رضوی

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करगिल में अंजुमन ए साहिब-ए-ज़मान के तत्वावधान में अर्बईन वॉक का आयोजन किया गया, जिसमें कश्मीर और करगिल के हज़ारों अज़ादारों ने भाग लिया। इस दौरान 175 रक्तदान किए गए और सबील तथा तबर्रुकात का व्यापक प्रबंध किया गया।

अरबईन ए हुसैनी के अवसर पर अंजुमन-ए-साहिब-ए-ज़मान करगिल-लद्दाख के तत्वावधान में एक रूहानी पैदल मार्च (अर्बईन वॉक) आयोजित किया गया, जिसमें करगिल जिले के विभिन्न क्षेत्रों के साथ-साथ कश्मीर के अहलेबैत (अ.स.) के प्रेमियों और अज़ादारों ने बड़ी संख्या में भाग लिया। 

सूत्रों के अनुसार, परंपरा के अनुसार इस वर्ष भी अर्बईन वॉक की शुरुआत सुबह 8 बजे अस्ताना-ए-आलिया तीसूर से हुई, जहाँ कुरान की तिलावत, हदीस-ए-किसा और एक संक्षिप्त मजलिस के बाद पैदल मार्च का आधिकारिक रूप से आगाज़ किया गया। 

इस अवसर पर अंजुमन-ए-साहिब-ए-ज़मान के सरपरस्त-ए-आला हुज्जतुल इस्लाम वाल मुस्लिमीन सैयद मोहम्मद रज़वी चेयरमैन हुज्जतुल इस्लाम शेख सादिक बलागी हुज्जतुल इस्लाम सईद जाफर रिज़वी सहित अन्य उलेमाए किराम भी मौजूद थे। 

यह पैदल मार्च दोपहर बाद अस्ताना-ए-आलिया अबू सईद मीर हाशिम शाह में संपन्न हुआ, जहाँ मजलिस-ए-अज़ा आयोजित की गई और ज़ियारत-ए-अर्बईन की तिलावत के ज़रिए अज़ादारों ने शुहदा-ए-कर्बला को श्रद्धांजलि अर्पित की। 

इस भावपूर्ण और शांतिपूर्ण मार्च में न केवल करगिल जिले के कोने-कोने से अज़ादार शामिल हुए, बल्कि कश्मीर से भी बड़ी संख्या में ज़ायरीन ने भाग लिया। इस दौरान 175 से अधिक रक्तदान किए गए और सबील तथा तबर्रुकात का भी व्यापक प्रबंध किया गया। 

 इराक के पवित्र शहर कर्बला में कई लाख मुसलमानों ने अरबईन हुसैनी की पैदल यात्रा के दौरान फिलिस्तीनी लोगों के साथ एकजुटता व्यक्त की। इस दौरान ज़ायरीन ने फिलिस्तीन के लिए दुआ की और इस्राइल के खिलाफ संघर्ष के नारे लगाए।

इराक के पवित्र शहर कर्बला में कई लाख मुसलमानों ने अरबईन हुसैनी की पैदल यात्रा के दौरान फिलिस्तीनी लोगों के साथ एकजुटता व्यक्त की। इस दौरान ज़ायरीन ने फिलिस्तीन के लिए दुआ की और इस्राइल के खिलाफ संघर्ष के नारे लगाए। 

दुनिया के कई देशों के विचारकों और राजनीतिक और सांस्कृतिक हस्तियों की उपस्थिति में "फ़िलिस्तीन और इमाम हुसैन अलैहिस्सल्लाम" नामक अल-अक्सा कॉल अंतर्राष्ट्रीय कांफ़्रेंस रविवार से सोमवार तक आयोजित की गई।यह कांफ़्रेंस पवित्र नगर करबला में हुसैनी धार्मिक केन्द्र की देखरेख में आयोजित हुई।

अलमयादीन चैनल के अनुसार, फ़िलिस्तीनी मुद्दे के साथ अंतरराष्ट्रीय एकजुटता के लिए आयोजित होने वाली इस कांफ़्रेंस में शामिल लोगों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि फ़िलिस्तीन का मुद्दा, विश्व के स्वतंत्र लोगों और औपनिवेशिक शक्तियों के बीच युद्धक्षेत्र का पहला मुद्दा है।

इस कांफ़्रेंस में ज़ायोनी शासन के साथ संबंधों के सामान्यीकरण का भी विरोध किया गया और इस्लामी विद्वानों व विचारकों और दुनिया के स्वतंत्र लोगों से इस मुद्दे पर विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्यकता पर बल दिया गया।

इस बैठक में उपस्थित लोगों ने ज़ायोनी शासन के ख़िलाफ़ फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के प्रतिरोध की सराहना की और उन्होंने फ़िलिस्तीनी मुद्दे और हुसैनी आंदोलन के आयामों के प्रसार में विचारकों, मीडिया और नागरिक समाज संस्थानों की भूमिका पर ज़ोर दिया।

