رضوی

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भारत और पाकिस्तान के विभिन्न शहरों में पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद (स) और उनके पौत्र हज़रत इमाम सादिक़ (अ) के शुभ जन्म दिवस के अवसर पर कार्यक्रमों का सिलसिला जारी है।
भारत और पाकिस्तान से प्राप्त समाचारों के अनुसार दिल्ली और इस्लामाबाद में स्थित इस्लामी गणतंत्र ईरान के दूतावासों में मुसलमानों की इस विशेष ईद पर, एकता सप्ताह के रूप में कार्यक्रम आयोजित किए गए।
भारत से हमारे संवाददाता की रिपोर्ट के अनुसार राजधानी नई दिल्ली में स्थित ईरान के सांस्कृतिक केंद्र में आयोजित हुए एकता सप्ताह कार्यक्रम में मुसलमानों के हर मत ने भाग लिया। दिल्ली में शिया मुसलमानों के इमाम जुमा मौलाना मोहसिन तक़वी और सुन्नी मस्जिद के इमाम मौलाना मोहम्मद मुफ़्ती मुकर्रम अहमद भी शामिल हुए।
एकता सप्ताह के कार्यक्रम में शामिल तमाम धर्मगुरूओं और बुद्धिजीवियों ने इस्लामी क्रांति के संस्थापक इमाम ख़ुमौनी द्वारा हज़रत पैग़म्बरे इस्लाम (स) के जन्मदिवस के अवसर पर इस्लामी कलंडर के रबीउल अव्वल महीने की 12 तारीख़ से 17 तारीख़ तक एकता सप्ताह मनाने के फ़ैसले को इस सदी का सबसे महत्वपूर्ण और दूरदर्शीतपूर्ण फ़ैसला बताया।
दूसरी ओर भारत के ऐतिहासिक शहर लखनऊ में भी युवाओं द्वारा ईदे मिलादुन्नबी और हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ के जन्म दिवस को एकता सप्ताह के रूप में मनाया गया।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार युवाओं की सालेहीन नामक संस्था की ओर से आयोजित एकता सप्ताह में बड़ी संख्या में शिया और सुन्नी मुसलमानों ने भाग लिया। कार्यक्रम में शामिल सुन्नी धर्मगुरू मौलाना उबैद ने कहा की मुसलमानो में इस समय सबसे बड़ी ज़रूरत एकता की है, क्योंकि मुसलमान इस समय आपसी भाईचारे और एकता से बहुत दूर है। उन्होंने कहा कि हम सबको चाहिए के पैग़म्बरे इस्लाम (स) के द्वारा बताए गए रास्तों पर चलें और आपस में भाईचारा पैदा करे ताकि दुश्मनो की साज़ीशें नाकाम हो जाएं।
पाकिस्तान की राजधानी इस्लाबाद से हमारे संवाददाता की रिपोर्ट के अनुसार इस्लामाबाद में मौजूद ईरानी दूतावास की ओर से एक निजी होटल में ईदे मीलादुन्नबी के अवसर पर एकता के संबंध में एक प्रतिष्ठित समारोह आयोजित किया गया।
एकता सप्ताह के इस भव्य कार्यक्रम में मुख्य अतिथि पाकिस्तान के धार्मिक मामलों के मंत्री सरदार यूसुफ और प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के विशेष सलाहकार इरफ़ान सिद्दीक़ी ने भाग लिया। समारोह में शिया उलेमा काउंसिल के प्रमुख अल्लामा सैयद साजिद अली नक़वी, मजलिस एकता मुसलमीन के महासचिव अल्लामा नासिर अब्बास जाफ़री और जमाते इस्लामी के महासचिव लियाक़त बलोच सहित विभिन्न मतों और धर्मों के विद्वानों और बुद्धिजीवियों ने भाग लिया।

 

तीसवां अतंरराष्ट्रीय एकता सम्मेलन, शनिवार की रात इस्लामी जगत में एकता तथा इस्लामी देशों के खिलाफ साज़िशों की ओर से सचेत रहने की ज़रूरत पर बल के साथ संपन्न हो गया।

एक एकता सम्मेलन के घोषणा पत्र में इस तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भाग लेने वालों ने इस्लामी देशों में जारी परिवर्तनों का जायज़ा लिया तथा इसलामी जगत में मतभेदों को खत्म करने के लिए बनायी गयी योजनाओं को तत्काल लागू किये जाने की मांग की। 

