رضوی

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इंस्टाग्राम दुनिया भर में 70 करोड़ से अधिक लोग प्रयोग करते हैं जिस पर रोज़ाना ही करोड़ों तसवीरें पोस्ट की जाती हैं।

अगर आप फ़ेसबुक की इस फ़ोटो शेयरिंग एप को प्रयोग करते हैं तो आपको दूसरे लोगों की तसवीरों पर हज़ारों लाइक्स देखकर आश्चर्य होता होगा मगर आज तक कोई भी तसवीर डेढ़ करोड़ लाइक्स का आंकड़ा नहीं छू सकी थी मगर अब यह कीर्तिमान एक तसवीर के नाम हो गया है। यह तसवीर पिछले दिनों बच्ची को जन्म देने वाली रियलिटी टीवी स्टार और विख्यात माडल केली जीनर ने इंस्टाग्राम पर डाली जिसने नया इतिहास रच दिया।

टीवी स्टार ने अपनी बच्ची की तसवीर और उसका नाम शेयर किया और लोगों का दिल जीत लिया।

पहली फ़रवरी को जन्म लेने वाली बच्ची का नमा स्ट्रोमी वेब्सटर रखा गया है जो तसवीर में अपनी मां के अंगूठे को थामे हुए दिखाई दे रही है।

बीस वर्षीय केली ने नौ महीने तक बच्ची के बारे कें कोई सूचना नहीं दी पिछले हफ़्ते उन्होंने बच्ची के जन्म की पुष्टि की और उसकी तसवीर शेयर की।

इससे पहले सबसे अधिक लाइक बटोरने वाली तसवीर एक फ़ुटबालर क्रिस्टियानो रोनाल्डो के बच्चे की पैदाइश के बाद की है।

 

तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम ने कहा कि पिछले वर्षों में अमरीका को ईरान से बार बार तमाचे खाने पड़े हैं।

तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम हुज्जतुल इस्लाम काज़िम सिद्दीक़ी ने नमाज़े जुमा के ख़ुतबों में कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान को नुक़सान पहुंचाने के लिए अमरीका ने हमेशा साज़िश रची लेकिन अमरीका तथा उसके घटकों को बार बार ईरान से तमाचा खाना पड़ा है।

तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम ने कहा कि अमरीका, सऊदी अरब और उनके घटकों को यह ग़लतफ़हमी है कि दाइश का गठन करके, इराक़ी कुर्दिस्तान का संकट खड़ा करके, लेबनान में समस्या पैदा करके, इस्राईल से  लड़ने वाले प्रतिरोधक मोर्चे को कमज़ोर करके और इराक़ पर क़ब्ज़ा करके वह ईरान को अलग थलग कर ले जाएंगे लेकिन इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता की दूरदर्शिता और सूझबूझ की मदद से ईरान ने उनके मुंह पर तमाचा मारा है।

हुज्जतुल इस्लाम काज़िम सिद्दीक़ी ने इस्लामी क्रान्ति की सफलता की वर्षगांठ की बधाई दी और क्रान्ति की सफलता को एक चमत्कार बताते हुए कहा कि परमाणु, चिकित्सा, नैनो तकनीक सहित अनेक क्षेत्र में ईरान की आत्म निर्भरता इस्लामी क्रान्ति की बड़ी उपलब्धियां हैं।

तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम ने कहा कि इस्लामी क्रान्ति की सफलता से ईरान की जनता को खोया हुआ गौरव वापस मिला और विदेशियों के हाथों ईरान को लूटे जाने की प्रक्रिया पर अंकुश लगा।

ज्ञात रहे कि 11 फ़रवरी सन 1979 को इस्लामी क्रान्ति को विजय मिली थी जिसकी वर्षगांठ हर साल हर्षोउल्लास से मनाई जाती है।

 

 

