर बहुत ध्यान देना, ऐसा न हो कि उस पर अमल करने के संबंध में दूसरे तुम से आगे बढ़ जाएं। नमाज़ पर भी बहुत अधिक ध्यान देना कि वह तुम्हारे धर्म का आधार है। इसी तरह काबे पर भी बहुत अधिक ध्यान देना, कहीं ऐसा न हो कि हज बंद हो जाए, अगर हज को छोड़ दिया गया तो तुम्हें मोहलत नहीं दी जाएगी और दूसरे तुम्हें अपना शिकार बना लेंगे। ये हज़रत अली अलैहिस्साम की वसीयत के केवल कुछ ही भाग हैं। उनकी वसीयत यद्यपि छोटी थी लेकिन उसने मानवता के घोषणापत्र और मानव समाज की परिपूर्णता के रास्ते का रेखांकन किया है।

आज लगभग 14 सदियों के बाद भी दुनिया उस व्यक्ति के लिए शोकाकुल है जिसके साथ रहने की लालसा संसार के सभी स्वतंत्रताप्रेमियों के दिल में है। ब्रिटेन के प्रख्यात दार्शनिक कारलायल कहते हैं। हम अली (अलैहिस्सलाम) को चाहने और उनसे प्रेम करने के अलावा कुछ नहीं कर सकते क्योंकि वे एक महान हृदय वाले साहसी पुरुष हैं। उनकी आत्मा के स्रोत से भलाई के अलावा और कुछ नहीं निकलता था, उनके हृदय से साहस व शौर्य के शोले निकलते थे, वे शेर से ज़्यादा बहादुर थे लेकिन उनकी बहादुरी दया, कृपा, स्नेह और नर्मदली से जुड़ी हुई थी। वे कूफ़ा में शहीद हुए, उनका अत्यधिक न्याय ही इस अपराध की वजह बना, उन्होंने अपनी मौत से पहले अपने हत्यारे के बारे में कहा थाः अगर में ज़िंदा रहा तो मैं ख़ुद उसके बारे में फ़ैसला करूंगा लेकिन अगर मैं मर गया तो फिर फ़ैसला तुम्हें करना होगा, अगर तुम उससे बदला लेना चाहोगे तो एक वार के बदले में सिर्फ़ एक ही वार करना और अगर तुम उसे क्षमा कर दोगे तो यह ईश्वरीय भय के अधिक निकट है।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत, मानव इतिहास की सबसे पीड़ादायक घटनाओं में से एक है। वे न केवल मुसलमानों के लिए बल्कि सभी सत्य व न्याय प्रेमियों और नैतिक गुणों के खोजियों के लिए एक सम्मानीय आदर्श थे और हैं। यही कारण है कि सभी पवित्र हृदय वाले उनकी शहादत के दिन शोकाकुल हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम नमाज़ की स्थिति में मस्जिद में ज़हर से बुझी हुई तलवार से उन लोगों के हाथों शहीद हुए जो अपने आपको मुसलमान कहते थे। उनके बारे में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने कहा थाः हे अली! ईमान आपके अस्तित्व से गूंधा गया और वह आपके मांस और ख़ून में जुड़ा हुआ है जैसा कि वह मेरे मांस और ख़ून से जुड़ा हुआ है।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद उनके सुपुत्र इमाम हसन अलैहिस्सलाम लोगों के सामने आए और उन्होंने ईश्वर के गुणगान के बाद कहाः आज उस व्यक्ति ने दुनिया को विदा कहा है जिसकी वास्तविकता को न तो पहले वाले लोग समझ सके हैं और न ही आने वाले उस जैसा व्यक्ति देख सकेंगे। वे जब युद्ध नहीं कर रहे होते थे तो जिब्रईल उनके दाहिनी और मीकाईल बाईं ओर रहा करते थे। ईश्वर की सौगंध! वे उसी रात इस संसार से गए जिस रात हज़रत मूसा का निधन हुआ था, हज़रत ईसा को आसमान में ले जाया गया था और क़ुरआने मजीद नाज़िल हुआ था। जान लो कि उन्होंने अपने लिए सात सौ दिरहम के अलावा कोई सोना-चांदी नहीं छोड़ा है और वह भी उनके वेतन का बचा हुआ पैसा है। हे ईमान वालों के सरदार! ईश्वर आपसे प्रसन्न रहे। ईश्वर की सौगंध! आपका पूरा अस्तित्व हर भलाई की कुंजी था और अगर लोग आपका स्वीकार कर लेते तो उन पर ईश्वर की अनुंकपाओं की वर्षा होने लगती लेकिन वे अनुकंपाओं पर अकृतज्ञ रहे