घोषणापत्र में अल्पसंख्यकों के अधिकारों पर विशेष ध्यान दिये जाने की ज़रूत पर बल दिया गया। 

घोषणा पत्र में कहा गया है कि इस्लामी एकता और तकफीरी आतंकवादियों के खिलाफ संघर्ष, इस सम्मेलन का  मुख्य नारा था।  

बयान में बताया गया कि सम्मेलन में भाग लेने वालों ने तकफीरी विचारधारा और मुसलमानों की एकता को उससे पहुंचने वाले नुक़सान का जायज़ा लिया और इस बात पर बल दिया कि तकफीरी विचारधारा मुसलमानों के मध्य एकता की सब से बड़ी दुश्मन है इस लिए एकता के लिए काम करने वाले सभी लोगों को तकफीरी विचारधारा का मुक़ाबला करना चाहिए। 

तीसवें अंतरराष्ट्रीय इस्लामी एकता सम्मेलन के घोषणापत्र में फिलिस्तीन के विषय को यथावत महत्व दिये जाने की ज़रूरत पर बल दिया गया और इसी प्रकार इराक और सीरिया में आतंकवाद के खिलाफ जनता की विजय पर बधाई दी गयी और यह उम्मीद प्रकट की गयी कि इस्लामी जगत की मदद से और इन देशों की जनता के त्याग व बलिदान से इराक और सीरिया में यथाशीघ्र हालात सामान्य हो जाएंगे। 

सम्मेलन में भाग लेने वालों ने यमन में प्रतिदिन जनसहांर और उस पर अंतरराष्ट्रीय संगठनों की खामोशी की आलोचना की और यह मांग की गयी कि यमन की जनता को बचाने के लिए यथाशीघ्र क़दम उठाया जाए। 

तीसवां अंतरराष्ट्रीय इस्लामी एकता सम्मेलन गुरुवार को तेहरान में आंरभ हुआ था। शनिवार की रात खत्म होने वाले इस सम्मेलन में इस्लामी जगत सहित साठ देशों से सैंकड़ों बुद्धिजीवियों ने भाग लिया।

 

 

वरिष्ठ नेता ने कहा है कि ब्रिटेन सदैव ही पश्चिमी एशिया के लिए दुखों और कष्टों का कारण रहा है।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने शनिवार को तेहरान में उन मेहमानों से मुलाक़ात की जो एकता कांफ़्रेंस में भाग लेने के लिए ईरान आए थे।

इस्लामी देशों के राजदूतों और विदेशी अतिथियों को संबोधित करते हुए कहा कि क्षेत्र में दो परस्पर विरोधाभासी विचार पाए जाते हैं एकता और मतभेद।  वरिष्ठ नेता ने कहा कि वर्तमान संवेदनशील परिस्थितियों में पवित्र क़ुरआन और ईश्वरीय दूतों की उच्च शिक्षाओं पर भरोसा करते हुए मतभेद फैलाने के कुप्रयास को विफल बनाया जा सकता है।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि पिछली दो शताब्दियों के दौरान ब्रिटेन की नीतियां, क्षेत्र में मतभेद फैलाने पर आधारित रही हैं।  उन्होंने कहा कि हालिया दिनों में ब्रिटेन ने ईरान जैसे अत्याचारग्रस्त देश को क्षेत्र के लिए ख़तरा घोषित किया है।  वरिष्ठ नेता ने कहा कि हालांकि इन आरोपों के बावजूद यह ब्रिटेन ही है जो सदैव ही दुखों और कष्टों का कारण बना रहा है।

वरिष्ठ नेता ने मुसलमानों के बीच मतभेद फैलाने के लिए वर्चस्ववादियों के कुप्रयासों की ओर संकेत करते हुए कहा कि इस समय इस्लामी जगत, नाना प्रकार की समस्याओं में घिरा हुआ है जिनका समाधान, एकता के माध्यम से किया जा सकता है।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा कि इस्लामी जगत में एकता स्थापित होने की स्थिति में मुसलमानों के एकजुट न करने के बारे में अमरीकी और ज़ायोनी प्रयास विफल हो जाएंगे और इसी के साथ फ़िलिस्तीनियों के विषय को एक किनारे डालने का उनका षडयंत्र भी विफल हो जाएगा।

