
رضوی
इमाम अस्र (अज्ज़) की ज़ियारत की चाहत, कमाले इंसानीयत का प्रतीक है
हज़रत मासूमा (स) की दरगाह के ख़तीब, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन अली फखरी ने कहा है कि सच्ची बंदगी और इबादत हासिल करने के लिए एक संपूर्ण इंसान बनना ज़रूरी है, और इमाम अस्र (अज्ज़) की ज़ियारत और तौबा की चाहत को दिलों में ज़िंदा रखना ईमान और ज्ञान की निशानी है।
हज़रत मासूमा (स) की दरगाह के ख़तीब, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन अली फखरी ने कहा है कि सच्ची बंदगी और इबादत हासिल करने के लिए एक संपूर्ण इंसान बनना ज़रूरी है, और इमाम अस्र (अज्ज़) की ज़ियारत और तौबा की चाहत को दिलों में ज़िंदा रखना ईमान और ज्ञान की निशानी है।
हज़रत मासूमा (स) की पवित्र दरगाह पर सफ़र के आखिरी दस दिनों की मजलिसो को संबोधित करते हुए, हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन अली फ़ख़री ने कहा कि एक कामिल इंसान का साथ इंसानी परफेक्शन और बंदगी की राह में अहम भूमिका निभाता है, क्योंकि मासूम इमाम से लगाव हर तरह की रूहानी रुकावटों को दूर कर देता है।
उन्होंने कहा कि पवित्र क़ुरआन भी इस बात पर ज़ोर देता है कि सच्ची बंदगी तभी हासिल होती है जब इंसान मासूम इमाम की गोद में खुद को डाल लेता है ताकि वह हमें हिदायत की राह पर चला सके।
हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लेमीन फखरी ने आगे कहा कि हर मोमिन को उस मासूम इमाम की ज़ियारत की चाहत और प्रेम से भर जाना चाहिए ताकि वह उनके ज्ञान और आशीर्वाद से लाभान्वित हो सके। कभी-कभी एकांत और एकांत में इमाम (अ) से बात करनी चाहिए और अपने दिल में ज़ियारत और मिलन की प्यास बढ़ानी चाहिए।
उन्होंने कहा कि "ऐ हसन के बेटे, जल्दी करो" का स्मरण हमारी सच्ची तड़प का प्रतीक होना चाहिए, क्योंकि इमाम महदी (अ) का ज़ुहूर होना ऐसे समय में होगा जब दुनिया भर के दिल इमाम की ज़ियारत की प्यास और लालसा से भरे होंगे।
हज़रत मासूमा (स) की दरगाह के खतीब ने कहा कि इमाम असर (अ) का ज्ञान आध्यात्मिक प्यास बुझाने का आधार है, क्योंकि इस दुनिया और आख़िरत का हर ज्ञान और वास्तविकता, ईश्वर की छत्रछाया में ही प्राप्त होती है।
उन्होंने यह कहकर निष्कर्ष निकाला कि मासूमीन (अ) की दरगाह पर जाते समय पहली दुआ इमाम से मिलने और उनसे जुड़ने की होनी चाहिए, क्योंकि यह संपर्क हृदय की ज्योति, सच्चे ज्ञान और अल्लाह की ओर यात्रा का द्वार खोलता है।
कर्बला का संदेश अद्ल, सब्र और दीन की सेवा
लखनऊ में चल रही मजलिसो में खिताब करते हुए, मौलाना जावेद हैदर ज़ैदी ने कहा कि इमाम हुसैन (अ) की कुर्बानी मानवता को अत्याचार के विरुद्ध डटकर खड़े होने और दीन की सेवा को जीवन का उद्देश्य बनाने का संदेश देती है।
अरबईन-ए-हुसैनी के बाद भी, शहर अज़ा लखनऊ में इमाम हुसैन (अ) की मजलिसो का सिलसिला अकीदत और सम्मान के साथ जारी है। इसी सिलसिले में, लखनऊ के काज़मैन स्थित मरहूम नज़ीर अब्बास ज़ैदपुरी के अज़ा खाने में एक मजलिस आयोजित की गई, जिसे मौलाना जावेद हैदर ज़ैदी ने संबोधित किया।
