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गज़्ज़ा के लिए तत्काल राहत की अपील की
संयुक्त राष्ट्र और उसके साझेदार संगठन सहायता पहुंचाने के लिए सक्रिय हैं, लेकिन ज़रूरतें उपलब्ध संसाधनों से कई गुना अधिक हैं। उन्होंने इस्राईल से अनुरोध किया कि वह तुरंत सभी पाबंदियां हटाए ताकि गज़्ज़ा तक अधिक राहत सामग्री पहुँच सके।
,संयुक्त राष्ट्र अधिकारियों ने कहा है कि गज़्ज़ा पट्टी में भारी बारिश और कड़कड़ाती ठंड ने पहले से ही गंभीर मानवीय हालात को और बदतर कर दिया है। उन्होंने अधिक मानवीय सहायता भेजने पर लगी सभी पाबंदियों को तुरंत हटाया जाए।
संयुक्त राष्ट्र के मानवीय मामलों के उप महासचिव और आपात राहत समन्वयक टॉम फ्लेचर ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म X पर लिखा कि भारी बारिश के बाद गज़्ज़ा के लोग ठंड से पीड़ित हैं। बढ़ते जलभराव ने उनकी बची-खुची थोड़ी सी संपत्ति भी नष्ट कर दी है, जिससे निराशा और बढ़ गई है।
फ्लेचर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र और उसके साझेदार संगठन सहायता पहुंचाने के लिए सक्रिय हैं, लेकिन ज़रूरतें उपलब्ध संसाधनों से कई गुना अधिक हैं। उन्होंने इस्राईल से अनुरोध किया कि वह तुरंत सभी बची हुई पाबंदियां हटाए ताकि गज़्ज़ा तक अधिक राहत सामग्री पहुँच सके।
इसी बीच, संयुक्त राष्ट्र महासचिव के उप प्रवक्ता फ़रहान हक़ ने न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में प्रेस कॉन्फ़्रेंस में बताया,कि संयुक्त राष्ट्र मानवीय मामलों का समन्वय कार्यालय (OCHA ) के राहत कर्मी बारिश से प्रभावित परिवारों को तंबू, प्लास्टिक शीट और अन्य आवश्यक राहत सामग्री वितरित करते रहेंगे।
उन्होंने कहा कि मध्य पूर्व शांति प्रक्रिया के लिए संयुक्त राष्ट्र के विशेष समन्वयक कार्यालय ने गज़्ज़ा में अहम मानवीय योजनाओं के लिए 1.8 करोड़ डॉलर की राशि जारी की है।
तेहरान में ईरान शनासी पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन / दो भारतीय प्रोफेसर मेहमानों में शामिल
तेहरान,इस्लामिक कल्चर एंड कम्युनिकेशन ऑर्गनाइजेशन और इरानोलॉजी फाउंडेशन के सहयोग से तेहरान में एक अंतर्राष्ट्रीय ईरान अध्ययन सम्मेलन आयोजित किया गया। इस वर्ष सम्मेलन का विषय "ईरान अध्ययन में नेटवर्किंग और समस्याओं का समाधान" था, जिसका उद्देश्य ईरान अध्ययन के क्षेत्र में शोध और नई संभावनाओं को सामने लाना हैं।
तेहरान,इस्लामिक कल्चर एंड कम्युनिकेशन ऑर्गनाइजेशन और इरानोलॉजी फाउंडेशन के सहयोग से तेहरान में एक अंतर्राष्ट्रीय ईरान अध्ययन सम्मेलन आयोजित किया गया। इस वर्ष सम्मेलन का विषय "ईरान अध्ययन में नेटवर्किंग और समस्याओं का समाधान" था, जिसका उद्देश्य ईरान अध्ययन के क्षेत्र में शोध और नई संभावनाओं को सामने लाना हैं।
इस शैक्षिक समारोह में स्पेन, इटली, ग्रीस, चीन, भारत, रूस सहित कई देशों के 50 से अधिक शोधकर्ता और ईरान विशेषज्ञों ने भाग लिया। विशेष रूप से भारत से प्रोफेसर अख्तर हुसैन काज़मी (जेएनयू) और प्रोफेसर अली काज़िम अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ने भी इसमें हिस्सा लिया।
