رضوی
हज़रत वली-ए-अस्र अ.स. के दूसरे ख़ास नायब हज़रत मुहम्मद बिन उस्मान र.ह.
हज़रत अबू जाफ़र मुहम्मद बिन उस्मान रिज़वानुल्लाह तआला अलैह और आपके वालिद ए माजिद हज़रत उस्मान बिन सईद रिज़वानुल्लाह तआला अलैह, हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम और हज़रत वली-ए-अस्र अजलّल्लाह फ़रजहुश-शरीफ़ के नज़दीक भरोसेमंद और क़ाबिले एतिमाद थे यहाँ तक कि हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने उनके बारे में फ़रमाया,यह जो भी हुक्म तुम लोगों तक पहुँचाएँ, वह मेरी तरफ़ से है, और जो कुछ कहें, वह मेरी ही बात है। उनकी बातों को सुनो और उनकी पेर'वी करो क्योंकि वे मेरी नज़र में क़ाबिले भरोसेमंद और अमीन हैं।
हज़रत अबू जाफ़र मुहम्मद बिन उस्मान रिज़वानुल्लाह तआला अलैह और आपके वालिद ए माजिद हज़रत उस्मान बिन सईद रिज़वानुल्लाह तआला अलैह, हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम और हज़रत वली-ए-अस्र अजलّल्लाह फ़रजहुश-शरीफ़ के नज़दीक भरोसेमंद और क़ाबिले एतिमाद थे, यहाँ तक कि हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने उनके बारे में फ़रमाया,यह जो भी हुक्म तुम लोगों तक पहुँचाएँ, वह मेरी तरफ़ से है, और जो कुछ कहें, वह मेरी ही बात है। उनकी बातों को सुनो और उनकी पेर'वी करो, क्योंकि वे मेरी नज़र में क़ाबिले एतिमाद (भरोसेमंद) और अमीन हैं।”
जब पहले ख़ास नायब जनाब उस्मान बिन सईद रिज़वानुल्लाह तआला अलैह की वफ़ात हुई, तो हज़रत इमाम ज़माना अज्जलल्लाह फ़रजहुश-शरीफ़ ने जनाब मोहम्मद बिन उस्मान रिज़वानुल्लाह तआला अलैह को एक ख़त लिखा: "इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन, (हम) उसके हुक्म पर राज़ी और उसके फ़ैसले पर रज़ामंद हैं। तुम्हारे वालिद ने सआदतमंद ज़िंदगी गुज़ारी और नेक वफ़ात पाई, अल्लाह उन पर रहमत नाज़िल फ़रमाए। उनकी सआदत का यह कमाल है कि अल्लाह ने उन्हें तुम्हारे जैसा बेटा दिया जो उनके बाद उनका जानशीन है।"
हज़रत इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम की इस बा बर्कत तहरीर से यह वाज़ेह होता है कि जनाब मुहम्मद बिन उस्मान (र०अ०) का मक़ाम ओ मरतबा आपके नज़दीक बहुत बुलंद था और आप उनके लिए पूरी तरह भरोसेमंद थे।
जनाब अबू जाफ़र मोहम्मद बिन उस्मान रिज़वानुल्लाह तआला अलैह ने अपने वालिद की वफ़ात के बाद लगभग 40 साल तक हज़रत वली-ए-अस्र अजलल्लाह फ़रजहुश-शरीफ़ की ख़ास वकालत की ज़िम्मेदारियाँ बेहतरीन अन्दाज़ में अंजाम दीं।
अब्बासी हुक्मरान यह समझते थे कि हज़रत इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम का कोई जानशीन नहीं है, इसलिए आप और आपसे पहले आपके वालिद ने मुकम्मल तक़य्या अख़्तियार किया ताकि हुकूमत का ध्यान न जाए और शियों को कोई मुश्किल पेश न आए।