मजलिस की शुरुआत हदीसे-किसा की तिलावत से हुई। बाद में, मौलाना ने पवित्र क़ुरआन की आयत मवद्दत की रोशनी में अहले-बैत-अत्हार (अ) की महानता और उनके पद व प्रतिष्ठा पर विस्तार से बात की।
मौलाना ने अपने संबोधन में कहा कि इमाम हुसैन (अ) की क़ुरबानी सिर्फ़ आँसू बहाने के लिए नहीं है, बल्कि यह हमें अत्याचार के ख़िलाफ़ डटकर खड़े होने, सच्चाई का साथ देने और मानवता का सम्मान करने की शिक्षा देती है। कर्बला का संदेश यही है कि हमें न्याय, धैर्य और दृढ़ता तथा धर्म की सेवा को अपने जीवन का आदर्श बनाना चाहिए।
छात्रों की सफलता और उज्ज्वल भविष्य निर्णय लेने पर निर्भर करता है
अज़फ़र फ़ाउंडेशन के छात्रों की उत्कृष्ट सफलता के उपलक्ष्य में अलीगढ़ में आयोजित एक समारोह में वक्ताओं ने कहा कि छात्रों का उज्ज्वल भविष्य सही निर्णय लेने, कड़ी मेहनत और योजना पर निर्भर करता है।
अलीगढ़/अज़फ़र फ़ाउंडेशन के छात्रों की परीक्षाओं में उत्कृष्ट सफलता के अवसर पर, भारत सरकार के जल संसाधन मंत्रालय के केंद्रीय जल आयोग के पूर्व अध्यक्ष सैयद मसूद हुसैन, जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के पूर्व पुस्तकालयाध्यक्ष असलम मेहदी और प्रसिद्ध कवि एवं आलोचक डॉ. शुजात हुसैन ने कल रज़ा नगर, अलीगढ़ स्थित फ़ाउंडेशन का दौरा किया। फ़ाउंडेशन के निदेशक असगर मेहदी (आरज़ू) और छात्रों से मुलाकात के दौरान, अतिथियों ने उन्हें उत्कृष्ट परिणामों के लिए बधाई दी।
असगर मेहदी (आरज़ू) ने इस अवसर पर कहा कि फ़ाउंडेशन का उद्देश्य उन बच्चों को शिक्षित करना है जो आर्थिक समस्याओं या खराब परिवेश के कारण शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। उन्होंने कहा कि सफलता का रहस्य गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रणाली और सकारात्मक वातावरण के साथ-साथ व्यावहारिक उपायों में निहित है।
सैयद मसूद हुसैन ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि उज्ज्वल भविष्य के लिए निर्णय लेना सबसे महत्वपूर्ण है। उन्होंने अपने व्यावहारिक जीवन के अनुभव साझा करते हुए, केवल मेडिकल और इंजीनियरिंग को ही लक्ष्य न बनाकर, अन्य क्षेत्रों में भी सफलता प्राप्त करने की सलाह दी। उन्होंने छात्रों को सिविल सेवा के साथ-साथ कर्मचारी चयन आयोग (SSC-CGL/CHSL) जैसी परीक्षाओं पर भी ध्यान केंद्रित करने की सलाह दी, जहाँ हर साल हजारों रिक्तियाँ निकलती हैं।
असलम मेहदी ने छात्रों को सलाह देते हुए कहा कि योग्यता और निर्णय लेने की शक्ति व्यक्ति को ऊंचाइयों तक ले जा सकती है। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि हवाई जहाज देखने वाले बच्चों के मन में अलग-अलग विचार आते हैं; कुछ उसे कागज़ पर बनाते हैं, कुछ उसे रंगते हैं, कुछ पायलट बनने का सपना देखते हैं और कुछ इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके हवाई जहाज बनाते हैं। यह सब निर्णय लेने और सही समय पर सही चुनाव करने पर निर्भर करता है।
