رضوی

رضوی

टोक्यो की ग्रांड मस्जिद धार्मिक व महान वास्तुकला के साथ इस्लामी स्मारकों में एक है। यह इबादी जगह जो ऊंचे मीनार रखती है पुराने उस्मानी वास्तुकला की शैली और इस्तांबुल की जामेअ ब्लू मस्जिद के समान(या सुल्तान अहमत मस्जिद)पर बनाई गई है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 


 

 

 




 

 

 

अंतरराष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी समाचार «पाकिस्तान में ईसाई» के हवाले से, इस कार्यक्रम में मुस्लिम विद्वानों ने मसीह (अ.स) के जन्म और ईसाई विद्वानों ने पैगंबर मुहम्मद (PBUH) के जन्म की एक-दूसरे को बधाई दी और भाषण दिया।

विक्टर Savra पाकिस्तानी पाद्री जो इस कार्यक्रम के आयोजन के जिम्मेदार थे,ने कहाःयह सभा मुसलमानों और ईसाइयों के बीच संबंधों को मजबूत बनाने वाली है।

उन्होंने कहा: हम बाइबल को भी और कुरान को भी पढ़ते हैं। पैगंबर मुहम्मद के जन्म का उत्सव ईसाइयों के घर पर भी आयोजित किया जाता है, और यह सभी पाकिस्तानी नागरिकों के लिए एक मॉडल हो सकता है।

उन्होंने जातियों और धर्मों के बीच शांति और सद्भाव बनाने के लिए कोशिश और अधिक प्रयासों की भी आवश्यकता पर बल दिया।

इसी तरह इटली में पाकिस्तानी दूतावास ने भी मसीह के जन्म का जश्न मुसलमानों और ईसाइयों की उपस्थिति के साथ आयोजित किया।

 

रूस ने ज़ायोनी कालोनियों के निर्माण की निंदा के बारे में सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव को विश्व समुदाय का दृष्टिकोण क़रार दिया है।

इर्ना की रिपोर्ट के अनुसार रूस के विदेशमंत्रालय ने शनिवार को अपने एक बयान में कहा है कि रूस ने अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन की धरती पर कालोनियों के निर्माण के बारे में सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया है क्योंकि इसकी विषय वस्तु उस आधार पर तैयार की गयी थी जिसमें कहा गया है कि विश्व समुदाय का मानना है कि अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन की धरती पर क़ालोनियों का निर्माण ग़ैर क़ानूनी है।

रूस के विदेशमंत्रालय ने अपने बयान में बल दिया है कि बस्तियों के बारे में प्रस्ताव पिछले आठ वर्ष में पहली बार सुरक्षा परिषद में पास हुआ है।

रूसी विदेशमंत्रालय के बयान में कहा गया है कि मध्यपूर्व के विवाद का हल केवल फ़िलिस्तीनी पक्षों और इस्राईल के मध्य बिना पूर्व शर्त और प्रत्यक्ष वार्ता से ही संभव है और फ़िलिस्तीनियों और इस्राईल के मध्य वार्ता आरंभ करने में सहायता करने वाले मध्यपूर्व के अंतर्राष्ट्रीय गुट चार के एक पक्ष के रूप में रूस के प्रयास भी इसी परिधि में हैं।

रूस के विदेशमंत्रालय के बयान में अंत में कहा गया है कि रूस, फ़िलिस्तीनी और इस्राईली पक्षों के मध्य वार्ता की मेज़बानी करने के लिए तैयार है।

ज्ञात रहे कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने फ़िलिस्तीनियों की अतिग्रहित ज़मीनों पर इन कॉलोनियों का निर्माण तुरंत रुकने पर आधारित प्रस्ताव नंबर 2334 पारित किया। यह सुरक्षा परिषद का अभूतपूर्व क़दम है। इस प्रस्ताव का मसौदा मलेशिया, वेनेज़ोएला, न्यूज़ीलैंड और सेनेगल ने पेश किया। इस प्रस्ताव के पक्ष में 14 मत पड़े जबकि अमरीका ने मतदान में भाग नहीं लिया।  

 

 

संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन की धरती पर ज़ायोनी कालोनियों के निर्माण को समाप्त करने के उद्देश्य से पेश किया गया प्रस्ताव पारित हो गया है।