माहे रमज़ानुल मुबारक की दुआ जो हज़रत रसूल अल्लाह स.ल.व.व.ने बयान फ़रमाया हैं।

اَللَّـهُمَّ افْتَحْ لي فيهِ اَبْوابَ فَضْلِكَ، وَاَنْزِلْ عَلَيَّ فيهِ بَرَكاتِكَ، وَوَفِّقْني فيهِ لِمُوجِباتِ مَرْضاتِكَ، وَاَسْكِنّي فيهِ بُحْبُوحاتِ جَنّاتِكَ، يا مُجيبَ دَعْوَةِ الْمُضْطَرّينَ.

अल्लाह हुम्मफ़-तह ली फ़ीहि अबवाब फ़ज़लिक, व अनज़िल अलैय फ़ीहि बरकातिक, व वफ़्फ़िक़नी फ़ीहि ले मूजिबाति मरज़ातिक, व अस-किन्नी फ़ीहि बुह-बूहाति जन्नातिक, या मुजीबा दावतिल मुज़तर्रीन (अल बलदुल अमीन, पेज 220, इब्राहिम बिन अली)

ख़ुदाया! मुझ पर इस महीने में अपने फ़ज़्ल के दरवाज़े खोल दे, और इस में अपनी बरकतें मुझ पर नाज़िल कर दे, और इस में अपनी ख़ूशनूदी के असबाब फ़राहम करने की तौफ़ीक़ अता कर, और इस के दौरान मुझे अपनी जन्नत के दरमियान बसा दे, ऐ बे बसों की दुआ क़ुबूल करने वाले...

अल्लाह हुम्मा स्वल्ले अला मुहम्मद व आले मुहम्मद व अज्जील फ़रजहुम.

रविवार 12 फ़रवरदीन बराबर 1 अप्रैल था जो "इस्लामिक रिपब्लिक" का दिन था। यह दिन राष्ट्रीय सम्मान को साकार करने और क्रांतिकारी जनता के हाथों देश की नियति निर्धारित करने में महान ईरानी राष्ट्र की इच्छा की एक वास्तविक अभिव्यक्ति का दिन था।

यह वह दिन है जब महान ईरानी राष्ट्र ने अपने तानाशाही विरोधी संघर्षों का नतीजा अपने सामने देखा।

इस लेख में हम इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद ईरान में इस्लामी गणराज्य की स्थापना के बारे में होने वाले जनमत संग्रह पर एक नज़र डालेंगे।

1- अस्थायी सरकार का गठन

17 बहमन सन 1357 हिजरी शम्सी को यानी इमाम खुमैनी के ईरान पहुंचने के पांच दिन बाद ही, इमाम ख़ुमैनी के आदेश पर इंजीनियर बाज़रगान को एक अंतरिम सरकार बनाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी।

इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद अंतरिम सरकार का एक कर्तव्य जनता के वोट द्वारा राजनीतिक व्यवस्था का निर्धारण करने के लिए जनमत संग्रह कराना था। यह एक ऐसी घटना थी जो विश्व के इतिहास में आज भी अभूतपूर्व है।

