
رضوی
ईरान की पवित्र प्रतिरक्षा काल की उपलब्धियां दुनियावालों के लिए प्रेरणा का आधार
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने कमान्डरों, इराक़ के बासी शासन द्वारा थोपी गयी जंग में भाग लेने वाले जियालों और कलाकारों के एक समूह से मुलाक़ात की।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने कमान्डरों, इराक़ के बासी शासन द्वारा थोपी गयी जंग में भाग लेने वाले जियालों और कलाकारों के एक समूह से मुलाक़ात की और इसमें पवित्र रक्षा के जियालों और उनके परिवार के सदस्यों की ओर से इस पवित्र रक्षा के दौर की बयान की गयी बातों को ईरानी राष्ट्र के लिए सबसे मूल्यवान धरोहर बताया और पवित्र रक्षा के काल को, इस वर्चस्ववादी दुनिया में शक्ति के समीकरण की स्थिति को निर्धारित करने वाला बताया। वरिष्ठ नेता ने कहा कि पवित्र रक्षा के संबंध में फ़िल्में बने, इस दौर की कलाकृतियों को देश से बाहर आम किया जाए और लिखित बातों का अनुवाद किया जाए और इस ईरानी राष्ट्र के ईश्वर पर आस्था, संघर्ष और दृढ़ता के संदेश को दुनिया वालों तक पहुंचाया जाए।
1980 से 1988 के दौरान के बासी शासन द्वारा थोपी गयी 8 वर्षीय जंग का काल इस्लामी क्रान्ति का स्वर्णिम दौर है। आठ वर्षीय थोपी गयी जंग ईश्वर पर आस्था, आत्मविश्वास, बलिदान, प्रतिरोध और वीरता का मत थी और ये सब इस्लामी क्रान्ति के संस्थापक इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैहि उस यादगार जुमले "हम सक्षम हैं" का प्रतिबिंबन है।
पवित्र रक्षा के दौर की यादों को फ़िल्म व किताब के रूप में तय्यार करना और उन्हें दुनिया की विभिन्न ज़बानों में प्रकाशित करना, ईरानी राष्ट्र के सांस्कृतिक व आध्यात्मिक पहचान पत्र को पेश करने के समान है ताकि सबको यह पता चल जाए कि ईरानी राष्ट्र सबसे बुरे हालात में भी एक क़दम पीछे नहीं हटता। यह दृढ़ता और बलिदान किसी दौर से विशेष नहीं है बल्कि आज भी अगर इस्लामी क्रान्ति के दुश्मन ईरानी राष्ट्र के ख़िलाफ़ दबाव तेज़ करें तो उसी तरह कारगर है।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता के शब्दों में जिस तरह इस्लामी क्रान्ति के आरंभ और पवित्र प्रतिरक्षा के काल में साम्राज्य के क्रान्ति के नेहाल को उखाड़ने की साज़िश नाकाम हो गयी और वह पीछे हटने पर मजबूर हुआ उसी तरह आज भी ईश्वर पर भरोसे, साहस और कोशिश से इस साज़िश को नाकाम किया जा सकता है।
इस समय अमरीकी अधिकारियों ने ईरान के ख़िलाफ़ जो आर्थिक जंग छेड़ रखी है और वे हर देश का चक्कर लगा रहे हैं ताकि अपने विचार में ईरान को झुका दें, पवित्र रक्षा के काल की बर्बरतापूर्ण शैली की ही पुनरावृत्ति है। लेकिन उस दौर का अनुभव इतिहास के उस जटिल दौर से ईरान के सफलतापूर्वक गुज़रने और अत्याचार के ख़िलाफ़ तनिक भी पीछे न हटने का सूचक है।
इंडोनेशिया सूनामी, 400 से अधिक हताहत, ईरान ने बढ़ाया मदद के लिए हाथ
इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप और पालू शहर में भीषण भूकंप और सूनामी के परिणाम में होने वाले जानी व माली नुक़सान पर ईरान ने खेद प्रकट करते हुए इंडोनेशिया की मदद करने के लिए अपनी तत्परता की घोषणा की है।