8 रबीउल-अव्वल 260 हिजरी को हमारे 11वें इमाम हज़रत हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की शहादत हुई और हमारे मौला व आक़ा हज़रत वली-ए-अस्र अज्जलल्लाह फ़रजहुश-शरीफ़ की इमामत का आगाज़ हुआ।लेकिन माहौल इतना पुर-आशोब था कि इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम अल्लाह के हुक्म से लोगों की नज़रों से ओझल रहे, यानी ग़ैबत-ए-सुग़रा का आगाज़ हुआ।
अब्बासी हुकूमत पूरी कोशिश में थी कि इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम को शहीद कर दे, इसलिए इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के बाद आपके अहलेबैत को बेहद सख़्त मुश्किलों का सामना करना पड़ा।सरकारी जासूस और सिपाहियों की सख़्ती हमेशा अहल-ए-हरम के पीछे लगी रहती थी, और जब घर का ही कोई शख्स मुख़ालिफ़ हो तो बाहरी दुश्मन को ज़्यादा मेहनत की ज़रूरत नहीं रहती।
हालात इतने कठिन थे कि ख़ुम्स लाने वाला शख्स बिना किसी लिखित चीज़ के जनाब मुहम्मद बिन उस्मान को देता, ताकि कोई तहरीर पकड़े जाने का सबब न बन सके।
जब अब्बासी हाकिम को उसके वज़ीर ने खबर दी कि इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के बाद उनके बेटे ज़िंदा हैं और उन्होंने कुछ लोगों को अपना वकील बनाया है जो माल जमा करते हैं, तो हाकिम ने हुक्म दिया कि जासूस छोड़े जाएँ ताकि सबको गिरफ्तार किया जा सके।
इधर इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम ने अपने तमाम वकीलों को हुक्म दिया कि: "जब तक मेरा दोबारा हुक्म न पहुँच जाए, किसी से कोई पैसा न लें।"
एक जासूस ईमानदारी का नक़ाब पहनकर एक वकील के पास आया और कहा कि मुझे अपने मौला इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम की ख़िदमत में कुछ माल भेजना है। वकील ने हुक्म-ए-इमाम के मुताबिक़ जवाब दिया कि: "मुझे इस बारे में कोई ख़बर नहीं है।"
इस तरह इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम ने दीन की हिफ़ाज़त भी की और मोमिनीन को भी सुरक्षित रखा।
इस पूरे वाक़ये से अंदाज़ा होता है कि इन चारो ख़ास नायबों ने कितने मुश्किल हालात में दीन की तबलीग़ और बक़ा की ज़िम्मेदारियाँ निभाईं। औऱ यह कि इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम को इन पर कितना भरोसा था, और ये अपने मौला के कितने फ़रामांबरदार थे कि उनके हर हुक्म को अपनी जान से ऊपर रखते और पूरी ज़िंदगी उसी इताअत में गुज़ार दी।
जनाब अबू जाफ़र मोहम्मद बिन उस्मान रिज़वानुल्लाह तआला अलैह एक अज़ीम आलिम और फ़क़ीह थे। फिक़्ह में आपकी मशहूर किताब "किताबुल अशरिबा" है, जिसे आपकी वफ़ात के बाद आपकी बेटी उम्मे कुल्सूम (र०अ०) ने वसीयत के मुताबिक़ जनाब हुसैन बिन रूह रिज़वानुल्लाह तआला अलैह (तीसरे ख़ास नायब) को दी।दुआ-ए-समात, दुआ-ए-इफ्तिताह और ज़ियारत आले यासीन आप ही से र'वायत हैं।
जनाब अबू जाफ़र मुहम्मद बिन उस्मान रिज़वानुल्लाह तआला अलैह की 29 जमादीुल अव्वल 305 हिजरी को बग़दाद इराक़ में वफ़ात हुई और वहीं दफ़न हुए।आपका मुक़द्दस रौज़ा आज भी आशिक़ाने अहले बैत अ०स० की ज़ियारतगाह है।
इमाम, इलाही रहमत के अवतार
