رضوی

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मरकज़ ए फ़िक़्ही आइम्मा ए अत्हार के संरक्षक ने क़ुम स्थित उर्वतुल वुस्क़ा अंतर्राष्ट्रीय शोध संस्थान के दौरे के दौरान कहा: आज महिलाओं के बारे में सबसे अच्छा दृष्टिकोण शियो का ही है। महिलाओं के सभी पहलुओं पर शियाो का सबसे मज़बूत और सबसे संपूर्ण दृष्टिकोण है। इसी प्रकार, बच्चों के बारे में भी शियो का सबसे अच्छा दृष्टिकोण है।

मरकज़ ए फ़िक़्ही आइम्मा ए अत्हार के संरक्षक आयतुल्लाह मुहम्मद जवाद फ़ाज़िल लंकरानी ने क़ुम स्थित उर्वतुल वुस्क़ा अंतर्राष्ट्रीय शोध संस्थान का दौरा किया।

इस अवसर पर उन्होंने कहा: हमें इस बात पर ज़ोर देना चाहिए कि अहले-बैत (अ) की कृपा और कुरान के साथ उनके सही संबंध के कारण शियो के पास अपार धन है। इन केंद्रों को इस ज्ञान को निचोड़कर दुनिया के शैक्षणिक केंद्रों तक पहुँचाना चाहिए।

आयतुल्लाह मुहम्मद जवाद फ़ाज़िल लंकारानी ने कहा: हमारा मुख्य कर्तव्य धर्म की ठोस नींव, विशेष रूप से शिया संप्रदाय के सिद्धांतों और आधारों की व्याख्या करना है, क्योंकि हमारा मानना है कि धर्म का सच्चा स्वरूप इसी प्रामाणिक संप्रदाय में प्रकट होता है। शिया मान्यताओं, नियमों, नैतिकता और राजनीतिक मुद्दों में शुद्ध और मौलिक शिक्षाएँ हैं, लेकिन दुर्भाग्य से, ये बहुमूल्य तथ्य नजफ़, क़ुम और अन्य मदरसों तक ही सीमित रह गए हैं और दुनिया के शैक्षणिक केंद्र इनसे अनभिज्ञ हैं।

उन्होंने कहा: एक बैठक में, सर्वोच्च नेता के समक्ष यह प्रस्ताव रखा गया कि लंदन में एक इस्लामी केंद्र स्थापित किया जाना चाहिए। उस समय, लंदन में ऐसा कोई केंद्र नहीं था। क्रांति के सर्वोच्च नेता ने कहा: क्या यह आवश्यक है? इसकी क्या विशेषताएँ होनी चाहिए? फिर उन्होंने स्वयं कहा: बिल्कुल, लंदन दुनिया का द्वार है। सभी संप्रदायों और समूहों के केंद्र वहाँ हैं। शियो का वहाँ एक महान, शैक्षणिक और आध्यात्मिक केंद्र क्यों नहीं होना चाहिए? बाद में, वहाँ एक इस्लामी केंद्र स्थापित किया गया।

आयतुल्लाह फ़ाज़िल लंकरानी ने कहा: विद्वानों में इस बात को लेकर चिंता थी कि दुनिया के शैक्षणिक केंद्रों में शिया शिक्षाओं को मान्यता नहीं दी जाती। मरकज़ ए फ़िक़्ही आइम्मा ए अत्हार की स्थापना भी इसी उद्देश्य से की गई थी, न कि केवल हुसैनिया या मस्जिद बनाने के लिए, बल्कि एक ऐसा केंद्र स्थापित करने के लिए जो शैक्षणिक रूप से सक्रिय हो।

उन्होंने आगे कहा: बच्चों के बारे में इस्लाम और शियाओं के विचार सबसे मज़बूत हैं। आज दुनिया बच्चों के अधिकारों की बात करती है, लेकिन इस्लाम ने इस पर गहन विचार प्रस्तुत किए हैं। इस विषय पर दो खंडों के सारांशों का अंग्रेजी, तुर्की, उर्दू और स्पेनिश में अनुवाद किया गया है, जो एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है।

मरकज़ ए फ़िक़्ही आइम्मा ए अत्हार के संरक्षक ने कहा: हम, छात्रों, शोधकर्ताओं और इन केंद्रों को, सबसे पहले यह मानना चाहिए कि शियो के पास कहने के लिए बहुत कुछ है। मेरे गुरु, आयतुल्लाह वहीद (द ज), अक्सर सनहौरी (मिस्र के नागरिक संहिता के प्रसिद्ध टीकाकार और "अल-वसीत" पुस्तक के लेखक) से बयान करते थे: "जब मेरी पुस्तक पूरी हो गई, तो मैंने शेख आज़म अंसारी की पुस्तक "मकासिब" देखी और पाया कि उसमें पहले से ही कितने आधुनिक, सशक्त और सटीक अध्ययन मौजूद हैं।"