इस्लामी गणतंत्र ईरान के विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता बहराम क़ासिमी ने इंडोनेशिया में आने वाले भूकंप में होने वाली तबाही पर खेद प्रकट करते हुए दुर्घटना के शिकार लोगों के परिजनों और सरकार से सहृदयता व्यक्त करते हुए इस देश की सहायता के लिए तेहरान की तत्परता की घोषणा की है।
ईरान के विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता बहराम क़ासिमी ने कहा कि इंडोनेशिया की मुसिबत की इस घड़ी में ईरान इस देश के साथ खड़ा है।
ज्ञात रहे कि इंडोनेशिया के सोलावीसी द्वीप और पालो शहर में भीषण भूकंप और सूनामी के परिणाम में 400 से अधिक लोग हताहत हो चुके हैं।
इस बारे में इंडोनेशिया के अधिकारियों ने पुष्टि की है। हालांकि अभी अस्पतालों में सैकड़ों की संख्या में घायलों इलाज चल रहा है। ऐेसे में मरने वालों की संख्या में वृद्धि हो सकती है। शुक्रवार की शाम को इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप में भूकंप और सुनामी आई थी।
इंडोनेशिया की राष्ट्रीय आपदा एजेंसी ने अभी तक 384 लोगों के मारे जाने की आधिकारिक पुष्टि की है। ये सभी मौतें सुनामी से प्रभावित शहर पालू में हुई हैं। विभाग ने चेतावनी दी है कि अभी मरने वालों की संख्या बढ़ सकती है।
खबर है आपदा प्रभावित शहर के करीब 350000 लोगों के घर ढह गए हैं या छतिग्रस्त हो गए हैं। भूकंप के बाद अगले दिन भी शहर में करीब 5 फिट ऊंची सुनामी की लहरें आईं। घटना शुक्रवार को उस वक्त हुई तब बहुत से लोग बीच पर मनाए जाने वाले एक वार्षिक उत्सव की तैयारी कर रहे थे।
घायलों की तादाद इतनी अधिक है कि सभी अस्पताल बुरी तरह से भर चुके हैं। बहुत से मरीजों को खुले आसमान के नीचे लेटाकर सड़कों पर ही इलाज किया जा रहा है। जबकि मृतकों के परिजनों को हर संभव मदद मुहैया कराई जा रही है।
भारत ने की अहवाज़ में हुए आतंकवादी हमले की निंदा
ईरान के दक्षिण पश्चिमी नगर अहवाज़ में हुई आतंकवादी घटना की भारत ने कड़े शब्दों में निंदा की है।
प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार भारत ने 22 सितंबर को इस्लामी गणतंत्र ईरान के दक्षिण पश्चिमी नगर अहवाज़ में हुए आतंकवादी हमले की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए इस घटना में शहीद और घायल होने वाले परिवारों के साथ सहानुभूति जताई है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपने एक बयान में कहा कि हम दिल की गहराईयों से इस्लामी गणतंत्र ईरान के अहवाज़ शहर में होने वाले आतंकवादी हमलों में शहीद होने वाले लोगों के परिवार वालों के साथ संवेदना व्यक्त करते हैं और इस हमले से हुए घायलों के जल्द ठीक होने की ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। याद रहे कि इससे पहले पाकिस्तान, लेबनान, इराक़, सीरिया, रूस, चीन और संयुक्त राष्ट्र संघ सहित दुनिया के कई देशों ने अहवाज़ में हुए आतंकवादी हमले की निंदा की थी।