तेहरान में इस्लामी प्रचार समन्वय परिषद के प्रमुख ने इस्लामी क्रांति की सफलता की वर्षगांठ के आरंभ के दिन अर्थात पहली फरवरी के कार्यक्रमों की घोषणा करते हुए बताया है कि तेहरान की क्रांतिकारी जनता, इस्लामी गणतंत्र ईरान के संस्थापक इमाम खुमैनी के मज़ार पर उपस्थित होकर आज्ञापालन की प्रतिज्ञा दोहराएगी।

हुज्तुलइस्लाम वल मुसलेमीन " मोहसिन महमूदी " ने बुधवार को तेहरान में एक संवाददाता सम्मेलन में बताया कि इस्लामी क्रांति की सफलता की 40वीं वर्षगांठ के कार्यक्रम गुरुवार की सुबह 9 बजे आरंभ होंगे और इस्लामी इस्लामी गणतंत्र ईरान के संस्थापक इमाम खुमैनी के पौत्र, हुज्तुलइस्लाम वल मुसलेमीन सैयद  हसन खुमैनी उदघाटन कार्यक्रम में भाषण देंगे। 

उन्होंने कहा कि फरवरी सन 1979 में " बहिश्ते ज़हरा " क़ब्रिस्तान में इमाम खुमैनी का भाषण, इस्लामी क्रांति के इतिहास का एक अहम मोड़ है इसी लिए इमाम खुमैनी ने जिस जगह बैठ कर भाषण दिया था उस जगह पर फूलों की बारिश की जाएगी। 

हुज्तुलइस्लाम वल मुसलेमीन " मोहसिन महमूदी " ने बताया कि शहीदों के मज़ार के पास परेड की जाएगी, मेहराबाद हवाई अड्डे से बहिश्ते ज़हरा क़ब्रिस्तान तक कि जहां इमाम खुमैनी ने एतिहासिक भाषण दिया था , पूरे रास्ते पर फूल बरसाए जाएंगे, गिरिजाघरों के घंटे बजाए जाएंगे, स्कूलों में निर्धारित समय पर घंटा बजाया जाएगा और इसी तरह विभिन्न क्षेत्रों के कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करेंगे। 

उन्होंने बताया कि इस्लामी क्रांति की सफलता की 40 वीं वर्षगांठ के कार्यक्रमों की रिपोर्टिंग 450 रिपोर्टर और फोटोग्राफर करेंगे। 

इमाम खुमैनी पहली फरवरी सन 1979 को ईरान आए थे और उनके आने के दस दिनों के भीतर ईरान में इस्लामी क्रांति सफल हो गयी। 

ईरान में पहली फरवरी से लेकर 11 फरवरी तक क्रांति की सफलता का जश्न बनाया जाता है।  

 

 

विश्व भर में मुस्लिम महिलाओं के साथ एकजुटता जताने के लिए अमरीका की एक एनजीओ प्रति वर्ष पहली फ़रवरी को वर्ल्ड हिजाब डे मनाती है।

इस्लाम के अनुसार, मुस्लिम महिलाओं के लिए ज़रूरी है कि वे घर से बाहर निकलते वक़्त अपना शरीर और सिर ढांप कर रखें। इस प्रक्रिया को हिजाब कहा जाता है।

वर्ल्ड हिजाब डे के अवसर पर विभिन्न धर्मों की अनुयायी महिलाएं हिजाब पहनकर मुस्लिम महिलाओं के साथ हमदर्दी जताती हैं।

2013 में वर्ल्ड हिजाब डे की शुरूआत के बाद से, 190 देशों की महिलाएं और 45 देशों की 70 वैश्विक राजदूत इस वार्षिक कार्यक्रम में भाग लेती हैं।

2013 में वर्ल्ड हिजाब डे की शुरूआत कुछ इस तरह से हुई कि न्यूयॉर्क में सड़क के किनारे चल रही 11 वर्षीय मुस्लिम लड़की पर सिर्फ़ इसिलए हमला किया गया, क्योंकि वह हिजाब पहने हुए थी।