इमाम ज़माना (अलैहिस्सलाम) भले ही ग़ायब हैं, लेकिन वह एक रहमत का बादल हैं जो हमेशा बरसता रहता है। वह लोगों के सूखे रेगिस्तान को जीवन और खुशियाँ देता है। जो व्यक्ति इस प्यार के केंद्र से दया और मोहब्बत महसूस नहीं करता, वह वास्तव में बड़ा कमी वाला है।
इमाम अस्र (अलैहिस्सलाम) के एक अनजाने पहलू में से एक है उनकी इंसानों के प्रति प्यार और मोहब्बत। अफसोस की बात है कि पहले से ही इमाम को सिर्फ तलवार, खून-ख़राबा, सख्ती और बदले की नजर से दिखाया गया है, और उन्हें एक कठोर इंसान बताया गया है। लेकिन वास्तव में वह अल्लाह की असीम दया के रूप में, अपनी उम्मत के प्यार करने वाले पिता और दयालु साथी हैं।
एक हदीस क़ुदसी में, जब अम्बिया और आइम्मा का ज़िक्र खत्म होता है, वहाँ यह बात आती है:
"وَ أُکملُ ذَلِکَ بِابْنِهِ م ح م د رَحْمَةً لِلْعَالَمِین व अकमलो ज़ालेका बेइब्नेहि मीम हे मीम दाल रहमतन लिल आलामीना"
और मैं इसे उसके बेटे (म ह म द) से पूरा करता हूँ, जो सारी दुनिया के लिए रहमत है। (काफ़ी, भाग 1, पेज 528)
और खुद इमाम की एक हदीस में आया है:
"أَنَّ رَحْمَةَ رَبِّکُمْ وَسِعَتْ کُلَّ شَیءٍ وَ أَنَا تِلْکَ الرَّحْمَة अन्ना रहमता रब्बेकुम वसेअत कुल्ला शैइन व अना तिलकल रहमता "
निश्चय ही तुम्हारे रब की रहमत हर चीज़ को अपने नीचे लेती है और मैं वही अनंत रहमत हूँ। (बिहार उल अनवार, भाग 53, पेज 11)
मासूम इमामों के बयान में ऐसा कहा गया है:
"وَ أَشْفَقَ عَلَیهِمْ مِنْ آبَائِهِمْ وَ أُمَّهَاتِهِم व अशफ़क़ा अलैहिम मिन आबाएहिम व उम्माहातेहिम "
[इमाम] अपने लोगों के प्रति अपने पिता और माता से भी ज्यादा दयालु होते हैं। (बिहार उल अनवार, भाग 25, पेज 117)
इमाम ज़माना (अलैहिस्सलाम) एक महान शिक्षक, कोमल दिल वाले मार्गदर्शक और लोगों के दयालु पिता हैं। वे हर वक्त और हर हाल में अपने लोगों की भलाई का ध्यान रखते हैं। भले ही उन्हें उनकी ज़रूरत न हो, फिर भी वे सबसे अधिक दया और कृपा उनके लिए बरसाते हैं। जैसा कि उन्होंने खुद कहा है:
"لَوْ لَا مَا عِنْدَنَا مِنْ مَحَبَّةِ صَلَاحِکُمْ وَ رَحْمَتِکُمْ وَ الْإِشْفَاقِ عَلَیکُمْ لَکُنَّا عَنْ مُخَاطَبَتِکُمْ فِی شُغُل लौला मा इंदना मिन महब्बते सलाहेकुम व रहमतेकुम वल इश्फ़ाक़े अलैकुम लकुन्ना अन मुख़ातबतेकुम फ़ी शोग़ोलिन"
अगर यह सच न होता कि हम तुम्हारी भलाई चाहते हैं, तुम्हारे प्रति दया और ममता रखते हैं, तो हम तुम्हारी बुरी आदतों की वजह से तुम्हारी ओर ध्यान देना बंद कर देते। (बिहार उल अनवार, भाग 53, पेज 179)
इसलिए, इमाम ज़माना (अलैहिस्सलाम) भले ही ग़ायब हैं, लेकिन वह एक रहमत का बादल हैं जो हमेशा बरसता रहता है। वह लोगों के सूखे रेगिस्तान को जीवन और खुशियाँ देता है। जो व्यक्ति इस प्यार के केंद्र से दया और मोहब्बत महसूस नहीं करता, वह वास्तव में बड़ा कमी वाला है।
"اللهم هَبْ لَنَا رَأْفَتَهُ وَ رَحْمَتَهُ وَ دُعَاءَهُ وَ خَیرَه अल्लाहुम्मा हब लना राफ़तहू व रहमतहू व दुआअहू व ख़ैरहू "