2- इस्लामिक रिपब्लिक का चयन

आख़िरकार 10 और 11 फ़रवरदीन सन 1358 को इस्लामी गणराज्य नामक राजनीतिक व्यवस्था को स्वीकार करने या अस्वीकार करने के लिए पूरे ईरानभर में एक जनमत संग्रह आयोजित किया गया।

इस्लामी गणराज्य के जनमत संग्रह में जनता की भव्य भागीदारी

इस जनमत संग्रह के नतीजे के अनुसार जिसकी घोषणा 12 फ़रवरदीन सन 1358 हिजरी शम्सी बराबर 1 ​​अप्रैल वर्ष 1979 को की गई थी।

जनमत संग्रह में भाग लेने के योग्य लोगों में 98 प्रतिशत से अधिक लोग, ईरान के इस्लामी गणराज्य की स्थापना पर सहमत थे।

इसी अवसर पर 12 फ़रवरदीन के दिन को ईरानी कैलेंडर में इस्लामी गणतंत्र ईरान का नाम दिया गया।

3- इमाम खुमैनी का संदेश

इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने इस ऐतिहासिक घटना और ईरानी राष्ट्र की अमर गाथा बयान करने वाले दिन के अवसर पर जारी किए गए संदेश में कहा कि 12 फ़रवरदीन की सुबह जो अल्लाह के शासन का पहला दिन है, हमारी सबसे बड़ी धार्मिक और राष्ट्रीय छुट्टियों में है।

हमारे राष्ट्र को इस दिन जश्न मनाना चाहिए और इसे जीवित रखना चाहिए।

यह वह दिन है जब अत्याचारी शासन की 2500 साल पुरानी राजशाही व्यवस्था ढह गई और शैतानी शासन हमेशा के लिए ख़त्म हो गया और उसकी जगह दीन-दुखियों की सरकार ने ले लिया जो ईश्वर की सरकार है।

सर्वशक्तिमान ईश्वर ने हम पर कृपा की और अहंकारी शासन की बिसात अपने शक्तिशाली हाथ से जो मज़लूमों का दाता है, लपेट दी और हमारे महान राष्ट्र को दुनिया के मज़लूम राष्ट्रों का नेता और प्रतिनिधि बनाया और "इस्लामिक रिपब्लिक" की स्थापना करके उन्हें वह विरासत दी जिनके वे हक़दार थे।

4 - इस्लामी गणतंत्र का अर्थ

इस्लामी क्रांति की सफलता के साथ ही इस्लामी क्रांति के नेता इमाम खुमैनी ने ईश्वर और जनता के अधिकारों को एक सरकार में मिलाने का सिद्धांत पेश किया और इसे इस्लामी गणतंत्र प्रणाली के रूप में दुनिया के सामने पेश किया जिसका जनता और बुद्धिजीवियों ने भरपूर स्वागत किया।

"गणतंत्र" शब्द का अर्थ लोगों का जनसमूह होता है। क्रांति के बाद की व्यवस्था के लिए इस तरह के शब्द को शामिल करने से पता चलता है कि यह क्रांति जनता की थी और लोगों के वोट उनके भाग्य निर्धारण को किस तरह प्रभावित करते हैं।

"इस्लामी" शब्द भी इसे अन्य गणतांत्रिक प्रणालियों से अलग करता है और यह प्रणाली ईश्वरीय और क़ुरआनी मूल्यों की सत्ता की ओर इशारा करती है।

इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था में प्रत्येक लोगों के वोट और उनकी राय का सम्मान किया जाता है और मुस्लिम जनता के बीच से उत्पन्न होने वाले शासक, उन इस्लामी आदेशों को लागू करने का प्रयास करते हैं जिनमें समाज की खुशी शामिल होती है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई जिन्हें इमाम खुमैनी के बाद इस्लामी क्रांति के नेता के रूप में नियुक्त किया गया था, इस संबंध में और इस्लामी गणराज्य शब्द की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि इस्लामी गणराज्य का शाब्दिक अर्थ, दो बुनियादों पर आधारित होता है, पूरी जनता अर्थात देश की जनता और जनसंख्या ही देश के प्रशासन और सरकारी संस्थाओं तथा देश के प्रबंधन का निर्धारण करती है जबकि दूसरी बुनियाद इस्लामी है यानी लोगों का ये आंदोलन इस्लामी विचारों और इस्लामी क़ानूनों पर आधारित है।

यह एक स्वाभाविक सी बात है। जिस देश में लगभग सभी बहुसंख्यक मुसलमान हों, यानी मोमिन, ईश्वर पर आस्था रखने वाले और सक्रिय मुसलमान हैं जिन्होंने पूरे इतिहास के दौरान इस्लाम में अपनी गहरी आस्था को साबित भी किया है, ऐसे देश में अगर कोई जन सरकार है, तो स्वभाविक सी बात है कि वह इस्लामी सरकार भी होगी।

5 - दुनिया में प्रभाव

12  फ़रवरदीन सन 1358 हिजरी शम्सी को ईरान इस्लामी गणतंत्र सरकार की घोषणा की वजह से दुनिया के मज़लूम, अत्याचारग्रस्त और कमज़ोर राष्ट्रों के बीच आशा की किरण पैदा हो गयी।

वास्तव में इस्लामी क्रांति ने उन लोगों को एक नए समाज और मज़बूत धर्म के आधार के लिए एक मज़बूत विचार और इच्छाशक्ति प्रदान की जो पश्चिमी मॉडल और साम्यवादी मॉडल से हतोत्साहित और निराश हो चुके थे।

दुनिया के मज़लूम और वंचित लोगों को एहसास हुआ कि एकेश्वरवादी धार्मिक शिक्षाओं और ईरान राष्ट्र की तरह राष्ट्रीय इच्छा का समर्थन करके वे समस्याओं को दूर कर सकते हैं और अपनी मन पसंद और जन सरकार बना सकते हैं जो साम्राज्यवादियों पर मज़लूमों और कमज़ोरों की जीत का वादा है जिस की ओर पवित्र क़ुरआ ने भी इशारा किया है।

ईरान की मेन्स थ्री मैन नेश्नल बास्केटबॉल टीम एशियाई कप में उपविजेता बन गयी।

ईरान की मेन्स थ्री मैन नेश्नल बास्केटबॉल टीम, जो पहली बार एशियाई कप के फाइनल तक पहुंचने में कामयाब रही, ऑस्ट्रेलिया से हारने के बाद इस प्रतियोगिता की उपविजेता बनी।

एशिया कप 2024 सिंगापुर के फाइनल में पहुंचने के दौरान ईरान की तीन सदस्यीय राष्ट्रीय बास्केटबॉल टीम ने चीन ताइपे, हांगकांग, चीन, सिंगापुर, जापान और न्यूजीलैंड की टीमों को हराया था।

गाजा में अल-शफा अस्पताल की घेराबंदी के दौरान कब्जा करने वाले ज़ायोनी सैनिकों द्वारा कम से कम तीन सौ फ़िलिस्तीनी शहीद हो गए।

फ़िलिस्तीनी सूत्रों ने कहा है कि पिछले दो सप्ताह की घेराबंदी के दौरान ज़ायोनी सेना के आक्रामक हमलों और ज़ायोनी सेना की वापसी के परिणामस्वरूप गाजा शहर में अल-शफ़ा अस्पताल पूरी तरह से नष्ट हो गया है। इस अस्पताल के आसपास। वहीं, दर्जनों फिलिस्तीनियों के शव सड़कों पर और अस्पताल परिसर में और उसके आसपास बिखरे हुए हैं।