2001 में नाइन इलेवट की घटना के बाद अमरीका और विश्व भर में मुसलमानों विशेष रूप से हिजाब पहनने वाली मुस्लिम महिलाओं के ख़िलाफ़ हमलों में अभूतपूर्व तेज़ी हो गई और उन्हें नफ़रत का निशाना बनाया जाने लगा।

इस कार्यक्रम की सूत्रधार बांग्लादेश मूल की अमरीकी महिला नाज़मा ख़ान हैं, जिनका कहना है कि मुस्लिम महिलाएं हिजाब पहनकर जब बाहर निकलती हैं तो उन्हें हमेशा विभिन्न प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।

अल-जज़ीरा से अपने अनुभवों को साझा करते हुए उन्होंने कहा, मुझे डराया गया, मेरा पीछा गया, मुझ पर थूका गया, पुरुषों ने मुझे चारो ओर से घेरा, आतंकवादी और ओसामा बिन लादेन जैसे जुमले कसे।

सिर पर हिजाब पहनने के लिए ऐसी ही चुनौतियों का सामना कर रही और अनुभवों से गुज़र रही महिलाओं को आपस में जोड़ने के लिए नाज़मा ख़ान ने उनसे कहा कि वे अपने अनुभव सोशली मीडिया पर साझा करें।

इसी उद्देश्य ने उन्होंने वर्ल्ड हिजाब डे की घोषणा की और इसके लिए ग़ैर मुस्लिम महिलाओं ने भी बढ़ चढ़कर उनका साथ दिया।

 

अंतर्राष्ट्रीय कुरान न्यूज़ एजेंसी ने तुर्की के अनातोली समाचार एजेंसी का हवाला देते हुए बताया कि तुर्की की धार्मिक मामलों के संगठन ने बयान जारी कर क़ुद्स इंटरनेशनल कॉन्फरेंस "मुस्लिम क़ुद्स: क़ुद्स के लिए इस्लामी पहचान" के नाम से 29,30 जनवरी को आयोजन किए जाने की सुचना दी है।
बयान में कहा गया है कि : इस बैठक में 20 यूरोपीय सहित, एशियाई, अफ्रीकी देश जैसे पाकिस्तान, इंडोनेशिया, इराक, जॉर्डन, फ्रांस, यूनाइटेड किंगडम और अज़रबैजान के विशेषज्ञ भाग लेंग़े, जो इस्तांबुल शहर के काग़ीत हाना क्षेत्र के उस्मान अभिलेखागार के कार्यालय में आयोजन किया जाएगा
बैठक का उद्देश्य कुद्स के मुद्दे की रक्षा करना और इस्लामी मान्यताओं और इसके महत्व पर बल देना और साथ ही फिलीस्तीनी लोगों के साथ एकजुटता की भावना को मजबूत करना है।
बयान में यह लिखा है कि कुद्स अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन तुर्की धार्मिक मामलों के संगठन के प्रमुख अली अरबास के निरीक्षण के तहत आयोजित किया जाएगा, और लगभग 70 इस्लामिक विद्वानों, विशेषज्ञों, शोधकर्ताओं और विद्वान भाग लेंग़े की उम्मीद है।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने अपने एक अहम बयान में इस बात से पर्दा उठाया है कि अमरीका, दाइश के आतंकियों को अफ़ग़ानिस्तान क्यों पहुंचा रहा है?

आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने मंगलवार को धर्मशास्त्र के अपने पाठ के आरंभ में अफ़ग़ानिस्तान में हालिया आतंकी हमलों में निर्दोष लोगों के जनसंहार पर गहरा दुख प्रकट करते हुए कहा है कि अमरीका, दाइश के आतंकवादियों को अफ़ग़ानिस्तान पहुंचा कर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति का औचित्य प्रदान करना और ज़ायोनी शासन की सुरक्षा को सुनिश्चित बनाना चाहता है। उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने दाइश को अस्तित्व प्रदान करके उसे सीरिया व इराक़ की जनता पर अत्याचार व अपराध का माध्यम बनाया था, आज वही हाथ उस क्षेत्र में पराजय के बाद दाइश को अफ़ग़ानिस्तान पहुंचाने के चक्कर में हैं और हालिया जनसंहार वस्तुतः इसी षड्यंत्र का आरंभ है।

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि अमरीका समर्थित आतंकियों के लिए शिया व सुन्नी में कोई अंतर नहीं है और केवल आम नागरिक उनका लक्ष्य हैं चाहे वे शिया हों या सुन्नी। आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि अमरीका चाहता है कि इस क्षेत्र में शांति व ख़ुशहाली न हो और यहां के राष्ट्र और सरकारें एक दूसरे से भिड़ी रहीं ताकि वे साम्राज्य के दुष्ट एजेंट यानी ज़ायोनी शासन से मुक़ाबले के बारे में सोचने ही न पाएं। उन्होंने कहा कि अशांति स्थापति करने में अमरीका का अगला लक्ष्य क्षेत्र में अपनी उपस्थिति का औचित्य दर्शाना है और अफ़ग़ानिस्तान में अशांति का मूल कारण अमरीका ही है। उन्होंने कहा कि पिछली बीस साल से अफ़ग़ानिस्तान में धर्म के नाम पर जो जनसंहार हो रहे हैं वे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अमरीका के पिट्ठुओं ने ही किए हैं।  

 

विश्व की प्रसिद्ध सर्वेक्षण करने वाली संस्था “गो बैंकिंग रेट्स” ने 112 देशों के बीच कराए गए अपने सर्वेक्षण में भारत को दुनिया का दूसरा सबसे सस्ता देश क़रार दिया है।

दुनिया में रहने या सेवानिवृत्ति के लिहाज़ से भारत दुनिया का दूसरा सबसे सस्ता देश क़रार पाया है। हाल में 112 देशों के बीच किए गए एक सर्वेक्षण में इस मामले में पहले स्थान पर दक्षिण अफ़्रीक़ा रहा है। यह सर्वेक्षण “गो बैंकिंग रेट्स” ने किया है, इस संस्था ने देशों की रैंकिंग को चार प्रमुख मानकों और साथ ही ऑनलाइन द्वारा जुटाए गए आंकड़ों के हिसाब से तय किया है।

प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर के देशों में कराए गए इस सर्वेक्षण में स्थानीय क्रयशक्ति सूचकांक, किराया सूचकांक, आम उपभोग की वस्तुओं के (ग्रॉसरी) सूचकांक और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक मानकों के आधार पर रैंकिंग की गई है।


उल्लेखनीय है कि दुनिया के 50 सबसे सस्ते देशों में किराया सूचकांक में भारत दूसरे क्रम पर है, उससे ऊपर सिर्फ उसका पड़ोसी देश नेपाल का नाम आता है। इस हिसाब से अन्य देशों के मुक़ाबले, रहने के लिए भारत सबसे सस्ता देश है। उपभोक्ता सामान और ग्रॉसरी की क़ीमतों के हिसाब से भी भारत सबसे सस्ता देश है। 

ग़ौरतलब रहे कि सर्वेक्षण के हिसाब से 125 करोड़ की आबादी वाला भारत दुनिया के 50 सबसे सस्ते और अधिक आबादी वाले देशों में से एक है, भारत का प्रमुख उद्योग कपड़ा, रसायन और खाद्य प्रसंस्करण हैं, इसके अलावा भारत के कई शहरों की स्थानीय क्रयशक्ति भी अधिक है। सर्वेक्षण के अनुसार भारतीयों की स्थानीय क्रयशक्ति 20.9% सस्ती, किराया 95.2% सस्ता, ग्रॉसरी की कीमत 74.4% सस्ती और स्थानीय सामान और सेवाएं 74.9% सस्ती है।