उल्लेखनीय है कि तकफ़ीरी आतंकवादी गुट दाइश से जुड़े आतंकी गुट अल-अहवाज़िया ने, जिसे ब्रिटेन और सऊदी अरब का समर्थन प्राप्त है, शनिवार को ईरान के दक्षिणी प्रांत ख़ूज़िस्तान के शहर अहवाज़ में उस समय एक पार्क से आम लोगों पर आतंकी हमला किया जब देश की सशस्त्र सेना परेड कर रही थी। अहवाज़ नगर में होने वाले इस हमले में 25 लोग शहीद हुए जबकि 60 अन्य घायल हो गए हैं।
अहवाज़ की कटु घटना में लिप्त तत्वों को कठोर सज़ा दी जाएगी
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने अहवाज़ के आतंकी हमले को कायरतापूर्ण कार्यवाही ठहराते हुए कहा कि यह तय है कि अहवाज़ की कटु घटना में लिप्त तत्वों को कठोर सज़ा दी जाएगी।
ईरान की इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने इंडोनेशिया एशियन गेम्ज़ में मेडल जीतने वाले खिलाड़ियों से एक मुलाक़ात में शनिवार को अहवाज़ में होने वाली आतंकी घटना का उल्लेख किया और कहा कि रिपोर्टों से पता चला है कि यह काम उन्हीं कायर तत्वों का है जो सीरिया और इराक़ में जब भी कहीं फंस जाते हैं तो अमरीकी उन्हें मुक्ति दिलाते हैं और इन्हें सऊदी अरब और इमारात से पैसे मिलते हैं।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि इस दुखद घटना ने फिर साबित कर दिया कि उन्नति और उत्थान के मार्ग में ईरान राष्ट्र को बहुत से शत्रुओं का सामना है।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने इस अवसर पर यह भी बताया कि इस्राईल के खिलाड़ियों से ईरान के खिलाड़ी क्यों कोई मुक़ाबला नहीं करते। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने कहा कि इस्लामी क्रान्ति आने के बाद इस्लामी गणतंत्र ईरान ने ज़ायोनी शासन तथा दक्षिणी अफ़्रीक़ा के अपारथाइड शासन को मन्यता देने से इंकार कर दिया था, दक्षिणी अफ़्रीक़ा की अपारथाइड व्यवस्था ध्वस्त हो गई और झूठा, अतिग्रहणकारी और नस्ल परस्त ज़ायोनी शासन भी समाप्त हो जाएगा।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने ज़ोर देकर कहा कि ईरान ज़ायोनी शासन के साथ किसी भी मुक़ाबले में भाग नहीं लेगा और हम यह मानते हैं कि यह इंकार ही जिसका एक नमूना पिछले साल अली रज़ा करीमी ने पेश किया अपने आप में वास्तविक चैंपियनशिप है।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता का कहना था कि अंतर्राष्ट्रीय मुक़ाबलों में ईरान के खिलाड़ियों का गौरवपूर्ण प्रदर्शन दुनिया के आज़ाद राष्ट्रों की खुशी तथा साम्राज्यवादी मोर्चे के आक्रोश का कारण है। आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने कहा कि साम्राज्यवादी शक्तियां हर मैदान में ईरानी राष्ट्र की विजय से नाराज़ होते हैं इसलिए ईरानी खिलाड़ियों की विजय ईरानी राष्ट्र की विजय तथा ईरान के दुशमन मोर्चे की पराजय है।
इमाम ज़ैनुलआबेदीन की शहादत पर विशेष कार्यक्रम
