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डॉ. ताहिर-उल-कादरी ने अपनी ऑस्ट्रेलिया यात्रा के दौरान हज्जत-उल-इस्लाम और मुसलमानों के मौलाना सैयद अबुल कासिम रिज़वी से मुलाकात की और मुस्लिम उम्माह की समस्याओं, उनके समाधानों और उम्माह की एकता पर चर्चा की।

मुहर्रम के मौके पर मिन्हाज-उल-कुरान के संस्थापक और संरक्षक डॉ. ताहिर-उल-कादरी ऑस्ट्रेलिया के दौरे पर हैं मुहर्रम के महीने के सिलसिले में शहर का दौरा करने वाले हिज्जत-उल-इस्लाम और मुसलमानों के उपदेशक अबुल कासिम रिज़वी ने कल अहल-ए-सुन्नत विद्वानों के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ डॉ. ताहिर-उल-कादरी से मुलाकात की उन्हें हल करने के प्रयासों और उम्माह की एकता पर जोर दिया गया।

ऑस्ट्रेलिया में मिन्हाज-उल-कुरान इंस्टीट्यूशन के अध्यक्ष श्री मोहसिन साहब और ऑस्ट्रेलिया में मिन्हाज-उल-कुरान इंस्टीट्यूशन के प्रतिनिधि धार्मिक विद्वान मौलाना रमजान कादरी ने मौलाना सैयद अबुल कासिम रिज़वी द्वारा प्रदान की गई मूल्यवान सेवाओं का उल्लेख किया। मुस्लिम उम्माह और धर्मों का उत्सव।

डॉ. ताहिर-उल-कादरी ने खुशी जाहिर करते हुए कहा: मैं मौलाना से मिलने के लिए उत्सुक था, आज की मुलाकात मेरे लिए यादगार रहेगी

डॉ. ताहिर-उल-कादरी ने कायनात के आकाओं (अ.स.) के गुणों और इमाम हुसैन (अ.स.) के बलिदान के विषय पर बात की, जिस पर मौलाना सैयद अबुल कासिम रिज़वी ने कहा: तौहीद और रसूल के बाद, कुरान और काबा, इमाम अली इब्न अबी तालिब (अ.स.) की संरक्षकता और इमाम हुसैन (उन पर शांति) का बलिदान उम्माह के लिए एकता का बिंदु है। वकार अनबलवी के अनुसार:

इस्लाम के मूल में केवल दो चीजें हैं

एक ज़र्ब-ए यदुल्लाही, एक सजदा शबीरी

ज्ञात हो कि डॉ. ताहिर-उल-कादरी को ज़िलहिज्जा के अंत में ऑस्ट्रेलिया आना था, लेकिन वे मुहर्रम की तीसरी तारीख को पहुंचे, इसलिए मिन्हाज-उल-कुर के कार्यक्रमों के बीच कव्वाली का कार्यक्रम आयोजित किया गया शोक के दिनों को देखते हुए सेमिनार का आयोजन रद्द कर दिया गया.

मौलाना सैयद अबुल कासिम रिज़वी से सिडनी, ब्रिस्बेन, पर्थ के कार्यक्रमों में विशेष अतिथि के रूप में भाग लेने का अनुरोध किया गया, लेकिन मौलाना ने सम्मान के लिए धन्यवाद दिया और बैठकों की व्यस्तता के लिए माफी मांगी। मेलबर्न आज का दिन ऑस्ट्रेलिया के इतिहास में एक स्मारक है प्रार्थना के साथ समाप्त हुआ

ईरान के दक्षिण खुरासान प्रांत में वली फ़क़ीह के प्रतिनिधि ने कहा: कमाल तक पहुंचने के लिए मनुष्य को ईश्वर का आज्ञाकारी होना चाहिए। सारी कठिनाइयाँ तब आती हैं जब कोई व्यक्ति फिरौनवाद में फंस जाता है और दुनिया के सभी अपराध ईश्वर की दूरी के कारण होते हैं।