 

 दुनिया के कोने कोने से लाखों श्रद्धालु इराक पहुंच चुके हैं और इराक के पवित्र नगर नजफ से पवित्र नगर कर्बला तक पैदल चल रहे हैं। इन दोनों नगरों के बीच की दूरी लगभग 86 किलोमीटर है जिसके बीच हज़ारों शिविर लगे हुए हैं जहां इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के श्रृद्धालुओं का स्वागत किया जा रहा है और उनकी ज़रूरत की लगभग समस्त चीज़ें उपलब्ध हैं। यही नहीं इराक के पवित्र नगर नजफ और कर्बला के बीच सुन्नी मुसलमानों ने भी अपने शिविर लगा रखे हैं जहां इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चाहने वालों का स्वागत किया जा रहा है।

दुनिया के कोने कोने से लाखों श्रद्धालु इराक पहुंच चुके हैं और इराक के पवित्र नगर नजफ से पवित्र नगर कर्बला तक पैदल चल रहे हैं। इन दोनों नगरों के बीच की दूरी लगभग 86 किलोमीटर है जिसके बीच हज़ारों शिविर लगे हुए हैं जहां इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के श्रृद्धालुओं का स्वागत किया जा रहा है और उनकी ज़रूरत की लगभग समस्त चीज़ें उपलब्ध हैं। यही नहीं इराक के पवित्र नगर नजफ और कर्बला के बीच सुन्नी मुसलमानों ने भी अपने शिविर लगा रखे हैं जहां इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चाहने वालों का स्वागत किया जा रहा है।

यहां इस बात का उल्लेख ज़रूरी है और वह यह है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के जो श्रृद्धालु इराक पहुंचे हैं उनमें एसे भी लोग हैं जो मुसलमान नहीं हैं जो इस बात का सूचक है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का संबंध किसी विशेष सप्रंदाय व धर्म के मानने वालों से नहीं है बल्कि इमाम हुसैन का संबंध समस्त मानवता से है।

उसकी एक वजह यह है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम उस हस्ती के उत्तराधिकारी हैं जिसे महान ईश्वर ने पूरे संसार के लिए रहमत व दया बनाकर भेजा था। जिस तरह महान ईश्वर ने पैग़म्बरे इस्लाम को पूरी मानवता की मुक्ति व कल्याण के लिए भेजा है उसी तरह इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम भी समूची मानवता की मुक्ति की नाव हैं।

यह इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के प्रति लोगों का असीम प्रेम है जो लोगों को अपनी ओर खींच रहा है। पैग़म्बरे इस्लाम ने अपनी एक हदीस में फरमाया है कि बेशक हुसैन मार्गदर्शन के चेराग़ हैं और नजात की कश्ती। लोगों का जनसैलाब पैग़म्बरे इस्लाम की हदीस की व्याख्या कर रहा है। पैग़म्बरे इस्लाम ने कहीं भी यह नहीं कहा है कि इमाम हुसैन मुसलमानों के मार्गदर्शन के चेराग़ हैं बल्कि यह कहा है कि हुसैन हिदायत के चेराग़ हैं।

जिसे भी हिदायत चाहिये वह इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शरण में जाये और जो भी वास्तविक अर्थों में इमाम हुसैन की शरण में चल गया, लोक- परलोक में उसकी मुक्ति निश्चित है। क्योंकि वह इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की नाव में सवार हो गया है और यह वह नाव है जिसमें सवार होने वाले की मुक्ति निश्चित है।

यहां कोई यह कह सकता है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम उस वक्त हिदायत के चेराग़ थे जब वह ज़िन्दा थे अब वह शहीद हो चुके हैं? तो इस सवाल के जवाब में कहा जा सकता है कि पैग़म्बरे इस्लाम ने यह नहीं कहा था कि इमाम हुसैन केवल उस समय हिदायत के चेराग़ हैं जब तक वह ज़िन्दा हैं बल्कि उन्होंने किसी प्रकार की शर्त के बिना कहा था कि इमाम हुसैन हिदायत व मार्गदर्शन के चेराग़ हैं जिससे पूरी तरह स्पष्ट है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम हर समय के लोगों के लिए मार्गदर्शन के चेराग हैं।

बहरहाल इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का संबंध पूरी मानवता से है और वह पूरी मानवता के लिए हिदायत के चेराग़ हैं और इस समय ग़ैर मुसलमानों का भी इराक में मौजूद होना इस बात का जीवंत सुबूत है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम सबके हैं।