वरिष्ठ नेता ने म्यांमार में मुसलमानों के जनसंहार से लेकर अफ़्रीका और पश्चिमी एशिया में जारी रक्तपात को वर्चस्ववादियों के षडयंत्रों का परिणाम बताते हुए कहा कि इन हालात में ब्रिटेन में सक्रिय कुछ शिया गुट और अमरीका में सक्रिय कुछ सुन्नी गुट, मुसलमानों के बीच मतभेद फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

उन्होंने एकता को मुसलमनों की महत्वपूर्ण आवश्यकता बताते हुए कहा कि मुसलमानों के सभी पंथों को एकता का सम्मान करते हुए मतभेदों से बचना चाहिए।  वरिष्ठ नेता ने कहा कि पवित्र क़ुरआन, पै़गम्बरे इस्लाम (स) और पवित्र काबा, मुसलमानों के बीच एकता का केन्द्र हैं।

 

पाकिस्तान, मीलादुन्नबी (s)की कुरआनी महफ़िलों का मेज़बान

«Samaa.tv»के हवाले से खबर, कल पाकिस्तान के विभिन्न शहरों में पवित्र कुरान प्रतिस्पर्धा और पैगंबर (PBUH) की नअत के मुक़ाबले का आयोजन और विजेताओं को पुरस्कार से सम्मानित करके सराहा गया।

पैगंबर (PBUH) की मीलाद की महफ़िल और विभिन्न कार्यक्रम सभी शहरों और कस्बों और गांवों में आयोजित किऐ गऐ। इस्लामाबाद, कराची, लाहौर, पेशावर और क्वेटा जैसे प्रमुख शहर भी पैगंबर (PBUH) के जन्मदिन पर मुसलमानों के बड़े समूहों द्वारा जश्न मनाने के गवाह रहे।

पाकिस्तान में जन्मदिन समारोह, जो कि सुन्नी रवायत के अनुसार 12 रबीउलअव्वल को आयोजित किया जाता है मुस्लिम उम्मा एकता प्रार्थना और प्रगति और मुसल्मानों की समृद्धि के लिए प्रार्थना करने के साथ समाप्त हुआ।

इस दिन पाकिस्तान में सभी घरों, दुकानों, भवनों, मस्जिदों, हरमों और इबादी स्थानों को प्रबुद्ध और सजाया जाता है।

मेडिकल टेंट और राहत कार्यकर्ता भी तैनात रहते हैं ता कि जरूरत पर लोगों की मदद करें।

हजारों पुलिस बलों की कोशिश रहती है कि मस्जिदों और श्रेणियों की सुरक्षा बनाए रखें।

घर में विशेष भोजन पकाया जाता है और लोगों, पड़ोसियों, रिश्तेदारों और जरूरतमंदों के बीच में वितरित किया जाता है।

बच्चे, वयस्कों के साथ समारोह में शामिल किऐ जाते हैं।

पैगंबर मुहम्मद (PBUH) के जीवन और सीरत पर सम्मेलन विभिन्न स्थानों में आयोजित किया जाता है और विद्वानों और बुद्धिजीवी हज़रात ने, पैगंबर मुहम्मद की शिक्षाओं और जीवनी के बारे में लोगों को भाषण दिऐ।

 

 

 

  

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि दुश्मन देश के युवाओं के मन व मस्तिष्क को प्रभावित करना चाह रहे हैं और इसका एक उद्देश्य ईरान पर अपना आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक वर्चस्व जमाना है।

वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने मंगलवार को  तेहरान में छात्रों के एक कार्यक्रम के अवसर पर कहा कि युवाओं को जो आज ईरानी राष्ट्र के सपूत और देश के भावी नेता व अधिकारी हैं, अपनी सक्रिय उपस्थिति द्वारा दुश्मनों की इस साज़िश को नाकाम बनाना चाहिए।


 

 

वरिष्ठ नेता ने छात्रों के मध्य अपने भाषण में कहा कि सामाजिक व व्यक्तिगत विकास का रहस्य, ईश्वर से संपर्क बनाए रखने में निहित है और आज डूबती और पतन की ओर बढ़ती पश्चिमी सभ्यता की सब से बड़ी बुराई, ईश्वर से संपर्क खत्म करना है। 

 

 

वरिष्ठ नेता ने छात्रों से कहा कि वह देश पर जान न्योछावर करने वाले शहीदों को अपना आदर्श बनाएं जिन्होंने देश की स्वाधीनता और राष्ट्रीय हितों की रक्षा और दुश्मनों को भगाने के लिए अपनी सब से मूल्यवान पूंजी अर्थात अपनी जान न्योछावर कर दी। 