बिरजंद के प्रतिनिधि की रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण खुरासान प्रांत में वली फकीह के प्रतिनिधि हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सैयद अली रज़ा इबादी ने कहा: मनुष्य को देखना चाहिए कि उसके दुनिया में आने का लक्ष्य और उद्देश्य क्या है।

उन्होंने आगे कहा: यह बेहद महत्वपूर्ण है कि हम अपनी रचना के उद्देश्य को पहचानें। कई बार ऐसा होता है कि व्यक्ति कई वर्षों तक जीवित रहता है लेकिन उसे अपना लक्ष्य और उद्देश्य समझ नहीं आता।

दक्षिण खुरासान प्रांत मे वली फ़क़ीह के प्रतिनिधि ने कहा: अगर हम ज्ञान की वास्तविकता को देखें, तो यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि हम कहां से आए हैं, कहां जा रहे हैं और इंसान के भीतर समस्याओं की उत्पत्ति क्या है।

हुज्जतुल-इस्लाम वल-मुस्लिमीन सैयद अली रजा इबादी ने कहा: कमाल तक पहुंचने के लिए मनुष्य को ईश्वर का आज्ञाकारी होना चाहिए। सारी कठिनाइयाँ तब उत्पन्न होती हैं जब मनुष्य फिरौनवाद से बंध जाता है और दुनिया के सभी अपराध ईश्वर की दूरी के कारण होते हैं।

इंकलाबे इस्लामी का बयान किया हुआ इस्लाम व कुरआन और अहलेबैत अ.स.की हाकीकी शिक्षाओं के अनुसार एक सच्चा और तार्किक इस्लाम है और किसी भी अतिशयोक्ति और अतिवाद से मुक्त हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार,हौज़ा ए इल्मिया ईरान के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा आराफी ने आज मंगलवार, 23 जुलाई को रूसी विचारकों के एक समूह के साथ एक बैठक के दौरान कहा, इस्लामी गणतंत्र ईरान और रूस के बीच राजनीतिक और सांस्कृतिक संबंधों से दोनों देशों के बीच संबंध बहुत अच्छा हुआ हैं।

लेकिन हमें मौजूदा स्थिति से संतुष्ट नहीं होना चाहिए हमें इसे बढ़ाने की जरूरत है, क्योंकि रूस के साथ हमारे संबंध न केवल इन दोनों देशों के लिए बल्कि क्षेत्र के सभी लोगों के लिए फायदेमंद हैं।

हौज़ा ए इल्मिया के सुप्रीम काउंसिल के सदस्य ने कहा;इंकलाबे इस्लामी का बयान किया हुआ इस्लाम व कुरआन और अहलेबैत अ.स.की हाकीकी शिक्षाओं के अनुसार एक सच्चा और तार्किक इस्लाम है और किसी भी अतिशयोक्ति और अतिवाद से मुक्त हैं।

इस बैठक के दौरान अपने दूसरे बयान में ईरान के हौज़ा ए इलमिया के प्रमुख ने ईरान की इस्लामी क्रांति के परिप्रेक्ष्य से इस्लाम के अध्ययन पर जोर दिया और कहा इस्लाम के सच्चे धर्म का वर्णन हौज़ा ए इलमिया और इमाम खुमैनी र.ह.ने किया था यही सही और संतुलित इस्लाम है जिसे दुनिया के सामने पेश किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा इस्लाम के बारे में दो तरह के अध्ययन लोग करते हैं

पहला: इस्लाम की गलत व्याख्या (तफसीक) जिसे एक लिबरल इस्लाम कहा जाता है हम इस इस्लाम को अमेरिकी इस्लाम कहते हैं।

उन्होंने आगे कहा दूसरा वह इस्लाम है जो बुनियाद परस्ती पर निर्भर है, यह भी इस्लाम की गलत व्याख्या हैं इसका एक उदाहरण खुद आईएसआईएस है, जिसके खिलाफ ईरान और रूस सीरिया में लड़ रहे हैं। ऐसी सोच कभी कभी विभिन्न क्षेत्रों में गुमराह आंदोलनों को जन्म देती हैं।

