ग़ालिब अकादमी दिल्ली में “फिलिस्तीन के लिए शांति और न्याय” विषय पर एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय सम्मेलन

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ग़ालिब अकादमी दिल्ली में “फिलिस्तीन के लिए शांति और न्याय” विषय पर एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय सम्मेलन

आज जब ग़ज़ा में मानवता कराह रही है, बच्चों के शव मलबों से निकाले जा रहे हैं और अस्पताल खंडहर में तब्दील हो रहे हैं, ऐसे दौर में चुप रह जाना सबसे बड़ा अपराध है। भारत की आत्मा फिलिस्तीन के साथ है।

नई दिल्ली स्थित ग़ालिब अकादमी में “फिलिस्तीन के लिए शांति और न्याय” विषय पर एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया। यह सम्मेलन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जारी फिलिस्तीनी संकट के विरुद्ध भारत से उठती एकजुटता की आवाज़ है, जिसका उद्देश्य न्याय, शांति और मानवीय मूल्यों की पुनर्प्रतिष्ठा है।

इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में भारत में फिलिस्तीनी राजदूत महामहिम अब्दुल्ला अबू शावेश ने शिरकत की और अपने ओजस्वी संबोधन में भारत और फिलिस्तीन के ऐतिहासिक संबंधों पर प्रकाश डालते हुए भारतीय जनमानस के समर्थन के प्रति आभार प्रकट किया।

राजदूत ने भारत के विदेश मंत्री के साथ हुई बैठक का हवाला देते हुए बताया कि भारत से हमेशा की तरह दवाई, खाना, कपड़े और सहूलत के सामान को ग़ज़्ज़ा में भेजने का आग्रह किया जिसपर विदेश मंत्री ने आश्वासन दिया कि हम फलीस्तीनी के साथ खड़े हैं और जल्द ही भारत सरकार की तरफ़ से सारी ज़रूरत की चीजें हमेशा की तरह भेजी जाएंगी।

सम्मेलन का संचालन कर रहे डॉ. फैज़ुल हसन, निदेशक इंटरनेशनल डेमोक्रेटिक राइट्स फाउंडेशन (IDRF) ने कहा कि, “आज जब ग़ज़ा में मानवता कराह रही है, बच्चों के शव मलबों से निकाले जा रहे हैं और अस्पताल खंडहर में तब्दील हो रहे हैं, ऐसे दौर में चुप रह जाना सबसे बड़ा अपराध है। भारत की आत्मा फिलिस्तीन के साथ है।”

इस सम्मेलन को कई प्रतिष्ठित वक्ताओं ने संबोधित किया:

मुफ़्ती अशफाक़ हुसैन क़ादरी (अध्यक्ष, एआईटीयूआई) ने ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ बुलंद करने को इस्लामी और मानवीय ज़िम्मेदारी बताया।

सज्जाद हुसैन करगिली (राजनीतिक कार्यकर्ता) ने कश्मीर-फिलिस्तीन एकजुटता पर बात करते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस जनसंहार के खिलाफ आवाज़ उठाने की जरूरत पर बल दिया। और बताया कि यह जंग हक़ और नाइंसाफी की है, न कि यहूदी बनाम मुसलमान, न शिया बनाम सुन्नी।

फ़िरोज़ मितिबोरवाला (महासचिव, आईपीएसएफ) ने इसे नव-उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद की राजनीति करार दिया और जनांदोलनों से जुड़ने की अपील की। उन्होंने बोला कि फिलिस्तीन के साथ सड़क से लेकर सोशल मीडिया, मीडिया और हर तरह से आवाज़ उठानी पड़ेगी क्योंकि यह लड़ाई इंसानियत की लड़ाई है।

डॉ. शुजात अली क़ादरी (अध्यक्ष,एमएसओ) ने कहा कि फिलिस्तीन के बच्चों की चीखें केवल फिलिस्तीन की नहीं बल्कि पूरी मानवता की हार हैं।

सम्मेलन में सैकड़ों छात्रों, बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और आम नागरिकों की भागीदारी रही। कार्यक्रम के अंत में सभी प्रतिभागियों ने “फिलिस्तीन के लिए न्याय” की मांग को लेकर एकजुटता प्रदर्शित करते हुए संकल्प लिया कि वे इस मुद्दे को समाज के हर वर्ग तक पहुंचाएंगे। फ़्री-फ़्री पेलेस्टाइन के नारों से पूरा हाल गूँजता रहा।

 

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