भारत के पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान का इस सूची में 14वां स्थान है, इसके अलावा कोलंबिया का 13वां, नेपाल का 28वां और बांग्लादेश का 40वां स्थान है।  

हज़रत ज़ैनब ऐसी महान महिला का नाम है जिनका व्यक्तित्व उच्चतम नैतिक गुणों का संपूर्ण आदर्श है।

ऐसी महिला जिसने अपने विनर्म, दयालु व मेहरबान दिल के साथ बड़ी-बड़ी मुसीबतों को सहन किया।  हर प्रकार की परेशानियां सहन करने के बावजूद महान हस्ती की प्रतिबद्धता, सच्चाई की रक्षा के मार्ग में तनिक भी नहीं डगमगाई।

पांच जमादिल अव्वल सन छह हिजरी क़मरी को पवित्र नगर मदीना में पैग़म्बरे इस्लाम की नवासी हज़रत ज़ैनब का जन्म हुआ था।  आप हज़रत अली अलैहिस्सलाम और हज़रत फ़ातेमा सलामुल्लाह की सुपुत्री थीं।  उनका नाम पैग़म्बरे इस्लाम ने रखा था। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने ईश्वरीय आदेश से इस नवजात शिशु का नाम ज़ैनब रखा था।  आपने सदैव इस बच्ची का सम्मान किये जाने की सिफारिश की।  यह नाम अपने माता-पिता के निकट उनके सम्मान को दर्शाता है।  हज़रत ज़ैनब के शुभ जन्मदिन पर आप सबकी सेवा में हार्दिक बधाई प्रस्तुत करते हैं।

हज़रत ज़ैनब का नाम रखे जाने के बारे में कहा जाता है कि जब आपका जन्म हुआ उस समय पैग़म्बरे इस्लाम (स) मदीने से बाहर यात्रा पर गये हुए थे। इसी कारण हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने उस बच्ची का नाम रखने में विलंब से काम लिया ताकि पैग़म्बरे इस्लाम मदीना वापस आ जायें। पैग़म्बरे इस्लाम के मदीना वापस आ जाने के बाद उन्होंने ईश्वरीय आदेश से उस नवजात शिशु का नाम ज़ैनब रखा।  जैनब का अर्थ होता है पिता के सम्मान का कारण।

हज़रत ज़ैनब एक एसे परिवार में पैदा हुई थीं जिसके त्याग का उल्लेख ईश्वर ने पवित्र क़ुरआन में किया है। महान ईश्वर ने क़ुरआने मजीद के सूरे इंसान की आठवीं और नवीं आयतों में उनके परिवार के त्याग की बात कही है। हज़रत ज़ैनब का परिवार वह परिवार था जिसने तीन दिनों तक लगातार अपने खाने को फक़ीर, अनाथ और बंदी को दे दिया।  उन्होंने स्वयं पानी पीकर इफ्तार किया।

हज़रत ज़ैनब की एक विशेषता उनका त्याग था।  एक दिन की बात है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम एक ग़रीब व्यक्ति  को अपने घर ले आए।  जब वे घर पहुंचे तो  हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने हज़रत फातेमा से पूछा कि क्या घर में कुछ है जिससे मेहमान की आवभगत की जा सके? हज़रत फ़ातेमा ने उत्तर दिया कि ज़ैनब के हिस्से का थोड़ा सा खाना मौजूद है। जिस समय हज़रत अली अलैहिस्सलाम और हज़रत फ़ातेमा बात कर रहे थे उसी समय हज़रत ज़ैनब वहां पर पहुंचीं।  यह बात सुनकर उन्होंने अपने पिता से कहा कि मेरा खाना मेहमान को दे दीजिए।  विशेष बात यह है कि यह उस समय की बात है जब हज़रत ज़ैनब की आयु चार वर्ष से अधिक नहीं थी।  हज़रत ज़ैनब ने समस्त सदगुणों को अपनी माता हज़रत फातेमा और पिता हज़रत अली अलैहिस्सलाम से सीखा था।  वे इन महान हस्तियों की छत्रछया में पली-बढ़ीं थीं। हज़रत ज़ैनब एसे वातावरण में परवान चढ़ीं जो सद्गुणों का स्रोत व केन्द्र था।  वे पवित्रता में अपनी महान माता हज़रत फातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा की भांति थीं जबकि बात करने व भाषण देने में वे अपने महान पिता हज़रत अली अलैहिस्सलाम के समान थीं। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने सहनशीलता व विन्रमता अपने बड़े भाई इमाम हसन और बहादुरी वे धैर्य जैसी विशेषता को अपने दूसरे बड़े भाई इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से सीखा था।