उन्होंने यह कहकर निष्कर्ष निकाला: शिया अहले-बैत (अ) के बरकत और कुरान से उनके सही जुड़ाव के कारण बौद्धिक पूंजी से संपन्न हैं। इस संस्थान को इस ज्ञान को प्राप्त करके दुनिया के बौद्धिक केंद्रों तक पहुँचाना चाहिए। ईश्वर की कृपा से, यह संस्थान धर्मशास्त्रीय मदरसों, विशेषकर हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के इतिहास में एक स्वर्णिम पृष्ठ बनेगा।

आज भारतीय मुसलमानों के लिए एक ख़ास मौक़ा है कि जब उनकी ज़िंदगी के मक़सद उनकी आज़ादी के दो अलग अलग वजूद अपने दामन में एक ही मक़सद लेकर एक ही दिन एक दूसरे से मिलने जा रही हैं...आज आज़ादी और सामाजिक न्याय का समन्वय हो रहा है.क्यूंकि आज भारतीय मुसलमान राजनीतिक और धार्मिक दोनों ही पटल पर आज़ादी का मिलन देख रहा है..लेकिन इस बीच उसे दो अलग अलग किरदार भी अदा करने हैं।

आज भारतीय मुसलमानों के लिए एक ख़ास मौक़ा है कि जब उनकी ज़िंदगी के मक़सद उनकी आज़ादी के दो अलग अलग वजूद अपने दामन में एक ही मक़सद लेकर एक ही दिन एक दूसरे से मिलने जा रही हैं...आज आज़ादी और सामाजिक न्याय का समन्वय हो रहा है.क्यूंकि आज भारतीय मुसलमान राजनीतिक और धार्मिक दोनों ही पटल पर आज़ादी का मिलन देख रहा है..लेकिन इस बीच उसे दो अलग अलग किरदार भी अदा करने हैं...

जिसमे से एक किरदार में वो हौसला पाएगा जबकि दूसरे किरदार में उसी हौसले की मदद से अपनी और अपनों की मदद करनी होगी...

जी हाँ...मैं बात कर रहा हूँ भारतीय सवंत्रता दिवस और अरबईने हुसैनी की...जिसमे एक तरफ़ राजनीतिक आज़ादी है तो वहीँ दूसरी तरफ़ धार्मिक आज़ादी है...जबकि यही दो तंत्र सामाजिक व्यस्था को बनाने और बनाए रखने में सबसे महत्त्पूर्ण किरदार अदा करते हैं...तो फिर इसी संदर्भ में अगर मैं ये कहूँ तो शायद कुछ ग़लत ना होगा कि पहली आज़ादी हमें जूझना सिखाती है तो दूसरी आज़ादी जूझ कर पाई हुई हिम्मत को बनाए रखना सिखाती है...और ये दोनों ही तरह की आज़ादियाँ हर प्रकार की परिस्थिति में स्थिरता व धैर्य को बनाए रखने का संदेश देती हैं...क्यूंकि स्थिरता व धैर्य से प्राप्त होती है विजय यानी कामयाबी और कामयाबी का सही मतलब है सच को स्वीकारना...जबकि सच स्वीकारने का मतलब सामाजिक ताने बाने को बुनने वाली ज़िम्मेदारियों को समझना और उन ज़िम्मेदारियों से न्याय करना....और फिर इस सारी आपा धापी व मेहनत से निकल कर आने वाले नतीजे को ही हम “सोशल जस्टिस” यानी सामाजिक न्याय का नाम देते हैं...और यही सामाजिक न्याय आज़ादी का सूत्रधार भी है और जनक भी..

जी हाँ! वही राजनीतिक आज़ादी जिसकी कल्पना मात्र में खुदीराम बोस , बाजी राउत , बिरसा मुंडा , तसददुक़ हुसैन , मक़बूल अहमद और अशफाक़ुल्लाह खान जैसे कम उम्रों से लेकर दादाभाई नौरोजी और ख्वाजा हसन निज़ामी सरीखे बूढों ने मुस्कुराते हुए जान दे दी...और फिर बदले में उन्हें दुनिया की कुल अर्थव्यस्था का 58 प्रतिशत की अर्थव्यस्था यानी मौजूदा दौर के हिसाब से 64 ट्रिलियन डालर्स की अर्थव्यस्था लुटवाने, खो देने और भ्रष्ट राजनेताओं के बड़े बड़े भ्रष्टाचारों के बावजूद आम आदमी की मेहनत के बल बूते पर महज़ 78 सालों में ही दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यस्था वाला भारत मिला... 

जी हाँ! वही धार्मिक आज़ादी जो अपनी ग़लती की माफ़ी मांगने के लिए फ़ौज के सरदार के ओहदे को छोड़ कर एक एक प्यासे और लाचार के सामने  घुटनियों के बल आए...नाम से भी आज़ाद हुर (अस) से शुरू होती है और फिर छे माह के प्यासे बच्चे के तड़पती मछली से थके हुए खुलते बंद होंटों व नबी सल्लल्लाह की पीठ पर खेल चुके और अब तीरों पर टिके उनके प्यारे नवासे हुसैन अलैह्मुस्स्लाम के इश्क़ से लबरेज़ सजदे में बुदबुदाते हुए कटे ज़ख़्मी होंटों और हज़ारों ज़ख्मों के बावजूद हैहाथ मिन्नज्ज़िल्ला की इंक़ेलाबी आवाज़ से अंधेरों में रोशनी भरती आवाज़ए हुसैनी के साथ....ही थक हार कर हमेशा के लिए ख़ामोश हुई सकीना बिन्तुल हुसैन जैसी नन्हीं बच्ची की ख़ामोशी और फिर उस बच्ची की ख़ामोशी से उठी आवाज़ के तूफ़ान में यज़ीदियत का शीराज़े बिखेरती इन्क़ेलाबे अबदी यानी कभी मंद ना पड़ने वाली क्रांति अरबईने हुसैनी की सूरत में ठहरती है...