इस्लामी क्रांति संरक्षक बल सिपाहे पासदारान आईआरजीसी के कमान्डर जनरल जाफ़री ने ईरान की शलम्चा सीमा पर कहा कि अरबईन का व्यापक संदेश, विश्व साम्राज्य के विरुद्ध मुसलमानों और ग़ैर मुस्लिमों की एकता है।

आईआरजीसी के कमान्डर जनरल मुहम्मद अली जाफ़री ने शनिवार को इराक़ से मिली ईरान की शलम्चा सीमा के निरिक्षण के अवसर पर पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि अरबईन का व्यापक संदेश यह है कि सभी मुसलमान और ग़ैर मुस्लिम, विश्व साम्राज्य और अत्याचार के विरुद्ध एकजुट हो गये हैं और सभी लोग शहीदों के ख़ून का बदला लेने की तमन्ना में हैं।

ज्ञात रहे कि इस साल अरबईन के मिलियन मार्च में भाग लेने के लिए इराक़, ईरान और दुनिया के विभिन्न देशों के तीर्थयात्री और हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम श्रद्धालु हर साल से अधिक संख्या में इराक़ पहुंच रहे हैं और इनमें पिछले वर्षों से भी अधिक जोश पाया जा रहा है और समस्त समस्याओं और आर्थिक मामलों के बावजूद अरबईन मिलियन मार्च में हर साल से अधिक संख्या में शामिल हैं।

आईआरजीसी के कमान्डर ने कहा कि आज हम देख रहे हैं कि पुलिस, आईआरजीसी, स्वयं सेवी बल बसीज, ज़िला प्रशासन सहित सभी संस्थाएं और स्वयं सेवी संगठन स्वेच्छा से तीर्थयात्रियों की सेवाओं में व्यस्त हैं।

जनरल जाफ़री ने शलम्चा सीमा की ओर जाने वाले रास्ते में बने मौकिब और कैंपों का उल्लेख करते हुए कहा कि लोगों में एक अजीब जोश पाया जा रहा है जो एक भव्य घटना अर्थात इमाम महदी के प्रकट की तैयारी है क्योंकि सभी शीया और अन्य मत के लोग अंतिम मोक्षदाता के प्रकट होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

उन्होंने इस बात का उल्लेख करते हुए कहा कि हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का आंदोलन अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष और अत्याचार के सामने न झुकने के लिए था और यही आशूरा की घटना का मुख्य संदेश है।

 नजफ़-कर्बला तीर्थयात्रा के दौरान, अहले सुन्नत ज़ायर मलिक फलक शेर ने कहा कि इमाम हुसैन (अ) का संदेश पूरी मानवता के लिए है और मुहब्बत ही सभी समस्याओं का एकमात्र समाधान है।

अरबईन हुसैनी के अवसर पर नजफ़ से कर्बला की तीर्थयात्रा के दौरान, हौज़ा न्यूज़ के एक संवाददाता ने पाकिस्तान के गुजरांवाला के एक अहले सुन्नत ज़ायर से विशेष बातचीत की।

अपने विचार साझा करते हुए, मलिक फलक शेर ने कहा, "मैं लंबे समय से दुआ कर रहा था कि अल्लाह मुझे अहले बैत (अ) की ज़ियारत का सौभाग्य प्रदान करे। आज जब मुझे यह अवसर मिला, तो मेरा शरीर सिहर उठा। 'हुसैन सबके लिए हैं' का नारा सुनकर मेरा दिल गहराई तक छू गया।"

उन्होंने कहा कि अरबईन का यह दृश्य देखकर मैं नैतिकता, अनुशासन और प्रेम से बहुत प्रभावित हुआ। "आज के दौर में कुछ लोग सोचते हैं कि इमाम हुसैन (अ) का संबंध केवल शिया धर्म से है, लेकिन मैं कहूँगा कि जो इमाम हुसैन (अ) और अहले-बैत (अ) से संबंधित नहीं है, उसका ईमान से कोई नाता नहीं है।"

नजफ़ से कर्बला तक पैदल यात्रा के बारे में उन्होंने कहा, "यह शुद्ध भक्ति और प्रेम का प्रकटीकरण है। जब प्रेम प्रबल होता है, तो यात्रा मीलों लंबी भी क्यों न हो, व्यक्ति उसे पूरा कर सकता है। हम भी नजफ़ से कर्बला तक पैदल आए हैं।"

वापसी के बाद अपने संदेश के बारे में उन्होंने कहा, "सबसे बड़ा संदेश प्रेम का है, क्योंकि प्रेम सभी को करीब लाता है और सभी समस्याओं का समाधान है। मैंने अपनी आँखों से देखा है कि हर जगह लोग तीर्थयात्रियों की सेवा करने, भोजन देने के लिए विनती और प्रार्थना कर रहे हैं। मैंने अपने जीवन में ऐसा दृश्य पहले कभी नहीं देखा।"