 

 

वरिष्ठ नेता ने ईश्वर से संबंध बनाए रखने का रास्ता, नमाज़ और कुरआन की तिलावत बताया और कहा कि इस बात पर ध्यान देने से कि नमाज़ पढ़ते समय मनुष्य, ईश्वर से बात करता है इंसान में ईश्वर पर भरोसा, साहस और आत्मविश्वास पैदा होता है इस लिए नमाज़ उसके सही समय पर और पूरे ध्यान से पढ़ना चाहिए और कुरआन से उसके अर्थों को समझ कर निकट होना और स्थायी संबंध बनाना चाहिए।  

 

 

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने कहा है कि अमरीका, इराक़ सहित इस्लामी देशों की संप्रभुता का सदैव से विरोधी रहा है और कभी भी उसकी झूठी मुस्कुराहट और विदित रूप के झांसे में नहीं आना चाहिए।

वरिष्ठ नेता ने तेहरान में इराक़ के शिया राष्ट्रीय गठबंधन के प्रमुख और इस गठबंधन के मुख्य सदस्यों से मुलाक़ात में कहा कि अमरीकी, अपने समस्त विदित दावों के विपरीत कभी भी तकफ़ीरी आतंकवाद के सफ़ाए के लिए प्रयासरत नहीं रहे और वे इन आतंकियों में से कुछ को अपने भविष्य के लक्ष्यों के लिए सुरक्षित रखने के प्रयास में हैं।

आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने दाइश द्वारा इराक़ के तेल बेचने की प्रक्रिया की ओर संकेत करते हुए कहा कि उस समय अमरीकी केवल तेल टैंकरों की लाइनों का नज़ारा देखने वाले थे और कभी भी उसको लक्ष्य नहीं बनाया और इस आधार पर अमरीकियों पर भरोसा नहीं किया जा सकता।

वरिष्ठ नेता ने इसी प्रकार इराक़ के भविष्य को आज से अधिक प्रकाशमयी बताया और कहा कि इराक़ की प्रगति, ईरान के हित में है और पहले से अधिक दोनों देशों के मध्य समन्वय दोनों पक्षों के हित में है। उन्होंने इराक़ में शिया गुटों के मध्य गठबंधन के गठन पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए इसे महत्वपूर्ण घटना बताया और इस एकता की रक्षा और इसकी मज़बूती पर बल दिया।

वरिष्ठ नेता ने इराक़ के शिया राष्ट्रीय गठबंधन में शामिल समस्त धड़ों और इसके सदस्यों और प्रमुख की ज़िम्मेदारी को बहुत भारी बताया और कहा कि उनका हर फ़ैसला और क्रियाकलाप इराक़, क्षेत्र और इस्लाम को प्रभावित करेगा।

वरिष्ठ नेता ने कहा इराक़ के शिया राष्ट्रीय गठबंधन का मुख्य लक्ष्य, इराक़ में एकता और एकजुटता की रक्षा करना है और इसकी महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारियों में सबसे महत्वपूर्ण इराक़ में मौजूद सरकारों का समर्थन करना है।

वरिष्ठ नेता ने इसी प्रकार इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चेहलुम के अवसर पर श्रद्धालुओं के अद्वितीय स्वागत के लिए इराक़ की सरकार, जनता और अधिकारियों का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर इराक़ के शिया राष्ट्रीय गठबंधन के प्रमुख सैयद अम्मार हकीम ने ईरान के समर्थन की प्रशंसा करते हुए कहा कि इराक़ में शिया राष्ट्रीय गठबंधन के परिणामों में से एक स्वयं सेवी बल क़ानून को पास करना था।  

 

12 दिसंबर से एकता सप्ताह आरंभ हो रहा है जिसके संबन्ध में ईरान में कार्यक्रम आयोजित किये जाएंगे।

एकता सप्ताह आरंभ होने के अवसर पर राष्ट्रपति डा. रूहानी ने कहा है कि पवित्र क़ुरआन ने समस्त मुसलमानों को भाईचारे का निमंत्रण देता है।  उन्होंने कहा कि शिया व सुन्नी मुसलमान सब एक ही परिवार के सदस्य हैं।  उन्होंने कहा कि जातीय विविधिता, कोई सुरक्षा ख़तरा नहीं बल्कि राष्ट्रीय एकता और विकास का सुअवसर है।