दरअसल सच भी यही है कि ये दोनों ही आज़ादियाँ अपने आप में क़ीमती हैं लेकिन फिर एक सच ये भी है कि...ये दोनों ही आज़ादियाँ उस वक़्त आज़ादी नहीं बल्कि जानवरों के चारे पानी के शेड्यूल या फिर ये कहा जाए कि पश्चिमी या पूंजीवादी सभ्यता का दम भरते हर तरह के बिज़ी शेड्यूल्स , टैक्सेज़ , लोन्स, तरह तरह के क़ानूनों में गिरफ़्तार ह्यूमन रोबोट्स की तरह से दिन-रात बस आदेश का पालन करने वाले यांत्रिक प्राणी , प्रोग्राम्ड ह्यूमन सा प्रोग्राम्ड सिस्टम सा है कि जिसमें—सोचने और महसूस करने की आज़ादी धीरे-धीरे मर चुकी हो…...और जी हाँ इंसान की यही वो असली हालत और हैसियत होती है कि जबकि इंसान अपनी आज़ादी का हक़ अदा ना करे...और इसका हक़ मैं तहरीर के पहले हिस्से में दर्ज कर चुका हूँ...जी हाँ वही सामाजिक न्याय , सोशल जस्टिस...

अब चूंकि मेरी तहरीर ज़रा लम्बी हो चली है और ये दौर किताबों, तहरीरों के बजाए शोर्ट वीडियोज़ का है लिहाज़ा कम अल्फ़ाज़ में इस तहरीर के नतीजे तक पहुँचने के लिए...दर्ज कर रहा हूँ कि...चाहे भारतीय सवंत्रता दिवस हो या फिर अरबईने हुसैनी दोनों ही किरदार आज़ादी की एक अलग परिभाषा रखते हैं...

अलबत्ता अब ये भी सच ही है कि सरहदों का फ़र्क ज़रूर हैं...लेकिन इंसानियत दोनों में समन्वय है...यानी अगर इधर भारत जैसे एक हिन्दू बहुसंख्या वाले देश में मुस्लिम क्रांतिकारी हैं तो उधर इसी भारत में मुस्लिम पहचान से जुड़े अरबईने हुसैनी में सिर्फ़ रहब दत्त से लेकर माथुर लखनवी और मुंशी छन्नू लाल दिलगीर जैसे अज़ादार ही नहीं बल्कि अज़ादारी को अपने वजूद का हिस्सा समझते ग़ैर मुस्लिम इलाक़े तक हैं...

और दोनों ही आज़ादियों का हक़ ये है कि इन्हें अपनाने वाले इस आज़ादी का आत्मा इस आज़ादी की रूह पर वार ना करें...ना तो भारतीय आज़ादी का जश्न मना रहे हिन्दू उस मुसलमान से देशभक्ति का सर्टिफिकेट मांगें कि जिसके पूर्वजों ने हँसते हुए फासी के फंदे चूम लिए...जिसने साथ मिलकर सामाजिक व हर तरह के ताने बाने को बुना और हर तरह के माहौल के बाद भी हिन्दू बिरादरी को अपना समझा बल्कि यूं कहूँ कि...भारत में रुक कर जिन्ना के एजेंडे को नाकाम किया...और हिन्दू समाज को हौसला व इज़्ज़त दी इज़्ज़त दिलाई...उसे ये समझना और ख़ुद से पूछना चाहिए कि उस मुसलमान से सर्टिफिकेट माँगना कितना शर्मनाक है कि जो उस हुसैन (अस) का मानने वाला है कि जो ख़ुद भारत के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के लिए रोल मॉडल रहे हैं...तो फिर ऐसा क्यों है कि समाज में नफ़रत जीत रही है और मुहब्बत हार रही है...क्या शहीदों का खून इतना सस्ता है कि उसे सिर्फ़ 70 से 80 सालों में भुला दिया जाए...और अगर याद हैं तो क्या उन्होंने ऐसे भारत का सपना संजोया था?