हज और अरबाईन यात्राओं का तुलनात्मक मूल्यांकन करते हुए उन्होंने कहा, "दोनों का अपना-अपना महत्व है, लेकिन अरबईन की कुर्बानी का आध्यात्मिक प्रभाव और संदेश पूरी मानवता के लिए एक महान सबक है। इससे यह सीख मिलती है कि अल्लाह को प्रसन्न करना सबसे बड़ी सफलता है, चाहे इसके लिए कितनी भी बड़ी कुर्बानी क्यों न देनी पड़े।"

मलिक फलक शेर ने अंत में दुआ की कि इमाम हुसैन (अ) उनकी यात्रा स्वीकार करें और कहा, "यह मेरे जीवन का सबसे अच्छा पल है।"

हौज़ा इल्मिया क़ुम के प्रोफ़ेसर सय्यद अब्दुल महदी तवक्कुल ने कहा है कि अरबईन हुसैनी दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समागम है और इस्लामी उम्माह की एकता और एकजुटता का एक स्पष्ट उदाहरण है।

हौज़ा इल्मिया क़ुम के प्रोफ़ेसर सय्यद अब्दुल महदी तवक्कुल ने कहा है कि अरबईन हुसैनी दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समागम है और इस्लामी उम्माह की एकता और एकजुटता का एक स्पष्ट उदाहरण है। उन्होंने कहा कि यह समागम न केवल मुसलमानों को, बल्कि अन्य धर्मों के अनुयायियों को भी एक लक्ष्य, अर्थात् धर्म के पुनरुत्थान के लिए एकजुट करता है, चाहे इसके लिए उन्हें अपनी जान ही क्यों न देनी पड़े।

उन्होंने अरबईन को पवित्र क़ुरआन की आयतों की रोशनी में धर्म और इस्लामी एकता को मज़बूत करने का एक प्रभावी माध्यम बताया और कहा कि यह समागम हज से कई गुना बड़ा है, इसलिए इसके प्रभाव भी व्यापक हैं। उनके अनुसार, अरबईन केवल एक धार्मिक कार्य नहीं है, बल्कि भाईचारे, त्याग, अहले-बैत (अ) के प्रति प्रेम और अत्याचार-विरोध पर आधारित एक जीवंत सभ्यतागत आदर्श है, जो दुनिया को इस्लाम के असली चेहरे से रूबरू कराता है।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन तवक्कुल ने अरबईन के पाँच बुनियादी व्यावहारिक लाभों का उल्लेख किया: इस्लामी एकता, ज़िम्मेदारी का निर्वहन, ईश्वरीय अनुष्ठानों का पुनरुद्धार, प्रतिरोध की भावना को मज़बूत करना और शुद्ध मुहम्मदी इस्लाम का प्रचार। उन्होंने कहा कि "हुसैन की मुहब्बत हमें एक साथ लाती है" के नारे के तहत यह सभा मुसलमानों को वली-ए-अस्र (अ) के प्रति अपनी निष्ठा को नवीनीकृत करने के लिए प्रोत्साहित करती है।

इस सभा को एक "व्यावहारिक अकादमी" बताते हुए उन्होंने कहा कि यह विनम्रता, सादगी, त्याग और आत्म-बलिदान का एक व्यावहारिक प्रशिक्षण स्थल है, और इसी तरह एक सभ्यता विकसित होती है जो उत्पीड़ितों का समर्थन करना और उत्पीड़क का सामना करना अपना आदर्श वाक्य बनाती है। उनके अनुसार, यह सभा न केवल उम्माह को जागृत करती है, बल्कि इमाम महदी (अ) के उदय का मार्ग प्रशस्त करने में भी भूमिका निभा सकती है।

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि अगर कोई अरबईन में भाग लेने में असमर्थ भी है, तो उसे इन दिनों के दौरान हुसैनी विद्रोह को समझाने, आशूरा की शिक्षाओं का प्रसार करने और इन शिक्षाओं को व्यावहारिक जीवन में लागू करने का प्रयास करना चाहिए।

इराक के मिलियन स्तरीय तीर्थयात्राओं के उच्च समन्वय समिति ने जोर देकर कहा कि अब तक कोई सुरक्षा उल्लंघन दर्ज नहीं हुआ है। वहीं, नजफ़ अशरफ़ हवाई अड्डे ने सोमवार को घोषणा की कि सफर महीने की शुरुआत से इमाम हुसैन (अ.स.) के अर्बईन समारोह में भाग लेने के लिए बडी संख्या में यात्री इस प्रांत में प्रवेश कर चुके हैं।