संयुक्त राष्ट्र के उप महासचिव और चीन के प्रतिनिधि ने सोमवार शाम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में अलग अलग भाषणों के दौरान गाज़ा युद्ध को तत्काल समाप्त करने की आवश्यकता पर बल दिया हैं।

एक रिपोर्ट के अनुसार,संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने गाज़ा में युद्ध और लाल सागर में यमनी सेना के संचालन सहित पश्चिम एशिया क्षेत्र की स्थिति की समीक्षा के लिए सोमवार शाम को एक तत्काल बैठक की हैं।

संयुक्त राष्ट्र के उप महासचिव रोज़मेरी डी कारलो ने बैठक की शुरुआत में कहा मध्य पूर्व में मौजूदा स्थिति से क्षेत्रीय में तनाव बढ़ने की संभावना है।

अलजज़ीरा ने डिकार्लो के हवाले से बताया हमें गाज़ा में तत्काल युद्धविराम और बंधकों की बिना शर्त रिहाई की ज़रूरत है।

संयुक्त राष्ट्र में चीन के प्रतिनिधि ने बैठक के दौरान इस बात पर भी जोर दिया हमें गाजा पट्टी के लोगों की सामूहिक सजा को रोकना चाहिए और जल्द से जल्द उन तक पहुंचने में मदद करनी चाहिए।

एक रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने कहा मध्य पूर्व में स्थिति खराब हो रही है और हम इस बात पर जोर दे रहे हैं कि हालात जल्द से जल्द ठीक होने चाहिए।

दूसरी ओर अलहुदैदा समझौते का समर्थन करने वाले संयुक्त राष्ट्र प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख ने भी कहा मैं सभी पक्षों से नागरिकों को निशाना बनाने वाले हमलों से बचने का आह्वान करता हूं।

आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी ने अपने एक लेख में "कर्बला घटना की घटना में बौद्धिक और वैचारिक विचलन की भूमिका" पर शोध किया और कहा कि वास्तव में बानू उमय्यद इस्लाम में विश्वास नहीं करते थे और उनका विश्वास सिर्फ एक दिखावा था जिसे लोग स्वीकार करते हैं ।

अयातुल्ला मकारेम शिराज़ी ने अपने एक लेख में "कर्बला की घटना में बौद्धिक और वैचारिक विचलन की भूमिका" पर शोध किया और कहा कि वास्तव में बनी उमय्या इस्लाम और उनके अकीदा में विश्वास नहीं करते थे। यह लोगों को अपना शासन स्वीकार कराने का एक दिखावा मात्र था।

यहां सवाल उठता है कि इमाम हुसैन (अ) के समय के लोगों के बौद्धिक और वैचारिक विचलन क्या थे जो कर्बला की घटना का कारण बने?

पैगम्बर (स) की मृत्यु के बाद विचलनों का सिलसिला शुरू हुआ। ये विचलन ऐसी चीजों में थे जिनका राजनेता आसानी से फायदा उठा सकते थे और उनका उपयोग लोगों को समझाने और उनके उत्पीड़न को सही ठहराने के लिए कर सकते थे , इन विचलनों को पैदा करने में बानी उमय्या की बहुत बड़ी भूमिका रही है।

"इमाम के प्रति आज्ञाकारिता", "एकता की आवश्यकता", "निष्ठा की पवित्रता" ये तीन शब्द खलीफाओं द्वारा उपयोग किए जाने वाले सबसे आम राजनीतिक शब्द थे, यह कहा जा सकता है कि ये तीन अवधारणाएं खलीफा का आधार हैं इसके अस्तित्व के गारंटर थे, ये तीन शर्तें ऐसी थीं जिनमें सभी इस्लामी-राजनीतिक अवधारणाएं शामिल थीं, तर्क के दृष्टिकोण से, ये शर्तें समाज की स्थिरता और सामाजिक सुरक्षा के लिए आवश्यक थीं, इमाम की आज्ञाकारिता का अर्थ है शासन प्रणाली का पालन करना और खलीफा के सामने अब एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि शासक का पालन किस हद तक किया जाना चाहिए? क्या केवल धर्मी इमाम की आज्ञा मानना ​​आवश्यक है या हमें क्रूर और अत्याचारी शासक की भी आज्ञा माननी चाहिए?