राष्ट्रपति रूहानी ने पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम के आचरण को समस्त मुसलमानों के लिए संयुक्त आदर्श बताया।

ज्ञात रहे कि सुन्नी मुसलमान 12 रबीउल अव्वल को पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) का शुभ जन्म दिवस मनाते हैं जबकि शिया मुसलमान इसे 17 रबीउल अव्वल को मनाते हैं।  ईरान की इस्लामी गणतंत्र ईरान के संस्थापक तथा मुसलमानों के बीच एकता के ध्वजवाहक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी ने 12 रबीउल अव्वल से 17 रबीउल अव्वल को एकता सप्ताह का नाम दिया है जिसे ईरान में बड़े वैभवशाली ढंग से मनाया जाता है।

 

 

ज़ायोनी शासन के विशेषज्ञों ने कहा है कि अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन पर फ़िलिस्तीनियों के मीज़ाइल हमलों की स्थिति में, इस्राईल की सेना को अपनी कमज़ोरियों का सामना करना पड़ेगा।

फ़िलिस्तीनी इन्फ़ारमेशन सेन्टर की रिपोर्ट के अनुसार, ज़ायोनी शासन के विशेषज्ञ यूसुफ़ शबरा ने कहा कि अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन पर हमले की स्थिति में लगभग बीस लाख इस्राईली बेघर हो जाएंगे और मीज़ाइल हमलों का निशाना बने रहेंगे और बस्तियों के ख़ाली करने और सुरक्षा के न होने की समस्या युद्ध के दौरान जारी रहेगी।

यूसुफ़ शबरा ने कहा कि इस्राईल को इन हालात के लिए स्वयं को तैयार रखना चाहिए कि दसियो हज़ार मीज़ाइल इस्राईल पर गिरेंगे क्योंकि इस्राईली सेना के कमान्डरों में आंतरिक मोर्चे की सुरक्षा में शंका पायी जाती है।

अमरीकी विशेषज्ञ की रिपोर्ट के आधार पर ज़ायोनी शासन के पूर्व युद्धमंत्री मूशे यालून ने 2014 में 50 दिवसीय युद्ध में फ़िलिस्तीनी गुटों के मीज़ाइल हमलों के मुक़ाबले में बस्तियों के निवासियों के समर्थन के मुद्दे को सुरक्षा कमेटी की बैठक में पेश नहीं किया था किन्तु उनकी योजना हमले पर आधारित थी।

 

म्यांमार के उप विदेशमंत्री ने म्यांमार के मुसलमानों के जनसंहार के बारे में मलेशिया के प्रधानमंत्री के बयान पर आपत्ति जताते हुए मलेशिया के राजदूत को विदेशमंत्रालय में तलब किया है।

न्यूज़ इलेवन की रिपोर्ट के अनुसार, म्यांमार के उप विदेशमंत्री ने बुधवार को मलेशिया के राजदूत हनीफ़ बिन अब्दुर्रहमान को तलब करके देश के बारे में मलेशियाई प्रधानमंत्री के बयान पर स्पीष्टीकरण मांगा है।

म्यांमार के उप विदशेमंत्री "तीन कियाओ" ने मलेशिया के राजदूत से मुलाक़ात में राख़ीन प्रांत में मुसलमानों के जातीय जनसंहार के समाचारों का खंडन किया।  उन्होंने कहा कि मलेशिया के प्रधानमंत्री के ग़ैर ज़िम्मेदाराना बनाया से क्षेत्र में हिंसा बढ़ सकती है।

ज्ञात रहे कि रविवार को मलेशिया के हज़ारों लोगों ने प्रधानमंत्री नजीब तून रज़्ज़ाक़ की उपस्थिति में कुआल्लांमपूर के एक स्टेडियम में एकत्रित होकर म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के जनसंहार की निंदा की थी।

मलेशिया के प्रधानमंत्री ने इस अवसर पर अपने भाषण में म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों के जनसंहार की निंदा करते हुए म्यांमार की विदेशमंत्री और सरकार की सर्वोच्च सलाहकार आंग सांग सूची से मांग की थी कि मुसलमानों का जनसंहार रोका जाए और उनकी रक्षा की जाए।

म्यांमार के  राख़ीन प्रांत में 2012 से रोहिंग्या मुसलमानों पर बौद्ध चरमपंथियों के हमले हो रहे हैं।  

 