इराक के मिलियन स्तरीय तीर्थयात्राओं के उच्च समन्वय समिति ने जोर देकर कहा कि अब तक कोई सुरक्षा उल्लंघन दर्ज नहीं हुआ है। वहीं, नजफ़ अशरफ़ हवाई अड्डे ने सोमवार को घोषणा की कि सफर महीने की शुरुआत से इमाम हुसैन (अ.स.) के अर्बईन समारोह में भाग लेने के लिए बडी संख्या में यात्री इस प्रांत में प्रवेश कर चुके हैं।

इराक की उच्च समन्वय समिति ने सोमवार, (11 अगस्त) को बताया कि इराकी सुरक्षा बलों ने 16 दिन पहले से ही अर्बईन यात्रा की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सबसे बड़ी सुरक्षा योजना लागू की है।

समिति के प्रवक्ता मिक़दाद मीरी ने कर्बला में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा,16 दिन पहले से, सुरक्षा बलों ने धैर्य और सहनशक्ति के साथ इस योजना को शुरू किया है और सभी उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करके सुरक्षा उपायों को लागू कर रहे हैं।

उन्होंने कहा, अल्हम्दुलिल्लाह, अब तक कोई सुरक्षा उल्लंघन दर्ज नहीं हुआ है।मीरी ने स्पष्ट किया कि इस योजना में खुफिया क्षमताओं और थर्मल कैमरों का उपयोग किया जा रहा है।

साथ ही इस साल की योजना बिना हथियारों के लागू की गई है, परिवहन पिछले वर्षों की तुलना में बेहतर हुआ है और सेवाओं की गुणवत्ता भी अधिक है।

मीरी ने सुरक्षा बलों के लचीले रवैये का उल्लेख करते हुए कहा कि अफ़वाहों के साथ बुद्धिमानी, तेजी और गंभीरता से निपटा गया है।उन्होंने तीर्थयात्रियों को सुरक्षा और सेवाओं का साझेदार बताया और लोगों से सहयोग और एकजुटता की अपील की।

उनके अनुसार, तीर्थयात्रा का समग्र माहौल सकारात्मक है और इसे अफ़वाहों से बिगाड़ना नहीं चाहिए। साथ ही, आग से बचाव के लिए विशेष उपाय किए गए हैं। मीरी ने बताया कि खुफिया एजेंसी ने 30 लाख से अधिक विदेशी तीर्थयात्रियों के प्रवेश को सुगम बनाया है।

शुक्रवार, 15 अगस्त 2025 07:01

इज़राइल और अरबईन का डर

अरबईन हुसैनी प्रेम और प्रतिरोध का एक जीवंत यूनिवर्सिटी है जो लाखों अहले-बैत (अ) प्रेमियों की उपस्थिति में अहंकारी शासन के झूठे नियमों का पर्दाफ़ाश करके इस्लामी सभ्यता का ध्वजवाहक बन गया है। यह महान पदयात्रा एक ऐसे भविष्य का खाका प्रस्तुत करती है जिसमें "ईश्वरीय प्रतिज्ञा" पूरी होगी।

इस्लामी गणराज्य ईरान ने 12 दिनों के पवित्र रक्षा अभियान में दो देशों, इज़राइल और संयुक्त राज्य अमेरिका, जिनके पास घातक हथियार थे और जिनकी हार अकल्पनीय थी, का बहादुरी और प्रभावी ढंग से विरोध किया। इस दौरान, ईरानी राष्ट्र की आंतरिक एकता और विश्वास, क्रांति के सर्वोच्च नेता के दूरदर्शी नेतृत्व और सशस्त्र बलों के साहस और दृढ़ता ने यह साबित कर दिया कि इस्लामी क्रांति के संस्थापक इमाम खुमैनी (र) का ऐतिहासिक कथन, "हम कर सकते हैं," एक निर्विवाद सत्य है।

यह उपलब्धि ईरानी राष्ट्र की उपलब्धियों में एक स्वर्णिम पृष्ठ की तरह दर्ज की गई और इसने आधुनिक इस्लामी सभ्यता की ओर प्रगति को यथार्थवादी बना दिया।

आइए देखें कि इज़राइल को अरबईन से डरने वाले कौन से कारक हैं?