हे खुदा! हमें उनके करुणा, रहमत, दुआ और भलाई दे। (मफातीहुल जिनान, दुआएं नुदबा)
श्रृंखला जारी है ---
इक़्तेबास : किताब "नगीन आफरिनिश" से (मामूली परिवर्तन के साथ)
हमास की लेबनान पर इजरायली हमले की कड़ी निंदा
हमास ने दक्षिणी लेबनान के ऐन अल हिल्वा शिविर पर इजरायली हमले को क्रूर आक्रामकता बताया जिसमें 13 फिलिस्तीनियों की शहादत हुई।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , इस्लामिक रेजिस्टेंस मूवमेंट हमास ने दक्षिणी लेबनान के शहर सैदा में स्थित फिलिस्तीनी शरणार्थी शिविर ऐन अल हिल्वा पर इजरायली हमले की कड़ी निंदा की है।
बयान में कहा गया कि यह हमला निहत्थे फिलिस्तीनी लोगों पर एक क्रूर आक्रामकता और लेबनान की संप्रभुता का खुला उल्लंघन है।
हमास ने इजरायली सेना के इस दावे को खारिज कर दिया कि निशाना बनाया गया स्थान इस आंदोलन का शैक्षिक परिसर था। हमास के अनुसार, यह दावा केवल इजरायली आक्रामकता को औचित्य प्रदान करने और फिलिस्तीनी शिविरों के खिलाफ हिंसा को भड़काने के लिए किया गया है।
बयान में आगे कहा गया कि वास्तव में निशाना बनाया गया स्थान एक खेल का मैदान था, जहां शिविर के युवा निवासी मौजूद थे। इन युवाओं को इजरायली हमले में सीधे निशाना बनाया गया।
हमास ने अंत में इजरायली को इस गंभीर अपराध का पूरा दोषी ठहराया जो फिलिस्तीनी और लेबनानी लोगों के खिलाफ अंजाम दिया।
रिपोर्ट के अनुसार, इजरायली ड्रोन हमले में कम से कम 13 लोग शहीद हुए और कई घायल हुए। इजरायल ने पिछले कुछ दिनों में बार-बार युद्धविराम का उल्लंघन करते हुए लेबनान के विभिन्न क्षेत्रों को निशाना बनाया है।
गज़्ज़ा के लिए तत्काल राहत की अपील की
संयुक्त राष्ट्र और उसके साझेदार संगठन सहायता पहुंचाने के लिए सक्रिय हैं, लेकिन ज़रूरतें उपलब्ध संसाधनों से कई गुना अधिक हैं। उन्होंने इस्राईल से अनुरोध किया कि वह तुरंत सभी पाबंदियां हटाए ताकि गज़्ज़ा तक अधिक राहत सामग्री पहुँच सके।
,संयुक्त राष्ट्र अधिकारियों ने कहा है कि गज़्ज़ा पट्टी में भारी बारिश और कड़कड़ाती ठंड ने पहले से ही गंभीर मानवीय हालात को और बदतर कर दिया है। उन्होंने अधिक मानवीय सहायता भेजने पर लगी सभी पाबंदियों को तुरंत हटाया जाए।
संयुक्त राष्ट्र के मानवीय मामलों के उप महासचिव और आपात राहत समन्वयक टॉम फ्लेचर ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X पर लिखा कि भारी बारिश के बाद गज़्ज़ा के लोग ठंड से पीड़ित हैं। बढ़ते जलभराव ने उनकी बची-खुची थोड़ी सी संपत्ति भी नष्ट कर दी है, जिससे निराशा और बढ़ गई है।
फ्लेचर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र और उसके साझेदार संगठन सहायता पहुंचाने के लिए सक्रिय हैं, लेकिन ज़रूरतें उपलब्ध संसाधनों से कई गुना अधिक हैं। उन्होंने इस्राईल से अनुरोध किया कि वह तुरंत सभी बची हुई पाबंदियां हटाए ताकि गज़्ज़ा तक अधिक राहत सामग्री पहुँच सके।