सम्मेलन में इस बात पर जोर दिया गया कि ईरान अध्ययन, सांस्कृतिक संपर्कों और वैश्विक शैक्षिक सहयोग को और मजबूत किया जाए। तेहरान की विभिन्न यूनिवर्सिटियों में हुए सत्रों में पर्यटन, फारसी भाषा, प्रौद्योगिकी, और ईरान की आध्यात्मिक व सांस्कृतिक विरासत जैसे विषयों पर चर्चा हुई। सम्मेलन का अंतिम सत्र शिराज यूनिवर्सिटी में आयोजित किया गया।
इस कार्यक्रम की सरपरस्ती विज्ञान मंत्रालय, सांस्कृतिक विरासत मंत्रालय और विदेश मामलों के मंत्रालय ने की। सम्मेलन के लिए देश और विदेश से 300 से अधिक शोध पत्र प्राप्त हुए, जिनमें से 100 को एक सारांश पुस्तक के लिए चुना गया है, जबकि पूर्ण शोध पत्र सम्मेलन के बाद प्रकाशित किए जाएंगे।
हौज़ा ए इल्मिया में फ़िक़्ही विषयों का समर्थन अत्यंत महत्वपूर्ण और आवश्यक है
हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख ने इस्लामी उलूम के दायरे और सामाजिक क्षेत्रों में विषय विशेष अध्ययन की रणनीतिक महत्व पर ज़ोर देते हुए, हौज़ा और इस्लामी व्यवस्था से जुड़े समन्वित संस्थानों के साथ सामंजस्य और इस क्षेत्र में शैक्षणिक भूमिका और शोध समर्थन के विस्तार की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा अराफी ने "मर्कज़ ए तौज़ुह शिनासी-ए अहकाम-ए फ़िक़्ही के संस्थापक हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन फ़लाह ज़ादेह और अध्यक्ष हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन बयात से मुलाकात में हौज़ात ए इल्मिया में फ़िक़्ही विषय विशेष गतिविधियों के विस्तार और सुदृढ़ीकरण की आवश्यकता पर ज़ोर दिया हैं।
उन्होंने इस्लामी विज्ञान में विषय-विशेष अध्ययन के व्यापक दायरे का हवाला देते हुए कहा,इस क्षेत्र में सामाजिक विषयों की नींव से लेकर आम लोगों के दैनिक जीवन के विवरण तक सब कुछ शामिल है और समाज के सभी वर्गों पर इसका प्रभाव है।
हौज़ा ए इल्मिया की उच्चस्तरीय परिषद के इस सदस्य ने आगे कहा,हम हौज़ात ए इल्मिया के रूप में, अपनी क्षमता के अनुसार विषय-विशेष अध्ययन से संबंधित गतिविधियों का समर्थन करने की घोषणा करते हैं।
उन्होंने संगठनात्मक संबंध स्थापित करने को विषय-विशेष अध्ययन केंद्र की स्थिति को मजबूत करने की पहली सीढ़ी बताते हुए कहा, यह आवश्यक है कि यह केंद्र, हौज़ा और इस्लामी व्यवस्था से जुड़े समन्वित संस्थानों के साथ अधिक सामंजस्य स्थापित करे, ताकि इसकी स्पष्ट स्थिति और आवश्यक ढांचा (इन्फ्रास्ट्रक्चर) बन सके।
आयतुल्लाह अराफी ने कहा,विषय विशेष अध्ययन केंद्र, हौज़ा की शैक्षणिक व्यवस्था में एक बहुत ही महत्वपूर्ण और संयोजनात्मक भूमिका रखता है। विषय-विशेष अध्ययन एक ओर एक स्थायी विषय है, तो दूसरी ओर इसे सभी फ़िक़्ही क्षेत्रों में मौजूद होना चाहिए इसलिए यह आवश्यक है कि विभिन्न क्षेत्रों में इसकी स्थिति को स्पष्ट और व्यक्त किया जाए।
स्कूलों और विश्वविद्यालयों में फातेमी सीरत की तलीम ज़रूरी