अल आलम टीवी चैनल की रिपोर्ट के अनुसार, अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में ज़ायोनी बस्तियों के निर्माण को समाप्त करने के लिए यह प्रस्ताव मिस्र ने सुरक्षा परिषद में पेश किया जिस पर शुक्रवार को मतदान हुआ।

इस प्रस्ताव के पक्ष में सुरक्षा परिषद के 14 सदस्यों ने मत दिया जबकि केवल अमरीका ने प्रस्ताव के विरोध में मतदान किया।

इस प्रस्ताव के आधार पर इस्राईल की यह ज़िम्मेदारी है कि वह पूर्वी बैतुल मुक़द्दस सहित अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में निर्माण संबंधी अपनी समस्त गतिविधियों को तुरंत रोक दे।

अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में ज़ायोनी कालोनियों के निर्माण की निंदा में मिस्र ने जो प्रस्ताव का मसौदा सुरक्षा परिषद में पेश किया था उस पर गुरूवार को मतदान होना था किन्तु मिस्र ने घोषणा की कि यह मतदान टल गया है।

न्यूजीलैंड, वेनेज़ुएला, मलेशिया और सिंगापूर ने शुक्रवार को मिस्र से मांग की थी कि वह इस्राईल विरोधी प्रस्ताव पर मतदान के लिए समय सीमा निर्धारित करे। अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन की धरती पर ज़ायोनी कालोनियों के निर्माण को रोकने से संबंधित प्रस्ताव पर शुक्रवार को मतदान हुआ।

 

इस्राईल की सुरक्षा परिषद के पूर्व प्रमुख ने कहा है कि अगर इस्राईल 2006 की 33 दिवसीय जंग की तुलना में पहले से ज़्यादा तय्यार हो तब भी उसमें लेबनान के हिज़्बुल्लाह के साथ नई जंग शुरु करने का साहस नहीं है।

संवाददाता के अनुसार, ग्यूरा आइलैंड हिज़्बुल्लाह के साथ टकराव और उन तत्वों से दूर रहने के इच्छुक हैं जिनके कारण हिज़्बुल्लाह के साथ जंग हो सकती है।

आइलैंड ने कहा कि हिज़्बुल्लाह से जंग न करने के पीछे इस डर का कारण हिज़्बुल्लाह के पास मौजूद हथियार और मीज़ाइलों का भंडार है।

ज़ायोनी शासन के गुप्तचर आंकलन के अनुसार, हिज़्बुल्लाह के पास विभिन्न दूरी की मारक क्षमता वाले लगभग 130000 मीज़ाईल है।

इस्राईल की सुरक्षा परिषद के पूर्व प्रमुख ने कहा कि रक्षा मंत्री अविग्डोर लिबरमैन ने अप्रत्यक्ष तौर पर इस बात को माना है कि हिज़्बुल्लाह की सैन्य शक्ति बढ़ रही है।

ग्यूरा आइलैंड ने कहा कि सीरिया जंग का अंत कि जिसके मोर्चे के  विजेताओं में हिज़्बुल्लाह है, इस्राईल को बहुत कठिन विकल्प के सामने क़रार देगा।

 

 

पाकिस्तान से अंतरराष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी इस संगोष्ठी में विभिन्न शिया और सुन्नी दलों जैसे जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान, शिया उलेमा काउंसिल, मजलिसे वहदतुल मुस्लिमीन के विद्वानों और विचारकों और अन्य दलों ने भाग लिया।

इस सेमिनार के वक्ताओं ने दुनिया में मुसलमानों की समस्याओं को हल करने के लिए उचित तरीकों की तलाश और मुस्लिम एकता में विद्वानों की भूमिका पर भाषण दिऐ।

इस संगोष्ठी में जो कि "एकता वीक और ईद मिलाद नबी (स.) " के अवसर पर आयोजित की गई थी, अल्लामा सैयद साजिद अली नक़वी, पाकिस्तान में सर्वोच्च नेता प्रतिनिधित्व, मौलवी राजा नासिर अब्बास, मुस्लिम एकता की परिषद के महासचिव और लियाकत बलूच, जमात-ए-इस्लामी पाकिस्तान के महासचिव ने इस्लामी संप्रदायों के बीच एकता पर जोर देने के साथ, सुन्नियों और शियाओं के बीच मतभेद को इस्लाम के दुश्मनों की साजिश बताई और पाकिस्तान में एकता पैदा करने में विद्वानों की भूमिका की बात की।