डॉ. शुजात हुसैन ने अपने संबोधन में कहा कि करियर में सफलता के लिए उचित योजना बनाना अनिवार्य है। छात्रों को अपना लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए और उसे प्राप्त करके अपने हृदय में समाज और राष्ट्र की सेवा का जज्बा जगाना चाहिए।
अंत में, असगर मेहदी (आरज़ू) ने आशा व्यक्त की कि अतिथियों का बहुमूल्य परामर्श छात्रों के लिए मार्गदर्शक सिद्ध होगा और उनके शैक्षिक एवं व्यावसायिक भविष्य को आकार देने में सहायक होगा। उन्होंने फाउंडेशन की बढ़ती ज़रूरतों को पूरा करने के लिए वित्तीय सहायता की भी अपील की।
कोई भी सांसारिक ताकत हिज़्बुल्लाह से उसके हथियार नहीं छीन सकती
लेबनानी मशहूर आलेमे दीन ने प्रतिरोध को निरस्त्र करने का विरोध करते हुए कहा कि कोई भी सांसारिक ताकत हिज़्बुल्लाह से उसके हथियार नहीं छीन सकता।
लेबनान के प्रमुख शिया धार्मिक विद्वान हुज्जतुल इस्लाम अहमद कबलान ने कहा,हिज़्बुल्लाह को निरस्त्र करना किसी भी ताकत के बस की बात नहीं है।
उन्होंने कहा, हिज़्बुल्लाह का सामना करने वाली धरती पर कोई ऐसी ताकत मौजूद नहीं है जो उसकी रक्षात्मक क्षमताओं को समाप्त कर सके।
हुज्जतुल इस्लाम कबलान ने आगे कहा, प्रतिरोध समूहों ने ऐतिहासिक बलिदानों और राष्ट्रीय एकजुटता के साथ इजरायल को हराया और लेबनान को कब्जाधारी ताकतों से मुक्त कराया।
उन्होंने हिज़्बुल्लाह को निरस्त्र करने के प्रयास को पागलपन और बेकार बताते हुए कहा, यह फैसला ज़ायोनी सरकार के हित में किया जा रहा है।
लेबनान के प्रमुख शिया धार्मिक विद्वान ने कहा, लेबनान फिर से इजरायल के कब्जे में नहीं जाएगा और हिज़्बुल्लाह कभी हार नहीं मानेगी।
ईरान के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, ईरान सभी स्वतंत्र देशों के लिए गर्व का विषय है और लेबनान की प्रतिरोध शक्तियों को ईरान पर पूरा भरोसा है। ईरान ने मध्य पूर्व में नए नक्शे और ग्रेटर इजरायल की योजना को विफल कर दिया है।
इंसान की अपनी ज़ात की मारफ़त दर हक़ीक़त अल्लाह शनाख़्त है
आत्म-ज्ञान अल्लाह को पहचानने का बहाना नहीं, बल्कि उसका सार है। मनुष्य का स्वयं का ज्ञान ही परमेश्वर की शनाख़्त है। जब व्यक्ति अपने अस्तित्व की पुस्तक को पृष्ठ दर पृष्ठ खोलता है, तो उसे समझ आता है कि अल्लाह तक पहुँचने का मार्ग उसके अपने आंतरिक स्वरूप से होकर गुजरता है। यह दृष्टि सभी मध्यस्थों की सीढ़ियों को हटा देती है और आत्मा के दर्पण में एकेश्वरवाद की वास्तविकता को उजागर करती है।
महान शिया विद्वान और दार्शनिक, स्वर्गीय आयतुल्लाह हसन ज़ादेह आमोली ने अपने एक नैतिक पाठ में, जो विचारशील लोगों के लिए प्रस्तुत किया जा रहा है, "खुश शनासी और खुदा शनासी के ऐनी रिश्ते" विषय पर चर्चा की थी।
क्या एक व्यक्ति केवल इन्हीं बातों से जाना जाता है?