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन बी आज़ार तहरानी ने स्कूलों और विश्वविद्यालयों में फातेमी सीरत की शिक्षा की आवश्यकता पर ज़ोर दिया और कहा,आज की युवा पीढ़ी पहले से कहीं अधिक हज़रत फातिमा ज़हरा सल्लल्लाहु अलैहा के इल्म और जीवन शैली को सही ढंग से समझने के मोहताज है।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन बी आज़ार तेहरानी ने स्कूलों और विश्वविद्यालयों में फातेमी सीरत की शिक्षा की आवश्यकता पर ज़ोर दिया और कहा, आज की युवा पीढ़ी पहले से कहीं अधिक हज़रत फातिमा ज़हरा सल्लल्लाहु अलैहा के ज्ञान और जीवन-शैली को सही ढंग से समझने की मोहताज है।
हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के संवाददाता के साथ बातचीत में हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लिमीन एहसान बी आज़ार तेहरानी ने कहा,क़ुरआनी ज्ञान और अहले बैत इसमत व तेहारत की धार्मिक नैतिक संस्कृति का समाज में प्रसार अत्यंत आवश्यक है।
उन्होंने आगे कहा,फातेमी जीवन शैली नए युग में धार्मिक जीवन-शैली को बढ़ावा देने और दुश्मन द्वारा मीडिया के माध्यम से फैलाए जा रहे हंगामों का मुकाबला करने का सर्वोत्तम समाधान है।
हुज्जतुल इस्लाम तेहरानी ने कहा,वास्तविकता यह है कि फातेमी संस्कृति को बढ़ावा देना समाज की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है और सांस्कृतिक व सामाजिक उलझनों से निकलने का रास्ता है।
उन्होंने कहा, फातेमी संस्कृति और सीरत का प्रचार समाज के धर्म प्रचारकों और विशिष्ट व्यक्तियों के सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्यों में से है। जब हज़रत ज़हेरा सल्लल्लाहु अलैहा का ज़िक्र आता है तो यह जानना आवश्यक है कि वह एक मुस्लिम महिला का संपूर्ण आदर्श हैं।
हुज्जतुल इस्लाम वल-मुस्लिमीन बी आज़ार तेहरानी ने कहा,हज़रत सिद्दीका कुबरा सल्लल्लाहु अलैहा को सैय्यदतुन निसा इल-आलमीन कहा गया है, इसका अर्थ है कि अल्लाह ने उन्हें ऐसी शख्सियत प्रदान की है कि दुनिया की सभी महिलाएं जो एक आदर्श, प्रेरणा-स्रोत, शिक्षिका और संरक्षिका की तलाश में हैं, उन्हें जान लेना चाहिए कि वह सर्वांगीण आदर्श हज़रत फातिमा ज़हरा सल्लल्लाहु अलैहा ही हैं।
युद्धविराम के बावजूद, ग़ज़्ज़ा पर ज़ायोनी आक्रमण जारी है
संयुक्त राज्य अमेरिका और कब्ज़ाकारी इज़राइल के युद्धविराम के दावों के बावजूद, ज़ायोनी सेना ने गाजा पर अपने ज़मीनी, हवाई और नौसैनिक हमले तेज़ कर दिए हैं और कई इलाकों को निशाना बनाया है।
ज़ायोनी सेना ने आज सुबह ग़ज़्ज़ा पर चारों तरफ से हमले शुरू कर दिए और उत्तर-पूर्वी ग़ज़्ज़ा शहर के इलाकों को तोपखाने से निशाना बनाया।
इन हमलों में अल-तुफ़ा और अल-शुजाइया के पूर्वी इलाकों पर भारी बमबारी की गई।
कब्ज़ाकारी सेना के युद्धक विमानों ने दक्षिणी गाजा शहर खान यूनिस के पूर्वी इलाके को भी निशाना बनाया, जबकि पूर्वी गाजा पर एक और हवाई हमला किया गया।
ज़ायोनी सेना ने अल-तुफ़ा को ड्रोन से भी निशाना बनाया।