सेमिनार में मौजूद उलमा ने वर्तमान इस्लामी दुनिया में समस्याओं की ओर इशारा करते हुऐ मानव व इंसानी मुल्यों की रक्षा में उलमा व धार्मिक विचारकों की भूमिका को ज़रूरी तथा मुस्लिम विश्व में मतभेद को खतरनाक बताया।

वक्ताओं ने बल दियाःवर्तमान समय में इस्लामी समुदाय को उच्च स्तर पर समझौते व ऐकता की ज़रूरत है और यह समझ और ऐकता इस्लामी समुदाय में हासिल हो सकता है जब ऐक संयुक्त बोलती ज़बान वजूद में आजाऐ। और यह समझ और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के लिऐ एक दूसरे के विचारों का सम्मान करना पड़ेगा, इस्लामी समुदायों में ऐकता के लिऐ ऐक दूसरे की सुनना,सम्मान करना और स्वीकार करने का माहौल बनाना पड़ेगा।

 

भारत की राजधानी नयी दिल्ली में मंगलवार को रोहिंग्या मुसलमानों के समर्थन में प्रदर्शन हुए।

मंगलवार को नयी दिल्ली में होने वाले प्रदर्शन में रोहिंग्या पलायनकर्ताओं ने भी भाग लिया।प्रदर्शन कारियों ने म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के जनसंहार की आलोचना की और दिल्ली में संयुक्त राष्ट्र संघ के कार्यालय के सामने एकत्रित होकर रोहिंग्या मुसलमानों पर होने वाले अत्याचारों पर संयुक्त राष्ट्र संघ की चुप्पी की आलोचना की।

याद रहे हालिया सप्ताहों में म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों पर अत्याचारों का सिलसिला तेज़ हो गया है जिसकी विश्व स्तर पर आलोचना की जा रही है।  

 

 अंतरराष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी  समाचार एजेंसी अराकान के हवाले से, हजारों भारतीय लोगों ने कल, 19 दिसंबर को नई दिल्ली भारत की राजधानी में, म्यांमारी मुसलमानों के खिलाफ हिंसा के विरोध में विरोध प्रदर्शन किया।

यह विरोध प्रदर्शन सोमवार को नई दिल्ली के समय अनुसार 11 बजे शुरू हुआ और दोपहर एक बजे समाप्त हो गया।

इस प्रदर्शन में, भारतीय मुसलमानों और जम्मू, हरियाणा, हैदराबाद और अन्य शहरों से इस जगह के लिए बसों से लाऐ गऐ रोहिंग्याई शरणार्थियों स्वयं अपने मार्च का गठन किया।

प्रदर्शनकारी हाथों होल्डिंग उठा कर हज़ारों रोहिंग्याई मुसल्मानों की शांति स्थित की समीक्षा के लिऐ ऐक अंतरराष्ट्रीय व विशेष बोर्ड भेजने की मांग कर रहे थे और उनके लिऐ सुरक्षा व अम्न चाहते थे कि हर दिन इस शासन के सुरक्षा बलों की ओर से हत्या,अत्याचार,क़ैद और लूट मार का शिकार बनाया जारहा है।

इसी तरह विरोध प्रदर्शन के अंत में प्रतिभागियों ने जो कि रोहिंग्याई संगठनों, राजनीतिक दलों और हिंदी मुस्लिम संगठनों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी में आयोजित किया गया, संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के सामने खड़े होकर नारे लगा कर अपना विरोध जताया।

यह ध्यान दिया जाना चाहिए म्यांमार के उत्तर पश्चिम में राख़ीन प्रांत, रोहिंग्याई मुसल्मानों की एक बड़ी संख्या के रहने का स्थान, 2012 के बाद से अब तक, बौद्ध चरमपंथियों द्वारा मुसलमानों के खिलाफ जातीय हिंसा का मैदान रहा है,इस हिंसा में सैकड़ों लोगों की जान गई और दस्यों हजार लोगों ने मरने की आशंका से अपने घरों को छोड़ दिया और गंदे शिविरों में गंभीर परिस्थितियों में म्यांमार, थाईलैंड, मलेशिया और इंडोनेशिया में शरण लिया है।