यह अफ़सोस की बात है कि हम अपने अस्तित्व की पुस्तक को न तो समझते हैं और न ही उसके पन्ने पलटते हैं।
""اَعرَفُکُم بِرَبِّہ اَعرَفُکُم بِنَفسِہ"۔۔۔ आअरफ़ोकुम बेरब्बेहि आअरफ़ोकुम बेनफसेहि...
कुछ लोग कहते हैं: ऐ अल्लाह! अब तक मैं यही कहता आया हूँ कि खुश शनासी, अपने नफ़्स की पहचान, खुदा शनासी तक पहुँचने की सीढ़ी है...
लेकिन धीरे-धीरे हमें समझ आता है कि नहीं, खुद शनासी ही खुदा शनासी है।
फिर धीरे-धीरे हमें समझ आता है कि नहीं, खुद शनासी ही तो खुदा शनासी है।
अब सीढ़ी को एक तरफ रख दो।
खुदा शनासी ही तो खुदा शनासी है। अर्थात अपने आपको पहचाना ही खुदा को पहचानना है।
ऐ अल्लाह ! हमें अपनी दया से नवाज़, ऐ अल्लाह! मनुष्य को अपनी दया से नवाज़ और उसे अपनी ओर मुतावज्जेह कर...
इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम और बीबी शतीता
इमाम काज़िम अलैहिस्सलाम के ज़माने मे नेशापुर के शियो ने मौहम्मद बिन अली नेशापुरी नामी शख़्स कि जो अबुजाफर खुरासानी के नाम से मशहूर था, को कुछ शरई रकम और तोहफे साँतवे इमाम काज़िम (अ.स) की खिदमत मे मदीने पहुँचाने के लिऐ दी।
उन्होंने तीस हज़ार दीनार, पचास हज़ार दिरहम, कुछ लिबास और कुछ कपड़े दिये और साथ ही साथ एक कापी भी दी कि जिस पर सील लगी हुई थी और उसके हर पेज पर एक मसला लिखा हुआ था और उस से कहा था कि जब भी इमाम की खिदमत मे पहुँचो सवालो की कापी इमाम को दे देना और अगले दिन उस कापी को उनसे वापस ले लेना अगर इस कापी की सील नही टूटी तो खुद इस की सील को तोड़ लेना और देख कि इमाम ने बग़ैर सील तोड़े हमारे सवालो के जवाब दिये है या नही? अगर सील तोड़े बग़ैर इन सवालो के जवाब लिख दिये गऐ है तो समझ लेना कि यही इमामे बर हक़ हैं और हमारे माल को लेने के लायक़ है वरना हमारे माल को वापस पलटा लाना।
इस तरह खुरासान के शिया ये चाहते थे कि हक़ीकी इमाम को पहचाने और उन पर यक़ीन करे और इसके ज़रीऐ से इमामत का झूठा दावा करने वालो के फरेब और धोके से बचे और जिस वक्त नेशापुर के रहने वालो का ये नुमाइंदा मौहम्मद बिन अली नेशापुरी अपने सफर के लिऐ चलने लगा तो एक बुज़ुर्ग खातून कि जिनका नाम शतीता था और वो अपने ज़माने के नेक और पारसा लोगो से एक थी, मौहम्मद बिन अली नेशापुरी के पास आई एक दिरहम और एक कपड़े का टुकड़ा उसे दिया और कहाः ऐ अबुजाफर मेरे माल मे से ये मिक़दार हक़्क़े इमाम है इसे इमाम की खिदमत मे पहुचां दे।