और ना ही अरबईने हुसैनी के सहारे पैग़ामे हुसैनी यानी इंसानियत और सोशल जस्टिस का दम भरने वाले मुसलमान ख़ास तौर से शिया समाज अपनी मजलिसों अपनी महफ़िलों अपने प्रोग्राम्स में, तबर्रुकात की तक़सीम में, में ऐसी बातें ना करें कि आने वाले भी चले जाएँ...और फिर धीरे धीरे मजलिसें रस्म सी रह जाएं और वाह वाही का अड्डा बन जाएँ...यहाँ तक कि आने वाला ग़ैर अपने आने पर शर्मिंदा हो और हट्टा कट्टा  शिया नौजवान...मौलवी साहब से पूछे कि मौलवी साहब ये हज़रते अब्बास कौन थे....और क्या हम नहीं देखते कि हमारी मजलिसों में ग़ैर का मजमा कम हो रहा है...आख़िर हम ये क्यों नहीं देख पा रहे हैं कि हमारे मुत्तहिद व समझदार ना होने, सही किरदार पेश ना करने और दूसरी वजहों से   नफ़रत जीत रही है और मुहब्बत हार रही है...

दरअसल यही मेरे पहले जुमले का मतलब और मक़सद भी है कि आज भारतीय मुसलमान मौजूदा हालात में सब कुछ लुटा कर भी इस्लाम और इंसानियत के लिए एलाही अक्सीर लेकर आई अरबईने हुसैनी से सबक़ व हौसला लेकर अपने ख़िलाफ़ हो रहे फ़र्ज़ी प्रोपोगंडों से जूझ सकता है, बहके हुवों को अपनी असली तस्वीर दिखा सकता है...और ऐसा करके वो अपनी और अपने मुल्क व समाज की मदद , ख़िदमत कर सकता है...जज़ाक्ल्लाह!

खैर मैं अपने इस शेर से अपनी उँगलियों और आपकी आँखों को आराम देता हूँ कि...

ख़ुदा करे यहाँ चैनो अमन रहे बाक़ी

चलो दुआओं में हिंदोस्तां को याद करें...

लेखक : सय्यद इब्राहीम हुसैन

             (दानिश हुसैनी)

……………………….

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 हज़रत मासूमा (स) की पवित्र दरगाह के उपदेशक ने इमाम हुसैन (अ) की सेवा को ईश्वर की दृष्टि में सम्मान प्राप्त करने के सबसे महत्वपूर्ण साधनों में से एक बताया और कहा: इमाम हुसैन (अ) की सेवा और सेवा करने से व्यक्ति दुनिया का मालिक और स्वामी बनता है। जिस प्रकार हुर्र ने तौबा करके और इमाम से मिलकर "वजीह इंदल्लाह" का दर्जा प्राप्त किया, उसी प्रकार जो कोई भी इस मुक्ति के जहाज़ में सवार होता है, उसे इस दुनिया और आख़िरत में सम्मान प्राप्त होता है।

मासूमा (स) की पवित्र दरगाह के उपदेशक, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन नासिर रफ़ीई ने पवित्र दरगाह में अपने भाषण के दौरान आशूरा तीर्थस्थल का वर्णन किया और इसे शिया संस्कृति में "जीवनशैली" का स्रोत बताया।

उन्होंने कहा: आशूरा तीर्थयात्रा में बीस से ज़्यादा प्रार्थनाएँ और आध्यात्मिक अनुरोध शामिल हैं। इनमें "अल्लाहुम्मज्अलनी" तीन बार आता है और हर बार यह वाक्यांश जीवन को एक महत्वपूर्ण दिशा देता है। इनमें से एक वाक्यांश है "अल्लाहुम्मज्अलनी बिल हुसैन (अ)" जिसका अर्थ है हे ईश्वर! इमाम हुसैन (अ) के दान के माध्यम से मुझे अपनी दृष्टि में सम्माननीय बना।

हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के शिक्षक ने आगे कहा: "वजीहा" शब्द, जिसका अर्थ है सम्माननीय, पवित्र क़ुरआन में केवल दो बार आता है। एक बार ईसा (अ) के संबंध में, सूर ए आले-इमरान में, और दूसरी बार मूसा (अ) के संबंध में, सूर ए अहज़ाब में। दोनों ही मौकों पर, इन नबियों का सम्मान खतरे में था और अल्लाह ने स्वयं उनकी रक्षा की।

उन्होंने कहा: किसी व्यक्ति का सम्मान इतना महत्वपूर्ण होता है कि अल्लाह उसकी रक्षा के लिए चमत्कार भी करता है। ईसा (अ) की माता पर लगाया गया आरोप पालने में ही उनके शब्दों से मिट गया और मूसा (अ) पर बनी इसराइल का आरोप अल्लाह की कृपा से निरस्त हो गया।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन रफ़ीई ने सूर ए हुजुरात की आयतों के आलोक में छह पापों का वर्णन किया है जो व्यक्ति के सम्मान को नष्ट करते हैं: उपहास, जिज्ञासा, संदेह, चुगली, अवांछित उपाधियाँ देना और दोष निकालना। ये न केवल बड़े पाप हैं, बल्कि व्यक्ति की सामाजिक और आध्यात्मिक पूँजी को भी नष्ट करते हैं। सुरक्षा और सामाजिक गतिविधियों में भी, लोगों के सम्मान की रक्षा की सीमाओं का पालन करना आवश्यक है।