इसी बीच, संयुक्त राष्ट्र महासचिव के उप प्रवक्ता फ़रहान हक़ ने न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में प्रेस कॉन्फ़्रेंस में बताया,कि संयुक्त राष्ट्र मानवीय मामलों का समन्वय कार्यालय (OCHA ) के राहत कर्मी बारिश से प्रभावित परिवारों को तंबू, प्लास्टिक शीट और अन्य आवश्यक राहत सामग्री वितरित करते रहेंगे।
उन्होंने कहा कि मध्य पूर्व शांति प्रक्रिया के लिए संयुक्त राष्ट्र के विशेष समन्वयक कार्यालय ने गज़्ज़ा में अहम मानवीय योजनाओं के लिए 1.8 करोड़ डॉलर की राशि जारी की है।
तेहरान में ईरान शनासी पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन / दो भारतीय प्रोफेसर मेहमानों में शामिल
तेहरान,इस्लामिक कल्चर एंड कम्युनिकेशन ऑर्गनाइजेशन और इरानोलॉजी फाउंडेशन के सहयोग से तेहरान में एक अंतर्राष्ट्रीय ईरान अध्ययन सम्मेलन आयोजित किया गया। इस वर्ष सम्मेलन का विषय "ईरान अध्ययन में नेटवर्किंग और समस्याओं का समाधान" था, जिसका उद्देश्य ईरान अध्ययन के क्षेत्र में शोध और नई संभावनाओं को सामने लाना हैं।
तेहरान,इस्लामिक कल्चर एंड कम्युनिकेशन ऑर्गनाइजेशन और इरानोलॉजी फाउंडेशन के सहयोग से तेहरान में एक अंतर्राष्ट्रीय ईरान अध्ययन सम्मेलन आयोजित किया गया। इस वर्ष सम्मेलन का विषय "ईरान अध्ययन में नेटवर्किंग और समस्याओं का समाधान" था, जिसका उद्देश्य ईरान अध्ययन के क्षेत्र में शोध और नई संभावनाओं को सामने लाना हैं।
इस शैक्षिक समारोह में स्पेन, इटली, ग्रीस, चीन, भारत, रूस सहित कई देशों के 50 से अधिक शोधकर्ता और ईरान विशेषज्ञों ने भाग लिया। विशेष रूप से भारत से प्रोफेसर अख्तर हुसैन काज़मी (जेएनयू) और प्रोफेसर अली काज़िम अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ने भी इसमें हिस्सा लिया।
सम्मेलन में इस बात पर जोर दिया गया कि ईरान अध्ययन, सांस्कृतिक संपर्कों और वैश्विक शैक्षिक सहयोग को और मजबूत किया जाए। तेहरान की विभिन्न यूनिवर्सिटियों में हुए सत्रों में पर्यटन, फारसी भाषा, प्रौद्योगिकी, और ईरान की आध्यात्मिक व सांस्कृतिक विरासत जैसे विषयों पर चर्चा हुई। सम्मेलन का अंतिम सत्र शिराज यूनिवर्सिटी में आयोजित किया गया।
इस कार्यक्रम की सरपरस्ती विज्ञान मंत्रालय, सांस्कृतिक विरासत मंत्रालय और विदेश मामलों के मंत्रालय ने की। सम्मेलन के लिए देश और विदेश से 300 से अधिक शोध पत्र प्राप्त हुए, जिनमें से 100 को एक सारांश पुस्तक के लिए चुना गया है, जबकि पूर्ण शोध पत्र सम्मेलन के बाद प्रकाशित किए जाएंगे।
हौज़ा ए इल्मिया में फ़िक़्ही विषयों का समर्थन अत्यंत महत्वपूर्ण और आवश्यक है
हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख ने इस्लामी उलूम के दायरे और सामाजिक क्षेत्रों में विषय विशेष अध्ययन की रणनीतिक महत्व पर ज़ोर देते हुए, हौज़ा और इस्लामी व्यवस्था से जुड़े समन्वित संस्थानों के साथ सामंजस्य और इस क्षेत्र में शैक्षणिक भूमिका और शोध समर्थन के विस्तार की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा अराफी ने "मर्कज़ ए तौज़ुह शिनासी-ए अहकाम-ए फ़िक़्ही के संस्थापक हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन फ़लाह ज़ादेह और अध्यक्ष हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन बयात से मुलाकात में हौज़ात ए इल्मिया में फ़िक़्ही विषय विशेष गतिविधियों के विस्तार और सुदृढ़ीकरण की आवश्यकता पर ज़ोर दिया हैं।
उन्होंने इस्लामी विज्ञान में विषय-विशेष अध्ययन के व्यापक दायरे का हवाला देते हुए कहा,इस क्षेत्र में सामाजिक विषयों की नींव से लेकर आम लोगों के दैनिक जीवन के विवरण तक सब कुछ शामिल है और समाज के सभी वर्गों पर इसका प्रभाव है।
हौज़ा ए इल्मिया की उच्चस्तरीय परिषद के इस सदस्य ने आगे कहा,हम हौज़ात ए इल्मिया के रूप में, अपनी क्षमता के अनुसार विषय-विशेष अध्ययन से संबंधित गतिविधियों का समर्थन करने की घोषणा करते हैं।
उन्होंने संगठनात्मक संबंध स्थापित करने को विषय-विशेष अध्ययन केंद्र की स्थिति को मजबूत करने की पहली सीढ़ी बताते हुए कहा, यह आवश्यक है कि यह केंद्र, हौज़ा और इस्लामी व्यवस्था से जुड़े समन्वित संस्थानों के साथ अधिक सामंजस्य स्थापित करे, ताकि इसकी स्पष्ट स्थिति और आवश्यक ढांचा (इन्फ्रास्ट्रक्चर) बन सके।
आयतुल्लाह अराफी ने कहा,विषय विशेष अध्ययन केंद्र, हौज़ा की शैक्षणिक व्यवस्था में एक बहुत ही महत्वपूर्ण और संयोजनात्मक भूमिका रखता है। विषय-विशेष अध्ययन एक ओर एक स्थायी विषय है, तो दूसरी ओर इसे सभी फ़िक़्ही क्षेत्रों में मौजूद होना चाहिए इसलिए यह आवश्यक है कि विभिन्न क्षेत्रों में इसकी स्थिति को स्पष्ट और व्यक्त किया जाए।
स्कूलों और विश्वविद्यालयों में फातेमी सीरत की तलीम ज़रूरी
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन बी आज़ार तहरानी ने स्कूलों और विश्वविद्यालयों में फातेमी सीरत की शिक्षा की आवश्यकता पर ज़ोर दिया और कहा,आज की युवा पीढ़ी पहले से कहीं अधिक हज़रत फातिमा ज़हरा सल्लल्लाहु अलैहा के इल्म और जीवन शैली को सही ढंग से समझने के मोहताज है।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन बी आज़ार तेहरानी ने स्कूलों और विश्वविद्यालयों में फातेमी सीरत की शिक्षा की आवश्यकता पर ज़ोर दिया और कहा, आज की युवा पीढ़ी पहले से कहीं अधिक हज़रत फातिमा ज़हरा सल्लल्लाहु अलैहा के ज्ञान और जीवन-शैली को सही ढंग से समझने की मोहताज है।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के संवाददाता के साथ बातचीत में हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लिमीन एहसान बी आज़ार तेहरानी ने कहा,क़ुरआनी ज्ञान और अहले बैत इसमत व तेहारत की धार्मिक नैतिक संस्कृति का समाज में प्रसार अत्यंत आवश्यक है।
उन्होंने आगे कहा,फातेमी जीवन शैली नए युग में धार्मिक जीवन-शैली को बढ़ावा देने और दुश्मन द्वारा मीडिया के माध्यम से फैलाए जा रहे हंगामों का मुकाबला करने का सर्वोत्तम समाधान है।