उमय्यद ख़लीफ़ाओं और बाद में बानी अब्बास ख़लीफ़ाओं ने इन तीन शर्तों का दुरुपयोग किया और लोगों को अपना शासन स्वीकार करने के लिए मजबूर किया। सुन्नत ने इसे अत्याचार के खिलाफ विद्रोह के रूप में नहीं देखा, बल्कि इसे केवल शासक के खिलाफ एक अवैध पलायन और विद्रोह के रूप में देखा।

इस्लामी समाज में एक और धार्मिक विचलन फैलाया गया जिसे "अक़ीदा जब्र" कहा जाता था, इस विश्वास को बढ़ावा देना और इसे अपनी नीतियों के लिए उपयोग करना, और जब मुआविया ने लोगों से यज़ीद के प्रति निष्ठा रखने के लिए कहा, तो उन्होंने कहा: "यज़ीद की समस्या एक ईश्वरीय आदेश है, ईश्वर चाहता है कि यज़ीद ख़लीफ़ा बने।" जब उमर बिन साद से पूछा गया कि आपने 'रे' का शासन पाने के लिए इमाम हुसैन (अ) को क्यों मार डाला? कहा: "ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि ईश्वर ने ऐसा ठहराया था।" काब अल-अहबर जब तक जीवित थे, कहते थे कि बनी हाशिम को कभी सरकार नहीं मिलेगी!

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से बाइडेन के पीछे हटने के 24 घंटे में ही कमला हैरिस ने डेमोक्रेटिक पार्टी से नॉमिनेशन के लिए बहुमत हासिल कर लिया है। न्यूयॉर्क टाइम्स के मुताबिक, कमला हैरिस को राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी के लिए 4 हजार में से अब तक 1976 डेलिगेट्स का समर्थन मिल चुका है। पार्टी उम्मीदवार बनने के लिए 1976 डेलीगेट का समर्थन हासिल करना होता है।

बता दें कि रविवार को बाइडेन ने ऐलान किया था कि वह राष्ट्रपति पद का चुनाव नहीं लड़ेंगे। इसके साथ ही उन्होंने डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार के तौर पर उपराष्ट्रपति कमला हैरिस के नाम की सिफारिश की थी। चुनाव में कमला हैरिस का सामना रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप से होगा।

 बाइडेन के पीछे हटने की कई वजहें थीं। बढ़ती उम्र, चुनाव प्रचार के बीच कोरोना पॉजिटिव होना, 81 साल में उम्र में जगह-जगह प्रचार प्रसार करना, इससे इतर इसके साथ ही उनकी ही पार्टी के कई साथी भी उनसे खफा थे।

 

इस्लामिक रिवोल्यूशन गार्ड्स कॉर्प्स ने कहा है कि फारस की खाड़ी में तेल की तस्करी की कोशिश कर रहे एक तेल टैंकर को जब्त कर लिया गया है। टोगो के ध्वज वाले तेल टैंकर में 15 लाख लीटर तेल के साथ 12 लोग सवार थे।

इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स ने घटना के बारे में एक बयान जारी करते हुए कहा है कि ईरानी जनता को सूचित किया जाता है कि इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स के सैनिकों ने ठोस जानकारी और गुप्त रिपोर्ट के आधार पर फारस की खाड़ी में छापा मार कार्रवाई करते हुए betl guse नामक तेल टैंकर को जब्त कर लिया है।

बयान में कहा गया कि तेल टैंकर में 15 लाख लीटर तेल की तस्करी की जा रही थी और अफ्रीकी देश टोगो का झंडा लगा हुआ था। तेल टैंकर पर भारत और श्रीलंका के नागरिकों सहित 12 लोग सवार थे। तेल टैंकर को बुशहर बंदरगाह पर सुरक्षा घेरे में रखा गया है।