म्यांमार सरकार मुसल्मानों को जो इस देश की 1,1 मिल्यून आबादी का हिस्सा है कम्पलीट नागरिक्ता का हक़ देने से मना कर रही है और उनको बंगलादेश से आऐ ग़ैर क़ानूनी मुहाजिर कहती है जब कि अधिकतम लोगों का मानना है कि रोहिंग्याई अल्पसंख्यकों का वंश व अस्लीयत म्यांमार में पुराना है।

रोहिंग्याई मुसलमानों को 1982 से एक नए कानून के मद्देनजर म्यांमार नागरिकता के अधिकार से वंचित किया गया है।

सहित संयुक्त राष्ट्र के अनुसार रोहिंग्या उन अल्पसंख्यकों में से है, जो दुनिया में सबसे अधिक उत्पीड़न और हिंसा का शिकार हैं।

 

अंतरराष्ट्रीय कुरान समाचार एजेंसी  खबर «इंडिया टीवी समाचार»के हवाले से, भारत के राज्य "उत्तराखंड" सरकार के मंत्रिमंडल की बैठक के दौरान, जो परसों,18 दिसंबर को आयोजित हुई, यह निर्णय लिया गया है कि मुस्लिम कर्मचारियों के लिए विशेष 12;30 से 14 तक शुक्रवार को छुट्टी रहेगी।

हरीश रावत "उत्तराखंड" राज्य के मुख्यमंत्री ने कहाःइस बात पर ध्यान देते हुऐ कि अधिकतम मुसलमान प्रार्थना करने के पाबंद हैं तो हक़ रखते हैं कि औपचारिक रूप से एक समय उनके लिए निर्धारित किया जा सके।

यह निर्णय ऐक भारती पार्टी जो कि राष्ट्रीय बौध्द पार्टी है के विरोध का शिकार हुआ और इस पार्टी के वक्ता ने घोषणा की कि इस सूरत में बौधेदों को भी शनिवार व सोमवार को अपने इबादी काम अंजाम देने के लिऐ 2 घंटे की छुट्टी चाहिऐ।

"उत्तराखंड"सरकार ने अपने निर्णय की रक्षा करते हुऐ कहाःयह निर्णय चुनाव की पूर्व संध्या पर को मायूस न करने और काम के समय नमाज़ पढ़ने के लिऐ मुसल्मान कर्मचारियों की समस्याओं को दूर करने के लक्ष्य से लिया गया है।

भारतीय पीपुल्स पार्टी के प्रवक्ता ने दावा किया कि इस निर्णय से पता चलता है कि हरीश रावत सरकार लोगों के वोटों को आकर्षित करने के उद्देश्य से किसी भी मांग को स्वीकार कर सकती है।

 

17 रबीउल अव्वल मार्गदर्शन और प्रकाश के दूत पैग़म्बरे इस्लाम (स) का शुभ जन्म दिवस है।

सन 570 ईसवी को रबीउल अव्वल के महीने में पवित्र मक्का शहर में हज़रत का जन्म हुआ था। पैग़म्बरे इस्लाम के जन्म के वर्ष और महीने के बारे में समस्त मुसलमानों के बीच सहमति है, हालांकि मुसलमानों के बीच उनके जन्म दिवस के बारे में थोड़ा सा मतभेद है। सुन्नी मुसलमानों के अनुसार, हज़रत रसूले ख़ुदा का जन्म सोमवार, 12 रबीउल अव्वल को हुआ था, जबकि शियों का मानना है कि हज़रत का जन्म शुक्रवार, 17 रबीउल अव्वल को हुआ था। इसलिए ईरान में शिया विद्वानों और सुन्नी विद्वानों के दृष्टिकोणों का सम्मान करते हुए और समस्त मुसलमानों के बीच एकता के उद्देश्य से 12 से 17 रबीउल अव्वल तक एकता सप्ताह की घोषणा की गई और दुनिया भर के मुसलमान इस सप्ताह का सम्मान करते हैं।

 