आठ रबीउल अव्वल सन 260 हिजरी क़मरी को अभी सूरज निकला भी नहीं था कि सच्चाई और मार्गदर्शन के सूरज इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम शहीद हो गये जिससे पूरा इस्लामी जगत शोकाकुल हो गया।

           

इमाम और पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम के पवित्र परिजन समस्त मानवीय सदगुणों के उत्कृष्टतम प्रतीक हैं। इन महान हस्तियों की पावन जीवनी विश्ववासियों के समक्ष संपूर्ण इंसान की तस्वीर पेश करती है। ऐसा परिपूर्ण इंसान जिसने महान ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने और उसके दुश्मनों से दूरी बनाये रखने के लिए उपासना और जेहाद आदि समस्त क्षेत्रों में सत्य के मार्ग को तय किया हों। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम सच्चाई और मार्गदर्शन के सूरज हैं। उन्होंने अपनी छोटी उम्र के अधिकांश भाग को अपनी इच्छा के विपरीत अपने पिता इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के साथ सामर्रा की अस्कर नामक छावनी में व्यतीत किया। अपने पिता इमाम अली नक़ी अलहिस्सलाम की शहादत के बाद इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने लोगों के मार्गदर्शन का ईश्वरीय दायित्व संभाला और अत्याचारी शासकों और बहुत अधिक प्रतिबंध होने के बावजूद उन्होंने 6 वर्षों तक ईश्वरीय धर्म इस्लाम की शिक्षाओं का प्रचार- प्रसार किया।

इमाम, मार्गदर्शन में बुद्धि और नसीहत के महत्व की ओर संकेत करते हुए इस प्रकार फरमाते हैं।“ दिल में इच्छा और आंतरिक भावना के विभिन्न विचार होते हैं परंतु बुद्धि रुकावट बनती है और अनुभवों के भंडार से नया ज्ञान प्राप्त होता है। और नसीहत मार्गदर्शन का कारण है।“

पापों से रोकने वाले कारक के रूप में भय और आशा के बारे में इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” जो भय और आशा अपने स्वामी को उस बुरे कार्य से न रोक सके जो उसके लिए उपलब्ध हो गया है और उस मुसीबत पर धैर्य न करे जो उस पर आ गयी है तो उसका क्या लाभ है? इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम पाप को हल्का समझने के बारे में फरमाते हैं” माफ़ न किए जाने वाले पापों में से एक पाप यह है कि पाप करने वाला यह कहे कि काश इस पाप के अलावा किसी और का दंड न दिया जाता।“ 

 

 इन सब बातों के अलावा इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम लोगों के विभिन्न वर्गों को अपने अनुयाइयों से पहचनवाते और कहते थे कि मार्गदर्शन के लिए किस गुट को समय विशेष करना चाहिये। वास्तव में इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम अपने चाहने वालों को यह बताते थे कि मार्गदर्शन में संबोधक की पहचान बहुत ज़रूरी है। “क़ासिम हरवी” नाम का इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम का एक अनुयाई कहता है” इमाम के हाथ का लिखा हुआ एक पत्र उनके एक अनुयाई के हाथ में पहुंचा। इस पत्र को लेकर इमाम के कुछ अनुयाइयों के मध्य बहस हो गयी तो मैंने इमाम के नाम एक पत्र लिखा ताकि उन्हें उनके अनुयाइयों के मध्य मतभेद से सूचित कर दूं और इस संबंध में मार्गदर्शन प्राप्त करूं। मेरे पत्र के उत्तर में इमाम ने लिखा” बेशक ईश्वर ने बुद्धिमान लोगों को संबोधित किया है और पैग़म्बरे इस्लाम से बढ़कर किसी ने अपनी पैग़म्बरी को सिद्ध करने के लिए तर्क पेश नहीं किया। इसके बावजूद सबने कहा कि पैग़म्बरे इस्लाम जादूगर और झूठे हैं। ईश्वर ने हर उस व्यक्ति का पथप्रदर्शन किया जो मार्गदर्शन को स्वीकार करने वाला था। क्योंकि बहुत से लोग तर्क को स्वीकार करते हैं। जब भी ईश्वर सत्य व हक़ को अस्तित्व में न लाना चाहे चाहे तो कभी भी अस्तित्व में नहीं आयेगा। उसने पैग़म्बरों को भेजा ताकि वे लोगों को डरायें और आशा दिलायें और कमज़ोर एवं शक्ति की हालत में स्पष्ट रूप से लोगों को सत्य के लिए आमंत्रित करें और सदैव उनसे बात करें ताकि ईश्वर अपने आदेश को लागू करे। लोगों के विभिन्न वर्ग हैं जो समझ- बूझ व अंतर्दृष्टि रखते हैं उन्होंने मुक्ति व कल्याण का मार्ग पहचान लिया और सच व हक़ को भाग लिया और मज़बूत शाखाओं से जुड़े रहे तथा उन्होंने किसी प्रकार का संदेह नहीं किया और दूसरे की शरण में नहीं गये। लोगों का दूसरा वर्ग उन लोगों का है जिन्होंने हक़ को उसके पात्रों से नहीं लिया वे उन लोगों की भांति हैं जो समुद्र में यात्रा करते हैं और समुद्र में उसकी लहरों से व्याकुल हो जाते हैं और उसकी लहरों के शांत हो जाने से उन्हें शांति हो जाती है। लोगों का एक वर्ग शैतान का अनुयाई हो गया है और वह सत्य के अनुयाइयों की बातों को रद्द करता है और अपनी ईर्ष्या के कारण वह सत्य को असत्य से पराजित करता है। इस आधार पर जो लोग इधर- उधर भटकते हैं उन्हें उनकी हाल पर छोड़ दो।“