क़ुम के इमाम जुमा ने कहा: अरबईन इमाम और ईश्वर के प्रमाण की ओर एक सामूहिक आंदोलन है। अरबईन का महदीवाद से गहरा संबंध है, इस प्रकार लबैक या हुसैन वास्तव में लबैक या महदी है।

आयतुल्लाह सय्यद मुहम्मद सईदी ने क़ुम की जुमा की नमाज़ के खुत्बे में कहा: अरबईन का आंदोलन व्यावहारिक धर्मपरायणता का प्रतीक है। इमाम हुसैन (अ) और उनके लक्ष्यों के प्रति प्रेम अरबईन वॉक में हुसैनी शोक मनाने वालों की बड़ी भागीदारी में प्रकट होता है। यह आयोजन ईश्वरीय प्रेम और इस्लामी उम्माह के आशूरा लक्ष्यों के साथ अटूट बंधन का प्रकटीकरण है, जो ईश्वरीय धर्मपरायणता में निहित है।

सूर ए हज की आयत 32 का हवाला देते हुए, "अल्लाह के संकेतों और प्रतीकों का यही अर्थ है, और वास्तव में, यह दिलों की तक़वा से है।" उन्होंने कहा: जो कोई अल्लाह के संकेतों और प्रतीकों का सम्मान करता है और व्यवहार में उनका सम्मान करता है, वह दिलों की तक़वा की निशानी है। हुसैनी रीति-रिवाज़, विशेष रूप से अरबाईन, ईश्वरीय रीति-रिवाजों में सर्वोच्च स्थान रखते हैं।

क़ुम में जुमे की नमाज़ के इमाम ने कहा: अरबाईन हुसैनी उत्साह और उसके संदेश के अस्तित्व का रहस्य है, जो दुनिया को मुहम्मद (स) के परिवार के प्रतिशोधक के उदय के लिए तैयार करता है। आशूरा के दिन इमाम हुसैन (अ) के आंदोलन ने इस्लाम के सामने एक बड़े खतरे को टाल दिया। हुसैनी उत्साह ने पतन, धर्मत्याग और अज्ञानता के युग की वापसी को रोकने में सफलता प्राप्त की।

उन्होंने कहा: अरबईन मार्च वैश्विक स्तर पर अविश्वास और अहंकार की व्यवस्था के विरुद्ध सबसे बड़ा मार्च है। अगर इसे सही ढंग से समझाया, समझा और लागू किया जाए, तो यह युग के इमाम के उदय के लिए एक वैश्विक अपील है, ईश्वर उन पर दया करे।

क़ुम में वली फ़क़ीह के प्रतिनिधि ने आगे कहा: अरबईन इमाम और ईश्वर के प्रमाण की ओर एक सामूहिक आंदोलन है। अरबईन का महदीवाद से गहरा संबंध है, इसलिए लब्बैक या हुसैन वास्तव में लब्बैक या महदी है।

उन्होंने कहा: अरबईन का एक महत्वपूर्ण सबक वर्तमान युग में सत्य के दुश्मनों और इस्लाम के दुश्मनों को पहचानना है। आज भी, ऐसे लोग हैं जो इमाम हुसैन (अ) के हत्यारों के लक्षण रखते हैं और सक्रिय हैं। वैश्विक अहंकार की व्यवस्था, अपराधी अमेरिका, हड़पने वाली ज़ायोनी सरकार, क्षेत्र के पाखंडी और ज़ायोनी अत्याचारी सरकार के साथ मिलीभगत करने वाले लोग इस्लाम की नज़र में इमाम हुसैन (अ) के हत्यारे माने जाते हैं।

जमकरान मस्जिद के मुतवल्ली ने कहा: इमाम ज़माना (अ) का ज़ुहूर तब होगा जब इमाम हुसैन (अ) की मारफत हृदयों में स्थापित हो जाएगा, और अरबईन आंदोलन इस मारफ़त की सबसे बड़ी प्रस्तावना और इमाम महदी (अ) की वैश्विक सरकार का आधार है।

जमकरान मस्जिद के मुतवल्ली हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सय्यद अली अकबर उजाक़ नेजाद ने हज़रत मासूमा (स) की पवित्र दरगाह के सेवा शिविर में अरबईन के तीर्थयात्रियों को संबोधित किया।

अपने भाषण के दौरान, उन्होंने अहले-बैत (अ) के शोक दिवसों पर संवेदना व्यक्त की और हज़रत फ़ातिमा मासूमा (स) के सेवा शिविर के सेवकों की सेवाओं की सराहना की और कहा: अरबईन हुसैनी एक महान आशीर्वाद है जो अल्लाह तआला ने इमाम हुसैन (अ) को प्रदान किया है, और यह स्थान उनके अलावा किसी भी नबी या इमाम को प्राप्त नहीं हुआ।

हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन उजाक़ नेजाद ने आशूरा आंदोलन के अस्तित्व में हज़रत ज़ैनब (स) की अद्वितीय भूमिका की ओर इशारा किया और कहा: यदि हम आशूरा आंदोलन को देखें, तो इसका पचास प्रतिशत हिस्सा इमाम हुसैन (अ) ने अपनी शहादत तक पूरा किया और पचास प्रतिशत हज़रत ज़ैनब (स) ने अपनी शहादत के बाद अपने संघर्ष के माध्यम से पूरा किया। शोक और अरबईन तीर्थयात्रा इस आंदोलन के अस्तित्व के दो बुनियादी स्तंभ हैं, जिसकी नींव हज़रत ज़ैनब (स) ने रखी थी।

यमन में लाखों लोग लगातार 97वें हफ़्ते देश के दर्जनों शहरों में सड़कों पर उतरे ताकि ग़ज़्ज़ा के लोगों के साथ एकजुटता प्रदर्शित की जा सके और ज़ायोनी योजना "ग्रेटर इज़राइल" का पुरज़ोर विरोध किया जा सके।

यमन में लाखों लोग लगातार 97वें हफ़्ते देश के दर्जनों शहरों में सड़कों पर उतरे ताकि ग़ज़्ज़ा के लोगों के साथ एकजुटता प्रदर्शित की जा सके और ज़ायोनी योजना "ग्रेटर इज़राइल" का पुरज़ोर विरोध किया जा सके।

राजधानी सना में अल-सबीन स्क्वायर, सादा, अल-होदेइदाह, इमरान, हज्जाह, धमार, इब्ब और जौफ़ सहित बड़े जनसभाएँ आयोजित की गईं। यह सिलसिला 20 अक्टूबर, 2023 से जारी है और इसका दायरा हर हफ़्ते बढ़ रहा है।

प्रदर्शनकारियों ने "ग़ज़्ज़ा के साथ, जिहाद और दृढ़ता" के नारों के साथ फ़िलिस्तीन और इस्लामी पवित्रता की रक्षा के अपने संकल्प को दोहराया। अपने घोषणापत्र में, प्रतिभागियों ने ग़ज़्जा में जारी नरसंहार की कड़ी निंदा की और ज़ायोनी उत्पादों के बहिष्कार तथा इस हड़पने वाली सरकार के पूर्ण निरस्त्रीकरण का आह्वान किया।

घोषणापत्र में लेबनान और फ़िलिस्तीन में प्रतिरोध बलों को सैन्य रूप से और मज़बूत करने का आह्वान किया गया, और चेतावनी दी गई कि इस मामले में लापरवाही के मुस्लिम उम्माह और मानवता के लिए गंभीर परिणाम होंगे।

यमन के लोगों ने इज़राइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू की "ग्रेटर इज़राइल" योजना को अस्वीकार करते हुए कहा कि वे इस ज़ायोनी षड्यंत्र के विरुद्ध पूरी ताकत से खड़े होंगे और क्षेत्र के देशों को इस धोखेबाज़ योजना के खतरों से आगाह किया।

प्रदर्शनकारियों ने ज़ायोनी धमकियों, प्रतिरोध बलों को कमज़ोर करने के प्रयासों और कुछ सरकारों द्वारा दुश्मन के साथ आर्थिक और सैन्य सहयोग पर गहरा रोष व्यक्त किया और ऐसी कार्रवाइयों को उम्माह के प्रति शत्रुतापूर्ण बताया।

ईरानी विदेश मंत्री सैयद अब्बास अराकची ने अर्बईन-ए-हुसैनी में भाग लेने के बाद अपने एक संदेश में कहा कि इमाम हुसैन अ.स. का संघर्ष हर मुसलमान के लिए एक शाश्वत सबक है, खासकर दुश्मनों का सामना करते समय जो आपकी ताकत और दृढ़ता पर सवाल उठाते हैं।

ईरानी विदेश मंत्री सैयद अब्बास अराकची ने अर्बईन-ए-हुसैनी में भाग लेने के बाद अपने एक संदेश में कहा कि इमाम हुसैन (अ.स.) का संघर्ष हर मुसलमान के लिए एक शाश्वत सबक है, खासकर दुश्मनों का सामना करते समय जो आपकी ताकत और दृढ़ता पर सवाल उठाते हैं। 

आईआरएनए के अनुसार, ईरानी विदेश मंत्री सैयद अब्बास अराकची ने एक्स नेटवर्क पर लिखा कि यह मेरा सौभाग्य है कि मैं अहल-ए-बैत (अ.स.) के चाहने वालों के समुद्र और अर्बईन में कर्बला में जुटने वाले आशिकान-ए-हुसैनी के हुजूम में शामिल हुआ। 

उन्होंने कहा कि हम इराक के पवित्र स्थलों को "अतबात-ए-आलियात" इसलिए कहते हैं क्योंकि ये न केवल सफल आखिरत की जिंदगी के दरवाजे हैं, बल्कि ये हमें सिखाते हैं कि कौम, नस्ल, फिरके और धार्मिक सीमाओं से ऊपर उठकर दिलों को जोड़ना संभव है। 

उन्होंने आगे कहा कि इमाम हुसैन अ.स. का संघर्ष जुल्म के खिलाफ था, दुनियावी ताकत या व्यक्तिगत फायदे की जद्दोजहद नहीं थी। 