  1. दुनिया के लोगों को इमाम महदी (अ) के बारे में जागरूक करना
  2. ज़ायोनी शासन के प्रोटोकॉल को उजागर करना
  3. क्षेत्र और दुनिया के लोगों को ईरानी नेतृत्व और सशस्त्र बलों की शक्ति का एहसास कराना
  4. शैक्षणिक संस्थानों और मीडिया में अरबईन चर्चा का प्रचार करना
  5. दुनिया में पश्चिमी और अहंकारी लोकतंत्र के अंत का संदेश देना
  6. ग़ज़्ज़ा के लोगों का ध्यान संयुक्त राष्ट्र और अरब देशों के बजाय अहले-बैत (अ) के समर्थन की ओर मोड़ना
  7. लोगों को धार्मिक आस्था की प्रभावशीलता के बारे में बताना
  8. प्रतिभागियों के माध्यम से शहीदों की स्मृति को जीवित रखना और उनके साथ एक हार्दिक संबंध स्थापित करना
  9. आर्थिक कठिनाइयों और उनके कारणों के विरुद्ध प्रतिरोध को प्रोत्साहित करना
  10. "अत्याचारी का शत्रु और उत्पीड़ित का सहायक बनो" और "हमारे लिए, अपमान असंभव है" (کونا للظالم خصما و للمظوم عونا و هیهات مناالذله कूनू लिज़्ज़ालिमे ख़स्मन व लिलमज़लूमे औनन व हय्हात मिन्ना ज़िल्ला)
  11. उपदेशकों की धार्मिक और सामाजिक भूमिका का व्यवहार में परीक्षण करना
  12. मीडिया मंचों द्वारा कॉपीराइट के वादों की सत्यता का परीक्षण करना
  13. इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) के नारे "کُلُّ یَومٍ عاشوراء و کُلُّ أرضٍ کَربَلاء क़ुल्लो अर्ज़िन कर्बला व कुल्लो यौमिन आशूरा" को व्यवहार में लाना
  14. प्रतिभागियों के दिलों में ईश्वर, रसूल और मासूम इमाम के साथ एक आध्यात्मिक संबंध स्थापित करना
  15. धार्मिक आस्था की प्रभावशीलता को स्वतंत्रता के प्रचार का एक आदर्श बनाना
  16. धर्म, तर्क और कौशल के एक स्थायी संयोजन की प्रभावशीलता को समझना
  17. महदवी सरकार की आर्थिक प्रणाली प्रस्तुत करना
  18. इस्लाम और उसके प्रमुख व्यक्तियों के वास्तविक इतिहास से परिचित कराना
  19. अन्य राष्ट्रों और धर्मों की तुलना में इस्लाम में प्रेम और एकता के मानक को स्पष्ट करना
  20. ईरानी मिसाइलों की भौतिक और आध्यात्मिक ऊर्जा के संयोजन के बारे में जानकारी देना
  21. मीडिया और राजनेताओं को इस्लाम के विषैले प्रचार से प्रभावित लोगों का परिचय और पुनर्वास प्रदान करना
  22. शोधकर्ताओं और विचारकों के लिए एक व्यापक संज्ञानात्मक और मानवशास्त्रीय कक्षा आयोजित करना
  23. मनुष्य और फ़रिश्तों के बीच के संबंधों और मनुष्य के रहस्यमय स्थानों की वास्तविकता को उजागर करना
  24. नबियों और औलिया के एकेश्वरवादी संघर्ष के परिणामों को निष्पक्ष रूप से देखना
  25. इमाम खुमैनी के नारे "क़ुद्स की आज़ादी कर्बला से होकर गुज़रती है" को अमल में लाना

ये सभी पहलू इस तथ्य को उजागर करते हैं कि अरबईन हुसैनी की जागृति यात्रा का इस्लामी क्रांति से गहरा और अविभाज्य संबंध है क्योंकि ईरान की पवित्र रक्षा और अन्य प्रतिरोध मोर्चों के शहीदों का मिशन, जिसे आज पूरी दुनिया में मान्यता प्राप्त है, आशूरा के स्कूल से इसकी वैधता और मानक। यही कारण है कि अरबईन के संदेश युवाओं को अहंकार के सामने अजेय साहस, भविष्योन्मुखी मन और सत्य व वास्तविकता में दृढ़ विश्वास प्रदान करते हैं।

नजफ़ अशरफ़ से कर्बला तक पैदल यात्रा करते हुए मौलाना कमला हैदर खान ने कहा कि इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत केवल इबादत नहीं है, बल्कि यह इंसानीयत, ईसार और दीनी ग़ैरत का संदेश देने का एक व्यावहारिक माध्यम है।

क़ुम के प्रतिष्ठित विद्वान, हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन मौलाना कमाल हैदर खान ने हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के एक पत्रकार से बातचीत करते हुए अरबईन हुसैनी के आध्यात्मिक महत्व और इसमें छिपी शिक्षाओं और संदेशों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत में अनगिनत संदेश हैं, जिनमें सबसे बड़ा संदेश ईसार की भावना है। अगर कोई इंसान अपनी ज़रूरतों पर दूसरों को प्राथमिकता देता है, तो यही सच्ची इंसानियत की सबसे बड़ी सीख है।