एक कथन के अनुसार यह दिन, पैगम्बरे इस्लाम के पौत्र, इमाम ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम का शहादत दिवस है। इमाम ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के बेटे हैं जो कर्बला की महात्रासदी में मौजूद थे किंतु बीमारी के कारण उन्होंने युद्ध में भाग नहीं लिया और ईश्वर ने उन्हें इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के मिशन को आगे बढ़ाने के लिए जीवित रखा। इमाम ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम को सन 94 हिजरी क़मरी में उमवी शासक हिशाम बिन अब्दुलमलिक की साज़िश के अंतर्गत, ज़हर दे दिया गया और वे शहीद हो गये।
इस्लामी इतिहास के आरंभ में जब ओहद नामक युद्ध के दौरान पैगम्बरे इस्लाम के माथे पर एक पत्थर लगा और खून बहने लगा तो उनके दुश्मनों ने शोर मचा दिया कि पैगम्बरे इस्लाम मारे गये। इस अफवाह के फैलने से दुश्मन का हौसला बढ़ा और बहुत से मुसलमान निराश हो गये और मैदान छोड़ कर भाग गये और कुछ, दुश्मन के कमांडरों से बात चीत करने की जुगत में लग गये लेकिन इन गिने चुने लोगों के सामने वह मुसलमान खड़े हो गये जो यह पुकार पुकार कर कह रहे थे कि अगर मुहम्मद न भी रहें तो भी मुहम्मद का रास्ता और मुहम्मद का ईश्वर तो है, भागो न । कुरआने मजीद के सूरए आले इमरान की आयत नंबर 144 में इस बारे में कहा गया हैः मुहम्मद, ईश्वरीय दूत के अलावा कुछ नहीं हैं, उनसे पहले भी रसूल आए तो क्या कोई अगर मर जाए या मार दिया जाए तो अतीत में चले जाओगे तो जो भी पीछे की तरफ जाएगा जो वह ईश्वर को कोई नुक़सान नहीं पहुंचा पाएगा और ईश्वर जल्द ही शुक्र करने वालों को प्रतिफल देगा।
यह पीछे लौटने की जो स्थिति है वह पैगम्बरे इस्लाम के स्वर्गवास के बाद सामने आयी। इसी वजह से कर्बला की घटना हुई। निश्चित रूप से कर्बला कोई सैन्य विद्रोह नहीं था जो अचानक हो गया हो बल्कि यह घटना, आधी सदी पहले से आरंभ हुई थी और एेसी छोटी छोटी घटनाओं से आरंभ हुई थी जो मुसलमानों की नज़र में महत्वपूर्ण नहीं थीं लेकिन धीरे धीरे इन घटनाओं की गंभीरता बढ़ती गयी और धीरे धीरे पूरे समाज के लिए खतरा बन गयीं। यह स्थिति सन 61 हिजरी क़मरी में अपनी चरम पर पहुंच गयी थी जिसकी वजह से इस्लाम अपने अस्त के निकट पहुंचता प्रतीत हो रहा था। यही वजह थी कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने आंदोलन चलाया और कर्बला की घटना हुई और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम अपने बहत्तर साथियों के साथ शहीद हो गये। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के साथ ही इमाम ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम की इमामत का काल आरंभ हो गया।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम का काल इस्लामी इतिहास में अत्याधिक घुटन भरा और काला युग था। यद्यपि उस से पूर्व भी हज़रत अली अलैहिस्सलाम की इस्लामी सरकार, सत्ता में मुआविया के पहुंचने से तानाशाही सरकार में बदल चुकी थी किंतु चौथे इमाम इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम का युग उससे पहले के युगों से इस लिए भिन्न था कि उनके काल में शासक, बिना किसी संकोच व लज्जा के इस्लामी आस्थाओं का अपमान करते और खुले रूप में इस्लामी सिद्धान्तों को पैरों तले रौंदते यद्यपि वे इस्लामी शासक कहे जाते थे । वे इतने अत्याचारी थे कि उनके भय से कोई तनिक भी आपत्ति का साहस नहीं