ज़मीनी और हवाई हमलों के साथ, ज़ायोनी जहाजों ने ग़ज़्ज़ा शहर के तट पर गोलाबारी की।
यह ध्यान देने योग्य बात है कि यह सब ऐसे समय में हो रहा है जब कब्जा करने वाली ज़ायोनी सरकार और संयुक्त राज्य अमेरिका गाजा में युद्ध विराम लागू करने का दावा कर रहे हैं।
तारागढ़, अजमेर, भारत में फ़ातिमी मजालिस का आयोजन
हमेशा की तरह, इस वर्ष भी, राजस्थान के अजमेर जिले में स्थित एक प्रसिद्ध शिया बस्ती तारागढ़ में फ़ातिमी मजालिस का भव्य आयोजन किया जाएगा; जिसे भारत के प्रसिद्ध विद्वानों और धर्मगुरुओं द्वारा संबोधित किया जाएगा।
राजस्थान अजमेर की प्रसिद्ध शिया बस्ती तारागढ़ में हमेशा की तरह इस साल भी हज़रत सिद्दीक ताहिरा फातिमा ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) की शहादत के मौके पर 27 जमादि अव्वल 1447 से 4 जमादि उस सानी 1447 तक मजलिस का सिलसिला जारी रहेंगा।
मजलिसो का विवरण
27 जमादि अव्वल को रात 8 बजे बड़ी संख्या में हज़रत ज़हरा (सला मुल्ला अलैहा) के चाहने वाले मजलिस में शामिल हुए।
मौलाना अब्बास इरशाद नकवी, हुज्जतुल-इस्लाम मौलाना जमीर-उल-हसन, हुज्जतुल-इस्लाम मौलाना सय्यद नक़ी महदी जैदी, इमाम जुमा तारागढ़ अजमेर और हुज्जतुल-इस्लाम मौलाना सय्यद मुजफ्फर हुसैन मजलिसो को संबोधित करेंगे।
तारागढ़ अजमेर भारत में फातिमिद मजलिस की अनुसूची
ज्ञात हो कि 21 नवंबर 2025 से 25 नवंबर 2025 तक तारागढ़ अजमेर के इमाम जुमा मौलाना सय्यद नक़ी महदी जैदी मग़रिब की नमाज के तुरंत बाद मस्जिद पंजतनी में बयान देंगे और मौलाना सय्यद मुजफ्फर हुसैन नक़वी मस्जिद अल-मुंतजर में बयान देंगे।
साथ ही 21 नवंबर को जुमे की नमाज के बाद शिया जामिया मस्जिद में तारागढ़ अजमेर के इमाम जुमा मौलाना सय्यद नक़ी महदी ज़ैदी तकरीर करेंगे.
4 जमादी उस सानी 1447 को मगरिब की नमाज के बाद इमामबारगाह अल अबू तालिब में अलविदाई मजलिस-ए-अजा फातिमा का आयोजन किया जाएगा, जिसे तारागढ़ अजमेर के इमाम जुमा मौलाना सय्यद नक़ी महदी ज़ैदी संबोधित करेंगे।
आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) की आशाजनक क्षमता के बावजूद, विशेषज्ञ हमें इसकी सीमाओं को पहचानने और इसके अति प्रयोग से बचने का आग्रह करते हैं।
आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) सूचना और डेटा प्रोसेसिंग से भरी एक मशीन से कहीं बढ़कर है।आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) एक ऐसा चलन है जो उपयोगी भी हो सकता है और खतरनाक भी, लेकिन संघर्ष और सत्ता की चाहत से भरी दुनिया में, इसके विनाशकारी होने की संभावना कहीं ज़्यादा है।
यह तकनीक तकनीक के विकास में एक नया चरण है; एक ऐसी तकनीक जो पुराने उद्योग के विपरीत, मानवीय ज़रूरत से नहीं, बल्कि आधुनिक दुनिया की मनुष्य के सार और स्वभाव पर प्रभुत्व जमाने की चाहत से उपजी है। तकनीक अपना रास्ता खुद तय करती है और मनुष्य को इस हद तक निर्भरता की ओर ले जाती है कि उसे डर सताने लगता है कि कहीं वह उसका गुलाम न बन जाए।
आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI), वास्तविकता को बदलने और सूचना को नियंत्रित करने की शक्ति के साथ, दुनिया की व्यवस्था को बिगाड़ सकती है और वैज्ञानिकों के हाथों में एक औज़ार नहीं, बल्कि राजनीतिक शक्तियों के हाथों का खिलौना बन सकती है।
इसमें न तो तर्क है और न ही नैतिकता; इसमें सिर्फ़ आँकड़े और गणना करने की क्षमता है। "फ्रेंकस्टीन के राक्षस" की तरह, यह एक विनाशकारी इकाई में बदल सकती है जिसे नियंत्रित करना असंभव है।
फिर भी आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) से मुँह नहीं मोड़ना चाहिए, बल्कि इसके प्रति अंध मोह से बचना चाहिए। इसकी क्षमताओं और अक्षमताओं की सीमाओं को पहचानना और वैज्ञानिकों से इसके प्रश्नों और अस्पष्टताओं को स्पष्ट करने का अनुरोध करना ज़रूरी है।
मनुष्य तकनीक से बच नहीं सकता, लेकिन उसे इसके साथ अपने संबंधों को सचेत रूप से प्रबंधित करने का प्रयास करना चाहिए क्योंकि हम अभी तक नहीं जानते कि तकनीक का यह मार्ग कहाँ समाप्त होगा।
अंतर्राष्ट्रीय इल्मी वेबिनार (2) "उपमहाद्वीप में नहजुल बलाग़ा का मक़ाम और उसका तर्बियती किरदार
मजमा जहानी अहले बैत (अ) और मरकज़ अफ़कारे इस्लामी के सहयोग से "उपमहाद्वीप में नहजुल बलाग़ा का मक़ाम और उसका तर्बियती किरदार" के विषय पर रविवार, 16 नवंबर 2025 को गूगल मीट पर एक अंतरराष्ट्रीय शैक्षिक वेबिनार आयोजित किया गया।
मजमा जहानी अहले बैत (अ) और मरकज़ अफ़कार इस्लामी के सहयोग से आयोजित अंतर्राष्ट्रीय वेबनार की यह दूसरी बैठक थी। इसमें कई देशों के प्रमुख विद्वान और धार्मिक हस्तियों ने नहजुल बलाग़ा के विचारों, नैतिकता और प्रशिक्षण के पक्षों के साथ-साथ भारत-पाक क्षेत्र में इसके शैक्षिक प्रभाव, शिक्षण स्थान और विचारधारात्मक विरासत पर प्रकाश डाला।
रिपोर्ट के अनुसार, इस बैठक का उद्देश्य भारत-पाक के धार्मिक और शैक्षिक माहौल में नहजुल बलाग़ा के स्थान को स्पष्ट करना, इसके नैतिक और प्रशिक्षण प्रभावों को उजागर करना, तथा वर्तमान शैक्षिक समस्याओं के हल में इसकी भूमिका प्रस्तुत करना था। साथ ही, इस क्षेत्र में इसके गहरे शैक्षिक प्रभाव, शिक्षण का महत्व और मूल्यवान विचारधारात्मक विरासत पर प्रकाश डालना था।
अंतर्राष्ट्रीय इल्मी वेबिनार (2) "उपमहाद्वीप में नहजुल बलाग़ा का मक़ाम और उसका तर्बियती किरदार" / मुम्ताज़ और इल्मी हौज़वी हस्तियों के भाषण
वेबिनार की मेजबानी हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सय्यद अक़ील अब्बास नक़वी ने की। इस कार्यक्रम के वक्ताओं और उनके विचारों का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है:
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सय्यद सफ़ी हैदर ज़ैदी ने "भारत में नहजुल बलाग़ा का स्थान और इसकी प्रशिक्षण भूमिका" पर प्रकाश डाला। उन्होंने यहां इसके शिक्षण और विचारों के प्रसार के इतिहास को बताया और कहा कि इसमें मौजूद नैतिक सिद्धांत और बुद्धिमत्तापूर्ण बातें भारतीय समाज में मानव के प्रशिक्षण और चरित्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। उन्होंने इस शिक्षा की कमी पर अफसोस जताया और धार्मिक मदरसों के प्रबंधकों, विद्वानों और छात्रों की इस ओर ध्यान आकर्षित किया कि शिक्षण पाठ्यक्रम और सभाओं में नहजुल बलाग़ा शामिल होना चाहिए।