 

 

हिब्रू मीडिया के मुताबिक, मक़बूज़ा फिलिस्तीन के कई शहरों में भारी बम विस्फोट हुए हैं।

अल-मयादीन के मुताबिक, ज़ायोनी मीडिया ने बताया है कि सोमवार रात को हैफ़ा और अका में कई जगहों पर ज़ोरदार विस्फोटों की आवाज़ सुनी गई। ज़ायोनी अधिकारियों ने विस्फोटों के संबंध में अभी तक कोई विवरण जारी नहीं किया है।

फिलिस्तीन विशेषकर ग़ज़्ज़ा में फिलिस्तीनी नागरिकों के खिलाफ ज़ायोनी सेना की आक्रामकता और उनके नरसंहार के बाद, क्षेत्र में प्रतिरोध संगठनों ने मक़्बूओजा फिलिस्तीन के शहरों और बंदरगाहों पर कई हमले किए हैं।

या मौहम्दा सल्ला अलैका मलाएकातुस् समा व हाज़ल हुसैनो मुरम्मेलुम बिद्देमा। मुक़त्तेउल आज़ा व बिनातोका सबाता।

रावी कहता है खुदा  की क़सम मैं हज़रत ज़ैनब के वो बैन फरामोश नही करूँगा। जो उन्होने अपने भाई हुसैन की लाश पर किऐ। आप ग़मनाक अन्दाज़ मे बैन करती थी।

 या मौहम्मद ऐ जददे बुर्जुगवार आप पर आसमान के फरिशते दरुद भेजते है और ये आप हुसैन है कि जो रेत पर अपने खून मे ग़लता है। इसके आज़ा एक दुसरे से जुदा हो चुके है और ये तेरी बेटियाँ है जो क़ैदी बनी हुई है। मैं इन मज़ालिम पर खुदा, मुस्तुफा, अली ए मुरतुज़ा, फातेमा ज़हरा और हमज़ा सैय्यदुश शोहदा की बारग़ाह में शिकायत करती हूँ या मौहम्मदा ये आप का हुसैन है जो सर ज़मीने करबला पर बरहना व उरया पड़ा है औऱ बादे सबा इस पर खाक डाल रही है। ये आपका हुसैन है जो ज़िनाज़ादो के जुल्मो सितम की बिना पर कत्ल किया गया।

वा हुज़्ना।

वा अकबरा।

गोया आज के दिन मेरे जद्दे बुज़ुर्गवार रसूले खुदा इस दुनिया से चले गऐ है।

ऐ मौहम्मद के अस्हाब। ये तुम्हारे पैग़म्बर की औलाद है। जिन को कैदीयो की तरह क़ैद करके ले जा रहे है।

दूसरी रिवायत मे मनकूल है कि हज़रत जैनब ने फरमायाः ऐ रसूल अल्लाह आज आपकी बेटीयाँ क़ैदी है और बेटे क़त्ल हो गऐ और बादे सबा उनपर खाक डाल रही है। ये आपका हुसैन है कि जिसका सिर पसे गर्दन से जुदा किया गया है और  उसका अमामा और चादर लूट ली गई है। मेरे माँ बाप इस पर कुरबान हो उस पर कि जिसके लश्कर को सोमवार के दिन जुल्मो सितम का निशाना बनाया गया। मेरे माँ बाप कुरबान को उस पर कि जिसके खेमो को जला दिया गया।

मेरे बाबा कुरबान हो उस पर कि जिसकी वापसी की उम्मीद नही की जा सकती। और जिस के जख्म ऐसे नही कि जिसका इलाज किया जा सके। मेरे माँ बाप उस पर कुरबान हो जिसपर मैं खुद भी फिदा होना पसंद करती हूँ।

मेरे माँ बाप उस पर कुरबान कि जिसका दिल ग़मो गुस्सा से भरा हुआ था और इसी हाल मे दुनिया से चला गया।