करता था। मुआविया ने इस्लाम का रूप बिगाड़ने के लिए, पैगम्बरे इस्लाम के नाम पर कथन अर्थात हदीस गढ़ने के लिए पूरी एक टीम बनायी थी जो रात दिन यही काम करती थी। इसके साथ ही पैगम्बरे इस्लाम के परिजनों पर आरोप लगाए जाते और पूरे इ्सलामी समाज में उनकी छवि खराब की जाती। इसके साथ ही मुआविया एेसे लोगों को महिमामंडन कराता जो कभी पैगम्बरे इस्लाम के निकट लोगों में शामिल ही नहीं रहे इस तरह से धीरे धीरे इस्लामी समाज में पैगम्बरे इस्लाम की दुश्मनी के बीज बोए गये जो धीरे धीरे बड़े वृक्ष में बदल गयी। पैगम्बरे इस्लाम के परिजनों के विरुद्ध प्रचार की स्थित जानने के लिए आप का यही जान लेना काफी है कि लगभग 80 वर्षों तक इस्लामी जगत की हर मस्जिद के हर मेंबर से अर्थात जहां भी जुमा की नमाज़ पढ़ी जाती वहां जुमा के भाषण का एक हिस्सा निश्चित रूप से हज़रत अली अलैहिस्सलाम को बुरा भला कहने पर आधारित होता था और यह हर इमामे जुमा का कर्तव्य था।
इन हालात में इमाम ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम के लिए लोगों के मार्गदर्शन का काम अत्याधिक कठिन था। सब से पहले उनके लिए आवश्यक था कि वह लोगों को पैगम्बरे इस्लाम के परिजनों के बारे में बताएं और उन्हें पैगम्बरे इस्लाम के परिजनों से प्रेम व श्रद्धा का पाठ सिखाएं। इमाम ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम ने सब से पहले यज़ीद के दरबार में अपने बंधे हाथों के साथ जो भाषण दिया उसमें उन्होंने मुसलमानों के बचे हुए ईमान को ध्यान में रख कर अपनी बात आरंभ की। उस दौर में पथभ्रष्टता के बावजूद लोग काबे का सम्मान करते थे और हर साल हज के अवसर पर उसकी परिक्रमा करते थे। इसी लिए उन्होंने अपनी बात वहीं से शुरु की।
इमाम ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम ने यज़ीद के दरबार में अपने भाषण का आरंभ अपने परिचय से किया और अपने परिचय में बताया कि वह पैगम्बरे इस्लाम के बेटे हैं, वही पैगम्बर जिसके धर्म का तुम लोग अनुसरण कर रहे हो। इसके बाद इमाम ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम ने अपना परिचय इस प्रकार करायाः हे लोगोः मैं मक्के का सपूत और मेना का बेटा और ज़मज़म व सफा का लाल हूं। मैं सबसे उत्तम इंसान का पुत्र हूं, मैं उसका बेटा हूं जिसे मेराज की रात मस्जिदुल हराम से मस्जिदुल अक़सा ले जाया गया। मैं उसका बेटा हूं जिसने बड़े बड़े घमंडियों को नाक रगड़ने पर मजबूर कर दिया और उसका बेटा हूं जो पैगम्बरे इस्लाम के साथ दो तलवारों और दो भालों से दुश्मनों के खिलाफ लड़ता था और जिसने दो पर बैअत की और दो बार पलायन किया और बद्र व हुनैन के युद्धों में नास्तिकों से युद्ध किया और उसका बेटा हूं जिसने पलक झपकने तक की अवधि के लिए भी ईश्वर का इन्कार नहीं किया।