इसी प्रकार, 17 रबीउल अव्वल को शिया मुसलमानों के छठे इमाम हज़रत जाफ़र बिन मोहम्मद (अ) का शुभ जन्म दिवस भी है। छठे इमाम सादिक़ के नाम से प्रसिद्ध हैं। हज़रत के अन्य उपनाम साबिर, ताहिर और फ़ाज़िल भी हैं लेकिन तत्कालीन सुन्नी मुस्लिम विद्वानों ने हज़रत को सही और सच्ची हदीस बयान करने के कारण सादिक का लक़ब दिया, जो सबसे अधिक प्रसिद्ध हुआ। इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) से विशेष किया है। वे इस रहस्यवादी किताब में इमाम का गुणगान कुछ इस प्रकार से करते हैं, अगर उनके किसी एक गुण का बखान करूं तो वह मेरे शब्दों और लेख में नहीं समा सकती, वे महान एवं संपूर्ण मार्गदर्शक थे। वे इस्लाम धर्म के समस्त मतों के इमाम थे, इसी प्रकार वे रहस्यवाद में रूची रखने वालों के मार्गदर्शक थे। आम लोग हों या विद्वान सभी उनका सम्मान करते थे। वे सत्य और वास्तविकता को उजागर करने वाले और क़ुरान एवं रहस्यों के अद्वितीय व्याख्याकार थे।

पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने अपनी पूरी उम्र मानव समाज के लिए न्याय, शिक्षा और नैतिकता के लिए प्रयास किया। वे एकता और भाईचारे को उत्कृष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए पहला क़दम बताते थे। इसीलिए मदीना पहुंचकर और आरम्भ में ही इस्लामी व्यवस्था की स्थापना करके, कई महत्वपूर्ण संधियां कीं। सबसे पहली संधि मदीना शहर के लोगों के साथ, इसमें मुस्लिम और ग़ैर मुस्लिम सभी शामिल थे।

इस संधि के पहले अनुच्छेद में, मदीना वासियों के लिए धर्म के चयन की आज़ादी का उल्लेख है और दुश्मन के मुक़ाबले में एकता पर बल दिया गया है। दूसरी संधि, मुहाजिर अर्थात अप्रवासियों और अंसार अर्थात स्थानीय लोगों के बीच भाईचारे की संधि थी। पलायनकर्ता पैग़म्बरे इस्लाम ने मस्जिदुन्नबी में मुसलमानों को संबोधित करते हुए कहा, आपस में दो दो लोग भाई बन जाएं। इस प्रकार पैग़म्बरे इस्लाम ने मुसलमानों के बीच भाईचारे को बढ़ावा दिया और उनके बीच एकता को मज़बूत बनाया। ईश्वर पर ईमान की छत्रछाया, पैग़म्बरे इस्लाम की सिफ़ारिशों और आकाशवाणी के प्रति मुसलमानों के समर्पण के फलस्वरूप, यही एकता उनकी सफलता का कारण बनी।

 

 

पैग़म्बरे इस्लाम के उत्तराधिकारी इमामों ने भी उनकी शैली अपनायी। जिस प्रकार, पैग़म्बरे इस्लाम मुसलमानों के बीच किसी भी प्रकार की साम्प्रदायिकता की अनुमति नहीं देते थे, उसी तरह से उनके उत्तराधिकारी इमामों ने भी क़ुरान और पैग़म्बरे इस्लाम के आचरण को आधार बनाकर मुसलमानों के बीच फूट डालने और साम्प्रदायिकता की अनुमति नहीं दी। इसलिए कि एकता बुद्धि और शरीयत के अनुसार, एक ज़रूरत है। साम्प्रदायिक मतभेदों के कारण मुसलमानों की एकता को भंग करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। पैग़म्बरे इस्लाम (स) के स्वर्गवास के बाद, उनके उत्तराधिकारी हज़रत अली (अ) ने इस्लामी समाज में एकजुटता बने रहने के उद्देश्य से अपना अधिकार त्याग दिया और मुसलमानों के बीच फूट नहीं पड़ने दी। यही कारण है कि इमामों के जीवन में सुन्नी मुसलमानों से दूरी नहीं मिलेगी। उनका सुन्नी मुसलमानों के साथ अच्छा संपर्क और संबंध था। उनका ख़याल रखते थे और उनके साथ बैठकर खाना खाते थे। व्यवसाय में उन्हें अपना सहभागी बनाते थे और धार्मिक समारोहों में एक साथ भाग लेते थे। इसी प्रकार अपने अनुयाईयों से सिफ़ारिश करते थे कि हर उस क़दम से बचें।