 

 इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम अच्छाई का आदेश देने और पैग़म्बरे इस्लाम के अनुयाइयों के मध्य सुधार करने के उद्देश्य से विभिन्न शैलियों का प्रयोग करते थे। जिस समय इमाम कारावास में थे उन्होंने अपने सदव्यवहार से कारावास के कर्मचारियों को इस प्रकार परिवर्तित कर दिया करते थे कि जब वे कारावास से बाहर जाते थे तो इमाम के सदगुणों व विशेषताओं से सबसे अधिक जानकार होते थे। शैख कुलैनी अपनी प्रसिद्ध पुस्तक उसूले काफी में इस प्रकार लिखते हैं” मोअतज़ ने इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम को शहीद करने के बाद इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम पर भारी दबाव डाल रखा यहां तक कि उसने कई बार इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को जेल में डाल दिया। मोअतज़ का प्रयास होता था कि वह सबसे क्रूर व्यक्ति को इमाम पर निगरानी के लिए तैनात करे ताकि वह इमाम को खूब कष्ट पहुंचाये। एक बार उसने इमाम को सालेह बिन वसीफ़ नाम के व्यक्ति के हवाले किया। सालेह, पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों का कट्टर विरोधी व दुश्मन था। उसने अच्छा मौक़ा समझा। उसने स्वयं से तुच्छ व्यक्तियों को कारावास में इमाम पर नियुक्त किया ताकि वह रात-दिन इमाम को कष्ट पहुंचाये। एक दिन अब्बासियों का एक गुट सालेह बिन वसीफ़ के पास आया। सालेह ने उनसे कहा मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करूं? जिन्हें मैं जानता था उनमें से बहुत ही क्रूर व तुच्छ दो व्यक्तियों को इमाम पर नज़र रखने के लिए तैनात किया था परंतु कुछ ही समय में इमाम ने उन ऐसा प्रभाव डाला कि वे उपासना करने वाले बन गये। मैंने उनसे पूछा कि उनके बारे में क्या कहते हो? तो उन्होंने उत्तर दिया उसके बारे में क्या कहूं जो दिनों को रोज़ा रखता है और रातों को सुबह तक नमाज़ पढ़ता है न बात करता है और न उपासना के अलावा कुछ और करता है। हम जब भी उसे देखते हैं उसके दबदबे से थर्राने लगते हैं।“

 

 इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम हर गुट व दल के साथ उचित व्यवहार के लिए उस के हिसाब से शैली अपनाते थे। कभी नसीहत, कभी चेतावनी, कभी विशेष व्यक्तियों का प्रशिक्षण और उन्हें शैक्षणिक केन्द्रों में भेजते थे। प्रसिद्ध लेखक इब्ने शहर आशूब लिखते हैं कि इस्हाक़ केन्दी को इस्लामी और अरब जगत का दर्शनशास्त्री समझा जाता था और वह इराक में रहता था। उसने “तनाक़ुज़े कुरआन” अर्थात कुरआन के विरोधाभास नाम की एक किताब लिखी। एक दिन उसका एक शिष्य इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की सेवा में गया। इमाम ने उससे फरमाया क्यों तुम अपने उस्ताद की बातों का उत्तर नहीं देते? उसने कहा कि हम सब शिष्य हैं हम अपने उस्ताद की ग़लतियों पर आपत्ति नहीं कर सकते! इमाम ने फरमाया अगर तुम्हें कोई बात बताई जाये तो तुम उसे अपने उस्ताद से बता सकते हो उसके शिष्य ने कहा हां। इमाम ने फरमाया जब यहां से लौट कर जाना तो अपने उस्ताद के पास जाना और उससे प्रेम व गर्मजोशी से पेश आना और उससे निकट होने का प्रयास करो और जब पूरी तरह निकट हो जाओ तो उससे कहना। मेरे सामने एक समस्या पेश आई है और वह यह है कि क्या यह संभव है कि क़ुरआन के कहने वाले ने उस अर्थ के अलावा किसी और अर्थ का इरादा किया हो जो आप सोच रहे हैं? वह जवाब में कहेगा हां यह संभव है इस प्रकार का उसका तात्पर्य हो सकता है। उस समय तुम कहना आप को क्या पता? शायद क़ुरआन की बोती की कहने वाले ने उस अर्थ के अलावा किसी दूसरे अर्थ का इरादा किया हो जिसे आप सोच रहे हैं और आपने उसके शब्दों का प्रयोग दूसरे अर्थ में किया हो? इमाम ने यहां पर आगे कहा” वह समझदार इंसान है इस बिन्दु को बयान करना काफी है कि उसका ध्यान अपनी ग़लती की ओर चला जाये। शिष्य ने इमाम के कहने के अनुसार व्यवहार किया। उस्ताद ने सच्चाई स्वीकार कर लेने के बाद उसे शपथ दी कि तुम यह बताओ कि तुमने यह बात कहां सुनी। अंततः शिष्य ने बता दिया कि इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने इस प्रकार फरमाया था। केन्दी ने भी कहा अब तुमने वास्तविकता कही। उसके बाद उसने कहा कि इस प्रकार का सवाल इस परिवार की शोभा है। उसके बाद उसने आग मंगवाई और तनाक़ुज़े क़ुरआन नाम की किताब में जो कुछ लिखा था उसे जला दिया।

 

 इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम पूरी तरह अब्बासी शासकों के नियंत्रण में थे फिर भी वे इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के पावन अस्तित्व को सहन नहीं कर पा रहे थे इसी आधार पर वे इमाम को रास्ते से हटा देने की सोच में पड़ गये। इसी कारण अत्याचारी अब्बासी शासक मोअतमिद ने एक षडयंत्र रचकर इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को ज़हर दे दिया। इमाम उसी ज़हर के कारण कई दिनों तक बीमारी के बिस्तर पर पड़े रहे और उन दिनों मोअतमिद लगातार दरबार के चिकित्सकों को इमाम के पास भेजता था ताकि लोग यह समझें कि इमाम बीमार हैं और दूसरी ओर इमाम का दिखावटी उपचार करके लोगों की सहानुभूति प्राप्त करे और स्थिति पर भी पैनी नज़र रख सके और अगर इमाम के उत्तराधिकारी के संबंध में कोई संदिग्ध गतिविधि भी दिखाई दे तो उसे उसकी रिपोर्ट दी जाये। इमाम कुछ समय की कठिन बीमारी के बाद आठ रबीउल अव्वल 260 हिजरी क़मरी को शुक्रवार के दिन सुबह की नमाज़ के समय शहीद हो गये। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम 29 वर्ष से अधिक समय तक जीवित नहीं रहे पर 6 वर्षों की इमामत के दौरान उन पर पवित्र क़ुरआन की व्याख्या, इस्लाम की शुद्ध शिक्षाओं के प्रचार- प्रसार के साथ ऐसे सुपुत्र के पालने की जिम्मेदारी थी जो अंतिम समय में प्रकट होगा और अत्याचार से भरी पूरी दुनिया एवं पूरी मानवता को मुक्ति दिलायेगा। महामुक्तिदाता हज़रत इमाम मेहदी अलैहिस्सलाम 255 हिजरी क़मरी में पैदा हुए थे और महान ईश्वर के आदेश से वह आज तक जीवित हैं और लोगों की नज़रों से ओझल हैं और महान ईश्वर के आदेश से प्रकट होंगे और  पूरे संसार को न्याय से भर देंगे और हर तरफ शांति ही शांति होगी।