यज़ीद के दरबार में लोग आंखे फाड़ कर इमाम ज़ैनुलआबेदीन को देख रहे थे। इमाम ने आगे कहा मैं कुरैश क़बीले के सर्वश्रेष्ठ हस्ती का बेटा हूं और उसका बेटा हूं जिसने सब से पहले ईश्वर और उसके दूत के निमंत्रण को स्वीकार किया, काफिरों का सर्वनाश किया,जो ईश्वरीय ज्ञान का स्वामी था।इसके बाद इमाम ज़ैनुलआबेदीन अलैहिस्सलाम ने नाम लेना आरंभ किया और कहा कि हां वह मेरे दादा अली इब्ने अबी तालिब हैं , हसन व हुसैन के पिता । फिर कहा कि हां मैं जगत की सर्वश्रेष्ठ महिला फातिमा ज़हरा का बेटा हूं। यह सुन कर लोगों में हलचल मच गयी और अचेतना की उनकी नींद टूटने लगी किंतु वर्षों से सोए हुए लोगों को जगाना इतना आसान भी नहीं था।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के काल में इस्लामी समाज विभिन्न प्रकार की वैचारिक व आस्था संबंधी पथभ्रष्टताओं में फंसा हुआ था। लोग, पैगम्बरे इस्लाम की सही शिक्षाओं और उनके परिजनों से दूर हो गये थे और उमवी शासन का प्रयास था कि उन्हें अनावश्यक मुद्दों में व्यस्त रखे। उमवी शासकों द्वारा भोग- विलास और निर्रथक खेलों को प्रचलित करने से भी इस्लामी समाज के लिए बहुत से खतरे पैदा हो गये थे। एश्वर्य पूर्ण जीवन उस काल में सामान्य सी बात हो गयी थी जबकि इस्लाम में इसकी कड़ी मनाही है। बहुत से लोगों ने अत्याधिक धन और संपत्ति जमा कर ली थी और उनके पास सैंकड़ों दास और दासियां थीं । उनमें बहुत सी दासियों को विशेष रूप से गाने बजाने के लिए प्रशिक्षित किया गया होता था। फिर धीरे धीरे यह चलन मध्यमवर्ग के लोगों में भी आम हो गया था और यज़ीद के शासन काल में यह चलन इतना आम हुआ कि इससे इस्लाम के लिए अत्याधिक पवित्र नगर, मक्का और मदीना भी अछूते नहीं रहे। प्रसिद्ध इतिहासकार, मसऊदी ने इस संदर्भ में लिखा है कि यज़ीद का भ्रष्टाचार और नैतिक पतन उसके आस पास रहने वालों को भी प्रभावित कर रहा था और उसके काल में मक्का और मदीना में गीत संगीत का चलन आम हुआ और गीत संगीत तथा शराब पीने के लिए विशेष बैठकों का आयोजन किया जाने लगा। गाने बजाने में दक्ष लोग दमिश्क से इ्सलामी नगरों में भेजे जाते और विलासता की महफिले सजतीं ।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम एसी परिस्थितियों में मार्गदर्शन का कठिन काम कर रहे थे। उन्हें उस काल की संवेदनशील परिस्थितियों का भली भांति ज्ञान था इसी लिए उन्होंने मार्गदर्शन के लिए एसी शैली का चयन किया जिससे न केवल यह कि उन्होंने उमवी शासन में भुला दी जाने वाली इस्लामी शिक्षाओं को नवजीवन प्रदान किया बल्कि उसके प्रसार व प्रचार का वातावरण भी बनाया। उन्होंने विशेष शिष्यों को प्रशिक्षण देकर अपने विचारों और इस्लामी शिक्षाओं से लोगों को परिचित कराया और इस प्रकार से बाद में जाफरी मत से प्रसिद्ध होने मत के लिए भूमिका प्रशस्त की। उन्होंने शिष्यों के प्रशिक्षण के साथ ही दासों को इस्लामी ज्ञान देकर और फिर उन्हें स्वतंत्र करके भी समाज में इस्लामी शिक्षाओं का प्रचार किया। जैसा कि इतिहासकारों ने उल्लेख किया कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने ईश्वर की राह में एक हज़ार दासों को स्वतंत्र किया। वे दासों को खरीदते थे और उन्हें शिक्षा दीक्षा देते। वह दास, इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के साथ रह कर उनके जीवन से प्रभावित होते और जब इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम उन्हें स्वतंत्र करते तो वे एक सही धार्मिक व ज्ञानी मनुष्य में बदल चुके होते। जितने समय यह दास इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के पास रहते उसके दौरान वे इमाम से इतने निकट हो जाते कि जब इमाम उन्हें स्वतंत्र करते तो भी वे इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम के पास से जाना स्वीकार नहीं करते।