हुज्जतुल इस्लाम तेहरानी ने कहा,वास्तविकता यह है कि फातेमी संस्कृति को बढ़ावा देना समाज की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है और सांस्कृतिक व सामाजिक उलझनों से निकलने का रास्ता है।
उन्होंने कहा, फातेमी संस्कृति और सीरत का प्रचार समाज के धर्म प्रचारकों और विशिष्ट व्यक्तियों के सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्यों में से है। जब हज़रत ज़हेरा सल्लल्लाहु अलैहा का ज़िक्र आता है तो यह जानना आवश्यक है कि वह एक मुस्लिम महिला का संपूर्ण आदर्श हैं।
हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लिमीन बी आज़ार तेहरानी ने कहा,हज़रत सिद्दीका कुबरा सल्लल्लाहु अलैहा को सैय्यदतुन निसा इल-आलमीन कहा गया है, इसका अर्थ है कि अल्लाह ने उन्हें ऐसी शख्सियत प्रदान की है कि दुनिया की सभी महिलाएं जो एक आदर्श, प्रेरणा-स्रोत, शिक्षिका और संरक्षिका की तलाश में हैं, उन्हें जान लेना चाहिए कि वह सर्वांगीण आदर्श हज़रत फातिमा ज़हरा सल्लल्लाहु अलैहा ही हैं।
युद्धविराम के बावजूद, ग़ज़्ज़ा पर ज़ायोनी आक्रमण जारी है
संयुक्त राज्य अमेरिका और कब्ज़ाकारी इज़राइल के युद्धविराम के दावों के बावजूद, ज़ायोनी सेना ने गाजा पर अपने ज़मीनी, हवाई और नौसैनिक हमले तेज़ कर दिए हैं और कई इलाकों को निशाना बनाया है।
ज़ायोनी सेना ने आज सुबह ग़ज़्ज़ा पर चारों तरफ से हमले शुरू कर दिए और उत्तर-पूर्वी ग़ज़्ज़ा शहर के इलाकों को तोपखाने से निशाना बनाया।
इन हमलों में अल-तुफ़ा और अल-शुजाइया के पूर्वी इलाकों पर भारी बमबारी की गई।
कब्ज़ाकारी सेना के युद्धक विमानों ने दक्षिणी गाजा शहर खान यूनिस के पूर्वी इलाके को भी निशाना बनाया, जबकि पूर्वी गाजा पर एक और हवाई हमला किया गया।
ज़ायोनी सेना ने अल-तुफ़ा को ड्रोन से भी निशाना बनाया।
ज़मीनी और हवाई हमलों के साथ, ज़ायोनी जहाजों ने ग़ज़्ज़ा शहर के तट पर गोलाबारी की।
यह ध्यान देने योग्य बात है कि यह सब ऐसे समय में हो रहा है जब कब्जा करने वाली ज़ायोनी सरकार और संयुक्त राज्य अमेरिका गाजा में युद्ध विराम लागू करने का दावा कर रहे हैं।
तारागढ़, अजमेर, भारत में फ़ातिमी मजालिस का आयोजन
हमेशा की तरह, इस वर्ष भी, राजस्थान के अजमेर जिले में स्थित एक प्रसिद्ध शिया बस्ती तारागढ़ में फ़ातिमी मजालिस का भव्य आयोजन किया जाएगा; जिसे भारत के प्रसिद्ध विद्वानों और धर्मगुरुओं द्वारा संबोधित किया जाएगा।
राजस्थान अजमेर की प्रसिद्ध शिया बस्ती तारागढ़ में हमेशा की तरह इस साल भी हज़रत सिद्दीक ताहिरा फातिमा ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) की शहादत के मौके पर 27 जमादि अव्वल 1447 से 4 जमादि उस सानी 1447 तक मजलिस का सिलसिला जारी रहेंगा।
मजलिसो का विवरण
27 जमादि अव्वल को रात 8 बजे बड़ी संख्या में हज़रत ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) के चाहने वाले मजलिस में शामिल हुए।