मेरे माँ बाप उस पर फिदा कि जिसको तिशना लब शहीद कर दिया गया।

मेरे माँ बाप फिदा उस पर कि जिसके जद पैगंबरे खुदा हज़रते मौहम्मदे मुस्तुफा है।

इसके बाद रावी कहता है कि जनाबे ज़ैनब के गिरयाओ बुका ने दोस्तो दुश्मन सब को रूला दिया।

(लहूफ)

सोमवार, 22 जुलाई 2024 17:11

असबाबे जावेदानी ए आशूरा

यूँ तो ख़िलक़ते आलम व आदम से लेकर आज तक इस रुए ज़मीन पर हमेशा नित नये हवादिस व वक़ायए रुनुमा होते रहे हैं और चश्मे फ़लक भी इस बात पर गवाह है कि उन हवादिस में बहुत से ऐसे हादसे भी हैं जिन में हादस ए करबला से कहीं ज़्यादा ख़ून बहाये गये और शोहदा ए करबला के कई बराबर लोग बड़ी बेरहहमी और मज़लूमी के साथ तहे तेग़ कर दिये गये लेकिन यह तमाम जंग व जिनायात मुरुरे ज़मान के साथ साथ तारीख़ की वसीअ व अरीज़ क़ब्र में दफ़्न हो कर रह गयीं मगर उन हवादिस में से फ़क़त वाक़ेया ए करबला है जो आसमाने तारीख़ पर पूरी आब व ताब के साथ बद्रे कामिल की तरह चमक रहा है बावजूद इस के कि दुश्मन हर दौर में इस हादसे को कम रंग या नाबूद करने की कोशिशें करता रहा है मगर यह वाक़ेया उन तमाम मराहिल से गुज़रता हुआ आज चौदहवीं सदी में भी अपना कामयाब सफ़र जारी रखे हुए है, आख़िर सबब क्या है?

आख़िर वह कौन से अनासिर हैं जो इस वाक़ेया को हयाते जावेदाना अता करते हैं? मज़कूरा सवाल को मद्दे नज़र रखते हुए चंद मवारिद की तरफ़ मुख़्तसर इशारा किया जा रहा है जो क़यामे इमाम हुसैन (अ) को ज़िन्दा रखने में मुअस्सिर होते हैं।

 वादा ए इलाही

जब हम कुरआन की तरफ़ रुजू करते हैं तो हमें मालूम होता है कि ख़ुदा वंदे आलम अपने बंदों से यह वादा कर रहा है कि तुम मेरा ज़िक्र करो मैं तुम्हारा ज़िक्र करूँगा। हर मुनसिफ़ नज़र इस आयत को और सन् 61 हिजरी के पुर आशोब दौर को मुलाहिज़ा करने के बाद यह फ़ैसला करने पर मजबूर हो जाती है कि चूँ कि उस दौर में जब नाम व ज़िक्र ख़ुदा को सफ़ह ए हस्ती से मिटाया जा रहा था तो सिर्फ़ इमाम हुसैन (अ) थे जो अपने आईज़्ज़ा व अक़रबा के हमराह वारिदे मैदान हुए और ख़ुदा के नाम और उस के ज़िक्र को तूफ़ाने नाबूदी से बचा कर साहिले निजात तक पहुचाया। लिहाज़ा ख़ुदा वंदे मुतआल ने भी अपने वादे के मुताबिक़ ज़िक्रे हुसैन को उस मेराज पर पहुचा दिया कि जहाँ दस्ते दुश्मन की रसाई मुम्किन ही नही है और यही वजह है कि दुश्मनों की इंतेहाई कोशिशों के बावजूद भी ज़िक्रे हुसैन (अ) आज भी ज़िन्दा व सलामत है।