ज़ायोनी मीडिया सूत्रों ने यह भी स्वीकार किया है कि ज़ायोनी सेना ने पिछले दो सप्ताह से अल-शफा अस्पताल की घेराबंदी के दौरान 200 फ़िलिस्तीनियों को शहीद कर दिया है और 900 फ़िलिस्तीनियों को गिरफ्तार कर लिया है। इस बीच, ज़ायोनी सेना ने आज सोमवार सुबह गाजा में कई फ़िलिस्तीनियों को शहीद कर दिया है।

उधर, ज़ायोनी सेना ने घोषणा की है कि दक्षिणी ग़ज़ा में फ़िलिस्तीनी मुजाहिदीन के साथ लड़ाई में उसका एक और सैनिक मारा गया है।

ज़ायोनी सूत्रों ने स्वीकार किया है कि पिछले साल 7 अक्टूबर को जब अल-अक्सा तूफान शुरू हुआ था तब से 600 ज़ायोनी सैनिक मारे गए हैं - इन सूत्रों के अनुसार, गाजा पर ज़मीनी हमले के बाद मुजाहिदीन के साथ लड़ाई में 246 इज़रायली सैनिक मारे गए हैं-

दूसरी ओर, ज़ायोनी कैदियों के परिजन ज़ायोनी संसद के सामने एकत्र हुए और ज़ायोनी प्रधान मंत्री नेतन्याहू को बर्खास्त करने और कैदियों की अदला-बदली के लिए हमास और ज़ायोनी सरकार के बीच एक समझौते पर पहुंचने की आवश्यकता पर बल दिया।

ज़ायोनी प्रधान मंत्री नेतन्याहू के विपक्ष के नेता यायर लापिड रविवार रात ज़ायोनी कैदियों के परिवारों के बीच पहुँचे और कहा कि जल्दी चुनाव कराने से ज़ायोनी सरकार की स्थिति पर कोई असर नहीं पड़ेगा, जबकि यह सरकार कहीं अधिक है फिलहाल हार गया। खुदरा बना हुआ है। इससे पहले, ज़ायोनी प्रधान मंत्री नेतन्याहू ने शीघ्र चुनाव के लिए विपक्ष के अनुरोधों की ओर इशारा किया और कहा कि चुनाव बातचीत प्रक्रिया को पंगु बना देंगे।

नेतन्याहू ने दावा किया है कि सैन्य दबाव और बातचीत के जरिए इजरायली कैदियों को वापस लाने की कोशिश की जा रही है. उन्होंने यह दावा ऐसी स्थिति में किया है कि नेतन्याहू पिछले छह महीनों से ज़ायोनी आक्रामकता जारी रखते हुए अपने किसी भी लक्ष्य को हासिल नहीं कर पाए हैं।

ज़ायोनियों ने ईसाई पर्यटकों पर हमला किया और उसके बाद उन्होंने अपने बच्चों को ऐसा करने के लिए उकसाया।

यहूदी स्कूलों से जारी होने वाली रिपोर्टों के अनुसार, ज़ायोनी बच्चों को कम और छोटी उम्र से ही ग़ैर-यहूदियों से नफ़रत करना सिखाया जाता है।

जैसा कि आप वीडियो में देख सकते हैं कि ज़ायोनी कट्टरपंथी, ईसाई पर्यटकों पर हमले करने के बाद अपने बच्चों के इस नस्लभेदी काम की हिमायत भी करते हैं।

एक्स सोशल नेटवर्क यूज़र ने इस वीडियो को शेयर करते हुए लिखा कि

 किसी भी समाज में, अगर पुरुष इस तरह से महिलाओं पर हमला करते हैं, तो इसे तुरंत रोक दिया जाएगा! लेकिन ज़ायोनी जो चाहें कर सकते हैं और जिसे चाहें चोट पहुंचा सकते हैं, उनके बड़े बुज़ुर्ग इस बुरे काम का बचाव करते हैं, यह अविश्वसनीय है!