अंतर्राष्ट्रीय इल्मी वेबिनार (2) "उपमहाद्वीप में नहजुल बलाग़ा का मक़ाम और उसका तर्बियती किरदार" / मुम्ताज़ और इल्मी हौज़वी हस्तियों के भाषण
2- डॉ. ताहिरा बतूल (जामेअतुल मुस्तफ़ा पाकिस्तान की अध्यापिका व शोधकर्ता) ने "पाकिस्तान के सामाजिक, राजनीतिक और सुरक्षा समस्याओं के समाधान में नहजुल बलाग़ा की भूमिका" पर महत्वपूर्ण बातें कही। उन्होंने कहा कि इसमें दिए गए न्याय, ईमानदारी, पारदर्शिता और शासन के सिद्धांतों को अपनाकर पाकिस्तान की कई सामाजिक, राजनीतिक और सुरक्षा चुनौतियों का प्रभावी समाधान खोजा जा सकता है।
अंतर्राष्ट्रीय इल्मी वेबिनार (2) "उपमहाद्वीप में नहजुल बलाग़ा का मक़ाम और उसका तर्बियती किरदार" / मुम्ताज़ और इल्मी हौज़वी हस्तियों के भाषण
3- डॉ. रईस अजम शाहिद (नहजुल बलाग़ा के उर्दू अनुवादक, शोधकर्ता और शिक्षक) ने "भारत-पाक क्षेत्र में नहजुल बलागा़ के अनुवादक, व्याख्याकार और शोधकर्ताओं" पर विषय प्रस्तुत किया। उन्होंने इस क्षेत्र के विद्वानों, अनुवादकों और शोधकर्ताओं के योगदान को उजागर किया और इस महान पुस्तक के उर्दू भाषा में किए गए कार्यों का विस्तार से वर्णन किया।
अंतर्राष्ट्रीय इल्मी वेबिनार (2) "उपमहाद्वीप में नहजुल बलाग़ा का मक़ाम और उसका तर्बियती किरदार" / मुम्ताज़ और इल्मी हौज़वी हस्तियों के भाषण
4- हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना सय्यद ज़रग़ाम अब्बास काज़मी ( मरकज़ मुंतही नूर इस्लामाबाद के शोधकर्ता) ने "भारत-पाक के मुसलमानों (शिया मदरसों) के प्रशिक्षण संबंधी समस्याओं के समाधान में नहजुल बलाग़ा की भूमिका" पर अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि नहजुल बलागा़ के खुत्बात और ज्ञान की रोशनी में इसे विद्यालयों के पाठ्यक्रम में प्रभावी रूप से शामिल कर नई पीढ़ी का बेहतर प्रशिक्षण किया जा सकता है और उनके नैतिक व आध्यात्मिक समस्याओं को हल किया जा सकता है।
अंतर्राष्ट्रीय इल्मी वेबिनार (2) "उपमहाद्वीप में नहजुल बलाग़ा का मक़ाम और उसका तर्बियती किरदार" / मुम्ताज़ और इल्मी हौज़वी हस्तियों के भाषण
इस वेबिनार के प्रतिभागियों ने स्पष्ट किया कि नहजुल बालाग़ा जो अमीरअली (अलैहिस्सलाम) की कृतियों में से एक है, न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है बल्कि इसमें मौजूद व्यापक ज्ञान और शाश्वत सिद्धांतों के कारण यह भारत-पाक और पूरी मानवता के लिए एक अमर मार्गदर्शक और प्रशिक्षण स्रोत है।
यह शैक्षिक बैठक नहजुल बलाग़ा के संदेश को व्यापक करने और इसके प्रशिक्षण पहलुओं को भारत-पाक के वर्तमान युग की समस्याओं के समाधान के लिए लागू करने में एक सकारात्मक कदम साबित हुई।