हज़रत ज़ैनब सद्गुणों की स्वामी एक महान महिला थीं।  वे मुसलमान एवं ग़ैर मुसलमान महिलाओं सबके लिए सर्वोत्तम आदर्श हैं।  हज़रत ज़ैनब ज्ञान में अपना उदाहरण स्वयं थीं। जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने शासनकाल में इराक़ के कूफ़ा नगर चले गये और वहीं पर रहने लगे।  एसे में ज्ञान हासिल करने की इच्छुक महिलाओं और लड़कियों ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पास संदेश भेजा।  अपने संदेश में उन्होंने कहा कि हमने सुना है कि आप की बेटी हज़रत ज़ैनब, अपनी माता हज़रत फातेमा ज़हरा की ही भांति ज्ञान और सद्गुणों की स्वामी हैं। अगर आप अनुमति दें तो हम उनकी सेवा में उपस्थित होकर ज्ञान के इस स्रोत से लाभ उठायें। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अनुमति दे दी ताकि उनकी बेटी कूफे की महिलाओं व लड़कियों के धार्मिक एवं ग़ैर धार्मिक प्रश्नों का उत्तर दें और उनकी समस्याओं का समाधान करें। हज़रत ज़ैनब ने कूफे की महिलाओं के लिए पवित्र कुरआन की व्याख्या के लिए कक्षा गठित की और उनके प्रश्नों का वे उत्तर दिया करती थीं।

किताबों में मिलता है कि जबतक वे अपने भाई को नहीं देख लेती थीं, आपको सुकून नहीं मिलता था।  वे अपने भाई इमाम हुसैन को बहुत चाहती थी।  हज़रत ज़ैनब का विवाह, अब्दुल्लाह बिन जाफ़र से हुआ था।  वे अरब जगत के जानेमाने इंसान थे।  विवाह के समय उन्होंने शर्त लगाई थी कि जब कभी भी मेरे भाई हुसैन को मेरी ज़रूरत होगी मैं उनकी सहायता के लिए जाऊंगी।  अब्दुल्लाह बिन जाफ़र ने उनकी यह शर्त मान ली थी। 

हज़रत ज़ैनब के बारे की एक विशेषता यह थी कि  विभिन्न अवसरों पर फैसला लेने और दृष्टिकोण अपनाने की उनमें अदभुत क्षमता पाई जाती थी। हज़रत ज़ैनब भलिभांति जानती थीं कि बात को कहां और किस स्थिति में कैसे कहा जाए। 

हज़रत ज़ैनब की एक अन्य विशेषता, बहादुरी थी। उन्होंने अदम्य साहस का परिचय देते हुए अत्याचारी शत्रुओं का मुकाबला किया। हज़रत ज़ैनब की उपाधि हाशिम परिवार की शेर दिल महिला थी। वे बहादुरों की भांति अत्याचारी शत्रुओं के समक्ष बात करतीं, उनकी भर्त्सना करतीं और वह किसी से भी नहीं डरती थीं।