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन ने इसी प्रकार अपने युग के लोगों के मार्गदर्शन के लिए दुआ की शैली चुनी और दुआओं द्वारा समाज को शिक्षित किया और इ्सलामी मूल्यों से अवगत कराया। अन्ततः 35 वर्षों तक अथक संघर्ष के बाद उन्हें हेशाम बिन अब्दुल मलिक के उकसावे पर वलीद बिन अब्दुलमलिक ने विष दिलवा दिया और इसी विष से उनकी शहादत हो गयी। उनकी क़ब्र वर्तमान सऊदी अरब के मदीना नगर के जन्नतुल बक़ीअ क़ब्रिस्तान में है जहां उनके चचा इमाम हसन अलैहिस्सलाम की भी कब्र है। इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम का पूरा जीवन संघर्ष दुखों और विपदाओं से भरा है किंतु इसके बावजूद एक क्षण के लिए भी वे मार्गदर्शन के अपने ईश्वरीय कर्तव्य को अनदेखा नहीं किया और पूरा जीवन समाज के मार्गदर्शन के लिए समर्पित कर दिया।
नहीं होगी भारत और पाकिस्तान के बीच वार्ता
भारत और पाकिस्तान के बीच न्यूयार्क में होने वाली वार्ता फिलहाल टल गई है।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की ओर से भारत के साथ वार्ता का प्रस्ताव दिये जाने के एक दिन बाद नई दिल्ली से इस रद्द कर दिया है।
भारत की ओर से एलान किया गया है कि न्यूयार्क में महासभा के वार्षिक अधिवेशन के दौरान पाकिस्तान के साथ कोई वार्ता नहीं की जाएगी। यह एलान कश्मीर में छापामारों हाथों तीन भारतीय पुलिसकर्मियों की हत्या तथा एक भारतीय बीएसएफ जवान की मौत के बाद किया गया है।
ज्ञात रहे कि इससे पहले पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के पत्र का जवाब देते हुए भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा के अधिवेशन में भारत और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों की मुलाक़ात पर सहमति ज़ाहिर कर दी है।
भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने मीडिया को बताया कि दोनों देशों के विदेश मंत्रियों के बीच मुलाक़ात संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा के अधिवशेन के अवसर पर पारस्परिक रूप से तय की जाने वाली तारीख़ के अनुसार होगी।
प्रवक्ता ने कहा कि हमने अभी मुलाक़ात का एजेंडा तय नहीं किया है केवल मुलाक़ात पर सहमति ज़ाहिर की है। साथ ही उन्होंने कहा कि यह मुलाक़त पाकिस्तान के संबंधा में भारत की नीति में बदलाव का इशारा नहीं है और न ही इसका लक्ष्य वार्ता प्रक्रिया की बहाली है।
करबला की घटना जीने का सही सलीक़ा सिखाती हैः अबूतोराबी फ़र्द