 

जॉर्डन के बहुत सारे शहरों में गाज़ा के समर्थन और इज़रायल के ज़ुल्म के खिलाफ बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर निकाल कर विरोध प्रदर्शन किया

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,फिलिस्तीन सूचना केंद्र का हवाला देते हुए, ये प्रदर्शन अम्मान और जॉर्डन के कुछ अन्य शहरों में आयोजित किए गए थे।

जॉर्डन की राजधानी अम्मान में प्रदर्शनकारियों ने ज़ायोनी कब्जे वाले शासन के दूतावास को घेर लिया और गाजा के लोगों के साथ एकजुटता की घोषणा करते हुए नारे लगाए, और फिलिस्तीनियों के खिलाफ इजरायली कब्जे के नरसंहार और अपराधों को तत्काल समाप्त करने की मांग की हैं।

प्रदर्शनकारियों ने प्रतिरोध और हमास के समर्थन में भी नारे लगाए और यरूशलेम के कब्जे वाले शासन के साथ संबंधों के सामान्यीकरण को रोकने की मांग की।

जॉर्डन के सुरक्षा बलों ने इज़रायली दूतावास के आसपास प्रदर्शनकारियों पर हमला किया और उन्हें तितर-बितर कर दिया।

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को 15 अप्रैल तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है.

दिल्ली से मिली खबर के मुताबिक प्रवर्तन निदेशालय ईडी ने आज दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को विशेष अदालत में पेश किया. ईडी और केजरीवाल के वकीलों दोनों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने केजरीवाल को 15 अप्रैल तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया.

ध्यान रहे कि ईडी ने कथित शराब घोटाले और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को 21 मार्च को गिरफ्तार किया था. केजरीवाल को 22 मार्च को एक विशेष अदालत में पेश किया गया, जिसने दिल्ली के मुख्यमंत्री को जांच के लिए 28 मार्च तक ईडी की हिरासत में भेज दिया। 28 मार्च को अदालत ने ईडी के अनुरोध पर केजरीवाल की फिजिकल रिमांड 1 अप्रैल तक बढ़ा दी थी।

गौरतलब है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री की गिरफ्तारी पर देशभर में बीजेपी सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. इसी सिलसिले में विपक्षी दलों के गठबंधन भारत ने कल दिल्ली के रामलीला मैदान में एक रैली का आयोजन किया, जिसमें कांग्रेस पार्टी समेत देश की सभी प्रमुख विपक्षी पार्टियों ने हिस्सा लिया.

शरणार्थी यहूदियों के ज़रिए फ़िलिस्तीन पर क़ब्ज़ा यूरोपीय साम्राज्यवादी टैकटिक के समान है और यह क़ब्ज़ा यूरोपीय साम्राज्यवाद की मिसाल है।

यूरोपीय जहां भी गए, चाहे वो अमरीका हो, आस्ट्रेलिया हो, अफ़्रीक़ा हो यही चाल चलीः ज़मीनों पर क़ब्ज़ा करो, जहां तक संभव हो ज़्यादा से ज़्यादा ज़मीनें हथिया लो और जो विरोध करे उसे कुचल दो।

इस्राईल कई महीनों से हमास को ख़त्म करने के बहाने ग़ज़ा पट्टी पर बमबारी कर रहा है।

लेकिन वो एक आइडियालोजी को शिकस्त नहीं दे सकते, अगर आपकी धरती पर क़ब्ज़ा कर लिया जाए तो रेज़िस्ट करना आपका अधिकार है, क़ब्ज़ा जारी रहता है तो यह विचार भी जारी रहेगा और एक नस्ल से दूसरी नस्ल में यह विचार और जज़्बा स्थानान्तरित होता रहेगा।

 