हज़रत ज़ैनब ने कर्बला के महाबलिदान की अमर घटना को अपनी आंखों से देखा था। जब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके 72 वफादार साथी शहीद हो गये तो सारी ज़िम्मेदारी हज़रत ज़ैनब के कांधों पर आ गयी। इतिहास में मिलता है कि आशूर की सुबह उनके दो बेटे औन और मुहम्मद उनके साथ थे। हज़रत ज़ैनब अपने दोनों बेटों के साथ हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की सेवा में पहुंचीं।  उन्होंने इमाम हुसैन से कहा हमारे पूर्वज हज़रत इब्राहीम ने इस्माईल के बजाये ईश्वर की ओर से भेजी गयी कुर्बानी स्वीकार कर ली थी। हे मेरे भाई आप भी मेरी ओर से आज यह कुर्बानी स्वीकार कर लीजिए।  उन्होंने कहा था कि अगर महिलाओं को जेहाद का आदेश होता तो मैं भी अपनी जान को आपपर क़ुर्बान करती हज़रत ज़ैनब ने इमाम से कहा था कि मैं यह चाहती हूं कि मेरे बेटे, मेरे भतीजों से पहले रणक्षेत्र में जाएं।  अनुमति मिलने के बाद हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के दोनों बेटे रणक्षेत्र में यज़ीद की सेना से धर्मयुद्ध करते हुए शहीद हो गये।

हज़रत ज़ैनब (स) के भाषण लोगों के दिलों में उतर जाया करते थे। आपने अपने भाषणों से इमाम हुसैन के आंदोलन को सदा के लिए अमर बना दिया।  करबला में बंदी बनाये जाने के बाद जब हज़रत ज़ैनब (स) रसूले इस्लाम (स) के परिवार के दूसरे बंदियों के साथ यज़ीद के दरबार में लाई गईं तो आपने अपने ख़ुत्बों व भाषणों से सबको हैरान कर दिया था। आपने अपने ख़ुत्बे में कहा था कि हे यज़ीद! यदि आज तुमने हमें इस मोड़ पर ला खड़ा किया है और मुझे बंदी बनाया गया है लेकिन जान ले मेरी निगाह में तेरी ताक़त कुछ भी नहीं है।  अल्लाह की क़सम, अल्लाह के सिवा मैं किसी से नहीं डरती हूँ और उसके सिवा किसी और से शिकायत भी नहीं करूंगी। ऐ यज़ीद मक्कारी द्वारा तू हम लोगों से जितनी दुश्मनी सकता है कर ले।  हम जो पैग़म्बरे इस्लाम के परिजन हैं। उनसे दुश्मनी के लिए तू जितनी भी साज़िशें रच सकता है रच ले लेकिन खुदा की कसम तू हमारे नाम को लोगों के दिलों से नहीं मिटा सकता है। तू हमारी ज़िंदगी को ख़त्म नहीं कर सकता और न ही हमारे गौरव को मिटा सकता है।  इसी तरह हे यज़ीद तू अपने दामन पर लगे कलंक को कभी नहीं धो सकता।  हज़रत ज़ैनब के इस एतिहासिक भाषण को सुनकर यज़ीद बौखला उठा था। उनका भाषण सुनकर यज़ीद की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे?

ईरान में हज़रत ज़ैनब के शुभ जन्म दिवस को, "नर्स डे" के रूप में मनाया जाता है।  इसका मुख्य कारण है कि उन्होंने अपने काल के इमाम की सेवा की और इमाम की शहादत के बाद उनके परिजनों का पूरा ध्यान रखा।  नर्स का काम वास्तव में बहुत ज़िम्मेदारी का काम है जिसमें बहुत धैर्य की आवश्यकता होती है।  धैर्य के मामले में वे सबके लिए उदाहरण थीं। 

आयतुल्लाह ख़ातमी तेहरान में जुमे की नमाज़ का विशेष भाषण देते हुए

तेहरान के जुमे के इमाम ने स्वतंत्रता प्रभात के अवसर पर इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह को इस्लामी क्रान्ति की पहचान बताया।