दूसरे इमामों की भांति इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) भी शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं करते थे और उन्हें इस्लामी अधिकारों में भागीदार मानते थे। वे फ़रमाते थेः मुसलमान, मुसलमान का भाई है और एक मुसलमान भाई पर दूसरे मुसलमान का अधिकार यह है कि वह अपना पेट नहीं भरता है, ऐसी स्थिति में कि जब उसका भाई भूखा होता है, वह ख़ुद पानी नहीं पीता है, जब उसका भाई प्यासा होता है, वह ख़ुद को नहीं ढांपता है, जब उसके भाई के पास ख़ुद को ढांपने के लिए कुछ नहीं होता है और मुसलमान भाई पर दूसरे मुसलमान भाई का अधिकार कितना अधिक है।

 

जब मआविया बिन वहब ने हज़रत से ग़ैर शियों के साथ बर्ताव के बारे में सवाल किया तो आप ने फ़रमाया, उन धर्मगुरूओं की ओर देखो जिनका वह अनुसरण करते हैं, जैसा वे बर्ताव करते हैं वैसा ही बर्ताव तुम करो, ईश्वर की सौगंध वे अपने रोगियों की देखभाल करते हैं और उनकी शव यात्रा में भाग लेते हैं और उनके लाभ और नुक़सान के लिए गवाही देते हैं और उनकी अमानत वापस करते हैं।

यही कारण है कि हम छठे इमाम के जीवन में देखते हैं कि वे समस्त मुसलमानों और समस्त इंसानों की आर्थिक सहायता करते थे। उनके एक शिष्य मोअल्ला बिन ख़नीस का कहना है, बारिश की एक रात इमाम सादिक़ (अ) बनी साएदा मोहल्ले में जाने के लिए अपने घर से बाहर निकले, मैं भी उनके पीछे पीछे चल दिया। रास्ते में कोई चीज़ उनके हाथ से गिर गई। मैं निकट गया और सलाम किया। मैंने देखा कि उनके कांधे पर जो रोटियां लदी हैं उनमें से कुछ गिर गई हैं। मैंने उन्हें उठाया और उन्हें दिया और कहा, मैं आपके क़ुर्बान जाऊं, अगर आपकी अनुमति हो तो इस भार को मैं उठा लूं? फ़रमायाः नहीं, इसे मैं ख़ुद ही उठाऊंगा। मोअल्ला आगे कहते हैं, बनी साएदा के यहां तक मैं इमाम के साथ गया, वहां मैंने कुछ निर्धन लोगों को सोते हुए देखा। इमाम जाफ़र सादिक़ आगे बढ़े, इस तरह से कि किसी की आंख न खुल जाए, उन्होंने हर एक के पास एक रोटी रखी, यह ऐसी स्थिति में था कि जब वे इमाम के अनुयाई नहीं थे।

सुन्नी मुसलमानों के चार इमामों में से एक इमाम शाफ़ेई, इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) को बहुत बड़ा ज्ञानी और विशिष्ट व्यक्ति मानते हैं और कहते हैं कि बड़ी संख्या में धर्मगुरूओं ने इमाम से ज्ञान प्राप्त किया, जो एक विशिष्टता है। मोअतज़ली साहित्यकार जाहिज़ कहता है, जाफ़र इब्ने मोहम्मद का ज्ञान और धर्मशास्त्र दुनिया पर छा गया है।      

               

इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) फ़रमाते हैः लोगों के बीच जब मतभेद हो जाए उस समय उनके बीच शांति की स्थापना और जब उनके बीच दूरी हो जाए उनके बीच दोस्ती करवाना, एक ऐसा पुण्य व दान है जिसे ईश्वर पसंद करता है। इसी प्रकार पैग़म्बरे इस्लाम (स) की एक हदीस है जो कोई सुबह उठे लेकिन मुसमलानों के मामलों पर विचार न करे तो वह उनमें से नहीं है, और जो कोई मदद के लिए पुकार रहे किसी व्यक्ति की आवाज़ सुने लेकिन उसकी मदद न करे तो वह मुसलमान नहीं है।

यह और इस प्रकार की अन्य हदीसें मुलमानों के बीच एकता और बिना किसी भेदभाव के लोगों की सहायता पर बल देती हैं। क्योंकि इसी प्रकार लोगों के बीच एकता और एकजुटता की  स्थापना हो सकती है और दुश्मन निराश हो सकता है। इसलिए कि जहां लोगों के बीच सद्भावना होगी वहां दुश्मन की चालें सफल नहीं हो सकतीं।