तेहरान के इमामे जुमा मुहम्मद हसन अबूतोराबी फ़र्द ने कहा है कि करबला की घटना हमें सही जीवन व्यतीत करने का मार्ग बताती है।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मुहम्मद हसन अबूतोराबी फ़र्द ने जुमे के ख़ुत्बे में कहा है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम, राष्ट्रों के लिए आदर्श हैं जिन्होंने पूरी दुनिया को स्वाभिमान और स्वतंत्रता का पाठ दिया है। उन्होंने कहा कि ईरान पर थोपे गए युद्ध के दौरान प्रतिरक्षा को हुसैनी आदर्श ने सुदृढ बनाया। अबूतोराबी फ़र्द ने कहा कि इसी प्रतरक्षा ने लेबनान और इराक़ के प्रतिरोधकर्ताओं को हिम्मद दी जिसके सहारे उन्होंने वर्चस्ववाद का डटकर मुक़ाबला किया।
ज्ञात रहे कि ईरान में आज ग्यारह मुहर्रम है जबकि भारत और पाकिस्तान में शुक्रवार को दस मुहर्रम है। उल्लेखनीय है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने करबला आन्दोलन को स्पष्ट करते हुए कहा था कि मेरा लक्ष्य अच्छाइयों को फैलाना और बुराइयों को रोकना तथा अत्याचार का मुक़ाबला करना है। उन्होंने कहा था कि मैं पवित्र क़ुरआन और इस्लाम की सुरक्षा करना चाहता हूं।
आतंकी ठिकाने पर ईरान का मिसाइल हमला क्षेत्रीय व बाहरी शत्रुओं के लिए वार्निंग
तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम ने इराक़ी कुर्दिस्तान में आतंकी संगठन के सरग़नाओं की बैठक पर पासदाराने इंक़ेलाब फ़ोर्स आईआरजीसी के मिसाइल हमले का हवाला देते हुए कहा कि इस कार्यवाही ने ईरान की इंटैलीजेन्स ताक़त का प्रदर्शन किया और यह क्षेत्रीय तथा क्षेत्र से बाहर के दुशमनों के लिए गंभीर वार्निंग है।
केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम हुज्जतुल इस्लाम वल मुसलेमीन काज़िम सिद्दीक़ी ने नमाज़े जुमा के ख़ुतबों में कहा कि युद्ध और प्रतिबंधों से डर जाना आशूर की संस्कृति से विरोधाभास रखता है। उन्होंने कहा कि ईरानी राष्ट्र चालीस साल से आशूर के मार्ग पर आगे बढ़ रहा है और वह बड़ी शक्तियों का मुक़ाबला करके उन्हें पराजित करता रहा है।
बेरूत के यूनिकोस पैलेस में पहली बार कुरान प्रदर्शनी का आयोजन किया जाएग़ा
अल-नशरा न्यूज साइट के मुताबिक बताया कि पहली कुरानिक प्रदर्शनी "सोहुफ" के नाम से सोमवार 23 जुलाई को बेरूत के यूनिकोस पैलेस में शुरू होगी।
कुरान, प्रिंट और दुर्लभ और पुराने कुरानिक यंत्रों की पांडुलिपियां उन कार्यों में से हैं जो आगंतुकों द्वारा प्रदर्शित की जाएग़ी।
लेबनान की सर्वोच्च शिया संसद के सभापति शेख अब्दुल अमीर कोबलान कुरान प्रदर्शनी विशेष अतिथि हैं।
उजबेकिस्तान में 13 मस्जिदों का उद्घाटन और फिर से खोलना
उस्मान खान अलीम एफ़ मुफ्ती और उज़्बेकिस्तान के मुस्लिम बोर्ड के प्रमुख ने घोषणा कीः2018 की शुरुआत के बाद से जुलाई तक उजबेकिस्तान में 13 नई मस्जिदों ने अपनी गतिविधियां शुरू कर दी हैं और इस कुल में से केवल "सरख़ानदरया" प्रांत में सात नई मस्जिदें स्थापित की गई हैं।
उजबेकिस्तान में ईरानी सांस्कृतिक सलाहकार ने इस घोषणा के साथ कहा: मुफ़्ती उस्मान ख़ान अलीमोव ने इस रिपोर्ट की अपने भाषण में जो कि अंतर्राष्ट्रीय संघ " उज़्बेक और कज़ाख ब्रदर के लोगों के आम मूल्य" जो कि कजाकिस्तान में उजबेकिस्तान की वार्षिक योजनाओं के ढांचे में आयोजित किया गया था,घोषणा की है।