मौहम्मद बिन अली नेशापुरी ने उनसे कहाः मुझे शर्म आती है कि इतने थोड़े से माल को इमाम को दूँ।
जनाबे शतीता ने उस से कहाः खुदा वंदे आलम किसी के हक़ से शरमाता नही है (यानी ये कि इमाम के हक़ को देना ज़रूरी है चाहे वो कम ही क्यूं न हो) बस यही माल मेरे ज़िम्मे है और चाहती हूँ कि इस हाल मे परवरदिगार से मुलाक़ात करूँ कि हक़्क़े इमाम मे से कुछ भी मेरी गर्दन पर न हो।
मौहम्मद बिन अली नेशापुरी ने जनाबे शतीता की वो ज़रा सी रकम ली और मदीने चला गया और मदीने पहुँच कर अब्दुल्लाह अफतह1 का इम्तेहान लेकर ये समझ गया कि अब्दुल्लाह अफतह इमामत के क़ाबिल नही है और नाउम्मीदी की हालत मे उसके घर से निकला उसके बाद एक बच्चे ने उसे इमाम काज़िम के घर की तरफ हिदायत की।
मौहम्मद बिन अली नेशापुरी ने जब इमाम काज़िम (अ.स) की खिदमत मे पहुँचा तो इमाम (अ.स) ने उस से फरमाया कि ऐ अबुजाफर नाउम्मीद क्यो हो रहे हो?? मेरे पास आओ मैं वलीऐ खुदा और उसकी हुज्जत हुँ। मैने कल ही तुम्हारे सवालो के जवाब दे दिये है उन सवालो के मेरे पास लाओ और शतीता की दी हुई एक दिरहम को भी मुझे दो।
मौहम्मद बिन अली नेशापुरी कहता है कि मैं इमाम काज़िम (अ.स) की बातो और आपकी बताई हुई सही निशानीयो से हैरान हो गया और उनके हुक्म पर अमल किया।
इमाम काज़िम (अ.स) ने शतीता के एक दिरहम और कपड़े के टुकड़े को ले लिया और फरमायाः बेशक अल्लाह हक़ से शरमाता नही है और ऐ अबुजाफर शतीता को मेरा सलाम कहना और ये पैसो की थैली कि इसमे चालिस दिरहम हैं, और ये कपड़े का टुकड़ा कि जो मेरे कफन का टुकड़ा है, को भी शतीता को दे देना और उस से कहना कि इस कपड़े को अपने कफन मे रख ले कि ये हमारे ही खेत की रूई से बना हुआ है और मेरी बहन ने इस कपड़े को बनाया है और साथ ही साथ शतीता से कहना कि जिस दिन ये चीज़े हासिल करोगी उसके बाद से उन्नीस दिन से ज़्यादा ज़िन्दा नही रहोगी। मेरे तोहफे के दिये हुऐ चालिस दिरहम मे से सोलह दिरहम खर्च कर लो और चौबीस दिरहम को सदक़े और अपने कफन दफन के लिऐ रख लेना।
फिर इमाम काज़िम (अ.स) ने फरमाया कि उस से कहना कि उसकी नमाज़े जनाज़ा मैं खुद पढ़ाऊँगा।
और उसके बाद इमाम (अ.स) ने फरमाया कि बाक़ी माल को उनके मालिको को वापस दे देना और सवालो की कापी की सील को तोड़ कर देख कि मैंने उनके जवाबो को बग़ैर देखे दिया है या नही??