इराकी ने कहा कि यह निस्वार्थ कुर्बानी शाश्वत है जिस पर हर मुसलमान को ध्यान देना चाहिए  खासकर जब दुश्मनों का सामना करना पड़ता है जो आपकी ताकत और स्थिरता पर सवाल उठाते हैं।

 अरबईन हुसैनी की नजफ़ से कर्बला तक की यात्रा में भाग ले रहे भारत और पाकिस्तान के विद्वानों ने हौज़ा न्यूज़ के साथ एक साक्षात्कार में राष्ट्र की एकता, उत्पीड़ितों के समर्थन और धार्मिक जागृति के संदेश पर प्रकाश डाला।

अरबईन हुसैनी के अवसर पर, दुनिया भर से इमाम हुसैन (अ) के लाखों चाहने वाले नजफ़ अशरफ़ से कर्बला तक पैदल यात्रा कर रहे हैं, ताकि वे अपने उत्पीड़ित पूर्वज (अ) की अस्थियाँ उस समय के इमाम (अ) को अर्पित कर सकें। यह कारवां केवल एक दूरी तय नहीं कर रहा है, बल्कि यह विश्वास, प्रेम, निष्ठा और एकता का एक महान प्रकटीकरण है।

हौज़ा न्यूज़ के एक प्रतिनिधि ने इस आध्यात्मिक यात्रा में भाग ले रहे भारत और पाकिस्तान के विद्वानों से एक विशेष साक्षात्कार किया।

मौलाना बुदाअत रज़वी ज़ैदपुरी (भारत, क़ुम सेमिनरी) ने कहा कि अरबईन हुसैनी न केवल मुस्लिम उम्माह के लिए एक महान स्मारक है, बल्कि विद्वानों का यह दायित्व है कि वे इस संदेश को दुनिया तक पहुँचाएँ। अरबईन उम्माह को जागृति और अत्याचार के विरुद्ध डटकर खड़े होने का पाठ पढ़ाता है।

मौलाना सैयद ज़ामिन जाफ़री (भारत, नजफ़ अशरफ़) ने कहा कि अरबईन हुसैनी केवल एक धार्मिक सभा नहीं है, बल्कि यह आस्था, त्याग और अंतर्दृष्टि का एक महान पाठ है। दुनिया भर से आने वाले ज़ायरीन इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं कि इमाम हुसैन (अ.स.) का संदेश सीमाओं से परे है और हर युग में जीवित है। अरबाईन हमें उत्पीड़न के विरुद्ध खड़े होने और सत्य के मार्ग पर अडिग रहने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

मौलाना असगर मेहदी (मुंबई, भारत) ने कहा कि कर्बला के ज़ायरीन वास्तव में अहलुल बैत (अ.स.) के प्रति वफ़ादारी और प्रेम का जीवंत प्रमाण हैं। ये लोग अपना समय, धन और शारीरिक शक्ति बलिदान करके दुनिया को वफ़ादारी का संदेश देते हैं।

लाना क़मर मेहदी महदवी (भारत, सक्रिय धर्मोपदेशक) ने कहा कि अरबाईन हुसैनी दुनिया के उत्पीड़ित लोगों के साथ एकजुटता और एकता का उद्घोष है। यह एक ऐसा समागम है जो ज़ालिमों के ख़िलाफ़ और सच्चाई के समर्थन में सबसे ऊँची आवाज़ है।

मौलाना अली शेर नक़वी शाह (कराची, पाकिस्तान) ने कहा कि अरबईन का संदेश उत्पीड़ितों का साथ देना और उम्मत में एकता को बढ़ावा देना है। यहाँ हर जाति, भाषा और राष्ट्र के लोग एक झंडे के नीचे इकट्ठा होते हैं।

मौलाना आमिर रज़वी बुखारी (भारत, नजफ़ सेमिनरी) ने कहा कि विद्वान हाजियों का मार्गदर्शन, उनकी सेवा और धार्मिक शिक्षा प्रदान करके अरबईन में व्यावहारिक भूमिका निभा रहे हैं। यह अवसर धर्म के प्रचार और जागरूकता बढ़ाने का एक सुनहरा अवसर है।

ज़ियारत-ए-अरबईन के लिए इराक की उच्च सुरक्षा समिति ने घोषणा की है कि अरबईन हुसैनी 1447 हिजरी के अवसर पर 40 लाख से अधिक अरब और विदेशी जायरीनों ने लाखों इराकी जायरीनों के साथ, कर्बला में भाग लिया और यह महान सभा पूर्ण शांति और सुरक्षा के साथ संपन्न हुई।

ज़ियारत-ए-अरबईन के लिए इराक की उच्च सुरक्षा समिति ने घोषणा की है कि अरबईन हुसैनी 1447 हिजरी के अवसर पर 40 लाख से अधिक अरब और विदेशी जायरीनों ने लाखों इराकी जायरीनों के साथ, कर्बला में भाग लिया और यह महान सभा पूर्ण शांति और सुरक्षा के साथ संपन्न हुई। 