12 दिवसीय युद्ध में ईरान की जीत आंतरिक क्षमता, आत्मनिर्भरता और क्रांति के नेता के बुद्धिमान नेतृत्व का परिणाम है
मिशिगन शुक्रवार इमाम, होजातोलेसलाम वालमुस्लिमीन बसम अल-शरा ने कहा कि ईरान और ज़ायोनी शासन के बीच 12 दिवसीय युद्ध में इस्लामी गणराज्य ईरान की जीत आंतरिक क्षमता, आत्मनिर्भरता और क्रांति के नेता की बुद्धिमान नेतृत्व का परिणाम है।
मिशिगन के इमाम जुमा हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन बसम अल-शरा ने कहा कि ईरान और ज़ायोनी शासन के बीच 12 दिवसीय युद्ध में इस्लामी गणराज्य ईरान की जीत आंतरिक क्षमता, आत्मनिर्भरता और क्रांति के नेता की बुद्धिमान नेतृत्व का परिणाम है। उन्होंने कहा कि आज ईरान के लिए सबसे बड़ा खतरा बाहरी नहीं, बल्कि आंतरिक बौद्धिक और राजनीतिक चुनौतियाँ हैं।
मिशिगन के इमाम जुमा ने पिछले शुक्रवार को अपने उपदेश में कहा कि ईरान ने ज़ायोनी शासन द्वारा थोपे गए 12-दिवसीय युद्ध में "शानदार विजय" प्राप्त की और किसी भी बाहरी शक्ति पर निर्भर हुए बिना अपने राष्ट्र, नेतृत्व और रक्षा शक्ति के आधार पर अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा की।
उन्होंने कहा: चालीस वर्षों के प्रतिबंधों के बावजूद, ईरान ने चीन, रूस या किसी अन्य विश्व शक्ति से मदद लिए बिना, घरेलू उत्पादन, बुद्धिमानी भरे निर्णयों और जन प्रतिरोध के माध्यम से इस बड़े बाहरी खतरे को बहादुरी और रणनीतिक रूप से खदेड़ दिया।
हुज्जतुल इस्लाम बसम अल-शरा ने आगे कहा कि दुनिया भर के अध्ययन और शोध संस्थान इस बात की जाँच कर रहे हैं कि अत्यंत संवेदनशील और सीमित संसाधनों के बावजूद ईरान ने यह सफलता कैसे हासिल की, और क्रांति के नेता के नेतृत्व को विशेष महत्व दिया जा रहा है।
उन्होंने इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह सय्यद अली खामेनेई को एक अंतरराष्ट्रीय प्रभाव वाला व्यक्ति बताया और कहा: दुनिया के शैक्षणिक और राजनीतिक केंद्र आज भी उनके बयानों और नीतियों पर कड़ी नज़र रख रहे हैं। बुद्धिमत्ता, समय पर निर्णय लेने की क्षमता और संकटों की सटीक समझ—ये वे गुण हैं जिन्होंने इस महान नेता को नब्बे वर्ष की आयु में भी विश्व मंच पर एक प्रतिष्ठित स्थान दिलाया है।
मिशिगन के इमाम जुमा ने युद्ध के बाद ईरान के भीतर कुछ लोगों द्वारा उठाई गई आपत्तियों और आलोचनाओं पर खेद व्यक्त करते हुए कहा कि इस तरह के रवैये आंतरिक माहौल को चुनौती देते हैं।
उनके अनुसार: दुर्भाग्य से, ईरान में कुछ पूर्व सरकारी अधिकारी, जो वर्षों तक सत्ता में रहे, आज निराधार संदेह और आक्षेपों के माध्यम से आंतरिक माहौल को प्रभावित कर रहे हैं।
उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि इस्लामी गणराज्य ईरान के लिए असली खतरा बाहर से नहीं, बल्कि आंतरिक मतभेदों और गैर-ज़िम्मेदाराना बयानों से है। ईरानी राष्ट्र की ताकत उसकी एकता और आयतुल्लाह ख़ामेनेई के बुद्धिमान नेतृत्व के प्रति प्रतिबद्धता में निहित है। यह एकता इस्लामी गणराज्य की असली पूंजी है।