मौहम्मद बिन अली नेशापुरी कहता है कि मैने कापी की सील को देखा उसे हाथ भी नही लगाया गया था और सील तोड़ने के बाद मैंने देखा सब सवालो के जवाब दिये जा चुके है।
जिस वक्त मौहम्मद बिन अली नेशापुरी खुरासान पलटा तो ताज्जुब के आलम मे देखता है कि इमाम काज़िम (अ.स) ने जिन लोगो के माल वापस पलटाऐ है उन सब ने अब्दुल्लाह अफतह को इमाम मान लिया है लेकिन जनाबे शतीता अब भी अपने मज़हब पर बाक़ी है।
मौहम्मद बिन अली नेशापुरी कहता है कि मैने इमाम काज़िम (अ.स) के सलाम को शतीता को पहुँचाया और वो कपड़ा और माल भी उसे दिया और जिस तरह इमाम काज़िम (अ.स) ने फरमाया था शतीता उन्नीस दिन बाद इस दुनिया से रूखसत हो गई।
और जब जनाबे शतीता इंतेक़ाल कर गई तो इमाम (अ.स) ऊँट पर सवार हो कर नेशापुर आऐ और जनाबे शतीता की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई।
आज भी लोग इस मौहतरम खातून को बीबी शतीता के नाम से याद करते है और आपका मज़ारे मुक़द्दस नेशापुर (ईरान) मे मौजूद है कि जहाँ रोज़ाना हज़ारो चाहने वाले आपकी क़ब्र की ज़ियारत के लिऐ आते है।
- अब्दुल्लाह अफतह इमाम सादिक का एक बेटा था कि जिसने इमामत का दावा किया था।
इमाम ख़ुमैनी ने फिलिस्तीन के बारे में जो कहा सच हो रहा है : आयतुल्लाह ख़ामेनेई
इमाम खुमैनी की 35वीं वर्षगांठ के अवसर पर इमाम खुमैनी के रौज़े में आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए ईरान की इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता ने कहा कि इमाम खुमैनी की याद में हर साल आयोजित होने वाली सभा इमाम खुमैनी के प्रति निष्ठा ओर उनसे अपने वादे की याद के साथ साथ देश के विकास के लिए एक महान सबक है।
ईरान के शहीद राष्ट्रपति के बारे में बात करते हुए आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा कि राष्ट्रपति रईसी और उनके साथियों की शहादत क्रांति के इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है जिसमें हमने प्रिय और बेनजीर राष्ट्रपति को खो दिया है।
उन्होंने कहा कि आज फिलिस्तीन के बारे में इमाम खुमैनी की भविष्यवाणी हर्फ़ ब हर्फ़ सही और सच साबित हो रही है। इमाम ख़ुमैनी ने कहा था कि मैं इस्राईल के विघटन की आहट सुन रहा हूं। फ़िलिस्तीन आज दुनिया का सबसे बड़ा विषय बन गया है, जिसने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है। इस्लामिक क्रांति के सर्वोच्च नेता ने कहा कि अल-अक्सा तूफान ने ज़ायोनी शासन को हराने के लिए निर्णायक वार किया है।
पाकिस्तान में जबरन गायब हुए शिया अज़ादारो के परिवारों का विरोध प्रदर्शन
पाकिस्तान में जबरन गायब हुए शिया अज़ादारो के परिवारों ने अपने प्रियजनों की बरामदगी न होने के विरोध में प्रदर्शन किया और सरकारी संस्थाओं व अदालतों पर सवाल उठाया कि निर्दोष नागरिकों को वर्षों तक लापता रखना संविधान और कानून का स्पष्ट उल्लंघन है।
पाकिस्तान के कराची शहर में जबरन गायब हुए शिया अज़ादारो के परिवारों ने अपने प्रियजनों की बरामदगी न होने के विरोध में विरोध प्रदर्शन किया। पुरुषों और महिलाओं के साथ-साथ लापता शिया व्यक्तियों के मासूम बच्चे भी इस विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए।