इराकी समाचार एजेंसी (वाक़) के अनुसार, इस सुरक्षा योजना की सीधी निगरानी प्रधानमंत्री मोहम्मद शिया अलसुदानी और गृह मंत्री अब्दुलअमीर अल-शम्मरी ने की जबकि किसी भी प्रकार की कोई बड़ी सुरक्षा घटना नहीं हुई। 

रिपोर्ट में बताया गया कि देश भर से आने वाले लाखों इराकी जायरीनों के अलावा दुनिया के विभिन्न देशों से विदेशी जायरीनों ने कर्बला में हाज़िरी दी। इस अवसर पर 5 लाख 27 हज़ार से अधिक सुरक्षा कर्मियों और अन्य स्टाफ को तैनात किया गया, जो 18 हज़ार 873 वाहनों के माध्यम से 93 मार्गों और 110 चेक पॉइंट्स पर सेवाएं प्रदान करते रहे। 

इसके अलावा, लगभग 1 लाख 50 हज़ार मोक़ब-ए-हुसैनी को सुरक्षा प्रदान की गई, जबकि स्वास्थ्य मंत्रालय ने 874 मेडिकल टीमें और एम्बुलेंस सेवाओं के लिए तैनात कीं। 

सुरक्षा समिति के अनुसार इस वर्ष अरबईन के दौरान ट्रैफिक दुर्घटनाओं, जानहानि और आगजनी की घटनाओं में उल्लेखनीय कमी दर्ज की गई। समिति ने आम जनता, अतबात (पवित्र स्थलों) के प्रबंधकों, सेवाकर्मियों, स्थानीय अधिकारियों और मीडिया का आभार व्यक्त किया, जिन्होंने इस महान सभा की सफलता में पूर्ण योगदान दिया। 

 मजलिस ए वहदत ए मुस्लिमीन पाकिस्तान के चेयरमैन सीनेटर मौलाना राजा नासिर अब्बास जाफरी ने कहा है कि आज पूरे देश में इमाम हुसैन अ.स.के अर्बाइन के जुलूस-ए-अज़ा निकाले जा रहे हैं। अरबईन सिर्फ एक धार्मिक रिवाज नहीं है, बल्कि यह अत्याचार के खिलाफ विद्रोह और मजलूम के साथ खड़े होने की स्पष्ट घोषणा है।

मजलिस ए वहदत ए मुस्लिमीन पाकिस्तान के चेयरमैन सीनेटर मौलाना राजा नासिर अब्बास जाफरी ने कहा है कि आज पूरे देश में इमाम हुसैन अ.स.के अर्बाइन के जुलूस-ए-अज़ा निकाले जा रहे हैं। अरबईन सिर्फ एक धार्मिक रिवाज नहीं है, बल्कि यह अत्याचार के खिलाफ विद्रोह और मजलूम के साथ खड़े होने की स्पष्ट घोषणा है। 

उन्होंने कहा कि कर्बला की धरती पर इमाम हुसैन (अ.स.) और उनके साथियों की कुर्बानी समय और स्थान की सीमाओं से परे है, जो हर युग और हर समाज के लिए आज़ादी और न्याय का संदेश देती है मौलाना राजा नासिर अब्बास जाफरी ने कहा कि इमाम हुसैन (अ.स.) ने यज़ीदियत के खिलाफ हक़ का झंडा बुलंद किया और यह सिखाया कि अत्याचार के सामने चुप रहना भी एक अपराध है। 

उन्होंने कहा,आज जब गाज़ा के मासूम बच्चे भूख और प्यास से तड़प रहे हैं और ज़ालिम ताकतें उनका खून बहा रही हैं, तो मकतब-ए-हुसैनियत हमें यह संदेश देता है कि हम अपनी ज़ुबान, कदम और संसाधनों से मजलूम का समर्थन करें और ज़ालिम के खिलाफ आवाज़ उठाएं।

उन्होंने सरकार और सभी संस्थाओं को चेतावनी देते हुए कहा कि अर्बाइन के जुलूस में पैदल शामिल होने वाले अज़ादारों को परेशान न किया जाए। यह अज़ादारों का संवैधानिक, कानूनी और धार्मिक अधिकार है, जिस पर किसी भी तरह की पाबंदी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। उन्होंने कहा कि अज़ादारी को रोकने या सीमित करने की कोई भी कोशिश करोड़ों हुसैन (अ.स.) के प्रेमियों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने के बराबर होगी। 

उन्होंने कहा कि अर्बाइन का संदेश स्पष्ट है हम किसी भी युग के यज़ीद को स्वीकार नहीं करेंगे, चाहे वह अतीत का हो या आज का इस्राइल और अमेरिका। हम हर मजलूम के साथ खड़े रहेंगे, चाहे वह कर्बला के कैदी हों या गाज़ा में भूख-प्यास से तड़पते मासूम बच्चे।

हमने कल भी हक़ का परचम बुलंद रखा, आज भी उसी परचम के नीचे डटे हैं और क़यामत तक हुसैन (अ.स.) के वफादार रहेंगे। हमारी साँसें मजलूम की ढाल और हमारा खून ज़ालिम के खिलाफ हथियार है।