क़यामे इलाही

इमाम हुसैन अलैहिस सलाम का क़याम एक इलाही क़याम था जो हक़ व दीने हक़ को ज़िन्दा करने के लिये था चुँनाचे आप का जिहाद, आप की शहादत, आप के क़याम का मुहर्रिक सब कुछ ख़ुदाई था और हर वह चीज़ जो लिल्लाह हो और रंगे ख़ुदाई इख़्तियार कर ले वह शय जावेद और ग़ैर मअदूम हो जाती है, क्योकि क़ुरआन मजीद कह रहा है कि जो कुछ ख़ुदा के पास है वह बाक़ी है और दूसरी आयत कह क रही है हर शय फ़ना हो जायेगी सिवाए वजहे ख़ुदा के, जब इन दोनो आयतों को मिलाते हैं तो नतीजा मिलता है कि न ख़ुदा मअदूम हो सकता है और न ही जो चीज़ ख़ुदा के पास है वह मअदूम हो सकती है।

इरादा ए इलाही

ख़ुदा वंदे का इरादा है कि हर वह चीज़ जो बशर व बशरियत के हक़ में फ़ायदेमंद हो उसे हयाते जावेदाना अता करे और उस को दस्ते दुश्मन से महफ़ूज़ रखे।

क़ुरआने मजीद कहता है कि दुश्मन यह कोशिश कर रहा है कि नूरे ख़ुदा को अपनी फ़ूकों से ख़ामोश कर दे लेकिन ख़ुदा का नूर ख़ामोश होने वाला नही है, इमाम हुसैन (अ) चूँ कि नूरे ख़ुदा के हक़ीक़ी मिसदाक़ हैं और क़यामे इमाम भी हर ऐतेबार से बशर और बशरियत के लिये सूद मंद है लिहाज़ा इरादा ए इलाही के ज़ेरे साया यह क़याम ता अबद ज़िन्दा रहेगा।

उन के अलावा और भी बहुत से मौरिद हैं मसलन क़यामे इमाम (अ) की जावेदानी ज़िन्दगी और उस के दायमी सफ़र पर ख़ुद पैग़म्बर (स) भी अपनी मोहरे ताईद सब्त करते हुए फ़रमाते हैं कि शहादते हुसैन (अ) के परतव क़ुलूबे मोमिनीन में एक ऐसी हरारत पाई जाती है कि जो कभी सर्द नही हो सकती। इस हदीस के अंदर अगर ग़ौर व ख़ौज़ किया जाये तो बख़ूबी रौशन हो जाता है कि रसूले अकरम (स) ने इस हादसे के वुक़ूस से पहले ही उस के दायमी होने की ख़बर दे दी थी।

या इस के अलावा वाक़ेया ए करबला के बाद जब अमवियों ने यह सोच लिया था कि दीने ख़ुदा मिट गया, नामे पैग़म्बर (स) व आले पैग़म्बर नीस्त व नाबूद हो चुका है और उसी वक़्ती फ़तहयाबी की ख़ुशी के नशे में मख़मूर जब यज़ीद ने कहा कि कोई ख़बर नही आई, कोई वही नाज़िल नही हुई यह तो बनी हाशिम का हुकूमत अपनाने का महज़ एक ठोंग था तो उस मौक़े पर अली (अ) की बेटी ज़ैनब और इमाम सज्जाद (अ) के शररबार ने यज़ीद के नशे को काफ़ूर करते हुए दरबार में अपनी जीत का डंका बजाया और भरे दरबार में जनाबे ज़ैनब हाकिमे वक़्त क मुखातब कर के कहा कि ऐ यज़ीद तेरी इतनी औक़ात कहाँ कि अली (अ) की बेटी तुझ से बात करे लेकिन इतना तूझे बता देती हूँ तू जितनी कोशिश और मक्कारियाँ कर सकता है कर ले, लेकिन याद रख तो हरगिज़ हमारी महबुबियत को लोगों के दिलों से नही मिटा सकता। जनाबे ज़ैनब (स) की ज़बाने मुबारक से निकले हुए यह कलेमात इस बात की तरफ़ इशारा कर रहे हैं कि हुसैन (अ) और अहले बैत (अ) के नाम की महबुबियत को ख़ुदा ने लोगों के दिलों में वदीयत कर रखा है और जब तक सफ़ह ए हस्ती पर लोग रहेगें ज़िक्रे हुसैन और नामे हुसैन (अ) को ज़िन्दा रखेगें।