इस प्रदर्शन को इमामिया स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन पाकिस्तान के केंद्रीय अध्यक्ष फखर अब्बास नकवी, शिया उलेमा काउंसिल के केंद्रीय अतिरिक्त सचिव अल्लामा सय्यद नज़ीर अब्बास तकवी, मजलिस वहदत मुस्लिमीन के कराची डिवीजन के अध्यक्ष अल्लामा सादिक जाफरी, आलमदार रिज़वी और लापता अज़ादार अज़हर अब्बास की पत्नी ने संबोधित किया। इस अवसर पर अल्लामा सय्यद हैदर अब्बास आबिदी, मौलाना डॉ. अकील मूसा, अल्लामा सादिक रज़ा तक़वी, अल्लामा सय्यद अली अनवर जाफ़री, अल्लामा मुबाशिर हसन और जाफ़रिया मिल्लत से जुड़े अन्य विद्वान और नेता भी उपस्थित थे।
आईएसओ के केंद्रीय अध्यक्ष फखर नक़वी ने कहा कि शिया समुदाय ने पाकिस्तान में ज़िया-उल-हक़ जैसे तानाशाह को भी घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था, इसलिए हम माँग करते हैं कि सभी लापता शिया लोगों को जल्द से जल्द रिहा किया जाए। अगर उन्हें रिहा नहीं किया गया, तो अल्लाह की मर्ज़ी से पूरे पाकिस्तान में विरोध अभियान चलाया जाएगा।
लापता शिया अज़ादार अज़हर अब्बास की पत्नी ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि उन उत्पीड़ित शिया युवाओं पर शांति हो, जिन्होंने शिया समुदाय के अस्तित्व और गौरव के लिए अपना जीवन, परिवार और सब कुछ कुर्बान कर दिया। आज भी, कई शिया युवा पाँच से दस वर्षों से जबरन गायब होने के शिकार हैं और उनके परिवार अज्ञानता और दर्दनाक प्रतीक्षा की स्थिति में हैं। कई माता-पिता अपनों की वापसी की उम्मीद में इस दुनिया से चले गए, जबकि कुछ अपनी मृत्युशय्या पर इसी उम्मीद के सहारे हैं।
उन्होंने कहा कि हम, पाकिस्तान के देशभक्त नागरिक, सरकारी संस्थाओं से पूछते हैं कि शिया शोक मनाने वालों को बिना किसी अपराध या सबूत के सालों से जबरन गायब क्यों किया जा रहा है? यह कृत्य संविधान और कानून का स्पष्ट उल्लंघन है। न्याय के नाम पर अदालतें सिर्फ़ नई तारीख़ें देती हैं और जेआईटी सिर्फ़ पीड़ितों से पूछताछ करती हैं। अगर नागरिकों को न्याय नहीं मिलता है, तो अदालतें बंद कर देनी चाहिए ताकि हम ईश्वर से अपना न्याय मांग सकें।
अज़हर अब्बास की पत्नी ने आगे कहा कि अगर इन लापता शोक मनाने वालों के खिलाफ कोई अपराध है, तो उन्हें अदालतों में पेश किया जाना चाहिए, अन्यथा उन्हें बाइज़्ज़त बरी कर दिया जाना चाहिए। अगर ये संस्थाएँ सोचती हैं कि सालों बाद वे दिखा देंगी कि ये शोक मनाने वाले कभी थे ही नहीं, तो यह उनकी भूल है। हम अपनी आखिरी साँस तक इन उत्पीड़ित लोगों के लिए आवाज़ उठाते रहेंगे।
विद्वानों सहित बड़ी संख्या में इमाम हुसैन (अ) के अज़ादारो ने विरोध शिविर में भाग लिया और लापता शिया व्यक्तियों के परिवारों के साथ एकजुटता व्यक्त की।
इराक़ की सरकार और जनता ने अरबईन में व्यापक रूप से सार्थक किया
गृह मंत्री ने अरबईन के क्षेत्र में सक्रिय लोगों और अधिकारियों को धन्यवाद देते हुए एक संदेश में कहा, इराक़ की सरकार और जनता की उत्कृष्ट मेहमाननवाजी ने "हुब्बुल हुसैन को पूर्ण रूप से सार्थक किया।
गृह मंत्रालय के सूचना केंद्र की रिपोर्ट के मुताबिक, गृह मंत्री इस्कंदर मोमेनी ने एक संदेश जारी करके अर्बाइन में भाग लेने वाले लोगों और आयोजकों को धन्यवाद दिया।
गृह मंत्री का संदेश इस प्रकार है:
इस वर्ष के अर्बाइन में, शहीदों के सरदार हज़रत अबा अब्दुल्लाह अलहुसैन (अ.स.) के प्रति प्रेम और भक्ति के इतिहास में एक बार फिर एक विशाल और यादगार आध्यात्मिक महाकाव्य लिखा गया।