तेहरान की जुमे की नमाज़ आयतुल्लाह सय्यद अहमद ख़ातमी की इमामत में पढ़ी गयी।

उन्होंने जुमे की नमाज़ के विशेष भाषण में कहा कि भव्य इस्लामी क्रान्ति का वजूद इमाम ख़ुमैनी के निर्देशों पर पालन से ही बाक़ी रहेगा।

उन्होंने इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई को इमाम ख़ुमैनी का योग्य उत्तराधिकारी बताते हुए कहा कि वरिष्ठ नेता इमाम ख़मैनी के मार्ग पर चल रहे हैं।

आयतुल्लाह ख़ातमी ने इस्लामी क्रान्ति को इस्लामी जगत और ख़ास तौर पर ईरानी राष्ट्र के लिए ईश्वर की बड़ी नेमत बताते हुए कहा, "इस्लामी क्रान्ति ने स्वाधीनता, अपने भविष्य के निर्धारण के लिए राष्ट्र की स्वाधीनता, सुरक्षा और आत्मविश्वास का उपहार दिया।"

तेहरान के जुमे के इमाम ने इस बात पर बल देते हुए कि महान ईरानी राष्ट्र 22 बहमन की रैली में विगत की तरह भव्य उपस्थिति दर्ज कराएगा, कहा कि ईरानी अपने ख़ून के अंतिम क़तरे तक क्रान्ति का साथ देंगे।

आयतुल्लाह सय्यद अहमद ख़ातमी ने इस्लामी गणतंत्र ईरान के ख़िलाफ़ दुश्मन की हालिया साज़िश की ओर इशारा करते हुए कहा कि दुश्मन इस्लामी क्रान्ति को नुक़सान पहुंचाने की कोशिश में था लेकिन जनता की स्वयं प्रेरित रैली से दुश्मन की साज़िश विगत की तरह नाकाम हो गयी।  

 

 

गुरूवार को फिलिस्तीन और मध्यपूर्व के बारे में सुरक्षा परिषद की बैठक हुई थी जिसमें उत्तर कोरिया के राजदूत ने कहा कि जायोनी शासन को चाहिये कि वह फिलिस्तीन का अतिग्रहण ख़त्म करे।

समाचार एजेन्सी इर्ना की रिपोर्ट के अनुसार संयुक्त राष्ट्रसंघ में उत्तर कोरिया के राजदूत या सांग नेम ने पश्चिम एशिया में अमेरिका की दोहरी नीति और इस्राईल के प्रति अमेरिका के समर्थन को क्षेत्र में संकट के जारी रहने का कारण बताया और इस्राईल का आह्वान किया कि वह फ़िलिस्तीन का अतिग्रहण समाप्त करे।

इसी प्रकार उन्होंने कहा कि विश्व समुदाय की इच्छा है कि एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी देश का गठन हो जिसकी राजधानी बैतुल मुकद्दस हो।

इसी प्रकार उन्होंने कहा कि बैतुल मुकद्दस को इस्राईल की राजधानी के रूप में मान्यता देने के डोनाल्ड ट्रम्प के फैसले के ख़िलाफ समस्त देशों की एकता ने विश्व समुदाय की एकता को दर्शा दिया।

संयुक्त राष्ट्रसंघ में उत्तर कोरिया के राजदूत या सांग नेम ने अमेरिकी दूतावास को तेलअवीव से बैतुल मुकद्दस स्थानांतरित करने पर आधारित ट्रम्प के हालिया निर्णय के बारे में भी कहा है कि यह निर्णय भी विश्व समुदाय की ओर से भर्त्सना योग्य है और यह फैसला खुला युद्धोन्माद और अंतरराष्ट्रीय कानून का अपमान है।

संयुक्त राष्ट्रसंघ में उत्तर कोरिया के राजदूत ने कहा कि बैतुल मुकद्दस की स्थिति की न्यायपूर्ण ढंग से समीक्षा होनी चाहिये और एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी देश का गठन प्रस्ताव अपरिवर्तनीय अधिकार हैं।