इस्राईल चाहता है कि इस समय ग़ज़ा पट्टी में जो फ़िलिस्तीनी हैं इस इलाक़े को छोड़कर मिस्र चले जाएं। इस्राईल का लक्ष्य बिल्कुल साफ़ है। इस्राईल यहूदियों का विशेष देश बनाने की कोशिश में है जिसमें अरबों और फ़िलिस्तीनियों के लिए कोई जगह न हो। वह चाहता है कि ग़ज़ा पट्टी में आबादी कम हो जाए।

इस समय उत्तरी इलाक़ों में वो एक सेफ़ ज़ोन बनाने की कोशिश कर रहे हैं जहां कोई फ़िलिस्तीनी न हो। वो जबालिया, बैत हानून जैसे इलाक़ों को फ़िलिस्तीनियों से पूरी तरह ख़ाली करा लेना चाहते हैं। ज़ायोनी सोचते हैं कि इस तरह उनके लिए ख़तरा नहीं रहेगा।

जब 1917 में बालफ़ोर घोषणापत्र का एलान किया गया तो उस समय फ़िलिस्तीन में यहूदियों की संख्या मात्र 56 हज़ार थी। 1922 में फ़िलिस्तीन पर ब्रिटेन का मैनडेट लागू हो गया तो फ़िलिस्तीन के दरवाज़े यहूदियों के लिए पूरी तरह खोल दिए गए। 1939से 1945 के बीच जंग के वर्षों में और 1947 में पार्टीशन योजना के एलान तक बड़ी संख्या में यहूदियों ने फ़िलिस्तीन की तरफ़ पलायन किया। उनकी संख्या बढ़कर 6 लाख 65 हज़ार हो गई। इसकी सबसे बड़ी वजह फ़िलिस्तीन का ब्रिटेन के मैनडेट में होना था। इसका मतलब यह था कि ब्रिटेन के पास इस इलाक़े  के प्रशासनिक अधिकार थे लेकिन इसका यह अर्थ तो नहीं होता कि ब्रिटेन इस इलाक़े का मालिक बन गया हो। इस इलाक़े का शासन ब्रिटेन को कभी नहीं सौंपा गया।

ब्रिटेन की देखरेख में फ़िलिस्तीन में यहूदियों की संख्या बढ़ती जा रही थी, अरबों को उनकी ज़मीनों से बेदख़ल किया जा रहा था। वर्ष 1948 में इस्राईल की घोषणा होने के समय यहूदियों की संख्या साढ़े सात लाख से ज़्यादा हो गई।

۔यूनिसेफ के प्रवक्ता ने फिलिस्तीनी बच्चों पर गाजा युद्ध के खतरनाक प्रभावों के बारे में कड़ी चेतावनी दी है और कहा है कि फिलिस्तीनी बच्चों को भुखमरी जैसी विभिन्न समस्याओं और कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, फिर भी दुनिया केवल तमाशबीन बनी हुई है।

संयुक्त राष्ट्र बाल संगठन यूनिसेफ के प्रवक्ता जेम्स एल्डर ने एक्स नेटवर्क के माध्यम से अपने संदेश में फिलिस्तीनी बच्चों पर गाजा युद्ध के प्रभावों के बारे में कड़ी चेतावनी दी और गाजा में तत्काल युद्धविराम की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि फ़िलिस्तीनी बच्चे भुखमरी जैसी विभिन्न समस्याओं का सामना कर रहे हैं और दुनिया सिर्फ दर्शक बनी हुई है।

जेम्स एल्डर ने कहा कि गाजा में लगभग 16 प्रतिशत बच्चे उचित भोजन से वंचित हैं और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव पारित होने और अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा फिलीस्तीन को मानवीय सहायता और मानवीय सहायता उपलब्ध कराने की मांग के बावजूद दमनकारी ज़ायोनी शासन बमबारी करके फिलिस्तीनियों के खिलाफ नरसंहार करना जारी रखता है। गाजा के नागरिकों के खिलाफ सभी प्रकार के अमानवीय अपराध कर रहे हैं।