इन दिनों हमने उचित योजना और जनता तथा कार्यान्वयनकर्ताओं के बीच अभूतपूर्व एकता और सद्भावना को देखा, जिसके परिणामस्वरूप सुरक्षा, व्यवस्था, चिकित्सा, सार्वजनिक सेवाओं, परिवहन और 3 मिलियन 600 हज़ार से अधिक ईरानी तीर्थयात्रियों के सुगम और सरल आवागमन के दृष्टिकोण से अर्बाइन के वैश्विक समारोह का अद्वितीय आयोजन हुआ।
मैं ईरान की सम्मानित इस्लामी जनता, विशेष रूप से हुसैनी तीर्थयात्रियों, जो इस गौरवशाली घटना के मुख्य सूत्रधार थे, और मुक़ैबदारों (सेवा करने वालों) का आभार व्यक्त करता हूँ, जिन्होंने प्यार से ईरानी मेहमाननवाज़ी संस्कृति का एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत किया।
मैं सभी सेवकों, विशेष रूप से कार्यकारी संस्थानों, अर्बाइन केंद्रीय मुख्यालय की 18 समितियों के गवर्नरों और प्रमुखों का हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ, जिन्होंने सटीक योजना और दिन-रात की मेहनत से इस अमर सम्मेलन के आयोजन में भूमिका निभाई। साथ ही, मैं मीडिया, विशेष रूप से राष्ट्रीय मीडिया, का विशेष धन्यवाद करता हूँ।
हम इस विशाल सम्मेलन को एक वैश्विक दृष्टिकोण से देखते हैं और हमें गर्व है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान ने पड़ोसी देशों के नागरिकों और तीर्थयात्रियों के लिए कर्बला की ओर जाने के लिए आवश्यक शर्तें प्रदान कीं, ताकि सभी इस दया के सागर से लाभान्वित हो सकें। इराक़ की सरकार और जनता की उत्कृष्ट मेहमाननवाज़ी ने "हुब्बुल हुसैन यजमअुना" को पूर्ण रूप से सार्थक किया।
आशा है कि यह विशाल वैश्विक सम्मेलन, उचित योजना के साथ, हर साल पहले से अधिक भव्यता के साथ आयोजित होगा।
नेतन्याहू इजरायल को विनाश की ओर ले जा रहे हैं
इजरायली सेना के पूर्व प्रमुख जनरल गादी आइजेनकोट ने प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की नेतृत्व शैली की कड़ी आलोचना करते हुए कहा है कि उनकी नीतियाँ और कार्यशैली इजरायल को विनाश के कगार पर ले जा रही हैं।
इजरायली सेना के पूर्व प्रमुख जनरल गादी आइजेनकोट ने प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की नेतृत्व शैली की कड़ी आलोचना करते हुए कहा है कि उनकी नीतियाँ और कार्यशैली इजरायल को विनाश के कगार पर ले जा रही हैं।
आइजेनकोट ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा कि 7 अक्टूबर 2023 (हमास के हमले के बाद) से अब तक 680 दिन से अधिक बीत चुके हैं, लेकिन इजरायली सेना अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में विफल रही है।
उन्होंने कहा कि इजरायली सैनिक अभी भी हमास की सुरंगों में जान गंवा रहे हैं, जबकि गाजा युद्ध के उद्देश्य अधूरे हैं।
उन्होंने आरोप लगाया कि नेतन्याहू में नेतृत्व क्षमता और जिम्मेदारी का अभाव है। वह कठिन निर्णय लेने से बचते हैं और राष्ट्रीय हितों से ऊपर व्यक्तिगत व राजनीतिक समझौतों को प्राथमिकता देते हैं। यही रवैया इजरायल को विनाश की ओर धकेल रहा है।
मैं उन सभी को आमंत्रित करता हूँ जो इजरायली और यहूदी नैतिक मूल्यों में विश्वास रखते हैं कि वे लापता सैनिकों के परिवारों के विरोध प्रदर्शन में शामिल हों और सरकार तक अपनी आवाज़ पहुँचाएँ, क्योंकि समय तेजी से बीत रहा है।