मौलाना ने दीनी ग़ैरत के महत्व पर ज़ोर देते हुए कहा कि इतिहास गवाह है कि हर दौर में, चाहे आज हो या पिछली सदियों में, अल्लाह के रसूल (स) अलग-थलग रहे क्योंकि लोगों में बाहरी उत्साह तो था, लेकिन दीनी ग़ैरत नदारद थी। लोग अपनी ज़मीन, जायदाद और इज़्ज़त के लिए ग़ैरत दिखाते थे, लेकिन जब दीन का उल्लंघन होता था, तो उसे मामूली बात समझा जाता था। सरकार सय्यद उश शोहदा (अ) ने अपनी क़ुर्बानी के ज़रिए एक स्पष्ट संदेश दिया: "अल्लाह के दीन की रक्षा करना हर मुसलमान की पहली ज़िम्मेदारी है।"

मुसलमानों की दिनचर्या की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि लोग नमाज़, रोज़ा और ज़कात तो अदा करते हैं, लेकिन सिर्फ़ एक आदत के तौर पर, दीनी ग़ैरत से रहित। इमाम हुसैन (अ) का अरबईन दीनी ग़ैरत, निस्वार्थता और त्याग की एक व्यावहारिक तस्वीर पेश करती है और हर कदम पर हमें इसे अपने जीवन में उतारने के लिए प्रेरित करती है ताकि कोई भी इमाम या अचूक अकेला न रहे।

मौलाना कमाल हैदर खान ने कहा कि सरकार सय्यद उश-शोहदा (अ) और हज़रत ज़ैनब (स) के दर से हमें जो आध्यात्मिक पोषण मिलता है, वह ईमानदारी, त्याग और दीनी ग़ैरत है। हज़रत ज़ैनब (स) ने दुश्मन के सामने क़ुरआन की तिलावत की और ऐलान किया कि दीन जीवित है, और अगर पर्दा हटा भी दिया जाए, तो दुश्मन क़ुरआन को नष्ट नहीं कर सकता और न ही अहले-बैत (अ) की याद को मिटा सकता है।

उन्होंने आगे कहा कि कर्बला का सबसे महत्वपूर्ण सबक यह है कि जुल्म के सामने निडर रहें, बहादुरी से लड़ें और अपनी बाहरी ताकत को न देखें, क्योंकि सफलता का असली दाता अल्लाह तआला है। यह हमारा कर्तव्य है कि हम अपनी छोटी से छोटी शक्ति का भी उपयोग करें और अल्लाह तआला हमें बाकी शक्ति प्रदान करेगा।

मौलाना कमाल हैदर खान ने दुआ की कि अल्लाह तआला सभी जायरीन की जियारती सफर को स्वीकार करे और उन्हें कर्बला के द्वार से भर दे ताकि दीनी ग़ैरत और ईसार की यह शिक्षा हमारे दैनिक जीवन में व्यावहारिक रूप से लागू हो।

अपने आक़ा और मौला, सय्यद उश शोहदा इमाम हुसैन (अ) की पवित्र दरगाह पर ज़ियारत करने के बाद, मैं अल्लाह के हुज़ूर मे, मुहम्मद और आले मुहम्मद (अ) की उपस्थिति में यह प्रतिज्ञा करता/करती हूँ कि मैं अपने चरित्र, शब्दों और कर्मों के माध्यम से हुसैन (अ) के संदेश का प्रतिनिधि बनूँगा/बनूँगी।

सफ़र उल-मुज़फ़्फ़र 1447 हिजरी/2025 के महीने का सूरज इराक के पवित्र स्थानों में अपनी पूरी तीव्रता के साथ चमक रहा है। तापमान पचास डिग्री के आसपास है, ज़मीन जलते हुए अंगारों की तरह है, और हवा झुलसा देने वाली है। लेकिन इन कठिन परिस्थितियों के बीच, एक दृश्य दुनिया भर की आँखों को मोहित कर रहा है—लाखों हुसैन (अ) प्रेमी, इश्क़े खुदा मे शराबोर, नजफ़ अशरफ़ से कर्बला की ओर बढ़ रहे हैं।

ये कारवाँ किसी सांसारिक लोभ, किसी भौतिक लाभ या क्षणिक अभिलाषा के लिए नहीं, बल्कि उस अल्लाह की रज़ा के लिए निकला था जिसने कहा था:

(कहो: यदि तुम अल्लाह से मुहब्बत करते हो, तो मेरा इत्तेबा करो, अल्लाह तुमसे मुहब्बत करेगा—आले-इमरान: 31)

और अल्लाह के प्रेम का सबसे बड़ा प्रकटीकरण मुहम्मद और आले मुहम्मद (अ) की रक्षा और उनके धर्म की विजय है। यही कारण है कि हुसैन (अ) के ये प्रेमी अपने शरीर की थकान, प्यास की तीव्रता और गर्मी की तपिश को भूलकर कदम दर कदम आगे बढ़ते हैं।

कठिनाइयों में लिपटा प्यार

जिन बुज़ुर्गों के पैर काँप रहे हैं, जिन माँओं को उनके बच्चे गोद में लिए हुए हैं, जिन नौजवानों के चेहरे चिलचिलाती धूप में भी मुस्कुरा रहे हैं—ये सभी इसी विश्वास के साथ चल रहे हैं कि:

यह सफ़र सिर्फ़ कर्बला तक ही नहीं, बल्कि जन्नत का रास्ता है।

इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) ने फ़रमाया: "जो कोई हुसैन (अ) की ज़ियारत के लिए पैदल निकलता है, अल्लाह उसके हर कदम पर एक नेकी लिखता है, एक गुनाह मिटा देता है, और उसे एक दर्जा देता है।"

(कामिल उज़-ज़ियारात)

ज़ायरीन की सेवा, इबादत की मेराज

सड़कों के किनारे हुसैन के मूकिब इसका एक उदाहरण है। कोई ठंडा पानी पिला रहा है, कोई खजूर चढ़ा रहा है, कोई गर्मी में पंखा झल रहा है, कोई मुसाफ़िरों के पैर दबा रहा है, कोई ज़ख़्मी पैरों पर मरहम लगा रहा है।

हुसैन के ज़ायर, कर्बला के राजदूत

जब ये खुशकिस्मत मोमिन अरबईन के काफिले में शामिल होकर हुसैन (अ) की दरगाह पर सलाम पेश करते हैं, तो ऐसा लगता है मानो इमाम हुसैन (अ) खुद उन्हें अपना दूत बना रहे हों—यानी हुसैन के संदेश के प्रतिनिधि, हुसैन के उद्देश्य के गवाह और हुसैन की खुशबू के संरक्षक।

इसलिए कर्बला से लौटने वाले ज़ायर के जीवन में एक स्पष्ट अंतर होना चाहिए। पहले वह एक साधारण मोमिन था, लेकिन अब वह कर्बला का राजदूत है—उसके हर शब्द और कर्म, हर शैली और व्यवहार में हुसैन (अ) का संदेश झलकना चाहिए।

कर्बला के राजदूत के दायित्व

  1. किरदार में क्रांति

झूठ, चुगली, बेईमानी और क्रूरता से पूरी तरह बचना।

सत्य, विश्वसनीयता, पवित्रता और साहस को अपने व्यावहारिक जीवन का हिस्सा बनाना।

दैनिक निर्णयों में न्याय और निष्पक्षता को प्राथमिकता देना।

  1. हुसैन (अ) के संदेश का प्रचार करना।

कर्बला के सिद्धांतों और इमाम (अ) के उद्देश्य को समझाना।

अन्याय के विरुद्ध और सत्य की रक्षा के लिए आवाज़ उठाना।

युवा पीढ़ी को हुसैन की क़ुर्बानी से अवगत कराना।

  1. सृष्टि की सेवा को अपना आदर्श वाक्य बनाना।

ज़रूरतमंदों, अनाथों, बीमारों और उत्पीड़ितों की सहायता करना।

समाज में एकता, सहिष्णुता और भाईचारे को बढ़ावा देना।

अल्लाह और इमाम (अ) की रज़ा के लिए हर सेवा करना।

इमाम सादिक़ (अ) ने फ़रमाया:

हमारे लिए ज़ीनत बनो, शर्म का कारण मत बनो

कर्बला के दूत की शपथ

अपने आका और मौला, शहीद इमाम हुसैन (अ) की पवित्र दरगाह पर ज़ियारत करने के बाद, मैं अल्लाह के हुज़ूर में, मुहम्मद और आले मुहम्मद (अ) की उपस्थिति में शपथ लेता हूँ: मैं अपने चरित्र, शब्दों और कर्मों के माध्यम से हुसैन (अ) के संदेश का प्रतिनिधि बनूँगा। मैं हर परिस्थिति में, चाहे वह कितनी भी कठिन क्यों न हो, सत्य का साथ दूँगा और असत्य का विरोध करूँगा। मैं अपनी मातृभूमि, अपने समाज और अपने घर को कर्बला के सिद्धांतों पर बनाने का प्रयास करूँगा। मैं सृष्टि की सेवा को अपने जीवन का उद्देश्य और अत्याचार के विरुद्ध जिहाद को अपनी ज़िम्मेदारी मानूँगा। मैं कभी भी ऐसे किसी भी कार्य का हिस्सा नहीं बनूँगा जो हुसैन (अ) के उद्देश्य और अहले बैत (अ) के सम्मान के विरुद्ध हो।

ऐ अल्लाह! मेरी इस प्रतिज्ञा को स्वीकार कर, मुझे धैर्य प्रदान कर, और क़यामत के दिन मुझे हुसैन (अ) और उनके वफ़ादार साथियों के साथ इकट्ठा कर।

आमीन,या रब्बल आलामीन!

लेखक: मौलाना सय्यद ज़हीन अली काज़मी नजफ़ी