मौलाना अब्बास इरशाद नकवी, हुज्जतुल-इस्लाम मौलाना जमीर-उल-हसन, हुज्जतुल-इस्लाम मौलाना सय्यद नक़ी महदी जैदी, इमाम जुमा तारागढ़ अजमेर और हुज्जतुल-इस्लाम मौलाना सय्यद मुजफ्फर हुसैन मजलिसो को संबोधित करेंगे।
तारागढ़ अजमेर भारत में फातिमिद मजलिस की अनुसूची
ज्ञात हो कि 21 नवंबर 2025 से 25 नवंबर 2025 तक तारागढ़ अजमेर के इमाम जुमा मौलाना सय्यद नक़ी महदी जैदी मग़रिब की नमाज के तुरंत बाद मस्जिद पंजतनी में बयान देंगे और मौलाना सय्यद मुजफ्फर हुसैन नक़वी मस्जिद अल-मुंतजर में बयान देंगे।
साथ ही 21 नवंबर को जुमे की नमाज के बाद शिया जामिया मस्जिद में तारागढ़ अजमेर के इमाम जुमा मौलाना सय्यद नक़ी महदी ज़ैदी तकरीर करेंगे.
4 जमादी उस सानी 1447 को मगरिब की नमाज के बाद इमामबारगाह अल अबू तालिब में अलविदाई मजलिस-ए-अजा फातिमा का आयोजन किया जाएगा, जिसे तारागढ़ अजमेर के इमाम जुमा मौलाना सय्यद नक़ी महदी ज़ैदी संबोधित करेंगे।
आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) की आशाजनक क्षमता के बावजूद, विशेषज्ञ हमें इसकी सीमाओं को पहचानने और इसके अति प्रयोग से बचने का आग्रह करते हैं।
आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) सूचना और डेटा प्रोसेसिंग से भरी एक मशीन से कहीं बढ़कर है।आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) एक ऐसा चलन है जो उपयोगी भी हो सकता है और खतरनाक भी, लेकिन संघर्ष और सत्ता की चाहत से भरी दुनिया में, इसके विनाशकारी होने की संभावना कहीं ज़्यादा है।
यह तकनीक तकनीक के विकास में एक नया चरण है; एक ऐसी तकनीक जो पुराने उद्योग के विपरीत, मानवीय ज़रूरत से नहीं, बल्कि आधुनिक दुनिया की मनुष्य के सार और स्वभाव पर प्रभुत्व जमाने की चाहत से उपजी है। तकनीक अपना रास्ता खुद तय करती है और मनुष्य को इस हद तक निर्भरता की ओर ले जाती है कि उसे डर सताने लगता है कि कहीं वह उसका गुलाम न बन जाए।
आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI), वास्तविकता को बदलने और सूचना को नियंत्रित करने की शक्ति के साथ, दुनिया की व्यवस्था को बिगाड़ सकती है और वैज्ञानिकों के हाथों में एक औज़ार नहीं, बल्कि राजनीतिक शक्तियों के हाथों का खिलौना बन सकती है।
इसमें न तो तर्क है और न ही नैतिकता; इसमें सिर्फ़ आँकड़े और गणना करने की क्षमता है। "फ्रेंकस्टीन के राक्षस" की तरह, यह एक विनाशकारी इकाई में बदल सकती है जिसे नियंत्रित करना असंभव है।
फिर भी आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) से मुँह नहीं मोड़ना चाहिए, बल्कि इसके प्रति अंध मोह से बचना चाहिए। इसकी क्षमताओं और अक्षमताओं की सीमाओं को पहचानना और वैज्ञानिकों से इसके प्रश्नों और अस्पष्टताओं को स्पष्ट करने का अनुरोध करना ज़रूरी है।
मनुष्य तकनीक से बच नहीं सकता, लेकिन उसे इसके साथ अपने संबंधों को सचेत रूप से प्रबंधित करने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि हम अभी तक नहीं जानते कि तकनीक का यह मार्ग कहाँ समाप्त होगा।













